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Congratulations!!!" वैदिक सभ्यता "
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वैदिक सभ्यता
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Question 1 of 48
1. Question
1 points
प्रसिद्ध दशराज्ञ (दस राजाओं का युद्ध) का उल्लेख है
Correct
1 / 1Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के सातवें मण्डल में वर्णित दसराज्ञ युद्ध परुष्णी अर्थात् रावी नदी के तट पर लड़ा गया।
दसराज्ञ युद्ध में एक ओर राजा सुदास तथा दूसरी ओर दस राजाओं का संघ था।
दसराज्ञ युद्ध में सुदास की विजय हुई।।
Incorrect
/ 1 Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के सातवें मण्डल में वर्णित दसराज्ञ युद्ध परुष्णी अर्थात् रावी नदी के तट पर लड़ा गया।
दसराज्ञ युद्ध में एक ओर राजा सुदास तथा दूसरी ओर दस राजाओं का संघ था।
दसराज्ञ युद्ध में सुदास की विजय हुई।।
Unattempted
/ 1 Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के सातवें मण्डल में वर्णित दसराज्ञ युद्ध परुष्णी अर्थात् रावी नदी के तट पर लड़ा गया।
दसराज्ञ युद्ध में एक ओर राजा सुदास तथा दूसरी ओर दस राजाओं का संघ था।
दसराज्ञ युद्ध में सुदास की विजय हुई।।
Question 2 of 48
2. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस वैदिक सूक्त में चार वर्षों के उद्गम का संदर्भ मिलता है?
Correct
1 / 1Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में सर्वप्रथम चारों वर्गों का उल्लेख मिलता है।
पुरुष सूक्त में कहा गया है कि आदि पुरूष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय उरू से वैश्य एवं पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई।
Incorrect
/ 1 Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में सर्वप्रथम चारों वर्गों का उल्लेख मिलता है।
पुरुष सूक्त में कहा गया है कि आदि पुरूष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय उरू से वैश्य एवं पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई।
Unattempted
/ 1 Points
व्याख्या-
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में सर्वप्रथम चारों वर्गों का उल्लेख मिलता है।
पुरुष सूक्त में कहा गया है कि आदि पुरूष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय उरू से वैश्य एवं पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई।
Question 3 of 48
3. Question
1 points
निम्नलिखित प्राचीन जनजातियों पर विचार कीजिए
अंग
गांधारी
वात्य
उपर्युक्त में से कौन-सी जनजाति/जनजातियां वैदिक काल में अस्तित्व में थी/थीं?
Correct
1 / 1Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Incorrect
/ 1 Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Unattempted
/ 1 Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Question 4 of 48
4. Question
1 points
किस देवी/देवता को गायत्री मंत्र समर्पित है?
Correct
व्याख्या-
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में विख्यात गायत्री मंत्र अन्तर्विष्ट है
गायत्री मंत्र सवित्/सावित्री देवता को समर्पित है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल का संकलन विश्वामित्र ने किया था।
Incorrect
व्याख्या-
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में विख्यात गायत्री मंत्र अन्तर्विष्ट है
गायत्री मंत्र सवित्/सावित्री देवता को समर्पित है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल का संकलन विश्वामित्र ने किया था।
Unattempted
व्याख्या-
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में विख्यात गायत्री मंत्र अन्तर्विष्ट है
गायत्री मंत्र सवित्/सावित्री देवता को समर्पित है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल का संकलन विश्वामित्र ने किया था।
Question 5 of 48
5. Question
1 points
उत्तर वैदिक काल में, निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकारी करों का संग्राहक होता था?
Correct
व्याख्या-
यजुर्वेद की संहिताओं तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में कुछ पदाधिकारियों का नाम मिलता है
पदाधिकारियों को रत्निन कहा जाता था। ये राजपरिषद के सदस्य थे।
रत्नियों की सूची में राजा के सम्बन्धी, मंत्री, विभागाध्यक्ष एवं दरबारीगण आते थे।
प्रथम श्रेणी में राजा की पटरानी और प्रिय रानी थी। पुरोहितों का नाम भी रत्नियों की सूची में शामिल था।
विभागाध्यक्षों में सेनानी (सेनापति),
सूत (रथ सेना का नायक),
ग्रामीण (गांव का मुखिया),
संग्रहीता (कोषाध्यक्ष)
भागदुध (अर्थ मंत्री अर्थात करों का संग्राहक)
दरबारी श्रेणी में क्षता (दैवारिक), अक्षवाप (आय-व्यय गणनाध्यक्ष अथवा द्यूतक्रीड़ा में राजा का साथी)
पालागल (विदूषक) सम्मिलित थे।
वाजपेय यज्ञ के समय राजा स्वयं रत्नियों के द्वारा जाता था तथा उन्हें रत्नबलि प्रदान करता था।
Incorrect
व्याख्या-
यजुर्वेद की संहिताओं तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में कुछ पदाधिकारियों का नाम मिलता है
पदाधिकारियों को रत्निन कहा जाता था। ये राजपरिषद के सदस्य थे।
रत्नियों की सूची में राजा के सम्बन्धी, मंत्री, विभागाध्यक्ष एवं दरबारीगण आते थे।
प्रथम श्रेणी में राजा की पटरानी और प्रिय रानी थी। पुरोहितों का नाम भी रत्नियों की सूची में शामिल था।
विभागाध्यक्षों में सेनानी (सेनापति),
सूत (रथ सेना का नायक),
ग्रामीण (गांव का मुखिया),
संग्रहीता (कोषाध्यक्ष)
भागदुध (अर्थ मंत्री अर्थात करों का संग्राहक)
दरबारी श्रेणी में क्षता (दैवारिक), अक्षवाप (आय-व्यय गणनाध्यक्ष अथवा द्यूतक्रीड़ा में राजा का साथी)
पालागल (विदूषक) सम्मिलित थे।
वाजपेय यज्ञ के समय राजा स्वयं रत्नियों के द्वारा जाता था तथा उन्हें रत्नबलि प्रदान करता था।
Unattempted
व्याख्या-
यजुर्वेद की संहिताओं तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में कुछ पदाधिकारियों का नाम मिलता है
पदाधिकारियों को रत्निन कहा जाता था। ये राजपरिषद के सदस्य थे।
रत्नियों की सूची में राजा के सम्बन्धी, मंत्री, विभागाध्यक्ष एवं दरबारीगण आते थे।
प्रथम श्रेणी में राजा की पटरानी और प्रिय रानी थी। पुरोहितों का नाम भी रत्नियों की सूची में शामिल था।
विभागाध्यक्षों में सेनानी (सेनापति),
सूत (रथ सेना का नायक),
ग्रामीण (गांव का मुखिया),
संग्रहीता (कोषाध्यक्ष)
भागदुध (अर्थ मंत्री अर्थात करों का संग्राहक)
दरबारी श्रेणी में क्षता (दैवारिक), अक्षवाप (आय-व्यय गणनाध्यक्ष अथवा द्यूतक्रीड़ा में राजा का साथी)
पालागल (विदूषक) सम्मिलित थे।
वाजपेय यज्ञ के समय राजा स्वयं रत्नियों के द्वारा जाता था तथा उन्हें रत्नबलि प्रदान करता था।
Question 6 of 48
6. Question
1 points
कठ उपनिषद निम्न में से किस एक से सम्बन्धित है
Correct
व्याख्या-
उपनिषद, वेदों के अन्तिम भाग है
उपनिषदो में आत्मा और ब्रहम संबंधित गूढ़ दार्शनिक विचारों का विवेचन है।
कठ उपनिषद, यजुर्वेद से संबंधित हैजिसमें यम और नचिकता के बीच प्रसिद्ध संवाद का वर्णन है।
कठ उपनिषद उपनिषद में आत्मा को पुरूष कहा गया है।
Incorrect
व्याख्या-
उपनिषद, वेदों के अन्तिम भाग है
उपनिषदो में आत्मा और ब्रहम संबंधित गूढ़ दार्शनिक विचारों का विवेचन है।
कठ उपनिषद, यजुर्वेद से संबंधित हैजिसमें यम और नचिकता के बीच प्रसिद्ध संवाद का वर्णन है।
कठ उपनिषद उपनिषद में आत्मा को पुरूष कहा गया है।
Unattempted
व्याख्या-
उपनिषद, वेदों के अन्तिम भाग है
उपनिषदो में आत्मा और ब्रहम संबंधित गूढ़ दार्शनिक विचारों का विवेचन है।
कठ उपनिषद, यजुर्वेद से संबंधित हैजिसमें यम और नचिकता के बीच प्रसिद्ध संवाद का वर्णन है।
कठ उपनिषद उपनिषद में आत्मा को पुरूष कहा गया है।
Question 7 of 48
7. Question
1 points
निम्न कथनों पर विचार कीजिये:
न चुकाये गये ऋण के बदले में दासत्व की प्रथा वैदिक काल से लेकर बुद्ध के समय तक प्रचलन में नहीं थी।
वैदिक काल में ऊँची जातियों की स्त्रियों को पति की मृत्यु के उपरान्त न तो सम्पत्ति धारण करने का अधिकार था, न ही पुनर्विवाह का अधिकार था।
उपर्यक्त कथनों में कौन सा से सही है?
