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1857 का विद्रोह एवं राजस्थान
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1857 के विप्लव के समय ‘राजपूताना रेजीडेन्सी’ में एजेन्ट टू दि गवर्नर जनरल'(ए.जी.जी.) कौन थे?
व्याख्या : ‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था जो रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था तथा गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था। 1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था। इसका कार्यालय अजमेर में था।
व्याख्या : ‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था जो रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था तथा गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था। 1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था। इसका कार्यालय अजमेर में था।
व्याख्या : ‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था जो रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था तथा गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था। 1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था। इसका कार्यालय अजमेर में था।
1857 में कोटा में विद्रोह का नेता कौन था?
व्याख्या : कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। … मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा। कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया। मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था। यहाँ के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
व्याख्या : कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। … मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा। कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया। मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था। यहाँ के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
व्याख्या : कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। … मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा। कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया। मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था। यहाँ के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
निम्नलिखित में से किन अफसरों की हत्या 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा की विद्रोही राजकीय सेना ने की थी?
(a) मेजर मॉरिसन
(b) डॉ. सैडलर
(c) मेजर बर्टन
(d) कैप्टन शॉवर्स
व्याख्या : 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा राज्य की सेना ने विद्रोह कर दिया व उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेंसी को घेरकर रेजीडेंसी के सर्जन डॉ. सैडलर तथा कोटा डिस्पेन्सरी के डॉक्टर सेविल काण्टम की हत्या कर दी। तत्पश्चात् विद्रोही सैनिकों ने पॉलिटिकल एजेण्ट मेजर बर्टन व उसके दो लड़कों को मौत के घाट उतारकर बर्टन का सिर शहर में घुमाया।
व्याख्या : 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा राज्य की सेना ने विद्रोह कर दिया व उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेंसी को घेरकर रेजीडेंसी के सर्जन डॉ. सैडलर तथा कोटा डिस्पेन्सरी के डॉक्टर सेविल काण्टम की हत्या कर दी। तत्पश्चात् विद्रोही सैनिकों ने पॉलिटिकल एजेण्ट मेजर बर्टन व उसके दो लड़कों को मौत के घाट उतारकर बर्टन का सिर शहर में घुमाया।
व्याख्या : 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा राज्य की सेना ने विद्रोह कर दिया व उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेंसी को घेरकर रेजीडेंसी के सर्जन डॉ. सैडलर तथा कोटा डिस्पेन्सरी के डॉक्टर सेविल काण्टम की हत्या कर दी। तत्पश्चात् विद्रोही सैनिकों ने पॉलिटिकल एजेण्ट मेजर बर्टन व उसके दो लड़कों को मौत के घाट उतारकर बर्टन का सिर शहर में घुमाया।
1857 की क्रान्ति में अंग्रेज एवं जोधपुर राज्य की संयुक्त सेना को किसने पराजित किया था?
व्याख्या : आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह ने मारवाड़ की एक विद्रोही सैन्य टुकड़ी को शरण दी थी। जब पाली किलेदार अनाडसिंह के नेतृत्व में मारवाड़ की सेना ने आऊवा पर आक्रमण किया तो उन्हें घनघोर पराजय का सामना करना पड़ा (सितंबर 1857)। इसके पश्चात मारवाड़ पॉलिटिकल एजेन्ट मॉक मैसन तथा राजपूताना के एजीजी पैट्रिक लॉरेन्स ने आऊवा पर आक्रमण किया। इन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा। (18 सितंबर 1857)। इस युद्ध में मॉक मैसन मारा गया।
व्याख्या : आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह ने मारवाड़ की एक विद्रोही सैन्य टुकड़ी को शरण दी थी। जब पाली किलेदार अनाडसिंह के नेतृत्व में मारवाड़ की सेना ने आऊवा पर आक्रमण किया तो उन्हें घनघोर पराजय का सामना करना पड़ा (सितंबर 1857)। इसके पश्चात मारवाड़ पॉलिटिकल एजेन्ट मॉक मैसन तथा राजपूताना के एजीजी पैट्रिक लॉरेन्स ने आऊवा पर आक्रमण किया। इन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा। (18 सितंबर 1857)। इस युद्ध में मॉक मैसन मारा गया।
व्याख्या : आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह ने मारवाड़ की एक विद्रोही सैन्य टुकड़ी को शरण दी थी। जब पाली किलेदार अनाडसिंह के नेतृत्व में मारवाड़ की सेना ने आऊवा पर आक्रमण किया तो उन्हें घनघोर पराजय का सामना करना पड़ा (सितंबर 1857)। इसके पश्चात मारवाड़ पॉलिटिकल एजेन्ट मॉक मैसन तथा राजपूताना के एजीजी पैट्रिक लॉरेन्स ने आऊवा पर आक्रमण किया। इन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा। (18 सितंबर 1857)। इस युद्ध में मॉक मैसन मारा गया।
1857 के विद्रोह के समय आउवा के ठाकुर कुशालसिंह को मेवाड़ के किस स्थान के सामन्त ने अपने यहाँ शरण दी?
