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राजस्थान की वास्तुकला
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आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं ?
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
निम्नलिखित में से राजस्थान के किस स्थान पर सोमेश्वर मंदिर स्थित है ?
राजस्थान के निम्नलिखित मंदिरों में से गुर्जर-प्रतिहार काल में निर्मित मंदिरों को चुनिए
(i) आहड़ का आदिवराह मंदिर
(ii) आभानेरी का हर्षतमाता का मंदिर
(iii) राजौरगढ़ का नीलकंठ मंदिर
(iv) ओसियां का हरिहर मंदिर
निम्नलिखित में से कौन सा सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है?
रणकपुर का पार्श्वनाथ मंदिर –
नाथद्वारा का श्रीनाथ मंदिर-
रणकपुर का पार्श्वनाथ मंदिर –
नाथद्वारा का श्रीनाथ मंदिर-
रणकपुर का पार्श्वनाथ मंदिर –
नाथद्वारा का श्रीनाथ मंदिर-
‘मूछला महावीर मंदिर स्थित है –
मुछाला महावीर जी का मंदिर- घाणेराव (पाली) यह जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी का समर्पित एक जैन मंदिर है।
मुछाला महावीर जी का मंदिर- घाणेराव (पाली) यह जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी का समर्पित एक जैन मंदिर है।
मुछाला महावीर जी का मंदिर- घाणेराव (पाली) यह जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी का समर्पित एक जैन मंदिर है।
अलाउद्दीन खिलजी ने किस दुर्ग को विजित कर उसका नाम खैराबाद रखा?
, ‘ब्रह्माणी माता का मंदिर स्थित है –
निम्न में से किसने सिवाणा के किले का निर्माण करवाया था?
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
1.पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण साका हुआ।
2.दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
1.पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण साका हुआ।
2.दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
1.पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण साका हुआ।
2.दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
किस दुर्ग को ‘गढ़बीटली’ नाम से भी जाना जाता है?
साका
साका
साका
10वीं शताब्दी का प्रसिद्ध अम्बिका मंदिर है
******राजस्थान का दूसरा खजुराहो (प्रथम-किराडू, बाड़मेर) एवं मेवाड़ का खजुराहो के नाम से प्रसित आम्बका मंदिर, उदयपुर से 56 किमी. दूर जगत गांव में स्थित है, जो दसवीं शताब्दी (960 ई लगभग) निर्मित है।
******राजस्थान का दूसरा खजुराहो (प्रथम-किराडू, बाड़मेर) एवं मेवाड़ का खजुराहो के नाम से प्रसित आम्बका मंदिर, उदयपुर से 56 किमी. दूर जगत गांव में स्थित है, जो दसवीं शताब्दी (960 ई लगभग) निर्मित है।
******राजस्थान का दूसरा खजुराहो (प्रथम-किराडू, बाड़मेर) एवं मेवाड़ का खजुराहो के नाम से प्रसित आम्बका मंदिर, उदयपुर से 56 किमी. दूर जगत गांव में स्थित है, जो दसवीं शताब्दी (960 ई लगभग) निर्मित है।
‘विजय स्तम्भ’ के सम्बन्ध में कौन सा कथन सत्य है ?दिए गए कूट की सहायता से उत्तर दें-
(a) यह चित्तौड़ में स्थित है।
(b) महाराणा कुम्भा ने इसका निर्माण मालवा-गुजरात के सुल्तान को हराने के उपलक्ष में करवाया था।
(c) यह नौ मंजिला है।
(d) इस स्तम्भ के निर्माण में सूत्रधार जैता का विशेष योगदान था।
122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।इसके साथ ही देवी मात्रिकाओं,प्रतिमाओं,ऋतुओं,नदियों और जन-जीवन की झांकियों का सुन्दर अंकन किया है।
122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।इसके साथ ही देवी मात्रिकाओं,प्रतिमाओं,ऋतुओं,नदियों और जन-जीवन की झांकियों का सुन्दर अंकन किया है।
कोषवर्धन किला को अन्य किस नाम से जाना जाता है
पटवों की हवेली का निर्माता निम्नलिखित में से कौन था?
