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राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन
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1936 में मघाराम ने किस स्थान पर बीकानेर प्रजा मंडल की स्थापना की?
व्याख्या : 4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का। इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया, इसके पश्चात् 22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया। इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई। जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
व्याख्या : 4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का। इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया, इसके पश्चात् 22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया। इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई। जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
व्याख्या : 4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का। इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया, इसके पश्चात् 22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया। इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई। जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
पोपाबाई की पोल’ नामक पुस्तिका की रचना की गई थी
व्याख्या : जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर
के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
व्याख्या : जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर
के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
व्याख्या : जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर
के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
कन्हैयालाल मित्तल, मांगीलाल भव्य एवं मकबूल आलम किस राज्य प्रजामण्डल से सम्बद्ध थे?
झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना
हाडोती प्रजामंडल से प्रेरणापाकर झालावाड़ के स्वतंत्रता सेनानियों ने बाल गोविंद तिवारी के नेतृत्व में मित्र मंडल नामक राजनीतिक संगठन बनाया जिसने जन जागृति की और 1940 में उत्तरदायी शासनकी मांग की इन सब की गतिविधियों से और बदलती हुई परिस्थितियों के कारण 25 नवंबर 1946 को झालावाड़ प्रजामंडल का गठन किया गया झालावाड़ प्रजामंडल का गठन मांगीलाल भव्य ने मदन गोपाल ,कन्हैया लाल मित्तल, मकबूल आलम और रतन लाल के साथ मिलकर किया था मांगीलाल भव्य को झालावाड़ प्रजामंडल का अध्यक्षऔर मकबूल आलम को इसका उपाध्यक्षबनाया गया इस प्रजामंडल को नरेश हरिश्चंद्र सिंह का सीधा समर्थनप्राप्त था जो सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनेथे
झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना
हाडोती प्रजामंडल से प्रेरणापाकर झालावाड़ के स्वतंत्रता सेनानियों ने बाल गोविंद तिवारी के नेतृत्व में मित्र मंडल नामक राजनीतिक संगठन बनाया जिसने जन जागृति की और 1940 में उत्तरदायी शासनकी मांग की इन सब की गतिविधियों से और बदलती हुई परिस्थितियों के कारण 25 नवंबर 1946 को झालावाड़ प्रजामंडल का गठन किया गया झालावाड़ प्रजामंडल का गठन मांगीलाल भव्य ने मदन गोपाल ,कन्हैया लाल मित्तल, मकबूल आलम और रतन लाल के साथ मिलकर किया था मांगीलाल भव्य को झालावाड़ प्रजामंडल का अध्यक्षऔर मकबूल आलम को इसका उपाध्यक्षबनाया गया इस प्रजामंडल को नरेश हरिश्चंद्र सिंह का सीधा समर्थनप्राप्त था जो सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनेथे
झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना
हाडोती प्रजामंडल से प्रेरणापाकर झालावाड़ के स्वतंत्रता सेनानियों ने बाल गोविंद तिवारी के नेतृत्व में मित्र मंडल नामक राजनीतिक संगठन बनाया जिसने जन जागृति की और 1940 में उत्तरदायी शासनकी मांग की इन सब की गतिविधियों से और बदलती हुई परिस्थितियों के कारण 25 नवंबर 1946 को झालावाड़ प्रजामंडल का गठन किया गया झालावाड़ प्रजामंडल का गठन मांगीलाल भव्य ने मदन गोपाल ,कन्हैया लाल मित्तल, मकबूल आलम और रतन लाल के साथ मिलकर किया था मांगीलाल भव्य को झालावाड़ प्रजामंडल का अध्यक्षऔर मकबूल आलम को इसका उपाध्यक्षबनाया गया इस प्रजामंडल को नरेश हरिश्चंद्र सिंह का सीधा समर्थनप्राप्त था जो सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनेथे
किस राज्य के प्रजामण्डल ने 1935 ई. में कृष्णा दिवस’ मनाया?
व्याख्या : ‘कृष्णा दिवस’ मारवाड़ प्रजामंडल द्वारा मनाया गया था। 1935 में कृष्णा कुमारी नामक यवती
राजघराने से संबंधित किसी उच्च व्यक्ति की मिलीभगत से अपहरण कर लिया गया। इसकी शिका जब मारवाड़ प्रजामंडल के पास आई तो प्रजामंडल द्वारा सरकार से इस प्रकरण की जाँच की मांग गई। जब इस मांग पर उचित कार्यवाही नहीं हुई तो प्रजामंडल द्वारा इस घटना को प्रचारित किया ग और मारवाड़ में विद्यमान कुशासन व अन्याय की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट करने के लिए मध्य भारत में वर्ष 1935 में ‘कृष्णा दिवस’ का आयोजन किया गया।
व्याख्या : ‘कृष्णा दिवस’ मारवाड़ प्रजामंडल द्वारा मनाया गया था। 1935 में कृष्णा कुमारी नामक यवती
राजघराने से संबंधित किसी उच्च व्यक्ति की मिलीभगत से अपहरण कर लिया गया। इसकी शिका जब मारवाड़ प्रजामंडल के पास आई तो प्रजामंडल द्वारा सरकार से इस प्रकरण की जाँच की मांग गई। जब इस मांग पर उचित कार्यवाही नहीं हुई तो प्रजामंडल द्वारा इस घटना को प्रचारित किया ग और मारवाड़ में विद्यमान कुशासन व अन्याय की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट करने के लिए मध्य भारत में वर्ष 1935 में ‘कृष्णा दिवस’ का आयोजन किया गया।
व्याख्या : ‘कृष्णा दिवस’ मारवाड़ प्रजामंडल द्वारा मनाया गया था। 1935 में कृष्णा कुमारी नामक यवती
राजघराने से संबंधित किसी उच्च व्यक्ति की मिलीभगत से अपहरण कर लिया गया। इसकी शिका जब मारवाड़ प्रजामंडल के पास आई तो प्रजामंडल द्वारा सरकार से इस प्रकरण की जाँच की मांग गई। जब इस मांग पर उचित कार्यवाही नहीं हुई तो प्रजामंडल द्वारा इस घटना को प्रचारित किया ग और मारवाड़ में विद्यमान कुशासन व अन्याय की ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट करने के लिए मध्य भारत में वर्ष 1935 में ‘कृष्णा दिवस’ का आयोजन किया गया।
निम्नलिखित में से कौन बीकानेर षड्यंत्र मुकदमा’ से सम्बद्ध नहीं था?
