राजस्थान के प्रमुख राजवंश
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राजस्थान के प्रमुख राजवंश
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Question 1 of 108
1. Question
1 pointsआभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं?
Correct
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
- आभानेरी:
- यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
- राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
- इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
- राजोरगढ़:
- यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
- प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
- इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
- लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ, “गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू” कहा गया है।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, किराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं।
Incorrect
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
- आभानेरी:
- यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
- राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
- इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
- राजोरगढ़:
- यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
- प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
- इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
- लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ, “गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू” कहा गया है।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, किराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं।
Unattempted
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
- आभानेरी:
- यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
- राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
- इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
- राजोरगढ़:
- यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
- प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
- इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
- लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ, “गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू” कहा गया है।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।
- गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, किराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं।
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Question 2 of 108
2. Question
1 pointsप्रतिहार वंश का अंतिम शासक था
Correct
यशपाल-
- 1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था।
- 1039 ई. के आसपास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
महेन्द्रपाल प्रथम(885-910 ई.)-
- इनके गुरू व आश्रित कवि राजशेखर थे।
- राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्धसालभंज्जिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास और भुवनकोश की रचना की।
- राजशेखर ने अपने ग्रन्थों में महेन्द्रपाल को रघुकुल चड़ामणि, निर्भय नरेश, निर्भय नरेन्द्र कहा है।
- महेन्द्रपाल प्रथम के दो पुत्र थे भोज द्वितीय और महिपाल प्रथम।
- भोज द्वितीय ने(910-913 ई.) तक शासन किया।
महिपाल प्रथम(914-943 ई.)-
- जब तक महिपाल ने शासन संभाला तब तक राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने प्रतिहारों का हराकर कन्नौज को नष्ट कर दिया।
- राजशेखर महिपाल के दरबार में भी रहे थे।
- राजशेखर ने महिपाल को ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ कहा और ‘रघुकुल मुकुटमणि’ की संज्ञा दी।
- महिपाल को गुर्जर प्रतिहारों को ‘अलगुर्जर’ एवं राजा को ‘बौरा’ कहा था।
- इनके समय में अरब यात्री ‘अलमसूदी’ ने भारत की यात्रा की।
राज्यपाल-
- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
Incorrect
यशपाल-
- 1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था।
- 1039 ई. के आसपास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
महेन्द्रपाल प्रथम(885-910 ई.)-
- इनके गुरू व आश्रित कवि राजशेखर थे।
- राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्धसालभंज्जिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास और भुवनकोश की रचना की।
- राजशेखर ने अपने ग्रन्थों में महेन्द्रपाल को रघुकुल चड़ामणि, निर्भय नरेश, निर्भय नरेन्द्र कहा है।
- महेन्द्रपाल प्रथम के दो पुत्र थे भोज द्वितीय और महिपाल प्रथम।
- भोज द्वितीय ने(910-913 ई.) तक शासन किया।
महिपाल प्रथम(914-943 ई.)-
- जब तक महिपाल ने शासन संभाला तब तक राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने प्रतिहारों का हराकर कन्नौज को नष्ट कर दिया।
- राजशेखर महिपाल के दरबार में भी रहे थे।
- राजशेखर ने महिपाल को ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ कहा और ‘रघुकुल मुकुटमणि’ की संज्ञा दी।
- महिपाल को गुर्जर प्रतिहारों को ‘अलगुर्जर’ एवं राजा को ‘बौरा’ कहा था।
- इनके समय में अरब यात्री ‘अलमसूदी’ ने भारत की यात्रा की।
राज्यपाल-
- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
Unattempted
यशपाल-
- 1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था।
- 1039 ई. के आसपास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
महेन्द्रपाल प्रथम(885-910 ई.)-
- इनके गुरू व आश्रित कवि राजशेखर थे।
- राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्धसालभंज्जिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास और भुवनकोश की रचना की।
- राजशेखर ने अपने ग्रन्थों में महेन्द्रपाल को रघुकुल चड़ामणि, निर्भय नरेश, निर्भय नरेन्द्र कहा है।
- महेन्द्रपाल प्रथम के दो पुत्र थे भोज द्वितीय और महिपाल प्रथम।
- भोज द्वितीय ने(910-913 ई.) तक शासन किया।
महिपाल प्रथम(914-943 ई.)-
- जब तक महिपाल ने शासन संभाला तब तक राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने प्रतिहारों का हराकर कन्नौज को नष्ट कर दिया।
- राजशेखर महिपाल के दरबार में भी रहे थे।
- राजशेखर ने महिपाल को ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ कहा और ‘रघुकुल मुकुटमणि’ की संज्ञा दी।
- महिपाल को गुर्जर प्रतिहारों को ‘अलगुर्जर’ एवं राजा को ‘बौरा’ कहा था।
- इनके समय में अरब यात्री ‘अलमसूदी’ ने भारत की यात्रा की।
राज्यपाल-
- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
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Question 3 of 108
3. Question
1 pointsइतिहासकार आर.सी. मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने कितनी शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया?
Correct
गुर्जर प्रतिहार वंश-
- राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई।
- प्रतिहार अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है।
- लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया।
- गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये।
- बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया और भारत के द्वारपाल(प्रतिहार) की भूमिका निभाई।
Incorrect
गुर्जर प्रतिहार वंश-
- राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई।
- प्रतिहार अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है।
- लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया।
- गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये।
- बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया और भारत के द्वारपाल(प्रतिहार) की भूमिका निभाई।
Unattempted
गुर्जर प्रतिहार वंश-
- राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई।
- प्रतिहार अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है।
- लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया।
- गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये।
- बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया और भारत के द्वारपाल(प्रतिहार) की भूमिका निभाई।
-
Question 4 of 108
4. Question
1 pointsमण्डोर के प्रतिहार माने जाते हैं
Correct
मण्डौर के प्रतिहार-
- गुर्जर-प्रतिहारों की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण थी।
- जोधपुर और घटियाला शिलालेखों के अनुसार हरिशचन्द्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी।
- एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा।
- क्षत्राणी भद्रा के चार पुत्रों भोगभट्ट, कद्दक, रज्जिल और दह ने मिलकर मण्डौर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- रज्जिल तीसरा पुत्र होने पर भी मण्डौर की वंशावली इससे प्रारम्भ होती है।
शीलुक-
- इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश के शासक भाटी देवराज को हराया।
- शीलुक की भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से बाउक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक-
- बाउक ने 837 ई. की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित कराकर मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था।
कक्कुक
- कक्कुक ने दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है।
- कक्कुक के द्वारा घटियाला और मण्डौर में जयस्तम्भ भी स्थापित किये गये थे।
Incorrect
मण्डौर के प्रतिहार-
- गुर्जर-प्रतिहारों की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण थी।
- जोधपुर और घटियाला शिलालेखों के अनुसार हरिशचन्द्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी।
- एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा।
- क्षत्राणी भद्रा के चार पुत्रों भोगभट्ट, कद्दक, रज्जिल और दह ने मिलकर मण्डौर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- रज्जिल तीसरा पुत्र होने पर भी मण्डौर की वंशावली इससे प्रारम्भ होती है।
शीलुक-
- इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश के शासक भाटी देवराज को हराया।
- शीलुक की भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से बाउक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक-
- बाउक ने 837 ई. की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित कराकर मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था।
कक्कुक
- कक्कुक ने दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है।
- कक्कुक के द्वारा घटियाला और मण्डौर में जयस्तम्भ भी स्थापित किये गये थे।
Unattempted
मण्डौर के प्रतिहार-
- गुर्जर-प्रतिहारों की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण थी।
- जोधपुर और घटियाला शिलालेखों के अनुसार हरिशचन्द्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी।
- एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा।
- क्षत्राणी भद्रा के चार पुत्रों भोगभट्ट, कद्दक, रज्जिल और दह ने मिलकर मण्डौर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- रज्जिल तीसरा पुत्र होने पर भी मण्डौर की वंशावली इससे प्रारम्भ होती है।
शीलुक-
- इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश के शासक भाटी देवराज को हराया।
- शीलुक की भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से बाउक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक-
- बाउक ने 837 ई. की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित कराकर मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था।
कक्कुक
- कक्कुक ने दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है।
- कक्कुक के द्वारा घटियाला और मण्डौर में जयस्तम्भ भी स्थापित किये गये थे।
-
Question 5 of 108
5. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किस चीनी यात्री ने भीनमाल की यात्रा की थी?
Correct
- चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भीनमाल आया
- ह्वेनसांग ने अपने 72 देशों के वर्णन में इसे कू-चे-लो(गुर्जर) बताया
- ह्वेनसांग ने गुर्जर की राजधानी का नाम ‘पीलोमोलो/भीलामाल’ यानि भीनमाल बताया।
- प्रतिहार नरेशों के जोधपुर और घटियाला शिलालेखों से प्रकट होता है कि गुर्जर प्रतिहारों का मूल निवास स्थान गुर्जरात्र था।
- एच. सी. रेके अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र माण्डवैपुरा (मण्डौर) था।
- अधिकांश इतिहासकार गुर्जर प्रतिहारों की की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र अवन्ति अथवा उज्जैन को मानते हैं।
- जैन ग्रन्थ हरिवंश और राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष का संजन ताम्रपत्र नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है।
Incorrect
- चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भीनमाल आया
- ह्वेनसांग ने अपने 72 देशों के वर्णन में इसे कू-चे-लो(गुर्जर) बताया
- ह्वेनसांग ने गुर्जर की राजधानी का नाम ‘पीलोमोलो/भीलामाल’ यानि भीनमाल बताया।
- प्रतिहार नरेशों के जोधपुर और घटियाला शिलालेखों से प्रकट होता है कि गुर्जर प्रतिहारों का मूल निवास स्थान गुर्जरात्र था।
- एच. सी. रेके अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र माण्डवैपुरा (मण्डौर) था।
- अधिकांश इतिहासकार गुर्जर प्रतिहारों की की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र अवन्ति अथवा उज्जैन को मानते हैं।
- जैन ग्रन्थ हरिवंश और राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष का संजन ताम्रपत्र नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है।
Unattempted
- चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भीनमाल आया
- ह्वेनसांग ने अपने 72 देशों के वर्णन में इसे कू-चे-लो(गुर्जर) बताया
- ह्वेनसांग ने गुर्जर की राजधानी का नाम ‘पीलोमोलो/भीलामाल’ यानि भीनमाल बताया।
- प्रतिहार नरेशों के जोधपुर और घटियाला शिलालेखों से प्रकट होता है कि गुर्जर प्रतिहारों का मूल निवास स्थान गुर्जरात्र था।
- एच. सी. रेके अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र माण्डवैपुरा (मण्डौर) था।
- अधिकांश इतिहासकार गुर्जर प्रतिहारों की की सत्ता का प्रारम्भिक केन्द्र अवन्ति अथवा उज्जैन को मानते हैं।
- जैन ग्रन्थ हरिवंश और राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष का संजन ताम्रपत्र नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है।
-
Question 6 of 108
6. Question
1 pointsगुर्जरों को किस शासक ने पराजित किया?
Correct
Incorrect
Unattempted
-
Question 7 of 108
7. Question
1 pointsवह गुर्जर प्रतिहार शासक जिसने कन्नोज विजय के उपलक्ष्य में “परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” की उपाधि धारण की थी.
Correct
वत्सराज(783-795ई.)
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
नागभट्ट द्वितीय(795-833ई.)
- नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का उत्तराधिकारी थे।
- नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध को पराजित किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया।
- नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया।
- बकुला अभिलेख में इन्हें ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ कहा गया हे।
- चंद्रप्रभा सूरी के ग्रंथ ‘प्रभावक चरित’ के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने 833 ई. में गंगा में डूबकर आत्महत्या कर ली।
- नागभट्ट के बाद उनके पुत्र रामभद्र ने 833 ई. में शासन संभाला परन्तु अल्प शासनकाल(3 वर्ष) में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।
Incorrect
वत्सराज(783-795ई.)
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
नागभट्ट द्वितीय(795-833ई.)
- नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का उत्तराधिकारी थे।
- नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध को पराजित किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया।
- नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया।
- बकुला अभिलेख में इन्हें ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ कहा गया हे।
- चंद्रप्रभा सूरी के ग्रंथ ‘प्रभावक चरित’ के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने 833 ई. में गंगा में डूबकर आत्महत्या कर ली।
- नागभट्ट के बाद उनके पुत्र रामभद्र ने 833 ई. में शासन संभाला परन्तु अल्प शासनकाल(3 वर्ष) में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।
Unattempted
वत्सराज(783-795ई.)
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
नागभट्ट द्वितीय(795-833ई.)
- नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का उत्तराधिकारी थे।
- नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध को पराजित किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया।
- नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया।
- बकुला अभिलेख में इन्हें ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ कहा गया हे।
- चंद्रप्रभा सूरी के ग्रंथ ‘प्रभावक चरित’ के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने 833 ई. में गंगा में डूबकर आत्महत्या कर ली।
- नागभट्ट के बाद उनके पुत्र रामभद्र ने 833 ई. में शासन संभाला परन्तु अल्प शासनकाल(3 वर्ष) में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।
-
Question 8 of 108
8. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किस विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया है?
Correct
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
Incorrect
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
Unattempted
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
-
Question 9 of 108
9. Question
1 pointsवत्सराज के किस दरबारी विद्वान के ग्रंथ में मरुभाषा का उल्लेख मिलता है?
Correct
वत्सराज(783-795ई.)-
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
Incorrect
वत्सराज(783-795ई.)-
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
Unattempted
वत्सराज(783-795ई.)-
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
-
Question 10 of 108
10. Question
1 pointsकिस इतिहासकार ने मिहिरभोज को 9वीं सदी का सबसे शक्तिशाली शासक कहा है?
Correct
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)-
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- दशरथ शर्मा ने मिहिरभोज को 9वीं सदी का सबसे शक्तिशाली शासक कहा |
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
Incorrect
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)-
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- दशरथ शर्मा ने मिहिरभोज को 9वीं सदी का सबसे शक्तिशाली शासक कहा |
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
Unattempted
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)-
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- दशरथ शर्मा ने मिहिरभोज को 9वीं सदी का सबसे शक्तिशाली शासक कहा |
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
-
Question 11 of 108
11. Question
1 pointsकिस प्रतिहार शासक को राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ के समय द्वारपाल या प्रतिहार बनाया था?
Correct
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Incorrect
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Unattempted
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
-
Question 12 of 108
12. Question
1 pointsअरबी लेखक “बिलादूरी” ने किस प्रतिहार शासक को शक्ति का उल्लेख किया है?
Correct
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Incorrect
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Unattempted
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
-
Question 13 of 108
13. Question
1 pointsग्वालियर शिलालेख में नागभट्ट प्रथम को किस उपाधि से सम्मानित किया गया?
Correct
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Incorrect
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
Unattempted
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- अरबी लेखक “बिलादूरी” ने नागभट्ट प्रथम प्रतिहार शासक की शक्ति का उल्लेख किया है?
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
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Question 14 of 108
14. Question
1 pointsगुहिल वंश की उत्पत्ति के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?
(A) अबुल फजल के अनुसार गुहिल ईरानी बादशाह नौशेर खाँ आदिल की संतान थे।
(B) टॉड के अनुसार गुहिल शिलादित्य के वंशज थे।
Correct
गुहिल वंश की उत्पति
- गुहिल अबुल फजल ने मेवाड़ के गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेखाँ आदिल की सन्तान माना है।
- मुहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में गुहिलों की 24 शाखाओं का जिक्र किया है। इन सभी शाखाओं में मेवाड़ के गुहिल सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं।
- डी.आर.भंडारकर मेवाड़ के गुहिलों को ब्राह्मण वंश से मानते है
- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद औझा के अनुसार सूर्यवंशी है
- टॉड एवं नैणसी री ख्यात के अनुसार वल्लभ नरेश शिलादित्य एवं रानी पुष्पावती का वंशज
- गुहिल वंश का संस्थापक – गुहिल
- स्थापना – 566 ई.
- वास्तविक संस्थापक – बप्पा रावल
- कुल देवी – बाणमाता
- इष्ट देवी / आराध्य देवी – अन्नपूर्णा माता
- राज ध्वज – उगता सूरज एवं धनुष-बाण अंकित
- राज वाक्य – जो दृढ़ राखे धर्म को ति ही राखे करतार
Incorrect
गुहिल वंश की उत्पति
- गुहिल अबुल फजल ने मेवाड़ के गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेखाँ आदिल की सन्तान माना है।
- मुहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में गुहिलों की 24 शाखाओं का जिक्र किया है। इन सभी शाखाओं में मेवाड़ के गुहिल सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं।
- डी.आर.भंडारकर मेवाड़ के गुहिलों को ब्राह्मण वंश से मानते है
- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद औझा के अनुसार सूर्यवंशी है
- टॉड एवं नैणसी री ख्यात के अनुसार वल्लभ नरेश शिलादित्य एवं रानी पुष्पावती का वंशज
- गुहिल वंश का संस्थापक – गुहिल
- स्थापना – 566 ई.
- वास्तविक संस्थापक – बप्पा रावल
- कुल देवी – बाणमाता
- इष्ट देवी / आराध्य देवी – अन्नपूर्णा माता
- राज ध्वज – उगता सूरज एवं धनुष-बाण अंकित
- राज वाक्य – जो दृढ़ राखे धर्म को ति ही राखे करतार
Unattempted
गुहिल वंश की उत्पति
- गुहिल अबुल फजल ने मेवाड़ के गुहिलों को ईरान के बादशाह नौशेखाँ आदिल की सन्तान माना है।
- मुहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में गुहिलों की 24 शाखाओं का जिक्र किया है। इन सभी शाखाओं में मेवाड़ के गुहिल सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं।
- डी.आर.भंडारकर मेवाड़ के गुहिलों को ब्राह्मण वंश से मानते है
- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद औझा के अनुसार सूर्यवंशी है
- टॉड एवं नैणसी री ख्यात के अनुसार वल्लभ नरेश शिलादित्य एवं रानी पुष्पावती का वंशज
- गुहिल वंश का संस्थापक – गुहिल
- स्थापना – 566 ई.
- वास्तविक संस्थापक – बप्पा रावल
- कुल देवी – बाणमाता
- इष्ट देवी / आराध्य देवी – अन्नपूर्णा माता
- राज ध्वज – उगता सूरज एवं धनुष-बाण अंकित
- राज वाक्य – जो दृढ़ राखे धर्म को ति ही राखे करतार
-
Question 15 of 108
15. Question
1 pointsगुहिल वंश के संदर्भ में निम्नलिखित में से असुमेलित कथन को छाँटिए –
Correct
- गुहिल वंश के कुलदेवता – एकलिंगनाथ जी
- गुहिल वंश के आराध्य देव – चारभुजानाथ जी
- गुहिल वंश की कुलदेवी – सिसोदिया गहलोत, गुहिल या गहलोत वंश की कुलदेवी बाण माता का मुख्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। माताजी का पुराना स्थान गिरनार गुजरात में था पर कालान्तर में माँ बाण माता चित्तौड़ पधार गयी थी।
- गुहिल वंश की आराध्य देवी – चारभुजा माता
Incorrect
- गुहिल वंश के कुलदेवता – एकलिंगनाथ जी
- गुहिल वंश के आराध्य देव – चारभुजानाथ जी
- गुहिल वंश की कुलदेवी – सिसोदिया गहलोत, गुहिल या गहलोत वंश की कुलदेवी बाण माता का मुख्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। माताजी का पुराना स्थान गिरनार गुजरात में था पर कालान्तर में माँ बाण माता चित्तौड़ पधार गयी थी।
- गुहिल वंश की आराध्य देवी – चारभुजा माता
Unattempted
- गुहिल वंश के कुलदेवता – एकलिंगनाथ जी
- गुहिल वंश के आराध्य देव – चारभुजानाथ जी
- गुहिल वंश की कुलदेवी – सिसोदिया गहलोत, गुहिल या गहलोत वंश की कुलदेवी बाण माता का मुख्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। माताजी का पुराना स्थान गिरनार गुजरात में था पर कालान्तर में माँ बाण माता चित्तौड़ पधार गयी थी।
- गुहिल वंश की आराध्य देवी – चारभुजा माता
-
Question 16 of 108
16. Question
1 pointsमालवा-मेवाड़ संघर्ष का सूत्रपात किसने किया था?
Correct
राणा क्षेत्रसिंह (राणा खेता) (1364-82 ई.)-
- राणा हम्मीर का पुत्र।
- इसने बुंदी को अपने अधीन किया।
- मालवा-मेवाड़ संघर्ष का सूत्रपात किया था
Incorrect
राणा क्षेत्रसिंह (राणा खेता) (1364-82 ई.)-
- राणा हम्मीर का पुत्र।
- इसने बुंदी को अपने अधीन किया।
- मालवा-मेवाड़ संघर्ष का सूत्रपात किया था
Unattempted
राणा क्षेत्रसिंह (राणा खेता) (1364-82 ई.)-
- राणा हम्मीर का पुत्र।
- इसने बुंदी को अपने अधीन किया।
- मालवा-मेवाड़ संघर्ष का सूत्रपात किया था
-
Question 17 of 108
17. Question
1 pointsरावल रतनसिंह के संदर्भ में कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
रावल रतनसिंह (1301-1303 ई.)-
- यह समरसिंह का पुत्र था जो 1301 ई. में शासक बना।
- रतनसिंह गुहिलों की रावल शाखा का अंतिम शासक था।
- रावल रतनसिंह का विद्वान पण्डित राघव चेतन को रतनसिंह द्वारा देश निकाला दे दिये जाने पर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में शरण ली ।
- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय लड़ते हुए शहीद, पत्नी पद्मिनी का जौहर, सेनापति गोरा-बादल (चाचा – भतीजा) का बलिदान।
- इस युद्ध (1303 ई. ) में इतिहासकार अमीर खुसरो उपस्थित था।
- गोरा पद्मिनी का चाचा तथा बादल भाई था।
