François 1er gagne la bataille de Marignan en 1515. Louis XIV était surnommé le roi soleil.
CET-Graduate-Level-Syllabus-2022.pdf CET 10+2 Senior Secondary Level 2022 CET-Graduate-Level-Syllabus-2022 Exam Name Rajasthan Common Eligibility Test (CET) Exam Conducting Organization Rajasthan Staff Selection Board (RSMSSB) Types of CET Exam 2 Types (Graduate-level) NO. of attempts No restrictions Qualification Graduate Validity of CET Score One Years Exam Language English and Hindi Exam Mode Offline/(CBT) …
There is no excerpt because this is a protected post.
गुर्जर प्रतिहार वंश- राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई। प्रतिहार अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया। गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये। बादामी के …
1. राजस्थान में जो मंदिर मिलते हैं, उनमें सामान्यतः एक अलंकृत प्रवेश–द्वार होता है, उसे ‘तोरण–द्वार’ कहते हैं। 2. सभा–मण्डप– तोरण द्वार में प्रवेश करते ही उपमण्डप आता है। तत्पश्चात् विशाल आंगन आता है, जिसे ‘सभा–मण्डप’ कहते हैं। 3. मूल–नायक– मंदिर में प्रमुख प्रतिमा जिस देवता की होती है उसे ‘मूल–नायक’ कहते हैं। 4. गर्भ–गृह– सभा मण्डप के आगे मूल मंदिर का प्रवेश द्वार आता है। मूल मन्दिर को ‘गर्भ–गृह’ कहा जाता है, जिसमें ‘मूल–नायक’ की प्रतिमा होती है। 5. गर्भगृह के ऊपर अलंकृत अथवा स्वर्णमण्डित शिखर होता है। 6. प्रदक्षिणा पथ– गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा लगाने के लिए जो गलियारा होता है, उसे ‘पद–प्रदक्षिणा पथ’ कहा जाता है। 7. पंचायतन मंदिर- मूल नायक का मुख्य मंदिर चार अन्य लघु मंदिरों से परिवृत (घिरा) हो तो उसे “पंचायतन मंदिर” कहा जाता है। 8. तेरहवीं सदी तक राजपूतों के बल एवं शौर्य की भावना मन्दिर स्थापत्य में भी प्रतिबिम्बित होती है। अब मन्दिर के चारों ओर ऊँची दीवारें, बड़े दरवाजें तथा बुर्ज बनाकर दुर्ग स्थापत्य का आभास करवाया गया। इस प्रकार के मन्दिरों में रणकपुर का जैन मन्दिर, उदयपुर का एकलिंगजी का मन्दिर, नीलकण्ठ (कुंभलगढ़) मन्दिर प्रमुख हैं। 9. दुर्भाग्य से राजस्थान में सातवीं शताब्दी से पूर्व बने मन्दिरों के अवशेष ही प्राप्त होते हैं। 10. यहाँ मन्दिरों के विकास का काल सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य रहा। यह वह काल था, जब राजस्थान में अनेक मन्दिर बने। 11. इस काल में ही मन्दिरों की क्षेत्रीय शैलियाँ विकसित हुई। इस काल में विशाल एवं परिपूर्ण मन्दिरों का निर्माण हुआ। 12. लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ, “गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू” कहा गया है। 13. गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया। 14. गुर्जर–प्रतिहार अथवा महामारू शैली के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, किराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं। 15. इस क्रम को आगे बढ़ाने वालों में जालौर के गुर्जर प्रतिहार रहे और बाद में चौहानों, परमारों और गुहिलों ने मन्दिर शिल्प को समृद्ध बनाया। 