शामिल हुए।
अप्रेल 1932 को सेशन जज ब्रजकिशोर चतुर्वेदी की अदालत में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, जो ‘बीकानेर षड़यंत्र अभियोग’ के नाम से जाना जाता है।
शामिल हुए।
अप्रेल 1932 को सेशन जज ब्रजकिशोर चतुर्वेदी की अदालत में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, जो ‘बीकानेर षड़यंत्र अभियोग’ के नाम से जाना जाता है।
शामिल हुए।
अप्रेल 1932 को सेशन जज ब्रजकिशोर चतुर्वेदी की अदालत में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, जो ‘बीकानेर षड़यंत्र अभियोग’ के नाम से जाना जाता है।
निम्न में से कौन-सा युग्म सही सुमेलित नहीं है?
व्याख्या : श्री जयनारायण व्यास ‘मारवाड़ लोक परिषद्’ (जोधपुर) के संस्थापक थे। व्यास ने ‘मारवाड सेवा संघ
एवं मारवाड़ लोक परिषद्’ के माध्यम से जोधपुर में निरंकुश शासन समाप्त करने तथा संवैधानिक एवं उत्तरदायी शासन की स्थापना में योगदान दिया। 1951 से 1954 तक वे राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे।
व्याख्या : श्री जयनारायण व्यास ‘मारवाड़ लोक परिषद्’ (जोधपुर) के संस्थापक थे। व्यास ने ‘मारवाड सेवा संघ
एवं मारवाड़ लोक परिषद्’ के माध्यम से जोधपुर में निरंकुश शासन समाप्त करने तथा संवैधानिक एवं उत्तरदायी शासन की स्थापना में योगदान दिया। 1951 से 1954 तक वे राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे।
व्याख्या : श्री जयनारायण व्यास ‘मारवाड़ लोक परिषद्’ (जोधपुर) के संस्थापक थे। व्यास ने ‘मारवाड सेवा संघ
एवं मारवाड़ लोक परिषद्’ के माध्यम से जोधपुर में निरंकुश शासन समाप्त करने तथा संवैधानिक एवं उत्तरदायी शासन की स्थापना में योगदान दिया। 1951 से 1954 तक वे राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे।
‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ का गठन किसने किया था?
व्याख्या : ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ की स्थापना 1921 ई. में जोधपर में जयनारायण व्यास, चांदमल सुराण” तथा आनन्दराज सुराणा ने की थी। मारवाड हितकारिणी सभा ने महाराजा के प्रति पर्ण निष्ठा जाहिर की तथा संस्था का मारमा के हितों के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
जोधपुर में मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना 1921 ई. में की गई थी| मारवाड़ हितकारिणी सभा ने अपनी दो पुस्तिकाएं “”मारवाड़ी की अवस्था”” और “”पोपाबाई की पोल”” प्रकाशित की जिनमें मारवाड़ प्रशासन की कटु आलोचना की गई थी| जयनारायण व्यास व आनन्दराज सुराणा को बन्दी बनाकर राज्य सरकार ने दमनचक्र चलाया था|
व्याख्या : ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ की स्थापना 1921 ई. में जोधपर में जयनारायण व्यास, चांदमल सुराण” तथा आनन्दराज सुराणा ने की थी। मारवाड हितकारिणी सभा ने महाराजा के प्रति पर्ण निष्ठा जाहिर की तथा संस्था का मारमा के हितों के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
जोधपुर में मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना 1921 ई. में की गई थी| मारवाड़ हितकारिणी सभा ने अपनी दो पुस्तिकाएं “”मारवाड़ी की अवस्था”” और “”पोपाबाई की पोल”” प्रकाशित की जिनमें मारवाड़ प्रशासन की कटु आलोचना की गई थी| जयनारायण व्यास व आनन्दराज सुराणा को बन्दी बनाकर राज्य सरकार ने दमनचक्र चलाया था|
व्याख्या : ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ की स्थापना 1921 ई. में जोधपर में जयनारायण व्यास, चांदमल सुराण” तथा आनन्दराज सुराणा ने की थी। मारवाड हितकारिणी सभा ने महाराजा के प्रति पर्ण निष्ठा जाहिर की तथा संस्था का मारमा के हितों के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
जोधपुर में मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना 1921 ई. में की गई थी| मारवाड़ हितकारिणी सभा ने अपनी दो पुस्तिकाएं “”मारवाड़ी की अवस्था”” और “”पोपाबाई की पोल”” प्रकाशित की जिनमें मारवाड़ प्रशासन की कटु आलोचना की गई थी| जयनारायण व्यास व आनन्दराज सुराणा को बन्दी बनाकर राज्य सरकार ने दमनचक्र चलाया था|
निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए
व्याख्या : पंडित नयनूराम शर्मा हाड़ौती अंचल के राजनीतिक कार्यकर्ता थे। 1922 में उन्होंने बूंदी के किसान
आंदोलन का नेतृत्व किया। 1938 में नयनूराम शर्मा ने अभिन्न हरि के सहयोग से कोटा प्रजामंडल की स्थापना की।
मारवाड़ किसान आंदोलन (1923-1947)
➤ मारवाड़ के किसान आंदोलन का सूत्रपात सन् 1922 में हो गया जब बाली व गोडबाड़ के भील-गरासियों ने मोतीलाल तेजावत के एकी आंदोलन से प्रभावित होकर जोधपुर राज्य को लगान देने से इंकार कर दिया।
➤ मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा गाय, भैंस और बकरी को राज्य से बाहर मुम्बई, अहमदाबाद, नसीराबाद और अजमेर भेजने के विरूद्ध जन आंदोलन किया।
➤ अगस्त 1924 में यह आंदोलन सफल हो गया और राज्य ने मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
➤ सन 1929 को मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जागीरों के किसानों को लाग-बाग तथा शोषण से मुक्ति दिलवाने के लिए पुनः आंदोलन चलाया।
➤ इस समय किसानो को 136 तरह की लाग और बेगार देनी पड़ती थी।
➤ जयप्रकाश नारायण के तरूण राजस्थान समाचार पत्र में इस आंदोलन को प्रमुखता से छापा गया।
➤ जोधपुर राज्य ने तरूण राजस्थान पर प्रतिबंध लगाते हुए 20 जनवरी 1930 को जयनारायण व्यास, आन्नदराज सुराणा तथा भंवर लाल सर्राफ को बंदी बना लिया।
➤ ठिकाने के खिलाफ 7 सितम्बर 1939 को लोक परिषद के नेतृत्व में किसानो ने लाग-बाग की समाप्ति के लिए आंदोलन किया और लाग-बाग देना बंद कर दिया।
➤ 28 मार्च 1942 को लाडनूं में उत्तरदायी शासन दिवस मनाने के लिए आये लोक परिषद कार्यकताओं पर लाठियों और भालों से हमला हुआ।
➤ महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने घटना की चारो तरफ निंदा की।
➤ लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 3 मार्च 1947 में आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए डीडवाना स्थित डाबडा पहुंचे।
➤ इनमें मथुरादास माथुर, द्वारका प्रसाद राजपुरोहित, राधाकृष्ण बोहरा ‘तात’ नृसिंह कच्छावा के नेतृत्व में पांच-छह सौ जाट किसान सम्मिलित थे।
➤ सम्मेलन पर हमला हुआ और दोनों तरफ से हिंसा का प्रयोग किया गया।
➤ जागीरदार की ओर से महताब सिंह और आंदोलनकारियों की ओर से जग्गू जाट तथा चुन्नीलाल मारे गए।
➤ डाबडा में पनाराम चैधरी और उनके पुत्र मोतीराम को लोक परिषद नेताओं को शरण देने के कारण मारा गया।
