तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
Question 2 of 17
2. Question
1 points
‘निमाड़ी एवं रागड़ी’ किस बोली की विशेषता है?
Correct
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Incorrect
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Unattempted
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Question 3 of 17
3. Question
1 points
सुमेलित कीजिए
बोली जिला
a जगरौती i. उदयपुर
b ढाटी ii. टोंक
c नागरचोल iii. बाड़मेर
d धावड़ी iv. करौली
Correct
नागरचोल-➯नागरचोल राजस्थान में सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
गौड़वाड़ी-➯गौड़वाड़ी बोली राजस्थान में पाली एवं जालोर जिले के उत्तरी भाग में बोली जाती है।
देवड़ावाटी-➯देवड़ावाटी बोली राजस्थान में सिरोही जिले में बोली जाती है।
ढाटी-मारवाड़ी की उपबोली है जो बाड़मेर में बोली जाती है ।
धावड़ी -उदयपुर क्षेत्र की बोली है ।
जगरौती -करौली क्षेत्र की बोली है ।
Incorrect
नागरचोल-➯नागरचोल राजस्थान में सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
गौड़वाड़ी-➯गौड़वाड़ी बोली राजस्थान में पाली एवं जालोर जिले के उत्तरी भाग में बोली जाती है।
देवड़ावाटी-➯देवड़ावाटी बोली राजस्थान में सिरोही जिले में बोली जाती है।
ढाटी-मारवाड़ी की उपबोली है जो बाड़मेर में बोली जाती है ।
धावड़ी -उदयपुर क्षेत्र की बोली है ।
जगरौती -करौली क्षेत्र की बोली है ।
Unattempted
नागरचोल-➯नागरचोल राजस्थान में सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
गौड़वाड़ी-➯गौड़वाड़ी बोली राजस्थान में पाली एवं जालोर जिले के उत्तरी भाग में बोली जाती है।
देवड़ावाटी-➯देवड़ावाटी बोली राजस्थान में सिरोही जिले में बोली जाती है।
ढाटी-मारवाड़ी की उपबोली है जो बाड़मेर में बोली जाती है ।
धावड़ी -उदयपुर क्षेत्र की बोली है ।
जगरौती -करौली क्षेत्र की बोली है ।
Question 4 of 17
4. Question
1 points
मालव प्रदेश के राजपूतों में प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से उत्पन्न बोली का क्या नाम है?
Correct
रांगड़ी – राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है , जो दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है । रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है । यह मालवी बोली की उपबोली है।
Incorrect
रांगड़ी – राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है , जो दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है । रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है । यह मालवी बोली की उपबोली है।
Unattempted
रांगड़ी – राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है , जो दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है । रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है । यह मालवी बोली की उपबोली है।
Question 5 of 17
5. Question
1 points
निम्न में से कौन विद्वान हैं, जो राजस्थानी भाषा-बोलियों से सम्बन्धित कार्य के लिए नहीं जाने जाते?