व्याख्या : जनवरी 1858 में, पराजय के पश्चात् भी ठाकुर कुशालसिंह संघर्षरत रहा। (जोधपुर रिकॉर्ड की हकीकत बही के अनुसार) उसने मेवाड़ की तरफ से मारवाड़ में प्रवेश कर कई हमले किये। जब सभी प्रयास विफल रहे तो उसने मेवाड़ में कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली, जहाँ वह 1860 तक रहा। तत्पश्चात् 8 अगस्त 1860 को नीमच के ब्रिटिश अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. जहाँ पर उस पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें उसे बरी कर दिया गया परंतु उसे अपनी जागीर प्राप्त नहीं हो सकी। 25 जुलाई 1864 ई. को उदयपुर में उसकी मृत्यु हो गई।
व्याख्या : जनवरी 1858 में, पराजय के पश्चात् भी ठाकुर कुशालसिंह संघर्षरत रहा। (जोधपुर रिकॉर्ड की हकीकत बही के अनुसार) उसने मेवाड़ की तरफ से मारवाड़ में प्रवेश कर कई हमले किये। जब सभी प्रयास विफल रहे तो उसने मेवाड़ में कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली, जहाँ वह 1860 तक रहा। तत्पश्चात् 8 अगस्त 1860 को नीमच के ब्रिटिश अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. जहाँ पर उस पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें उसे बरी कर दिया गया परंतु उसे अपनी जागीर प्राप्त नहीं हो सकी। 25 जुलाई 1864 ई. को उदयपुर में उसकी मृत्यु हो गई।
व्याख्या : जनवरी 1858 में, पराजय के पश्चात् भी ठाकुर कुशालसिंह संघर्षरत रहा। (जोधपुर रिकॉर्ड की हकीकत बही के अनुसार) उसने मेवाड़ की तरफ से मारवाड़ में प्रवेश कर कई हमले किये। जब सभी प्रयास विफल रहे तो उसने मेवाड़ में कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली, जहाँ वह 1860 तक रहा। तत्पश्चात् 8 अगस्त 1860 को नीमच के ब्रिटिश अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. जहाँ पर उस पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें उसे बरी कर दिया गया परंतु उसे अपनी जागीर प्राप्त नहीं हो सकी। 25 जुलाई 1864 ई. को उदयपुर में उसकी मृत्यु हो गई।
मेहराब खाँ ने किस स्थान से 1857 के विद्रोह का संचालन किया था?