➤ इस हिंसा की पूरे देश के अखबारों सहित राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने आलोचना की।
➤ जून 1948 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में आजाद भारत में राजस्थान के मंत्रीमण्डल में नाथूराम मिर्धा कृषि मंत्री बने और 6 अप्रेल 1949 को मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट 1949 से किसानों को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो गए।
व्याख्या : पंडित नयनूराम शर्मा हाड़ौती अंचल के राजनीतिक कार्यकर्ता थे। 1922 में उन्होंने बूंदी के किसान
आंदोलन का नेतृत्व किया। 1938 में नयनूराम शर्मा ने अभिन्न हरि के सहयोग से कोटा प्रजामंडल की स्थापना की।
मारवाड़ किसान आंदोलन (1923-1947)
➤ मारवाड़ के किसान आंदोलन का सूत्रपात सन् 1922 में हो गया जब बाली व गोडबाड़ के भील-गरासियों ने मोतीलाल तेजावत के एकी आंदोलन से प्रभावित होकर जोधपुर राज्य को लगान देने से इंकार कर दिया।
➤ मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा गाय, भैंस और बकरी को राज्य से बाहर मुम्बई, अहमदाबाद, नसीराबाद और अजमेर भेजने के विरूद्ध जन आंदोलन किया।
➤ अगस्त 1924 में यह आंदोलन सफल हो गया और राज्य ने मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
➤ सन 1929 को मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जागीरों के किसानों को लाग-बाग तथा शोषण से मुक्ति दिलवाने के लिए पुनः आंदोलन चलाया।
➤ इस समय किसानो को 136 तरह की लाग और बेगार देनी पड़ती थी।
➤ जयप्रकाश नारायण के तरूण राजस्थान समाचार पत्र में इस आंदोलन को प्रमुखता से छापा गया।
➤ जोधपुर राज्य ने तरूण राजस्थान पर प्रतिबंध लगाते हुए 20 जनवरी 1930 को जयनारायण व्यास, आन्नदराज सुराणा तथा भंवर लाल सर्राफ को बंदी बना लिया।
➤ ठिकाने के खिलाफ 7 सितम्बर 1939 को लोक परिषद के नेतृत्व में किसानो ने लाग-बाग की समाप्ति के लिए आंदोलन किया और लाग-बाग देना बंद कर दिया।
➤ 28 मार्च 1942 को लाडनूं में उत्तरदायी शासन दिवस मनाने के लिए आये लोक परिषद कार्यकताओं पर लाठियों और भालों से हमला हुआ।
➤ महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने घटना की चारो तरफ निंदा की।
➤ लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 3 मार्च 1947 में आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए डीडवाना स्थित डाबडा पहुंचे।
➤ इनमें मथुरादास माथुर, द्वारका प्रसाद राजपुरोहित, राधाकृष्ण बोहरा ‘तात’ नृसिंह कच्छावा के नेतृत्व में पांच-छह सौ जाट किसान सम्मिलित थे।
➤ सम्मेलन पर हमला हुआ और दोनों तरफ से हिंसा का प्रयोग किया गया।
➤ जागीरदार की ओर से महताब सिंह और आंदोलनकारियों की ओर से जग्गू जाट तथा चुन्नीलाल मारे गए।
➤ डाबडा में पनाराम चैधरी और उनके पुत्र मोतीराम को लोक परिषद नेताओं को शरण देने के कारण मारा गया।
➤ इस हिंसा की पूरे देश के अखबारों सहित राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने आलोचना की।
➤ जून 1948 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में आजाद भारत में राजस्थान के मंत्रीमण्डल में नाथूराम मिर्धा कृषि मंत्री बने और 6 अप्रेल 1949 को मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट 1949 से किसानों को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो गए।
व्याख्या : पंडित नयनूराम शर्मा हाड़ौती अंचल के राजनीतिक कार्यकर्ता थे। 1922 में उन्होंने बूंदी के किसान
आंदोलन का नेतृत्व किया। 1938 में नयनूराम शर्मा ने अभिन्न हरि के सहयोग से कोटा प्रजामंडल की स्थापना की।
मारवाड़ किसान आंदोलन (1923-1947)
➤ मारवाड़ के किसान आंदोलन का सूत्रपात सन् 1922 में हो गया जब बाली व गोडबाड़ के भील-गरासियों ने मोतीलाल तेजावत के एकी आंदोलन से प्रभावित होकर जोधपुर राज्य को लगान देने से इंकार कर दिया।
➤ मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा गाय, भैंस और बकरी को राज्य से बाहर मुम्बई, अहमदाबाद, नसीराबाद और अजमेर भेजने के विरूद्ध जन आंदोलन किया।
➤ अगस्त 1924 में यह आंदोलन सफल हो गया और राज्य ने मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
➤ सन 1929 को मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जागीरों के किसानों को लाग-बाग तथा शोषण से मुक्ति दिलवाने के लिए पुनः आंदोलन चलाया।
➤ इस समय किसानो को 136 तरह की लाग और बेगार देनी पड़ती थी।
➤ जयप्रकाश नारायण के तरूण राजस्थान समाचार पत्र में इस आंदोलन को प्रमुखता से छापा गया।
➤ जोधपुर राज्य ने तरूण राजस्थान पर प्रतिबंध लगाते हुए 20 जनवरी 1930 को जयनारायण व्यास, आन्नदराज सुराणा तथा भंवर लाल सर्राफ को बंदी बना लिया।
➤ ठिकाने के खिलाफ 7 सितम्बर 1939 को लोक परिषद के नेतृत्व में किसानो ने लाग-बाग की समाप्ति के लिए आंदोलन किया और लाग-बाग देना बंद कर दिया।
➤ 28 मार्च 1942 को लाडनूं में उत्तरदायी शासन दिवस मनाने के लिए आये लोक परिषद कार्यकताओं पर लाठियों और भालों से हमला हुआ।
➤ महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने घटना की चारो तरफ निंदा की।
➤ लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 3 मार्च 1947 में आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए डीडवाना स्थित डाबडा पहुंचे।
➤ इनमें मथुरादास माथुर, द्वारका प्रसाद राजपुरोहित, राधाकृष्ण बोहरा ‘तात’ नृसिंह कच्छावा के नेतृत्व में पांच-छह सौ जाट किसान सम्मिलित थे।
➤ सम्मेलन पर हमला हुआ और दोनों तरफ से हिंसा का प्रयोग किया गया।
➤ जागीरदार की ओर से महताब सिंह और आंदोलनकारियों की ओर से जग्गू जाट तथा चुन्नीलाल मारे गए।
➤ डाबडा में पनाराम चैधरी और उनके पुत्र मोतीराम को लोक परिषद नेताओं को शरण देने के कारण मारा गया।
➤ इस हिंसा की पूरे देश के अखबारों सहित राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने आलोचना की।
➤ जून 1948 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में आजाद भारत में राजस्थान के मंत्रीमण्डल में नाथूराम मिर्धा कृषि मंत्री बने और 6 अप्रेल 1949 को मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट 1949 से किसानों को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो गए।
निम्नलिखित में से गलत युग्म की पहचान कीजिए