- 1303 ई. में चित्तौड़ का प्रथम साका ( राजपूतों का बलिदान एवं राजपूत महिलाओ का सामुहिक जौहर) हुआ।
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा व अपने पुत्र खिज्र खां को वहाँ का शासक बनाया।
- चित्तौड़गढ़ के किले में पद्मिनी पैलेस, गौरा बादल महल, नौ गंजा पीर की दरगाह व कालिका माता का मन्दिर, कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ, जीजा द्वारा जैन कीर्ति स्तम्भ, मोकल द्वारा पुनः निर्माण कराया गया।
- समिद्धेश्वर मन्दिर (त्रिभुवन नारायण) मीरां मन्दिर आदि दर्शनीय है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बाघसिंह की छतरी, जयमल पत्ता की छतरी, वीर कल्ला राठौड़ की छतरी (चार हाथों वाले देवता, शेषनाग का अवतार) मीरां के गुरू संत रैदास की छतरी, जौहर स्थल।
- चैत्र कृष्ण एकादशी को जौहर मेला चित्तौड़गढ़ में लगता है।
- 1313 के बाद सोनगरा चौहान मालदेव को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का प्रशासन सौंपा।
- मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा शेरशाह सूरी के समय मसनवी शैली में रचित अवधी भाषा के प्रसिद्ध ग्रन्थ पद्मावत में रतनसिंह व पद्मिनी की प्रेम कथा का उल्लेख है।
- पद्मिनी का प्रिय तोता हीरामन जो वर्तमान में दर्रा अभ्यारण्य, कोटा एवं गागरोण में पाया जाता है।
विक्रमादित्य (1531-35 ई.)-
- विक्रमादित्य अल्पवयस्क पुत्र था उसकी माता कर्णावती (कर्मावती) या कमलावती ने संरक्षिका बनकर शासन किया।
- कर्णावती ने 1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात) के आक्रमण के समय हुमायुं को सहायता हेतु राखी भेजी।
- सन् 1535 में बहादुरशाह के आक्रमण के समय चित्तौड़ दुर्ग में जौहर (यह चित्तौड़ का दूसरा साका था )।
Incorrect
रावल रतनसिंह (1301-1303 ई.)-
- यह समरसिंह का पुत्र था जो 1301 ई. में शासक बना।
- रतनसिंह गुहिलों की रावल शाखा का अंतिम शासक था।
- रावल रतनसिंह का विद्वान पण्डित राघव चेतन को रतनसिंह द्वारा देश निकाला दे दिये जाने पर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में शरण ली ।
- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय लड़ते हुए शहीद, पत्नी पद्मिनी का जौहर, सेनापति गोरा-बादल (चाचा – भतीजा) का बलिदान।
- इस युद्ध (1303 ई. ) में इतिहासकार अमीर खुसरो उपस्थित था।
- गोरा पद्मिनी का चाचा तथा बादल भाई था।
- 1303 ई. में चित्तौड़ का प्रथम साका ( राजपूतों का बलिदान एवं राजपूत महिलाओ का सामुहिक जौहर) हुआ।
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा व अपने पुत्र खिज्र खां को वहाँ का शासक बनाया।
- चित्तौड़गढ़ के किले में पद्मिनी पैलेस, गौरा बादल महल, नौ गंजा पीर की दरगाह व कालिका माता का मन्दिर, कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ, जीजा द्वारा जैन कीर्ति स्तम्भ, मोकल द्वारा पुनः निर्माण कराया गया।
- समिद्धेश्वर मन्दिर (त्रिभुवन नारायण) मीरां मन्दिर आदि दर्शनीय है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बाघसिंह की छतरी, जयमल पत्ता की छतरी, वीर कल्ला राठौड़ की छतरी (चार हाथों वाले देवता, शेषनाग का अवतार) मीरां के गुरू संत रैदास की छतरी, जौहर स्थल।
- चैत्र कृष्ण एकादशी को जौहर मेला चित्तौड़गढ़ में लगता है।
- 1313 के बाद सोनगरा चौहान मालदेव को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का प्रशासन सौंपा।
- मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा शेरशाह सूरी के समय मसनवी शैली में रचित अवधी भाषा के प्रसिद्ध ग्रन्थ पद्मावत में रतनसिंह व पद्मिनी की प्रेम कथा का उल्लेख है।
- पद्मिनी का प्रिय तोता हीरामन जो वर्तमान में दर्रा अभ्यारण्य, कोटा एवं गागरोण में पाया जाता है।
विक्रमादित्य (1531-35 ई.)-
- विक्रमादित्य अल्पवयस्क पुत्र था उसकी माता कर्णावती (कर्मावती) या कमलावती ने संरक्षिका बनकर शासन किया।
- कर्णावती ने 1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात) के आक्रमण के समय हुमायुं को सहायता हेतु राखी भेजी।
- सन् 1535 में बहादुरशाह के आक्रमण के समय चित्तौड़ दुर्ग में जौहर (यह चित्तौड़ का दूसरा साका था )।
Unattempted
रावल रतनसिंह (1301-1303 ई.)-
- यह समरसिंह का पुत्र था जो 1301 ई. में शासक बना।
- रतनसिंह गुहिलों की रावल शाखा का अंतिम शासक था।
- रावल रतनसिंह का विद्वान पण्डित राघव चेतन को रतनसिंह द्वारा देश निकाला दे दिये जाने पर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में शरण ली ।
- 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय लड़ते हुए शहीद, पत्नी पद्मिनी का जौहर, सेनापति गोरा-बादल (चाचा – भतीजा) का बलिदान।
- इस युद्ध (1303 ई. ) में इतिहासकार अमीर खुसरो उपस्थित था।
- गोरा पद्मिनी का चाचा तथा बादल भाई था।
- 1303 ई. में चित्तौड़ का प्रथम साका ( राजपूतों का बलिदान एवं राजपूत महिलाओ का सामुहिक जौहर) हुआ।
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा व अपने पुत्र खिज्र खां को वहाँ का शासक बनाया।
- चित्तौड़गढ़ के किले में पद्मिनी पैलेस, गौरा बादल महल, नौ गंजा पीर की दरगाह व कालिका माता का मन्दिर, कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ, जीजा द्वारा जैन कीर्ति स्तम्भ, मोकल द्वारा पुनः निर्माण कराया गया।
- समिद्धेश्वर मन्दिर (त्रिभुवन नारायण) मीरां मन्दिर आदि दर्शनीय है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बाघसिंह की छतरी, जयमल पत्ता की छतरी, वीर कल्ला राठौड़ की छतरी (चार हाथों वाले देवता, शेषनाग का अवतार) मीरां के गुरू संत रैदास की छतरी, जौहर स्थल।
- चैत्र कृष्ण एकादशी को जौहर मेला चित्तौड़गढ़ में लगता है।
- 1313 के बाद सोनगरा चौहान मालदेव को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का प्रशासन सौंपा।
- मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा शेरशाह सूरी के समय मसनवी शैली में रचित अवधी भाषा के प्रसिद्ध ग्रन्थ पद्मावत में रतनसिंह व पद्मिनी की प्रेम कथा का उल्लेख है।
- पद्मिनी का प्रिय तोता हीरामन जो वर्तमान में दर्रा अभ्यारण्य, कोटा एवं गागरोण में पाया जाता है।
विक्रमादित्य (1531-35 ई.)-
- विक्रमादित्य अल्पवयस्क पुत्र था उसकी माता कर्णावती (कर्मावती) या कमलावती ने संरक्षिका बनकर शासन किया।
- कर्णावती ने 1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात) के आक्रमण के समय हुमायुं को सहायता हेतु राखी भेजी।
- सन् 1535 में बहादुरशाह के आक्रमण के समय चित्तौड़ दुर्ग में जौहर (यह चित्तौड़ का दूसरा साका था )।
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Question 18 of 108
18. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किस शासक ने सामंतसिंह को हराकर आहड़ पर अधिकार किया था?
Correct
रावल सामत सिंह –
- शासनकाल : 1172 ई . – 1191 ई .
- 1174 ई . – सामन्तसिंह ने गुजरात के अजय पाल सोलंकी को
- 1178 ई . – कीर्तिपाल या कीतू चौहान ने मेवाड़ परअधिकार कर सामंत सिंह को अपदस्थ किया।–
- 1178 ई . के बाद सामंतसिंह ने वागड़ प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया।
- सामंतसिंह की पत्नी पृथ्वीबाई प्रभा थी। जो अजमेर के अंतिम चौहान नरेश पृथ्वीराज चौहान की बहिन थी।
- सामंतसिंह की मृत्यु तराईन प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय चौहान के पक्ष में लड़ते हुए हुई।
Incorrect
रावल सामत सिंह –
- शासनकाल : 1172 ई . – 1191 ई .
- 1174 ई . – सामन्तसिंह ने गुजरात के अजय पाल सोलंकी को
- 1178 ई . – कीर्तिपाल या कीतू चौहान ने मेवाड़ परअधिकार कर सामंत सिंह को अपदस्थ किया।–
- 1178 ई . के बाद सामंतसिंह ने वागड़ प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया।
- सामंतसिंह की पत्नी पृथ्वीबाई प्रभा थी। जो अजमेर के अंतिम चौहान नरेश पृथ्वीराज चौहान की बहिन थी।
- सामंतसिंह की मृत्यु तराईन प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय चौहान के पक्ष में लड़ते हुए हुई।
Unattempted
रावल सामत सिंह –
- शासनकाल : 1172 ई . – 1191 ई .
- 1174 ई . – सामन्तसिंह ने गुजरात के अजय पाल सोलंकी को
- 1178 ई . – कीर्तिपाल या कीतू चौहान ने मेवाड़ परअधिकार कर सामंत सिंह को अपदस्थ किया।–
- 1178 ई . के बाद सामंतसिंह ने वागड़ प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया।
- सामंतसिंह की पत्नी पृथ्वीबाई प्रभा थी। जो अजमेर के अंतिम चौहान नरेश पृथ्वीराज चौहान की बहिन थी।
- सामंतसिंह की मृत्यु तराईन प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय चौहान के पक्ष में लड़ते हुए हुई।
-
Question 19 of 108
19. Question
1 pointsकुंभा की स्थापत्य कला के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन असत्य है/हैं?
A. कुंभा ने उदयपुर में भोमट दुर्ग का निर्माण करवाया था।
B . श्यामलदास के ग्रंथ वीर-विनोद के अनुसार मेवाड़ के 84 दुगों में से 52 दुर्गों का निर्माण अकेले कुंभा ने करवाया था।
Correct
कुम्भा या कुम्भकर्ण (1433-68 ई.)-
- मेवाड़ का महानतम शासक, राणा मोकल व सौभाग्य देवी का पुत्र।
- महाराणा कुम्भा का काल ‘कला एवं वास्तुकला का स्वर्णयुग‘ कहा जाता है।
- गुरु का नाम – जैनाचार्य हीरानन्द।
- कुम्भा ने आचार्य सोमदेव को ‘कविराज‘ की उपाधि प्रदान की।
- कुम्भा की पुत्री रमाबाई (संगीत शास्त्र की ज्ञाता, उपनाम- वागीश्वरी)।
- सारंगपुर का प्रसिद्ध युद्ध (1437 ई.) में मालवा के महमूद खिलजी प्रथम को हराया।
- इस विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ/कीर्ति स्तम्भ (चित्तौड़) का निर्माण कराया, जो 1440 ई. में बनना शुरू होकर 1448 ई. में पूर्ण हुआ।
- कुम्भलगढ़, अचलगढ़ (आबु पर्वत) सहित 32 दुर्गों का निर्माता (मेवाड़ में कुल 84 दुर्ग हैं जिनमें से 32 दुर्ग़ों का निर्माता कुम्भा स्वयं है)
- कुंभा ने उदयपुर में भोमट दुर्ग का निर्माण करवाया था।
- राणा कुंभा को राजस्थान में स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
- कुम्भस्वामी मंदिर, एकलिंग मंदिर, मीरा मंदिर, शृंगार गोरी मंदिर आदि का चित्तौड़ दुर्ग में निर्माण।
- इनके राज्याश्रित कान्ह व्यास द्वारा ‘एकलिंग-महात्म्य‘ पुस्तक रचित जिसमें ‘राजवर्णन‘ अध्याय स्वयं कुंभा ने लिखा।
Incorrect
कुम्भा या कुम्भकर्ण (1433-68 ई.)-
- मेवाड़ का महानतम शासक, राणा मोकल व सौभाग्य देवी का पुत्र।
- महाराणा कुम्भा का काल ‘कला एवं वास्तुकला का स्वर्णयुग‘ कहा जाता है।
- गुरु का नाम – जैनाचार्य हीरानन्द।
- कुम्भा ने आचार्य सोमदेव को ‘कविराज‘ की उपाधि प्रदान की।
- कुम्भा की पुत्री रमाबाई (संगीत शास्त्र की ज्ञाता, उपनाम- वागीश्वरी)।
- सारंगपुर का प्रसिद्ध युद्ध (1437 ई.) में मालवा के महमूद खिलजी प्रथम को हराया।
- इस विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ/कीर्ति स्तम्भ (चित्तौड़) का निर्माण कराया, जो 1440 ई. में बनना शुरू होकर 1448 ई. में पूर्ण हुआ।