Correct
पंडित मोतीलाल मेनारिया -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से ,
डॉ . जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन -राजस्थानी की उत्पति नागर अपभ्रंश से ,
के.एम. मुंशी -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से मानते हैं ,
डॉ . सुनीति कुमार चटर्जी -राजस्थानी की उत्पति सौराष्ट्री अपभ्रंश से मानते है ।
डॉ. हीरालाल माहेश्वरी– विश्नोई समाज पर शोध करने वाली हीरालाल माहेश्वरी द्वारा अंग्रेजी में ‘राजस्थानी भाषा का इतिहास’ नामक ग्रंथ की रचना की गई है।
नोम चोम्स्की -एक भाषा मनोवैज्ञानिक था
*** राजस्थान की बोलियों पर पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिपात व राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग व राजस्थानी भाषा का स्वतंत्र रूप में विश्लेषण सन् 1907-08 में जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ” लिंग्वटिक सर्वे ऑफ इंडिया ” में किया ।
राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ ” वज्रसेन सुरी ” द्वारा रचित ” भरतेश्वर बाहुबलि घोर ” है ,
उद्योतन सूरी के आठवीं शताब्दी के ‘ कुवलयमाला ‘ नामक ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ की भाषा को ‘ मरु भाषा ‘ के नाम से पुकारा गया है ।
राजस्थान में सर्वाधिक मारवाड़ी भाषा बोली जाती है ।
अबुल फजल ने ‘ आइने अकबरी ‘ पुस्तक में मारवाड़ी बोली को भारत की मानक बोलियों में गिनाया ।
मुगल काल में राजस्थानी शैली का उद्भव हुआ ।
उत्तरमध्यकाल राजस्थानी साहित्य का स्वर्णयुग कहलाता है ।
राजस्थानी भाषा का स्वर्णकाल 1650 से 1850 ई . तक को कहा जाता है ,
राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल सन् 1700-1900 ई . तक माना जाता है ।
***क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थानी भाषा की सबसे बड़ी बोली मारवाड़ी है जबकि सर्वाधिक लोग हूँ ढाड़ी बोली बोलते हैं , तो राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक ‘ जॉर्ज मैकलिस्टर ‘ को कहा जाता है । वर्ष 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राजस्थानी भाषा की कुल बोलियाँ 73 मानी गई है , जिनमें से मुख्य निम्न
Incorrect
पंडित मोतीलाल मेनारिया -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से ,
डॉ . जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन -राजस्थानी की उत्पति नागर अपभ्रंश से ,
के.एम. मुंशी -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से मानते हैं ,
डॉ . सुनीति कुमार चटर्जी -राजस्थानी की उत्पति सौराष्ट्री अपभ्रंश से मानते है ।
डॉ. हीरालाल माहेश्वरी– विश्नोई समाज पर शोध करने वाली हीरालाल माहेश्वरी द्वारा अंग्रेजी में ‘राजस्थानी भाषा का इतिहास’ नामक ग्रंथ की रचना की गई है।
नोम चोम्स्की -एक भाषा मनोवैज्ञानिक था
*** राजस्थान की बोलियों पर पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिपात व राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग व राजस्थानी भाषा का स्वतंत्र रूप में विश्लेषण सन् 1907-08 में जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ” लिंग्वटिक सर्वे ऑफ इंडिया ” में किया ।
राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ ” वज्रसेन सुरी ” द्वारा रचित ” भरतेश्वर बाहुबलि घोर ” है ,
उद्योतन सूरी के आठवीं शताब्दी के ‘ कुवलयमाला ‘ नामक ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ की भाषा को ‘ मरु भाषा ‘ के नाम से पुकारा गया है ।
राजस्थान में सर्वाधिक मारवाड़ी भाषा बोली जाती है ।
अबुल फजल ने ‘ आइने अकबरी ‘ पुस्तक में मारवाड़ी बोली को भारत की मानक बोलियों में गिनाया ।
मुगल काल में राजस्थानी शैली का उद्भव हुआ ।
उत्तरमध्यकाल राजस्थानी साहित्य का स्वर्णयुग कहलाता है ।
राजस्थानी भाषा का स्वर्णकाल 1650 से 1850 ई . तक को कहा जाता है ,
राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल सन् 1700-1900 ई . तक माना जाता है ।
***क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थानी भाषा की सबसे बड़ी बोली मारवाड़ी है जबकि सर्वाधिक लोग हूँ ढाड़ी बोली बोलते हैं , तो राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक ‘ जॉर्ज मैकलिस्टर ‘ को कहा जाता है । वर्ष 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राजस्थानी भाषा की कुल बोलियाँ 73 मानी गई है , जिनमें से मुख्य निम्न
Unattempted
पंडित मोतीलाल मेनारिया -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से ,
