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सल्तनत काल के प्रमुख शक्ति केन्द्र
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सन् 1177 में सामन्त सिंह किस के हाथों पराजित होने के बाद डूंगरपुर राज्य की स्थापना की गई थी
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया। तब सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की। वटपद्रक (बड़ौदा) उसके राज्य की राजधानी थी।
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया। तब सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की। वटपद्रक (बड़ौदा) उसके राज्य की राजधानी थी।
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया। तब सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की। वटपद्रक (बड़ौदा) उसके राज्य की राजधानी थी।
निम्नलिखित में से किस शासक के राज्यकाल के दौरान दिल्ली शिवालिक स्तंभ अभिलेख उत्कीर्ण कराया
गया था?
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर
विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है। यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं। इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर
विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है। यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं। इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर
विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है। यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं। इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
निम्नलिखित में से कौन-सा स्रोत चाहमान काल के इतिहास की जानकारी नहीं देता है?
व्याख्या : घटियाला शिलालेख (861 ई.) – जोधपुर में घटियाला नामक स्थल पर एक जैन मंदिर जिसे माता की
साल कहते हैं, के निकट एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इसका लेखक मग व उत्कीर्णक कृष्णेश्वर था। यह लेख प्रतिहार शासक कुक्कुक के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
व्याख्या : घटियाला शिलालेख (861 ई.) – जोधपुर में घटियाला नामक स्थल पर एक जैन मंदिर जिसे माता की
साल कहते हैं, के निकट एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इसका लेखक मग व उत्कीर्णक कृष्णेश्वर था। यह लेख प्रतिहार शासक कुक्कुक के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
व्याख्या : घटियाला शिलालेख (861 ई.) – जोधपुर में घटियाला नामक स्थल पर एक जैन मंदिर जिसे माता की
साल कहते हैं, के निकट एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इसका लेखक मग व उत्कीर्णक कृष्णेश्वर था। यह लेख प्रतिहार शासक कुक्कुक के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव द्वारा किस मंगोल नेता को शरण देने पर अलाउद्दीन ने रणथम्भौर पर आक्रमण
किया?
व्याख्या : गुजरात विजय के उपरांत मुहम्मद शाह के नेतृत्व में जालौर से उलुगखाँ के नेतृत्व वाली शाही सेना के
खेमे से भागकर आये मंगोल विद्रोहियों ने रणथम्भौर के चौहान शासक हम्मीरदेव चौहान के यहाँ शरण ली। यह विद्रोही अपने साथ गुजरात विजय से प्राप्त लूट का माल (खुम्स) भी साथ लाये थे, इस पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इन विद्रोहियों को सौंपने का आदेश हम्मीर देव चौहान को दिया परंतु शरणागत की रक्षा की परंपरा के कारण हम्मीर ने सुल्तान को इंकार कर दिया एवं मुहम्मद शाह को ‘जगाना’ की जागीर भी दे दी। हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि कृत) में वर्णित है कि हम्मीर के इस कृत्य के प्रत्युत्तर में सुल्तान ने 1299 ई. में उलगुखाँ, अलप खाँ व वजीर नुसरत खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर विजय हेतु एक सेना भेजी, परंतु शाही सेना का यह अभियान असफल रहा। . 1301 ई. में स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया, जिसका वर्णन अमीर खुसरो ने अपनी रचना खजाईन-उल-फुतुह में किया है। इस युद्ध में हम्मीरदेव मारा गया व उसको पानी हरिया देवी व अन्य स्त्रियों ने जलजौहर किया, यह राजस्थान का ‘प्रथम साका’ माना जाता है।
व्याख्या : गुजरात विजय के उपरांत मुहम्मद शाह के नेतृत्व में जालौर से उलुगखाँ के नेतृत्व वाली शाही सेना के