कोटा में विद्रोह (15 अक्टूबर 1857) –
कोटा में विद्रोह (15 अक्टूबर 1857) –
कोटा में विद्रोह (15 अक्टूबर 1857) –
‘म्यूटिनीज़ इन राजपूताना’ के लेखक हैं
प्रिचर्ड। ‘म्यूटिनीज इन राजपूताना’ के लेखक आई.टी. प्रिचर्ड थे। बंगाल सेना में एक अधिकारी थे, वह सेना जो वह 1857 के विद्रोह में थी।
म्यूटिनीज़ इन राजपूताना’ का लेखक आई.टी. प्रिचार्ड था। आई.टी. प्रिचार्ड बंगाल नेटिव इन्फ्रेन्ट्री में अधिकारी था। यह दस्ता नसीराबाद में नियुक्त था। राजस्थान में विद्रोह का प्रारंभ इसी सैन्य दस्ते ने
किया था।
प्रिचर्ड। ‘म्यूटिनीज इन राजपूताना’ के लेखक आई.टी. प्रिचर्ड थे। बंगाल सेना में एक अधिकारी थे, वह सेना जो वह 1857 के विद्रोह में थी।
म्यूटिनीज़ इन राजपूताना’ का लेखक आई.टी. प्रिचार्ड था। आई.टी. प्रिचार्ड बंगाल नेटिव इन्फ्रेन्ट्री में अधिकारी था। यह दस्ता नसीराबाद में नियुक्त था। राजस्थान में विद्रोह का प्रारंभ इसी सैन्य दस्ते ने
किया था।
प्रिचर्ड। ‘म्यूटिनीज इन राजपूताना’ के लेखक आई.टी. प्रिचर्ड थे। बंगाल सेना में एक अधिकारी थे, वह सेना जो वह 1857 के विद्रोह में थी।
म्यूटिनीज़ इन राजपूताना’ का लेखक आई.टी. प्रिचार्ड था। आई.टी. प्रिचार्ड बंगाल नेटिव इन्फ्रेन्ट्री में अधिकारी था। यह दस्ता नसीराबाद में नियुक्त था। राजस्थान में विद्रोह का प्रारंभ इसी सैन्य दस्ते ने
किया था।
निम्नलिखित में से किस शासक ने 1857 के विद्रोहियों के दमन हेतु चलाए गए सैनिक अभियान में अंग्रेजोंकी ओर से सक्रिय भाग लिया था?
व्याख्या : 1857 के विद्रोह के समय बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह ने अंग्रेजों की सहायता के लिए अविलम्ब सेना भेजी थी। जनरल वॉन कोर्टलैण्ड के नेतृत्व में बीकानेर की राजकीय सेना ने सिरसा और हासा क विद्रोही जिलों में हिसार, हजारीपुर, जमालपुर, फाजिल्का आदि स्थानों पर विद्रोह के दमन का महत्वपूर्ण कार्य किया। सेना के संचालन हेतु महाराजा स्वयं अपनी सेना सहित राज्य का सामान पहँचा। राजपूताने के राजाओं में महाराजा सरदारसिंह ही एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने व्यक्तिगत से अंग्रेजों की तरफ से विद्रोहियों के दमन हेतु सैनिक अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
व्याख्या : 1857 के विद्रोह के समय बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह ने अंग्रेजों की सहायता के लिए अविलम्ब सेना भेजी थी। जनरल वॉन कोर्टलैण्ड के नेतृत्व में बीकानेर की राजकीय सेना ने सिरसा और हासा क विद्रोही जिलों में हिसार, हजारीपुर, जमालपुर, फाजिल्का आदि स्थानों पर विद्रोह के दमन का महत्वपूर्ण कार्य किया। सेना के संचालन हेतु महाराजा स्वयं अपनी सेना सहित राज्य का सामान पहँचा। राजपूताने के राजाओं में महाराजा सरदारसिंह ही एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने व्यक्तिगत से अंग्रेजों की तरफ से विद्रोहियों के दमन हेतु सैनिक अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
व्याख्या : 1857 के विद्रोह के समय बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह ने अंग्रेजों की सहायता के लिए अविलम्ब सेना भेजी थी। जनरल वॉन कोर्टलैण्ड के नेतृत्व में बीकानेर की राजकीय सेना ने सिरसा और हासा क विद्रोही जिलों में हिसार, हजारीपुर, जमालपुर, फाजिल्का आदि स्थानों पर विद्रोह के दमन का महत्वपूर्ण कार्य किया। सेना के संचालन हेतु महाराजा स्वयं अपनी सेना सहित राज्य का सामान पहँचा। राजपूताने के राजाओं में महाराजा सरदारसिंह ही एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने व्यक्तिगत से अंग्रेजों की तरफ से विद्रोहियों के दमन हेतु सैनिक अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
निम्नलिखित में से किस स्थान पर 1857 की क्रांति के दौरान मॉक मैसन मारा गया?