व्याख्या : माणिक्यलाल वर्मा – बिजोलिया किसान आंदोलन एवं मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़े थे। उन्होंने मेवाड़ में लोक जागृति, शैक्षिक चेतना जगाने जैसे कार्य किये। 1949 ई. में वे संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री बने व भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
1931 में श्री कांतिलाल द्वारा स्थापित। बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना 1944 में ऋषिदत्त मेहता द्वारा की गई।
व्याख्या : माणिक्यलाल वर्मा – बिजोलिया किसान आंदोलन एवं मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़े थे। उन्होंने मेवाड़ में लोक जागृति, शैक्षिक चेतना जगाने जैसे कार्य किये। 1949 ई. में वे संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री बने व भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
1931 में श्री कांतिलाल द्वारा स्थापित। बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना 1944 में ऋषिदत्त मेहता द्वारा की गई।
व्याख्या : माणिक्यलाल वर्मा – बिजोलिया किसान आंदोलन एवं मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़े थे। उन्होंने मेवाड़ में लोक जागृति, शैक्षिक चेतना जगाने जैसे कार्य किये। 1949 ई. में वे संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री बने व भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
1931 में श्री कांतिलाल द्वारा स्थापित। बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना 1944 में ऋषिदत्त मेहता द्वारा की गई।
कोटा राज्य प्रजामंडल के संस्थापक थे- .
व्याख्या : कोटा में सर्वप्रथम 1918 ई. में ‘कोटा प्रजा प्रतिनिधि सभा’ के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। 1927 ई. में कोटा राज्य प्रजामंडल नामक संस्था का गठन हुआ। परन्तु यह निष्क्रिय रही। 1933 में नयनूराम शर्मा ने नए प्रजामंडल के गठन के लिए प्रयास किया जो 1938 ई. में अस्तित्व में आया।
व्याख्या : कोटा में सर्वप्रथम 1918 ई. में ‘कोटा प्रजा प्रतिनिधि सभा’ के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। 1927 ई. में कोटा राज्य प्रजामंडल नामक संस्था का गठन हुआ। परन्तु यह निष्क्रिय रही। 1933 में नयनूराम शर्मा ने नए प्रजामंडल के गठन के लिए प्रयास किया जो 1938 ई. में अस्तित्व में आया।
व्याख्या : कोटा में सर्वप्रथम 1918 ई. में ‘कोटा प्रजा प्रतिनिधि सभा’ के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। 1927 ई. में कोटा राज्य प्रजामंडल नामक संस्था का गठन हुआ। परन्तु यह निष्क्रिय रही। 1933 में नयनूराम शर्मा ने नए प्रजामंडल के गठन के लिए प्रयास किया जो 1938 ई. में अस्तित्व में आया।
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन’ में किस रियासत की प्रजामंडल ने भाग नहीं लिया था?
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के प्रमुख नेता हीरालाल शास्त्री के जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल से अच्छे संबंध थे तथा जयपुर महाराजा के उत्तरदायी शासन स्थापित करने के आश्वासन से जयपुर का प्रजामंडल नेतत्व संतुष्ट हो गया। इस प्रकार हीरालाल शास्त्री ने आंदोलन से दूर रहने का प्रयास किया। प्रजामंडल के दूसरे नेताओं जिसमें बाबा हरिशचन्द्र, रामकरण जोशी, दौलतमल भंडारी, हंस डी. राय थे, ने भारत छोडो आंदोलन में प्रजामंडल द्वारा भाग न लेने व शास्त्रीजी के समझौतावादी नीतियों के विरुद्ध एक नये संगठन ‘आजाद मोर्चा’ का गठन कर शास्त्रीजी पर दबाव डाला। इस पर शास्त्रीजी ने आंदोलन प्रारंभ करने का विचार किया परंतु इसी दौरान जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल शास्त्रीजी के मध्य एक समझौता (‘जेन्टलमेन्स एग्रीमेन्ट’) हो गया। अब शास्त्रीजी ने महाराजा के विरुद्ध आंदोलन करने का विचार त्याग दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल इस आंदोलन से दूर ही रहा, परंतु इस प्रजामंडल के दूसरे वर्ग जिसने ‘आजाद मोर्चा’ का निर्माण किया था, उन्होंने इस समझौते को न मानते हुए आंदोलन जारी रखा।
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के प्रमुख नेता हीरालाल शास्त्री के जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल से अच्छे संबंध थे तथा जयपुर महाराजा के उत्तरदायी शासन स्थापित करने के आश्वासन से जयपुर का प्रजामंडल नेतत्व संतुष्ट हो गया। इस प्रकार हीरालाल शास्त्री ने आंदोलन से दूर रहने का प्रयास किया। प्रजामंडल के दूसरे नेताओं जिसमें बाबा हरिशचन्द्र, रामकरण जोशी, दौलतमल भंडारी, हंस डी. राय थे, ने भारत छोडो आंदोलन में प्रजामंडल द्वारा भाग न लेने व शास्त्रीजी के समझौतावादी नीतियों के विरुद्ध एक नये संगठन ‘आजाद मोर्चा’ का गठन कर शास्त्रीजी पर दबाव डाला। इस पर शास्त्रीजी ने आंदोलन प्रारंभ करने का विचार किया परंतु इसी दौरान जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल शास्त्रीजी के मध्य एक समझौता (‘जेन्टलमेन्स एग्रीमेन्ट’) हो गया। अब शास्त्रीजी ने महाराजा के विरुद्ध आंदोलन करने का विचार त्याग दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल इस आंदोलन से दूर ही रहा, परंतु इस प्रजामंडल के दूसरे वर्ग जिसने ‘आजाद मोर्चा’ का निर्माण किया था, उन्होंने इस समझौते को न मानते हुए आंदोलन जारी रखा।
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के प्रमुख नेता हीरालाल शास्त्री के जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल से अच्छे संबंध थे तथा जयपुर महाराजा के उत्तरदायी शासन स्थापित करने के आश्वासन से जयपुर का प्रजामंडल नेतत्व संतुष्ट हो गया। इस प्रकार हीरालाल शास्त्री ने आंदोलन से दूर रहने का प्रयास किया। प्रजामंडल के दूसरे नेताओं जिसमें बाबा हरिशचन्द्र, रामकरण जोशी, दौलतमल भंडारी, हंस डी. राय थे, ने भारत छोडो आंदोलन में प्रजामंडल द्वारा भाग न लेने व शास्त्रीजी के समझौतावादी नीतियों के विरुद्ध एक नये संगठन ‘आजाद मोर्चा’ का गठन कर शास्त्रीजी पर दबाव डाला। इस पर शास्त्रीजी ने आंदोलन प्रारंभ करने का विचार किया परंतु इसी दौरान जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल शास्त्रीजी के मध्य एक समझौता (‘जेन्टलमेन्स एग्रीमेन्ट’) हो गया। अब शास्त्रीजी ने महाराजा के विरुद्ध आंदोलन करने का विचार त्याग दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल इस आंदोलन से दूर ही रहा, परंतु इस प्रजामंडल के दूसरे वर्ग जिसने ‘आजाद मोर्चा’ का निर्माण किया था, उन्होंने इस समझौते को न मानते हुए आंदोलन जारी रखा।
जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद् का सातवाँ अधिवेशन कहाँ आयोजित हुआ था ?’
