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Answered
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Question 1 of 10
1. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन, रामकथा के जैन रूपांतर, पउमचरिअम का लेखक है?
Correct
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया । ।
Incorrect
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया । ।
Unattempted
व्याख्या-
जैन, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बियों ने जनसाधारण तक अपने संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश’ को अपनाया।
संस्कृत के शब्दों का विभिन्न रूपों में लोक-प्रयोग होने से ‘अपभंश’ का जन्म हुआ
नाट्यशास्त्र में अपभ्रंश के अनेक रूपों की चर्चा है।
अपभ्रंश भाषा में प्रारम्भिक महाकाव्य विमलसूरी का पऊमचरिउ (पदमचरित) की रचना हुई। यह एक जैन ग्रंथ है।
पऊमचरिउ (पदमचरित) में विमलसूरी ने रामायण की कथा का जैन रूपान्तर किया । ।
Question 2 of 10
2. Question
2 points
प्राचीन भारत के संदर्भ में कार्षापण क्या है?
Correct
व्याख्या –
प्राचीन भारत के संदर्भ में कार्षापण साधारणतया प्रचलित सिक्के हैं।
भारत के प्राचीनतम सिक्के पाँचवी शताब्दी ई0 पू0 के हैं जिन्हें आहत सिक्के कहा जाता है ये मुख्यतः चाँदी के है बौद्ध ग्रंथों में आहत सिक्कों के लिये कहापण अर्थात् कार्षापण का उल्लेख मिलता है।
चाँदी का कार्षापण 180ग्रेन तथा ताँबे का कार्षापण 146 ग्रेन का था।
Incorrect
व्याख्या –
प्राचीन भारत के संदर्भ में कार्षापण साधारणतया प्रचलित सिक्के हैं।
भारत के प्राचीनतम सिक्के पाँचवी शताब्दी ई0 पू0 के हैं जिन्हें आहत सिक्के कहा जाता है ये मुख्यतः चाँदी के है बौद्ध ग्रंथों में आहत सिक्कों के लिये कहापण अर्थात् कार्षापण का उल्लेख मिलता है।
चाँदी का कार्षापण 180ग्रेन तथा ताँबे का कार्षापण 146 ग्रेन का था।
Unattempted
व्याख्या –
प्राचीन भारत के संदर्भ में कार्षापण साधारणतया प्रचलित सिक्के हैं।
भारत के प्राचीनतम सिक्के पाँचवी शताब्दी ई0 पू0 के हैं जिन्हें आहत सिक्के कहा जाता है ये मुख्यतः चाँदी के है बौद्ध ग्रंथों में आहत सिक्कों के लिये कहापण अर्थात् कार्षापण का उल्लेख मिलता है।
चाँदी का कार्षापण 180ग्रेन तथा ताँबे का कार्षापण 146 ग्रेन का था।
Question 3 of 10
3. Question
2 points
अकबर के शासनकाल से सम्बद्ध प्रसिद्ध व्यक्ति हरिवंस, मुकुन्द तथा दसवन्त क्या थे?
Correct
व्याख्या –
अकबर के शासन काल से सम्बद्ध प्रसिद्ध व्यक्ति हरिवंस, मुकुन्द और दसवन्त चित्रकार थे।
अबुल फजल की प्रसिद्ध रचना ‘आइन-ए-अकबरी’ में अन्य चित्रकारों के नाम उल्लिखित हैं।
Incorrect
व्याख्या –
अकबर के शासन काल से सम्बद्ध प्रसिद्ध व्यक्ति हरिवंस, मुकुन्द और दसवन्त चित्रकार थे।
अबुल फजल की प्रसिद्ध रचना ‘आइन-ए-अकबरी’ में अन्य चित्रकारों के नाम उल्लिखित हैं।
Unattempted
व्याख्या –
अकबर के शासन काल से सम्बद्ध प्रसिद्ध व्यक्ति हरिवंस, मुकुन्द और दसवन्त चित्रकार थे।
अबुल फजल की प्रसिद्ध रचना ‘आइन-ए-अकबरी’ में अन्य चित्रकारों के नाम उल्लिखित हैं।
Question 4 of 10
4. Question
2 points
फाह्यान ने किसके व्यक्तित्व का विस्तृत विवरण दिया है?