डॉ . जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन -राजस्थानी की उत्पति नागर अपभ्रंश से ,
के.एम. मुंशी -राजस्थानी की उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से मानते हैं ,
डॉ . सुनीति कुमार चटर्जी -राजस्थानी की उत्पति सौराष्ट्री अपभ्रंश से मानते है ।
डॉ. हीरालाल माहेश्वरी– विश्नोई समाज पर शोध करने वाली हीरालाल माहेश्वरी द्वारा अंग्रेजी में ‘राजस्थानी भाषा का इतिहास’ नामक ग्रंथ की रचना की गई है।
नोम चोम्स्की -एक भाषा मनोवैज्ञानिक था
*** राजस्थान की बोलियों पर पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिपात व राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग व राजस्थानी भाषा का स्वतंत्र रूप में विश्लेषण सन् 1907-08 में जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ” लिंग्वटिक सर्वे ऑफ इंडिया ” में किया ।
राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ ” वज्रसेन सुरी ” द्वारा रचित ” भरतेश्वर बाहुबलि घोर ” है ,
उद्योतन सूरी के आठवीं शताब्दी के ‘ कुवलयमाला ‘ नामक ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ की भाषा को ‘ मरु भाषा ‘ के नाम से पुकारा गया है ।
राजस्थान में सर्वाधिक मारवाड़ी भाषा बोली जाती है ।
अबुल फजल ने ‘ आइने अकबरी ‘ पुस्तक में मारवाड़ी बोली को भारत की मानक बोलियों में गिनाया ।
मुगल काल में राजस्थानी शैली का उद्भव हुआ ।
उत्तरमध्यकाल राजस्थानी साहित्य का स्वर्णयुग कहलाता है ।
राजस्थानी भाषा का स्वर्णकाल 1650 से 1850 ई . तक को कहा जाता है ,
राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल सन् 1700-1900 ई . तक माना जाता है ।
***क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थानी भाषा की सबसे बड़ी बोली मारवाड़ी है जबकि सर्वाधिक लोग हूँ ढाड़ी बोली बोलते हैं , तो राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक ‘ जॉर्ज मैकलिस्टर ‘ को कहा जाता है । वर्ष 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राजस्थानी भाषा की कुल बोलियाँ 73 मानी गई है , जिनमें से मुख्य निम्न
Question 6 of 17
6. Question
1 points
दादू पंथ का साहित्य किस भाषा में संग्रहित है ?
Correct
-**दादू का कार्य क्षेत्र तथा प्रभाव क्षेत्र आमेर राज्य था। उन्होंने तथा उनके शिष्यों रज्जब एव सुपरपास 7 ढूंढाड़ी में अपना साहित्य रचा।
Incorrect
-**दादू का कार्य क्षेत्र तथा प्रभाव क्षेत्र आमेर राज्य था। उन्होंने तथा उनके शिष्यों रज्जब एव सुपरपास 7 ढूंढाड़ी में अपना साहित्य रचा।
Unattempted
-**दादू का कार्य क्षेत्र तथा प्रभाव क्षेत्र आमेर राज्य था। उन्होंने तथा उनके शिष्यों रज्जब एव सुपरपास 7 ढूंढाड़ी में अपना साहित्य रचा।
Question 7 of 17
7. Question
1 points
राजस्थान के निम्नलिखित में से किस जिले में मेवाती भाषा बोली जाती है?
Correct
मेवाती –
यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है ।
यह हरियाणवी , ब्रज तथा मरुभाषा के सम्मिश्रण से विकसित हुई है ।
संत चरणदासजी , लालदास जी , दयाबाई और सहजोबाई आदि ने मेवाती भाषा में अपने ग्रंथ लिखे हैं ।
मेवाती बोली पश्चिमी हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के मध्य सेतु का कार्य करती है ।
राठी व महेठा मेवाती की उपबोलियाँ है ।
अलवर जिले के प्रतापगढ़ , अजबगढ़ , थानागाजी और बलदेवगढ़ में कठेर बोली ‘ बोली जाती है ।
Incorrect
मेवाती –
यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है ।
यह हरियाणवी , ब्रज तथा मरुभाषा के सम्मिश्रण से विकसित हुई है ।
संत चरणदासजी , लालदास जी , दयाबाई और सहजोबाई आदि ने मेवाती भाषा में अपने ग्रंथ लिखे हैं ।
मेवाती बोली पश्चिमी हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के मध्य सेतु का कार्य करती है ।
राठी व महेठा मेवाती की उपबोलियाँ है ।
अलवर जिले के प्रतापगढ़ , अजबगढ़ , थानागाजी और बलदेवगढ़ में कठेर बोली ‘ बोली जाती है ।
Unattempted
मेवाती –
यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है ।
यह हरियाणवी , ब्रज तथा मरुभाषा के सम्मिश्रण से विकसित हुई है ।
संत चरणदासजी , लालदास जी , दयाबाई और सहजोबाई आदि ने मेवाती भाषा में अपने ग्रंथ लिखे हैं ।
मेवाती बोली पश्चिमी हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के मध्य सेतु का कार्य करती है ।
राठी व महेठा मेवाती की उपबोलियाँ है ।
अलवर जिले के प्रतापगढ़ , अजबगढ़ , थानागाजी और बलदेवगढ़ में कठेर बोली ‘ बोली जाती है ।
Question 8 of 17
8. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन-सी बोली राजस्थानी बोलियों के अन्तर्गत नहीं गिनी जाती?