Correct
व्याख्या-
न चुकाये गये ऋण के बदले में बने दास ‘दण्डप्रजीतदास’ कहा जाता था
दण्डप्रजीतदास का सर्वप्रथम उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
दासत्व की यह प्रथा वैदिक काल से लेकर बुद्ध के समय तक प्रचलन में नहीं थी।
वैदिक काल में ऊँची जातियों की स्त्रियों को पति की मृत्यु के उपरान्त न तो सम्पत्ति धारण करने का अधिकार था और न ही पुनर्विवाह का अधिकार था।
वैदिक काल में विधवा पुनर्विवाह जन सामान्य में प्रचलित था
विधवा सम्पत्ति का अधिकार सर्वप्रथम गप्तकाल में रचित याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता
Incorrect
व्याख्या-
न चुकाये गये ऋण के बदले में बने दास ‘दण्डप्रजीतदास’ कहा जाता था
दण्डप्रजीतदास का सर्वप्रथम उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
दासत्व की यह प्रथा वैदिक काल से लेकर बुद्ध के समय तक प्रचलन में नहीं थी।
वैदिक काल में ऊँची जातियों की स्त्रियों को पति की मृत्यु के उपरान्त न तो सम्पत्ति धारण करने का अधिकार था और न ही पुनर्विवाह का अधिकार था।
वैदिक काल में विधवा पुनर्विवाह जन सामान्य में प्रचलित था
विधवा सम्पत्ति का अधिकार सर्वप्रथम गप्तकाल में रचित याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता
Unattempted
व्याख्या-
न चुकाये गये ऋण के बदले में बने दास ‘दण्डप्रजीतदास’ कहा जाता था
दण्डप्रजीतदास का सर्वप्रथम उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
दासत्व की यह प्रथा वैदिक काल से लेकर बुद्ध के समय तक प्रचलन में नहीं थी।
वैदिक काल में ऊँची जातियों की स्त्रियों को पति की मृत्यु के उपरान्त न तो सम्पत्ति धारण करने का अधिकार था और न ही पुनर्विवाह का अधिकार था।
वैदिक काल में विधवा पुनर्विवाह जन सामान्य में प्रचलित था
विधवा सम्पत्ति का अधिकार सर्वप्रथम गप्तकाल में रचित याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता
Question 8 of 48
8. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस एक में सर्वप्रथम ‘गोत्र’ शब्द का प्रयोग कुल के अर्थ में किया गया है
Correct
व्याख्या-
गोत्र प्रथा उत्तर वैदिक काल में प्रचलित हुई जहाँ इसका अर्थ एक ही मूल पुरूष कुल से उत्पन्न समुदाय से था।
‘गोत्र’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जहाँ इसका अर्थ है- गोष्ठ ।
गोष्ठ -वह स्थान जहाँ समूचे कुल का गोधन पाला जाता था।
अथर्ववेद में सर्वप्रथम ‘गोत्र’ शब्द का प्रयोग कुल या परिवार अर्थ में किया गया है।
Incorrect
व्याख्या-
गोत्र प्रथा उत्तर वैदिक काल में प्रचलित हुई जहाँ इसका अर्थ एक ही मूल पुरूष कुल से उत्पन्न समुदाय से था।
‘गोत्र’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जहाँ इसका अर्थ है- गोष्ठ ।
गोष्ठ -वह स्थान जहाँ समूचे कुल का गोधन पाला जाता था।
अथर्ववेद में सर्वप्रथम ‘गोत्र’ शब्द का प्रयोग कुल या परिवार अर्थ में किया गया है।
Unattempted
व्याख्या-
गोत्र प्रथा उत्तर वैदिक काल में प्रचलित हुई जहाँ इसका अर्थ एक ही मूल पुरूष कुल से उत्पन्न समुदाय से था।
‘गोत्र’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जहाँ इसका अर्थ है- गोष्ठ ।
गोष्ठ -वह स्थान जहाँ समूचे कुल का गोधन पाला जाता था।
अथर्ववेद में सर्वप्रथम ‘गोत्र’ शब्द का प्रयोग कुल या परिवार अर्थ में किया गया है।
Question 9 of 48
9. Question
1 points
प्राचीन भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में पारिप्लव-आख्यान क्या है?
