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समाज संस्कृती ,शासन
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मध्यकालीन राजस्थान के राज्यों में शासक के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी जाना जाता था
व्याख्या : मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे, जिनकी
नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था। मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था। संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
व्याख्या : मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे, जिनकी
नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था। मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था। संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
व्याख्या : मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे, जिनकी
नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था। मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था। संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
राजस्थान के इतिहास में पट्टा रेख’ से क्या अभिप्राय है ?
व्याख्या : 1. रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
व्याख्या : 1. रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
व्याख्या : 1. रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
निम्न में से किस महाराजा के दरबार में 22 कवि, 22 ज्योतिषी, 22 संगीतज्ञ एवं 22 विषय विशेषज्ञ के रूप में गन्धर्व बाइसी’ विद्यमान थी?
व्याख्या : जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह (1778-1803) ने राजनीतिक रूप से अत्यन्त अस्थिर यग (मराठा आक्रमणों की निरन्तरता) में कला के उत्कर्ष में महत्ती भूमिका निभायी। ‘सूरतखाना’ चित्रकला का केन्द्र था, जिसमें साहिबराम, फैजुल्ला तथा सालिगराम जैसे कलाकार थे। इस काल में रामायण, महाभारत एवं गीत गोविन्द के चित्रयुक्त संस्करण तैयार किए गए। संगीत तथा अन्य प्रदर्शन कलाओं के विकास के लिए ‘गुणीजनखाना’ था। प्रताप सिंह के समय में स्वर सागर, राग सागर तथा संगीत सागर की रचना हुई। पद्माकर नामक कवि भी प्रताप सिंह के दरबार में थे।
व्याख्या : जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह (1778-1803) ने राजनीतिक रूप से अत्यन्त अस्थिर यग (मराठा आक्रमणों की निरन्तरता) में कला के उत्कर्ष में महत्ती भूमिका निभायी। ‘सूरतखाना’ चित्रकला का केन्द्र था, जिसमें साहिबराम, फैजुल्ला तथा सालिगराम जैसे कलाकार थे। इस काल में रामायण, महाभारत एवं गीत गोविन्द के चित्रयुक्त संस्करण तैयार किए गए। संगीत तथा अन्य प्रदर्शन कलाओं के विकास के लिए ‘गुणीजनखाना’ था। प्रताप सिंह के समय में स्वर सागर, राग सागर तथा संगीत सागर की रचना हुई। पद्माकर नामक कवि भी प्रताप सिंह के दरबार में थे।
व्याख्या : जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह (1778-1803) ने राजनीतिक रूप से अत्यन्त अस्थिर यग (मराठा आक्रमणों की निरन्तरता) में कला के उत्कर्ष में महत्ती भूमिका निभायी। ‘सूरतखाना’ चित्रकला का केन्द्र था, जिसमें साहिबराम, फैजुल्ला तथा सालिगराम जैसे कलाकार थे। इस काल में रामायण, महाभारत एवं गीत गोविन्द के चित्रयुक्त संस्करण तैयार किए गए। संगीत तथा अन्य प्रदर्शन कलाओं के विकास के लिए ‘गुणीजनखाना’ था। प्रताप सिंह के समय में स्वर सागर, राग सागर तथा संगीत सागर की रचना हुई। पद्माकर नामक कवि भी प्रताप सिंह के दरबार में थे।