किस प्रसिद्ध दुर्ग की सुदृढ़ नैसर्गिक सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर अबुल फजल ने लिखा कि “अन्य सब दर्ग नग्न है, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है”?
सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था।
हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर(एकमात्र जल जौहर) कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था।
हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर(एकमात्र जल जौहर) कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ एरण दुर्ग है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था।
हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर(एकमात्र जल जौहर) कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया गया था?
1.हेरम्भ गणपति मंदिर 2. अनूपसिंह महल 3. सरदार निवास महल
1.हेरम्भ गणपति मंदिर 2. अनूपसिंह महल 3. सरदार निवास महल
1.हेरम्भ गणपति मंदिर 2. अनूपसिंह महल 3. सरदार निवास महल
परमार राजाओं द्वारा निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध अथूणा ( अर्थपूर्णा) नगर राजस्थान के किस जिले में स्थित है?
दिलवाड़ा स्थित प्रसिद्ध तेजपाल मंदिर अथवा लूणवसहि मंदिर किस तीर्थंकर को समर्पित है ?
नीचे कुछ छतरियों और उनके स्थलों के नाम दिए गए हैं। इनमें से कौन सा सुमेलित नहीं है ?
जोधपुर की प्रमुख की छतरियां
****कुँवर पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित है।” कुंवर पृथ्वीराज ने मेवाड़ के हित में कई लड़ाइयाँ लड़ी थी। कुंवर पृथ्वीराज अपने अदम्य साहस, अप्रत्याशित वीरता, दृढ निश्चय, युद्धार्थ तीव्र प्रतिक्रिया व अपने अदम्य शौर्य के लिए दूर दूर तक जाने जाते थे।
जोधपुर की प्रमुख की छतरियां
****कुँवर पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित है।” कुंवर पृथ्वीराज ने मेवाड़ के हित में कई लड़ाइयाँ लड़ी थी। कुंवर पृथ्वीराज अपने अदम्य साहस, अप्रत्याशित वीरता, दृढ निश्चय, युद्धार्थ तीव्र प्रतिक्रिया व अपने अदम्य शौर्य के लिए दूर दूर तक जाने जाते थे।
जोधपुर की प्रमुख की छतरियां
****कुँवर पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित है।” कुंवर पृथ्वीराज ने मेवाड़ के हित में कई लड़ाइयाँ लड़ी थी। कुंवर पृथ्वीराज अपने अदम्य साहस, अप्रत्याशित वीरता, दृढ निश्चय, युद्धार्थ तीव्र प्रतिक्रिया व अपने अदम्य शौर्य के लिए दूर दूर तक जाने जाते थे।
मेवाड़ नरेश राणा अमरसिंह एवं राणा कर्णसिंह की छतरियाँ (स्मारक) अवस्थित हैं ?
उदयपुर की प्रमुख की छतरियां
उदयपुर की प्रमुख की छतरियां
उदयपुर की प्रमुख की छतरियां
राजस्थान के किस जिले में एकलिंगजी’ का मन्दिर स्थित है ?
जयपुर में अवस्थित ईसरलाट का निर्माण किसने कराया था?