- कुम्भलगढ़, अचलगढ़ (आबु पर्वत) सहित 32 दुर्गों का निर्माता (मेवाड़ में कुल 84 दुर्ग हैं जिनमें से 32 दुर्ग़ों का निर्माता कुम्भा स्वयं है)
- कुंभा ने उदयपुर में भोमट दुर्ग का निर्माण करवाया था।
- राणा कुंभा को राजस्थान में स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
- कुम्भस्वामी मंदिर, एकलिंग मंदिर, मीरा मंदिर, शृंगार गोरी मंदिर आदि का चित्तौड़ दुर्ग में निर्माण।
- इनके राज्याश्रित कान्ह व्यास द्वारा ‘एकलिंग-महात्म्य‘ पुस्तक रचित जिसमें ‘राजवर्णन‘ अध्याय स्वयं कुंभा ने लिखा।
Unattempted
कुम्भा या कुम्भकर्ण (1433-68 ई.)-
- मेवाड़ का महानतम शासक, राणा मोकल व सौभाग्य देवी का पुत्र।
- महाराणा कुम्भा का काल ‘कला एवं वास्तुकला का स्वर्णयुग‘ कहा जाता है।
- गुरु का नाम – जैनाचार्य हीरानन्द।
- कुम्भा ने आचार्य सोमदेव को ‘कविराज‘ की उपाधि प्रदान की।
- कुम्भा की पुत्री रमाबाई (संगीत शास्त्र की ज्ञाता, उपनाम- वागीश्वरी)।
- सारंगपुर का प्रसिद्ध युद्ध (1437 ई.) में मालवा के महमूद खिलजी प्रथम को हराया।
- इस विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ/कीर्ति स्तम्भ (चित्तौड़) का निर्माण कराया, जो 1440 ई. में बनना शुरू होकर 1448 ई. में पूर्ण हुआ।
- कुम्भलगढ़, अचलगढ़ (आबु पर्वत) सहित 32 दुर्गों का निर्माता (मेवाड़ में कुल 84 दुर्ग हैं जिनमें से 32 दुर्ग़ों का निर्माता कुम्भा स्वयं है)
- कुंभा ने उदयपुर में भोमट दुर्ग का निर्माण करवाया था।
- राणा कुंभा को राजस्थान में स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
- कुम्भस्वामी मंदिर, एकलिंग मंदिर, मीरा मंदिर, शृंगार गोरी मंदिर आदि का चित्तौड़ दुर्ग में निर्माण।
- इनके राज्याश्रित कान्ह व्यास द्वारा ‘एकलिंग-महात्म्य‘ पुस्तक रचित जिसमें ‘राजवर्णन‘ अध्याय स्वयं कुंभा ने लिखा।
-
Question 20 of 108
20. Question
1 pointsमहाराणा प्रताप के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
(A) महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
(B) महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उत्सव गोगुंदा में हुआ था।
Correct
महाराणा प्रताप (1572-97 ई.) –
- जन्म 9 मई 1540 ई. में पाली में अपने ननिहाल में हुआ।
- राणा प्रताप उदयसिंह व जयवन्ती बाई (पाली के अखैराज सोनगरा (चौहान) की पुत्री) का पुत्र था
- प्रताप का विवाह जैसलमेर की छीरबाई से हुआ था
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा (उदयपुर) में हुआ
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उत्सव कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ।
- महाराणा प्रताप राणा कीका एवं पातल नाम से भी जाने जाते थे।
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल –
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
बादशाह अकबर के प्रताप के विरुद्ध सैन्य अभियान –
- अकबर ने उन्हें अधीन करने हेतु 2 अप्रेल, 1576 ई. को मानसिंह को सेना देकर मेवाड़ भेजा।
- 1576 ई में अकबर की अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव अस्वीकार।
- हल्दीघाटी का युद्ध –
- कर्नल टॉड ने मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा,
- 21 जून 1576 (A.L. श्रीवास्तव के अनुसार 18 जून 1576) को अकबर के सेनापति मानसिंह (आमेर) के विरुद्ध लड़ा
- हल्दीघाटी युद्ध में विख्यात मुगल लेखक अल बदायूंनी भी उपस्थित था।
- बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ‘मुन्तखव-उल-तवारीख’ में युद्ध का वर्णन किया।
- हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति आसफ खां था।
- महाराणा प्रताप का मुस्लिम सेनापति हकीम खां सूरी था।
- अबुल फजल ने हल्दीघाटी (राजसमन्द में) के युद्ध को खमनौर का युद्ध तथा अल बदायूंनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है
- 1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरूद्ध भेजा था।
- मुगलों के विरूद्ध युद्ध में सादड़ी (पाली) के भामाशाह ने राणा प्रताप को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।
- अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ।
- दिवेर युद्ध में मुगल सेनापति अकबर का चाचा सुल्तान खां था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को ‘मेवाड़ का मेराथन‘ कहा है।
- सन् 1585 से 1615 ई. तक चावण्ड मेवाड़ की राजधानी रही।
- चावण्ड में 19 जनवरी 1597 को प्रताप का देहान्त हुआ।
- चावण्ड के पास बाण्डोली गाँव मे प्रताप की छत्री बनी हुई।
Incorrect
महाराणा प्रताप (1572-97 ई.) –
- जन्म 9 मई 1540 ई. में पाली में अपने ननिहाल में हुआ।
- राणा प्रताप उदयसिंह व जयवन्ती बाई (पाली के अखैराज सोनगरा (चौहान) की पुत्री) का पुत्र था
- प्रताप का विवाह जैसलमेर की छीरबाई से हुआ था
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा (उदयपुर) में हुआ
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उत्सव कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ।
- महाराणा प्रताप राणा कीका एवं पातल नाम से भी जाने जाते थे।
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल –
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
बादशाह अकबर के प्रताप के विरुद्ध सैन्य अभियान –
- अकबर ने उन्हें अधीन करने हेतु 2 अप्रेल, 1576 ई. को मानसिंह को सेना देकर मेवाड़ भेजा।
- 1576 ई में अकबर की अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव अस्वीकार।
- हल्दीघाटी का युद्ध –
- कर्नल टॉड ने मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा,
- 21 जून 1576 (A.L. श्रीवास्तव के अनुसार 18 जून 1576) को अकबर के सेनापति मानसिंह (आमेर) के विरुद्ध लड़ा
- हल्दीघाटी युद्ध में विख्यात मुगल लेखक अल बदायूंनी भी उपस्थित था।
- बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ‘मुन्तखव-उल-तवारीख’ में युद्ध का वर्णन किया।
- हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति आसफ खां था।
- महाराणा प्रताप का मुस्लिम सेनापति हकीम खां सूरी था।
- अबुल फजल ने हल्दीघाटी (राजसमन्द में) के युद्ध को खमनौर का युद्ध तथा अल बदायूंनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है
- 1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरूद्ध भेजा था।
- मुगलों के विरूद्ध युद्ध में सादड़ी (पाली) के भामाशाह ने राणा प्रताप को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।
- अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ।
- दिवेर युद्ध में मुगल सेनापति अकबर का चाचा सुल्तान खां था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को ‘मेवाड़ का मेराथन‘ कहा है।
- सन् 1585 से 1615 ई. तक चावण्ड मेवाड़ की राजधानी रही।
- चावण्ड में 19 जनवरी 1597 को प्रताप का देहान्त हुआ।
- चावण्ड के पास बाण्डोली गाँव मे प्रताप की छत्री बनी हुई।
Unattempted
महाराणा प्रताप (1572-97 ई.) –
- जन्म 9 मई 1540 ई. में पाली में अपने ननिहाल में हुआ।
- राणा प्रताप उदयसिंह व जयवन्ती बाई (पाली के अखैराज सोनगरा (चौहान) की पुत्री) का पुत्र था
- प्रताप का विवाह जैसलमेर की छीरबाई से हुआ था
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा (उदयपुर) में हुआ
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उत्सव कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ।
- महाराणा प्रताप राणा कीका एवं पातल नाम से भी जाने जाते थे।
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल –
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
बादशाह अकबर के प्रताप के विरुद्ध सैन्य अभियान –
- अकबर ने उन्हें अधीन करने हेतु 2 अप्रेल, 1576 ई. को मानसिंह को सेना देकर मेवाड़ भेजा।
- 1576 ई में अकबर की अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव अस्वीकार।
- हल्दीघाटी का युद्ध –
- कर्नल टॉड ने मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा,
- 21 जून 1576 (A.L. श्रीवास्तव के अनुसार 18 जून 1576) को अकबर के सेनापति मानसिंह (आमेर) के विरुद्ध लड़ा
- हल्दीघाटी युद्ध में विख्यात मुगल लेखक अल बदायूंनी भी उपस्थित था।
- बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ‘मुन्तखव-उल-तवारीख’ में युद्ध का वर्णन किया।
- हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति आसफ खां था।
- महाराणा प्रताप का मुस्लिम सेनापति हकीम खां सूरी था।
- अबुल फजल ने हल्दीघाटी (राजसमन्द में) के युद्ध को खमनौर का युद्ध तथा अल बदायूंनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है
- 1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरूद्ध भेजा था।
- मुगलों के विरूद्ध युद्ध में सादड़ी (पाली) के भामाशाह ने राणा प्रताप को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।
- अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ।
- दिवेर युद्ध में मुगल सेनापति अकबर का चाचा सुल्तान खां था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को ‘मेवाड़ का मेराथन‘ कहा है।
- सन् 1585 से 1615 ई. तक चावण्ड मेवाड़ की राजधानी रही।
- चावण्ड में 19 जनवरी 1597 को प्रताप का देहान्त हुआ।
- चावण्ड के पास बाण्डोली गाँव मे प्रताप की छत्री बनी हुई।
-
Question 21 of 108
21. Question
1 pointsमहाराणा उदयसिंह के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(A) राणा उदयसिंह ने 1559 ई. में धुणी नामक स्थान पर उदयपुर की स्थापना की थी।
(B) उदयसिंह ने उदयपुर में पिछोला झील के किनारे राजमहल का निर्माण करवाया था।
Correct
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- 1568 ई. में चित्तौड़ का युद्ध ,चित्तौड़ का तीसरा साका था।
- उदयसिंह का 1572 ई. को गोगुन्दा (उदयपुर) में देहान्त हो गया जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।
- धुणी नामक स्थान पर उदयसिंह ने उदयपुर में राजमहल का निर्माण करवाया
Incorrect
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- 1568 ई. में चित्तौड़ का युद्ध ,चित्तौड़ का तीसरा साका था।
- उदयसिंह का 1572 ई. को गोगुन्दा (उदयपुर) में देहान्त हो गया जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।
- धुणी नामक स्थान पर उदयसिंह ने उदयपुर में राजमहल का निर्माण करवाया
Unattempted
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- 1568 ई. में चित्तौड़ का युद्ध ,चित्तौड़ का तीसरा साका था।
- उदयसिंह का 1572 ई. को गोगुन्दा (उदयपुर) में देहान्त हो गया जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।
- धुणी नामक स्थान पर उदयसिंह ने उदयपुर में राजमहल का निर्माण करवाया
-
Question 22 of 108
22. Question
1 pointsफत्ता सिसोदिया का स्मारक चित्तौड़गढ़ दुर्ग के किस द्वार पर बना हुआ है?