खेमे से भागकर आये मंगोल विद्रोहियों ने रणथम्भौर के चौहान शासक हम्मीरदेव चौहान के यहाँ शरण ली। यह विद्रोही अपने साथ गुजरात विजय से प्राप्त लूट का माल (खुम्स) भी साथ लाये थे, इस पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इन विद्रोहियों को सौंपने का आदेश हम्मीर देव चौहान को दिया परंतु शरणागत की रक्षा की परंपरा के कारण हम्मीर ने सुल्तान को इंकार कर दिया एवं मुहम्मद शाह को ‘जगाना’ की जागीर भी दे दी। हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि कृत) में वर्णित है कि हम्मीर के इस कृत्य के प्रत्युत्तर में सुल्तान ने 1299 ई. में उलगुखाँ, अलप खाँ व वजीर नुसरत खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर विजय हेतु एक सेना भेजी, परंतु शाही सेना का यह अभियान असफल रहा। . 1301 ई. में स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया, जिसका वर्णन अमीर खुसरो ने अपनी रचना खजाईन-उल-फुतुह में किया है। इस युद्ध में हम्मीरदेव मारा गया व उसको पानी हरिया देवी व अन्य स्त्रियों ने जलजौहर किया, यह राजस्थान का ‘प्रथम साका’ माना जाता है।
व्याख्या : गुजरात विजय के उपरांत मुहम्मद शाह के नेतृत्व में जालौर से उलुगखाँ के नेतृत्व वाली शाही सेना के
खेमे से भागकर आये मंगोल विद्रोहियों ने रणथम्भौर के चौहान शासक हम्मीरदेव चौहान के यहाँ शरण ली। यह विद्रोही अपने साथ गुजरात विजय से प्राप्त लूट का माल (खुम्स) भी साथ लाये थे, इस पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इन विद्रोहियों को सौंपने का आदेश हम्मीर देव चौहान को दिया परंतु शरणागत की रक्षा की परंपरा के कारण हम्मीर ने सुल्तान को इंकार कर दिया एवं मुहम्मद शाह को ‘जगाना’ की जागीर भी दे दी। हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि कृत) में वर्णित है कि हम्मीर के इस कृत्य के प्रत्युत्तर में सुल्तान ने 1299 ई. में उलगुखाँ, अलप खाँ व वजीर नुसरत खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर विजय हेतु एक सेना भेजी, परंतु शाही सेना का यह अभियान असफल रहा। . 1301 ई. में स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया, जिसका वर्णन अमीर खुसरो ने अपनी रचना खजाईन-उल-फुतुह में किया है। इस युद्ध में हम्मीरदेव मारा गया व उसको पानी हरिया देवी व अन्य स्त्रियों ने जलजौहर किया, यह राजस्थान का ‘प्रथम साका’ माना जाता है।
किस शासक को ‘हशमत वाला राजा’ कहा जाता थी।
व्याख्या : फ़ारसी इतिहासकारों ने जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव ( 1531 1562 ई.) को हशमत वाला राजा कहा है। हश्मत’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘ श्रेष्ठता’, ‘वैभव’, ‘गौरव’ आदि। तबक़ाते अक़बरी का लेखक निज़ामुद्दीन लिखता है ‘मालदेव जो जोधपुर व नागौर का मालिक था, हिन्दुस्तान के राजाओं में फौज व हशमत (वैभव) में सबसे बढ़कर था।
व्याख्या : फ़ारसी इतिहासकारों ने जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव ( 1531 1562 ई.) को हशमत वाला राजा कहा है। हश्मत’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘ श्रेष्ठता’, ‘वैभव’, ‘गौरव’ आदि। तबक़ाते अक़बरी का लेखक निज़ामुद्दीन लिखता है ‘मालदेव जो जोधपुर व नागौर का मालिक था, हिन्दुस्तान के राजाओं में फौज व हशमत (वैभव) में सबसे बढ़कर था।
व्याख्या : फ़ारसी इतिहासकारों ने जोधपुर के राठौड़ शासक राव मालदेव ( 1531 1562 ई.) को हशमत वाला राजा कहा है। हश्मत’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘ श्रेष्ठता’, ‘वैभव’, ‘गौरव’ आदि। तबक़ाते अक़बरी का लेखक निज़ामुद्दीन लिखता है ‘मालदेव जो जोधपुर व नागौर का मालिक था, हिन्दुस्तान के राजाओं में फौज व हशमत (वैभव) में सबसे बढ़कर था।
जालौर में अलाउद्दीन का समकालीन शासक कौन था?
व्याख्या : जालौर में दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन का समकालीन शासक कान्हड़देव चौहान था। अलाउद्दीन ने जालौर पर दो बार आक्रमण प्रथम 1308 ई. व द्वितीय 1311 ई. में किये। दोनों अभियानों का नेतृत्व कमालउद्दीन गुर्ग द्वारा किया गया। 1308 के प्रथम अभियान में सिवाना दुर्ग का पतन हुआ, जिसकी रक्षा का भार सीतलदेव पर था। सीतलदेव इस युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया तथा सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर ‘खैराबाद’ रखा गया। द्वितीय अभियान 1311 ई. में हुआ। इस युद्ध में जालौर का शासक कान्हड़देव व उसके पुत्र वीरमदेव ने शाही सेना का कडा प्रतिरोध किया, परंतु विश्वासघाती सरदार बीका के कारण जालौर दुर्ग का पतन हुआ एवं कान्हड़देव व उसका पुत्र वीरमदेव मारे गये। शाही सेना का दुर्ग पर कब्जा हो गया व अलाउद्दीन ने जालौर का नाम ‘जलालाबाद’ रखा।
