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राजस्थान का स्वाधीनता संघर्ष
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प्रताप सिंह बारहठ को किस षड़यंत्र केस के तहत जेल भेजा गया?
व्याख्या : प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे। 01915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई। इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया। प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे। अंग्रेजों को सूचना मिल जाने के कारण यह योजना असफल हो गई। इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
व्याख्या : प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे। 01915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई। इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया। प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे। अंग्रेजों को सूचना मिल जाने के कारण यह योजना असफल हो गई। इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
व्याख्या : प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे। 01915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई। इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया। प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे। अंग्रेजों को सूचना मिल जाने के कारण यह योजना असफल हो गई। इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
उदयपुर में हिन्दी विद्यापीठ’ की स्थापना किसने की?
व्याख्या : राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी। इसका
प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
व्याख्या : राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी। इसका
प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
व्याख्या : राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी। इसका
प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
‘सम्प सभा’ की स्थापना किसने की थी?
व्याख्या : अधिकांश इतिहासकार एकमत नहीं है कि सम्प सभा की स्थापना करने वाले संन्यासी गोविंद गुरु
भील आंदोलन के प्रणेता गोविन्द गिरी ही थे अथवा नहीं। 20वीं सदी के प्रारंभ में सिरोही राज्य में सर्वप्रथम सम्प सभाओं का गठन हुआ।
और माना जाता है कि ‘सम्प सभा’ सभ्य सभा का ही विरुपित रूप है। सामाजिक सुधार प्रवृत्ति के कारण कतिपयलेखक सम्प सभा की स्थापनाको भ्रमवंश गोविन्द गिरी से जोड़ा. गोविन्द गिरी तथा भगत आंदोलन पर शोध करने वाले वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर वी.के. वाश ने प्रमाणित किया है कि भील नायक गोविन्द गिरी का सम्प सभाओं से प्रत्यक्ष संबंध नही था’
व्याख्या : अधिकांश इतिहासकार एकमत नहीं है कि सम्प सभा की स्थापना करने वाले संन्यासी गोविंद गुरु
भील आंदोलन के प्रणेता गोविन्द गिरी ही थे अथवा नहीं। 20वीं सदी के प्रारंभ में सिरोही राज्य में सर्वप्रथम सम्प सभाओं का गठन हुआ।
और माना जाता है कि ‘सम्प सभा’ सभ्य सभा का ही विरुपित रूप है। सामाजिक सुधार प्रवृत्ति के कारण कतिपयलेखक सम्प सभा की स्थापनाको भ्रमवंश गोविन्द गिरी से जोड़ा. गोविन्द गिरी तथा भगत आंदोलन पर शोध करने वाले वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर वी.के. वाश ने प्रमाणित किया है कि भील नायक गोविन्द गिरी का सम्प सभाओं से प्रत्यक्ष संबंध नही था’
व्याख्या : अधिकांश इतिहासकार एकमत नहीं है कि सम्प सभा की स्थापना करने वाले संन्यासी गोविंद गुरु
भील आंदोलन के प्रणेता गोविन्द गिरी ही थे अथवा नहीं। 20वीं सदी के प्रारंभ में सिरोही राज्य में सर्वप्रथम सम्प सभाओं का गठन हुआ।
और माना जाता है कि ‘सम्प सभा’ सभ्य सभा का ही विरुपित रूप है। सामाजिक सुधार प्रवृत्ति के कारण कतिपयलेखक सम्प सभा की स्थापनाको भ्रमवंश गोविन्द गिरी से जोड़ा. गोविन्द गिरी तथा भगत आंदोलन पर शोध करने वाले वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर वी.के. वाश ने प्रमाणित किया है कि भील नायक गोविन्द गिरी का सम्प सभाओं से प्रत्यक्ष संबंध नही था’
स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान निम्न में से कौनसी महिला जेल नहीं गई?
डूगरपुर जिले के गांव रास्तापाल की भील कन्या कालीबाई अपने शिक्षक सेंगाभाई जो रास्तापाल की पाठशाला में शिक्षक थे को पाठशाला बंद करवाने आई पुलिस के वाहन से घसीटे जाने से बचाने के प्रयास में पलिस की गोलियों से घायल होने के कारण 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हा गई। अंजना देवी-राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता/नेता तथा तरुण राजस्थान के संपादक रामनारायण चोधरा की पत्नी। मेवाड़ में जनजागृति हेतु आंदोलनों में भाग लिया और जेल गई। रतन शास्त्री-हीरालाल शास्त्री की पत्नी तथा स्त्री शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वनस्थली विद्यापीठ की संस्थापिका।
डूगरपुर जिले के गांव रास्तापाल की भील कन्या कालीबाई अपने शिक्षक सेंगाभाई जो रास्तापाल की पाठशाला में शिक्षक थे को पाठशाला बंद करवाने आई पुलिस के वाहन से घसीटे जाने से बचाने के प्रयास में पलिस की गोलियों से घायल होने के कारण 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हा गई। अंजना देवी-राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता/नेता तथा तरुण राजस्थान के संपादक रामनारायण चोधरा की पत्नी। मेवाड़ में जनजागृति हेतु आंदोलनों में भाग लिया और जेल गई। रतन शास्त्री-हीरालाल शास्त्री की पत्नी तथा स्त्री शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वनस्थली विद्यापीठ की संस्थापिका।
डूगरपुर जिले के गांव रास्तापाल की भील कन्या कालीबाई अपने शिक्षक सेंगाभाई जो रास्तापाल की पाठशाला में शिक्षक थे को पाठशाला बंद करवाने आई पुलिस के वाहन से घसीटे जाने से बचाने के प्रयास में पलिस की गोलियों से घायल होने के कारण 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हा गई। अंजना देवी-राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता/नेता तथा तरुण राजस्थान के संपादक रामनारायण चोधरा की पत्नी। मेवाड़ में जनजागृति हेतु आंदोलनों में भाग लिया और जेल गई। रतन शास्त्री-हीरालाल शास्त्री की पत्नी तथा स्त्री शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वनस्थली विद्यापीठ की संस्थापिका।
निम्न में से किसके द्वारा ‘वीर भारत सभा’ का गठन किया गया था?