****1 मार्च 1747 ई. को जयपुर के उत्तराधिकार के लिए सवाई जयसिंह-II के पत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ। जिसमें ईश्वरीसिंह ने माधोसिंह व उस सहयोगियों (रानोजी सिंधिया, खाण्डेराव, कोटा के दुर्जनशाल एवं मेवाड़ नरेश की संयुक्त सेना) क परास्त कर दिया। इस विजय के उपलक्ष्य में ईश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया में सात खण्डों की एक अष्टकोणा मीनार (ईसरलाट) का निर्माण राजशिल्पी गणेश खोवान के देखरेख में 1749 ई. में करवाया।
****1 मार्च 1747 ई. को जयपुर के उत्तराधिकार के लिए सवाई जयसिंह-II के पत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ। जिसमें ईश्वरीसिंह ने माधोसिंह व उस सहयोगियों (रानोजी सिंधिया, खाण्डेराव, कोटा के दुर्जनशाल एवं मेवाड़ नरेश की संयुक्त सेना) क परास्त कर दिया। इस विजय के उपलक्ष्य में ईश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया में सात खण्डों की एक अष्टकोणा मीनार (ईसरलाट) का निर्माण राजशिल्पी गणेश खोवान के देखरेख में 1749 ई. में करवाया।
****1 मार्च 1747 ई. को जयपुर के उत्तराधिकार के लिए सवाई जयसिंह-II के पत्रों ईश्वरीसिंह व माधोसिंह के मध्य राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ। जिसमें ईश्वरीसिंह ने माधोसिंह व उस सहयोगियों (रानोजी सिंधिया, खाण्डेराव, कोटा के दुर्जनशाल एवं मेवाड़ नरेश की संयुक्त सेना) क परास्त कर दिया। इस विजय के उपलक्ष्य में ईश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया में सात खण्डों की एक अष्टकोणा मीनार (ईसरलाट) का निर्माण राजशिल्पी गणेश खोवान के देखरेख में 1749 ई. में करवाया।
अजमेर स्थित अलाउद्दीन खान का मकबरा जाना जाता है
निम्नलिखित में से किसे राजस्थान का खजुराहो’ कहा जाता है ?
किराड़ू के जैन मंदिर-
किराड़ू के जैन मंदिर-
किराड़ू के जैन मंदिर-
निम्नलिखित में से कौन-सा एक मंदिर गुर्जर प्रतिहार शैली का माना जाता है?
जैसलमेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा विकसित मौलिक पारम्परिक वर्षा जल संचयन पद्धति का नाम है
किस दुर्ग का प्रवेशद्वार ‘नौलखा दरवाजा’ के नाम से जाना जाता है ?
अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग
*****:- राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर स्थित है
उपनाम :- यह दुर्ग दुर्गाधिकरण (दुर्गाधिराज) कहलाता है
वास्तविक नाम:- रणतपुर
रणथंभौर दुर्ग राणा हमीर देव चौहान की शौर्यगाथा का साक्षी है
इसी दुर्ग में सन 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए हमीर देव चौहान ने बलिदान दिया |
अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग
*****:- राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर स्थित है
उपनाम :- यह दुर्ग दुर्गाधिकरण (दुर्गाधिराज) कहलाता है
वास्तविक नाम:- रणतपुर
रणथंभौर दुर्ग राणा हमीर देव चौहान की शौर्यगाथा का साक्षी है
इसी दुर्ग में सन 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए हमीर देव चौहान ने बलिदान दिया |
अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग
*****:- राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर स्थित है
उपनाम :- यह दुर्ग दुर्गाधिकरण (दुर्गाधिराज) कहलाता है
वास्तविक नाम:- रणतपुर
रणथंभौर दुर्ग राणा हमीर देव चौहान की शौर्यगाथा का साक्षी है
इसी दुर्ग में सन 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए हमीर देव चौहान ने बलिदान दिया |
माउन्ट आबू (राजस्थान ) में दिलवाड़ा मंदिर प्रसिद्ध है
स्थान | माउंट आबू, राजस्थान (भारत) |
स्थापना | 11वीं से 13वीं शताब्दी ई. के बीच |
निर्माता | विमल शाह, वास्तुपाल और तेजपाल |
