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राजस्थान में कृषक आन्दोलन और आदिवासी आन्दोलन
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. किस समाचार-पत्र के माध्यम से विजयसिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को समूचे भारत में का विषय बनाया?
व्याख्या : पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गोश विद्यार्थी को पत्र लिखा। इस पर विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया। इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
व्याख्या : पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गोश विद्यार्थी को पत्र लिखा। इस पर विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया। इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
व्याख्या : पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गोश विद्यार्थी को पत्र लिखा। इस पर विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया। इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिए गए कूटों की सहायता से सही उत्तर का
चयन कीजिए
आन्दोलन/घटनाएँ) (आन्दोलन/घटनाओं के प्रारम्भ होने का वर्ष)
सूची-I सूची-II
(1) बिजोलिया (a) 1942
(II) सीकर (b) 1947
(III) डाबड़ा (c) 1922
(IV) चण्डावल (d) 1897
व्याख्या : चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं । मारवाड़ लाकर ने किसानों पर हो रहे जागीरदारी अत्याचार का विरोध करने के लिए 28 मार्च 1942 को चण्डावर (सोजत ठिकाना) में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया। चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई। चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
व्याख्या : चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं । मारवाड़ लाकर ने किसानों पर हो रहे जागीरदारी अत्याचार का विरोध करने के लिए 28 मार्च 1942 को चण्डावर (सोजत ठिकाना) में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया। चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई। चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
व्याख्या : चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं । मारवाड़ लाकर ने किसानों पर हो रहे जागीरदारी अत्याचार का विरोध करने के लिए 28 मार्च 1942 को चण्डावर (सोजत ठिकाना) में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया। चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई। चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
राजस्थान में स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान 1921-22 में भील आन्दोलन का नेतृत्व किया था
व्याख्या : ‘मेवाड़ के गांधी’ के नाम से प्रसिद्ध मोतीलाल तेजावत ने अत्यधिक करों, बेगार व सामंती अत्याचार
के विरुद्ध 1921 ई. में मातृकुण्डिया (चित्तौड़) में भीलों के लिए ‘एकी आंदोलन’ का प्रारंभ किया। जुलाई 1921 में तेजावत द्वारा भीलों के लिए असहयोग आंदोलन चलाया गया।
व्याख्या : ‘मेवाड़ के गांधी’ के नाम से प्रसिद्ध मोतीलाल तेजावत ने अत्यधिक करों, बेगार व सामंती अत्याचार
के विरुद्ध 1921 ई. में मातृकुण्डिया (चित्तौड़) में भीलों के लिए ‘एकी आंदोलन’ का प्रारंभ किया। जुलाई 1921 में तेजावत द्वारा भीलों के लिए असहयोग आंदोलन चलाया गया।
व्याख्या : ‘मेवाड़ के गांधी’ के नाम से प्रसिद्ध मोतीलाल तेजावत ने अत्यधिक करों, बेगार व सामंती अत्याचार