व्याख्या ;वीर भारत समाज (1910):- इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी। वीर भारत सभा (1910):- इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
क्रांतिकारी गतिविधियों में व्यापक रूप से राजपूताने के नरेशों, सामंतों व नवयुवकों को शामिल करने के उद्देश्य से 1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ ने खरवा के राव गोपालसिंह के सहयोग से ‘वीर भारत सभा’ (अभिनव भारत की एक शाखा) की स्थापना की।
व्याख्या ;वीर भारत समाज (1910):- इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी। वीर भारत सभा (1910):- इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
क्रांतिकारी गतिविधियों में व्यापक रूप से राजपूताने के नरेशों, सामंतों व नवयुवकों को शामिल करने के उद्देश्य से 1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ ने खरवा के राव गोपालसिंह के सहयोग से ‘वीर भारत सभा’ (अभिनव भारत की एक शाखा) की स्थापना की।
व्याख्या ;वीर भारत समाज (1910):- इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी। वीर भारत सभा (1910):- इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
क्रांतिकारी गतिविधियों में व्यापक रूप से राजपूताने के नरेशों, सामंतों व नवयुवकों को शामिल करने के उद्देश्य से 1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ ने खरवा के राव गोपालसिंह के सहयोग से ‘वीर भारत सभा’ (अभिनव भारत की एक शाखा) की स्थापना की।
मेवाड़ पुकार”
व्याख्या :इस आंदोलन के मुख्य नेता ‘मोतीलाल तेजावत’ थे जो कि मेवाड़ रियासत के झाड़ोल ठिकाने के कामदार थे। झाड़ोल कोटला व गोगुन्दा से शुरू होकर यह आंदोलन डूंगरपुर बांसवाड़ा में फ़ैल गया था। तेजावत द्वारा मेवाड़ महाराणा को दी गई 21 सूत्री मांगों को मेवाड़ की पुकार कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने भीलों पर होने वाले अत्याचारों से भीलों को मक्ति दिलवान फतेहसिंह को 21 सत्री मांगें प्रस्तुत की; इसे ही मेवाड़ को पुकार’ कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने 1921 में आदिवासिया के लिए एका आदोलन’ (भोमट का भील आंदोलन – ‘वनवासी संघ’ की स्थापना भी की।
व्याख्या :इस आंदोलन के मुख्य नेता ‘मोतीलाल तेजावत’ थे जो कि मेवाड़ रियासत के झाड़ोल ठिकाने के कामदार थे। झाड़ोल कोटला व गोगुन्दा से शुरू होकर यह आंदोलन डूंगरपुर बांसवाड़ा में फ़ैल गया था। तेजावत द्वारा मेवाड़ महाराणा को दी गई 21 सूत्री मांगों को मेवाड़ की पुकार कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने भीलों पर होने वाले अत्याचारों से भीलों को मक्ति दिलवान फतेहसिंह को 21 सत्री मांगें प्रस्तुत की; इसे ही मेवाड़ को पुकार’ कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने 1921 में आदिवासिया के लिए एका आदोलन’ (भोमट का भील आंदोलन – ‘वनवासी संघ’ की स्थापना भी की।
व्याख्या :इस आंदोलन के मुख्य नेता ‘मोतीलाल तेजावत’ थे जो कि मेवाड़ रियासत के झाड़ोल ठिकाने के कामदार थे। झाड़ोल कोटला व गोगुन्दा से शुरू होकर यह आंदोलन डूंगरपुर बांसवाड़ा में फ़ैल गया था। तेजावत द्वारा मेवाड़ महाराणा को दी गई 21 सूत्री मांगों को मेवाड़ की पुकार कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने भीलों पर होने वाले अत्याचारों से भीलों को मक्ति दिलवान फतेहसिंह को 21 सत्री मांगें प्रस्तुत की; इसे ही मेवाड़ को पुकार’ कहा जाता है। मोतीलाल तेजावत ने 1921 में आदिवासिया के लिए एका आदोलन’ (भोमट का भील आंदोलन – ‘वनवासी संघ’ की स्थापना भी की।
शेखावटी ब्रिगेड का मुख्यालय कहाँ स्थित था?