स्थान | माउंट आबू, राजस्थान (भारत) |
स्थापना | 11वीं से 13वीं शताब्दी ई. के बीच |
निर्माता | विमल शाह, वास्तुपाल और तेजपाल |
स्थान | माउंट आबू, राजस्थान (भारत) |
स्थापना | 11वीं से 13वीं शताब्दी ई. के बीच |
निर्माता | विमल शाह, वास्तुपाल और तेजपाल |
चित्तौड़गढ़ स्थित विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तम्भ ) के निर्माता है
जोधपुर के निकट ओसियां में मंदिरों का निर्माण करवाया गया
सच्चियाँ माता का मंदिर, ओसियां –
ओसिया (जोधपुर) में स्थित सच्चियाँ माता के इस मंदिर में माता की पूजा हिंदुओं और ओसवालों द्वारा समान रूप से की जाती है। सचियां माता का मंदिर महिषमर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ के प्रमुख मंदिर-सच्चियाय माता, पिप्पलाद माता, सूर्य मंदिर, महावीर (जैन मदिर) ।
सच्चियाँ माता का मंदिर, ओसियां –
ओसिया (जोधपुर) में स्थित सच्चियाँ माता के इस मंदिर में माता की पूजा हिंदुओं और ओसवालों द्वारा समान रूप से की जाती है। सचियां माता का मंदिर महिषमर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ के प्रमुख मंदिर-सच्चियाय माता, पिप्पलाद माता, सूर्य मंदिर, महावीर (जैन मदिर) ।
सच्चियाँ माता का मंदिर, ओसियां –
ओसिया (जोधपुर) में स्थित सच्चियाँ माता के इस मंदिर में माता की पूजा हिंदुओं और ओसवालों द्वारा समान रूप से की जाती है। सचियां माता का मंदिर महिषमर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ के प्रमुख मंदिर-सच्चियाय माता, पिप्पलाद माता, सूर्य मंदिर, महावीर (जैन मदिर) ।
‘कटारगढ़’ किस दुर्ग में अवस्थित है ?
निम्नलिखित में से कौन-सा दुर्ग जल दुर्ग’ की श्रेणी में रखा जा सकता है ?
व्याख्या:
–गागरौन का किला भारतीय राज्य राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित एक किला है। यह काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। 21जूूून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरोण दुर्ग भी एक है।गागरोन का किला राजस्थान में जल दुर्गों की श्रेणी का सर्वश्रेष्ठ किला माना जाता है।
संत पीपाजी का पूरा नाम नरेश पीपाजी था संत नरेश पीपाजी रामानंद के शिष्य थे संत पीपाजी की छतरी राजस्थान में स्थित गागरोन दुर्ग में स्थित है। संत पीपाजी की पुण्यतिथि पर प्रतिवर्ष गागरोन दुर्ग में मेला लगता है।
व्याख्या:
–गागरौन का किला भारतीय राज्य राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित एक किला है। यह काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। 21जूूून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरोण दुर्ग भी एक है।गागरोन का किला राजस्थान में जल दुर्गों की श्रेणी का सर्वश्रेष्ठ किला माना जाता है।
संत पीपाजी का पूरा नाम नरेश पीपाजी था संत नरेश पीपाजी रामानंद के शिष्य थे संत पीपाजी की छतरी राजस्थान में स्थित गागरोन दुर्ग में स्थित है। संत पीपाजी की पुण्यतिथि पर प्रतिवर्ष गागरोन दुर्ग में मेला लगता है।
व्याख्या:
–गागरौन का किला भारतीय राज्य राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित एक किला है। यह काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। 21जूूून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरोण दुर्ग भी एक है।गागरोन का किला राजस्थान में जल दुर्गों की श्रेणी का सर्वश्रेष्ठ किला माना जाता है।
संत पीपाजी का पूरा नाम नरेश पीपाजी था संत नरेश पीपाजी रामानंद के शिष्य थे संत पीपाजी की छतरी राजस्थान में स्थित गागरोन दुर्ग में स्थित है। संत पीपाजी की पुण्यतिथि पर प्रतिवर्ष गागरोन दुर्ग में मेला लगता है।
निम्नलिखित में से कौन-सा उदाहरण ‘छतरी’ स्थापत्य का नहीं है ?