Correct
व्याख्या-
फाह्यान नामक चीनी यात्री चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में 399 में भारत आया।
फाह्यान 15 वर्षों तक (414 ई. तक) भारत में रहा।
फाह्यान ने तत्कालीन भारत की सांस्कृतिक दशा का सुन्दर निरुपण करता है।
फाह्यान ने चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन की उच्च शब्दों में प्रशंसा की है।
फाह्यान के अनुसार राज्य में चतुर्दिक शान्ति और व्यवस्था व्याप्त थी। प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी तथा लोग परस्पर सौहार्दपूर्वक रहते थे।
Incorrect
व्याख्या-
फाह्यान नामक चीनी यात्री चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में 399 में भारत आया।
फाह्यान 15 वर्षों तक (414 ई. तक) भारत में रहा।
फाह्यान ने तत्कालीन भारत की सांस्कृतिक दशा का सुन्दर निरुपण करता है।
फाह्यान ने चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन की उच्च शब्दों में प्रशंसा की है।
फाह्यान के अनुसार राज्य में चतुर्दिक शान्ति और व्यवस्था व्याप्त थी। प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी तथा लोग परस्पर सौहार्दपूर्वक रहते थे।
Unattempted
व्याख्या-
फाह्यान नामक चीनी यात्री चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में 399 में भारत आया।
फाह्यान 15 वर्षों तक (414 ई. तक) भारत में रहा।
फाह्यान ने तत्कालीन भारत की सांस्कृतिक दशा का सुन्दर निरुपण करता है।
फाह्यान ने चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन की उच्च शब्दों में प्रशंसा की है।
फाह्यान के अनुसार राज्य में चतुर्दिक शान्ति और व्यवस्था व्याप्त थी। प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी तथा लोग परस्पर सौहार्दपूर्वक रहते थे।
Question 5 of 10
5. Question
2 points
निम्नलिखित में से किस शैलेन्द राजा ने नालन्दा में एक मठ का निर्माण किया और पाल सम्राट देव पाल से इसके रख रखाव के लिए पांच गांव दान देने का निवेदन किया?
Correct
व्याख्या-
पालवंश के शासक देवपाल के समय में नालंदा में एक बिहार बनवाने वाला बालपुत्र देव शैलेन्द्र वंशीय (जावा-समात्रा का) शासक था।
बालपुत्र देव ने बलवर्मा के नेतृत्व में एक दूत मंडल भेजकर देवपाल से नालंदा में एक बौद्ध बिहार बनावने की अनुमति मांगी जिसे देवपाल ने प्रदान की।
बालपुत्र देव ने बौद्ध बिहार बनावने का उद्देश्य नालंदा में जावा के विद्यार्थियों के लिए एक विशेष विद्यालय के निर्माण हेतु मगध के पांच गाँवों के अनुदान की व्यवस्था करना था।
Incorrect
व्याख्या-
पालवंश के शासक देवपाल के समय में नालंदा में एक बिहार बनवाने वाला बालपुत्र देव शैलेन्द्र वंशीय (जावा-समात्रा का) शासक था।
बालपुत्र देव ने बलवर्मा के नेतृत्व में एक दूत मंडल भेजकर देवपाल से नालंदा में एक बौद्ध बिहार बनावने की अनुमति मांगी जिसे देवपाल ने प्रदान की।
बालपुत्र देव ने बौद्ध बिहार बनावने का उद्देश्य नालंदा में जावा के विद्यार्थियों के लिए एक विशेष विद्यालय के निर्माण हेतु मगध के पांच गाँवों के अनुदान की व्यवस्था करना था।
Unattempted
व्याख्या-
पालवंश के शासक देवपाल के समय में नालंदा में एक बिहार बनवाने वाला बालपुत्र देव शैलेन्द्र वंशीय (जावा-समात्रा का) शासक था।
बालपुत्र देव ने बलवर्मा के नेतृत्व में एक दूत मंडल भेजकर देवपाल से नालंदा में एक बौद्ध बिहार बनावने की अनुमति मांगी जिसे देवपाल ने प्रदान की।
बालपुत्र देव ने बौद्ध बिहार बनावने का उद्देश्य नालंदा में जावा के विद्यार्थियों के लिए एक विशेष विद्यालय के निर्माण हेतु मगध के पांच गाँवों के अनुदान की व्यवस्था करना था।
Question 6 of 10
6. Question
2 points
चरक संहिता क्या है
Correct
व्याख्या –
चरक कनिष्क का राजवैद्य था।
चरक का ग्रंथ ‘चरक संहिता’ औषधिशास्त्र की प्राचीनतम ग्रन्थ माना जाता है।
चरक को चिकित्सा शास्त्र का आविष्कारक माना जाता है।
‘चरक संहिता’ को आधुनिक चिकित्साशास्त्र का विश्वकोष माना जाता है।
Incorrect
व्याख्या –
चरक कनिष्क का राजवैद्य था।
चरक का ग्रंथ ‘चरक संहिता’ औषधिशास्त्र की प्राचीनतम ग्रन्थ माना जाता है।
चरक को चिकित्सा शास्त्र का आविष्कारक माना जाता है।
‘चरक संहिता’ को आधुनिक चिकित्साशास्त्र का विश्वकोष माना जाता है।
Unattempted
व्याख्या –
चरक कनिष्क का राजवैद्य था।
चरक का ग्रंथ ‘चरक संहिता’ औषधिशास्त्र की प्राचीनतम ग्रन्थ माना जाता है।
चरक को चिकित्सा शास्त्र का आविष्कारक माना जाता है।
‘चरक संहिता’ को आधुनिक चिकित्साशास्त्र का विश्वकोष माना जाता है।
Question 7 of 10
7. Question
2 points
भारत अरब प्रज्ञात्मक सम्बन्धों का सबसे पहला प्रमाण ब्रह्म गुप्त द्वारा रचित ब्रह्म सिद्धान्त का अरबी भाषा में अनुवाद किस नाम से जाना जाता है?