व्याख्या : ब्रिटिश काल में शेखावटी ब्रिगेड का मुख्यालय झुंझुनूं में स्थित था। इसकी स्थापना का मख्य उदेश शेखावटी तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र में होने वाली लूट-मार को रोकना था। हेनरी फोस्टर इसके प्रथम कमांडर थे, जिनके नेतृत्व में 1835 ई. में इसकी स्थापना की गई।
व्याख्या : ब्रिटिश काल में शेखावटी ब्रिगेड का मुख्यालय झुंझुनूं में स्थित था। इसकी स्थापना का मख्य उदेश शेखावटी तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र में होने वाली लूट-मार को रोकना था। हेनरी फोस्टर इसके प्रथम कमांडर थे, जिनके नेतृत्व में 1835 ई. में इसकी स्थापना की गई।
व्याख्या : ब्रिटिश काल में शेखावटी ब्रिगेड का मुख्यालय झुंझुनूं में स्थित था। इसकी स्थापना का मख्य उदेश शेखावटी तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र में होने वाली लूट-मार को रोकना था। हेनरी फोस्टर इसके प्रथम कमांडर थे, जिनके नेतृत्व में 1835 ई. में इसकी स्थापना की गई।
स्वतंत्रता पूर्व राजस्थान का निम्नलिखित में से कौन सा समाचार-पत्र आर्य समाजी विचारधारा का संवर्धक नहीं था?
व्याख्या : 1882 ई. में अजमेर से निकलने वाले समाचार-पत्र राजपूताना गजट का प्रकाशन मौलवी मुराद अली ‘बीमार’ द्वारा किया जाता था। इसमें उन्होंने देशी राज्यों के हालात पर पैनी नजर रखी और उनके शासकों के अनुचित कार्यों की घोर निन्दा की। इस पत्र ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन भी किया।
व्याख्या : 1882 ई. में अजमेर से निकलने वाले समाचार-पत्र राजपूताना गजट का प्रकाशन मौलवी मुराद अली ‘बीमार’ द्वारा किया जाता था। इसमें उन्होंने देशी राज्यों के हालात पर पैनी नजर रखी और उनके शासकों के अनुचित कार्यों की घोर निन्दा की। इस पत्र ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन भी किया।
व्याख्या : 1882 ई. में अजमेर से निकलने वाले समाचार-पत्र राजपूताना गजट का प्रकाशन मौलवी मुराद अली ‘बीमार’ द्वारा किया जाता था। इसमें उन्होंने देशी राज्यों के हालात पर पैनी नजर रखी और उनके शासकों के अनुचित कार्यों की घोर निन्दा की। इस पत्र ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन भी किया।
सुमेलित कीजिए
संस्था स्थापना वर्ष
(A) राजस्थान सेवा संघ 1. 1921
(B) देश हितैषिणी सभा 2. 1927
(C) अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् 3. 1877
(D) चैंबर ऑफ प्रिन्सेज 4. 1919
व्याख्या : 1. राजस्थान सेवा संघ- 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई ।
माधाजा से प्ररित होकर वर्धा (महाराष्ट्र) में इसकी स्थापना की। इसका उद्देश्य जनता में राजना जाग्रात पदा करना और उकी कठिनाइयों को दर करना था। 1920 में इसे अजमेर में स्थानांतरित गया। राजस्थान सेवा संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी’ व अजमेर से ‘नवीन राजस्थान’ पत्र का प्रक किया।
व्याख्या : 1. राजस्थान सेवा संघ- 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई ।
माधाजा से प्ररित होकर वर्धा (महाराष्ट्र) में इसकी स्थापना की। इसका उद्देश्य जनता में राजना जाग्रात पदा करना और उकी कठिनाइयों को दर करना था। 1920 में इसे अजमेर में स्थानांतरित गया। राजस्थान सेवा संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी’ व अजमेर से ‘नवीन राजस्थान’ पत्र का प्रक किया।
व्याख्या : 1. राजस्थान सेवा संघ- 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई ।
माधाजा से प्ररित होकर वर्धा (महाराष्ट्र) में इसकी स्थापना की। इसका उद्देश्य जनता में राजना जाग्रात पदा करना और उकी कठिनाइयों को दर करना था। 1920 में इसे अजमेर में स्थानांतरित गया। राजस्थान सेवा संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी’ व अजमेर से ‘नवीन राजस्थान’ पत्र का प्रक किया।
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कौन से वर्ष में हुई ?
व्याख्या : 1919 ई. में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई। वर्धा में स्थापित यह संस्था 1920 में अजमेर स्थानांतरित हो गई। संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी तथा अजमेर से नवीन राजस्थान तथा तरुण राजस्थान नामक पत्र निकाले। बिजोलिया, बेगू, बूंदी तथा सिरोही किसान आंदोलनों को नेतृत्व दिया। इससे पूर्व गणेश शंकर विद्यार्थी, जमनालाल बजाज तथा विजयसिंह पथिक के प्रयासों से राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना हो चुकी थी।
व्याख्या : 1919 ई. में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई। वर्धा में स्थापित यह संस्था 1920 में अजमेर स्थानांतरित हो गई। संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी तथा अजमेर से नवीन राजस्थान तथा तरुण राजस्थान नामक पत्र निकाले। बिजोलिया, बेगू, बूंदी तथा सिरोही किसान आंदोलनों को नेतृत्व दिया। इससे पूर्व गणेश शंकर विद्यार्थी, जमनालाल बजाज तथा विजयसिंह पथिक के प्रयासों से राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना हो चुकी थी।
व्याख्या : 1919 ई. में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई। वर्धा में स्थापित यह संस्था 1920 में अजमेर स्थानांतरित हो गई। संघ ने वर्धा से राजस्थान केसरी तथा अजमेर से नवीन राजस्थान तथा तरुण राजस्थान नामक पत्र निकाले। बिजोलिया, बेगू, बूंदी तथा सिरोही किसान आंदोलनों को नेतृत्व दिया। इससे पूर्व गणेश शंकर विद्यार्थी, जमनालाल बजाज तथा विजयसिंह पथिक के प्रयासों से राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना हो चुकी थी।
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना किन उद्देश्यों के साथ की गई थी?