आहड़ की छतरियां – मेवाड़ राजवंश
आहड़ की छतरियां – मेवाड़ राजवंश
आहड़ की छतरियां – मेवाड़ राजवंश
आभानेरी (दौसा) में स्थित प्राचीन बावड़ी किस नाम से जानी जाती है?
‘चाँद बावड़ी’ का निर्माण 9वीं शताब्दी में आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। राजस्थान में यह दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी नामक ग्राम में स्थित है। बावड़ी 100 फीट गहरी है। इस बाव़डी के तीन तरफ सोपान और विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी की स्थापत्य कला अद्भुत है। यह भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है। इसमें 3500 सीढ़ियां हैं।
चांद बावड़ी, आभानेरी राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गांव स्थित ‘चांद बावड़ी’, को दुनिया की सबसे गहरी बावड़ी का दर्जा प्राप्त है, जिसका निर्माण राजा मिहिर भोज ने करवाया था। राजा मिहिर को चांद नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस बावड़ी का नाम ‘चांद’ पड़ा। 13 मंजिला वाली इस बावड़ी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा है, जिसमें 3500 सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों को भूलभुलैया भी कहा जाता है। चांदनी रात में इस बावड़ी का पानी दूधिया सफेद जैसा नजर आता है। अपनी गहराई के चलते इसे ‘अंधेरे-उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है, जहां शाम के वक्त मुश्किल से ही कोई जाता होगा । इस पूरी बावड़ी को खूबसूरत कला से सजाया गया है, जगह-जगह आकर्षक कलाकृतियां की गई हैं। बावड़ी के नीचे किसी गुप्त सुरंग के बारे में भी पता चला है, जिसका इस्तेमाल शायद आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता था।
‘चाँद बावड़ी’ का निर्माण 9वीं शताब्दी में आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। राजस्थान में यह दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी नामक ग्राम में स्थित है। बावड़ी 100 फीट गहरी है। इस बाव़डी के तीन तरफ सोपान और विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी की स्थापत्य कला अद्भुत है। यह भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है। इसमें 3500 सीढ़ियां हैं।
चांद बावड़ी, आभानेरी राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गांव स्थित ‘चांद बावड़ी’, को दुनिया की सबसे गहरी बावड़ी का दर्जा प्राप्त है, जिसका निर्माण राजा मिहिर भोज ने करवाया था। राजा मिहिर को चांद नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस बावड़ी का नाम ‘चांद’ पड़ा। 13 मंजिला वाली इस बावड़ी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा है, जिसमें 3500 सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों को भूलभुलैया भी कहा जाता है। चांदनी रात में इस बावड़ी का पानी दूधिया सफेद जैसा नजर आता है। अपनी गहराई के चलते इसे ‘अंधेरे-उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है, जहां शाम के वक्त मुश्किल से ही कोई जाता होगा । इस पूरी बावड़ी को खूबसूरत कला से सजाया गया है, जगह-जगह आकर्षक कलाकृतियां की गई हैं। बावड़ी के नीचे किसी गुप्त सुरंग के बारे में भी पता चला है, जिसका इस्तेमाल शायद आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता था।
‘चाँद बावड़ी’ का निर्माण 9वीं शताब्दी में आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। राजस्थान में यह दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी नामक ग्राम में स्थित है। बावड़ी 100 फीट गहरी है। इस बाव़डी के तीन तरफ सोपान और विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी की स्थापत्य कला अद्भुत है। यह भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है। इसमें 3500 सीढ़ियां हैं।
चांद बावड़ी, आभानेरी राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गांव स्थित ‘चांद बावड़ी’, को दुनिया की सबसे गहरी बावड़ी का दर्जा प्राप्त है, जिसका निर्माण राजा मिहिर भोज ने करवाया था। राजा मिहिर को चांद नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस बावड़ी का नाम ‘चांद’ पड़ा। 13 मंजिला वाली इस बावड़ी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा है, जिसमें 3500 सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों को भूलभुलैया भी कहा जाता है। चांदनी रात में इस बावड़ी का पानी दूधिया सफेद जैसा नजर आता है। अपनी गहराई के चलते इसे ‘अंधेरे-उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है, जहां शाम के वक्त मुश्किल से ही कोई जाता होगा । इस पूरी बावड़ी को खूबसूरत कला से सजाया गया है, जगह-जगह आकर्षक कलाकृतियां की गई हैं। बावड़ी के नीचे किसी गुप्त सुरंग के बारे में भी पता चला है, जिसका इस्तेमाल शायद आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता था।
निम्नलिखित में से कौन-सा दुर्ग धान्वन दुर्ग’ की श्रेणी में रखा जाता है ?