के विरुद्ध 1921 ई. में मातृकुण्डिया (चित्तौड़) में भीलों के लिए ‘एकी आंदोलन’ का प्रारंभ किया। जुलाई 1921 में तेजावत द्वारा भीलों के लिए असहयोग आंदोलन चलाया गया।
गोविन्दगिरी के नेतृत्व में भील आन्दोलन को दबाने के लिए मानगढ़ का जनसंहार किस वर्ष में हुआ थी
व्याख्या : जब गोविन्दगिरी एवं उसके भील अनुयायियों को डूंगरपुर राज्य से निष्कासित कर दिया गया और अन्य राज्य (ईडर) ने भी गोविन्द गुरु को स्वीकार नहीं किया तो खिन्न होकर भील समुदाय भील राज्य’ की स्थापना को उत्कंठित हो गया। ईडर व बांसवाड़ा की सीमा पर स्थित मानगढ़ की पहाड़ियों पर भील समुदाय ने डेरा जमा लिया। 17 नवम्बर 1913 को एकत्रित भीलों पर मेवाड़ भील कोर, वेलेजली रायफल्स व सातवीं राजपूत रेजीमेंट के सैनिकों ने गोलियाँ बरसाकर 1500 स्त्री-पुरुषों को मार डाला।
व्याख्या : जब गोविन्दगिरी एवं उसके भील अनुयायियों को डूंगरपुर राज्य से निष्कासित कर दिया गया और अन्य राज्य (ईडर) ने भी गोविन्द गुरु को स्वीकार नहीं किया तो खिन्न होकर भील समुदाय भील राज्य’ की स्थापना को उत्कंठित हो गया। ईडर व बांसवाड़ा की सीमा पर स्थित मानगढ़ की पहाड़ियों पर भील समुदाय ने डेरा जमा लिया। 17 नवम्बर 1913 को एकत्रित भीलों पर मेवाड़ भील कोर, वेलेजली रायफल्स व सातवीं राजपूत रेजीमेंट के सैनिकों ने गोलियाँ बरसाकर 1500 स्त्री-पुरुषों को मार डाला।
व्याख्या : जब गोविन्दगिरी एवं उसके भील अनुयायियों को डूंगरपुर राज्य से निष्कासित कर दिया गया और अन्य राज्य (ईडर) ने भी गोविन्द गुरु को स्वीकार नहीं किया तो खिन्न होकर भील समुदाय भील राज्य’ की स्थापना को उत्कंठित हो गया। ईडर व बांसवाड़ा की सीमा पर स्थित मानगढ़ की पहाड़ियों पर भील समुदाय ने डेरा जमा लिया। 17 नवम्बर 1913 को एकत्रित भीलों पर मेवाड़ भील कोर, वेलेजली रायफल्स व सातवीं राजपूत रेजीमेंट के सैनिकों ने गोलियाँ बरसाकर 1500 स्त्री-पुरुषों को मार डाला।
1927 में कुंवर मदनसिंह के नेतृत्व में किसानों ने कहाँ आन्दोलन किया हैं ?
व्याख्या : करौली में जन जागृति एवं रचनात्मक कार्यों की शुरुआत ठाकुर पूरणसिंह व कुंवर मदनसिंह ने की थी।
व्याख्या : करौली में जन जागृति एवं रचनात्मक कार्यों की शुरुआत ठाकुर पूरणसिंह व कुंवर मदनसिंह ने की थी।
व्याख्या : करौली में जन जागृति एवं रचनात्मक कार्यों की शुरुआत ठाकुर पूरणसिंह व कुंवर मदनसिंह ने की थी।
“मीणा क्षेत्रीय सभा”की स्थापना की गई
व्याख्या : 1924 ई. में भारत सरकार द्वारा ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ तथा जयपुर राज्य ने जरायम पेशा कानून-1930
(दादरी अधिनियम) लागू किया। इस कानून के अनुसार मीणा समुदाय के सभी स्त्री पुरुषों को रोजाना थाने में हाजरी देने के लिए पाबंद किया जाता था, अत: मीणा सुधार समिति की स्थापना महादेव राम पाबड़ी, छोटूमल झरवाल, जवाहरराम, मानोलाल द्वारा की गई। परंतु जयपुर रियासत द्वारा इस कानून के कठोरता से पालन करवाने के कारण 1933 में ‘मीणा क्षेत्री सभा’ की स्थापना की गई, जिसने जयपुर सरकार से जयराम पेशा कानून समाप्त करने की मांग की पर सरकार ने इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
व्याख्या : 1924 ई. में भारत सरकार द्वारा ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ तथा जयपुर राज्य ने जरायम पेशा कानून-1930