(i)शासक वजागीरदारों के उचित अधिकारों का समर्थन करना।
(ii) जागीरदारों और जनता में परस्पर मैत्री संबंध पैदा करना।
(iii) जनता की शिकायतों का निवारण करना।
(iv) रियासतों की जनता में राजनीतिक चेतना का प्रसार करना।
व्याख्या : 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई किंकर के द्वारा हुई। इस संघ का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं का निवारण करना था तथा जागीरदारों और राजाओं का अपनी प्रजा के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करवाना था। इस संघ के माध्यम से राजस्थान में राजनीतिक चेतना का प्रसार हुआ तथा इस संघ ने राजा व जागीरदारों के उचित अधिकारों का समर्थन भी किया।
व्याख्या : 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई किंकर के द्वारा हुई। इस संघ का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं का निवारण करना था तथा जागीरदारों और राजाओं का अपनी प्रजा के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करवाना था। इस संघ के माध्यम से राजस्थान में राजनीतिक चेतना का प्रसार हुआ तथा इस संघ ने राजा व जागीरदारों के उचित अधिकारों का समर्थन भी किया।
व्याख्या : 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी व हरिभाई किंकर के द्वारा हुई। इस संघ का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं का निवारण करना था तथा जागीरदारों और राजाओं का अपनी प्रजा के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करवाना था। इस संघ के माध्यम से राजस्थान में राजनीतिक चेतना का प्रसार हुआ तथा इस संघ ने राजा व जागीरदारों के उचित अधिकारों का समर्थन भी किया।
निम्नलिखित में से कौनसा युग्म सुमेलित नहीं है ?
व्याख्या : जोरावरसिंह बारहठ 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज पर पूर्व योजना के तहत बम फेंकने वाले थे, परंतु वह इस हमले में बच गया, इस प्रयास के विफल रहने पर गिरफ्तारी से बनी के लिए वह मध्यप्रदेश चले गये। जोरावर सिंह मृत्युपर्यन्नत (1939) अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। बरेली जेल में बनारस षड्यंत्र के अभियुक्त प्रताप सिंह बारहठ को रखा गया था। वही 22 वर्ष की छोटी आग में उनका देहान्त हुआ।
व्याख्या : जोरावरसिंह बारहठ 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज पर पूर्व योजना के तहत बम फेंकने वाले थे, परंतु वह इस हमले में बच गया, इस प्रयास के विफल रहने पर गिरफ्तारी से बनी के लिए वह मध्यप्रदेश चले गये। जोरावर सिंह मृत्युपर्यन्नत (1939) अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। बरेली जेल में बनारस षड्यंत्र के अभियुक्त प्रताप सिंह बारहठ को रखा गया था। वही 22 वर्ष की छोटी आग में उनका देहान्त हुआ।
व्याख्या : जोरावरसिंह बारहठ 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्ज पर पूर्व योजना के तहत बम फेंकने वाले थे, परंतु वह इस हमले में बच गया, इस प्रयास के विफल रहने पर गिरफ्तारी से बनी के लिए वह मध्यप्रदेश चले गये। जोरावर सिंह मृत्युपर्यन्नत (1939) अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। बरेली जेल में बनारस षड्यंत्र के अभियुक्त प्रताप सिंह बारहठ को रखा गया था। वही 22 वर्ष की छोटी आग में उनका देहान्त हुआ।
निम्न में से कौनसा कथन नारायणी देवी वर्मा के सन्दर्भ मे गलत है?