निम्नलिखित में से किस जिले में ‘गौड़वाड़ी’ बोली बोली जाती है?
Correct
गोड़वाड़ी –
यह बोली गोडवाड़ ( जालौर की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारंभ होकर पाली जिले की बाली तहसील तक का संपूर्ण क्षेत्र ) प्रदेश में बोली जाती है ।
गोड़वाड़ी बोली मारवाड़ी बोली की उपबोली है ।
बीसलदेव रासो इस भाषा की प्रमुख रचना है ।
Incorrect
गोड़वाड़ी –
यह बोली गोडवाड़ ( जालौर की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारंभ होकर पाली जिले की बाली तहसील तक का संपूर्ण क्षेत्र ) प्रदेश में बोली जाती है ।
गोड़वाड़ी बोली मारवाड़ी बोली की उपबोली है ।
बीसलदेव रासो इस भाषा की प्रमुख रचना है ।
Unattempted
गोड़वाड़ी –
यह बोली गोडवाड़ ( जालौर की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारंभ होकर पाली जिले की बाली तहसील तक का संपूर्ण क्षेत्र ) प्रदेश में बोली जाती है ।
गोड़वाड़ी बोली मारवाड़ी बोली की उपबोली है ।
बीसलदेव रासो इस भाषा की प्रमुख रचना है ।
Question 10 of 17
10. Question
1 points
‘देवड़ावाटी’ किस क्षेत्र की बोली है?
Correct
देवड़ावाटी –
यह मारवाड़ी भाषा की उपबोली है ।
यह बोली सिरोही क्षेत्र में बोली जाती है ।
इसका दूसरा नाम सिरोही बोली है ।
Incorrect
देवड़ावाटी –
यह मारवाड़ी भाषा की उपबोली है ।
यह बोली सिरोही क्षेत्र में बोली जाती है ।
इसका दूसरा नाम सिरोही बोली है ।
Unattempted
देवड़ावाटी –
यह मारवाड़ी भाषा की उपबोली है ।
यह बोली सिरोही क्षेत्र में बोली जाती है ।
इसका दूसरा नाम सिरोही बोली है ।
Question 11 of 17
11. Question
1 points
राजस्थान की बोली एवं उनके प्रचलन क्षेत्रों के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए
Correct
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Incorrect
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Unattempted
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Question 12 of 17
12. Question
1 points
रांगड़ी बोली मिश्रण है
Correct
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Incorrect
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Unattempted
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Question 13 of 17
13. Question
1 points
ढूंढाड़ी बोली के प्रचलित विविध रूपों में निम्न में से कौन सा सही नहीं है ?