(1) आमेर दुर्ग – जयपुर
(2) गागरोन दुर्ग – झालावाड़
(3) कुम्भलगढ़ दुर्ग – राजसमंद
(4) सोनार का किला – जैसलमेर
(5) रणथंभौर दुर्ग – सवाई माधोपुर
(6) चित्तौड़गढ़ दुर्ग – चित्तौड़गढ़
(1) आमेर दुर्ग – जयपुर
(2) गागरोन दुर्ग – झालावाड़
(3) कुम्भलगढ़ दुर्ग – राजसमंद
(4) सोनार का किला – जैसलमेर
(5) रणथंभौर दुर्ग – सवाई माधोपुर
(6) चित्तौड़गढ़ दुर्ग – चित्तौड़गढ़
(1) आमेर दुर्ग – जयपुर
(2) गागरोन दुर्ग – झालावाड़
(3) कुम्भलगढ़ दुर्ग – राजसमंद
(4) सोनार का किला – जैसलमेर
(5) रणथंभौर दुर्ग – सवाई माधोपुर
(6) चित्तौड़गढ़ दुर्ग – चित्तौड़गढ़
अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर, जिसका निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 ई. में करवाया, कहाँ स्थित है?
रंगनाथ जी का मंदिर राजस्थान में पुष्कर में है। द्रविड़ शैली में निर्मित यह भव्य मंदिर जो मूलतः एक विष्णु मंदिर है। अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 ई. में करवाया।
रंगनाथ जी का मंदिर राजस्थान में पुष्कर में है। द्रविड़ शैली में निर्मित यह भव्य मंदिर जो मूलतः एक विष्णु मंदिर है। अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 ई. में करवाया।
रंगनाथ जी का मंदिर राजस्थान में पुष्कर में है। द्रविड़ शैली में निर्मित यह भव्य मंदिर जो मूलतः एक विष्णु मंदिर है। अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 ई. में करवाया।
निम्नलिखित में से कौन सा मंदिर गुर्जर प्रतिहार वास्तु शैली का नहीं है ?
स्वर्ण नगरी हॉल किस जैन मंदिर का भाग है
‘राजस्थान का प्रथम विजय स्तंभ’ कहाँ पर स्थित है?
****राजस्थान का प्रथम विजय स्तम्भ समुद्रगुप्त के काल में बयाना दुर्ग में बनाया गया था। बयाना दुर्ग में लाल बलुए पत्थर से निर्मित एक स्तम्भ है। उपलब्ध अभिलेख के अनुसार गुप्त काल में विष्णुवर्धन ने इसका निर्माण करवाया था। विष्णुवर्धन को समुद्रगुप्त का सामंत माना जाता है।
****राजस्थान का प्रथम विजय स्तम्भ समुद्रगुप्त के काल में बयाना दुर्ग में बनाया गया था। बयाना दुर्ग में लाल बलुए पत्थर से निर्मित एक स्तम्भ है। उपलब्ध अभिलेख के अनुसार गुप्त काल में विष्णुवर्धन ने इसका निर्माण करवाया था। विष्णुवर्धन को समुद्रगुप्त का सामंत माना जाता है।
****राजस्थान का प्रथम विजय स्तम्भ समुद्रगुप्त के काल में बयाना दुर्ग में बनाया गया था। बयाना दुर्ग में लाल बलुए पत्थर से निर्मित एक स्तम्भ है। उपलब्ध अभिलेख के अनुसार गुप्त काल में विष्णुवर्धन ने इसका निर्माण करवाया था। विष्णुवर्धन को समुद्रगुप्त का सामंत माना जाता है।
केवाय मन्दिर का निर्माण करवाया था
मंदिर स्थापत्य की “भूमिज शैली” किस स्थापत्य शैली की उपशैली है?