व्याख्या : उदयपुर में 31 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी 1946 तक अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का सातवां अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन में मांग की गई कि देशी राज्यों में तुरंत उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए और भावी भारतीय संघ में प्रजा के प्रतिनिधि भेजे जाएं।
व्याख्या : उदयपुर में 31 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी 1946 तक अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का सातवां अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन में मांग की गई कि देशी राज्यों में तुरंत उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए और भावी भारतीय संघ में प्रजा के प्रतिनिधि भेजे जाएं।
व्याख्या : उदयपुर में 31 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी 1946 तक अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का सातवां अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन में मांग की गई कि देशी राज्यों में तुरंत उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए और भावी भारतीय संघ में प्रजा के प्रतिनिधि भेजे जाएं।
जयनारायण व्यास के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है ?
व्याख्या : जयनारायण व्यास दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे –
व्याख्या : जयनारायण व्यास दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे –
व्याख्या : जयनारायण व्यास दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे –
‘मारवाड़ यूथ लीग’ के संस्थापक थे
व्याख्या : 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास, आनन्द राज सुराणा व भंवरलाल सर्राफ ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की। भानमल जैन इसके मंत्री बनाये गए। इस संस्था ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार जैसे कार्यक्रम चलाए।
व्याख्या : 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास, आनन्द राज सुराणा व भंवरलाल सर्राफ ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की। भानमल जैन इसके मंत्री बनाये गए। इस संस्था ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार जैसे कार्यक्रम चलाए।
व्याख्या : 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास, आनन्द राज सुराणा व भंवरलाल सर्राफ ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की। भानमल जैन इसके मंत्री बनाये गए। इस संस्था ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार जैसे कार्यक्रम चलाए।
‘करौली प्रजामण्डल’ की स्थापना की गई
व्याख्या : 1938 ई. में मुंशी त्रिलोकचन्द माथुर के नेतृत्व में करौली प्रजामंडल की स्थापना की गई। चिरंजीलाल शर्मा तथा कल्याणदास इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे। करौली राज परिवार से संबंधित ठाकुर पूरणसिंह एवं भंवरलाल ने भी इस प्रजामंडल में सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रजामंडल की स्थापना
जब देश की अन्य रियासतों में प्रजामंडल बने तो त्रिलोचन्द माथुर ने 1939 में चिरंजीलाल शर्मा मदनसिह आदि के सहयोग से करौली राज्य प्रजामंडल की स्थापना की| इस प्रजामंडल के प्रमुख नेता चिरंजीलाल शर्मा ,कल्याण दास गुप्ता, कृष्णा प्रसाद पूर्ण सिंह और मानसिंह थे| प्रजामंडल का आरंभिक उद्देश्य जनता का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास था, लेकिन सत्तावादी सरकार और राजा भीमपालइस संस्था को भी सहन नहीं कर सके| राज्य ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ कठोर बर्ताव किया| यह प्रजामंडल समय-समय पर प्रस्ताव पारित कर राज्य में शासन सुधार की मांग करता रहा| लेकिन प्रजामंडल और राज्य शासन के बीच कभी भी सीधा टकराव नहीं हुआ| इस कारण करौली प्रजामंडल को कोई आंदोलन नहीं करना पडा था|
व्याख्या : 1938 ई. में मुंशी त्रिलोकचन्द माथुर के नेतृत्व में करौली प्रजामंडल की स्थापना की गई। चिरंजीलाल शर्मा तथा कल्याणदास इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे। करौली राज परिवार से संबंधित ठाकुर पूरणसिंह एवं भंवरलाल ने भी इस प्रजामंडल में सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रजामंडल की स्थापना
जब देश की अन्य रियासतों में प्रजामंडल बने तो त्रिलोचन्द माथुर ने 1939 में चिरंजीलाल शर्मा मदनसिह आदि के सहयोग से करौली राज्य प्रजामंडल की स्थापना की| इस प्रजामंडल के प्रमुख नेता चिरंजीलाल शर्मा ,कल्याण दास गुप्ता, कृष्णा प्रसाद पूर्ण सिंह और मानसिंह थे| प्रजामंडल का आरंभिक उद्देश्य जनता का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास था, लेकिन सत्तावादी सरकार और राजा भीमपालइस संस्था को भी सहन नहीं कर सके| राज्य ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ कठोर बर्ताव किया| यह प्रजामंडल समय-समय पर प्रस्ताव पारित कर राज्य में शासन सुधार की मांग करता रहा| लेकिन प्रजामंडल और राज्य शासन के बीच कभी भी सीधा टकराव नहीं हुआ| इस कारण करौली प्रजामंडल को कोई आंदोलन नहीं करना पडा था|
व्याख्या : 1938 ई. में मुंशी त्रिलोकचन्द माथुर के नेतृत्व में करौली प्रजामंडल की स्थापना की गई। चिरंजीलाल शर्मा तथा कल्याणदास इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे। करौली राज परिवार से संबंधित ठाकुर पूरणसिंह एवं भंवरलाल ने भी इस प्रजामंडल में सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रजामंडल की स्थापना
जब देश की अन्य रियासतों में प्रजामंडल बने तो त्रिलोचन्द माथुर ने 1939 में चिरंजीलाल शर्मा मदनसिह आदि के सहयोग से करौली राज्य प्रजामंडल की स्थापना की| इस प्रजामंडल के प्रमुख नेता चिरंजीलाल शर्मा ,कल्याण दास गुप्ता, कृष्णा प्रसाद पूर्ण सिंह और मानसिंह थे| प्रजामंडल का आरंभिक उद्देश्य जनता का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास था, लेकिन सत्तावादी सरकार और राजा भीमपालइस संस्था को भी सहन नहीं कर सके| राज्य ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ कठोर बर्ताव किया| यह प्रजामंडल समय-समय पर प्रस्ताव पारित कर राज्य में शासन सुधार की मांग करता रहा| लेकिन प्रजामंडल और राज्य शासन के बीच कभी भी सीधा टकराव नहीं हुआ| इस कारण करौली प्रजामंडल को कोई आंदोलन नहीं करना पडा था|
राज्य के अत्याचार तथा जेल में अन्याय के विरुद्ध भूख हड़ताल के दौरान मारवाड़ लोक परिषद् के किस नेता की मृत्यु 19-06-1942 को हुई थी?
