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मौर्य एवं गुप्तकालीन कला .साहित्य
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मौर्य वंश के शासन के दौरान स्थानिक’ था
व्याख्या- मौर्य वंश के शासन के समय ‘स्थानिक’ जिला प्रशासक होता था। मेगस्थनीज के द्वारा नगर के प्रमुख अधिकारी को ‘एस्ट्रोनोमाई’ कहा गया है। उसके अनुसार जिले का अधिकारी ‘एग्रोनोमोई’ था।
व्याख्या- मौर्य वंश के शासन के समय ‘स्थानिक’ जिला प्रशासक होता था। मेगस्थनीज के द्वारा नगर के प्रमुख अधिकारी को ‘एस्ट्रोनोमाई’ कहा गया है। उसके अनुसार जिले का अधिकारी ‘एग्रोनोमोई’ था।
व्याख्या- मौर्य वंश के शासन के समय ‘स्थानिक’ जिला प्रशासक होता था। मेगस्थनीज के द्वारा नगर के प्रमुख अधिकारी को ‘एस्ट्रोनोमाई’ कहा गया है। उसके अनुसार जिले का अधिकारी ‘एग्रोनोमोई’ था।
अशोक के शिलालेख किस लिपि में खुदे हुए हैं?
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के शिलालेख में शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में, तक्षशिला एवं लघमान अभिलेख आरमेइक लिपि में, शरेकुना अभिलेख आरमेइक एवं ग्रीक लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं। इसके अलावा सभी शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तंभ लेख एवं लघु स्तंभ लेख, ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के शिलालेख में शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में, तक्षशिला एवं लघमान अभिलेख आरमेइक लिपि में, शरेकुना अभिलेख आरमेइक एवं ग्रीक लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं। इसके अलावा सभी शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तंभ लेख एवं लघु स्तंभ लेख, ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के शिलालेख में शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में, तक्षशिला एवं लघमान अभिलेख आरमेइक लिपि में, शरेकुना अभिलेख आरमेइक एवं ग्रीक लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं। इसके अलावा सभी शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तंभ लेख एवं लघु स्तंभ लेख, ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण किये गये हैं।
कौटिल्य किसका प्रधानमंत्री था
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में कौटिल्य का महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। कौटिल्य इतिहास में विष्णुगुप्त तथा चाणक्य इन दो नामों से भी विख्यात था। जब चंद्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना तो कौटिल्य प्रधानमंत्री, महामंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ था । वह राजनीति शास्त्र का प्रकांड पंडित था और उसने राजनीति शास्त्र पर ‘अर्थशास्त्र’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में कौटिल्य का महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। कौटिल्य इतिहास में विष्णुगुप्त तथा चाणक्य इन दो नामों से भी विख्यात था। जब चंद्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना तो कौटिल्य प्रधानमंत्री, महामंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ था । वह राजनीति शास्त्र का प्रकांड पंडित था और उसने राजनीति शास्त्र पर ‘अर्थशास्त्र’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में कौटिल्य का महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। कौटिल्य इतिहास में विष्णुगुप्त तथा चाणक्य इन दो नामों से भी विख्यात था। जब चंद्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना तो कौटिल्य प्रधानमंत्री, महामंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ था । वह राजनीति शास्त्र का प्रकांड पंडित था और उसने राजनीति शास्त्र पर ‘अर्थशास्त्र’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी।
चाणक्य अपने बचपन में किस नाम से जाने जाते थे
व्याख्या- ऋषि चानक ने अपने पुत्र का नाम चाणक्य रखा था।’ अर्थशास्त्र के लेखक के रूप में इसी पुस्तक में उल्लिखित ‘कौटिल्य’ तथा एक पद्यखंड में उल्लिखित ‘विष्णुगुप्त’ नाम की साम्यता चाणक्य से की जाती है।
व्याख्या- ऋषि चानक ने अपने पुत्र का नाम चाणक्य रखा था।’ अर्थशास्त्र के लेखक के रूप में इसी पुस्तक में उल्लिखित ‘कौटिल्य’ तथा एक पद्यखंड में उल्लिखित ‘विष्णुगुप्त’ नाम की साम्यता चाणक्य से की जाती है।
व्याख्या- ऋषि चानक ने अपने पुत्र का नाम चाणक्य रखा था।’ अर्थशास्त्र के लेखक के रूप में इसी पुस्तक में उल्लिखित ‘कौटिल्य’ तथा एक पद्यखंड में उल्लिखित ‘विष्णुगुप्त’ नाम की साम्यता चाणक्य से की जाती है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र है, एक
व्याख्या- कौटिल्य (चाणक्य) के द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। इसमें
राज्य के सप्तांग सिद्धांत- राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड एवं मित्र की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है। इससे तत्कालीन प्रशासन एवं कृषि व्यवस्था की भी विस्तृत जानकारी मिलती है।
व्याख्या- कौटिल्य (चाणक्य) के द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। इसमें
राज्य के सप्तांग सिद्धांत- राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड एवं मित्र की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है। इससे तत्कालीन प्रशासन एवं कृषि व्यवस्था की भी विस्तृत जानकारी मिलती है।
व्याख्या- कौटिल्य (चाणक्य) के द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। इसमें
राज्य के सप्तांग सिद्धांत- राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड एवं मित्र की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है। इससे तत्कालीन प्रशासन एवं कृषि व्यवस्था की भी विस्तृत जानकारी मिलती है।
कला की गांधार शैली निम्न समय में फली-फूली
अफगानिस्तान का बामियान प्रसिद्ध था
व्याख्या- अफगानिस्तान का बामियान पहाड़ियों को । काटकर बनवाई गई बुद्ध प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध था लेकिन तालिबान शासन के द्वारा इन बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करवा दिया गया।
व्याख्या- अफगानिस्तान का बामियान पहाड़ियों को । काटकर बनवाई गई बुद्ध प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध था लेकिन तालिबान शासन के द्वारा इन बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करवा दिया गया।