Correct
व्याख्या-
प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में पारिप्लव आख्यान बलियों के संदर्भ में किये जाने वाले आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ थे।
वैदिक काल में बलि दिये जाने वाले पशुओं को यज्ञ वेदी के पास बने स्तम्भों में बाँधा जाता था जिसे ‘युप’ कहा जाता था।
यज्ञ बलियों के समय आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ किये जाते थे जिन्हे ‘पारिप्लव-आख्यान’ कहा जाता था।
सर्वाधिक यूपों का निर्माण पुरूषमेघ यक्ष में किया जाता था।
Incorrect
व्याख्या-
प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में पारिप्लव आख्यान बलियों के संदर्भ में किये जाने वाले आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ थे।
वैदिक काल में बलि दिये जाने वाले पशुओं को यज्ञ वेदी के पास बने स्तम्भों में बाँधा जाता था जिसे ‘युप’ कहा जाता था।
यज्ञ बलियों के समय आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ किये जाते थे जिन्हे ‘पारिप्लव-आख्यान’ कहा जाता था।
सर्वाधिक यूपों का निर्माण पुरूषमेघ यक्ष में किया जाता था।
Unattempted
व्याख्या-
प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में पारिप्लव आख्यान बलियों के संदर्भ में किये जाने वाले आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ थे।
वैदिक काल में बलि दिये जाने वाले पशुओं को यज्ञ वेदी के पास बने स्तम्भों में बाँधा जाता था जिसे ‘युप’ कहा जाता था।
यज्ञ बलियों के समय आख्यान कथाओं के सस्वर पाठ किये जाते थे जिन्हे ‘पारिप्लव-आख्यान’ कहा जाता था।
सर्वाधिक यूपों का निर्माण पुरूषमेघ यक्ष में किया जाता था।
Question 10 of 48
10. Question
1 points
संहिता क्या है?
Correct
व्याख्या –
संहिता से तात्पर्य वेदों से है।
वेदों में श्लोकों के रूप में विभिन्न विषयों पर उल्लेख मिलता है।
वेदों में सम्मिलित रूप से लिखे गये श्लोक (Hymns) ही संहिता को प्रतिम्बिबित करते हैं।
Incorrect
व्याख्या –
संहिता से तात्पर्य वेदों से है।
वेदों में श्लोकों के रूप में विभिन्न विषयों पर उल्लेख मिलता है।
वेदों में सम्मिलित रूप से लिखे गये श्लोक (Hymns) ही संहिता को प्रतिम्बिबित करते हैं।
Unattempted
व्याख्या –
संहिता से तात्पर्य वेदों से है।
वेदों में श्लोकों के रूप में विभिन्न विषयों पर उल्लेख मिलता है।
वेदों में सम्मिलित रूप से लिखे गये श्लोक (Hymns) ही संहिता को प्रतिम्बिबित करते हैं।
Question 11 of 48
11. Question
1 points
ऋग्वेद कालीन आर्यों से सम्बन्धित कौनसा कथन असत्य है?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, द्यूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, द्यूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, द्यूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Question 12 of 48
12. Question
1 points
पूर्व वैदिक समाज किस रूप में संगठित था?
Correct
व्याख्या –
पूर्व वैदिक काल अर्थात् ऋग्वैदिक समाज जन के रूप में संगठित था।
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, चूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Incorrect
व्याख्या –
पूर्व वैदिक काल अर्थात् ऋग्वैदिक समाज जन के रूप में संगठित था।
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, चूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Unattempted
व्याख्या –
पूर्व वैदिक काल अर्थात् ऋग्वैदिक समाज जन के रूप में संगठित था।
ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक जीवन की प्राथामिक इकाई परिवार थी।
ऋग्वैदिक समाज के लोग गांवों के अन्तर्गत कबीलाई रूप में निवास करते थे।
विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों यथा-रथ दौड़, चूत क्रीड़ा आदि का उल्लेख ऋग्वैदिक काल के अन्तर्गत मिलता है।
ऋग्वैदिक काल में बहुविवाह का प्रचलन था।
Question 13 of 48
13. Question
1 points
ऋग्वेद है
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है।
ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त, 10580 ऋचाएं या मंत्र हैं।
ऋग्वेद में ऋषियों द्वारा देवताओं की स्तुतियों का संग्रह है।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है।
ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त, 10580 ऋचाएं या मंत्र हैं।
ऋग्वेद में ऋषियों द्वारा देवताओं की स्तुतियों का संग्रह है।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है।
ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त, 10580 ऋचाएं या मंत्र हैं।
ऋग्वेद में ऋषियों द्वारा देवताओं की स्तुतियों का संग्रह है।
Question 14 of 48
14. Question
1 points
ऋग्वैदिक काल में पत्नी थी
Correct
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज पुरुष प्रधान था
ऋग्वैदिक समाज में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी।
स्त्रियाँ सभी धार्मिक व सामाजिक उत्सवों में पति की सहभागिनी
स्त्रियों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता था।
स्त्रियों के उपनयन संस्कार होता था तथा पुरुषों की तरह वे भी शिक्षा ग्रहण करती थीं।
स्त्रियाँ सभा एवं विदथ जैसी संस्थाओं में भाग लेती थीं।
समाज में विधवा विवाह, बहुपति विवाह एवं नियोग प्रथा प्रचलित थी।
ऋग्वैदिक समाज में आधुनिक काल की अनेक बुराइयाँ जैसे- दहेज प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि नहीं थीं।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज पुरुष प्रधान था
ऋग्वैदिक समाज में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी।
स्त्रियाँ सभी धार्मिक व सामाजिक उत्सवों में पति की सहभागिनी
स्त्रियों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता था।
स्त्रियों के उपनयन संस्कार होता था तथा पुरुषों की तरह वे भी शिक्षा ग्रहण करती थीं।
स्त्रियाँ सभा एवं विदथ जैसी संस्थाओं में भाग लेती थीं।
समाज में विधवा विवाह, बहुपति विवाह एवं नियोग प्रथा प्रचलित थी।
ऋग्वैदिक समाज में आधुनिक काल की अनेक बुराइयाँ जैसे- दहेज प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि नहीं थीं।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज पुरुष प्रधान था
ऋग्वैदिक समाज में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी।
स्त्रियाँ सभी धार्मिक व सामाजिक उत्सवों में पति की सहभागिनी
स्त्रियों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता था।
स्त्रियों के उपनयन संस्कार होता था तथा पुरुषों की तरह वे भी शिक्षा ग्रहण करती थीं।
स्त्रियाँ सभा एवं विदथ जैसी संस्थाओं में भाग लेती थीं।
समाज में विधवा विवाह, बहुपति विवाह एवं नियोग प्रथा प्रचलित थी।
ऋग्वैदिक समाज में आधुनिक काल की अनेक बुराइयाँ जैसे- दहेज प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि नहीं थीं।
Question 15 of 48
15. Question
1 points
ऋग्वैदिक सभ्यता का वह तत्व जिसकी उपनिषदों के ऋषियों ने आलोचना की थी
Correct
व्याख्या .
ऋग्वेद में यज्ञवाद का उल्लेख मिलता है।
यज्ञवाद की उपनिषदों के ऋषियों ने आलोचना की है।
मुण्डकोपनिषद में यज्ञ को टूटी हुई नौका के समान बताया गया है।
छान्दोग्य उपनिषद् में यज्ञवाद पर व्यंग करते हुए एक यज्ञ . में कुत्तों को ऋतुओं के समान चलते हुएं और ‘ॐ’ हम खाते हैं, ‘ऊँ’ पीते हैं जैसे गाते हुए दिखाया गया है।
Incorrect
व्याख्या .
ऋग्वेद में यज्ञवाद का उल्लेख मिलता है।
यज्ञवाद की उपनिषदों के ऋषियों ने आलोचना की है।
मुण्डकोपनिषद में यज्ञ को टूटी हुई नौका के समान बताया गया है।
छान्दोग्य उपनिषद् में यज्ञवाद पर व्यंग करते हुए एक यज्ञ . में कुत्तों को ऋतुओं के समान चलते हुएं और ‘ॐ’ हम खाते हैं, ‘ऊँ’ पीते हैं जैसे गाते हुए दिखाया गया है।
Unattempted
व्याख्या .