Correct
व्याख्या –
753-54 ई0 में अरब विद्वान भारत से दो पुस्तकें ब्रह्मगुप्त का ब्रह्म सिद्धान्त’ लेकर गए।
अरबी विद्वान अलफजारी ने ‘ब्रह्म सिद्धान्त’ का अरबी भाषा में अनुवाद ‘सिंध हिंद’ के नाम से किया।
Incorrect
व्याख्या –
753-54 ई0 में अरब विद्वान भारत से दो पुस्तकें ब्रह्मगुप्त का ब्रह्म सिद्धान्त’ लेकर गए।
अरबी विद्वान अलफजारी ने ‘ब्रह्म सिद्धान्त’ का अरबी भाषा में अनुवाद ‘सिंध हिंद’ के नाम से किया।
Unattempted
व्याख्या –
753-54 ई0 में अरब विद्वान भारत से दो पुस्तकें ब्रह्मगुप्त का ब्रह्म सिद्धान्त’ लेकर गए।
अरबी विद्वान अलफजारी ने ‘ब्रह्म सिद्धान्त’ का अरबी भाषा में अनुवाद ‘सिंध हिंद’ के नाम से किया।
Question 8 of 10
8. Question
2 points
किस उद्देश्य से इल्तुतमिश ने खलीफा से अधिकार-पत्र प्राप्त किया-
Correct
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Incorrect
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Unattempted
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Question 9 of 10
9. Question
2 points
निम्न सुल्तानों में कौन उलेमा की इच्छा का पालन नहीं करता था.
Correct
व्याख्या –
सुल्तान अलाउददीन राजनीति और प्रशासन में मुस्लिम आचार्यों, मुसलमानों और उलेमा वर्ग के लोगों का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकता था।
सुल्तान अलाउददीन के पूर्व के सुल्तान उलेमा वर्ग के लोगों के परामर्श पर अपनी नीति का निर्धारण करते थे।
अलाउददीन उलेमा की इच्छा का पालन नहीं करता था.
सुल्तान के अधिकारों पर अलाउद्दीन इस वर्ग के हस्तक्षेप, प्रभाव और नियंत्रण का घोर विरोधी था,
Incorrect
व्याख्या –
सुल्तान अलाउददीन राजनीति और प्रशासन में मुस्लिम आचार्यों, मुसलमानों और उलेमा वर्ग के लोगों का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकता था।
सुल्तान अलाउददीन के पूर्व के सुल्तान उलेमा वर्ग के लोगों के परामर्श पर अपनी नीति का निर्धारण करते थे।
अलाउददीन उलेमा की इच्छा का पालन नहीं करता था.
सुल्तान के अधिकारों पर अलाउद्दीन इस वर्ग के हस्तक्षेप, प्रभाव और नियंत्रण का घोर विरोधी था,
Unattempted
व्याख्या –
सुल्तान अलाउददीन राजनीति और प्रशासन में मुस्लिम आचार्यों, मुसलमानों और उलेमा वर्ग के लोगों का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकता था।
सुल्तान अलाउददीन के पूर्व के सुल्तान उलेमा वर्ग के लोगों के परामर्श पर अपनी नीति का निर्धारण करते थे।
अलाउददीन उलेमा की इच्छा का पालन नहीं करता था.