व्याख्या : जालौर में दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन का समकालीन शासक कान्हड़देव चौहान था। अलाउद्दीन ने जालौर पर दो बार आक्रमण प्रथम 1308 ई. व द्वितीय 1311 ई. में किये। दोनों अभियानों का नेतृत्व कमालउद्दीन गुर्ग द्वारा किया गया। 1308 के प्रथम अभियान में सिवाना दुर्ग का पतन हुआ, जिसकी रक्षा का भार सीतलदेव पर था। सीतलदेव इस युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया तथा सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर ‘खैराबाद’ रखा गया। द्वितीय अभियान 1311 ई. में हुआ। इस युद्ध में जालौर का शासक कान्हड़देव व उसके पुत्र वीरमदेव ने शाही सेना का कडा प्रतिरोध किया, परंतु विश्वासघाती सरदार बीका के कारण जालौर दुर्ग का पतन हुआ एवं कान्हड़देव व उसका पुत्र वीरमदेव मारे गये। शाही सेना का दुर्ग पर कब्जा हो गया व अलाउद्दीन ने जालौर का नाम ‘जलालाबाद’ रखा।
व्याख्या : जालौर में दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन का समकालीन शासक कान्हड़देव चौहान था। अलाउद्दीन ने जालौर पर दो बार आक्रमण प्रथम 1308 ई. व द्वितीय 1311 ई. में किये। दोनों अभियानों का नेतृत्व कमालउद्दीन गुर्ग द्वारा किया गया। 1308 के प्रथम अभियान में सिवाना दुर्ग का पतन हुआ, जिसकी रक्षा का भार सीतलदेव पर था। सीतलदेव इस युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया तथा सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर ‘खैराबाद’ रखा गया। द्वितीय अभियान 1311 ई. में हुआ। इस युद्ध में जालौर का शासक कान्हड़देव व उसके पुत्र वीरमदेव ने शाही सेना का कडा प्रतिरोध किया, परंतु विश्वासघाती सरदार बीका के कारण जालौर दुर्ग का पतन हुआ एवं कान्हड़देव व उसका पुत्र वीरमदेव मारे गये। शाही सेना का दुर्ग पर कब्जा हो गया व अलाउद्दीन ने जालौर का नाम ‘जलालाबाद’ रखा।
निम्न में से कौन सा शासक जालौर के चौहान वंश से संबंधित नहीं था?
व्याख्या : वत्सराज (775-800 ई.) गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक था, जिसने सर्वप्रथम ‘सम्राट’ की उपाधि
धारण की। इसे प्रतिहार साम्राज्य (गुर्जर-प्रतिहार) का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
व्याख्या : वत्सराज (775-800 ई.) गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक था, जिसने सर्वप्रथम ‘सम्राट’ की उपाधि
धारण की। इसे प्रतिहार साम्राज्य (गुर्जर-प्रतिहार) का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
व्याख्या : वत्सराज (775-800 ई.) गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक था, जिसने सर्वप्रथम ‘सम्राट’ की उपाधि
धारण की। इसे प्रतिहार साम्राज्य (गुर्जर-प्रतिहार) का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
पृथ्वीराज-तृतीय और मोहम्मद गौरी के मध्य कितने युद्ध लड़े गए थे?
व्याख्या : 1191 ई. में एवं 1192 ई. में मोहम्मद गौरी व पृथ्वीराज चौहान-III के मध्य तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए।
व्याख्या : 1191 ई. में एवं 1192 ई. में मोहम्मद गौरी व पृथ्वीराज चौहान-III के मध्य तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए।
व्याख्या : 1191 ई. में एवं 1192 ई. में मोहम्मद गौरी व पृथ्वीराज चौहान-III के मध्य तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए।
निम्नलिखित में से किस लड़ाई में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को हराया था?
व्याख्या : इस स्थान का नाम घाटोली भी मिलता है। घाटोली (खातोली) की लड़ाई में ना केवल इब्राहिम लोदी
पराजित हुआ वरन् उसके एक राजकुमार (शहजादे) को भी सांगा ने बंदी बना लिया।
व्याख्या : इस स्थान का नाम घाटोली भी मिलता है। घाटोली (खातोली) की लड़ाई में ना केवल इब्राहिम लोदी
पराजित हुआ वरन् उसके एक राजकुमार (शहजादे) को भी सांगा ने बंदी बना लिया।
