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Question 1 of 10
1. Question
1 points
निम्नलिखित में से किसने महावीर के परम ज्ञान के शोध के दौरान छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप किया?
Correct
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Incorrect
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Unattempted
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Question 2 of 10
2. Question
1 points
प्राचीन भारत में एक जैन साधु का जीवन कितनी प्रतिज्ञाओं से अनुशासित था?
Correct
व्याख्या-
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया तथा
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Incorrect
व्याख्या-
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया तथा
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Unattempted
व्याख्या-
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया तथा
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Question 3 of 10
3. Question
1 points
निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
पार्श्व – निग्रंथ
गोशाल – आजीविक
अजित केसकम्बलिन – बौद्ध
उपर्युक्त युग्मों में से कौनसा/से सही सुमेलित है/ है?
Correct
व्याख्या-
पार्श्वनाथ-
पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे तथा ऐतिहासिक माने जाते है।
पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 वर्ष पहले माना जाता है।
पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर संन्यासी हो गए।
पार्श्वनाथ 83 दिन की घोर तपस्या के बाद इन्हें सम्मेत पर्वत पर ज्ञान प्राप्त हुआ।
जैन जनुश्रुति के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्म तक धर्म का प्रचार किया।
जैन ग्रंथों में पार्श्वनाथ को पुरुषादनीय कहा गया है।
पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था।
मक्खलि पुत्र गोशाल-
मक्खलि पुत्र गोशाल ने आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की।
पहले ये महावीर के शिष्य थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल की शिक्षा का मूल आधार नियतिवाद (भाग्यवाद) था।
इनके अनुसार संसार को प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है।
मनुष्य के कर्मो का उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मक्खलि पुत्र गोशाल घोर तप एवं संन्यास में विश्वास करते थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल ने श्रावस्ती को अपना केन्द्र बनाया।
अजित केसकम्बलिन-
अजित केसकम्बलिन नितान्त भौतिकवादी था।
इसे भौतिकवाद का प्रवर्तक माना जाता है।
इनका मत था कि मृत्यु के बाद कुछ शेष नहीं बचता।
व्यक्ति को अपने आनन्द के लिए जो इच्छा हो, वही करना चाहिए।
अजित का चिन्तन लोकायत या चार्वाक परम्परा की पुष्टि करता है।
हालाँकि लोकायत परम्परा के संस्थापक बृहस्पति माने जाते है।
Incorrect
व्याख्या-
पार्श्वनाथ-
पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे तथा ऐतिहासिक माने जाते है।
पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 वर्ष पहले माना जाता है।
पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर संन्यासी हो गए।
पार्श्वनाथ 83 दिन की घोर तपस्या के बाद इन्हें सम्मेत पर्वत पर ज्ञान प्राप्त हुआ।
जैन जनुश्रुति के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्म तक धर्म का प्रचार किया।
जैन ग्रंथों में पार्श्वनाथ को पुरुषादनीय कहा गया है।
पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था।
मक्खलि पुत्र गोशाल-
मक्खलि पुत्र गोशाल ने आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की।
पहले ये महावीर के शिष्य थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल की शिक्षा का मूल आधार नियतिवाद (भाग्यवाद) था।
इनके अनुसार संसार को प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है।
मनुष्य के कर्मो का उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मक्खलि पुत्र गोशाल घोर तप एवं संन्यास में विश्वास करते थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल ने श्रावस्ती को अपना केन्द्र बनाया।
अजित केसकम्बलिन-
अजित केसकम्बलिन नितान्त भौतिकवादी था।
इसे भौतिकवाद का प्रवर्तक माना जाता है।
इनका मत था कि मृत्यु के बाद कुछ शेष नहीं बचता।
व्यक्ति को अपने आनन्द के लिए जो इच्छा हो, वही करना चाहिए।
अजित का चिन्तन लोकायत या चार्वाक परम्परा की पुष्टि करता है।
हालाँकि लोकायत परम्परा के संस्थापक बृहस्पति माने जाते है।
Unattempted
व्याख्या-
पार्श्वनाथ-
पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे तथा ऐतिहासिक माने जाते है।
पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 वर्ष पहले माना जाता है।
पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर संन्यासी हो गए।