ऋग्वेद में यज्ञवाद का उल्लेख मिलता है।
यज्ञवाद की उपनिषदों के ऋषियों ने आलोचना की है।
मुण्डकोपनिषद में यज्ञ को टूटी हुई नौका के समान बताया गया है।
छान्दोग्य उपनिषद् में यज्ञवाद पर व्यंग करते हुए एक यज्ञ . में कुत्तों को ऋतुओं के समान चलते हुएं और ‘ॐ’ हम खाते हैं, ‘ऊँ’ पीते हैं जैसे गाते हुए दिखाया गया है।
Question 16 of 48
16. Question
1 points
वैदिक युग में राजा के पश्चात् महत्वपूर्ण अधिकारी था
Correct
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Incorrect
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Unattempted
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Question 17 of 48
17. Question
1 points
वैदिक युगीन इतिहास का प्रधान स्रोत है
Correct
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था इसी कारण वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Incorrect
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था इसी कारण वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Unattempted
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था इसी कारण वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Question 18 of 48
18. Question
1 points
उत्तर वैदिक युग में जाति प्रथा का आधार था
Correct
व्याख्या –
उत्तर वैदिक युग में जाति प्रथा वर्ण व्यवस्था पर आधारित थी।
प्रत्येक वर्ण को अपने नियत कर्म करने होते थे।
Incorrect
व्याख्या –
उत्तर वैदिक युग में जाति प्रथा वर्ण व्यवस्था पर आधारित थी।
प्रत्येक वर्ण को अपने नियत कर्म करने होते थे।
Unattempted
व्याख्या –
उत्तर वैदिक युग में जाति प्रथा वर्ण व्यवस्था पर आधारित थी।
प्रत्येक वर्ण को अपने नियत कर्म करने होते थे।
Question 19 of 48
19. Question
1 points
आर्य मूल निवासी थे
Correct
व्याख्या –
आर्यों के मूल निवास स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
सर्वाधिक मान्य मत जर्मन विद्वान मैक्समूलर का है।
मैक्समूलर ने आर्यों को मध्य एशिया के बैक्ट्रिया का निवासी मानते हैं।
Incorrect
व्याख्या –
आर्यों के मूल निवास स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
सर्वाधिक मान्य मत जर्मन विद्वान मैक्समूलर का है।
मैक्समूलर ने आर्यों को मध्य एशिया के बैक्ट्रिया का निवासी मानते हैं।
Unattempted
व्याख्या –
आर्यों के मूल निवास स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
सर्वाधिक मान्य मत जर्मन विद्वान मैक्समूलर का है।
मैक्समूलर ने आर्यों को मध्य एशिया के बैक्ट्रिया का निवासी मानते हैं।
Question 20 of 48
20. Question
1 points
सर्वप्रथम साहित्य का वर्ग
Correct
व्याख्या .
भारत में प्राचीनतम तीन वेद-ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को सर्वप्रथम साहित्य का वर्ग माना जाता है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को वेदत्रय कहा जाता है
Incorrect
व्याख्या .
भारत में प्राचीनतम तीन वेद-ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को सर्वप्रथम साहित्य का वर्ग माना जाता है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को वेदत्रय कहा जाता है
Unattempted
व्याख्या .
भारत में प्राचीनतम तीन वेद-ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को सर्वप्रथम साहित्य का वर्ग माना जाता है।
ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद को वेदत्रय कहा जाता है
Question 21 of 48
21. Question
1 points
प्रारंभिक वैदिक कालीन आर्यों का मुख्य व्यवसाय –
Correct
व्याख्या-
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन अस्थाई था।
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन कृषि की अपेक्षा पशुपालन का अधिक महत्व था।
पशुओं में गाय की सार्वाधिक महत्ता थी।
गाय की गणना सम्पत्ति में की जाती थी।
ऋग्वेद में गाय का उल्लेख 176 बार मिलता है।
आर्यों की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर हुई थी।
ऋग्वेद में युद्ध का पर्याय गाविष्टि (गायों का अन्वेषण) है।
ऋग्वैदिक आर्यों की मुख्य सम्पत्ति गाय और बैल माने जाते थे।
Incorrect
व्याख्या-
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन अस्थाई था।
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन कृषि की अपेक्षा पशुपालन का अधिक महत्व था।
पशुओं में गाय की सार्वाधिक महत्ता थी।
गाय की गणना सम्पत्ति में की जाती थी।
ऋग्वेद में गाय का उल्लेख 176 बार मिलता है।
आर्यों की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर हुई थी।
ऋग्वेद में युद्ध का पर्याय गाविष्टि (गायों का अन्वेषण) है।
ऋग्वैदिक आर्यों की मुख्य सम्पत्ति गाय और बैल माने जाते थे।
Unattempted
व्याख्या-
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन अस्थाई था।
ऋग्वैदिक आर्यों का प्रारम्भिक जीवन कृषि की अपेक्षा पशुपालन का अधिक महत्व था।
पशुओं में गाय की सार्वाधिक महत्ता थी।
गाय की गणना सम्पत्ति में की जाती थी।
ऋग्वेद में गाय का उल्लेख 176 बार मिलता है।
आर्यों की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर हुई थी।
ऋग्वेद में युद्ध का पर्याय गाविष्टि (गायों का अन्वेषण) है।
ऋग्वैदिक आर्यों की मुख्य सम्पत्ति गाय और बैल माने जाते थे।
Question 22 of 48
22. Question
1 points
वैदिक युग में राजा के पश्चात् महत्वपूर्ण अधिकारी था
Correct
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था,
पुरोहित राजा के पथप्रदर्शक, शिक्षक एवं मित्र होता था।
यह राजा के साथ यद्ध में भी जाता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Incorrect
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था,
पुरोहित राजा के पथप्रदर्शक, शिक्षक एवं मित्र होता था।
यह राजा के साथ यद्ध में भी जाता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Unattempted
व्याख्या –
वैदिक युग में राजा के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था,
पुरोहित राजा के पथप्रदर्शक, शिक्षक एवं मित्र होता था।
यह राजा के साथ यद्ध में भी जाता था
पुरोहित के बाद सेनानी एवं ग्रामणी होते थे।
Question 23 of 48
23. Question
1 points
वैदिक युगीन इतिहास का प्रधान स्रोत है
Correct
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है जिसके अन्तर्गत वेद आदि आते हैं।
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था
वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Incorrect
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है जिसके अन्तर्गत वेद आदि आते हैं।
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था
वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Unattempted
व्याख्या –
वैदिक युगीन साहित्य का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य है जिसके अन्तर्गत वेद आदि आते हैं।
वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा गया है।
आर्यों को लिपि का ज्ञान न था
वैदिक साहित्य सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा।
Question 24 of 48
24. Question
1 points
ऋग्वेद का एक संपूर्ण मंडल निम्नलिखित देवताओं में से किस एक को ही समर्पित सूक्तों का संग्रह है?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद के नवम् मंडल के सभी सूक्त सोम देवता को समर्पित हैं।
सोम आर्यों का प्रिय पेय था
सोम पश्चिमी हिमालय की मूजवंत चोटी पर पाया जाता था।
कालांतर में इसे देवता मान लिया गया।
सोम देवता आर्यों का वनस्पतियों का देवता था।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद के नवम् मंडल के सभी सूक्त सोम देवता को समर्पित हैं।
सोम आर्यों का प्रिय पेय था
सोम पश्चिमी हिमालय की मूजवंत चोटी पर पाया जाता था।
कालांतर में इसे देवता मान लिया गया।
सोम देवता आर्यों का वनस्पतियों का देवता था।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद के नवम् मंडल के सभी सूक्त सोम देवता को समर्पित हैं।
सोम आर्यों का प्रिय पेय था
सोम पश्चिमी हिमालय की मूजवंत चोटी पर पाया जाता था।
कालांतर में इसे देवता मान लिया गया।
सोम देवता आर्यों का वनस्पतियों का देवता था।
Question 25 of 48
25. Question
1 points
एशिया माइनर से प्राप्त एक बोगजकोई अभिलेख में किन कार्य देवताओं का आह्वान किया गया है?