व्याख्या : इस स्थान का नाम घाटोली भी मिलता है। घाटोली (खातोली) की लड़ाई में ना केवल इब्राहिम लोदी
पराजित हुआ वरन् उसके एक राजकुमार (शहजादे) को भी सांगा ने बंदी बना लिया।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय का समकालीन चन्देल शासक था
व्याख्या : भण्डानकों को विजित करने के उपरांत पृथ्वीराज-III के समक्ष बड़ी राजनीतिक चुनौती चंदेल राज्य था। 12 वी सदी के उत्तरार्द्ध में परमार्दिदेव चंदेल शासक था। 1182 ई. में पृथ्वीराज-III ने चंदेल राज्य पर आक्रमण और परमादिदेव को पराजित कर चंदेल राज्य को हस्तगत कर लिया। इस युद्ध में परमार्दिदेव के दो सेनाना” आल्हा तथा ऊदल ने विलक्षण साहस और वीरता का परिचय दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। बुंदेलखंड का वीर रस पूर्ण लोककाव्य “आल्हा-ऊदल” इसी युद्ध को संदर्भित करता है।
व्याख्या : भण्डानकों को विजित करने के उपरांत पृथ्वीराज-III के समक्ष बड़ी राजनीतिक चुनौती चंदेल राज्य था। 12 वी सदी के उत्तरार्द्ध में परमार्दिदेव चंदेल शासक था। 1182 ई. में पृथ्वीराज-III ने चंदेल राज्य पर आक्रमण और परमादिदेव को पराजित कर चंदेल राज्य को हस्तगत कर लिया। इस युद्ध में परमार्दिदेव के दो सेनाना” आल्हा तथा ऊदल ने विलक्षण साहस और वीरता का परिचय दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। बुंदेलखंड का वीर रस पूर्ण लोककाव्य “आल्हा-ऊदल” इसी युद्ध को संदर्भित करता है।
व्याख्या : भण्डानकों को विजित करने के उपरांत पृथ्वीराज-III के समक्ष बड़ी राजनीतिक चुनौती चंदेल राज्य था। 12 वी सदी के उत्तरार्द्ध में परमार्दिदेव चंदेल शासक था। 1182 ई. में पृथ्वीराज-III ने चंदेल राज्य पर आक्रमण और परमादिदेव को पराजित कर चंदेल राज्य को हस्तगत कर लिया। इस युद्ध में परमार्दिदेव के दो सेनाना” आल्हा तथा ऊदल ने विलक्षण साहस और वीरता का परिचय दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। बुंदेलखंड का वीर रस पूर्ण लोककाव्य “आल्हा-ऊदल” इसी युद्ध को संदर्भित करता है।
अलाउद्दीन खिलजी की निम्नांकित विजयों को कालक्रमानुसार व्यवस्थित कीजिए
(A) रणथम्भौर
(B) जालौर
(C) चित्तौड़
(D) सिवाना
व्याख्या : अलाउद्दीन की प्रश्नानुसार दी गई विजयों का सही क्रम है –
व्याख्या : अलाउद्दीन की प्रश्नानुसार दी गई विजयों का सही क्रम है –
व्याख्या : अलाउद्दीन की प्रश्नानुसार दी गई विजयों का सही क्रम है –
कान्हड़देव था
व्याख्या : कान्हड़देव चौहान (1305-1311 ई.) जालौर का शासक था। उसके पिता सामंतसिंह थे, जिन्होंने
जालौर पर (1282-1305 ई.) शासन किया। 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय कान्हड़देव जालौर के शासक थे। पद्मनाभ द्वारा रचित अपभ्रंश भाषा की प्रसिद्ध रचना- ‘कान्हड़दे प्रबंध’ कान्हड़देव चौहान के जीवन पर अवलंबित है।
व्याख्या : कान्हड़देव चौहान (1305-1311 ई.) जालौर का शासक था। उसके पिता सामंतसिंह थे, जिन्होंने
जालौर पर (1282-1305 ई.) शासन किया। 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय कान्हड़देव जालौर के शासक थे। पद्मनाभ द्वारा रचित अपभ्रंश भाषा की प्रसिद्ध रचना- ‘कान्हड़दे प्रबंध’ कान्हड़देव चौहान के जीवन पर अवलंबित है।
व्याख्या : कान्हड़देव चौहान (1305-1311 ई.) जालौर का शासक था। उसके पिता सामंतसिंह थे, जिन्होंने
जालौर पर (1282-1305 ई.) शासन किया। 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय कान्हड़देव जालौर के शासक थे। पद्मनाभ द्वारा रचित अपभ्रंश भाषा की प्रसिद्ध रचना- ‘कान्हड़दे प्रबंध’ कान्हड़देव चौहान के जीवन पर अवलंबित है।
कुम्भा के विषय में निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है ?
व्याख्या : :- इतिहास में महाराणा कुम्भा की विजयों के साथ-साथ उसका विद्यानुराग भी महत्वपूर्ण है। वह वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, राजनीति, साहित्य में भी निपुण था। संगीतराज, संगीत मीमांसा व सूडप्रबंध उसके द्वारा रचित संगीत के ग्रन्थ थे। ऐसी मान्यता है कि कुम्भा द्वारा चण्डीशतक की व्याख्या, गीतगोविन्द की टीका ‘रसिकप्रिया’ व संगीतरत्नाकर की टीका भी लिखी गई। उनकी अन्य कृतियां – कामराज रतिसार, सूड-प्रबंध, संगीतक्रम दीपिका, हरिवर्तिका है। उसकी एक उपाधि ‘अभिनव भरताचार्य’ (संगीत कला में निपुण) भी मिलती है।