सूर्य मंदिर झालरापाटन |
***** रणकपुर का सूर्य मंदिर व चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर भी भूमिज शैली के हैं।
सूर्य मंदिर झालरापाटन |
***** रणकपुर का सूर्य मंदिर व चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर भी भूमिज शैली के हैं।
सूर्य मंदिर झालरापाटन |
***** रणकपुर का सूर्य मंदिर व चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर भी भूमिज शैली के हैं।
“गुब्बारा”, “नुसरत”, “नागपली”, “गजक’ नाम है
हवामहल की पहली मंजिल का नाम क्या है?
Additional Information-
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‘अतारकीन का दरवाजा’ स्थित है
अतारकीन का दरवाजा नागौर में स्थित है, जिसका निर्माण दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने करवाया था।
अतारकीन का दरवाजा नागौर में स्थित है, जिसका निर्माण दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने करवाया था।
अतारकीन का दरवाजा नागौर में स्थित है, जिसका निर्माण दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने करवाया था।
किलों के निम्नलिखित जोड़ों में से किसे तारागढ़ किलों के नाम से जाना जाता है ?
तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
‘चौरासी खम्भा छतरी’ के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौनसा कथन असत्य है ?
***84 खंभों की छतरी :- बूंदी, इसका निर्माण 1631 में इस छतरी का निर्माण राव विष्णुसिंह के काल में राव देवा द्वारा कराया गया था। , यह तीन मंजिला छतरी है जिस पर पशु पक्षियों के चित्र है।
***84 खंभों की छतरी :- बूंदी, इसका निर्माण 1631 में इस छतरी का निर्माण राव विष्णुसिंह के काल में राव देवा द्वारा कराया गया था। , यह तीन मंजिला छतरी है जिस पर पशु पक्षियों के चित्र है।
***84 खंभों की छतरी :- बूंदी, इसका निर्माण 1631 में इस छतरी का निर्माण राव विष्णुसिंह के काल में राव देवा द्वारा कराया गया था। , यह तीन मंजिला छतरी है जिस पर पशु पक्षियों के चित्र है।
विनायका, हथियागौड़ एवं कोल्वी की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाएँ किस जिले के अन्तर्गत स्थित हैं जो कि प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है?
*******विनायका, हथियागौड़ एवं कोल्वी की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाएँ झालावाड़ जिले में स्थित है। ये गुफाएँ 8वीं-9वीं सदी के मध्य की है।
*******विनायका, हथियागौड़ एवं कोल्वी की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाएँ झालावाड़ जिले में स्थित है। ये गुफाएँ 8वीं-9वीं सदी के मध्य की है।
*******विनायका, हथियागौड़ एवं कोल्वी की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाएँ झालावाड़ जिले में स्थित है। ये गुफाएँ 8वीं-9वीं सदी के मध्य की है।
कुम्भलगढ़ दुर्ग का शिल्पी कौन था?