व्याख्या : नारायणी देवी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी।
व्याख्या : नारायणी देवी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी।
व्याख्या : नारायणी देवी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी।
राजस्थान सेवा संघ ने राजनीतिक जागरण फैलाने हेतु अजमेर से जिस साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया, वह था
व्याख्या : अजमेर से 1922 ई. में राजस्थान सेवा संघ द्वारा नवीन राजस्थान (समाचार पत्र) प्रकाशित होता था। इसके संपादक किशोरसिंह वर्मा थे। इस पत्र का संपादन विजयसिंह पथिक द्वारा भी किया गया। 1923 में इस समाचार पत्र को नाम बदलकर ‘तरुण राजस्थान’ के नये नाम से पुनः प्रारंभ किया गया। अलवर के नीमूचणा कांड पर सन् 1925 में संपादकीय लिख तरुण राजस्थान ने समूचे देश का इस घटना पर ध्यान आकर्षित किया।
व्याख्या : अजमेर से 1922 ई. में राजस्थान सेवा संघ द्वारा नवीन राजस्थान (समाचार पत्र) प्रकाशित होता था। इसके संपादक किशोरसिंह वर्मा थे। इस पत्र का संपादन विजयसिंह पथिक द्वारा भी किया गया। 1923 में इस समाचार पत्र को नाम बदलकर ‘तरुण राजस्थान’ के नये नाम से पुनः प्रारंभ किया गया। अलवर के नीमूचणा कांड पर सन् 1925 में संपादकीय लिख तरुण राजस्थान ने समूचे देश का इस घटना पर ध्यान आकर्षित किया।
व्याख्या : अजमेर से 1922 ई. में राजस्थान सेवा संघ द्वारा नवीन राजस्थान (समाचार पत्र) प्रकाशित होता था। इसके संपादक किशोरसिंह वर्मा थे। इस पत्र का संपादन विजयसिंह पथिक द्वारा भी किया गया। 1923 में इस समाचार पत्र को नाम बदलकर ‘तरुण राजस्थान’ के नये नाम से पुनः प्रारंभ किया गया। अलवर के नीमूचणा कांड पर सन् 1925 में संपादकीय लिख तरुण राजस्थान ने समूचे देश का इस घटना पर ध्यान आकर्षित किया।
कोटा में वीर भारत समाज की स्थापना की
व्याख्या : कोटा के प्रसिद्ध कवि व क्रांतिकारी बारहठ परिवार से संबंध रखने वाले केसरीसिंह बारह विजयसिंह पथिक व डॉ. गुरुदत्त, लक्ष्मीनारायण जालौरी व सोमदत्त लाहिड़ी के साथ 1910 में भारत समाज’ की स्थापना की।
व्याख्या : कोटा के प्रसिद्ध कवि व क्रांतिकारी बारहठ परिवार से संबंध रखने वाले केसरीसिंह बारह विजयसिंह पथिक व डॉ. गुरुदत्त, लक्ष्मीनारायण जालौरी व सोमदत्त लाहिड़ी के साथ 1910 में भारत समाज’ की स्थापना की।
व्याख्या : कोटा के प्रसिद्ध कवि व क्रांतिकारी बारहठ परिवार से संबंध रखने वाले केसरीसिंह बारह विजयसिंह पथिक व डॉ. गुरुदत्त, लक्ष्मीनारायण जालौरी व सोमदत्त लाहिड़ी के साथ 1910 में भारत समाज’ की स्थापना की।
1920 के दशक में राजनीतिक जागरण के उद्देश्य से किसने ब्यावर से ‘राजस्थान’ अखबार का प्रकाशन किया?
व्याख्या : ‘राजस्थान अखबार’ 1923 में ब्यावर से प्रकाशित होता था। इसके संपादक ऋषिदत्त मेहता थे। प्रारंभ में यह अजमेर से तत्पश्चात् बूंदी से निकाला गया। नमक सत्याग्रह के समय इनके पिता नित्यानंद नागर द्वारा प्रथम सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व किया गया। दूसरे जत्थे का नेतृत्व स्वयं ऋषिदत्त व तीसरे जत्थे का नेतृत्व उनकी पत्नी सत्यभामा ने किया। उदयपुर में प्रतिबंधित होने पर भी इस पत्र को ‘रियासती’ नाम से लोगों तक पहुँचाया गया।
व्याख्या : ‘राजस्थान अखबार’ 1923 में ब्यावर से प्रकाशित होता था। इसके संपादक ऋषिदत्त मेहता थे। प्रारंभ में यह अजमेर से तत्पश्चात् बूंदी से निकाला गया। नमक सत्याग्रह के समय इनके पिता नित्यानंद नागर द्वारा प्रथम सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व किया गया। दूसरे जत्थे का नेतृत्व स्वयं ऋषिदत्त व तीसरे जत्थे का नेतृत्व उनकी पत्नी सत्यभामा ने किया। उदयपुर में प्रतिबंधित होने पर भी इस पत्र को ‘रियासती’ नाम से लोगों तक पहुँचाया गया।
व्याख्या : ‘राजस्थान अखबार’ 1923 में ब्यावर से प्रकाशित होता था। इसके संपादक ऋषिदत्त मेहता थे। प्रारंभ में यह अजमेर से तत्पश्चात् बूंदी से निकाला गया। नमक सत्याग्रह के समय इनके पिता नित्यानंद नागर द्वारा प्रथम सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व किया गया। दूसरे जत्थे का नेतृत्व स्वयं ऋषिदत्त व तीसरे जत्थे का नेतृत्व उनकी पत्नी सत्यभामा ने किया। उदयपुर में प्रतिबंधित होने पर भी इस पत्र को ‘रियासती’ नाम से लोगों तक पहुँचाया गया।
कौनसी भील महिला राजस्थान की स्वतन्त्रता सेनानी थी? .. .
व्याख्या : पुनावाड़ा/रास्तापाल कांड – डूंगरपुर जिले के पुनवाड़ा ग्राम की पाठशाला में पढ़ने वाली तेरह वर्षीय बालिका कालीबाई द्वारा प्रजामंडल कार्यकर्ता नानाभाई खाँट, जिन्होंने जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के आदेशों के बावजूद पाठशाला को बंद नहीं किया था; इस पर पुलिस पाठशाला के शिक्षक सेंगाभाई को ट्रक के पीछे बाँधकर घसीटने लगी। उन्हें बचाने के प्रयास में कालीबाई पुलिस की गोलियों से घायल हुई (18 जून 1947 को) व 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार कालीबाई अपने शिक्षक को बचाने के प्रयास में शहीद हो गई।
व्याख्या : पुनावाड़ा/रास्तापाल कांड – डूंगरपुर जिले के पुनवाड़ा ग्राम की पाठशाला में पढ़ने वाली तेरह वर्षीय बालिका कालीबाई द्वारा प्रजामंडल कार्यकर्ता नानाभाई खाँट, जिन्होंने जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के आदेशों के बावजूद पाठशाला को बंद नहीं किया था; इस पर पुलिस पाठशाला के शिक्षक सेंगाभाई को ट्रक के पीछे बाँधकर घसीटने लगी। उन्हें बचाने के प्रयास में कालीबाई पुलिस की गोलियों से घायल हुई (18 जून 1947 को) व 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार कालीबाई अपने शिक्षक को बचाने के प्रयास में शहीद हो गई।
व्याख्या : पुनावाड़ा/रास्तापाल कांड – डूंगरपुर जिले के पुनवाड़ा ग्राम की पाठशाला में पढ़ने वाली तेरह वर्षीय बालिका कालीबाई द्वारा प्रजामंडल कार्यकर्ता नानाभाई खाँट, जिन्होंने जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के आदेशों के बावजूद पाठशाला को बंद नहीं किया था; इस पर पुलिस पाठशाला के शिक्षक सेंगाभाई को ट्रक के पीछे बाँधकर घसीटने लगी। उन्हें बचाने के प्रयास में कालीबाई पुलिस की गोलियों से घायल हुई (18 जून 1947 को) व 20 जून 1947 को उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार कालीबाई अपने शिक्षक को बचाने के प्रयास में शहीद हो गई।
राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके कार्य स्थल के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए
व्याख्या : बालमकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के जतिनदास’ के नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास बिस्सा का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खददर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास द्वारा सत्याग्रहियों द्वारा जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई, तब भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत मारवाड़ लोक परिषद् के आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हए उन्होंने भूख हड़ताल प्रारंभ कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
व्याख्या : बालमकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के जतिनदास’ के नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास बिस्सा का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खददर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास द्वारा सत्याग्रहियों द्वारा जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई, तब भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत मारवाड़ लोक परिषद् के आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हए उन्होंने भूख हड़ताल प्रारंभ कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
व्याख्या : बालमकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के जतिनदास’ के नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास बिस्सा का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खददर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास द्वारा सत्याग्रहियों द्वारा जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई, तब भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत मारवाड़ लोक परिषद् के आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हए उन्होंने भूख हड़ताल प्रारंभ कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
नारायणी देवी वर्मा किस वर्ष राज्यसभा की सदस्य बन गई थीं?
व्याख्या : नारायणीदेवी वर्मा मारवाड प्रजामंडल के प्रमुख नेता माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी। वे 1970 से 1976 तक राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य थीं।
व्याख्या : नारायणीदेवी वर्मा मारवाड प्रजामंडल के प्रमुख नेता माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी। वे 1970 से 1976 तक राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य थीं।
व्याख्या : नारायणीदेवी वर्मा मारवाड प्रजामंडल के प्रमुख नेता माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी थी। वे 1970 से 1976 तक राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य थीं।
अजमेर में राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना की गई थी
व्याख्या : राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्धा में 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी तथा
हरिभाई किंकर ने मिलकर की थी। इसका प्रमुख उद्देश्य जनता में राजनीतिक चेतना जागृत उनकी समस्याओं का निराकरण करना था।
व्याख्या : राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्धा में 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी तथा
हरिभाई किंकर ने मिलकर की थी। इसका प्रमुख उद्देश्य जनता में राजनीतिक चेतना जागृत उनकी समस्याओं का निराकरण करना था।
व्याख्या : राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्धा में 1919 ई. में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी तथा
हरिभाई किंकर ने मिलकर की थी। इसका प्रमुख उद्देश्य जनता में राजनीतिक चेतना जागृत उनकी समस्याओं का निराकरण करना था।
राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके कार्यस्थल के सम्बन्ध में गलत युग्म को पहचानिए
व्याख्या : गोपीलाल यादव भरतपुर रियासत से संबंधित स्वतंत्रता सेनानी थे, इन्होंने ठाकुर देशराज के साथ मिलकर भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना नवंबर 1928 ई. में भरतपुर में की थी।
व्याख्या : गोपीलाल यादव भरतपुर रियासत से संबंधित स्वतंत्रता सेनानी थे, इन्होंने ठाकुर देशराज के साथ मिलकर भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना नवंबर 1928 ई. में भरतपुर में की थी।
व्याख्या : गोपीलाल यादव भरतपुर रियासत से संबंधित स्वतंत्रता सेनानी थे, इन्होंने ठाकुर देशराज के साथ मिलकर भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना नवंबर 1928 ई. में भरतपुर में की थी।
निम्न में से कौन सा कथन बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह के विषय में सत्य नहीं है?
व्याख्या : महाराजा गंगासिंह ने 1917 में रोम से जो आलेख (रोम नोट) भारत सचिव को भेजा था। उसमें भी
रियासतों के शासकों की परिषद बनाने की संस्तुति की थी। 1930 के गोलमेज सम्मेलन में बीकानेर महाराजा के अतिरिक्त अलवर के शासक जयसिंह तथा धौलपुर के शासक उदयभान सिंह ने भा भाग लिया था।
बीकानेर में गजशाही नामक चांदी का सिक्का चलता था। जो महाराजा गजसिंह ने चलाया था राजपताने की रियासतों के सिक्कों के विषय पर विलियम विल्फ्रेड वैब महोदय ने 1899 – करेंसीज ऑफ दी हिन्दू स्टेटस ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी थी।
व्याख्या : महाराजा गंगासिंह ने 1917 में रोम से जो आलेख (रोम नोट) भारत सचिव को भेजा था। उसमें भी
रियासतों के शासकों की परिषद बनाने की संस्तुति की थी। 1930 के गोलमेज सम्मेलन में बीकानेर महाराजा के अतिरिक्त अलवर के शासक जयसिंह तथा धौलपुर के शासक उदयभान सिंह ने भा भाग लिया था।
बीकानेर में गजशाही नामक चांदी का सिक्का चलता था। जो महाराजा गजसिंह ने चलाया था राजपताने की रियासतों के सिक्कों के विषय पर विलियम विल्फ्रेड वैब महोदय ने 1899 – करेंसीज ऑफ दी हिन्दू स्टेटस ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी थी।
व्याख्या : महाराजा गंगासिंह ने 1917 में रोम से जो आलेख (रोम नोट) भारत सचिव को भेजा था। उसमें भी
रियासतों के शासकों की परिषद बनाने की संस्तुति की थी। 1930 के गोलमेज सम्मेलन में बीकानेर महाराजा के अतिरिक्त अलवर के शासक जयसिंह तथा धौलपुर के शासक उदयभान सिंह ने भा भाग लिया था।
बीकानेर में गजशाही नामक चांदी का सिक्का चलता था। जो महाराजा गजसिंह ने चलाया था राजपताने की रियासतों के सिक्कों के विषय पर विलियम विल्फ्रेड वैब महोदय ने 1899 – करेंसीज ऑफ दी हिन्दू स्टेटस ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी थी।
निम्नलिखित युग्मों में से राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित गलत युग्म को पहचानिए
व्याख्या : अर्जुनलाल सेठी की कर्मभूमि जयपुर व अजमेर रही।
व्याख्या : अर्जुनलाल सेठी की कर्मभूमि जयपुर व अजमेर रही।
व्याख्या : अर्जुनलाल सेठी की कर्मभूमि जयपुर व अजमेर रही।
बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने प्रसिद्ध ‘रोम नोट’ तैयार किया था। इस नोट की विषयवस्तु थी
व्याख्या : 1917 में बीकानेर नरेश गंगासिंह साम्राज्यिक युद्ध मंत्रिमंडल (इम्पीरियल वार कैबिनेट) की मीटिंग में भाग लेने इंग्लैंड गए। वहीं भारत सचिव ने गंगासिंह से आग्रह किया कि वे भारत की राजनीतिक समस्या पर अपने विचार औपचारिक रूप से प्रस्तुत करें। इंग्लैंड से लौटते समय रोम से महाराजा गंगासिंह ने भारत की समस्याओं तथा संभावित हल पर एक विस्तृत आलेख भारत सचिव को भेजा जो कि रोम नोट कहलाता है। इसी रोम नोट में देशी रियासतों के शासकों का एक संघ बनाने का सुझाव भी दिया गया था।
व्याख्या : 1917 में बीकानेर नरेश गंगासिंह साम्राज्यिक युद्ध मंत्रिमंडल (इम्पीरियल वार कैबिनेट) की मीटिंग में भाग लेने इंग्लैंड गए। वहीं भारत सचिव ने गंगासिंह से आग्रह किया कि वे भारत की राजनीतिक समस्या पर अपने विचार औपचारिक रूप से प्रस्तुत करें। इंग्लैंड से लौटते समय रोम से महाराजा गंगासिंह ने भारत की समस्याओं तथा संभावित हल पर एक विस्तृत आलेख भारत सचिव को भेजा जो कि रोम नोट कहलाता है। इसी रोम नोट में देशी रियासतों के शासकों का एक संघ बनाने का सुझाव भी दिया गया था।
व्याख्या : 1917 में बीकानेर नरेश गंगासिंह साम्राज्यिक युद्ध मंत्रिमंडल (इम्पीरियल वार कैबिनेट) की मीटिंग में भाग लेने इंग्लैंड गए। वहीं भारत सचिव ने गंगासिंह से आग्रह किया कि वे भारत की राजनीतिक समस्या पर अपने विचार औपचारिक रूप से प्रस्तुत करें। इंग्लैंड से लौटते समय रोम से महाराजा गंगासिंह ने भारत की समस्याओं तथा संभावित हल पर एक विस्तृत आलेख भारत सचिव को भेजा जो कि रोम नोट कहलाता है। इसी रोम नोट में देशी रियासतों के शासकों का एक संघ बनाने का सुझाव भी दिया गया था।
श्यामजी कृष्ण वर्मा के बारे में निम्नांकित में से कौन से कथन सत्य हैं ?
(i) उन्होंने अजमेर में वकालत की।
(ii) वे अजमेर म्युनिसिपल कमेटी के प्रथम निर्वाचित भारतीय चेयरमैन थे।
(iii) उन्होंने ब्यावर में कृष्णा कॉटन मिल की स्थापना में सहयोग किया।
(iv) उन्होंने मेवाड़ के महाराणा के सचिव के रूप में काम किया।
व्याख्या : श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1888 ई. में अजमेर में वकालत की थी।
व्याख्या : श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1888 ई. में अजमेर में वकालत की थी।
व्याख्या : श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1888 ई. में अजमेर में वकालत की थी।
‘चिड़ावा का गांधी’ किसे कहा गया है ?
प्यारेलाल गुप्ता गांधीवादी विचारधारा वाले शिक्षक थे। वे अलीगढ़ से 1922 में चिड़ावा आए थे। इन्होंने अमर सेवा समिति की स्थापना करके स्कूल खोला था। उस वक्त उन्हें चिड़ावा का गांधी कहा गया।
प्यारेलाल गुप्ता गांधीवादी विचारधारा वाले शिक्षक थे। वे अलीगढ़ से 1922 में चिड़ावा आए थे। इन्होंने अमर सेवा समिति की स्थापना करके स्कूल खोला था। उस वक्त उन्हें चिड़ावा का गांधी कहा गया।
प्यारेलाल गुप्ता गांधीवादी विचारधारा वाले शिक्षक थे। वे अलीगढ़ से 1922 में चिड़ावा आए थे। इन्होंने अमर सेवा समिति की स्थापना करके स्कूल खोला था। उस वक्त उन्हें चिड़ावा का गांधी कहा गया।
राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होने वाली राजस्थान की पहली महिला कौन थी?
व्याख्या : श्रीमती अंजना देवी चौधरी स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण चौधरी की पत्नी थी। इन्होंने बिजौलिया तथा
बेगूं किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया। इन्होंने बिजौलिया में 500 महिलाओं के जलस का नेतृत्व कर गिरफ्तारी दी।
नगेन्द्र बाला-कोटा की स्वतंत्रता सेनानी। 1941-47 तक किसान आंदोलन में सक्रिय रहीं। राजस्थान विधानसभा की सदस्य रही।
व्याख्या : श्रीमती अंजना देवी चौधरी स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण चौधरी की पत्नी थी। इन्होंने बिजौलिया तथा
बेगूं किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया। इन्होंने बिजौलिया में 500 महिलाओं के जलस का नेतृत्व कर गिरफ्तारी दी।
नगेन्द्र बाला-कोटा की स्वतंत्रता सेनानी। 1941-47 तक किसान आंदोलन में सक्रिय रहीं। राजस्थान विधानसभा की सदस्य रही।
व्याख्या : श्रीमती अंजना देवी चौधरी स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण चौधरी की पत्नी थी। इन्होंने बिजौलिया तथा
बेगूं किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया। इन्होंने बिजौलिया में 500 महिलाओं के जलस का नेतृत्व कर गिरफ्तारी दी।
नगेन्द्र बाला-कोटा की स्वतंत्रता सेनानी। 1941-47 तक किसान आंदोलन में सक्रिय रहीं। राजस्थान विधानसभा की सदस्य रही।
जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना किसने की?
व्याख्या : राजस्थान में क्रांतिकारियों की पाठशाला के रूप में विख्यात श्री जैन वर्धमान विद्यालय की स्थापना जयपुर में स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुनलाल सेठी ने 1907 ई. में की थी। पाठशाला एवं एक छात्रावास जैन एज्युकेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के तहत खोले गए थे।
व्याख्या : राजस्थान में क्रांतिकारियों की पाठशाला के रूप में विख्यात श्री जैन वर्धमान विद्यालय की स्थापना जयपुर में स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुनलाल सेठी ने 1907 ई. में की थी। पाठशाला एवं एक छात्रावास जैन एज्युकेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के तहत खोले गए थे।
व्याख्या : राजस्थान में क्रांतिकारियों की पाठशाला के रूप में विख्यात श्री जैन वर्धमान विद्यालय की स्थापना जयपुर में स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुनलाल सेठी ने 1907 ई. में की थी। पाठशाला एवं एक छात्रावास जैन एज्युकेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के तहत खोले गए थे।
कालीबाई भील निवासी थी
डूंगरपुर जिले के गाँव रास्तापाल का निवासी भील कन्या कालीबाई रास्तापाल की पाठशाला में पढ़ती थी. जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के फरमान के बावजूद जब रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं की गई तो पुलिस सुपरीडेंटटेड एवं मजिस्ट्रेट दल बल सहित पाठशाला बंद कराने पहुचे
डूंगरपुर जिले के गाँव रास्तापाल का निवासी भील कन्या कालीबाई रास्तापाल की पाठशाला में पढ़ती थी. जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के फरमान के बावजूद जब रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं की गई तो पुलिस सुपरीडेंटटेड एवं मजिस्ट्रेट दल बल सहित पाठशाला बंद कराने पहुचे
डूंगरपुर जिले के गाँव रास्तापाल का निवासी भील कन्या कालीबाई रास्तापाल की पाठशाला में पढ़ती थी. जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के फरमान के बावजूद जब रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं की गई तो पुलिस सुपरीडेंटटेड एवं मजिस्ट्रेट दल बल सहित पाठशाला बंद कराने पहुचे