व्याख्या : :- इतिहास में महाराणा कुम्भा की विजयों के साथ-साथ उसका विद्यानुराग भी महत्वपूर्ण है। वह वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, राजनीति, साहित्य में भी निपुण था। संगीतराज, संगीत मीमांसा व सूडप्रबंध उसके द्वारा रचित संगीत के ग्रन्थ थे। ऐसी मान्यता है कि कुम्भा द्वारा चण्डीशतक की व्याख्या, गीतगोविन्द की टीका ‘रसिकप्रिया’ व संगीतरत्नाकर की टीका भी लिखी गई। उनकी अन्य कृतियां – कामराज रतिसार, सूड-प्रबंध, संगीतक्रम दीपिका, हरिवर्तिका है। उसकी एक उपाधि ‘अभिनव भरताचार्य’ (संगीत कला में निपुण) भी मिलती है।
व्याख्या : :- इतिहास में महाराणा कुम्भा की विजयों के साथ-साथ उसका विद्यानुराग भी महत्वपूर्ण है। वह वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, राजनीति, साहित्य में भी निपुण था। संगीतराज, संगीत मीमांसा व सूडप्रबंध उसके द्वारा रचित संगीत के ग्रन्थ थे। ऐसी मान्यता है कि कुम्भा द्वारा चण्डीशतक की व्याख्या, गीतगोविन्द की टीका ‘रसिकप्रिया’ व संगीतरत्नाकर की टीका भी लिखी गई। उनकी अन्य कृतियां – कामराज रतिसार, सूड-प्रबंध, संगीतक्रम दीपिका, हरिवर्तिका है। उसकी एक उपाधि ‘अभिनव भरताचार्य’ (संगीत कला में निपुण) भी मिलती है।
महाराणा कुम्भा के समय का प्राचीनतम ज्ञात अभिलेख (विक्रमी संवत् 1490) प्राप्त होता है ग्राम
व्याख्या : पदराड़ा का लेख (1433 ई.) (विक्रम संवत् 1490) पदराड़ा गांव, मेवाड़ से प्राप्त हुआ है जो कुंभाकालीन प्राप्त अभिलेखों में सर्वप्रथम प्राप्त हुआ है। इस लेख में उल्लेखित है कि कुंभा ने राज्य प्राप्ति के बाद विद्रोहियों का दमन किया। इस अभिलेख में पदराड़ा को ‘पाटकेन्द्र’ नाम से संबोधित किया है। इस लेख की भाषा संस्कृत गद्य है।
व्याख्या : पदराड़ा का लेख (1433 ई.) (विक्रम संवत् 1490) पदराड़ा गांव, मेवाड़ से प्राप्त हुआ है जो कुंभाकालीन प्राप्त अभिलेखों में सर्वप्रथम प्राप्त हुआ है। इस लेख में उल्लेखित है कि कुंभा ने राज्य प्राप्ति के बाद विद्रोहियों का दमन किया। इस अभिलेख में पदराड़ा को ‘पाटकेन्द्र’ नाम से संबोधित किया है। इस लेख की भाषा संस्कृत गद्य है।
व्याख्या : पदराड़ा का लेख (1433 ई.) (विक्रम संवत् 1490) पदराड़ा गांव, मेवाड़ से प्राप्त हुआ है जो कुंभाकालीन प्राप्त अभिलेखों में सर्वप्रथम प्राप्त हुआ है। इस लेख में उल्लेखित है कि कुंभा ने राज्य प्राप्ति के बाद विद्रोहियों का दमन किया। इस अभिलेख में पदराड़ा को ‘पाटकेन्द्र’ नाम से संबोधित किया है। इस लेख की भाषा संस्कृत गद्य है।
निम्नलिखित में से किस राजस्थानी ग्रन्थ में अलाउद्दीन खिलजी की जालौर विजय का विवरण मिलता है ?
व्याख्या : चौहान शासक अखैराज के दरबारी कवि पद्मनाभ द्वारा 1455 ई. में रचित ‘कान्हड़दे प्रबंध’ अपभ्रंश में रचित है, जिसमे अलाऊद्दीन खिलजी के जालौर पर आक्रमण एवं उसकी विजय (1311 ई.), जालौर के शासक रावल कान्हड़देव की वीरता, सुल्तान खिलजी की पुत्री शहज़ादी फ़िरोजा व राजकुमार वीरमदेव के मध्य प्रेम-संबंध का वर्णन किया गया है।
व्याख्या : चौहान शासक अखैराज के दरबारी कवि पद्मनाभ द्वारा 1455 ई. में रचित ‘कान्हड़दे प्रबंध’ अपभ्रंश में रचित है, जिसमे अलाऊद्दीन खिलजी के जालौर पर आक्रमण एवं उसकी विजय (1311 ई.), जालौर के शासक रावल कान्हड़देव की वीरता, सुल्तान खिलजी की पुत्री शहज़ादी फ़िरोजा व राजकुमार वीरमदेव के मध्य प्रेम-संबंध का वर्णन किया गया है।
व्याख्या : चौहान शासक अखैराज के दरबारी कवि पद्मनाभ द्वारा 1455 ई. में रचित ‘कान्हड़दे प्रबंध’ अपभ्रंश में रचित है, जिसमे अलाऊद्दीन खिलजी के जालौर पर आक्रमण एवं उसकी विजय (1311 ई.), जालौर के शासक रावल कान्हड़देव की वीरता, सुल्तान खिलजी की पुत्री शहज़ादी फ़िरोजा व राजकुमार वीरमदेव के मध्य प्रेम-संबंध का वर्णन किया गया है।
निम्नलिखित युद्धों पर विचार कीजिए
(a) खानवा का युद्ध
(b) हल्दीघाटी का युद्ध
(c) सारंगपुर का युद्ध
(d) दिवेर का युद्ध
इन युद्धों का सही कालानुक्रम है
व्याख्या : उपरोक्त युद्धों का सही क्रम है –
व्याख्या : उपरोक्त युद्धों का सही क्रम है –
व्याख्या : उपरोक्त युद्धों का सही क्रम है –
अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर पर आक्रमण के समय वहाँ का शासक कौन था?