व्याख्या- अफगानिस्तान का बामियान पहाड़ियों को । काटकर बनवाई गई बुद्ध प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध था लेकिन तालिबान शासन के द्वारा इन बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करवा दिया गया।
गांधार कला शैली का संश्लेषण है
निम्नलिखित में से किस मूर्ति कला में सदैव हरित स्तरित चट्टान (शिष्ट) का प्रयोग माध्यम के रूप में होता था
व्याख्या- गांधार कला में सदैव हरित स्तरित या शिष्ट चट्टान का प्रयोग ही मूर्तियाँ बनाने के लिए किया जाता था यद्यपि मथुरा कला में भी इसी के अनुसरण पर शिष्ट का प्रयोग किया गया था।
व्याख्या- गांधार कला में सदैव हरित स्तरित या शिष्ट चट्टान का प्रयोग ही मूर्तियाँ बनाने के लिए किया जाता था यद्यपि मथुरा कला में भी इसी के अनुसरण पर शिष्ट का प्रयोग किया गया था।
व्याख्या- गांधार कला में सदैव हरित स्तरित या शिष्ट चट्टान का प्रयोग ही मूर्तियाँ बनाने के लिए किया जाता था यद्यपि मथुरा कला में भी इसी के अनुसरण पर शिष्ट का प्रयोग किया गया था।
प्राचीन काल के भारत पर आक्रमणों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम
व्याख्या- भारत में बाह्य आक्रमणों के कालों का सही कालानुक्रम निम्न प्रकार है-यूनानी (326 ई. पू. सिकंदर महान), शक (सीथियन-, प्रथम शताब्दी ई.पू.), कुषाण (पहली शताब्दी ई.)। और
व्याख्या- भारत में बाह्य आक्रमणों के कालों का सही कालानुक्रम निम्न प्रकार है-यूनानी (326 ई. पू. सिकंदर महान), शक (सीथियन-, प्रथम शताब्दी ई.पू.), कुषाण (पहली शताब्दी ई.)। और
व्याख्या- भारत में बाह्य आक्रमणों के कालों का सही कालानुक्रम निम्न प्रकार है-यूनानी (326 ई. पू. सिकंदर महान), शक (सीथियन-, प्रथम शताब्दी ई.पू.), कुषाण (पहली शताब्दी ई.)। और
पहला ईरानी शासक जिसने भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया था
व्याख्या- डेरियस प्रथम (522-486 ई.पू.) के द्वारा | सर्वप्रथम भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया गया था। हेरोडोटस के अनुसार डेरियस प्रथम के साम्राज्य में संपूर्ण सिंधु घाटी का प्रदेश सम्मिलित था तथा पूर्व की
ओर इसका विस्तार राजपूताना के रेगिस्तान तक था। पर्सिपोलिस एवं नक्शेरुस्तम के शिलालेखों के अनुसार पंजाब भी उसके साम्राज्य में सम्मिलित था।
व्याख्या- डेरियस प्रथम (522-486 ई.पू.) के द्वारा | सर्वप्रथम भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया गया था। हेरोडोटस के अनुसार डेरियस प्रथम के साम्राज्य में संपूर्ण सिंधु घाटी का प्रदेश सम्मिलित था तथा पूर्व की
ओर इसका विस्तार राजपूताना के रेगिस्तान तक था। पर्सिपोलिस एवं नक्शेरुस्तम के शिलालेखों के अनुसार पंजाब भी उसके साम्राज्य में सम्मिलित था।
व्याख्या- डेरियस प्रथम (522-486 ई.पू.) के द्वारा | सर्वप्रथम भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया गया था। हेरोडोटस के अनुसार डेरियस प्रथम के साम्राज्य में संपूर्ण सिंधु घाटी का प्रदेश सम्मिलित था तथा पूर्व की
ओर इसका विस्तार राजपूताना के रेगिस्तान तक था। पर्सिपोलिस एवं नक्शेरुस्तम के शिलालेखों के अनुसार पंजाब भी उसके साम्राज्य में सम्मिलित था।
निम्न राजवंशों में सबसे पुराना राजवंश था
व्याख्या- इस वंश के संस्थापक सिमुक ने संभवतः ई.पू. प्रथम सदी के द्वितीयार्द्ध में शासन किया और उसका शासनकाल 60 ई.पू. से 37 ई.पू. तक माना गया है।
व्याख्या- इस वंश के संस्थापक सिमुक ने संभवतः ई.पू. प्रथम सदी के द्वितीयार्द्ध में शासन किया और उसका शासनकाल 60 ई.पू. से 37 ई.पू. तक माना गया है।
व्याख्या- इस वंश के संस्थापक सिमुक ने संभवतः ई.पू. प्रथम सदी के द्वितीयार्द्ध में शासन किया और उसका शासनकाल 60 ई.पू. से 37 ई.पू. तक माना गया है।
आंध्र सातवाहन राजाओं की सबसे लंबी सूची किस पुराण में मिलती है
व्याख्या- पुराणों में कुल तीस सातवाहन राजाओं के नाम का उल्लेख हैं जिनमें से सबसे लंबी सूची मत्स्य पुराण में 19 राजाओं की है- ये हैं-
9 मृगेंद्रु, 10. कुंतलस्वाति,
13, गौर कृष्ण, 14. हाल,
व्याख्या- पुराणों में कुल तीस सातवाहन राजाओं के नाम का उल्लेख हैं जिनमें से सबसे लंबी सूची मत्स्य पुराण में 19 राजाओं की है- ये हैं-
9 मृगेंद्रु, 10. कुंतलस्वाति,
13, गौर कृष्ण, 14. हाल,
व्याख्या- पुराणों में कुल तीस सातवाहन राजाओं के नाम का उल्लेख हैं जिनमें से सबसे लंबी सूची मत्स्य पुराण में 19 राजाओं की है- ये हैं-
9 मृगेंद्रु, 10. कुंतलस्वाति,
13, गौर कृष्ण, 14. हाल,
सातवाहनों की राजधानी अवस्थित थी
व्याख्या- सातवाहनों की वास्तविक राजधानी प्रतिष्ठान पर पैठन में अवस्थित थी। पुराणों में इस राजवंश को आंधभृत्य या आंध्र जातीय कहा गया है । उनकी आरंभिक राजधानी अमरावती को माना जाता है। सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक नामक व्यक्ति ने लगभग 60 ई.पू. में कण्व वंशीय शासक सुशर्मा की हत्या करके की थी। पुराणों के अनुसार कृष्ण का पुत्र एवं उत्तराधिकारी शातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का शातकर्णी उपाधि धारण करने वाला प्रथम राजा माना जाता है । इसके शासन के बारे में हमें नागनिका के नानाघाट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है
व्याख्या- सातवाहनों की वास्तविक राजधानी प्रतिष्ठान पर पैठन में अवस्थित थी। पुराणों में इस राजवंश को आंधभृत्य या आंध्र जातीय कहा गया है । उनकी आरंभिक राजधानी अमरावती को माना जाता है। सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक नामक व्यक्ति ने लगभग 60 ई.पू. में कण्व वंशीय शासक सुशर्मा की हत्या करके की थी। पुराणों के अनुसार कृष्ण का पुत्र एवं उत्तराधिकारी शातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का शातकर्णी उपाधि धारण करने वाला प्रथम राजा माना जाता है । इसके शासन के बारे में हमें नागनिका के नानाघाट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है
व्याख्या- सातवाहनों की वास्तविक राजधानी प्रतिष्ठान पर पैठन में अवस्थित थी। पुराणों में इस राजवंश को आंधभृत्य या आंध्र जातीय कहा गया है । उनकी आरंभिक राजधानी अमरावती को माना जाता है। सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक नामक व्यक्ति ने लगभग 60 ई.पू. में कण्व वंशीय शासक सुशर्मा की हत्या करके की थी। पुराणों के अनुसार कृष्ण का पुत्र एवं उत्तराधिकारी शातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का शातकर्णी उपाधि धारण करने वाला प्रथम राजा माना जाता है । इसके शासन के बारे में हमें नागनिका के नानाघाट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है
निम्नलिखित में से वह व्यक्ति कौन है, जिसका नाम ‘देवानाम प्रियदर्शी’ था?