Correct
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , चौरासी ,ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
खैराड़ी –
यह बोली मेवाड़ी , ढूंढाड़ी एवं हाड़ौती बोली का मिश्रण है ।
यह बोली जहाजपुर ( भीलवाड़ा ) व टोंक के कुछ इलाकों में बोली जाती है ।
मालपुरा ( टोंक ) में बोले जाने वाली बोली ‘ मालखैराड़ी ‘ कहलाती है ।
Incorrect
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , चौरासी ,ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
खैराड़ी –
यह बोली मेवाड़ी , ढूंढाड़ी एवं हाड़ौती बोली का मिश्रण है ।
यह बोली जहाजपुर ( भीलवाड़ा ) व टोंक के कुछ इलाकों में बोली जाती है ।
मालपुरा ( टोंक ) में बोले जाने वाली बोली ‘ मालखैराड़ी ‘ कहलाती है ।
Unattempted
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , चौरासी ,ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
खैराड़ी –
यह बोली मेवाड़ी , ढूंढाड़ी एवं हाड़ौती बोली का मिश्रण है ।
यह बोली जहाजपुर ( भीलवाड़ा ) व टोंक के कुछ इलाकों में बोली जाती है ।
मालपुरा ( टोंक ) में बोले जाने वाली बोली ‘ मालखैराड़ी ‘ कहलाती है ।
Question 14 of 17
14. Question
1 points
गलत युग्म पहचानिये
Correct
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Incorrect
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Unattempted
बागड़ी – डूंगरपुर , बांसवाड़ा क्षेत्र को वागड़ क्षेत्र
मेवाती – यह बोली अलवर , भरतपुर , धौलपुर , करौली तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा , हरियाणा के गुडगाँव तक बोली जाती है
हाड़ौती – हाड़ौती बोली कोटा , बूंदी व झालावाड़ में बोली जाती है
ढूँढाड़ी – यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है । इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है
Question 15 of 17
15. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौनसी ढूंढाड़ी की उपबोली नहीं है?
Correct
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
राठी / अहीर वाटी / यादवों की बोली –
पूर्वोत्तर राजस्थान वर्ग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बोली अहीरवाटी / राठी है ।
यह बांगरू ( हरियाणवी ) एवं मेवाती के मध्य संधि स्थल की बोली कही जा सकती है ।
इसका प्रभाव अलवर जिले की बहरोड़ , किशनगढ़ का पश्चिमी भाग , हरियाणा में रेवाड़ी , नारनौल व जयपुर जिले की कोटपूतली तहसील के उत्तरी भाग में विस्तृत है
ऐतिहासिक दृष्टि से इस क्षेत्र को ‘ राठ ‘ एवं यहाँ की बोली को ‘ राठी ‘ भी कहा जाता है ।
नीमराना के राजा चंद्रभान सिंह के दरबारी जोधराज ने ‘ हम्मीर रासो ‘ महाकाव्य की रचना इसी भाषा में की थी ।
Incorrect
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
राठी / अहीर वाटी / यादवों की बोली –
पूर्वोत्तर राजस्थान वर्ग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बोली अहीरवाटी / राठी है ।
यह बांगरू ( हरियाणवी ) एवं मेवाती के मध्य संधि स्थल की बोली कही जा सकती है ।
इसका प्रभाव अलवर जिले की बहरोड़ , किशनगढ़ का पश्चिमी भाग , हरियाणा में रेवाड़ी , नारनौल व जयपुर जिले की कोटपूतली तहसील के उत्तरी भाग में विस्तृत है
ऐतिहासिक दृष्टि से इस क्षेत्र को ‘ राठ ‘ एवं यहाँ की बोली को ‘ राठी ‘ भी कहा जाता है ।
नीमराना के राजा चंद्रभान सिंह के दरबारी जोधराज ने ‘ हम्मीर रासो ‘ महाकाव्य की रचना इसी भाषा में की थी ।
Unattempted
ढूँढाड़ी –
यह पूर्वी राजस्थान के मध्य भाग में ( जयपुर , टोंक , अजमेर , दौसा जिलों में ) सर्वाधिक बोली जाती है ।
इसे ‘ जयपुरी एवं झाड़शाही बोली ‘ भी कहते है ।
ढूंढाड़ी भाषा का प्राचीनतम उल्लेख ‘ आठ देस गुजरी ‘ नामक पुस्तक में मिलता है ।
यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है ।
साहित्ययिक ढूंढाड़ीभाषा को ‘ पिंगल ‘ कहा जाता है
संत दादू और उनके शिष्य सुंदरदास की रचनाएँ ढूँढाड़ी भाषा में ही है ।
तोरावाटी , राजावाटी , नागर चोल , ढूँढाड़ी बोली की उपबोलियाँ हैं ।
राठी / अहीर वाटी / यादवों की बोली –
पूर्वोत्तर राजस्थान वर्ग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बोली अहीरवाटी / राठी है ।
यह बांगरू ( हरियाणवी ) एवं मेवाती के मध्य संधि स्थल की बोली कही जा सकती है ।
इसका प्रभाव अलवर जिले की बहरोड़ , किशनगढ़ का पश्चिमी भाग , हरियाणा में रेवाड़ी , नारनौल व जयपुर जिले की कोटपूतली तहसील के उत्तरी भाग में विस्तृत है
ऐतिहासिक दृष्टि से इस क्षेत्र को ‘ राठ ‘ एवं यहाँ की बोली को ‘ राठी ‘ भी कहा जाता है ।
नीमराना के राजा चंद्रभान सिंह के दरबारी जोधराज ने ‘ हम्मीर रासो ‘ महाकाव्य की रचना इसी भाषा में की थी ।
Question 16 of 17
16. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौनसी बोली मारवाड़ी और मालवी का मिश्रण मानी जाती है?