Correct
व्याख्या –
पश्चिमी एशिया में एशिया माइनर के बोगजकोई नामक स्थान से 1400 ईसापूर्व का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है
बोगजकोई में कुछ वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।
बोगजकोई अभिलेख में आहूत आर्य देवता हैं- इन्द्र, मित्र, वरुण एवं नासत्य
इसमें नासत्य की पहचान ऋग्वेद के चिकित्सक देवता अश्विन से की गयी है।
बोगजकोई में ऋग्वैदिक कालीन दूसरे प्रसिद्ध देवता अग्नि का उल्लेख नहीं है।
Incorrect
व्याख्या –
पश्चिमी एशिया में एशिया माइनर के बोगजकोई नामक स्थान से 1400 ईसापूर्व का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है
बोगजकोई में कुछ वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।
बोगजकोई अभिलेख में आहूत आर्य देवता हैं- इन्द्र, मित्र, वरुण एवं नासत्य
इसमें नासत्य की पहचान ऋग्वेद के चिकित्सक देवता अश्विन से की गयी है।
बोगजकोई में ऋग्वैदिक कालीन दूसरे प्रसिद्ध देवता अग्नि का उल्लेख नहीं है।
Unattempted
व्याख्या –
पश्चिमी एशिया में एशिया माइनर के बोगजकोई नामक स्थान से 1400 ईसापूर्व का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है
बोगजकोई में कुछ वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।
बोगजकोई अभिलेख में आहूत आर्य देवता हैं- इन्द्र, मित्र, वरुण एवं नासत्य
इसमें नासत्य की पहचान ऋग्वेद के चिकित्सक देवता अश्विन से की गयी है।
बोगजकोई में ऋग्वैदिक कालीन दूसरे प्रसिद्ध देवता अग्नि का उल्लेख नहीं है।
Question 26 of 48
26. Question
1 points
पूर्व वैदिक काल से उत्तर वैदिक काल के राजस्व गठन (Polity) में मुख्य परिवर्तन हुआ
Correct
व्याख्या –
पूर्ववैदिक कालीन आर्यों का जीवन घुमन्तू था।
उत्तर वैदिक युग में आर्यों के जीवन में स्थायित्व आया तथा छोटे-छोटे जन मिलकर एक बड़ी इकाई जनपद में परिवर्तित हो गये।
पूर्व वैदिक काल से उत्तर वैदिक काल के राजस्व गठन में मुख्य परिवर्तन यह हुआ है
उत्तर वैदिक काल में राज्य के संगठन का आधार कुल न रहकर अपितु भूमि विस्तार हो गया।
Incorrect
व्याख्या –
पूर्ववैदिक कालीन आर्यों का जीवन घुमन्तू था।
उत्तर वैदिक युग में आर्यों के जीवन में स्थायित्व आया तथा छोटे-छोटे जन मिलकर एक बड़ी इकाई जनपद में परिवर्तित हो गये।
पूर्व वैदिक काल से उत्तर वैदिक काल के राजस्व गठन में मुख्य परिवर्तन यह हुआ है
उत्तर वैदिक काल में राज्य के संगठन का आधार कुल न रहकर अपितु भूमि विस्तार हो गया।
Unattempted
व्याख्या –
पूर्ववैदिक कालीन आर्यों का जीवन घुमन्तू था।
उत्तर वैदिक युग में आर्यों के जीवन में स्थायित्व आया तथा छोटे-छोटे जन मिलकर एक बड़ी इकाई जनपद में परिवर्तित हो गये।
पूर्व वैदिक काल से उत्तर वैदिक काल के राजस्व गठन में मुख्य परिवर्तन यह हुआ है
उत्तर वैदिक काल में राज्य के संगठन का आधार कुल न रहकर अपितु भूमि विस्तार हो गया।
Question 27 of 48
27. Question
1 points
राजा सुदास जिसके विषय में ऋग्वेद में वर्णन है कि उसने दस राजाओं को पराजित किया, किस जन (Tribe) से सम्बद्ध था?
Correct
व्याख्या –
दशराज्ञ युद्ध परुष्णी नदी के तट पर लड़ा गया
दशराज्ञ युद्ध का नेता सुदास था जो भरत कुल से संबंधित था।
भरत कुल के राजवंश का नाम त्रित्सु था
त्रित्सु में दिवोदास और उसके पुत्र सुदास प्रमुख थे।
दसराज्ञ युद्ध में त्रित्सु और शृंजय एक साथ थे
जबकि उनके विपक्ष में पुरु, यदु, अनु, दुह्य, तुर्वस आदि जन थे।
Incorrect
व्याख्या –
दशराज्ञ युद्ध परुष्णी नदी के तट पर लड़ा गया
दशराज्ञ युद्ध का नेता सुदास था जो भरत कुल से संबंधित था।
भरत कुल के राजवंश का नाम त्रित्सु था
त्रित्सु में दिवोदास और उसके पुत्र सुदास प्रमुख थे।
दसराज्ञ युद्ध में त्रित्सु और शृंजय एक साथ थे
जबकि उनके विपक्ष में पुरु, यदु, अनु, दुह्य, तुर्वस आदि जन थे।
Unattempted
व्याख्या –
दशराज्ञ युद्ध परुष्णी नदी के तट पर लड़ा गया
दशराज्ञ युद्ध का नेता सुदास था जो भरत कुल से संबंधित था।
भरत कुल के राजवंश का नाम त्रित्सु था
त्रित्सु में दिवोदास और उसके पुत्र सुदास प्रमुख थे।
दसराज्ञ युद्ध में त्रित्सु और शृंजय एक साथ थे
जबकि उनके विपक्ष में पुरु, यदु, अनु, दुह्य, तुर्वस आदि जन थे।
Question 28 of 48
28. Question
1 points
निम्नलिखित ग्रंथों में से किस में सर्वप्रथम परीक्षित का उल्लेख हुआ है?
Correct
व्याख्या .