(दादरी अधिनियम) लागू किया। इस कानून के अनुसार मीणा समुदाय के सभी स्त्री पुरुषों को रोजाना थाने में हाजरी देने के लिए पाबंद किया जाता था, अत: मीणा सुधार समिति की स्थापना महादेव राम पाबड़ी, छोटूमल झरवाल, जवाहरराम, मानोलाल द्वारा की गई। परंतु जयपुर रियासत द्वारा इस कानून के कठोरता से पालन करवाने के कारण 1933 में ‘मीणा क्षेत्री सभा’ की स्थापना की गई, जिसने जयपुर सरकार से जयराम पेशा कानून समाप्त करने की मांग की पर सरकार ने इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
व्याख्या : 1924 ई. में भारत सरकार द्वारा ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ तथा जयपुर राज्य ने जरायम पेशा कानून-1930
(दादरी अधिनियम) लागू किया। इस कानून के अनुसार मीणा समुदाय के सभी स्त्री पुरुषों को रोजाना थाने में हाजरी देने के लिए पाबंद किया जाता था, अत: मीणा सुधार समिति की स्थापना महादेव राम पाबड़ी, छोटूमल झरवाल, जवाहरराम, मानोलाल द्वारा की गई। परंतु जयपुर रियासत द्वारा इस कानून के कठोरता से पालन करवाने के कारण 1933 में ‘मीणा क्षेत्री सभा’ की स्थापना की गई, जिसने जयपुर सरकार से जयराम पेशा कानून समाप्त करने की मांग की पर सरकार ने इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
भरतपुर का जाट नेता जिसने शेखावटी के जाट कृषकों को विद्रोह हेतु प्रेरित किया, वह था
व्याख्या : भरतपुर के जाट नेता देशराज ने सीकर और शेखावटी के जाट किसानों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया व जाटों को संगठित करने के उद्देश्य से सितंबर 1933 ई. में पलथाना (सीकर) में एक सभा का आयोजन कर सीकर में एक महायज्ञ करने का निर्णय लिया गया, जो 20 जनवरी 1934 को सीकर में पं. खेमराज शर्मा की देखरेख में प्रारंभ हुआ।
व्याख्या : भरतपुर के जाट नेता देशराज ने सीकर और शेखावटी के जाट किसानों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया व जाटों को संगठित करने के उद्देश्य से सितंबर 1933 ई. में पलथाना (सीकर) में एक सभा का आयोजन कर सीकर में एक महायज्ञ करने का निर्णय लिया गया, जो 20 जनवरी 1934 को सीकर में पं. खेमराज शर्मा की देखरेख में प्रारंभ हुआ।
व्याख्या : भरतपुर के जाट नेता देशराज ने सीकर और शेखावटी के जाट किसानों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया व जाटों को संगठित करने के उद्देश्य से सितंबर 1933 ई. में पलथाना (सीकर) में एक सभा का आयोजन कर सीकर में एक महायज्ञ करने का निर्णय लिया गया, जो 20 जनवरी 1934 को सीकर में पं. खेमराज शर्मा की देखरेख में प्रारंभ हुआ।
राजस्थान के “जलियावाला बाग” नाम से प्रख्यात स्थान ‘मानगढ़ धाम स्थित है
व्याख्या : गोविन्दगिरी ने डूंगरपुर से निष्कासित होने के बाद अक्टूबर 1913 में बाँसवाड़ा रियासत की मानगढ़ पहाड़ी पर अपना ठिकाना बनाया। गोविन्द गिरी के शिष्य पूंजा धीरजी ने प्रचारित किया कि गोविन्द गरु शीघ्र ही भील राज’ की स्थापना कर देंगे। भील समुदाय को आगामी कार्तिक पूर्णिमा (13 नवम्बर 1913) पर एक धार्मिक मेले के लिए मानगढ़ पहाड़ी पर आमंत्रित किया गया। बड़ी संख्या में भील मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्रित होने लगे। इस बीच पूंजा धीरजी ने एक रियासती सैनिक की हत्या कर दी। 17 नवम्बर को मेवाड़ भील कॉर्प तथा डूंगरपुर, बांसवाड़ा रियासत की संयुक्त सेना ने मानगढ़ पहाड़ी खाली करवाने हेतु सैन्य कार्यवाही की। इसमें लगभग 1500 भील पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे मारे गए। इस घटना को ‘राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड’ भी कहा जाता है।