बाड़ोली के मंदिरों को प्रकाश में लाने का श्रेय दिया जाता है
******बाड़ौली मंदिर समूह चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा तहसील में स्थित है। इस मंदिर समूह में मंदिरों की संख्या नौ है। जिनमें भगवान शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मंदिर मुख्य है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बने हैं, इन्हें कर्नल जेम्स टॉड ने सर्वप्रथम 1821 ई. में खोजा था। जेम्स बर्जेस व गौरीशंकर ओझा ने भी इन मंदिरों पर खोजपूर्ण कार्य किया। यह मंदिर आठवीं से बारहवीं शताब्दी की कतियां हैं। इन मंदिरों में शिव मंदिर प्रमुख है जो ‘घटेश्वर शिवालय’ के नाम से प्रसिद्ध है। अलंकृत मण्डप व तोरण द्वार इस मंदिर की विशिष्टता है।
******बाड़ौली मंदिर समूह चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा तहसील में स्थित है। इस मंदिर समूह में मंदिरों की संख्या नौ है। जिनमें भगवान शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मंदिर मुख्य है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बने हैं, इन्हें कर्नल जेम्स टॉड ने सर्वप्रथम 1821 ई. में खोजा था। जेम्स बर्जेस व गौरीशंकर ओझा ने भी इन मंदिरों पर खोजपूर्ण कार्य किया। यह मंदिर आठवीं से बारहवीं शताब्दी की कतियां हैं। इन मंदिरों में शिव मंदिर प्रमुख है जो ‘घटेश्वर शिवालय’ के नाम से प्रसिद्ध है। अलंकृत मण्डप व तोरण द्वार इस मंदिर की विशिष्टता है।
******बाड़ौली मंदिर समूह चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा तहसील में स्थित है। इस मंदिर समूह में मंदिरों की संख्या नौ है। जिनमें भगवान शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मंदिर मुख्य है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बने हैं, इन्हें कर्नल जेम्स टॉड ने सर्वप्रथम 1821 ई. में खोजा था। जेम्स बर्जेस व गौरीशंकर ओझा ने भी इन मंदिरों पर खोजपूर्ण कार्य किया। यह मंदिर आठवीं से बारहवीं शताब्दी की कतियां हैं। इन मंदिरों में शिव मंदिर प्रमुख है जो ‘घटेश्वर शिवालय’ के नाम से प्रसिद्ध है। अलंकृत मण्डप व तोरण द्वार इस मंदिर की विशिष्टता है।
‘कुमारपाल’ प्रबन्ध में उल्लेख है कि चित्तौड़ के किले का निर्माण एक मौर्य राजा ने करवाया था. उस राजा का नाम था
साके :- इस दुर्ग में तीन साके हुए –
आक्रमणकारी – अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद
सन् 1567-68 ई. में महाराणा उदयसिंह के समय मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था।
साके :- इस दुर्ग में तीन साके हुए –
आक्रमणकारी – अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद
सन् 1567-68 ई. में महाराणा उदयसिंह के समय मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था।
साके :- इस दुर्ग में तीन साके हुए –
आक्रमणकारी – अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद
सन् 1567-68 ई. में महाराणा उदयसिंह के समय मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था।
मेनाल में सुहवेश्वर शिव मन्दिर का निर्माण किस चौहान शासक ने करवाया था?
****मेनाल में सुहवेश्वर शिव मंदिर का निर्माण 1169 ई. में चौहान शासक पृथ्वीराज-II ने करवाया था।
****मेनाल में सुहवेश्वर शिव मंदिर का निर्माण 1169 ई. में चौहान शासक पृथ्वीराज-II ने करवाया था।
****मेनाल में सुहवेश्वर शिव मंदिर का निर्माण 1169 ई. में चौहान शासक पृथ्वीराज-II ने करवाया था।
राजस्थान के किस गढ़ को धाराधारगढ़ के नाम से जाना जाता है ?
****चौमूं के किले को चौमुहागढ़ (धाराधारगढ़) भी कहा जाता है। इस किले की नींव ठाकुर कर्णसिंह द्वारा 1595-97 ई. में रखी गई थी।
****चौमूं के किले को चौमुहागढ़ (धाराधारगढ़) भी कहा जाता है। इस किले की नींव ठाकुर कर्णसिंह द्वारा 1595-97 ई. में रखी गई थी।
****चौमूं के किले को चौमुहागढ़ (धाराधारगढ़) भी कहा जाता है। इस किले की नींव ठाकुर कर्णसिंह द्वारा 1595-97 ई. में रखी गई थी।