व्याख्या:
. बालमुकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के ‘जतिनदास’ नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खद्दर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में सत्याग्रहियों के जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई तब भारत रक्षा कानून के अंतर्गत इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए उन्होंने भूख हड़ताल शुरु कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
व्याख्या:
. बालमुकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के ‘जतिनदास’ नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खद्दर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में सत्याग्रहियों के जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई तब भारत रक्षा कानून के अंतर्गत इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए उन्होंने भूख हड़ताल शुरु कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
व्याख्या:
. बालमुकंद बिस्सा का संबंध जोधपुर रियासत से है। राजस्थान के ‘जतिनदास’ नाम से प्रसिद्ध बालमुकुंद दास का आरंभिक जीवन कलकत्ता में बीता। 1934 में जोधपुर आने के पश्चात् उन्होंने नागौर में चरखा संघ व खद्दर भंडार की स्थापना की। मई 1942 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में सत्याग्रहियों के जेल भरो आंदोलन की शुरुआत हुई तब भारत रक्षा कानून के अंतर्गत इन्हें गिरफ्तार कर जोधपुर सेन्ट्रल जेल में नज़रबंद कर दिया गया। जेल में राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए उन्होंने भूख हड़ताल शुरु कर दी, जिससे उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया व उचित उपचार के अभाव में 19 जून 1942 को इनका निधन हो गया।
सुमेलित कीजिए
संस्थाएँ स्थापना वर्ष
(A) राजस्थान सेवा संघ (i) 1921
(B) मारवाड़ हितकारिणी सभा (ii) 1927
(C) अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद (iii) 1921
(D) नरेन्द्र मंडल (iv) 1919
व्याख्या :
(A) राजस्थान सेवा संघ -1919
(B) मारवाड़ हितकारिणी सभा -1921
(C) अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद – 1927
(D) नरेन्द्र मंडल- 1921
व्याख्या :
(A) राजस्थान सेवा संघ -1919
(B) मारवाड़ हितकारिणी सभा -1921
(C) अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद – 1927
(D) नरेन्द्र मंडल- 1921
व्याख्या :
(A) राजस्थान सेवा संघ -1919
(B) मारवाड़ हितकारिणी सभा -1921
(C) अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद – 1927
(D) नरेन्द्र मंडल- 1921
कथन (A): 1938 में विभिन्न राज्यों में प्रजामण्डलों की स्थापना हुई।
कारण (R): 1938 में काँग्रेस ने राज्यों में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलनों के प्रति सहानुभूति प्रकट की।
व्याख्या : सन् 1938 में मेवाड़, अलवर, भरतपुर, शाहपुरा, धौलपुर, करौली राज्यों में प्रजामंडल की स्थापना हुई।
1938 से पूर्व रियासतों की जनता अपने स्तर पर ही राजनीतिक आंदोलन कर रही थी। इसके बाद कांग्रेस ने इन आंदोलनों को सक्रिय सहयोग देने की नीति अपनाई।
.1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व कांग्रेस ने देशी रियासतों की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपना रखी थी। ताकि शासक एवं सामंत राष्ट्रीय आंदोलन के विरोधी ना बने। 1938 को राजनीतिक-सामाजिक सुधारों को समर्थन देने की घोषणा की। इससे उत्साहित होकर रियासतों में प्रजामंडलों का गठन हुआ।
व्याख्या : सन् 1938 में मेवाड़, अलवर, भरतपुर, शाहपुरा, धौलपुर, करौली राज्यों में प्रजामंडल की स्थापना हुई।
1938 से पूर्व रियासतों की जनता अपने स्तर पर ही राजनीतिक आंदोलन कर रही थी। इसके बाद कांग्रेस ने इन आंदोलनों को सक्रिय सहयोग देने की नीति अपनाई।
.1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व कांग्रेस ने देशी रियासतों की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपना रखी थी। ताकि शासक एवं सामंत राष्ट्रीय आंदोलन के विरोधी ना बने। 1938 को राजनीतिक-सामाजिक सुधारों को समर्थन देने की घोषणा की। इससे उत्साहित होकर रियासतों में प्रजामंडलों का गठन हुआ।
व्याख्या : सन् 1938 में मेवाड़, अलवर, भरतपुर, शाहपुरा, धौलपुर, करौली राज्यों में प्रजामंडल की स्थापना हुई।
1938 से पूर्व रियासतों की जनता अपने स्तर पर ही राजनीतिक आंदोलन कर रही थी। इसके बाद कांग्रेस ने इन आंदोलनों को सक्रिय सहयोग देने की नीति अपनाई।
.1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व कांग्रेस ने देशी रियासतों की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपना रखी थी। ताकि शासक एवं सामंत राष्ट्रीय आंदोलन के विरोधी ना बने। 1938 को राजनीतिक-सामाजिक सुधारों को समर्थन देने की घोषणा की। इससे उत्साहित होकर रियासतों में प्रजामंडलों का गठन हुआ।
उस नेता को पहचानिए जो जयपुर प्रजामण्डल में सक्रिय नहीं था
व्याख्या : प्रयागराज भण्डारी मारवाड़ प्रजामंडल (जोधपुर) से संबंधित थे। 1920 में मारवाड़ की प्रथम राजनीतिक संस्था मारवाड़ सेवा संघ’ के अध्यक्ष दुर्गाशंकर व मंत्री प्रयागराज भण्डारी थे। यह संस्था राजस्थान सेवा संघ के साथ सम्बद्ध थी।
व्याख्या : प्रयागराज भण्डारी मारवाड़ प्रजामंडल (जोधपुर) से संबंधित थे। 1920 में मारवाड़ की प्रथम राजनीतिक संस्था मारवाड़ सेवा संघ’ के अध्यक्ष दुर्गाशंकर व मंत्री प्रयागराज भण्डारी थे। यह संस्था राजस्थान सेवा संघ के साथ सम्बद्ध थी।
व्याख्या : प्रयागराज भण्डारी मारवाड़ प्रजामंडल (जोधपुर) से संबंधित थे। 1920 में मारवाड़ की प्रथम राजनीतिक संस्था मारवाड़ सेवा संघ’ के अध्यक्ष दुर्गाशंकर व मंत्री प्रयागराज भण्डारी थे। यह संस्था राजस्थान सेवा संघ के साथ सम्बद्ध थी।
किस प्रजामण्डल आन्दोलन के तहत “कृष्णा दिवस‘ मनाया गया?