व्याख्या : गोविन्दगिरी ने डूंगरपुर से निष्कासित होने के बाद अक्टूबर 1913 में बाँसवाड़ा रियासत की मानगढ़ पहाड़ी पर अपना ठिकाना बनाया। गोविन्द गिरी के शिष्य पूंजा धीरजी ने प्रचारित किया कि गोविन्द गरु शीघ्र ही भील राज’ की स्थापना कर देंगे। भील समुदाय को आगामी कार्तिक पूर्णिमा (13 नवम्बर 1913) पर एक धार्मिक मेले के लिए मानगढ़ पहाड़ी पर आमंत्रित किया गया। बड़ी संख्या में भील मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्रित होने लगे। इस बीच पूंजा धीरजी ने एक रियासती सैनिक की हत्या कर दी। 17 नवम्बर को मेवाड़ भील कॉर्प तथा डूंगरपुर, बांसवाड़ा रियासत की संयुक्त सेना ने मानगढ़ पहाड़ी खाली करवाने हेतु सैन्य कार्यवाही की। इसमें लगभग 1500 भील पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे मारे गए। इस घटना को ‘राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड’ भी कहा जाता है।
व्याख्या : गोविन्दगिरी ने डूंगरपुर से निष्कासित होने के बाद अक्टूबर 1913 में बाँसवाड़ा रियासत की मानगढ़ पहाड़ी पर अपना ठिकाना बनाया। गोविन्द गिरी के शिष्य पूंजा धीरजी ने प्रचारित किया कि गोविन्द गरु शीघ्र ही भील राज’ की स्थापना कर देंगे। भील समुदाय को आगामी कार्तिक पूर्णिमा (13 नवम्बर 1913) पर एक धार्मिक मेले के लिए मानगढ़ पहाड़ी पर आमंत्रित किया गया। बड़ी संख्या में भील मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्रित होने लगे। इस बीच पूंजा धीरजी ने एक रियासती सैनिक की हत्या कर दी। 17 नवम्बर को मेवाड़ भील कॉर्प तथा डूंगरपुर, बांसवाड़ा रियासत की संयुक्त सेना ने मानगढ़ पहाड़ी खाली करवाने हेतु सैन्य कार्यवाही की। इसमें लगभग 1500 भील पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे मारे गए। इस घटना को ‘राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड’ भी कहा जाता है।
1857 की क्रांति के समय धौलपुर का शासक था
व्याख्या : 1857 की क्रांति के समय धौलपुर के शासक भगवन्तसिंह थे। अक्टूबर 1857 में ग्वालियर व इंदौर के विद्रोहियों द्वारा धौलपुर नरेश को घेरकर बंदी बना लिया गया। राव रामचन्द्र तथा हीरालाल ने धौलपुर से शाही तोपें लूटकर उनका उपयोग आगरा में विद्रोह के दौरान किया। अंत में पटियाला नरेश ने भगवन्तसिंह के अनुरोध पर सैनिक भेजकर धौलपुर नरेश को विद्रोहियों से बचाया।
व्याख्या : 1857 की क्रांति के समय धौलपुर के शासक भगवन्तसिंह थे। अक्टूबर 1857 में ग्वालियर व इंदौर के विद्रोहियों द्वारा धौलपुर नरेश को घेरकर बंदी बना लिया गया। राव रामचन्द्र तथा हीरालाल ने धौलपुर से शाही तोपें लूटकर उनका उपयोग आगरा में विद्रोह के दौरान किया। अंत में पटियाला नरेश ने भगवन्तसिंह के अनुरोध पर सैनिक भेजकर धौलपुर नरेश को विद्रोहियों से बचाया।
व्याख्या : 1857 की क्रांति के समय धौलपुर के शासक भगवन्तसिंह थे। अक्टूबर 1857 में ग्वालियर व इंदौर के विद्रोहियों द्वारा धौलपुर नरेश को घेरकर बंदी बना लिया गया। राव रामचन्द्र तथा हीरालाल ने धौलपुर से शाही तोपें लूटकर उनका उपयोग आगरा में विद्रोह के दौरान किया। अंत में पटियाला नरेश ने भगवन्तसिंह के अनुरोध पर सैनिक भेजकर धौलपुर नरेश को विद्रोहियों से बचाया।
“मेवाड़ पुकार’ 21 सूत्रीय मांगपत्र का सम्बन्ध किससे था?