पार्श्वनाथ 83 दिन की घोर तपस्या के बाद इन्हें सम्मेत पर्वत पर ज्ञान प्राप्त हुआ।
जैन जनुश्रुति के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्म तक धर्म का प्रचार किया।
जैन ग्रंथों में पार्श्वनाथ को पुरुषादनीय कहा गया है।
पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था।
मक्खलि पुत्र गोशाल-
मक्खलि पुत्र गोशाल ने आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की।
पहले ये महावीर के शिष्य थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल की शिक्षा का मूल आधार नियतिवाद (भाग्यवाद) था।
इनके अनुसार संसार को प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है।
मनुष्य के कर्मो का उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मक्खलि पुत्र गोशाल घोर तप एवं संन्यास में विश्वास करते थे।
मक्खलि पुत्र गोशाल ने श्रावस्ती को अपना केन्द्र बनाया।
अजित केसकम्बलिन-
अजित केसकम्बलिन नितान्त भौतिकवादी था।
इसे भौतिकवाद का प्रवर्तक माना जाता है।
इनका मत था कि मृत्यु के बाद कुछ शेष नहीं बचता।
व्यक्ति को अपने आनन्द के लिए जो इच्छा हो, वही करना चाहिए।
अजित का चिन्तन लोकायत या चार्वाक परम्परा की पुष्टि करता है।
हालाँकि लोकायत परम्परा के संस्थापक बृहस्पति माने जाते है।
Question 4 of 10
4. Question
1 points
निम्न में से कौन सा एक कथन सही नहीं है
Correct
व्याख्या –
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
भद्रबाहु ने मगध के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में कल्पसूत्र की रचना की।
उदयन हर्यंकवंश का शासक था, जिसका काल चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से लगभग 150 वर्ष पहले पड़ता है।
अतः भद्रबाहु को उदयन के समकालीन मानना गलत है।
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ कर्नाटक चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।
Incorrect
व्याख्या –
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
भद्रबाहु ने मगध के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में कल्पसूत्र की रचना की।
उदयन हर्यंकवंश का शासक था, जिसका काल चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से लगभग 150 वर्ष पहले पड़ता है।
अतः भद्रबाहु को उदयन के समकालीन मानना गलत है।
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ कर्नाटक चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।
Unattempted
व्याख्या –
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
भद्रबाहु ने मगध के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में कल्पसूत्र की रचना की।
उदयन हर्यंकवंश का शासक था, जिसका काल चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से लगभग 150 वर्ष पहले पड़ता है।
अतः भद्रबाहु को उदयन के समकालीन मानना गलत है।
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ कर्नाटक चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।
Question 5 of 10
5. Question
1 points
पउमचरिअम निम्न में से किस एक से संबंधित है
Correct
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया ।
Incorrect
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया ।
Unattempted
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया ।
Question 6 of 10
6. Question
1 points
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1.अशोक के बारहवें शिलालेख में सातवाहनों का उल्लेख मिलता है।
जैन परम्परा के अनुसार सिमुक ने बौद्ध एवं जैन दोनों प्रकार के मंदिरों का निर्माण कराया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं
Correct
व्याख्या-
सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने लगभग 30 ई0पू0 में की थी
सम्राट अशोक का काल 273 ई0 पू0 232 ई0पू0 था।
अतः अशोक के अभिलेखों में सातवाहनों का उल्लेख नहीं मिलता।
जैन गाथाओं के अनुसार सिमुक ने जैन तथा बौद्ध दोनों प्रकार के मंदिरों का निर्माण कराया था।
Incorrect
व्याख्या-
सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने लगभग 30 ई0पू0 में की थी
सम्राट अशोक का काल 273 ई0 पू0 232 ई0पू0 था।
अतः अशोक के अभिलेखों में सातवाहनों का उल्लेख नहीं मिलता।
जैन गाथाओं के अनुसार सिमुक ने जैन तथा बौद्ध दोनों प्रकार के मंदिरों का निर्माण कराया था।
Unattempted
व्याख्या-
सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने लगभग 30 ई0पू0 में की थी
सम्राट अशोक का काल 273 ई0 पू0 232 ई0पू0 था।
अतः अशोक के अभिलेखों में सातवाहनों का उल्लेख नहीं मिलता।
जैन गाथाओं के अनुसार सिमुक ने जैन तथा बौद्ध दोनों प्रकार के मंदिरों का निर्माण कराया था।
Question 7 of 10
7. Question
1 points
जैन धर्म का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण क्या है?