मालदेव की रानी. जिसने मण्डोर के निकट ‘बहुजी रो तालाब’ का निर्माण करवाया था
व्याख्या : राव मालदेव की रानी झाली स्वरुप दे ने ‘स्वरुप सागर’ नाम का तालाब बनवाया था, जो बाद बहुजी के तालाब के नाम से जाना जाने लगा। यह तालाब जोधपुर में स्थित है। उमा दे भटियाणी मालदेव की एक अन्य रानी थी जो जैसलमेर राज परिवार की पुत्री थी। उमा दे ‘रूठी रानी’ के नाम से जानी जाती है क्योंकि विवाह के तुरंत बाद किसी बात पर मालदेव से नाराज होकर इन्होंने अजमेर के किले में निर्वासित जीवन बिताया।
व्याख्या : राव मालदेव की रानी झाली स्वरुप दे ने ‘स्वरुप सागर’ नाम का तालाब बनवाया था, जो बाद बहुजी के तालाब के नाम से जाना जाने लगा। यह तालाब जोधपुर में स्थित है। उमा दे भटियाणी मालदेव की एक अन्य रानी थी जो जैसलमेर राज परिवार की पुत्री थी। उमा दे ‘रूठी रानी’ के नाम से जानी जाती है क्योंकि विवाह के तुरंत बाद किसी बात पर मालदेव से नाराज होकर इन्होंने अजमेर के किले में निर्वासित जीवन बिताया।
व्याख्या : राव मालदेव की रानी झाली स्वरुप दे ने ‘स्वरुप सागर’ नाम का तालाब बनवाया था, जो बाद बहुजी के तालाब के नाम से जाना जाने लगा। यह तालाब जोधपुर में स्थित है। उमा दे भटियाणी मालदेव की एक अन्य रानी थी जो जैसलमेर राज परिवार की पुत्री थी। उमा दे ‘रूठी रानी’ के नाम से जानी जाती है क्योंकि विवाह के तुरंत बाद किसी बात पर मालदेव से नाराज होकर इन्होंने अजमेर के किले में निर्वासित जीवन बिताया।
मारवाड़ में वीरता, साहित्य, सेवा के लिए “सिरोपाव” देने की परम्परा रही थी, सर्वोच्च सिरोपाव था
व्याख्या : मारवाड के शासकों द्वारा ठिकानेदारों के दरबार में आगमन या किसी शाही विवाह के पश्चात् विदा लेने पर एक सम्मानसूचक वस्त्र दिया जाता था, जिसे सिरोपाव कहा जाता है। ये सिरोपाव हाथी, घोड़ा, पालकी या सादा होता था। इनमें हाथी सिरोपाव सर्वोच्च सिरोपाव था।
व्याख्या : मारवाड के शासकों द्वारा ठिकानेदारों के दरबार में आगमन या किसी शाही विवाह के पश्चात् विदा लेने पर एक सम्मानसूचक वस्त्र दिया जाता था, जिसे सिरोपाव कहा जाता है। ये सिरोपाव हाथी, घोड़ा, पालकी या सादा होता था। इनमें हाथी सिरोपाव सर्वोच्च सिरोपाव था।
व्याख्या : मारवाड के शासकों द्वारा ठिकानेदारों के दरबार में आगमन या किसी शाही विवाह के पश्चात् विदा लेने पर एक सम्मानसूचक वस्त्र दिया जाता था, जिसे सिरोपाव कहा जाता है। ये सिरोपाव हाथी, घोड़ा, पालकी या सादा होता था। इनमें हाथी सिरोपाव सर्वोच्च सिरोपाव था।
किस समूह की खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण महाराजा जयसिंहजी द्वारा कराया गया
व्याख्या : सवाई जयसिंह-II 18वीं शताब्दी में आमेर के कच्छवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। जयसिंह
ने सन् 1727 में आमेर से दक्षिण में छ: मील दूर सुव्यवस्थित व शिल्पशास्त्रों के आधार पर आकल्पित एक नवीन शहर ‘जयपुर’ की स्थापना की।
व्याख्या : सवाई जयसिंह-II 18वीं शताब्दी में आमेर के कच्छवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। जयसिंह
ने सन् 1727 में आमेर से दक्षिण में छ: मील दूर सुव्यवस्थित व शिल्पशास्त्रों के आधार पर आकल्पित एक नवीन शहर ‘जयपुर’ की स्थापना की।
व्याख्या : सवाई जयसिंह-II 18वीं शताब्दी में आमेर के कच्छवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। जयसिंह
ने सन् 1727 में आमेर से दक्षिण में छ: मील दूर सुव्यवस्थित व शिल्पशास्त्रों के आधार पर आकल्पित एक नवीन शहर ‘जयपुर’ की स्थापना की।