व्याख्या : ‘मेवाड़ पुकार’ 21 सूत्री मांग पत्र था, जो मोतीलाल तेजावत द्वारा 1921 ई. में मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को लिखा गया था।
व्याख्या : ‘मेवाड़ पुकार’ 21 सूत्री मांग पत्र था, जो मोतीलाल तेजावत द्वारा 1921 ई. में मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को लिखा गया था।
व्याख्या : ‘मेवाड़ पुकार’ 21 सूत्री मांग पत्र था, जो मोतीलाल तेजावत द्वारा 1921 ई. में मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को लिखा गया था।
“किसान पंचायत’ जिसकी स्थापना सन् 1916-1917 ई. में की गई थी, इस संगठन का सबंध था
व्याख्या : विजय सिंह पथिक द्वारा सन् 1917 में बारीसाल गांव में ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड (किसान पंचायत बोर्ड)’ नामक संगठन की स्थापना की। यह बिजोलिया से संबंधित था। श्री मन्ना पटेल इस पंचायत के सरपंच बने।
व्याख्या : विजय सिंह पथिक द्वारा सन् 1917 में बारीसाल गांव में ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड (किसान पंचायत बोर्ड)’ नामक संगठन की स्थापना की। यह बिजोलिया से संबंधित था। श्री मन्ना पटेल इस पंचायत के सरपंच बने।
व्याख्या : विजय सिंह पथिक द्वारा सन् 1917 में बारीसाल गांव में ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड (किसान पंचायत बोर्ड)’ नामक संगठन की स्थापना की। यह बिजोलिया से संबंधित था। श्री मन्ना पटेल इस पंचायत के सरपंच बने।
. विजयसिंह पथिक से सम्बन्धित निम्न कथनों पर विचार कीजिए
(A) रास बिहारी बोस के क्रान्तिकारी दल से सम्बन्धित थे।
(B) इन्होंने विद्या प्रचारणी सभा स्थापित की।
(C) इन्होंने सेवा समिति की स्थापना की।
(D) साधु सीताराम दास के साथ मिलकर एक अखाड़ा स्थापित किया।
उपर्युक्त में से कौनसा सही है ?
व्याख्या : विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। वह सचीन्द्र सान्याल और रासबिहारी बोस जैसे
क्रांतिकारियों के सहयोगी थे। बोस ने उन्हें 1915 में राजस्थान में क्रांति का आयोजन करने हेतु खरवा ठाकर गोपालसिंह के पास भेजा था। परंतु प्रथम विश्व युद्ध के दौरान किए जाने वाले सशस्त्र विद्रोह (19 फरवरी 1915) की योजना निष्फल हो गई और भूपसिंह खरवा ठाकुर गोपाल सिंह के साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा टाडगढ़ में नजरबंद कर दिए गए। टाडगढ़ से गुपचुप निकल कर भूपसिंह मेवाड़ पहुँचे और अपनी पहचान बदल कर विजयसिंह के नाम से जाने गए।
विजयसिंह पथिक द्वारा 1915 ई. में चित्तौड़गढ़ में विद्या प्रचारिणी सभा’ की सदस्यता ग्रहण की।
और एक अखाड़ा प्रारंभ किया। .विजयसिंह पथिक के प्रयासों से 1919 ई. में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना वर्धा (महाराष्ट्र) में की गई बाद में 1920 में इसका मुख्यालय अजमेर बनाया गया।
व्याख्या : विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। वह सचीन्द्र सान्याल और रासबिहारी बोस जैसे
क्रांतिकारियों के सहयोगी थे। बोस ने उन्हें 1915 में राजस्थान में क्रांति का आयोजन करने हेतु खरवा ठाकर गोपालसिंह के पास भेजा था। परंतु प्रथम विश्व युद्ध के दौरान किए जाने वाले सशस्त्र विद्रोह (19 फरवरी 1915) की योजना निष्फल हो गई और भूपसिंह खरवा ठाकुर गोपाल सिंह के साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा टाडगढ़ में नजरबंद कर दिए गए। टाडगढ़ से गुपचुप निकल कर भूपसिंह मेवाड़ पहुँचे और अपनी पहचान बदल कर विजयसिंह के नाम से जाने गए।