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में उसे ‘देवानामप्रिय, देवानामप्रियदर्शी तथा राजा’ आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। मास्की, गुर्जरा, निटूर तथा उदेगोलम लेखों में उसके नाम ‘अशोक’ का विवरण प्राप्त होता है तथा पुराणों में उसे ‘अशोक वर्धन’ कहा गया है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में उसे ‘देवानामप्रिय, देवानामप्रियदर्शी तथा राजा’ आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। मास्की, गुर्जरा, निटूर तथा उदेगोलम लेखों में उसके नाम ‘अशोक’ का विवरण प्राप्त होता है तथा पुराणों में उसे ‘अशोक वर्धन’ कहा गया है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में उसे ‘देवानामप्रिय, देवानामप्रियदर्शी तथा राजा’ आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। मास्की, गुर्जरा, निटूर तथा उदेगोलम लेखों में उसके नाम ‘अशोक’ का विवरण प्राप्त होता है तथा पुराणों में उसे ‘अशोक वर्धन’ कहा गया है।
प्रथम भारतीय साम्राज्य स्थापित किया था
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य की गणना भारत के महान शासकों में होती है। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।
निम्नलिखित में कौन-सा सबसे पुराना राजवंश है
व्याख्या- उपर्युक्त राजवंशों में मौर्य राजवंश सबसे प्राचीन | है। इसका समय 323-184 ई.पू. तक था।
व्याख्या- उपर्युक्त राजवंशों में मौर्य राजवंश सबसे प्राचीन | है। इसका समय 323-184 ई.पू. तक था।
व्याख्या- उपर्युक्त राजवंशों में मौर्य राजवंश सबसे प्राचीन | है। इसका समय 323-184 ई.पू. तक था।
जिसके ग्रंथ में चंद्रगुप्त मौर्य का विशिष्ट रूप से वर्णन हुआ है, वह है
व्याख्या- विशाखादत्त द्वारा रचित ‘मुद्राराक्षस’ नामक ग्रंथ से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र बताया गया है। मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है। धुंडिराज के द्वारा मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी।
व्याख्या- विशाखादत्त द्वारा रचित ‘मुद्राराक्षस’ नामक ग्रंथ से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र बताया गया है। मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है। धुंडिराज के द्वारा मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी।
व्याख्या- विशाखादत्त द्वारा रचित ‘मुद्राराक्षस’ नामक ग्रंथ से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र बताया गया है। मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है। धुंडिराज के द्वारा मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी।
सैंड्रोकोट्स से चंद्रगुप्त मौर्य की पहचान किसने की
व्याख्या- विलियम जोंस ने सर्वप्रथम सैंड्रोकोट्स’ की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की जबकि एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है।
व्याख्या- विलियम जोंस ने सर्वप्रथम सैंड्रोकोट्स’ की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की जबकि एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है।
व्याख्या- विलियम जोंस ने सर्वप्रथम सैंड्रोकोट्स’ की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की जबकि एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है।
निम्नलिखित राजाओं में से कौन जैन धर्म का संरक्षक था
कलिंग नरेश खारवेल निम्न में से किस वंश से संबंधित थे
पूर्वी रोमन शासक जस्टिनियन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान किस क्षेत्र में था
व्याख्या- पूर्वी रोमन शासक जस्टिनियन को सर्वाधिक प्रसिद्धि उसके न्याय संबंधी सुधारों से मिली थी। वह रोमन कानून के संपूर्ण संशोधन के लिए उत्तरदायी था।
व्याख्या- पूर्वी रोमन शासक जस्टिनियन को सर्वाधिक प्रसिद्धि उसके न्याय संबंधी सुधारों से मिली थी। वह रोमन कानून के संपूर्ण संशोधन के लिए उत्तरदायी था।
व्याख्या- पूर्वी रोमन शासक जस्टिनियन को सर्वाधिक प्रसिद्धि उसके न्याय संबंधी सुधारों से मिली थी। वह रोमन कानून के संपूर्ण संशोधन के लिए उत्तरदायी था।
कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में किस पहलू पर प्रकाश डाला गया है
व्याख्या- कौटिल्य के द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह वस्तुतः ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है अपितु राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें मुख्य रूप से राजनीतिक नीतियों पर प्रकाश डाला गया है
व्याख्या- कौटिल्य के द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह वस्तुतः ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है अपितु राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें मुख्य रूप से राजनीतिक नीतियों पर प्रकाश डाला गया है
व्याख्या- कौटिल्य के द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह वस्तुतः ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है अपितु राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें मुख्य रूप से राजनीतिक नीतियों पर प्रकाश डाला गया है
निम्नांकित में से किसकी तुलना मैक्यावेली के ‘प्रिंस’ से की जा सकती है
व्याख्या- अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसकी तुलना मैक्यावेली’ के द्वारा रचित ‘प्रिंस’ से की जाती है।
व्याख्या- अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसकी तुलना मैक्यावेली’ के द्वारा रचित ‘प्रिंस’ से की जाती है।
व्याख्या- अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसकी तुलना मैक्यावेली’ के द्वारा रचित ‘प्रिंस’ से की जाती है।
किसके शासनकाल में डाइमेकस भारत आया था
पाटलिपुत्र में स्थित चंद्रगुप्त का महल मुख्यतः बना था
व्याख्या- बिहार में पटना (पाटलिपुत्र) के समीप बुलंदीबाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्यकाल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष मिले हैं। इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय स्कूनर महोदय को है।
व्याख्या- बिहार में पटना (पाटलिपुत्र) के समीप बुलंदीबाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्यकाल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष मिले हैं। इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय स्कूनर महोदय को है।
व्याख्या- बिहार में पटना (पाटलिपुत्र) के समीप बुलंदीबाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्यकाल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष मिले हैं। इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय स्कूनर महोदय को है।
किस मौर्य राजा ने दक्कन की विजय प्राप्त की थी
व्याख्या- मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने | दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी। इस संदर्भ में अशोक के अभिलेखों, जैन एवं तमिल साक्ष्यों से जानकारी मिलती है। दक्षिण भाग के अनेक स्थलों में अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं, किंतु अशोक ने एकमात्र कलिंग विजय ही की थी।
व्याख्या- मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने | दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी। इस संदर्भ में अशोक के अभिलेखों, जैन एवं तमिल साक्ष्यों से जानकारी मिलती है। दक्षिण भाग के अनेक स्थलों में अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं, किंतु अशोक ने एकमात्र कलिंग विजय ही की थी।
व्याख्या- मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने | दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी। इस संदर्भ में अशोक के अभिलेखों, जैन एवं तमिल साक्ष्यों से जानकारी मिलती है। दक्षिण भाग के अनेक स्थलों में अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं, किंतु अशोक ने एकमात्र कलिंग विजय ही की थी।