व्याख्या : अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर 1301 ई. में आक्रमण किया था, उस समय वहाँ का शासक हम्मीरदेव चौहान था। अलाउद्दीन ने 11 जुलाई 1301 में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। राजा हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ व उसकी रानी हरियादेवी एवं अन्य स्त्रियों द्वारा जल समाधि ली गई। यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है। साका-राजस्थान की एक प्रसिद्ध प्रथा जिसमें पराजय की निश्चितता होने पर महिलाएँ जौहर कर लेती व पुरुष केसरिया पगड़ी बाँध मरने तक युद्ध करते है। अर्द्ध साका- ऐसा साका जिसमें वीरों द्वारा केसरिया तो किया जाए मगर जौहर ना हो। जैसलमेर में लूणकरण के समय एक अर्द्ध साका हुआ था।
व्याख्या : अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर 1301 ई. में आक्रमण किया था, उस समय वहाँ का शासक हम्मीरदेव चौहान था। अलाउद्दीन ने 11 जुलाई 1301 में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। राजा हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ व उसकी रानी हरियादेवी एवं अन्य स्त्रियों द्वारा जल समाधि ली गई। यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है। साका-राजस्थान की एक प्रसिद्ध प्रथा जिसमें पराजय की निश्चितता होने पर महिलाएँ जौहर कर लेती व पुरुष केसरिया पगड़ी बाँध मरने तक युद्ध करते है। अर्द्ध साका- ऐसा साका जिसमें वीरों द्वारा केसरिया तो किया जाए मगर जौहर ना हो। जैसलमेर में लूणकरण के समय एक अर्द्ध साका हुआ था।
व्याख्या : अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर 1301 ई. में आक्रमण किया था, उस समय वहाँ का शासक हम्मीरदेव चौहान था। अलाउद्दीन ने 11 जुलाई 1301 में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। राजा हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ व उसकी रानी हरियादेवी एवं अन्य स्त्रियों द्वारा जल समाधि ली गई। यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है। साका-राजस्थान की एक प्रसिद्ध प्रथा जिसमें पराजय की निश्चितता होने पर महिलाएँ जौहर कर लेती व पुरुष केसरिया पगड़ी बाँध मरने तक युद्ध करते है। अर्द्ध साका- ऐसा साका जिसमें वीरों द्वारा केसरिया तो किया जाए मगर जौहर ना हो। जैसलमेर में लूणकरण के समय एक अर्द्ध साका हुआ था।
गिरि-सुमेल का युद्ध किनके मध्य लड़ा गया था?
व्याख्या : जनवरी 1544 ई. में पाली के जैतारण के पास गिरि-सुमेल नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ। यह युद्ध जोधपुर शासक राव मालदेव व दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी के मध्य हुआ। इस युद्ध में मालदेव पराजित हुआ तथा मालदेव के सेनानायक जैता व कूपा मारे गये। युद्ध में शेरशाह बड़ी कठिनाई से विजय प्राप्त कर सका जिससे उसे कहना पड़ा कि “एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।” एक मुट्ठी बाजरे का आशय मरु भूमि की उस भूमि से है जिस पर न्यूनतम फसल वह भी बाजरा जैसा मोटा अनाज ही पैदा होता है। अतएव शेरशाह की नजर में उसने बहुत मामूली पाने के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा दिया
व्याख्या : जनवरी 1544 ई. में पाली के जैतारण के पास गिरि-सुमेल नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ। यह युद्ध जोधपुर शासक राव मालदेव व दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी के मध्य हुआ। इस युद्ध में मालदेव पराजित हुआ तथा मालदेव के सेनानायक जैता व कूपा मारे गये। युद्ध में शेरशाह बड़ी कठिनाई से विजय प्राप्त कर सका जिससे उसे कहना पड़ा कि “एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।” एक मुट्ठी बाजरे का आशय मरु भूमि की उस भूमि से है जिस पर न्यूनतम फसल वह भी बाजरा जैसा मोटा अनाज ही पैदा होता है। अतएव शेरशाह की नजर में उसने बहुत मामूली पाने के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा दिया