विजयसिंह पथिक द्वारा 1915 ई. में चित्तौड़गढ़ में विद्या प्रचारिणी सभा’ की सदस्यता ग्रहण की।
और एक अखाड़ा प्रारंभ किया। .विजयसिंह पथिक के प्रयासों से 1919 ई. में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना वर्धा (महाराष्ट्र) में की गई बाद में 1920 में इसका मुख्यालय अजमेर बनाया गया।
व्याख्या : विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। वह सचीन्द्र सान्याल और रासबिहारी बोस जैसे
क्रांतिकारियों के सहयोगी थे। बोस ने उन्हें 1915 में राजस्थान में क्रांति का आयोजन करने हेतु खरवा ठाकर गोपालसिंह के पास भेजा था। परंतु प्रथम विश्व युद्ध के दौरान किए जाने वाले सशस्त्र विद्रोह (19 फरवरी 1915) की योजना निष्फल हो गई और भूपसिंह खरवा ठाकुर गोपाल सिंह के साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा टाडगढ़ में नजरबंद कर दिए गए। टाडगढ़ से गुपचुप निकल कर भूपसिंह मेवाड़ पहुँचे और अपनी पहचान बदल कर विजयसिंह के नाम से जाने गए।
विजयसिंह पथिक द्वारा 1915 ई. में चित्तौड़गढ़ में विद्या प्रचारिणी सभा’ की सदस्यता ग्रहण की।
और एक अखाड़ा प्रारंभ किया। .विजयसिंह पथिक के प्रयासों से 1919 ई. में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना वर्धा (महाराष्ट्र) में की गई बाद में 1920 में इसका मुख्यालय अजमेर बनाया गया।
17 जुलाई, 1946 को किस राज्य में बीरबल दिवस’ मनाया गया?
व्याख्या : अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर (ढालिया) आजादी के संघर्ष में बीकानेर के रायसिंहनगर में, जुलाई 1946 में आंदोलन के समय पुलिस की गोलियों से शहीद हो गये। वे बीकानेर प्रजामंडल सदस्य थे, अतः बीकानेर प्रजामंडल द्वारा 17 जुलाई, 1946 को ‘बीरबल दिवस’ मनाया गया।
व्याख्या : अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर (ढालिया) आजादी के संघर्ष में बीकानेर के रायसिंहनगर में, जुलाई 1946 में आंदोलन के समय पुलिस की गोलियों से शहीद हो गये। वे बीकानेर प्रजामंडल सदस्य थे, अतः बीकानेर प्रजामंडल द्वारा 17 जुलाई, 1946 को ‘बीरबल दिवस’ मनाया गया।
व्याख्या : अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर (ढालिया) आजादी के संघर्ष में बीकानेर के रायसिंहनगर में, जुलाई 1946 में आंदोलन के समय पुलिस की गोलियों से शहीद हो गये। वे बीकानेर प्रजामंडल सदस्य थे, अतः बीकानेर प्रजामंडल द्वारा 17 जुलाई, 1946 को ‘बीरबल दिवस’ मनाया गया।
प्रसिद्ध भगत आन्दोलन का नेतृत्व किया गया था
व्याख्या :गोविन्दगिरि या गोविङ गुरु (1858-1931), भारत के एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे जिन्होने वर्तमान राजस्थान और गुजरात के आदिवासी बहुल सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘भगत आन्दोलन‘ चलाया। गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बर, 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया (बेड़िया) गांव में गोवारिया जाति के एक बंजारा परिवार में हुआ था।
भगत आंदोलन 20वीं सदी के प्रारंभ में भीलों के संस्कृतिकरण की प्रक्रिया थी जिसके प्रणेता गोविन्द गिरी थे। यह सदाचार तथा शुचिता पर आधारित आंदोलन था; जिसमें भगवान शंकर की निर्गुण रूप में अराधना की जाती थी। भगत आंदोलन में आचरण की शुद्धता (चोरी नहीं करना, झूठी गवाही नहीं देना | इत्यादि) पर जोर होने के कारण भगत संप्रदाय में दीक्षित एक भगत-भील को भील समाज सम्मान से | देखता था।