Correct
- रामपोल में प्रवेश पर स्थित चबूतरे पर सीसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है।
- आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता सन् 1567 में अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
Incorrect
- रामपोल में प्रवेश पर स्थित चबूतरे पर सीसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है।
- आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता सन् 1567 में अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
Unattempted
- रामपोल में प्रवेश पर स्थित चबूतरे पर सीसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है।
- आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता सन् 1567 में अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
-
Question 23 of 108
23. Question
1 pointsखानवा के युद्ध के संदर्भ में निम्नलिखित में से सत्य कथन की पहचान कीजिए
(A) खानवा युद्ध राजस्थान के इतिहास का प्रथम युद्ध था, जिसमें गोला बारूद का प्रयोग हुआ।
(B) इस युद्ध के दौरान राणा सांगा के घायल हो जाने पर मेवाड़ का राजचिह्न सिरोही के अखैराज देवड़ा ने धारण किया था।
Correct
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- मेदिनीराय नामक राजपूत को शरण देने के कारण मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय से सांगा का संघर्ष हुआ।
- सन् 1519 को गागरोन (झालावाड़) युद्ध मे मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराकर बंदी बनाया,।
- दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को खातोली (बूँदी) के युद्ध (1517 ई.) व बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध (1519 ई.) में हराया।
- पंजाब के दौलत खां व इब्राहिम लोदी के भतीजे आलम खां लोदी ने फरगना (काबुल) के शासक बाबर को भारत आमंत्रित किया।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा) में राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत आमंत्रित करने का उल्लेख किया।
- तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने धौलपुर में कमल के फूल के बाग का वर्णन किया है ।
- राणा सांगा का गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर से संघर्ष ईडर को लेकर हुआ।
- राणा सांगा ने 1526 ई. के बयाना (भरतपुर) के युद्ध में बाबर को हराया।
- खानवा (भरतपुर की रूपवास तहसील में) के युद्ध–
- खानवा स्थान गंभीरी नदी के किनारे है।
- 17 मार्च 1527 ई. में मुगल शासक बाबर व राणा सांगा के मध्य हुआ
- खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजित का प्रमुख कारण बाबर का तोपखाना था।
- खानवा के इस निर्णायक युद्ध के बाद मुस्लिम (मुगल) सत्ता की वास्तविक स्थापना हुई।
- खानवा विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की तथा खानवा युद्ध में जिहाद का नारा दिया।
- खानवा युद्ध में राणा सांगा ने सभी राजपूत हिन्दू राजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में आमंत्रित किया।
- राजपूतों में इस प्रथा को पोती परवण कहा जाता है।
- राणा सांगा अन्तिम हिन्दू राजपूत राजा था जिसके समय सारी हिन्दू राजपूत जातियां विदेशियों को बाहर निकालने के लिए एकजुट हो गई थी।
- खानवा के युद्ध में आमेर का पृथ्वीराज कच्छवाह मारवाड़ का – मालदेव, बूंदी का – नारायण राव, सिरोही का – अखैहराज देवड़ा प्रथम, भरतपुर का – अशोक परमार, बीकानेर का – कल्याणमल ने ,अपनी-अपनी सेना का नेतृत्व किया।
- अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ठिकाना भेंट किया।
- हसन खां मेवाती खानवा युद्ध में राणा सांगा के युद्ध में सेनापति था।
- खानवा के युद्ध में झाला अज्जा ने सांगा का राज्य चिह्न व मुकुट धारण कर सांगा की सहायता की व अपना बलिदान दिया।
- 30 जनवरी 1528 को कालपी (मध्यप्रदेश) में सरदारों द्वारा विष दिये जाने के कारण बसवां (दौसा) में राणा सांगा की मृत्यु हो गई |
- मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में सांगा का दाह संस्कार हुआ तथा वहीं पर उसकी छतरी है।
- राणा सांगा के दाह संस्कार के समय उसके शरीर पर 80 घाव लगे हुए थे।
- राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है।
Incorrect
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- मेदिनीराय नामक राजपूत को शरण देने के कारण मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय से सांगा का संघर्ष हुआ।
- सन् 1519 को गागरोन (झालावाड़) युद्ध मे मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराकर बंदी बनाया,।
- दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को खातोली (बूँदी) के युद्ध (1517 ई.) व बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध (1519 ई.) में हराया।
- पंजाब के दौलत खां व इब्राहिम लोदी के भतीजे आलम खां लोदी ने फरगना (काबुल) के शासक बाबर को भारत आमंत्रित किया।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा) में राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत आमंत्रित करने का उल्लेख किया।
- तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने धौलपुर में कमल के फूल के बाग का वर्णन किया है ।
- राणा सांगा का गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर से संघर्ष ईडर को लेकर हुआ।
- राणा सांगा ने 1526 ई. के बयाना (भरतपुर) के युद्ध में बाबर को हराया।
- खानवा (भरतपुर की रूपवास तहसील में) के युद्ध–
- खानवा स्थान गंभीरी नदी के किनारे है।
- 17 मार्च 1527 ई. में मुगल शासक बाबर व राणा सांगा के मध्य हुआ
- खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजित का प्रमुख कारण बाबर का तोपखाना था।
- खानवा के इस निर्णायक युद्ध के बाद मुस्लिम (मुगल) सत्ता की वास्तविक स्थापना हुई।
- खानवा विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की तथा खानवा युद्ध में जिहाद का नारा दिया।
- खानवा युद्ध में राणा सांगा ने सभी राजपूत हिन्दू राजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में आमंत्रित किया।
- राजपूतों में इस प्रथा को पोती परवण कहा जाता है।
- राणा सांगा अन्तिम हिन्दू राजपूत राजा था जिसके समय सारी हिन्दू राजपूत जातियां विदेशियों को बाहर निकालने के लिए एकजुट हो गई थी।
- खानवा के युद्ध में आमेर का पृथ्वीराज कच्छवाह मारवाड़ का – मालदेव, बूंदी का – नारायण राव, सिरोही का – अखैहराज देवड़ा प्रथम, भरतपुर का – अशोक परमार, बीकानेर का – कल्याणमल ने ,अपनी-अपनी सेना का नेतृत्व किया।
- अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ठिकाना भेंट किया।
- हसन खां मेवाती खानवा युद्ध में राणा सांगा के युद्ध में सेनापति था।
- खानवा के युद्ध में झाला अज्जा ने सांगा का राज्य चिह्न व मुकुट धारण कर सांगा की सहायता की व अपना बलिदान दिया।
- 30 जनवरी 1528 को कालपी (मध्यप्रदेश) में सरदारों द्वारा विष दिये जाने के कारण बसवां (दौसा) में राणा सांगा की मृत्यु हो गई |
- मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में सांगा का दाह संस्कार हुआ तथा वहीं पर उसकी छतरी है।
- राणा सांगा के दाह संस्कार के समय उसके शरीर पर 80 घाव लगे हुए थे।
- राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है।
Unattempted
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- मेदिनीराय नामक राजपूत को शरण देने के कारण मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय से सांगा का संघर्ष हुआ।
- सन् 1519 को गागरोन (झालावाड़) युद्ध मे मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराकर बंदी बनाया,।
- दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को खातोली (बूँदी) के युद्ध (1517 ई.) व बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध (1519 ई.) में हराया।
- पंजाब के दौलत खां व इब्राहिम लोदी के भतीजे आलम खां लोदी ने फरगना (काबुल) के शासक बाबर को भारत आमंत्रित किया।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा) में राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत आमंत्रित करने का उल्लेख किया।
- तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने धौलपुर में कमल के फूल के बाग का वर्णन किया है ।
- राणा सांगा का गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर से संघर्ष ईडर को लेकर हुआ।
- राणा सांगा ने 1526 ई. के बयाना (भरतपुर) के युद्ध में बाबर को हराया।
- खानवा (भरतपुर की रूपवास तहसील में) के युद्ध–
- खानवा स्थान गंभीरी नदी के किनारे है।
- 17 मार्च 1527 ई. में मुगल शासक बाबर व राणा सांगा के मध्य हुआ
- खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजित का प्रमुख कारण बाबर का तोपखाना था।
- खानवा के इस निर्णायक युद्ध के बाद मुस्लिम (मुगल) सत्ता की वास्तविक स्थापना हुई।
- खानवा विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की तथा खानवा युद्ध में जिहाद का नारा दिया।
- खानवा युद्ध में राणा सांगा ने सभी राजपूत हिन्दू राजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में आमंत्रित किया।
- राजपूतों में इस प्रथा को पोती परवण कहा जाता है।
- राणा सांगा अन्तिम हिन्दू राजपूत राजा था जिसके समय सारी हिन्दू राजपूत जातियां विदेशियों को बाहर निकालने के लिए एकजुट हो गई थी।
- खानवा के युद्ध में आमेर का पृथ्वीराज कच्छवाह मारवाड़ का – मालदेव, बूंदी का – नारायण राव, सिरोही का – अखैहराज देवड़ा प्रथम, भरतपुर का – अशोक परमार, बीकानेर का – कल्याणमल ने ,अपनी-अपनी सेना का नेतृत्व किया।
- अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ठिकाना भेंट किया।
- हसन खां मेवाती खानवा युद्ध में राणा सांगा के युद्ध में सेनापति था।
- खानवा के युद्ध में झाला अज्जा ने सांगा का राज्य चिह्न व मुकुट धारण कर सांगा की सहायता की व अपना बलिदान दिया।
- 30 जनवरी 1528 को कालपी (मध्यप्रदेश) में सरदारों द्वारा विष दिये जाने के कारण बसवां (दौसा) में राणा सांगा की मृत्यु हो गई |
- मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में सांगा का दाह संस्कार हुआ तथा वहीं पर उसकी छतरी है।
- राणा सांगा के दाह संस्कार के समय उसके शरीर पर 80 घाव लगे हुए थे।
- राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है।
-
Question 24 of 108
24. Question
1 pointsमेवाड़ में रावल शाखा को निम्नलिखित में से किस शासक ने प्रारंभ किया था?
Correct
- रणसिंह (1158 ई.) इन्हीं के शासनकाल में गुहिल वंश दो शाखाओं में बट गया।
- प्रथम (रावल शाखा)— रणसिंह के पुत्र क्षेमसिंह रावल शाखा का निर्माण कर मेवाड़ पर शासन किया।
Incorrect
- रणसिंह (1158 ई.) इन्हीं के शासनकाल में गुहिल वंश दो शाखाओं में बट गया।
- प्रथम (रावल शाखा)— रणसिंह के पुत्र क्षेमसिंह रावल शाखा का निर्माण कर मेवाड़ पर शासन किया।
Unattempted
- रणसिंह (1158 ई.) इन्हीं के शासनकाल में गुहिल वंश दो शाखाओं में बट गया।
- प्रथम (रावल शाखा)— रणसिंह के पुत्र क्षेमसिंह रावल शाखा का निर्माण कर मेवाड़ पर शासन किया।
-
Question 25 of 108
25. Question
1 points“त्रिलोका’ की उपाधि मेवाड़ के किस शासक ने धारण की थी?
Correct
रावल समरसिंह (1273-1301)-
- इसने आचार्य अमित सिंह सूरी के उपदेशों से अपने राज्य में जीव हिंसा पर रोक लगाई।
- रावल समरसिंह ने “त्रिलोका’ की उपाधि धारण की
Incorrect
रावल समरसिंह (1273-1301)-
- इसने आचार्य अमित सिंह सूरी के उपदेशों से अपने राज्य में जीव हिंसा पर रोक लगाई।
- रावल समरसिंह ने “त्रिलोका’ की उपाधि धारण की
Unattempted
रावल समरसिंह (1273-1301)-
- इसने आचार्य अमित सिंह सूरी के उपदेशों से अपने राज्य में जीव हिंसा पर रोक लगाई।
- रावल समरसिंह ने “त्रिलोका’ की उपाधि धारण की
-
Question 26 of 108
26. Question
1 points‘अभिनव भरताचार्य’ एवं ‘हिन्दू सुरताण’ नामक उपाधियाँ निम्नलिखित में से किस शासक की थी?
Correct
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
Incorrect
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
Unattempted
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
-
Question 27 of 108
27. Question
1 pointsझोटिंग भट्ट ब धनेश्वर भट्ट मेवाड़ के किस शासक के दरबारी विद्वान थे?
Correct
राणा लक्षसिंह (राणा लाखा) (1382-1421 ई.)-
- राणा लाखा राणा खेता का पुत्र था
- राणा लाखा ने वृद्धावस्था में मारवाड़ के शासक राव चूँड़ा राठौड़ की पुत्री व रणमल की बहिन हंसा बाई के साथ विवाह किया
- राणा लाखा के काल में एक बनजारे ने पिछौला झील का निर्माण कराया।
- राणा लाखा ने ‘झोटिंग भट्ट‘ एवं ‘धनेश्वर भट्ट‘ जैसे विद्वान पंडितों को राज्याश्रय दिया।
- राणा लाखा के समय में मगरा जिले के जावर गाँव में चाँदी की खान खोजी, जिसमें चाँदी और सीसा बहुत निकलने लगा।
- कुँवर चूड़ा व राणा मोकल ,राणा लाखा के पुत्र थे।
Incorrect
राणा लक्षसिंह (राणा लाखा) (1382-1421 ई.)-
- राणा लाखा राणा खेता का पुत्र था
- राणा लाखा ने वृद्धावस्था में मारवाड़ के शासक राव चूँड़ा राठौड़ की पुत्री व रणमल की बहिन हंसा बाई के साथ विवाह किया
- राणा लाखा के काल में एक बनजारे ने पिछौला झील का निर्माण कराया।
- राणा लाखा ने ‘झोटिंग भट्ट‘ एवं ‘धनेश्वर भट्ट‘ जैसे विद्वान पंडितों को राज्याश्रय दिया।
- राणा लाखा के समय में मगरा जिले के जावर गाँव में चाँदी की खान खोजी, जिसमें चाँदी और सीसा बहुत निकलने लगा।
- कुँवर चूड़ा व राणा मोकल ,राणा लाखा के पुत्र थे।
Unattempted
राणा लक्षसिंह (राणा लाखा) (1382-1421 ई.)-
- राणा लाखा राणा खेता का पुत्र था
- राणा लाखा ने वृद्धावस्था में मारवाड़ के शासक राव चूँड़ा राठौड़ की पुत्री व रणमल की बहिन हंसा बाई के साथ विवाह किया
- राणा लाखा के काल में एक बनजारे ने पिछौला झील का निर्माण कराया।
- राणा लाखा ने ‘झोटिंग भट्ट‘ एवं ‘धनेश्वर भट्ट‘ जैसे विद्वान पंडितों को राज्याश्रय दिया।
- राणा लाखा के समय में मगरा जिले के जावर गाँव में चाँदी की खान खोजी, जिसमें चाँदी और सीसा बहुत निकलने लगा।
- कुँवर चूड़ा व राणा मोकल ,राणा लाखा के पुत्र थे।
-
Question 28 of 108
28. Question
1 pointsउदयपुर में दिलखुश महल, चन्द्रमहल, बड़ी दरीखाना व रसोड़ा महल का निर्माण किसने करवाया था?