Correct
व्याख्या –
जैनियों ने परम तत्व की व्याख्या के लिए सप्त भंगीनय की कल्पना की है।
इसे स्यावाद अथवा अनेकान्त वाद कहा जाता है।
जैन धर्म में स्यादवाद का विशेष महत्व है।
अनेकान्त वाद के अनुसार अन्तिम रूप से किसी बात को स्वीकार करना अथवा अस्वीकार करना संभव नहीं है।
अनेकान्त वाद/स्यावाद जैन धर्म की ‘वास्तविकता की बहुलता’ का सिद्धान्त है।
Incorrect
व्याख्या –
जैनियों ने परम तत्व की व्याख्या के लिए सप्त भंगीनय की कल्पना की है।
इसे स्यावाद अथवा अनेकान्त वाद कहा जाता है।
जैन धर्म में स्यादवाद का विशेष महत्व है।
अनेकान्त वाद के अनुसार अन्तिम रूप से किसी बात को स्वीकार करना अथवा अस्वीकार करना संभव नहीं है।
अनेकान्त वाद/स्यावाद जैन धर्म की ‘वास्तविकता की बहुलता’ का सिद्धान्त है।
Unattempted
व्याख्या –
जैनियों ने परम तत्व की व्याख्या के लिए सप्त भंगीनय की कल्पना की है।
इसे स्यावाद अथवा अनेकान्त वाद कहा जाता है।
जैन धर्म में स्यादवाद का विशेष महत्व है।
अनेकान्त वाद के अनुसार अन्तिम रूप से किसी बात को स्वीकार करना अथवा अस्वीकार करना संभव नहीं है।
अनेकान्त वाद/स्यावाद जैन धर्म की ‘वास्तविकता की बहुलता’ का सिद्धान्त है।
Question 8 of 10
8. Question
1 points
निम्न में से किस एक के साथ कालजयी रचना ‘जीवक चिन्तामणि’ संबंधित है ? ,
Correct
व्याख्या-
‘जीवक चिंतामणि’ संगमयुगीन एक महाकाव्य है।
जीवक चिंतामणि’को एक जैन पुस्तक माना जाता है।
जीवक चिंतामणि’ की रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुतक्कदेवर को दिया जाता है।
तिरुतक्कदेवर पहले वह चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्ष बन गया।
इस महाकाव्य में एक आदर्श नायक की जीवन कथा है जो कि युद्ध तथा शनि दोनों कलाओं में प्रवीण है।
Incorrect
व्याख्या-
‘जीवक चिंतामणि’ संगमयुगीन एक महाकाव्य है।
जीवक चिंतामणि’को एक जैन पुस्तक माना जाता है।
जीवक चिंतामणि’ की रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुतक्कदेवर को दिया जाता है।
तिरुतक्कदेवर पहले वह चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्ष बन गया।
इस महाकाव्य में एक आदर्श नायक की जीवन कथा है जो कि युद्ध तथा शनि दोनों कलाओं में प्रवीण है।
Unattempted
व्याख्या-
‘जीवक चिंतामणि’ संगमयुगीन एक महाकाव्य है।
जीवक चिंतामणि’को एक जैन पुस्तक माना जाता है।
जीवक चिंतामणि’ की रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुतक्कदेवर को दिया जाता है।
तिरुतक्कदेवर पहले वह चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्ष बन गया।
इस महाकाव्य में एक आदर्श नायक की जीवन कथा है जो कि युद्ध तथा शनि दोनों कलाओं में प्रवीण है।
Question 9 of 10
9. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन सा सद्गुण तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा उपदिष्ट चतुर्याम धर्म में महावीर द्वारा जोड़ा गया
Correct
व्याख्या –
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Incorrect
व्याख्या –
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Unattempted
व्याख्या –
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), तथा अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)।
महावीर स्वामी ने इसमें एक पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया
पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की
महावीर स्वामी ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मर्च- ये पाँच महाव्रत हैं जिनका पालन जैन साधुओं के लिए अनिवार्य किया गया था।
Question 10 of 10
10. Question
1 points
महावीर के देहावसान के 200 वर्ष के उपरान्त मगध में एक दुर्भिक्ष पड़ा था। उस समय निम्न से कौन मगध छोड़कर दक्षिण भारत की ओर चला गया था तथा जिसकों दक्षिण भारत में जैन संप्रदाय ले जाने का श्रेय दिया जाता है?
Correct
व्याख्या .
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ही दक्षिण भारत में जैन सम्प्रदाय ले जाने का श्रेय दिया जाता है।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।
Incorrect
व्याख्या .
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ही दक्षिण भारत में जैन सम्प्रदाय ले जाने का श्रेय दिया जाता है।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।
Unattempted
व्याख्या .
भद्रबाहु एक प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।
भद्रबाहु ही दक्षिण भारत में जैन सम्प्रदाय ले जाने का श्रेय दिया जाता है।
भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ नामक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ की रचना की,
‘कल्पसूत्र’ में जैन तीर्थंकरों की जीवनी मिलती है।
भद्रबाहु मगध के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे,
जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिये थे।