राजा परीक्षित का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है।
अथर्ववेद में प्राप्त स्तुति के एक प्रसिद्ध सुक्ति का नायक परीक्षित है
अथर्ववेद में राजा परीक्षित वर्णन विश्वजीत राजा के रूप में है
राजा परीक्षित के राज्य में दूध और मद्य की नदियां बहती थी।
Incorrect
व्याख्या .
राजा परीक्षित का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है।
अथर्ववेद में प्राप्त स्तुति के एक प्रसिद्ध सुक्ति का नायक परीक्षित है
अथर्ववेद में राजा परीक्षित वर्णन विश्वजीत राजा के रूप में है
राजा परीक्षित के राज्य में दूध और मद्य की नदियां बहती थी।
Unattempted
व्याख्या .
राजा परीक्षित का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है।
अथर्ववेद में प्राप्त स्तुति के एक प्रसिद्ध सुक्ति का नायक परीक्षित है
अथर्ववेद में राजा परीक्षित वर्णन विश्वजीत राजा के रूप में है
राजा परीक्षित के राज्य में दूध और मद्य की नदियां बहती थी।
Question 29 of 48
29. Question
1 points
उत्तर वैदिक साहित्य में उल्लिखित राजाओं और राज्यों के निम्नलिखित युग्मों में से कौन सा सही सुमेलित नहीं
Correct
व्याख्या –
उत्तर वैदिक कालीन उपनिषदों में अनेक राजाओं के नामों का उल्लेख प्राप्त होता है।
काशी के राजा अजातशत्रु,
विदेह के राजा जनक,
कैकय के राजा अश्वपति,
कुरु के राजा उद्दालक आरुणि,
पाचाल के प्रवाहण जैबालि।
परीक्षित के पुत्र जनमेजय गांधार राज्य के राजा नहीं थे, अपितु राज्य कुरु के राजा थे।
Incorrect
व्याख्या –
उत्तर वैदिक कालीन उपनिषदों में अनेक राजाओं के नामों का उल्लेख प्राप्त होता है।
काशी के राजा अजातशत्रु,
विदेह के राजा जनक,
कैकय के राजा अश्वपति,
कुरु के राजा उद्दालक आरुणि,
पाचाल के प्रवाहण जैबालि।
परीक्षित के पुत्र जनमेजय गांधार राज्य के राजा नहीं थे, अपितु राज्य कुरु के राजा थे।
Unattempted
व्याख्या –
उत्तर वैदिक कालीन उपनिषदों में अनेक राजाओं के नामों का उल्लेख प्राप्त होता है।
काशी के राजा अजातशत्रु,
विदेह के राजा जनक,
कैकय के राजा अश्वपति,
कुरु के राजा उद्दालक आरुणि,
पाचाल के प्रवाहण जैबालि।
परीक्षित के पुत्र जनमेजय गांधार राज्य के राजा नहीं थे, अपितु राज्य कुरु के राजा थे।
Question 30 of 48
30. Question
1 points
निम्नलिखित पुरोहितों में से किसका कार्य यज्ञ के सम्पादन का निरीक्षण करना था?
Correct
व्याख्या –
यज्ञों के संपादन का निरीक्षणकर्ता ब्रह्मा था।
अथर्ववेद का पुरोहित ब्रह्मा था।
ऋग्वेद का पुरोहित होता,
सामवेद का पुरोहित उदगाता,
यजुर्वेद का पुरोहित अध्वर्य
Incorrect
व्याख्या –
यज्ञों के संपादन का निरीक्षणकर्ता ब्रह्मा था।
अथर्ववेद का पुरोहित ब्रह्मा था।
ऋग्वेद का पुरोहित होता,
सामवेद का पुरोहित उदगाता,
यजुर्वेद का पुरोहित अध्वर्य
Unattempted
व्याख्या –
यज्ञों के संपादन का निरीक्षणकर्ता ब्रह्मा था।
अथर्ववेद का पुरोहित ब्रह्मा था।
ऋग्वेद का पुरोहित होता,
सामवेद का पुरोहित उदगाता,
यजुर्वेद का पुरोहित अध्वर्य
Question 31 of 48
31. Question
1 points
भारतीय जाति व्यवस्था अपने श्रेष्य (क्लासिकल) स्वरूप में मानी जाती है
Correct
व्याख्या –
भारतीय जाति व्यवस्था प्राचीन वर्ण व्यवस्था का ही विकास क्रम था।
ऋग्वैदिक कालीन वर्ण सूत्र काल में जातियों में परिवर्तित हो गये थे।
वर्ण कार्यों के विभाजन पर आधारित था
ऋग्वैदिक काल में जाति व्यवस्था श्रेष्य स्वरूप में कार्यों के विभाजन पर आधारित थी।
Incorrect
व्याख्या –
भारतीय जाति व्यवस्था प्राचीन वर्ण व्यवस्था का ही विकास क्रम था।
ऋग्वैदिक कालीन वर्ण सूत्र काल में जातियों में परिवर्तित हो गये थे।
वर्ण कार्यों के विभाजन पर आधारित था
ऋग्वैदिक काल में जाति व्यवस्था श्रेष्य स्वरूप में कार्यों के विभाजन पर आधारित थी।
Unattempted
व्याख्या –
भारतीय जाति व्यवस्था प्राचीन वर्ण व्यवस्था का ही विकास क्रम था।
ऋग्वैदिक कालीन वर्ण सूत्र काल में जातियों में परिवर्तित हो गये थे।
वर्ण कार्यों के विभाजन पर आधारित था
ऋग्वैदिक काल में जाति व्यवस्था श्रेष्य स्वरूप में कार्यों के विभाजन पर आधारित थी।
Question 32 of 48
32. Question
1 points
सामवेद ग्रंथ है
Correct
व्याख्या –
यज्ञों के दौरान देवताओं के सम्मान में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह सामवेद है।
सामवेद के मंत्रों को उदगाता नामक पुरोहित गाते थे।
सामवेद में ही संगीत के सात स्वरों यथा सा रे गा मा पा धा नी का संकलन मिलता है।
इसी कारण सामवेद को भारतीय संगीत का जन्मदाता माना जाता है।
Incorrect
व्याख्या –
यज्ञों के दौरान देवताओं के सम्मान में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह सामवेद है।
सामवेद के मंत्रों को उदगाता नामक पुरोहित गाते थे।
सामवेद में ही संगीत के सात स्वरों यथा सा रे गा मा पा धा नी का संकलन मिलता है।
इसी कारण सामवेद को भारतीय संगीत का जन्मदाता माना जाता है।
Unattempted
व्याख्या –
यज्ञों के दौरान देवताओं के सम्मान में गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह सामवेद है।
सामवेद के मंत्रों को उदगाता नामक पुरोहित गाते थे।
सामवेद में ही संगीत के सात स्वरों यथा सा रे गा मा पा धा नी का संकलन मिलता है।
इसी कारण सामवेद को भारतीय संगीत का जन्मदाता माना जाता है।
Question 33 of 48
33. Question
1 points
सुदास के विरूद्ध दस राजाओं का युद्ध किसके नेतृत्व में लड़ा गया?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद के सातवें मंडल में परुष्णी नदी के तट पर हुए दशराज्ञ युद्ध का वर्णन मिलता है।