Correct
महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 ई.)-
- महाराणा कर्णसिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को हुआ
- राज्याभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ।
- महाराणा कर्णसिंह के समय 1622 ई. में शाहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह किया।
- शाहजादा खुर्रम उदयपुर में महाराणा के पास आया व कुछ दिन देलवाड़ा की हवेली व फिर जगमंदिर में ठहरा
- महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर में दिलखुश महल, चन्द्रमहल, बड़ी दरीखाना व रसोड़ा महल का निर्माण करवाया था
- महाराणा कर्णसिंह ने जगमंदिर महलों को बनवाना शुरू किया,
- महाराणा कर्णसिंह के पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम जगमंदिर महलों को पूर्ण किया |
Incorrect
महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 ई.)-
- महाराणा कर्णसिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को हुआ
- राज्याभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ।
- महाराणा कर्णसिंह के समय 1622 ई. में शाहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह किया।
- शाहजादा खुर्रम उदयपुर में महाराणा के पास आया व कुछ दिन देलवाड़ा की हवेली व फिर जगमंदिर में ठहरा
- महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर में दिलखुश महल, चन्द्रमहल, बड़ी दरीखाना व रसोड़ा महल का निर्माण करवाया था
- महाराणा कर्णसिंह ने जगमंदिर महलों को बनवाना शुरू किया,
- महाराणा कर्णसिंह के पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम जगमंदिर महलों को पूर्ण किया |
Unattempted
महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 ई.)-
- महाराणा कर्णसिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को हुआ
- राज्याभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ।
- महाराणा कर्णसिंह के समय 1622 ई. में शाहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह किया।
- शाहजादा खुर्रम उदयपुर में महाराणा के पास आया व कुछ दिन देलवाड़ा की हवेली व फिर जगमंदिर में ठहरा
- महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर में दिलखुश महल, चन्द्रमहल, बड़ी दरीखाना व रसोड़ा महल का निर्माण करवाया था
- महाराणा कर्णसिंह ने जगमंदिर महलों को बनवाना शुरू किया,
- महाराणा कर्णसिंह के पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम जगमंदिर महलों को पूर्ण किया |
-
Question 29 of 108
29. Question
1 pointsमेवाड़ की अंतिम सती ऐंजा बाई निम्नलिखित में से किस शासक की पासवान थीं?
Correct
Incorrect
Unattempted
-
Question 30 of 108
30. Question
1 points‘पद्मावत’ नामक ग्रंथ निम्नलिखित में से किसके द्वारा रचित है?
Correct
- पद्मावत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है।
- पद्मावत के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं।
- दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।
Incorrect
- पद्मावत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है।
- पद्मावत के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं।
- दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।
Unattempted
- पद्मावत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है।
- पद्मावत के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं।
- दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।
-
Question 31 of 108
31. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा/से ग्रंथ कुंभा द्वारा रचित है/हैं?
(A) संगीतराज
(B) संगीत रत्नाकर पर टीका
(C) संगीत मीमांसा
(D) कामराज रतिसार
(E) दसम भागवत रा दूहा
Correct
कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थ-
- संगीत राज – यह कुंभा द्वारा रचितसारे ग्रंथों में सबसे वृहद्, सर्वश्रेष्ठ, सिरमौर ग्रंथ है।
- भारतीय संगीत की गीत-वाद्य-नृत्य, तीनों विधाओं का गूढ़तम विशद् शास्त्रोक्त समावेश संगीत राज महाग्रंथ में हुआ है।
- रसिक प्रिया – गीत गोविन्द की टीका।
- संगीत मीमांसा, सूड़ प्रबन्ध, संगीत रत्नाकर टीका, चण्डी शतक टीका आदि।
- कामराजरतिसार – यह ग्रंथ कुंभा के कामशास्त्र विशारद होने का परिचायक ग्रंथ है।
- प्रसिद्ध वास्तुकार मण्डन को आश्रय, कुम्भलगढ़ दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मण्डन था।
- मण्डन – ये खेता ब्राह्मण के पुत्र तथा कुंभा के प्रधान शिल्पी थे।
Incorrect
कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थ-
- संगीत राज – यह कुंभा द्वारा रचितसारे ग्रंथों में सबसे वृहद्, सर्वश्रेष्ठ, सिरमौर ग्रंथ है।
- भारतीय संगीत की गीत-वाद्य-नृत्य, तीनों विधाओं का गूढ़तम विशद् शास्त्रोक्त समावेश संगीत राज महाग्रंथ में हुआ है।
- रसिक प्रिया – गीत गोविन्द की टीका।
- संगीत मीमांसा, सूड़ प्रबन्ध, संगीत रत्नाकर टीका, चण्डी शतक टीका आदि।
- कामराजरतिसार – यह ग्रंथ कुंभा के कामशास्त्र विशारद होने का परिचायक ग्रंथ है।
- प्रसिद्ध वास्तुकार मण्डन को आश्रय, कुम्भलगढ़ दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मण्डन था।
- मण्डन – ये खेता ब्राह्मण के पुत्र तथा कुंभा के प्रधान शिल्पी थे।
Unattempted
कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थ-
- संगीत राज – यह कुंभा द्वारा रचितसारे ग्रंथों में सबसे वृहद्, सर्वश्रेष्ठ, सिरमौर ग्रंथ है।
- भारतीय संगीत की गीत-वाद्य-नृत्य, तीनों विधाओं का गूढ़तम विशद् शास्त्रोक्त समावेश संगीत राज महाग्रंथ में हुआ है।
- रसिक प्रिया – गीत गोविन्द की टीका।
- संगीत मीमांसा, सूड़ प्रबन्ध, संगीत रत्नाकर टीका, चण्डी शतक टीका आदि।
- कामराजरतिसार – यह ग्रंथ कुंभा के कामशास्त्र विशारद होने का परिचायक ग्रंथ है।
- प्रसिद्ध वास्तुकार मण्डन को आश्रय, कुम्भलगढ़ दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मण्डन था।
- मण्डन – ये खेता ब्राह्मण के पुत्र तथा कुंभा के प्रधान शिल्पी थे।
-
Question 32 of 108
32. Question
1 pointsअकबर ने महाराणा उदयसिंह को समझाने के लिए पहले शिष्टमंडल के रूप में किसे भेजा था?
Correct
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- अकबर ने महाराणा उदयसिंह को समझाने के लिए पहले शिष्टमंडल के रूप में भारमल को भेजा था
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल -****
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
Incorrect
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- अकबर ने महाराणा उदयसिंह को समझाने के लिए पहले शिष्टमंडल के रूप में भारमल को भेजा था
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल -****
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
Unattempted
उदयसिंह (1537-72 ई.)-
- जोधपुर के राजा मालदेव की सहायता से सन् 1537 मे मेवाड़ का शासक बना ।
- शेरशाह मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बढ़ा तो उदयसिंह ने कूटनीति से काम ले किले की कूंजियाँ (चाबियाँ) शेरशाह के पास भेज दी।
- 1559 ई. मे उदयपुर की स्थापना।
- उदयसिंह ने अपनी प्रिय भटियाणी रानी के पुत्र जगमाल सिंह को युवराज नियुक्त किया था
- सन् 1567-68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण के समय किले का भार जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया (साला-बहनोई) को सौंपकर अरावली पहाड़ियों में चला गया ।
- सन् 1568 में अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया
- जयमल, पत्ता, वीर कल्ला जी राठौड़ सन् 1568 में अकबर के समाने लड़ते हुए शहीद हो गए |
- अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर आगरे के किले के दरवाजे पर पाषाण मूर्तियां स्थापित करवायी
- बीकानेर के रायसिंह ने जूनागढ़ किले की सूरजपोल पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ स्थापित करवाई।
- अकबर ने महाराणा उदयसिंह को समझाने के लिए पहले शिष्टमंडल के रूप में भारमल को भेजा था
बादशाह अकबर द्वारा भेजे गए दूत मंडल -****
- बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलाल खाँ को महाराणा प्रताप के पास नवम्बर, 1572 ई. में भेजा।
- मार्च, 1573 ई. में अपने सेनापति कच्छवाहा मानसिंह को महाराणा प्रताप के पास भेजा लेकिन प्रयत्न निष्फल रहा।
- सितम्बर, 1573 में आमेर के शासक भगवन्तदास (मानसिंह के पिता) को भेजा
- दिसम्बर, 1573 में राजा टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा
- ******* प्रताप ने अकबर के अधीन होना स्वीकार नहीं किया।********
-
Question 33 of 108
33. Question
1 pointsअकबर ने मेवाड़ को अधीन बनाने हेतु महाराणा अमर सिंह प्रथम के काल में किसके नेतृत्व में आक्रमण किए थे?