व्याख्या : कृष्णा दिवस ‘मारवाड़ प्रजा मडल’ द्वारा मारवाड़ की कृष्णा कुमारी को न्याय दिलवाने के लिए 1935 ई. में बंबई में मनाया गया था। .
व्याख्या : कृष्णा दिवस ‘मारवाड़ प्रजा मडल’ द्वारा मारवाड़ की कृष्णा कुमारी को न्याय दिलवाने के लिए 1935 ई. में बंबई में मनाया गया था। .
व्याख्या : कृष्णा दिवस ‘मारवाड़ प्रजा मडल’ द्वारा मारवाड़ की कृष्णा कुमारी को न्याय दिलवाने के लिए 1935 ई. में बंबई में मनाया गया था। .
“काँगड़ काण्ड” किस प्रजामण्डल आन्दोलन के दौरान घटित हुआ?
व्याख्या : बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जाने वाली घटना कांगड
कांड (रतनगढ़) थी। यह आंदोलन जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध उपजा स्वस्र्फत किसान आंदोलन था। 1946 में में खरीफ की फ़सल खराब होने पर अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी। इसके बावजूद किसानों से कर वसूली का प्रयास किया गया। इससे किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। कांगड़ के किसान बीकानेर के महाराजा सार्दुल सिंह के पास याचिका लेकर पहुंचे। इससे नाराज़ जमींदार ने कांगड़ गाँव (रतनगढ़) के किसानों के परिजनों पर अमानवीय अत्याचार किये। जिसे ‘कांगड़ कांड’ कहा जाता है।
व्याख्या : बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जाने वाली घटना कांगड
कांड (रतनगढ़) थी। यह आंदोलन जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध उपजा स्वस्र्फत किसान आंदोलन था। 1946 में में खरीफ की फ़सल खराब होने पर अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी। इसके बावजूद किसानों से कर वसूली का प्रयास किया गया। इससे किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। कांगड़ के किसान बीकानेर के महाराजा सार्दुल सिंह के पास याचिका लेकर पहुंचे। इससे नाराज़ जमींदार ने कांगड़ गाँव (रतनगढ़) के किसानों के परिजनों पर अमानवीय अत्याचार किये। जिसे ‘कांगड़ कांड’ कहा जाता है।
व्याख्या : बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जाने वाली घटना कांगड
कांड (रतनगढ़) थी। यह आंदोलन जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध उपजा स्वस्र्फत किसान आंदोलन था। 1946 में में खरीफ की फ़सल खराब होने पर अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी। इसके बावजूद किसानों से कर वसूली का प्रयास किया गया। इससे किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। कांगड़ के किसान बीकानेर के महाराजा सार्दुल सिंह के पास याचिका लेकर पहुंचे। इससे नाराज़ जमींदार ने कांगड़ गाँव (रतनगढ़) के किसानों के परिजनों पर अमानवीय अत्याचार किये। जिसे ‘कांगड़ कांड’ कहा जाता है।
. मारवाड़ पब्लिक ओर्डीनेंस कब जारी किया गया?
व्याख्या : जोधपुर प्रजामंडल आन्दोलन पर रोक लगाने के लिए मारवाड़ पब्लिक सोसायटी ओर्डीनेंस 1934 ई.
में जारी किया गया।
व्याख्या : जोधपुर प्रजामंडल आन्दोलन पर रोक लगाने के लिए मारवाड़ पब्लिक सोसायटी ओर्डीनेंस 1934 ई.
में जारी किया गया।
व्याख्या : जोधपुर प्रजामंडल आन्दोलन पर रोक लगाने के लिए मारवाड़ पब्लिक सोसायटी ओर्डीनेंस 1934 ई.
में जारी किया गया।
जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना ……. में ……..के द्वारा की गई थी
व्याख्या : 1931 ई. में जमनालाल बजाज तथा कर्पूरचंद पाटनी के प्रयासों से जयपुर प्रजामंडल की स्थापना हुई।
व्याख्या : 1931 ई. में जमनालाल बजाज तथा कर्पूरचंद पाटनी के प्रयासों से जयपुर प्रजामंडल की स्थापना हुई।
व्याख्या : 1931 ई. में जमनालाल बजाज तथा कर्पूरचंद पाटनी के प्रयासों से जयपुर प्रजामंडल की स्थापना हुई।
सर वी.टी. कृष्णामाचारी किस राज्य के दीवान थे?
व्याख्या : सर वी.टी. कृष्णामाचारी सर मिर्जा इस्माईल के उपरान्त जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री (1946-1949) थे। इससे पूर्व कृष्णामाचारी बड़ौदा परिवार के दीवान (1927-1944) रह चुके थे। मूलतः कृष्णामाचारी एक आई.सी.एस. अधिकारी थे।
व्याख्या : सर वी.टी. कृष्णामाचारी सर मिर्जा इस्माईल के उपरान्त जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री (1946-1949) थे। इससे पूर्व कृष्णामाचारी बड़ौदा परिवार के दीवान (1927-1944) रह चुके थे। मूलतः कृष्णामाचारी एक आई.सी.एस. अधिकारी थे।
व्याख्या : सर वी.टी. कृष्णामाचारी सर मिर्जा इस्माईल के उपरान्त जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री (1946-1949) थे। इससे पूर्व कृष्णामाचारी बड़ौदा परिवार के दीवान (1927-1944) रह चुके थे। मूलतः कृष्णामाचारी एक आई.सी.एस. अधिकारी थे।
भारत छोड़ो आन्दोलन के संचालन हेतु आजाद मोर्चा’ का गठन कहाँ हुआ था?