Correct
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Incorrect
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Unattempted
रांगड़ी –
राजपूतों में बोली जाने वाली मारवाड़ी और मालवी के मिश्रण से बनी बोली ‘ रांगड़ी बोली ‘ कहलाती है ,
दक्षिणी पूर्वीराजस्थान में बोली जाती है ।
रांगड़ी बोली कुछ कर्कष है ।
यह मालवी बोली की उपबोली है।
Question 17 of 17
17. Question
1 points
राजस्थान की किस बोली पर मराठी भाषा का प्रभाव है?
Correct
मालवी –
यह दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान की बोली है ।
यह बोली मालवा प्रांत की होने के कारण मालवी कहलाती है ।
यह राज्य के झालावाड़ , कोटा , प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ के क्षेत्र में बोली जाती है ।
मालवी बोली में मारवाड़ी तथा ढूँढ़ाड़ी बोली की कुछ विशेषता पाई जाती हैं ।
ढूंढाड़ी बोली पर मालवी बोली का शक्तिशाली प्रभाव है ।
नीमाड़ी बोली मालवी की उपबोली है ,
इसे दक्षिण राजस्थानी भी कहते हैं ।
इस बोली पर मराठी भाषा का प्रभाव है ।
झोंडवाड़ी , पाटवी , रतलामी , उमठवादी आदि बोलियाँ मालवी की उपबोलियाँ हैं ।
Incorrect
मालवी –
यह दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान की बोली है ।
यह बोली मालवा प्रांत की होने के कारण मालवी कहलाती है ।
यह राज्य के झालावाड़ , कोटा , प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ के क्षेत्र में बोली जाती है ।
मालवी बोली में मारवाड़ी तथा ढूँढ़ाड़ी बोली की कुछ विशेषता पाई जाती हैं ।
ढूंढाड़ी बोली पर मालवी बोली का शक्तिशाली प्रभाव है ।
नीमाड़ी बोली मालवी की उपबोली है ,
इसे दक्षिण राजस्थानी भी कहते हैं ।
इस बोली पर मराठी भाषा का प्रभाव है ।
झोंडवाड़ी , पाटवी , रतलामी , उमठवादी आदि बोलियाँ मालवी की उपबोलियाँ हैं ।
Unattempted
मालवी –
यह दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान की बोली है ।
यह बोली मालवा प्रांत की होने के कारण मालवी कहलाती है ।
यह राज्य के झालावाड़ , कोटा , प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ के क्षेत्र में बोली जाती है ।
मालवी बोली में मारवाड़ी तथा ढूँढ़ाड़ी बोली की कुछ विशेषता पाई जाती हैं ।
ढूंढाड़ी बोली पर मालवी बोली का शक्तिशाली प्रभाव है ।
नीमाड़ी बोली मालवी की उपबोली है ,
इसे दक्षिण राजस्थानी भी कहते हैं ।
इस बोली पर मराठी भाषा का प्रभाव है ।
झोंडवाड़ी , पाटवी , रतलामी , उमठवादी आदि बोलियाँ मालवी की उपबोलियाँ हैं ।