16. इस युग के कुछ मन्दिर गुर्जर–प्रतिहार शैली की मूलधारा से अलग है, इनमें बाड़ौली का मन्दिर, नागदा में सास–बहू का मन्दिर और उदयपुर में जगत अम्बिका मन्दिर प्रमुख हैं। 17. इसी युग का सिरोही जिले में वर्माण का ब्रह्माण्ड स्वामी मन्दिर अपनी भग्नावस्था के बावजूद राजस्थान के सुन्दर मन्दिरों में से एक है। वर्माण का ब्रह्माण्ड स्वामी मन्दिर एक अलंकृत मंच पर अवस्थित है। 18. दक्षिण राजस्थान के इन मन्दिरों में क्रमबद्धता एवं एकसूत्रता का अभाव दिखाई देता है। इन मन्दिरों के शिल्प पर गुजरात का प्रभाव स्पष्टतः देखा जा सकता है। इन मन्दिरों में विभिन्न शैलीगत तत्वों एवं परस्पर विभिन्नताओं के दर्शन होते हैं। 19. ग्यारहवीं से तेरहवीं सदी के बीच निर्मित होने वाले राजस्थान के मन्दिरों को श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि यह मन्दिर–शिल्प के उत्कर्ष का काल था। 20. ग्यारहवीं से तेरहवीं सदी के बीच के इस युग में राजस्थान में काफी संख्या में बड़े और अलंकृत मन्दिर बने, जिन्हें सोलंकी या मारु गुर्जर शैली के अन्तर्गत रख जा सकता है। 21. इस शैली के मन्दिरों में ओसियाँ का सच्चिया माता मन्दिर, चित्तौड़ दुर्ग स्थित समिधेश्वर मन्दिर आदि प्रमुख है। 22. इस शैली के द्वार सजावटी है। खंभे अलंकृत, पतले, लम्बे और गोलाई लिये हुये है, गर्भगृह के रथ आगे बढ़े हुये है। ये मन्दिर ऊँची पीठिका पर बने हुये हैं। 23. राजस्थान में जैन धर्म के अनुयायियों ने अनेक जैन मन्दिर बनवायें, जो वास्तुकला की दृष्टि से अभूतपूर्व हैं। 24. राजस्थान के जैन मंदिरों में विशिष्ट तल विन्यास, संयोजन और स्वरूप का विकास हुआ जो इस धर्म की पूजा–पद्धति और मान्यताओं के अनुरूप था। 25. राजस्थान के जैन मन्दिरों में सर्वाधिक प्रसिद्ध देलवाड़ा (माउंट आबू) के मन्दिर हैं। इनके अतिरिक्त रणकपुर, ओसियाँ, जैसलमेर आदि स्थानों के जैन मन्दिर प्रसिद्ध हैं। 26. साथ ही राजस्थान के जैन मन्दिरों में पाली जिले में सेवाड़ी, घाणेराव, नाडौल–नारलाई, सिरोही जिले में वर्माण, झालावाड़ जिले में चाँदखेड़ी और झालरापाटन, बूँदी में केशोरायपाटन, करौली में श्रीमहावीर जी आदि स्थानों के जैन मन्दिर प्रमुख हैं। 27. बाड़मेर जिले में स्थित किराडू प्राचीन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का सोमेश्वर मन्दिर शिल्पकला के लिए विख्यात है। वीर रस, शृंगार रस, युद्ध, नृत्य, कामशात्र, रुप इत्यादि की भाव–भंगिमा युक्त मूर्तियाँ शिल्पकला की दृष्टि से अनूठी हैं। 28. किराडू को कामशास्त्र की मूर्तियों के कारण ‘राजस्थान का खजुराहो’ कहा जाता है। …
भारत में सामाजिक सुधार और धार्मिक आन्दोलन नाम संस्थापक स्थान वर्ष आत्मिय सभा राजाराम मोहन राय कलकत्ता 1815 युवा बंगाल आन्दोलन हेनरी विवियन ड़ेरोजियो कलकत्ता 1826 ब्रह्म समाज राजा राम मोहन राय कलकत्ता 1829 धर्म सभा राधाकांत देव कलकत्ता 1830 तत्वबोधिनी सभा देवेन्द्रनाथ टैगोर कलकत्ता 1839 परमहंस मंदिली दादोबा पंडरूंग …
Rajasthan Job 2022-23 Notifications/online apply Admit Card Answer Key Result LDC HIGH COURT RPSC 1st Grade RPSC 2nd Grade REET- 2022 Rajasthan Police Rajasthan Eligibility Examination for Teacher REET-2022 Question Booklet Exam-Shift BOOKLET – A BOOKLET – B BOOKLET – C BOOKLET – D Shift – I (L1) Click to …