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री ने जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माईल से जेन्टलमेन्ट एग्रीमेन्ट करके प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रखा। जयपुर प्रजामंडल के नेताओं का एक वर्ग भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता था। जिसमें रामकरण जोशी, बाबा हरिश्चंद्र एवं दौलतमल भंडारी सम्मिलित थे। इन्होंने ‘आजाद मोर्चे ‘ का गठन कर आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया।
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री ने जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माईल से जेन्टलमेन्ट एग्रीमेन्ट करके प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रखा। जयपुर प्रजामंडल के नेताओं का एक वर्ग भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता था। जिसमें रामकरण जोशी, बाबा हरिश्चंद्र एवं दौलतमल भंडारी सम्मिलित थे। इन्होंने ‘आजाद मोर्चे ‘ का गठन कर आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया।
व्याख्या : जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री ने जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माईल से जेन्टलमेन्ट एग्रीमेन्ट करके प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रखा। जयपुर प्रजामंडल के नेताओं का एक वर्ग भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता था। जिसमें रामकरण जोशी, बाबा हरिश्चंद्र एवं दौलतमल भंडारी सम्मिलित थे। इन्होंने ‘आजाद मोर्चे ‘ का गठन कर आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया।
सुमेलित कीजिए
सूची-I(प्रजामंडल) सूची-II (संस्थापक)
व्याख्या :
(1) बीकानेर (मघाराम वैद्य -संस्थापक) |1936
(2) जैसलमेर (मीठालाल व्यास-संस्थापक ) 1945
(3) धौलपुर( ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु|-संस्थापक ) (कृष्णदत्त पालीवाल -अध्यक्ष)1936 .
(4) बाँसवाड़ा (भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी -संस्थापक) | 1945
व्याख्या :
(1) बीकानेर (मघाराम वैद्य -संस्थापक) |1936
(2) जैसलमेर (मीठालाल व्यास-संस्थापक ) 1945
(3) धौलपुर( ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु|-संस्थापक ) (कृष्णदत्त पालीवाल -अध्यक्ष)1936 .
(4) बाँसवाड़ा (भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी -संस्थापक) | 1945
व्याख्या :
(1) बीकानेर (मघाराम वैद्य -संस्थापक) |1936
(2) जैसलमेर (मीठालाल व्यास-संस्थापक ) 1945
(3) धौलपुर( ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु|-संस्थापक ) (कृष्णदत्त पालीवाल -अध्यक्ष)1936 .
(4) बाँसवाड़ा (भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी -संस्थापक) | 1945
सिरोही राज्य प्रजामण्डल का संस्थापक था
व्याख्या : जनवरी 1939, में सिरोही प्रजामंडल की स्थापना गोकुल भाई भट्ट ने की जो राजस्थान के गांधी के नाम
से प्रसिद्ध थे। वह संविधान सभा में बम्बई प्रांत के प्रतिनिधि थे।
व्याख्या : जनवरी 1939, में सिरोही प्रजामंडल की स्थापना गोकुल भाई भट्ट ने की जो राजस्थान के गांधी के नाम
से प्रसिद्ध थे। वह संविधान सभा में बम्बई प्रांत के प्रतिनिधि थे।
व्याख्या : जनवरी 1939, में सिरोही प्रजामंडल की स्थापना गोकुल भाई भट्ट ने की जो राजस्थान के गांधी के नाम
से प्रसिद्ध थे। वह संविधान सभा में बम्बई प्रांत के प्रतिनिधि थे।
‘जैन्टलमेन एग्रीमेन्ट’ का सम्बन्ध रहा है :
व्याख्या : जेंटलमेंस एग्रीमेन्ट जयपुर प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री एवं जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल के मध्य 1942 ई. में हुआ। इस एग्रीमेन्ट (समझौते) के अनुसार रियासती सरकार भविष्य में अंग्रेजों की मदद नहीं करेगी और राज्य में उत्तरदायी शासन की शीघ्र स्थापना की जाएगी। दूसरी तरफ हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में जयपुर प्रजामंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रियासत में आंदोलन ना करने का आश्वासन दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल भारत छोड़ो आंदोलन से अलग हो गया।
व्याख्या : जेंटलमेंस एग्रीमेन्ट जयपुर प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री एवं जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल के मध्य 1942 ई. में हुआ। इस एग्रीमेन्ट (समझौते) के अनुसार रियासती सरकार भविष्य में अंग्रेजों की मदद नहीं करेगी और राज्य में उत्तरदायी शासन की शीघ्र स्थापना की जाएगी। दूसरी तरफ हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में जयपुर प्रजामंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रियासत में आंदोलन ना करने का आश्वासन दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल भारत छोड़ो आंदोलन से अलग हो गया।
व्याख्या : जेंटलमेंस एग्रीमेन्ट जयपुर प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री एवं जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल के मध्य 1942 ई. में हुआ। इस एग्रीमेन्ट (समझौते) के अनुसार रियासती सरकार भविष्य में अंग्रेजों की मदद नहीं करेगी और राज्य में उत्तरदायी शासन की शीघ्र स्थापना की जाएगी। दूसरी तरफ हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में जयपुर प्रजामंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रियासत में आंदोलन ना करने का आश्वासन दिया। इस प्रकार जयपुर प्रजामंडल भारत छोड़ो आंदोलन से अलग हो गया।
मेवाड़ प्रजा मण्डल की स्थापना किसने की थी?
व्याख्या : 24 अप्रेल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा द्वारा उदयपुर में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की गई। बलवंतसिंह मेहता इसके अध्यक्ष चुने गये। माणिक्यलाल वर्मा द्वारा ‘मेवाड़ राज्य का शासन’ नामक पुस्तक अजमेर से प्रकाशित की गई इस पुस्तक में मेवाड़ रियासत की कार्यप्रणाली की आलोचना की गई थी।
व्याख्या : 24 अप्रेल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा द्वारा उदयपुर में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की गई। बलवंतसिंह मेहता इसके अध्यक्ष चुने गये। माणिक्यलाल वर्मा द्वारा ‘मेवाड़ राज्य का शासन’ नामक पुस्तक अजमेर से प्रकाशित की गई इस पुस्तक में मेवाड़ रियासत की कार्यप्रणाली की आलोचना की गई थी।
व्याख्या : 24 अप्रेल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा द्वारा उदयपुर में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की गई। बलवंतसिंह मेहता इसके अध्यक्ष चुने गये। माणिक्यलाल वर्मा द्वारा ‘मेवाड़ राज्य का शासन’ नामक पुस्तक अजमेर से प्रकाशित की गई इस पुस्तक में मेवाड़ रियासत की कार्यप्रणाली की आलोचना की गई थी।