व्याख्या : जनवरी 1544 ई. में पाली के जैतारण के पास गिरि-सुमेल नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ। यह युद्ध जोधपुर शासक राव मालदेव व दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी के मध्य हुआ। इस युद्ध में मालदेव पराजित हुआ तथा मालदेव के सेनानायक जैता व कूपा मारे गये। युद्ध में शेरशाह बड़ी कठिनाई से विजय प्राप्त कर सका जिससे उसे कहना पड़ा कि “एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।” एक मुट्ठी बाजरे का आशय मरु भूमि की उस भूमि से है जिस पर न्यूनतम फसल वह भी बाजरा जैसा मोटा अनाज ही पैदा होता है। अतएव शेरशाह की नजर में उसने बहुत मामूली पाने के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा दिया
प्रथम खिलजी सुल्तान जिसने रणथम्भौर दुर्ग पर आक्रमण किया, वह था
व्याख्या : 1290 ई. में दिल्ली सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने चौहानों की बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए रणथम्भौर के समीप झाईन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में चौहान सेनापति गुरुदास सैनी की मृत्यु हो गई एवं इस सफलता के पश्चात् सुल्तान ने रणथम्भौर का घेरा डाला। परंतु वह रणथम्भार पर विजय पाने में असफल रहा। अपनी इस असफलता पर उसके उद्गार थे कि ‘ऐसे 10 दुर्गों को भा मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर महत्व नहीं देता।’ अमीर खुसरो की ‘मिफ्ता-उल-फुतुह’ व जियाउद्दीन बरनी की ‘तारीखे-फ़िरोज शाही’ में इस युद्ध का वर्णन प्राप्त होता है। झाईन पर भी हम्मार ने पुनः अधिकार कर लिया।
व्याख्या : 1290 ई. में दिल्ली सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने चौहानों की बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए रणथम्भौर के समीप झाईन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में चौहान सेनापति गुरुदास सैनी की मृत्यु हो गई एवं इस सफलता के पश्चात् सुल्तान ने रणथम्भौर का घेरा डाला। परंतु वह रणथम्भार पर विजय पाने में असफल रहा। अपनी इस असफलता पर उसके उद्गार थे कि ‘ऐसे 10 दुर्गों को भा मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर महत्व नहीं देता।’ अमीर खुसरो की ‘मिफ्ता-उल-फुतुह’ व जियाउद्दीन बरनी की ‘तारीखे-फ़िरोज शाही’ में इस युद्ध का वर्णन प्राप्त होता है। झाईन पर भी हम्मार ने पुनः अधिकार कर लिया।
व्याख्या : 1290 ई. में दिल्ली सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने चौहानों की बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए रणथम्भौर के समीप झाईन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में चौहान सेनापति गुरुदास सैनी की मृत्यु हो गई एवं इस सफलता के पश्चात् सुल्तान ने रणथम्भौर का घेरा डाला। परंतु वह रणथम्भार पर विजय पाने में असफल रहा। अपनी इस असफलता पर उसके उद्गार थे कि ‘ऐसे 10 दुर्गों को भा मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर महत्व नहीं देता।’ अमीर खुसरो की ‘मिफ्ता-उल-फुतुह’ व जियाउद्दीन बरनी की ‘तारीखे-फ़िरोज शाही’ में इस युद्ध का वर्णन प्राप्त होता है। झाईन पर भी हम्मार ने पुनः अधिकार कर लिया।
पन्नाधाय ने जिसके जीवन को बचाया, वह था
व्याख्या : महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर पृथ्वीराज (महाराणा सांगा के बड़े भाई) का अनौरस पुत्र (दासी पुत्र) बनवीर शासक बना। वीर विनोद (कविराज श्यामलदास कृत) के अनुसार बनवीर ने सांगा के पाँचवें पुत्र व भावी महाराणा उदयसिंह को मारने का प्रयास किया परंतु उदयसिंह की धाय पन्ना ने अपने पुत्र का बलिदान कर उदयसिंह को कुम्भलगढ़ के किलेदार आशा देवपुरा के पास भेज दिया।
व्याख्या : महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर पृथ्वीराज (महाराणा सांगा के बड़े भाई) का अनौरस पुत्र (दासी पुत्र) बनवीर शासक बना। वीर विनोद (कविराज श्यामलदास कृत) के अनुसार बनवीर ने सांगा के पाँचवें पुत्र व भावी महाराणा उदयसिंह को मारने का प्रयास किया परंतु उदयसिंह की धाय पन्ना ने अपने पुत्र का बलिदान कर उदयसिंह को कुम्भलगढ़ के किलेदार आशा देवपुरा के पास भेज दिया।
व्याख्या : महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर पृथ्वीराज (महाराणा सांगा के बड़े भाई) का अनौरस पुत्र (दासी पुत्र) बनवीर शासक बना। वीर विनोद (कविराज श्यामलदास कृत) के अनुसार बनवीर ने सांगा के पाँचवें पुत्र व भावी महाराणा उदयसिंह को मारने का प्रयास किया परंतु उदयसिंह की धाय पन्ना ने अपने पुत्र का बलिदान कर उदयसिंह को कुम्भलगढ़ के किलेदार आशा देवपुरा के पास भेज दिया।
निम्नलिखित क्षेत्रों में से राणा सांगा ने किन क्षेत्रों को मालवा के महमूद-II से जीता था?