व्याख्या : 1857 की क्रांति के दौरान मारवाड की सेना के आऊवा में पराजित होने पर ए.जा.जा. लारस नेतृत्व में एक सेना लेकर आऊवा पहँचा। इस बात की सचना जोधपुर के पॉलिटिकल रजाडन्ट मा
तो वह भी आऊवा पहुँच गया परंतु गलती से विद्रोहियों द्वारा पकड़ लिया गया तथा विद्रोहियों ने मारकर उसका सिर आऊवा के गढ के प्रवेश द्वार पर लटका दिया।
व्याख्या : 1857 की क्रांति के दौरान मारवाड की सेना के आऊवा में पराजित होने पर ए.जा.जा. लारस नेतृत्व में एक सेना लेकर आऊवा पहँचा। इस बात की सचना जोधपुर के पॉलिटिकल रजाडन्ट मा
तो वह भी आऊवा पहुँच गया परंतु गलती से विद्रोहियों द्वारा पकड़ लिया गया तथा विद्रोहियों ने मारकर उसका सिर आऊवा के गढ के प्रवेश द्वार पर लटका दिया।
व्याख्या : 1857 की क्रांति के दौरान मारवाड की सेना के आऊवा में पराजित होने पर ए.जा.जा. लारस नेतृत्व में एक सेना लेकर आऊवा पहँचा। इस बात की सचना जोधपुर के पॉलिटिकल रजाडन्ट मा
तो वह भी आऊवा पहुँच गया परंतु गलती से विद्रोहियों द्वारा पकड़ लिया गया तथा विद्रोहियों ने मारकर उसका सिर आऊवा के गढ के प्रवेश द्वार पर लटका दिया।
15 वीं नेटिव इन्फ्रेंटी को नसीराबाद से अन्यत्र भेजने पर राजस्थान में 1857 में पहला विगाह कबजारमा हुआ?
व्याख्या : राजस्थान में 1857 का पहला विद्रोह 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी में बंगाल नेटिव इन्फ्रेंटीइन्फ्रेक्त्री के 15वें और 30वें रेजीमेण्ट के सैनिकों ब्रिटिश सरकार के द्वारा अन्यत्र स्थानांतरित करने के आदश क विरुद्ध आरंभ हुआ। क्योंकि इन दोनों रेजीमेंटों के सैनिक मेरठ से आए थे। जहाँ सर्वप्रथम 10 मई 1857ई. को क्रांति सूत्रपात हुआ था। इस कारण अंग्रेज अधिकारियों को इन सैनिकों पर भरोसा नहीं था, तथा उनके स्थान मेर रेजीमेंट के सैनिकों नियुक्त करने से सैनिकों में रोष था, जो क्रांति के रूप में फूटा।
व्याख्या : राजस्थान में 1857 का पहला विद्रोह 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी में बंगाल नेटिव इन्फ्रेंटीइन्फ्रेक्त्री के 15वें और 30वें रेजीमेण्ट के सैनिकों ब्रिटिश सरकार के द्वारा अन्यत्र स्थानांतरित करने के आदश क विरुद्ध आरंभ हुआ। क्योंकि इन दोनों रेजीमेंटों के सैनिक मेरठ से आए थे। जहाँ सर्वप्रथम 10 मई 1857ई. को क्रांति सूत्रपात हुआ था। इस कारण अंग्रेज अधिकारियों को इन सैनिकों पर भरोसा नहीं था, तथा उनके स्थान मेर रेजीमेंट के सैनिकों नियुक्त करने से सैनिकों में रोष था, जो क्रांति के रूप में फूटा।
व्याख्या : राजस्थान में 1857 का पहला विद्रोह 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी में बंगाल नेटिव इन्फ्रेंटीइन्फ्रेक्त्री के 15वें और 30वें रेजीमेण्ट के सैनिकों ब्रिटिश सरकार के द्वारा अन्यत्र स्थानांतरित करने के आदश क विरुद्ध आरंभ हुआ। क्योंकि इन दोनों रेजीमेंटों के सैनिक मेरठ से आए थे। जहाँ सर्वप्रथम 10 मई 1857ई. को क्रांति सूत्रपात हुआ था। इस कारण अंग्रेज अधिकारियों को इन सैनिकों पर भरोसा नहीं था, तथा उनके स्थान मेर रेजीमेंट के सैनिकों नियुक्त करने से सैनिकों में रोष था, जो क्रांति के रूप में फूटा।
कुशालसिंह की पराजय के बाद ब्रिटिश सेना ने आउवा पर कब्जा किया था