मालवा, गुजरात एवं महाराष्ट्र किस शासक ने पहली बार जीता
व्याख्या- राजनैतिक तौर पर समस्त भारत का एकीकरण चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में संभव हुआ। प्रारंभिक विजयों के फलस्वरूप चंद्रगुप्त का साम्राज्य व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया। चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के समय उसका साम्राज्य पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत से पूरब में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था।
व्याख्या- राजनैतिक तौर पर समस्त भारत का एकीकरण चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में संभव हुआ। प्रारंभिक विजयों के फलस्वरूप चंद्रगुप्त का साम्राज्य व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया। चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के समय उसका साम्राज्य पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत से पूरब में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था।
व्याख्या- राजनैतिक तौर पर समस्त भारत का एकीकरण चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में संभव हुआ। प्रारंभिक विजयों के फलस्वरूप चंद्रगुप्त का साम्राज्य व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया। चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के समय उसका साम्राज्य पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत से पूरब में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था।
निम्न में से किसने ‘ सैंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया है
व्याख्या- जस्टिन द्वारा ‘सैंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या- जस्टिन द्वारा ‘सैंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या- जस्टिन द्वारा ‘सैंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया गया है।
निम्न में से कौन-सा स्थान सातवाहनों की राजधानी था
निम्न कथनों पर विचार कीजिए
कथन (A) : कुषाण फारस की खाड़ी और लाल सागर से होकर व्यापार करते थे।
कारण : (R) उनकी सुसंगठित नौसेना उच्च कोटि की थी।
उपर्युक्त के संदर्भ में निम्न में से कौन-सा सही उत्तर का चयन करे |
कूट :
राजा खारवेल का नाम जुड़ा है
व्याख्या- कलिंग का चेदिवंशीय शासक खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक था। उड़ीसा प्रांत के भुवनेश्वर में स्थित उदयगिरि पहाड़ी की ओडिशा राज्य से खारवेल का एक बिना तिथि का अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें खारवेल के बचपन, शिक्षा, राज्याभिषेक तथा राजा होने के बाद से तेरह वर्षों तक के शासनकाल की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण मिलता है। यह अभिलेख खारवेल का इतिहास जानने का एकमात्र स्रोत है।
व्याख्या- कलिंग का चेदिवंशीय शासक खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक था। उड़ीसा प्रांत के भुवनेश्वर में स्थित उदयगिरि पहाड़ी की ओडिशा राज्य से खारवेल का एक बिना तिथि का अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें खारवेल के बचपन, शिक्षा, राज्याभिषेक तथा राजा होने के बाद से तेरह वर्षों तक के शासनकाल की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण मिलता है। यह अभिलेख खारवेल का इतिहास जानने का एकमात्र स्रोत है।
व्याख्या- कलिंग का चेदिवंशीय शासक खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक था। उड़ीसा प्रांत के भुवनेश्वर में स्थित उदयगिरि पहाड़ी की ओडिशा राज्य से खारवेल का एक बिना तिथि का अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें खारवेल के बचपन, शिक्षा, राज्याभिषेक तथा राजा होने के बाद से तेरह वर्षों तक के शासनकाल की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण मिलता है। यह अभिलेख खारवेल का इतिहास जानने का एकमात्र स्रोत है।
अभिलेख, जिससे वह प्रमाणित होता है कि चंद्रगुप्त का प्रभाव पश्चिम भारत पर था, है
व्याख्या- 150 ई. के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आनर्त और सौराष्ट्र (गुजरात) प्रदेश में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल ‘पुष्यगुप्त’ द्वारा सिंचाई के बाँध के निर्माण का विवरण प्राप्त होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पश्चिम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था।
व्याख्या- 150 ई. के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आनर्त और सौराष्ट्र (गुजरात) प्रदेश में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल ‘पुष्यगुप्त’ द्वारा सिंचाई के बाँध के निर्माण का विवरण प्राप्त होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पश्चिम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था।
व्याख्या- 150 ई. के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आनर्त और सौराष्ट्र (गुजरात) प्रदेश में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल ‘पुष्यगुप्त’ द्वारा सिंचाई के बाँध के निर्माण का विवरण प्राप्त होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पश्चिम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था।
गुजरात चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में सम्मिलित था, यह प्रमाणित होता है
सेल्यूकस, जिसको अलेक्जेंडर द्वारा सिंध एवं अफगानिस्तान का प्रशासक नियुक्त किया गया था, को किस भारतीय राजा ने हराया था
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के सिकंदर के साम्राज्य के द्वारा | पूर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमणकारी सेना को 305 ई. पू. में पराजित किया गया था।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के सिकंदर के साम्राज्य के द्वारा | पूर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमणकारी सेना को 305 ई. पू. में पराजित किया गया था।
व्याख्या- चंद्रगुप्त मौर्य के सिकंदर के साम्राज्य के द्वारा | पूर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमणकारी सेना को 305 ई. पू. में पराजित किया गया था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को किस वर्ष में पराजित किया था
निम्नलिखित में से किस स्रोत में अशोक के राज्यकाल में तृतीय बौद्ध समिति होने का उल्लेख मिलता है
(1) अशोक के अभिलेख
(2) दीपवंश
(3) महावंश
(4) दिव्यावदान
व्याख्या- सिंहली अनुश्रुतियों-दीपवंश तथा महावंश के अनुसार मौर्य अशोक अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र’ में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति आयोजित हुई। इसकी अध्यक्षता ‘मोग्गलिपुत्त तिस्स’ नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी।
व्याख्या- सिंहली अनुश्रुतियों-दीपवंश तथा महावंश के अनुसार मौर्य अशोक अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र’ में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति आयोजित हुई। इसकी अध्यक्षता ‘मोग्गलिपुत्त तिस्स’ नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी।
व्याख्या- सिंहली अनुश्रुतियों-दीपवंश तथा महावंश के अनुसार मौर्य अशोक अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र’ में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति आयोजित हुई। इसकी अध्यक्षता ‘मोग्गलिपुत्त तिस्स’ नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी।
निम्नलिखित मौर्य शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे
(1) चंद्रगुप्त (3) बिंदुसार