व्याख्या : महाराणा सांगा ने भिलसा व रायसेन के क्षेत्र मालवा के महमूद -II से जीते थे।
व्याख्या : महाराणा सांगा ने भिलसा व रायसेन के क्षेत्र मालवा के महमूद -II से जीते थे।
व्याख्या : महाराणा सांगा ने भिलसा व रायसेन के क्षेत्र मालवा के महमूद -II से जीते थे।
अजमेर का संस्थापक कौन था?
व्याख्या : पृथ्वीराज चौहान-I के पुत्र अजयराज ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए 1113 ई. में अजयमेर (अजमेर) नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। उसने अजमेर में ‘गढ़बीठली’ या तारागढ़ दुर का निर्माण करवाया। जयानक की रचना ‘पृथ्वीराज विजय’ भी इसी धारणा को पुष्ट करती है हरबिलास शारदा का मत है कि अजमेर की स्थापना 8वीं सदी के चौहान शासक अजयपाल ने की थी
व्याख्या : पृथ्वीराज चौहान-I के पुत्र अजयराज ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए 1113 ई. में अजयमेर (अजमेर) नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। उसने अजमेर में ‘गढ़बीठली’ या तारागढ़ दुर का निर्माण करवाया। जयानक की रचना ‘पृथ्वीराज विजय’ भी इसी धारणा को पुष्ट करती है हरबिलास शारदा का मत है कि अजमेर की स्थापना 8वीं सदी के चौहान शासक अजयपाल ने की थी
व्याख्या : पृथ्वीराज चौहान-I के पुत्र अजयराज ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए 1113 ई. में अजयमेर (अजमेर) नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। उसने अजमेर में ‘गढ़बीठली’ या तारागढ़ दुर का निर्माण करवाया। जयानक की रचना ‘पृथ्वीराज विजय’ भी इसी धारणा को पुष्ट करती है हरबिलास शारदा का मत है कि अजमेर की स्थापना 8वीं सदी के चौहान शासक अजयपाल ने की थी
चौहान राजवंश के निम्नलिखित शासकों को कालक्रमानुसार व्यवस्थित कीजिए
(i) पृथ्वीराज-I
(ii) अजयराज
(iii) अर्णोराज
(iv) विग्रहराज-IV
व्याख्या : चौहान राजवंश के शासकों का कालक्रम निम्नलिखित है :
व्याख्या : चौहान राजवंश के शासकों का कालक्रम निम्नलिखित है :
व्याख्या : चौहान राजवंश के शासकों का कालक्रम निम्नलिखित है :
चम्पानेर की संधि किन राज्यों के बीच हुई ?
व्याख्या : चंपानेर की संधि सन् 1456 ई. में गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन अहमद शाह व मालवा के शासक महमूद खिलजी के मध्य हुई थी, इस संधि का उद्देश्य मेवाड़ के शासक राणा कुंभा को परास्त करना था।
व्याख्या : चंपानेर की संधि सन् 1456 ई. में गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन अहमद शाह व मालवा के शासक महमूद खिलजी के मध्य हुई थी, इस संधि का उद्देश्य मेवाड़ के शासक राणा कुंभा को परास्त करना था।
व्याख्या : चंपानेर की संधि सन् 1456 ई. में गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन अहमद शाह व मालवा के शासक महमूद खिलजी के मध्य हुई थी, इस संधि का उद्देश्य मेवाड़ के शासक राणा कुंभा को परास्त करना था।
हम्मीर ने सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के किस विद्रोही सेनापति को रणथम्भौर दुर्ग में शरण दी थी?
व्याख्या : रणथम्भौर के शासक हम्मीर ने दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मीर मुहम्मद शाह ।
उसके साथियों केहिब्रू व बारक को अपने दुर्ग में शरण दी थी।
व्याख्या : रणथम्भौर के शासक हम्मीर ने दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मीर मुहम्मद शाह ।
उसके साथियों केहिब्रू व बारक को अपने दुर्ग में शरण दी थी।
व्याख्या : रणथम्भौर के शासक हम्मीर ने दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मीर मुहम्मद शाह ।
उसके साथियों केहिब्रू व बारक को अपने दुर्ग में शरण दी थी।
निम्नलिखित जोड़ों में कौन सा एक सही मेल नहीं है ?
व्याख्या : राणा कुम्भा व राणा सांगा- मेवाड़ के गुहिल वंशीय सिसोदिया शाखा से संबंधित थे।
व्याख्या : राणा कुम्भा व राणा सांगा- मेवाड़ के गुहिल वंशीय सिसोदिया शाखा से संबंधित थे।
व्याख्या : राणा कुम्भा व राणा सांगा- मेवाड़ के गुहिल वंशीय सिसोदिया शाखा से संबंधित थे।
राव जोधा ने किस वर्ष मंडोर को विजित किया थी
व्याख्या : राव जोधा ने 1453 ई. में अपने पूर्वजों की राजधानी मंडोर पर अधिकार कर लिया।
व्याख्या : राव जोधा ने 1453 ई. में अपने पूर्वजों की राजधानी मंडोर पर अधिकार कर लिया।
व्याख्या : राव जोधा ने 1453 ई. में अपने पूर्वजों की राजधानी मंडोर पर अधिकार कर लिया।