सुल्तान के अधिकारों पर अलाउद्दीन इस वर्ग के हस्तक्षेप, प्रभाव और नियंत्रण का घोर विरोधी था,
Question 10 of 10
10. Question
2 points
स्तूप एवं चैत्य निर्माण के निर्देश तथा इनमें स्थापित करने के लिए बुद्ध के अवशेषों को लेकर विवाद का विवरण सर्वप्रथम मिलता है
Correct
व्याख्या-
स्तूप व चैत्य निर्माण के निर्देशों तथा इनमें स्थापित करने के लिए बुद्ध के अवशेषों को लेकर उत्पन्न विवाद का विवरण सर्वप्रथम महापरिनिर्वाण सूत्र में मिलता है।
महात्मा बुद्ध जीवन के अन्तिम वर्षों में मल्लों की राजधानी पावा पहुंचे।
पावा में महात्मा बुद्ध चुन्दा नामक लुहार की अग्रवाटिका में ठहरे।
सूकरमांस व भोज्य सामग्री दिया जिससे महात्मा बुद्ध अतिसार रोग से पीड़ित हो गए।
पावा से महात्मा बुद्ध कुशीनगर चले गए जहाँ सुभट्ट को अन्तिम उपदेश दिया।
कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में महात्मा बुद्ध की मृत्यु हो गयी
बौद्ध ग्रन्थों में महात्मा बुद्ध की मृत्यु घटना को महापरिनिर्वाण कहा गया है।
बुद्ध के मृत्यु के बाद उनके शरीर धातु के आठ भाग बनाए गए तथा प्रत्येक भाग पर स्तूप बनाए गए।
महापरिनिर्वाण सूत्र में बुद्ध के शरीर धातु के दावेदारों के नाम –
1.मगध नरेश-आजातशत्रु. 2. कपिलवस्तु के शाक्य,
3.वैशाली के लिच्छवी, 4. वेठद्वीप के ब्राह्मण,
5.अलकप्प के बुलि, 6. पावा के मल्ल,
7.पिपलिवन के मोरिय, 8. रामग्राम के कोलिय।
Incorrect
व्याख्या-
स्तूप व चैत्य निर्माण के निर्देशों तथा इनमें स्थापित करने के लिए बुद्ध के अवशेषों को लेकर उत्पन्न विवाद का विवरण सर्वप्रथम महापरिनिर्वाण सूत्र में मिलता है।
महात्मा बुद्ध जीवन के अन्तिम वर्षों में मल्लों की राजधानी पावा पहुंचे।
पावा में महात्मा बुद्ध चुन्दा नामक लुहार की अग्रवाटिका में ठहरे।
सूकरमांस व भोज्य सामग्री दिया जिससे महात्मा बुद्ध अतिसार रोग से पीड़ित हो गए।
पावा से महात्मा बुद्ध कुशीनगर चले गए जहाँ सुभट्ट को अन्तिम उपदेश दिया।
कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में महात्मा बुद्ध की मृत्यु हो गयी
बौद्ध ग्रन्थों में महात्मा बुद्ध की मृत्यु घटना को महापरिनिर्वाण कहा गया है।
बुद्ध के मृत्यु के बाद उनके शरीर धातु के आठ भाग बनाए गए तथा प्रत्येक भाग पर स्तूप बनाए गए।
महापरिनिर्वाण सूत्र में बुद्ध के शरीर धातु के दावेदारों के नाम –
1.मगध नरेश-आजातशत्रु. 2. कपिलवस्तु के शाक्य,
3.वैशाली के लिच्छवी, 4. वेठद्वीप के ब्राह्मण,
5.अलकप्प के बुलि, 6. पावा के मल्ल,
7.पिपलिवन के मोरिय, 8. रामग्राम के कोलिय।
Unattempted
व्याख्या-
स्तूप व चैत्य निर्माण के निर्देशों तथा इनमें स्थापित करने के लिए बुद्ध के अवशेषों को लेकर उत्पन्न विवाद का विवरण सर्वप्रथम महापरिनिर्वाण सूत्र में मिलता है।
महात्मा बुद्ध जीवन के अन्तिम वर्षों में मल्लों की राजधानी पावा पहुंचे।
पावा में महात्मा बुद्ध चुन्दा नामक लुहार की अग्रवाटिका में ठहरे।
सूकरमांस व भोज्य सामग्री दिया जिससे महात्मा बुद्ध अतिसार रोग से पीड़ित हो गए।
पावा से महात्मा बुद्ध कुशीनगर चले गए जहाँ सुभट्ट को अन्तिम उपदेश दिया।
कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में महात्मा बुद्ध की मृत्यु हो गयी
बौद्ध ग्रन्थों में महात्मा बुद्ध की मृत्यु घटना को महापरिनिर्वाण कहा गया है।
बुद्ध के मृत्यु के बाद उनके शरीर धातु के आठ भाग बनाए गए तथा प्रत्येक भाग पर स्तूप बनाए गए।
महापरिनिर्वाण सूत्र में बुद्ध के शरीर धातु के दावेदारों के नाम –