(2) अशोक (4) दशरथ
व्याख्या- अशोक और उसका पौत्र दशरथ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवानामप्रिय्’ की उपाधि धारण करता था।
व्याख्या- अशोक और उसका पौत्र दशरथ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवानामप्रिय्’ की उपाधि धारण करता था।
व्याख्या- अशोक और उसका पौत्र दशरथ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवानामप्रिय्’ की उपाधि धारण करता था।
रज्जुक थे
सार्थवाह किसे कहते थे
निम्न में से किसने सहिष्णुता, उदारता और करुणा के त्रिविध आधार पर राजधर्म की स्थापना की
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपनी प्रजा के विशाल समूह को ध्यान में रखकर ही एक ऐसे व्यावहारिक धम्म’ का प्रतिपादन किया, जिसका पालन आसानी से सब कर सकें। उसका ‘धम्म’ सदाचार का धर्म था, ये एक ऐसे नैतिक नियम थे, जिनका संप्रदाय विशेष से कोई संबंध नहीं था और जो मानवता के कल्याण के लिए घोषित किया गया था। सहिष्णुता, उदारता एवं करुणा उसके त्रिविध आयाम थे।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपनी प्रजा के विशाल समूह को ध्यान में रखकर ही एक ऐसे व्यावहारिक धम्म’ का प्रतिपादन किया, जिसका पालन आसानी से सब कर सकें। उसका ‘धम्म’ सदाचार का धर्म था, ये एक ऐसे नैतिक नियम थे, जिनका संप्रदाय विशेष से कोई संबंध नहीं था और जो मानवता के कल्याण के लिए घोषित किया गया था। सहिष्णुता, उदारता एवं करुणा उसके त्रिविध आयाम थे।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपनी प्रजा के विशाल समूह को ध्यान में रखकर ही एक ऐसे व्यावहारिक धम्म’ का प्रतिपादन किया, जिसका पालन आसानी से सब कर सकें। उसका ‘धम्म’ सदाचार का धर्म था, ये एक ऐसे नैतिक नियम थे, जिनका संप्रदाय विशेष से कोई संबंध नहीं था और जो मानवता के कल्याण के लिए घोषित किया गया था। सहिष्णुता, उदारता एवं करुणा उसके त्रिविध आयाम थे।
निम्न में से कौन-सा क्षेत्र अशोक के साम्राज्य में शामिल नहीं था
व्याख्या- श्रीलंका अशोक के साम्राज्य में शामिल नहीं था। उसके द्वितीय शिलालेख से स्पष्ट होता है कि भारत में अशोक का अधिकार चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त, केरलपुत्त एवं ताम्रपर्णी (श्रीलंका) को छोड़कर सर्वत्र था, क्योंकि इन राज्यों को प्रत्यन्त या सीमावर्ती राज्य कहा गया है।
व्याख्या- श्रीलंका अशोक के साम्राज्य में शामिल नहीं था। उसके द्वितीय शिलालेख से स्पष्ट होता है कि भारत में अशोक का अधिकार चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त, केरलपुत्त एवं ताम्रपर्णी (श्रीलंका) को छोड़कर सर्वत्र था, क्योंकि इन राज्यों को प्रत्यन्त या सीमावर्ती राज्य कहा गया है।
व्याख्या- श्रीलंका अशोक के साम्राज्य में शामिल नहीं था। उसके द्वितीय शिलालेख से स्पष्ट होता है कि भारत में अशोक का अधिकार चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त, केरलपुत्त एवं ताम्रपर्णी (श्रीलंका) को छोड़कर सर्वत्र था, क्योंकि इन राज्यों को प्रत्यन्त या सीमावर्ती राज्य कहा गया है।
“अशोक ने बौद्ध होते हुए भी हिंदू धर्म में आस्था नहीं छोड़ी” इसका प्रमाण है
व्याख्या- 269 ई.पू. के लगभग अशोक मगध के राजसिंहासन पर बैठा था। उसके अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवानामप्रिय’, ‘देवानामप्रियदर्शी’ कहा गया है जिसका अर्थ है-देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। इससे उसकी हिंदू धर्म में आस्था के संकेत मिलते हैं।
व्याख्या- 269 ई.पू. के लगभग अशोक मगध के राजसिंहासन पर बैठा था। उसके अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवानामप्रिय’, ‘देवानामप्रियदर्शी’ कहा गया है जिसका अर्थ है-देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। इससे उसकी हिंदू धर्म में आस्था के संकेत मिलते हैं।
व्याख्या- 269 ई.पू. के लगभग अशोक मगध के राजसिंहासन पर बैठा था। उसके अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवानामप्रिय’, ‘देवानामप्रियदर्शी’ कहा गया है जिसका अर्थ है-देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। इससे उसकी हिंदू धर्म में आस्था के संकेत मिलते हैं।
निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकारी मौर्य प्रशासन का भाग नहीं था
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के लेखों में उसके प्रशासन के कुछ महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। अशोक के तृतीय शिलालेख में तीन पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं जो इस प्रकार हैं
थे।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के लेखों में उसके प्रशासन के कुछ महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। अशोक के तृतीय शिलालेख में तीन पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं जो इस प्रकार हैं
थे।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के लेखों में उसके प्रशासन के कुछ महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। अशोक के तृतीय शिलालेख में तीन पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं जो इस प्रकार हैं
थे।
* सारनाथ स्तंभ का निर्माण किया था
व्याख्या- सारनाथ स्तंभ का निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तंभ के शीर्ष पर सिंह की आकृति बनी है जो शक्ति का प्रतीक है। इस प्रतिकृति को भारत सरकार ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में लिया है।
व्याख्या- सारनाथ स्तंभ का निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तंभ के शीर्ष पर सिंह की आकृति बनी है जो शक्ति का प्रतीक है। इस प्रतिकृति को भारत सरकार ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में लिया है।
व्याख्या- सारनाथ स्तंभ का निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तंभ के शीर्ष पर सिंह की आकृति बनी है जो शक्ति का प्रतीक है। इस प्रतिकृति को भारत सरकार ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में लिया है।
निम्नलिखित में से किसे सर्वश्रेष्ठ स्तूप मानते हैं
व्याख्या- स्थापत्य कला की दृष्टि से सांची के स्तूप को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सांची मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित है। इसका निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तूप का आरंभिक काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व था। जबकि भरहुत का स्तूप म.प्र. के सतना जिले में स्थित है जिसकी तिथि दूसरी शताब्दी ई.पू. के लगभग है। सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी अमरावती का स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है, कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने 1797 में इस स्तूप की खोज की
थी। सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन है, जो बिना | आधार के समतल भूमि पर बनाया गया है।
व्याख्या- स्थापत्य कला की दृष्टि से सांची के स्तूप को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सांची मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित है। इसका निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तूप का आरंभिक काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व था। जबकि भरहुत का स्तूप म.प्र. के सतना जिले में स्थित है जिसकी तिथि दूसरी शताब्दी ई.पू. के लगभग है। सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी अमरावती का स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है, कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने 1797 में इस स्तूप की खोज की
थी। सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन है, जो बिना | आधार के समतल भूमि पर बनाया गया है।
व्याख्या- स्थापत्य कला की दृष्टि से सांची के स्तूप को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सांची मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित है। इसका निर्माण मौर्य शासक अशोक ने कराया था। इस स्तूप का आरंभिक काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व था। जबकि भरहुत का स्तूप म.प्र. के सतना जिले में स्थित है जिसकी तिथि दूसरी शताब्दी ई.पू. के लगभग है। सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी अमरावती का स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है, कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने 1797 में इस स्तूप की खोज की
थी। सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन है, जो बिना | आधार के समतल भूमि पर बनाया गया है।
अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त भाषा है-/
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही पता चलता है। शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है, जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं, ये स्थान हैं-1. शाहबाजगढ़ी 2. मानसेहरा 3. कालसी 4. गिरनार 5. धौली 6. जौगढ़ 7. एर्रागुडी 8. सोपारा । अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही पता चलता है। शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है, जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं, ये स्थान हैं-1. शाहबाजगढ़ी 2. मानसेहरा 3. कालसी 4. गिरनार 5. धौली 6. जौगढ़ 7. एर्रागुडी 8. सोपारा । अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही पता चलता है। शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है, जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं, ये स्थान हैं-1. शाहबाजगढ़ी 2. मानसेहरा 3. कालसी 4. गिरनार 5. धौली 6. जौगढ़ 7. एर्रागुडी 8. सोपारा । अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
निम्नांकित में से कौन-सा अशोक कालीन अभिलेख ‘खरोष्ठी’ लिपि में है
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों-शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंघमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख मिला है।
पत्थर पर प्राचीनतम शिलालेख किस भाषा में थे
व्याख्या- भारत में पाए गए प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख मौर्य शासक अशोक के हैं जो मुख्यतः ब्राह्मी तथा गौणतः खरोष्ठी, आरमेइक एवं यूनानी लिपियों में तथा प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण किए गए हैं।
व्याख्या- भारत में पाए गए प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख मौर्य शासक अशोक के हैं जो मुख्यतः ब्राह्मी तथा गौणतः खरोष्ठी, आरमेइक एवं यूनानी लिपियों में तथा प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण किए गए हैं।
व्याख्या- भारत में पाए गए प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख मौर्य शासक अशोक के हैं जो मुख्यतः ब्राह्मी तथा गौणतः खरोष्ठी, आरमेइक एवं यूनानी लिपियों में तथा प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण किए गए हैं।
ब्राह्मी लिपि का प्रथम उद्ववाचन किस पर उत्कीर्ण अक्षरों से किया गया
व्याख्या- ब्राह्मी लिपि का प्रथम उद्ववाचन पत्थर की पट्टियों (शिलालेखों) पर उत्कीर्ण अक्षरों से किया गया था। इस कार्य को संपादित करने वाला प्रथम विद्वान सर ‘जेम्स प्रिंसेप’ था जिसने मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों
को पढ़ने का श्रेय हासिल किया।
व्याख्या- ब्राह्मी लिपि का प्रथम उद्ववाचन पत्थर की पट्टियों (शिलालेखों) पर उत्कीर्ण अक्षरों से किया गया था। इस कार्य को संपादित करने वाला प्रथम विद्वान सर ‘जेम्स प्रिंसेप’ था जिसने मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों
को पढ़ने का श्रेय हासिल किया।
व्याख्या- ब्राह्मी लिपि का प्रथम उद्ववाचन पत्थर की पट्टियों (शिलालेखों) पर उत्कीर्ण अक्षरों से किया गया था। इस कार्य को संपादित करने वाला प्रथम विद्वान सर ‘जेम्स प्रिंसेप’ था जिसने मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों
को पढ़ने का श्रेय हासिल किया।
सूची-I को सूची-II को सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर चुनिए
सूची-I सूची-II ” (स्थान) — (स्मारक/भग्नावशेष)
★ तीर्थयात्रा के समय सम्राट अशोक निम्नलिखित स्थानों पर गए। उन्होंने किस मार्ग का अनुगमन किया
कूट :
व्याख्या- अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत आखेट तथा विहार यात्राएं रोक दी तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ की। अशोक महात्मा बुद्ध के चरण चिह्नों से पवित्र हुए स्थानों में गया तथा उनकी पूजा की। सबसे पहले उसने बोधगया की यात्रा की थी। अशोक की यात्राओं का क्रम है- गया, कुशीनगर, लुंबिनी, कपिलवस्तु, सारनाथ तथा श्रावस्ती।
व्याख्या- अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत आखेट तथा विहार यात्राएं रोक दी तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ की। अशोक महात्मा बुद्ध के चरण चिह्नों से पवित्र हुए स्थानों में गया तथा उनकी पूजा की। सबसे पहले उसने बोधगया की यात्रा की थी। अशोक की यात्राओं का क्रम है- गया, कुशीनगर, लुंबिनी, कपिलवस्तु, सारनाथ तथा श्रावस्ती।
व्याख्या- अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत आखेट तथा विहार यात्राएं रोक दी तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ की। अशोक महात्मा बुद्ध के चरण चिह्नों से पवित्र हुए स्थानों में गया तथा उनकी पूजा की। सबसे पहले उसने बोधगया की यात्रा की थी। अशोक की यात्राओं का क्रम है- गया, कुशीनगर, लुंबिनी, कपिलवस्तु, सारनाथ तथा श्रावस्ती।
अशोक के शिलालेखों को सर्वप्रथम किसने पढ़ा था
व्याख्या- सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक अंग्रेज विद्वान ने अशोक के लेखों (ब्राह्मी लिपि) का उद्ववाचन किया।
व्याख्या- सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक अंग्रेज विद्वान ने अशोक के लेखों (ब्राह्मी लिपि) का उद्ववाचन किया।
व्याख्या- सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक अंग्रेज विद्वान ने अशोक के लेखों (ब्राह्मी लिपि) का उद्ववाचन किया।
अशोक का रुम्मिनदेई स्तंभ संबंधित है
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष लुंबिनी की यात्रा की तथा वहाँ एक शिलास्तंभ स्थापित किया। महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण अशोक ने लुंबिनी ग्राम का धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू-राजस्व 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष लुंबिनी की यात्रा की तथा वहाँ एक शिलास्तंभ स्थापित किया। महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण अशोक ने लुंबिनी ग्राम का धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू-राजस्व 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष लुंबिनी की यात्रा की तथा वहाँ एक शिलास्तंभ स्थापित किया। महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण अशोक ने लुंबिनी ग्राम का धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू-राजस्व 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया।
गुजर्रा लघु शिलालेख, जिसमें अशोक का नामोल्लेख किया गया है, कहाँ स्थित है
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का नामोल्लेख करने वाला गुजर्रा लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। प्राचीन काल में यह उज्जैन से भड़ौच जाने वाले महत्त्वपूर्ण मार्ग पर पड़ता था।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का नामोल्लेख करने वाला गुजर्रा लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। प्राचीन काल में यह उज्जैन से भड़ौच जाने वाले महत्त्वपूर्ण मार्ग पर पड़ता था।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक का नामोल्लेख करने वाला गुजर्रा लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। प्राचीन काल में यह उज्जैन से भड़ौच जाने वाले महत्त्वपूर्ण मार्ग पर पड़ता था।
निम्न में से केवल वह स्तंभ जिसमें अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है
व्याख्या- भाब्रू शिलालेख (बैराठ, जयपुर) में मौर्य शासक अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है यही अभिलेख मौर्य शासक अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी प्रमाणित करता है।
व्याख्या- भाब्रू शिलालेख (बैराठ, जयपुर) में मौर्य शासक अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है यही अभिलेख मौर्य शासक अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी प्रमाणित करता है।
व्याख्या- भाब्रू शिलालेख (बैराठ, जयपुर) में मौर्य शासक अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है यही अभिलेख मौर्य शासक अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी प्रमाणित करता है।
कलसी किसके लिए प्रसिद्ध है
व्याख्या- कालसी, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यहाँ से मौर्य शासक अशोक का शिलालेख मिला है।
व्याख्या- कालसी, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यहाँ से मौर्य शासक अशोक का शिलालेख मिला है।
व्याख्या- कालसी, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यहाँ से मौर्य शासक अशोक का शिलालेख मिला है।
कलिंग युद्ध की विजय तथा क्षतियों का वर्णन अशोक के किस शिलालेख में किया गया है
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के राज्यकाल की पहली बड़ी घटना कलिंग युद्ध और इसमें अशोक की विजय थी। अशोक के तेरहवें शिलालेख से इस युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं । यह घटना अशोक के शासनकाल के 8वें वर्ष अर्थात 261 ई. पू. में घटित हुई । इस शिलालेख में उसने कलिंग युद्ध से हुई पीड़ा पर अपना दुःख और पश्चाताप व्यक्त किया है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के राज्यकाल की पहली बड़ी घटना कलिंग युद्ध और इसमें अशोक की विजय थी। अशोक के तेरहवें शिलालेख से इस युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं । यह घटना अशोक के शासनकाल के 8वें वर्ष अर्थात 261 ई. पू. में घटित हुई । इस शिलालेख में उसने कलिंग युद्ध से हुई पीड़ा पर अपना दुःख और पश्चाताप व्यक्त किया है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के राज्यकाल की पहली बड़ी घटना कलिंग युद्ध और इसमें अशोक की विजय थी। अशोक के तेरहवें शिलालेख से इस युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं । यह घटना अशोक के शासनकाल के 8वें वर्ष अर्थात 261 ई. पू. में घटित हुई । इस शिलालेख में उसने कलिंग युद्ध से हुई पीड़ा पर अपना दुःख और पश्चाताप व्यक्त किया है।
अशोक के निम्न अभिलेखों में से पूर्णरूपेण धार्मिक सहिष्णुता के प्रति समर्पित कौन-सा अभिलेख है
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दीर्घ शिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु पालनीय उपाय बताए गए हैं।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दीर्घ शिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु पालनीय उपाय बताए गए हैं।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दीर्घ शिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु पालनीय उपाय बताए गए हैं।
अशोक के जो प्रमुख शिलालेख संगम राज्य के विषय में हमें बताते हैं, उनमें शामिल हैं
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दूसरे (II) एवं तेरहवें (XIII) शिलालेख में संगम राज्यों- चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रवर्णी (श्रीलंका) की सूचना मिलती है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दूसरे (II) एवं तेरहवें (XIII) शिलालेख में संगम राज्यों- चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रवर्णी (श्रीलंका) की सूचना मिलती है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के दूसरे (II) एवं तेरहवें (XIII) शिलालेख में संगम राज्यों- चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रवर्णी (श्रीलंका) की सूचना मिलती है।
प्राचीन भारत में निम्नलिखित में से कौन-सी एक लिपि दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी
व्याख्या- प्राचीन भारत में खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इसे पढ़ने का श्रेय मैसन, प्रिंसेप, नोरिस, लैसेन, कनिंघम आदि विद्वानों को दिया जाता है। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिम भारत की लिपि थी।
व्याख्या- प्राचीन भारत में खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इसे पढ़ने का श्रेय मैसन, प्रिंसेप, नोरिस, लैसेन, कनिंघम आदि विद्वानों को दिया जाता है। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिम भारत की लिपि थी।
व्याख्या- प्राचीन भारत में खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इसे पढ़ने का श्रेय मैसन, प्रिंसेप, नोरिस, लैसेन, कनिंघम आदि विद्वानों को दिया जाता है। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिम भारत की लिपि थी।
अशोक का अपने शिलालेखों में सामान्यत: जिस नाम से उल्लेख हुआ है, वह है
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे देवानांपियदसी (देवताओं का प्रिय अथवा देखने में सुंदर-देवनाम् प्रियदर्शी) तथा राजा आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। पुराणों में उसका नाम अशोकवर्द्धन’ | मिलता है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे देवानांपियदसी (देवताओं का प्रिय अथवा देखने में सुंदर-देवनाम् प्रियदर्शी) तथा राजा आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। पुराणों में उसका नाम अशोकवर्द्धन’ | मिलता है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे देवानांपियदसी (देवताओं का प्रिय अथवा देखने में सुंदर-देवनाम् प्रियदर्शी) तथा राजा आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। पुराणों में उसका नाम अशोकवर्द्धन’ | मिलता है।
निम्नलिखित वक्तव्यों में कौन-सा एक वक्तव्य अशोक के प्रस्तर स्तंभों के बारे में गलत है
व्याख्या- अशोक के प्रस्तर स्तंभ स्थापत्य संरचना के भाग नहीं है बल्कि ये पृथक रचनाएं हैं।
व्याख्या- अशोक के प्रस्तर स्तंभ स्थापत्य संरचना के भाग नहीं है बल्कि ये पृथक रचनाएं हैं।
व्याख्या- अशोक के प्रस्तर स्तंभ स्थापत्य संरचना के भाग नहीं है बल्कि ये पृथक रचनाएं हैं।
निम्नलिखित में से किस एक अभिलेख में अशोक के व्यक्तिगत नाम का उल्लेख मिलता है
व्याख्या- मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर एवं उड़ेगोलम के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम भी मिलता है।
व्याख्या- मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर एवं उड़ेगोलम के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम भी मिलता है।
व्याख्या- मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर एवं उड़ेगोलम के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम भी मिलता है।
निम्नलिखित प्राचीन भारतीय अभिलेखों में से कौन सा एक खाद्यान्न को देश में संकटकाल में उपयोग हेतु सुरक्षित रखने के बारे में प्राचीनतम शाही आदेश है।
व्याख्या- गोरखपुर (उत्तर-प्रदेश) से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और बोगरा जिले (बांग्लादेश) से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक कालीन प्राकृत भाषा में हुई और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया। अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्यों के संबंध में इन अभिलेखों के अंतर्गत बताया गया है। इस अकाल की पुष्टि जैन स्रोतों से भी होती है।
व्याख्या- गोरखपुर (उत्तर-प्रदेश) से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और बोगरा जिले (बांग्लादेश) से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक कालीन प्राकृत भाषा में हुई और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया। अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्यों के संबंध में इन अभिलेखों के अंतर्गत बताया गया है। इस अकाल की पुष्टि जैन स्रोतों से भी होती है।
व्याख्या- गोरखपुर (उत्तर-प्रदेश) से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और बोगरा जिले (बांग्लादेश) से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक कालीन प्राकृत भाषा में हुई और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया। अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्यों के संबंध में इन अभिलेखों के अंतर्गत बताया गया है। इस अकाल की पुष्टि जैन स्रोतों से भी होती है।
कथन (A) : अशोक ने कलिंग को मौर्य साम्राज्य में जोड़ लिया था।
कारण (R) : कलिंग दक्षिण भारत को जाने वाले स्थलीय एवं समुद्री मार्गों को नियंत्रित करता था
सही उत्तर का चुनाव, नीचे दिए गए कूट के प्रयोग से करें
कूट
कथन (A) : मौर्यकालीन शासकों ने धार्मिक आधार पर भू-अनुदान नहीं दिया था।
कारण (R) : भू-अनुदान के विरूद्ध कृषकों ने विद्रोह किया।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए
व्याख्या- धार्मिक आधार पर भूमिदान का प्रथम साक्ष्य मौर्योत्तर युगीन राजवंश सातवाहन के समय के एक अभिलेख में मिलता है। मौर्यकालीन शासकों के द्वारा धार्मिक आधार पर कोई भूमि दानस्वरूप नहीं दी गई थी। भूमिदान के विरूद्ध कृषकों के विद्रोह का कोई वर्णन नहीं मिलता होता है।
व्याख्या- धार्मिक आधार पर भूमिदान का प्रथम साक्ष्य मौर्योत्तर युगीन राजवंश सातवाहन के समय के एक अभिलेख में मिलता है। मौर्यकालीन शासकों के द्वारा धार्मिक आधार पर कोई भूमि दानस्वरूप नहीं दी गई थी। भूमिदान के विरूद्ध कृषकों के विद्रोह का कोई वर्णन नहीं मिलता होता है।
व्याख्या- धार्मिक आधार पर भूमिदान का प्रथम साक्ष्य मौर्योत्तर युगीन राजवंश सातवाहन के समय के एक अभिलेख में मिलता है। मौर्यकालीन शासकों के द्वारा धार्मिक आधार पर कोई भूमि दानस्वरूप नहीं दी गई थी। भूमिदान के विरूद्ध कृषकों के विद्रोह का कोई वर्णन नहीं मिलता होता है।
निम्न में से अशोक के किस अभिलेख में पारंपरिक अवसरों पर पशु बलि पर रोक लगाई गई है, ऐसा लगता है कि यह पाबंदी पशुओं के वध पर थी
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि निषेध के संदर्भ में लेख इस प्रकार है-“यहाँ कोई जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई उत्सव किया जाए। पहले ‘प्रियदर्शी’ राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ों जीव माँस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने तक सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं-दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे।” पाँचवें स्तंभ लेख में भी अशोक द्वारा राज्याभिषेक के 26वें वर्ष बाद विभिन्न प्रकार के प्राणियों के वध को वर्जित करने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि निषेध के संदर्भ में लेख इस प्रकार है-“यहाँ कोई जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई उत्सव किया जाए। पहले ‘प्रियदर्शी’ राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ों जीव माँस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने तक सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं-दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे।” पाँचवें स्तंभ लेख में भी अशोक द्वारा राज्याभिषेक के 26वें वर्ष बाद विभिन्न प्रकार के प्राणियों के वध को वर्जित करने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
व्याख्या- मौर्य शासक अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि निषेध के संदर्भ में लेख इस प्रकार है-“यहाँ कोई जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई उत्सव किया जाए। पहले ‘प्रियदर्शी’ राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ों जीव माँस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने तक सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं-दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे।” पाँचवें स्तंभ लेख में भी अशोक द्वारा राज्याभिषेक के 26वें वर्ष बाद विभिन्न प्रकार के प्राणियों के वध को वर्जित करने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
टालेमी फिलाडेल्फस, जिसके साथ अशोक के राजनय संबंध थे, कहाँ का शासक था
व्याख्या- अशोक के तेरहवें शिलालेख से पता चलता है कि मौर्य शासक अशोक के पाँच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे-जिनमें अतियोक (एंटियोकस II थियोस-सीरिया का शासक), तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस-मिस्त्र का राजा), अंतकिनी या एनिकीनी (एंटीगोनस गोनातास-मेसीडोनिया या मकदूनिया का राजा), मृग, मकमास या मेगारस (साइरीन का शासक), अलिक सुंदर या एलिक संट्रो (अलेक्जैण्डर एपाइरस या एपीरस का राजा) शामिल थे।
व्याख्या- अशोक के तेरहवें शिलालेख से पता चलता है कि मौर्य शासक अशोक के पाँच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे-जिनमें अतियोक (एंटियोकस II थियोस-सीरिया का शासक), तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस-मिस्त्र का राजा), अंतकिनी या एनिकीनी (एंटीगोनस गोनातास-मेसीडोनिया या मकदूनिया का राजा), मृग, मकमास या मेगारस (साइरीन का शासक), अलिक सुंदर या एलिक संट्रो (अलेक्जैण्डर एपाइरस या एपीरस का राजा) शामिल थे।
व्याख्या- अशोक के तेरहवें शिलालेख से पता चलता है कि मौर्य शासक अशोक के पाँच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे-जिनमें अतियोक (एंटियोकस II थियोस-सीरिया का शासक), तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस-मिस्त्र का राजा), अंतकिनी या एनिकीनी (एंटीगोनस गोनातास-मेसीडोनिया या मकदूनिया का राजा), मृग, मकमास या मेगारस (साइरीन का शासक), अलिक सुंदर या एलिक संट्रो (अलेक्जैण्डर एपाइरस या एपीरस का राजा) शामिल थे।
प्रसिद्ध यूनानी राजदूत मेगस्थनीज भारत में किसके दरबार में आए थे
व्याख्या- मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर’ द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्यसभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था। भारत में मेगस्थनीज ने जो कुछ भी देखा-सुना, उसे उसने ‘इंडिका’ नामक अपने ग्रंथ में लिपिबद्ध किया।
व्याख्या- मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर’ द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्यसभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था। भारत में मेगस्थनीज ने जो कुछ भी देखा-सुना, उसे उसने ‘इंडिका’ नामक अपने ग्रंथ में लिपिबद्ध किया।
व्याख्या- मेगस्थनीज सेल्यूकस निकेटर’ द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्यसभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था। भारत में मेगस्थनीज ने जो कुछ भी देखा-सुना, उसे उसने ‘इंडिका’ नामक अपने ग्रंथ में लिपिबद्ध किया।