भरत वंश के राजा सुदास ने अपने पुरोहित विश्वामित्र की जगह पर वशिष्ठ को नया पुरोहित बनाया
विश्वामित्र ने दस राजाओं को अपनी ओर करके यह युद्ध लड़ा।
दोनों ओर से आर्य एवं अनार्य इसमें शामिल हुए परंतु अन्ततः भरत वंश के राजा सुदास की विजय हुई
सुदास का साम्राज्य सरस्वती से परुष्णी नदी तक विस्तृत हो गया।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद के सातवें मंडल में परुष्णी नदी के तट पर हुए दशराज्ञ युद्ध का वर्णन मिलता है।
भरत वंश के राजा सुदास ने अपने पुरोहित विश्वामित्र की जगह पर वशिष्ठ को नया पुरोहित बनाया
विश्वामित्र ने दस राजाओं को अपनी ओर करके यह युद्ध लड़ा।
दोनों ओर से आर्य एवं अनार्य इसमें शामिल हुए परंतु अन्ततः भरत वंश के राजा सुदास की विजय हुई
सुदास का साम्राज्य सरस्वती से परुष्णी नदी तक विस्तृत हो गया।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद के सातवें मंडल में परुष्णी नदी के तट पर हुए दशराज्ञ युद्ध का वर्णन मिलता है।
भरत वंश के राजा सुदास ने अपने पुरोहित विश्वामित्र की जगह पर वशिष्ठ को नया पुरोहित बनाया
विश्वामित्र ने दस राजाओं को अपनी ओर करके यह युद्ध लड़ा।
दोनों ओर से आर्य एवं अनार्य इसमें शामिल हुए परंतु अन्ततः भरत वंश के राजा सुदास की विजय हुई
सुदास का साम्राज्य सरस्वती से परुष्णी नदी तक विस्तृत हो गया।
Question 34 of 48
34. Question
1 points
ऋग्वैदिक युग में निम्नलिखित में से कौन सा मनोरंजन का एक साधन नहीं था?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वैदिक युग में मनोरंजन के साधन -द्यूतकर्म, स्थदौड़, संगीत आदि प्रसिद्ध थे।
ऋग्वैदिक युग में नौका दौड़ का उल्लेख नहीं है।
मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के उत्त्सवों एवं समारोहो का आयोजन भी किया जाता था।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वैदिक युग में मनोरंजन के साधन -द्यूतकर्म, स्थदौड़, संगीत आदि प्रसिद्ध थे।
ऋग्वैदिक युग में नौका दौड़ का उल्लेख नहीं है।
मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के उत्त्सवों एवं समारोहो का आयोजन भी किया जाता था।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वैदिक युग में मनोरंजन के साधन -द्यूतकर्म, स्थदौड़, संगीत आदि प्रसिद्ध थे।
ऋग्वैदिक युग में नौका दौड़ का उल्लेख नहीं है।
मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के उत्त्सवों एवं समारोहो का आयोजन भी किया जाता था।
Question 35 of 48
35. Question
1 points
उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति के सम्बन्ध में कौन सा कथन सही नहीं है?.
Correct
व्याख्या –
उत्तरवैदिक काल में यद्यपि स्त्रियों का उपनयन संस्कार बन्द कर दिया गया
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था।
उत्तरवैदिक काल की महान् विदुषी गार्गी थी
जिसका याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद वृहदारण्यक उपनिषद् में मिलता है।
याज्ञवल्क्य की पत्नियाँ मैत्रेयी तथा कात्यायनी भी विदुषी थी।
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को सम्पति का अधिकार नहीं था।
स्त्रियों को सम्पति का अधिकार सम्पति का अधिकार पहली बार गुप्तकाल में याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता हैं।
उत्तरवैदिक काल में सभा, समिति, विदथ आदि राजनितिक संस्थाओ के महत्वहीन हो जाने से उनका राजनिति में भाग लेने का अधिकार समाप्त हो गया।
Incorrect
व्याख्या –
उत्तरवैदिक काल में यद्यपि स्त्रियों का उपनयन संस्कार बन्द कर दिया गया
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था।
उत्तरवैदिक काल की महान् विदुषी गार्गी थी
जिसका याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद वृहदारण्यक उपनिषद् में मिलता है।
याज्ञवल्क्य की पत्नियाँ मैत्रेयी तथा कात्यायनी भी विदुषी थी।
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को सम्पति का अधिकार नहीं था।
स्त्रियों को सम्पति का अधिकार सम्पति का अधिकार पहली बार गुप्तकाल में याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता हैं।
उत्तरवैदिक काल में सभा, समिति, विदथ आदि राजनितिक संस्थाओ के महत्वहीन हो जाने से उनका राजनिति में भाग लेने का अधिकार समाप्त हो गया।
Unattempted
व्याख्या –
उत्तरवैदिक काल में यद्यपि स्त्रियों का उपनयन संस्कार बन्द कर दिया गया
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था।
उत्तरवैदिक काल की महान् विदुषी गार्गी थी
जिसका याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद वृहदारण्यक उपनिषद् में मिलता है।
याज्ञवल्क्य की पत्नियाँ मैत्रेयी तथा कात्यायनी भी विदुषी थी।
उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों को सम्पति का अधिकार नहीं था।
स्त्रियों को सम्पति का अधिकार सम्पति का अधिकार पहली बार गुप्तकाल में याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता हैं।
उत्तरवैदिक काल में सभा, समिति, विदथ आदि राजनितिक संस्थाओ के महत्वहीन हो जाने से उनका राजनिति में भाग लेने का अधिकार समाप्त हो गया।
Question 36 of 48
36. Question
1 points
गायत्री मंत्र का सम्बन्ध है
Correct
व्याख्या .
ऋग्वेद के तृतीय मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है
तृतीय मंडल के ऋषि विश्वामित्र है।
गायत्री मंत्र ‘सविता’ देवता को समर्पित है।
Incorrect
व्याख्या .
ऋग्वेद के तृतीय मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है
तृतीय मंडल के ऋषि विश्वामित्र है।
गायत्री मंत्र ‘सविता’ देवता को समर्पित है।
Unattempted
व्याख्या .