व्याख्या ;इस सेना ने 24 जनवरी 1858 को आउवा को घेर लिया. तब ठाकुर कुशालसिंह किले की रक्षा का भार अपने भाई पृथ्वीसिंह को सौपकर 23 जनवरी 1858 को सलूम्बर की ओर चला गया. किलेदार के विश्वासघात के कारण आउवा का पतन हो गया. ठाकुर कुशालसिंह ने 8 अगस्त 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
व्याख्या ;इस सेना ने 24 जनवरी 1858 को आउवा को घेर लिया. तब ठाकुर कुशालसिंह किले की रक्षा का भार अपने भाई पृथ्वीसिंह को सौपकर 23 जनवरी 1858 को सलूम्बर की ओर चला गया. किलेदार के विश्वासघात के कारण आउवा का पतन हो गया. ठाकुर कुशालसिंह ने 8 अगस्त 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
व्याख्या ;इस सेना ने 24 जनवरी 1858 को आउवा को घेर लिया. तब ठाकुर कुशालसिंह किले की रक्षा का भार अपने भाई पृथ्वीसिंह को सौपकर 23 जनवरी 1858 को सलूम्बर की ओर चला गया. किलेदार के विश्वासघात के कारण आउवा का पतन हो गया. ठाकुर कुशालसिंह ने 8 अगस्त 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
1857 के विद्रोह की शुरुआत के समय उदयपुर में ब्रिटिश रेजिडेन्ट (एजेन्ट) कौन था?
व्याख्या : 1857 ई. की क्रांति के समय कैप्टन सी.एल. शॉवर्स उदयपुर में ब्रिटिश रेजिडेन्ट था, वह मेवाड की सेना की सहायता से नीमच छावनी के विद्रोही सैनिकों को दबाने गया। इस समय के मेवाड शासक स्वरूप सिंह ने जगमंदिर पैलेस (उदयपुर) में नीमच छावनी से भागे कई ब्रिटिश अधिकारियों व उनके परिवारों को शरण दी।
व्याख्या : 1857 ई. की क्रांति के समय कैप्टन सी.एल. शॉवर्स उदयपुर में ब्रिटिश रेजिडेन्ट था, वह मेवाड की सेना की सहायता से नीमच छावनी के विद्रोही सैनिकों को दबाने गया। इस समय के मेवाड शासक स्वरूप सिंह ने जगमंदिर पैलेस (उदयपुर) में नीमच छावनी से भागे कई ब्रिटिश अधिकारियों व उनके परिवारों को शरण दी।
व्याख्या : 1857 ई. की क्रांति के समय कैप्टन सी.एल. शॉवर्स उदयपुर में ब्रिटिश रेजिडेन्ट था, वह मेवाड की सेना की सहायता से नीमच छावनी के विद्रोही सैनिकों को दबाने गया। इस समय के मेवाड शासक स्वरूप सिंह ने जगमंदिर पैलेस (उदयपुर) में नीमच छावनी से भागे कई ब्रिटिश अधिकारियों व उनके परिवारों को शरण दी।
नसीराबाद में 1857 की क्रान्ति हुई थी
व्याख्या : राजस्थान में क्रांति का आरंभ 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी से हुआ। सबसे पहले 15वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने विद्रोह की शुरुआत की। बाद में 30वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने भी विद्रोह में साथ दिया। विद्रोहियों ने सैन्य अधिकारी न्यूबेरी व वुड को मार डाला।
व्याख्या : राजस्थान में क्रांति का आरंभ 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी से हुआ। सबसे पहले 15वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने विद्रोह की शुरुआत की। बाद में 30वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने भी विद्रोह में साथ दिया। विद्रोहियों ने सैन्य अधिकारी न्यूबेरी व वुड को मार डाला।
व्याख्या : राजस्थान में क्रांति का आरंभ 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी से हुआ। सबसे पहले 15वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने विद्रोह की शुरुआत की। बाद में 30वीं नैटिव इन्फ्रेन्ट्री ने भी विद्रोह में साथ दिया। विद्रोहियों ने सैन्य अधिकारी न्यूबेरी व वुड को मार डाला।