Correct
महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)-
- अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुत्र थे।
- अमरसिंह का राज्याभिषेक चांवड़ में हुआ था।
- सलीम /जहाँगीर नेतृत्व में अकबर ने मेवाड़ को अधीन बनाने हेतु महाराणा अमर सिंह प्रथम के काल में आक्रमण किए थे
- सन् 1615 ई. में जहाँगीर की अनुमति से खुर्रम व अमरसिंह के बीच सन्धि हुई जिसे मुगल-मेवाड़ सधि के नाम से जाना जाता है।
- इसके द्वारा मेवाड़ ने भी मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
- अमरसिंह प्रथम पहला मेवाड़ शासक था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की |
- अमरसिंह का पुत्र कर्णसिंह जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ था।
- आहड़ में महासतियों के पास गंगो गाँव मे अमरसिंह की छतरी बनी हुई है।
- बादशाह जहांगीर महाराणा को अधीन करने के इरादे से 8 नवम्बर, 1613 को अजमेर पहुंचा और शाहजादा खुर्रम को सेना लेकर मेवाड़ भेजा।
- 5 फरवरी, 1615 को युवराज कर्णसिंह के निवेदन पर महाराणा अमरसिंह ने निम्न शर्त़ों पर शहजादा खुर्रम से संधि की।
- महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित न होगा।
- महाराणा का ज्येष्ठ कुँवर शाही दरबार में उपस्थित होगा।
- शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा।
- चित्तौड़ के किले की मरम्मत न की जाएगी।
Incorrect
महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)-
- अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुत्र थे।
- अमरसिंह का राज्याभिषेक चांवड़ में हुआ था।
- सलीम /जहाँगीर नेतृत्व में अकबर ने मेवाड़ को अधीन बनाने हेतु महाराणा अमर सिंह प्रथम के काल में आक्रमण किए थे
- सन् 1615 ई. में जहाँगीर की अनुमति से खुर्रम व अमरसिंह के बीच सन्धि हुई जिसे मुगल-मेवाड़ सधि के नाम से जाना जाता है।
- इसके द्वारा मेवाड़ ने भी मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
- अमरसिंह प्रथम पहला मेवाड़ शासक था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की |
- अमरसिंह का पुत्र कर्णसिंह जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ था।
- आहड़ में महासतियों के पास गंगो गाँव मे अमरसिंह की छतरी बनी हुई है।
- बादशाह जहांगीर महाराणा को अधीन करने के इरादे से 8 नवम्बर, 1613 को अजमेर पहुंचा और शाहजादा खुर्रम को सेना लेकर मेवाड़ भेजा।
- 5 फरवरी, 1615 को युवराज कर्णसिंह के निवेदन पर महाराणा अमरसिंह ने निम्न शर्त़ों पर शहजादा खुर्रम से संधि की।
- महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित न होगा।
- महाराणा का ज्येष्ठ कुँवर शाही दरबार में उपस्थित होगा।
- शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा।
- चित्तौड़ के किले की मरम्मत न की जाएगी।
Unattempted
महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)-
- अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुत्र थे।
- अमरसिंह का राज्याभिषेक चांवड़ में हुआ था।
- सलीम /जहाँगीर नेतृत्व में अकबर ने मेवाड़ को अधीन बनाने हेतु महाराणा अमर सिंह प्रथम के काल में आक्रमण किए थे
- सन् 1615 ई. में जहाँगीर की अनुमति से खुर्रम व अमरसिंह के बीच सन्धि हुई जिसे मुगल-मेवाड़ सधि के नाम से जाना जाता है।
- इसके द्वारा मेवाड़ ने भी मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
- अमरसिंह प्रथम पहला मेवाड़ शासक था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की |
- अमरसिंह का पुत्र कर्णसिंह जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ था।
- आहड़ में महासतियों के पास गंगो गाँव मे अमरसिंह की छतरी बनी हुई है।
- बादशाह जहांगीर महाराणा को अधीन करने के इरादे से 8 नवम्बर, 1613 को अजमेर पहुंचा और शाहजादा खुर्रम को सेना लेकर मेवाड़ भेजा।
- 5 फरवरी, 1615 को युवराज कर्णसिंह के निवेदन पर महाराणा अमरसिंह ने निम्न शर्त़ों पर शहजादा खुर्रम से संधि की।
- महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित न होगा।
- महाराणा का ज्येष्ठ कुँवर शाही दरबार में उपस्थित होगा।
- शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा।
- चित्तौड़ के किले की मरम्मत न की जाएगी।
-
Question 34 of 108
34. Question
1 points‘मंदिरों वाला शासक’ उपनाम से किस शासक को जाना जाता है
Correct
महाराणा राजसिंह (1652-80 ई.)-
- महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर, 1652 ई. को हुआ।
- राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया।
- राजसंमद झील के उत्तर में नौ चौकी पर 25 शिलालेखों पर संस्कृत का सबसे बड़ा शिलालेख ‘राज-प्रशस्ति’ अंकित है,
- राज-प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग है।
- राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमति से विवाह किया जिससे औरगंजेब स्वयं विवाह करना चाहता था।
- राजकुमारी चारूमति के कारण राजसिंह व औरगंजेब दोनों मे कटुता उत्पन्न हुई।
- महाराणा राजसिंह ने 1664 ई. में उदयपुर में अम्बा माता का तथा कांकरोली में द्वारिकाधीश मंदिर बनवाया।
- महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर, निर्भीक, सच्चा क्षत्रिय, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और दानी राजा था।
- महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा और
- राजसिंह ने बादशाह औरंगजेब के अप्रेल, 1679 को हिन्दुओं पर जजिया लगाने, मूर्तियाँ तुड़वाने आदि अत्याचारों का प्रबल विरोध किया।
- जोधपुर के अजीतसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और जजिया कर देना स्वीकार नहीं किया
- महाराणा राजसिंह को ‘मंदिरों वाला शासक’ उपनाम से जाना जाता है
Incorrect
महाराणा राजसिंह (1652-80 ई.)-
- महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर, 1652 ई. को हुआ।
- राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया।
- राजसंमद झील के उत्तर में नौ चौकी पर 25 शिलालेखों पर संस्कृत का सबसे बड़ा शिलालेख ‘राज-प्रशस्ति’ अंकित है,
- राज-प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग है।
- राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमति से विवाह किया जिससे औरगंजेब स्वयं विवाह करना चाहता था।
- राजकुमारी चारूमति के कारण राजसिंह व औरगंजेब दोनों मे कटुता उत्पन्न हुई।
- महाराणा राजसिंह ने 1664 ई. में उदयपुर में अम्बा माता का तथा कांकरोली में द्वारिकाधीश मंदिर बनवाया।
- महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर, निर्भीक, सच्चा क्षत्रिय, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और दानी राजा था।
- महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा और
- राजसिंह ने बादशाह औरंगजेब के अप्रेल, 1679 को हिन्दुओं पर जजिया लगाने, मूर्तियाँ तुड़वाने आदि अत्याचारों का प्रबल विरोध किया।
- जोधपुर के अजीतसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और जजिया कर देना स्वीकार नहीं किया
- महाराणा राजसिंह को ‘मंदिरों वाला शासक’ उपनाम से जाना जाता है
Unattempted
महाराणा राजसिंह (1652-80 ई.)-
- महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर, 1652 ई. को हुआ।
- राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया।
- राजसंमद झील के उत्तर में नौ चौकी पर 25 शिलालेखों पर संस्कृत का सबसे बड़ा शिलालेख ‘राज-प्रशस्ति’ अंकित है,
- राज-प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग है।
- राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमति से विवाह किया जिससे औरगंजेब स्वयं विवाह करना चाहता था।
- राजकुमारी चारूमति के कारण राजसिंह व औरगंजेब दोनों मे कटुता उत्पन्न हुई।
- महाराणा राजसिंह ने 1664 ई. में उदयपुर में अम्बा माता का तथा कांकरोली में द्वारिकाधीश मंदिर बनवाया।
- महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर, निर्भीक, सच्चा क्षत्रिय, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और दानी राजा था।
- महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा और
- राजसिंह ने बादशाह औरंगजेब के अप्रेल, 1679 को हिन्दुओं पर जजिया लगाने, मूर्तियाँ तुड़वाने आदि अत्याचारों का प्रबल विरोध किया।
- जोधपुर के अजीतसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और जजिया कर देना स्वीकार नहीं किया
- महाराणा राजसिंह को ‘मंदिरों वाला शासक’ उपनाम से जाना जाता है
-
Question 35 of 108
35. Question
1 pointsद्वितीय मेवाड़-मुगल संधि किस-किसके मध्य हुई थी?
Correct
महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई.)-
- 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढेबर नामक स्थान पर संगमरमर की जयसमंद झील बनवाना प्रारंभ किया गया
- जयसमंद झील 1691 ई. में बनकर तैयार हुई।
- जयसमंद झील ढेबर झील भी कहते हैं।
- द्वितीय मेवाड़-मुगल संधि – महाराणा जय सिंह व मुअज्जम
Incorrect
महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई.)-
- 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढेबर नामक स्थान पर संगमरमर की जयसमंद झील बनवाना प्रारंभ किया गया
- जयसमंद झील 1691 ई. में बनकर तैयार हुई।
- जयसमंद झील ढेबर झील भी कहते हैं।
- द्वितीय मेवाड़-मुगल संधि – महाराणा जय सिंह व मुअज्जम
Unattempted
महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई.)-
- 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढेबर नामक स्थान पर संगमरमर की जयसमंद झील बनवाना प्रारंभ किया गया
- जयसमंद झील 1691 ई. में बनकर तैयार हुई।
- जयसमंद झील ढेबर झील भी कहते हैं।
- द्वितीय मेवाड़-मुगल संधि – महाराणा जय सिंह व मुअज्जम
-
Question 36 of 108
36. Question
1 pointsसहेलियों की बाड़ी व नाहर मगरी महल का निर्माण मेवाड़ के किस शासक ने करवाया था?
Correct
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734 ई.)-
- संग्राम सिंह ने मराठों के विरूद्ध राजस्थान के राजपूत राजाओं को संगठित करने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के साथ मिलकर हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई
- सम्मेलन के आयोजित होने से पूर्व ही संग्राम सिंह का देहान्त हो गया।
- संग्राम सिंह के द्वारा उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी, वैद्यनाथ मंदिर, नाहर मगरी के महल तथा उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाला आदि का निर्माण करवाया गया।
- मुगल शासक फर्रुखशियर ने संग्राम सिंह के काल में जजिया कर हटाने का आदेश जारी किया।
- अकबर के समय मुगलों के अधीन रामपुरा जागीर संग्राम सिंह के समय पुन: मेवाड़ को प्राप्त हो गई थी।
- दुर्गादास राठौड़ को मेवाड़ से निकाले जाने पर वह संग्राम सिंह की सेवा में आए तथा इन्होंने दुर्गादास को विजयपुर की जागीर दी।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल की गद्दी का गौरव बनाये रखने वाला यह अन्तिम राजा था।
Incorrect
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734 ई.)-
- संग्राम सिंह ने मराठों के विरूद्ध राजस्थान के राजपूत राजाओं को संगठित करने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के साथ मिलकर हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई
- सम्मेलन के आयोजित होने से पूर्व ही संग्राम सिंह का देहान्त हो गया।
- संग्राम सिंह के द्वारा उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी, वैद्यनाथ मंदिर, नाहर मगरी के महल तथा उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाला आदि का निर्माण करवाया गया।
- मुगल शासक फर्रुखशियर ने संग्राम सिंह के काल में जजिया कर हटाने का आदेश जारी किया।
- अकबर के समय मुगलों के अधीन रामपुरा जागीर संग्राम सिंह के समय पुन: मेवाड़ को प्राप्त हो गई थी।
- दुर्गादास राठौड़ को मेवाड़ से निकाले जाने पर वह संग्राम सिंह की सेवा में आए तथा इन्होंने दुर्गादास को विजयपुर की जागीर दी।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल की गद्दी का गौरव बनाये रखने वाला यह अन्तिम राजा था।
Unattempted
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734 ई.)-
- संग्राम सिंह ने मराठों के विरूद्ध राजस्थान के राजपूत राजाओं को संगठित करने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के साथ मिलकर हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई
- सम्मेलन के आयोजित होने से पूर्व ही संग्राम सिंह का देहान्त हो गया।
- संग्राम सिंह के द्वारा उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी, वैद्यनाथ मंदिर, नाहर मगरी के महल तथा उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाला आदि का निर्माण करवाया गया।
- मुगल शासक फर्रुखशियर ने संग्राम सिंह के काल में जजिया कर हटाने का आदेश जारी किया।
- अकबर के समय मुगलों के अधीन रामपुरा जागीर संग्राम सिंह के समय पुन: मेवाड़ को प्राप्त हो गई थी।
- दुर्गादास राठौड़ को मेवाड़ से निकाले जाने पर वह संग्राम सिंह की सेवा में आए तथा इन्होंने दुर्गादास को विजयपुर की जागीर दी।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल की गद्दी का गौरव बनाये रखने वाला यह अन्तिम राजा था।
-
Question 37 of 108
37. Question
1 pointsविद्यानुरागी व संगीत प्रेमी होने के कारण राणा कुम्भा को कहा जाता है
Correct
-
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – विद्यानुरागी व संगीत प्रेमी होने के कारण /संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
Incorrect
-
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – विद्यानुरागी व संगीत प्रेमी होने के कारण /संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
Unattempted
-
कुम्भा की उपाधियाँ-
- हालगुरु – गिरि दुर्गो का स्वामी होने के कारण।
- राणो रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- नाटकराज का कर्त्ता-नृत्यशास्त्र के ज्ञाता होने के कारण।
- धीमान-बुद्धिमत्तापूर्वक निर्माणादि कार्य करने से।
- शैलगुरु-शस्त्र या भाला का उपयोग सिखाने से।
- नंदिकेश्वरावतार-नंदिकेश्वर के मत का अनुसरण करने के कारण।
- हिन्दू सुरत्ताण – समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त।
- अभिनव भरताचार्य – विद्यानुरागी व संगीत प्रेमी होने के कारण /संगीत के क्षेत्र में कुम्भा के विपुल ज्ञान के कारण।
- राजगुरु – राजाओं को शिक्षा देने की क्षमता होने के कारण कहलाये।
- तोडरमल – कुम्भा के हयेश (अश्वपति), हस्तीश (गजपति) और नरेश (पैदल सेना का अधिपति) होने सेकहलाये।
-
Question 38 of 108
38. Question
1 pointsबयाना के युद्ध के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
(A) बयाना स्थान हरियाणा में स्थित है।
(B) इस युद्ध में बाबर की विजय हुई थी।
Correct
बयाना का युद्ध –
- बयाना का युद्ध ( Bayana Ka Yudh ) महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध नाम से मशहूर हैं।
- बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया पहला युद्ध था।
- बयाना का युद्ध 21 व 22 फ़रवरी 1527 ईस्वी में लड़ा गया एक ऐतिहासिक युद्ध था।
- इस (Bayana Ka Yudh) युद्ध में महाराणा सांगा ने बाबर को बुरी तरह पराजित कर दिया।
- बयाना स्थान (भरतपुर) राजस्थान में स्थित है।
Incorrect
बयाना का युद्ध –
- बयाना का युद्ध ( Bayana Ka Yudh ) महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध नाम से मशहूर हैं।
- बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया पहला युद्ध था।
- बयाना का युद्ध 21 व 22 फ़रवरी 1527 ईस्वी में लड़ा गया एक ऐतिहासिक युद्ध था।
- इस (Bayana Ka Yudh) युद्ध में महाराणा सांगा ने बाबर को बुरी तरह पराजित कर दिया।
- बयाना स्थान (भरतपुर) राजस्थान में स्थित है।
Unattempted
बयाना का युद्ध –
- बयाना का युद्ध ( Bayana Ka Yudh ) महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध नाम से मशहूर हैं।
- बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के बीच लड़ा गया पहला युद्ध था।
- बयाना का युद्ध 21 व 22 फ़रवरी 1527 ईस्वी में लड़ा गया एक ऐतिहासिक युद्ध था।
- इस (Bayana Ka Yudh) युद्ध में महाराणा सांगा ने बाबर को बुरी तरह पराजित कर दिया।
- बयाना स्थान (भरतपुर) राजस्थान में स्थित है।
-
Question 39 of 108
39. Question
1 pointsकर्नल जेम्स टॉड ने निम्नलिखित में से किस शासक को ‘सैनिक भग्नावेश’ कहा है?
Correct
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा संग्राम सिंह को ‘सैनिक भग्नावेश’ कहा है
Incorrect
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा संग्राम सिंह को ‘सैनिक भग्नावेश’ कहा है
Unattempted
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.)-
-
- रायमल का पुत्र था
- 24 मई, 1509 ई. को महाराणा संग्राम सिंह का राज्याभिषेक हुआ
- 1509 ई. में दिल्ली में लोदी वंश का सुल्तान सिकन्दर लोदी, गुजरात में महमूदशाह बेगड़ा और मालवा में नासिरूद्दीन खिलजी का शासन था।
- मेवाड़ का सबसे प्रतापी शासक, ‘हिन्दूपत‘ कहलाता था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा संग्राम सिंह को ‘सैनिक भग्नावेश’ कहा है
-
Question 40 of 108
40. Question
1 pointsरणथम्भौर दुर्ग का घेरा उठाने का आदेश देते हुए किस सुल्तान ने कहा था कि, “ऐसे 10 किलों को मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता”?
Correct
हम्मीर देव चौहान(1282 – 1301 ई.) –
- 1291ई. में जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग (रणथंभौर दुर्ग की कुंजी) पर आक्रमण करता है।
- 1291ई. में हम्मीर देव चौहान कोटियजन यज्ञ करने में व्यस्थ थे तथा उन्होंने गुरुदास सैनी को युद्ध करने भेजा था।
- इस युद्ध में गुरुदास सैनी वीरगति को प्राप्त हो जाते है तथा जलालुद्दीन खिलजी ये युद्ध जीत जाता है। और जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग पर अधिकार कर लिया
- झारन दुर्ग पर अधिकार करने के पश्चात जलालुद्दीन खिलजी रणथंभौर पर आक्रमण करता है।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी का सेनापति अहमद चप था।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी युद्ध का मैदान छोड़ के जा रहा था तो उसका सेनापति अहमद चप पूछता है, बादशाह किधर जा रहे हो? तो जलालुद्दीन खिलजी कहता है “ऐसे दस किले मै मुसलमान के एक बाल के बराबर समझता हूँ”
Incorrect
हम्मीर देव चौहान(1282 – 1301 ई.) –
- 1291ई. में जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग (रणथंभौर दुर्ग की कुंजी) पर आक्रमण करता है।
- 1291ई. में हम्मीर देव चौहान कोटियजन यज्ञ करने में व्यस्थ थे तथा उन्होंने गुरुदास सैनी को युद्ध करने भेजा था।
- इस युद्ध में गुरुदास सैनी वीरगति को प्राप्त हो जाते है तथा जलालुद्दीन खिलजी ये युद्ध जीत जाता है। और जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग पर अधिकार कर लिया
- झारन दुर्ग पर अधिकार करने के पश्चात जलालुद्दीन खिलजी रणथंभौर पर आक्रमण करता है।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी का सेनापति अहमद चप था।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी युद्ध का मैदान छोड़ के जा रहा था तो उसका सेनापति अहमद चप पूछता है, बादशाह किधर जा रहे हो? तो जलालुद्दीन खिलजी कहता है “ऐसे दस किले मै मुसलमान के एक बाल के बराबर समझता हूँ”
Unattempted
हम्मीर देव चौहान(1282 – 1301 ई.) –
- 1291ई. में जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग (रणथंभौर दुर्ग की कुंजी) पर आक्रमण करता है।
- 1291ई. में हम्मीर देव चौहान कोटियजन यज्ञ करने में व्यस्थ थे तथा उन्होंने गुरुदास सैनी को युद्ध करने भेजा था।
- इस युद्ध में गुरुदास सैनी वीरगति को प्राप्त हो जाते है तथा जलालुद्दीन खिलजी ये युद्ध जीत जाता है। और जलालुद्दीन खिलजी झारन दुर्ग पर अधिकार कर लिया
- झारन दुर्ग पर अधिकार करने के पश्चात जलालुद्दीन खिलजी रणथंभौर पर आक्रमण करता है।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी का सेनापति अहमद चप था।
- रणथंभौर युद्ध में जलालुद्दीन खिलजी युद्ध का मैदान छोड़ के जा रहा था तो उसका सेनापति अहमद चप पूछता है, बादशाह किधर जा रहे हो? तो जलालुद्दीन खिलजी कहता है “ऐसे दस किले मै मुसलमान के एक बाल के बराबर समझता हूँ”
-
Question 41 of 108
41. Question
1 pointsरणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
Correct
गोविन्द राज –
- गोविन्द राज ने 1194 ई. में रणथंभौर में चौहान वंश की नींव रखी थी।
- गोविन्द राज पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र थे।
वीर नारायण –
- वीर नारायण के समय इल्तुतमिश ने रणथंभौर पर आक्रमण किया था।
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
Incorrect
गोविन्द राज –
- गोविन्द राज ने 1194 ई. में रणथंभौर में चौहान वंश की नींव रखी थी।
- गोविन्द राज पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र थे।
वीर नारायण –
- वीर नारायण के समय इल्तुतमिश ने रणथंभौर पर आक्रमण किया था।
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
Unattempted
गोविन्द राज –
- गोविन्द राज ने 1194 ई. में रणथंभौर में चौहान वंश की नींव रखी थी।
- गोविन्द राज पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र थे।
वीर नारायण –
- वीर नारायण के समय इल्तुतमिश ने रणथंभौर पर आक्रमण किया था।
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
-
Question 42 of 108
42. Question
1 pointsदिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद के समय बलबन के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण हुआ, इस समय रणथम्भौर का शासक था:
Correct
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
Incorrect
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
Unattempted
वागभट्ट –
- वागभट्ट के समय बलबन तीन बार आक्रमण करता है।
-
वागभट्ट रणथम्भौर के चौहान वंश का पहला प्रतापी शासक था
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Question 43 of 108
43. Question
1 pointsफरिश्ता ने अपने ग्रंथ “तारीख ए फरिश्ता” में किस चौहान शासक को ‘गजनी के शासक को मारवाड़ में रोकने वाला’ कहा है?
Correct
Incorrect
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Question 44 of 108
44. Question
1 pointsकिस दुर्ग के संदर्भ में हसन निजामी ने कहा कि,” यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका”?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 45 of 108
45. Question
1 pointsकिसके विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन की जालोर विजय सरल हुई?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 46 of 108
46. Question
1 pointsजालोर का वह चौहान शासक जिसने चालुक्यों से प्रथम बार वैवाहिक संबंध स्थापित किया
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 47 of 108
47. Question
1 pointsदो सुल्तानों के आक्रमण को असफल करने वाला जालोर का चौहान शासक था
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 48 of 108
48. Question
1 pointsकान्हड़ देव के समय अलाउद्दीन खिलजी के जालोर अभियान के कारणों व उनके स्रोतों के साथ सुमेलित है
(1) कान्हड़ देव प्रबंध – गुजरात अभियान के समय शाही सेना को रास्ता नहीं देना और उस पर आक्रमण करना
(2) फरिश्ता – कान्हड़ देव को अलाउद्दीन द्वारा दिल्ली बुलाकर अपमानित करना।
(3) नैणसी – कान्हड़ देव के बेटे वीरमदेव और अलाउद्दीन की बेटी फिरोजा का प्रेम प्रसंग।
(4) अमीर खुसरो – अलाउद्दीन की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 49 of 108
49. Question
1 pointsजालौर विजय के बाद अलाउद्दीन ने जालोर का नाम बदलकर क्या रखा था?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 50 of 108
50. Question
1 pointsसिरोही नगर की स्थापना किसने की?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 51 of 108
51. Question
1 pointsसिरोही के देवड़ा चौहानों का आदिपुरुष कौन था?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 52 of 108
52. Question
1 pointsराव लुम्बा ने अचलेश्वर मंदिर को कौन-सा गाँव भेंट में दिया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 53 of 108
53. Question
1 pointsसिरोही के शासक लाखा देवड़ा ने कौन-सा तालाब बनवाया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 54 of 108
54. Question
1 pointsसिरोही के शासक लाखा देवड़ा ने कौन-सा तालाब बनवाया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 55 of 108
55. Question
1 pointsख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती किसके शासनकाल में अजमेर आए थे?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 56 of 108
56. Question
1 pointsकिस झील के निर्माण का उद्देश्य “तुर्कों के खून से सनी धरती को धोना” बताया गया है?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 57 of 108
57. Question
1 pointsनाडोल के चौहान वंश का अंतिम शासक कौन था?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 58 of 108
58. Question
1 points1308 ईस्वी में सिवाणा पर अधिकार करने के बाद अलाउद्दीन ने सिवाणा का प्रबंधक किसे नियुक्त किया था?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 59 of 108
59. Question
1 pointsराठौड़ों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 60 of 108
60. Question
1 pointsसुमेलित कीजिए
सूची-1 सूची-II
A महाराजा भीमसिंह 1. खेजड़ली हत्याकांड
B महाराजा अभयसिंह 2. कृष्णा कुमारी से सगाई पासवान
C गुलाबराय 3. गंगश्याम मंदिर का निर्माण
D महाराजा विजयसिंह 4. गुलाब सागर का निर्माण
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 61 of 108
61. Question
1 pointsचन्द्रसेन के संदर्भ में सत्य कथन का चयन कीजिए
- मारवाड़ का प्रथम शासक चन्द्रसेन था जिसने छापामार/गुरिल्ला युद्ध पद्धति का प्रयोग किया।
- 1580 ई. में चन्द्रसेन ने मुगलों को पराजित कर सोजत (पाली) पर अधिकार कर लिया
नीचे दिए गए कूट का सही प्रयोग कीजिए
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 62 of 108
62. Question
1 pointsरायसिंह ने किस युद्ध में इब्राहिम हुसैन मिर्जा को पराजित किया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 63 of 108
63. Question
1 pointsधौसी/ढोसी का युद्ध कब लड़ा गया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 64 of 108
64. Question
1 pointsमारवाड़ के राठौड़ बदायूँ शाखा से माने जाते हैं, इस मत का सर्वप्रथम प्रतिपादन किसने किया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 65 of 108
65. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से गलत कथन को छाँटिए
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 66 of 108
66. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार करें
(1) दुर्गादास राठौड़ को देश निकाला अजीतसिंह ने दिया।
(2) दुर्गादास राठौड़ को संग्रामसिंह-II ने शरण दी।
(3) दुर्गादास राठौड़ को संग्रामसिंह-II ने केलवा की जागीर दी।
(4) दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु मारवाड़ में हुई।
उपर्युक्त में से असत्य कथनों का चयन कीजिए
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 67 of 108
67. Question
1 pointsरायसिंह ने ‘रजत महल’ का निर्माण कहाँ करवाया?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 68 of 108
68. Question
1 pointsजहाँगीर के शासनकाल में रायसिंह का मनसब था
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 69 of 108
69. Question
1 pointsजसवंत सिंह व अंग्रेजों के मध्य नमक संधि कब हुई?
Correct
Incorrect
Unattempted
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Question 70 of 108
70. Question
1 pointsराजस्थान इतिहास की एकमात्र महासती कौन थी?
Correct
Incorrect
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Question 71 of 108
71. Question
1 pointsदुर्गादास राठौड़ के संबंध में असत्य कथन है
Correct
Incorrect
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Question 72 of 108
72. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से सही कथनों का चयन करें
(i) अभयसिंह मारवाड़ का शासक था।
(ii) मारवाड़ में डांडिया नृत्य की परम्परा अभयसिंह के काल में प्रारम्भ हुई।
(iii) गंगावन का युद्ध 1740 ई. हुआ।
Correct
Incorrect
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Question 73 of 108
73. Question
1 pointsगिरि-सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता करने हेतु कौन सेना लेकर आया?