व्याख्या :गोविन्दगिरि या गोविङ गुरु (1858-1931), भारत के एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे जिन्होने वर्तमान राजस्थान और गुजरात के आदिवासी बहुल सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘भगत आन्दोलन‘ चलाया। गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बर, 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया (बेड़िया) गांव में गोवारिया जाति के एक बंजारा परिवार में हुआ था।
भगत आंदोलन 20वीं सदी के प्रारंभ में भीलों के संस्कृतिकरण की प्रक्रिया थी जिसके प्रणेता गोविन्द गिरी थे। यह सदाचार तथा शुचिता पर आधारित आंदोलन था; जिसमें भगवान शंकर की निर्गुण रूप में अराधना की जाती थी। भगत आंदोलन में आचरण की शुद्धता (चोरी नहीं करना, झूठी गवाही नहीं देना | इत्यादि) पर जोर होने के कारण भगत संप्रदाय में दीक्षित एक भगत-भील को भील समाज सम्मान से | देखता था।
व्याख्या :गोविन्दगिरि या गोविङ गुरु (1858-1931), भारत के एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे जिन्होने वर्तमान राजस्थान और गुजरात के आदिवासी बहुल सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘भगत आन्दोलन‘ चलाया। गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बर, 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया (बेड़िया) गांव में गोवारिया जाति के एक बंजारा परिवार में हुआ था।
भगत आंदोलन 20वीं सदी के प्रारंभ में भीलों के संस्कृतिकरण की प्रक्रिया थी जिसके प्रणेता गोविन्द गिरी थे। यह सदाचार तथा शुचिता पर आधारित आंदोलन था; जिसमें भगवान शंकर की निर्गुण रूप में अराधना की जाती थी। भगत आंदोलन में आचरण की शुद्धता (चोरी नहीं करना, झूठी गवाही नहीं देना | इत्यादि) पर जोर होने के कारण भगत संप्रदाय में दीक्षित एक भगत-भील को भील समाज सम्मान से | देखता था।
निम्नलिखित में से कौन सा युग्म गलत सुमेलित है ? कृषक आंदोलन नेता
व्याख्या : पं. मघाराम वैद्य बीकानेर प्रजामंडल के संस्थापक थे, इन्होंने चुरू के दूधवाखारा गांव के किसानों का
नेतृत्व किया था, जिसके लिए उन्हें और उनके पुत्र रामनारायण शर्मा को गिरफ्तार किया गया था।
व्याख्या : पं. मघाराम वैद्य बीकानेर प्रजामंडल के संस्थापक थे, इन्होंने चुरू के दूधवाखारा गांव के किसानों का
नेतृत्व किया था, जिसके लिए उन्हें और उनके पुत्र रामनारायण शर्मा को गिरफ्तार किया गया था।
व्याख्या : पं. मघाराम वैद्य बीकानेर प्रजामंडल के संस्थापक थे, इन्होंने चुरू के दूधवाखारा गांव के किसानों का
नेतृत्व किया था, जिसके लिए उन्हें और उनके पुत्र रामनारायण शर्मा को गिरफ्तार किया गया था।
बेगूं किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
व्याख्या : बेगू, मेवाड़ रियासत का ठिकाना था, यहाँ हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी ने किया। यह आंदोलन (1921-24) तक चला। इस आंदोलन के समाचार प्रकाशित करने में राजस्थान सेवा संघ के अखबार तरुण राजस्थान की अग्रगामी भूमिका थी।
व्याख्या : बेगू, मेवाड़ रियासत का ठिकाना था, यहाँ हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी ने किया। यह आंदोलन (1921-24) तक चला। इस आंदोलन के समाचार प्रकाशित करने में राजस्थान सेवा संघ के अखबार तरुण राजस्थान की अग्रगामी भूमिका थी।
व्याख्या : बेगू, मेवाड़ रियासत का ठिकाना था, यहाँ हुए किसान आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी ने किया। यह आंदोलन (1921-24) तक चला। इस आंदोलन के समाचार प्रकाशित करने में राजस्थान सेवा संघ के अखबार तरुण राजस्थान की अग्रगामी भूमिका थी।