ऋग्वेद के तृतीय मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है
तृतीय मंडल के ऋषि विश्वामित्र है।
गायत्री मंत्र ‘सविता’ देवता को समर्पित है।
Question 37 of 48
37. Question
1 points
ऋग्वैदिक युग में वर्ण व्यवस्था, जो बाद में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी, वर्ण के जाति में परिवर्तित होने का प्रमुख कारण था
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में पहली बार चारो वर्णो – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद का एक साथ उल्लेख मिलता है।
यह विभाजन व्यवसायो के आधार पर किया गया था।
ऋग्वैदिक युग में वर्ण व्यवस्था, जो बाद में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी, वर्ण के जाति में परिवर्तित होने का प्रमुख कारण व्यवसायों का पैतृक होना था
ब्राह्मण का कार्य यज्ञ, पठन- पाठन,
क्षत्रियो का कार्य रक्षा करना
वैश्यों का कार्य व्यापार करना
शुद्रों का कार्य ऊपर के वर्णो की सेवा करना था।
वैदिक की समाप्ति के बाद ‘सुत्रकाल’ तक आते-आते वर्ण, जातियों में परिवर्तित हो गये
उतर वैदिक काल में व्यवसाय जन्म से निर्धारित हो गया।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में पहली बार चारो वर्णो – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद का एक साथ उल्लेख मिलता है।
यह विभाजन व्यवसायो के आधार पर किया गया था।
ऋग्वैदिक युग में वर्ण व्यवस्था, जो बाद में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी, वर्ण के जाति में परिवर्तित होने का प्रमुख कारण व्यवसायों का पैतृक होना था
ब्राह्मण का कार्य यज्ञ, पठन- पाठन,
क्षत्रियो का कार्य रक्षा करना
वैश्यों का कार्य व्यापार करना
शुद्रों का कार्य ऊपर के वर्णो की सेवा करना था।
वैदिक की समाप्ति के बाद ‘सुत्रकाल’ तक आते-आते वर्ण, जातियों में परिवर्तित हो गये
उतर वैदिक काल में व्यवसाय जन्म से निर्धारित हो गया।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुष सूक्त में पहली बार चारो वर्णो – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद का एक साथ उल्लेख मिलता है।
यह विभाजन व्यवसायो के आधार पर किया गया था।
ऋग्वैदिक युग में वर्ण व्यवस्था, जो बाद में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी, वर्ण के जाति में परिवर्तित होने का प्रमुख कारण व्यवसायों का पैतृक होना था
ब्राह्मण का कार्य यज्ञ, पठन- पाठन,
क्षत्रियो का कार्य रक्षा करना
वैश्यों का कार्य व्यापार करना
शुद्रों का कार्य ऊपर के वर्णो की सेवा करना था।
वैदिक की समाप्ति के बाद ‘सुत्रकाल’ तक आते-आते वर्ण, जातियों में परिवर्तित हो गये
उतर वैदिक काल में व्यवसाय जन्म से निर्धारित हो गया।
Question 38 of 48
38. Question
1 points
ऋग्वैदिक समाज में राजसत्ता के विकास के पीछे मूल कारण क्या था?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज मे राजसत्ता के विकास के पीछे मूल कारण युद्ध का दबाव था
अतः युद्ध का सर्वव्यापी वातावरण था
ऋग्वैदिक समाज कबायली था।
ऋग्वेद राजा के दो कर्तव्य थे-
पहला युद्ध में अपने कबीले को नेतृत्व करना
दूसरा,अपने कबीले के जनों की रक्षा करना।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज मे राजसत्ता के विकास के पीछे मूल कारण युद्ध का दबाव था
अतः युद्ध का सर्वव्यापी वातावरण था
ऋग्वैदिक समाज कबायली था।
ऋग्वेद राजा के दो कर्तव्य थे-
पहला युद्ध में अपने कबीले को नेतृत्व करना
दूसरा,अपने कबीले के जनों की रक्षा करना।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वैदिक समाज मे राजसत्ता के विकास के पीछे मूल कारण युद्ध का दबाव था
अतः युद्ध का सर्वव्यापी वातावरण था
ऋग्वैदिक समाज कबायली था।
ऋग्वेद राजा के दो कर्तव्य थे-
पहला युद्ध में अपने कबीले को नेतृत्व करना
दूसरा,अपने कबीले के जनों की रक्षा करना।
Question 39 of 48
39. Question
1 points
निम्नलिखित नदियों में से किसका ऋग्वेद में केवल एक – बार उल्लेख हुआ है?
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद में गंगा का एक बार एवं यमुना का तीन – बार उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सबसे अधिक बार सिन्धु नदी का उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा (नदियों में प्रमुख) कहा गया है।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद में गंगा का एक बार एवं यमुना का तीन – बार उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सबसे अधिक बार सिन्धु नदी का उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा (नदियों में प्रमुख) कहा गया है।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद में गंगा का एक बार एवं यमुना का तीन – बार उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सबसे अधिक बार सिन्धु नदी का उल्लेख हुआ है।
ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा (नदियों में प्रमुख) कहा गया है।
Question 40 of 48
40. Question
1 points
मूलतः गायत्री मंत्र मिलता है
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
Question 41 of 48
41. Question
1 points
ऋग्वैदिक समाज में गोप शब्द का प्रयोग होता था
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को उच्चतम स्थान प्रदान किया गया है।
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को उच्चतम स्थान प्रदान किया गया है।
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को उच्चतम स्थान प्रदान किया गया है।
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
Question 42 of 48
42. Question
1 points
ऋग्वेद में कितनी ऋचाएं वर्णित थीं
Correct
व्याख्या–
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव से संबंधित
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
ऋग्वेद के दो से सात तक के मंडल सबसे पुराने माने जाते हैं। इसे ‘वंशमंडल’ कहा जाता है।
पहला, आठवाँ, नौवाँ और दशवाँ मंडल परवर्ती काल का है।
दशवाँ मंडल, जिसमें ‘पुरुष सूक्त’ भी है, सबसे बाद का है।
Incorrect
व्याख्या–
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव से संबंधित
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
ऋग्वेद के दो से सात तक के मंडल सबसे पुराने माने जाते हैं। इसे ‘वंशमंडल’ कहा जाता है।
पहला, आठवाँ, नौवाँ और दशवाँ मंडल परवर्ती काल का है।
दशवाँ मंडल, जिसमें ‘पुरुष सूक्त’ भी है, सबसे बाद का है।
Unattempted
व्याख्या–
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि से संबंधित,
तृतीय मंड में विश्वामित्र कुल से संबंधित,
तृतीय मंडल की रचना विश्वामिः /विश्वामित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिए की थी।
तृतीय मंडल के देवी सूक्त में सविता क समर्पित गायत्री मंत्र का उल्लेख है
चतुर्थ मंडल में वामदेव से संबंधित
पाँचवें मंडल में अत्रि ऋषि से संबंधित सूक्त का संग्रह है।
ऋग्वेद के दो से सात तक के मंडल सबसे पुराने माने जाते हैं। इसे ‘वंशमंडल’ कहा जाता है।
पहला, आठवाँ, नौवाँ और दशवाँ मंडल परवर्ती काल का है।
दशवाँ मंडल, जिसमें ‘पुरुष सूक्त’ भी है, सबसे बाद का है।
Question 43 of 48
43. Question
1 points
समाज के चार वर्णों का सर्वप्रथम वर्णन किसमें मिलता है
Correct
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
ऋग्वेद के दशवें मंडल के पुरुष सूक्त में पहली बार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के साथ शूद्र का उल्लेख मिलता है।
आदि पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उरु से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
Incorrect
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
ऋग्वेद के दशवें मंडल के पुरुष सूक्त में पहली बार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के साथ शूद्र का उल्लेख मिलता है।
आदि पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उरु से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
Unattempted
व्याख्या –
ऋग्वेद में राजा को ‘जनस्य गोपा’ कहा गया है।
ऋग्वेद में राजा को गोप कहा जाता था
ऋग्वेद के दशवें मंडल के पुरुष सूक्त में पहली बार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के साथ शूद्र का उल्लेख मिलता है।
आदि पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उरु से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
Question 44 of 48
44. Question
1 points
सूची । को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए तथा सूचियों के नीचे दिये गये कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन