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मुगल-राजपूत सहयोग
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किस राजपूत राजा की मृत्यु बुरहानपुर में हुई?
व्याख्या : •बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की
सेवा की। जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी। जहाँ बुरहानपुर में उसकी मृत्यु हुई।
व्याख्या : •बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की
सेवा की। जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी। जहाँ बुरहानपुर में उसकी मृत्यु हुई।
व्याख्या : •बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की
सेवा की। जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी। जहाँ बुरहानपुर में उसकी मृत्यु हुई।
किस राजपूत शासक को राजपूताना का कर्ण’ कहा जाता है?
व्याख्या : बीकानेर का शासक रायसिंह वीरोचित गुणों का धनी होने के साथ-साथ प्रजावत्सल शासक भी था। उसने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई। ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। इसी आधार पर मुंशी देवीप्रसाद ने उसे ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है। रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
व्याख्या : बीकानेर का शासक रायसिंह वीरोचित गुणों का धनी होने के साथ-साथ प्रजावत्सल शासक भी था। उसने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई। ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। इसी आधार पर मुंशी देवीप्रसाद ने उसे ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है। रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
व्याख्या : बीकानेर का शासक रायसिंह वीरोचित गुणों का धनी होने के साथ-साथ प्रजावत्सल शासक भी था। उसने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई। ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। इसी आधार पर मुंशी देवीप्रसाद ने उसे ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है। रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
निम्नलिखित में से कौन जोधपुर राज्य का शासक नहीं था? ।
व्याख्या : महाराजा अनूपसिंह बीकानेर के शासक थे, जिन्होंने 1669 से 1698 ई. तक बीकानेर राज्य पर शासन किया। दक्षिण में मराठों के विरुद्ध सफलतम कार्यवाहियों के लिए उन्हें औरंगजेब द्वारा ‘माहीमरातिब’ की उपाधि प्रदान की गई। वह साहित्य व कला का संरक्षक भी थे। स्वयं महाराजा अनूपसिंह ने अनूप विवेक’काम प्रबोध”श्राद्ध प्रयोग चिन्तामणि’ जैसे संस्कृत ग्रंथ व गीत गोविन्द की टीका ‘अनूपोदय’ लिखी। तत्कालीन अन्य प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित है –
बीकानेर शैली की चित्रकला का उत्कर्ष भी महाराजा अनूप सिंह के काल में ही हुआ।
व्याख्या : महाराजा अनूपसिंह बीकानेर के शासक थे, जिन्होंने 1669 से 1698 ई. तक बीकानेर राज्य पर शासन किया। दक्षिण में मराठों के विरुद्ध सफलतम कार्यवाहियों के लिए उन्हें औरंगजेब द्वारा ‘माहीमरातिब’ की उपाधि प्रदान की गई। वह साहित्य व कला का संरक्षक भी थे। स्वयं महाराजा अनूपसिंह ने अनूप विवेक’काम प्रबोध”श्राद्ध प्रयोग चिन्तामणि’ जैसे संस्कृत ग्रंथ व गीत गोविन्द की टीका ‘अनूपोदय’ लिखी। तत्कालीन अन्य प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित है –
बीकानेर शैली की चित्रकला का उत्कर्ष भी महाराजा अनूप सिंह के काल में ही हुआ।
व्याख्या : महाराजा अनूपसिंह बीकानेर के शासक थे, जिन्होंने 1669 से 1698 ई. तक बीकानेर राज्य पर शासन किया। दक्षिण में मराठों के विरुद्ध सफलतम कार्यवाहियों के लिए उन्हें औरंगजेब द्वारा ‘माहीमरातिब’ की उपाधि प्रदान की गई। वह साहित्य व कला का संरक्षक भी थे। स्वयं महाराजा अनूपसिंह ने अनूप विवेक’काम प्रबोध”श्राद्ध प्रयोग चिन्तामणि’ जैसे संस्कृत ग्रंथ व गीत गोविन्द की टीका ‘अनूपोदय’ लिखी। तत्कालीन अन्य प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित है –
बीकानेर शैली की चित्रकला का उत्कर्ष भी महाराजा अनूप सिंह के काल में ही हुआ।
राणा प्रताप के जिस सौतेले भाई को अकबर ने जहाजपुर का जा तिले भाई को अकबर ने जहाजपुर की जागीर प्रदान की थी, वह था
व्याख्या :28 फरवरी 1572 ई. में मेवाड के महाराणा उदयसिंह का गोगुन्दा में निधन हो गया, उसने मृत्यु से पूर्व अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रताप के स्थान पर अपनी दसरी रानी के पुत्र जगमाल को अपना युवराज बनाया था। उदयासह की मृत्यु पश्चात् जगमाल की माँ ने अपने विश्वस्त सरदारों से आग्रह कर जगमाल की राजतिलक कर दिया, दूसरी तरफ ग्वालियर के शासक रायसिंह व जालौर के अखैराज सोनगरा नाम महाराणा प्रताप को मेवाड का महाराणा घोषित कर दिया, जिससे प्रताप का सौतेला भाई जगमाल रुप होकर अकबर के पास पहँचा. जिसने उसे पहले जहाजपुर और बाद में आधी की जागीर प्रदान की। सिरोही में 1583 ई. में दत्ताणी के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गयी ।
व्याख्या :28 फरवरी 1572 ई. में मेवाड के महाराणा उदयसिंह का गोगुन्दा में निधन हो गया, उसने मृत्यु से पूर्व अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रताप के स्थान पर अपनी दसरी रानी के पुत्र जगमाल को अपना युवराज बनाया था। उदयासह की मृत्यु पश्चात् जगमाल की माँ ने अपने विश्वस्त सरदारों से आग्रह कर जगमाल की राजतिलक कर दिया, दूसरी तरफ ग्वालियर के शासक रायसिंह व जालौर के अखैराज सोनगरा नाम महाराणा प्रताप को मेवाड का महाराणा घोषित कर दिया, जिससे प्रताप का सौतेला भाई जगमाल रुप होकर अकबर के पास पहँचा. जिसने उसे पहले जहाजपुर और बाद में आधी की जागीर प्रदान की। सिरोही में 1583 ई. में दत्ताणी के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गयी ।
व्याख्या :28 फरवरी 1572 ई. में मेवाड के महाराणा उदयसिंह का गोगुन्दा में निधन हो गया, उसने मृत्यु से पूर्व अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रताप के स्थान पर अपनी दसरी रानी के पुत्र जगमाल को अपना युवराज बनाया था। उदयासह की मृत्यु पश्चात् जगमाल की माँ ने अपने विश्वस्त सरदारों से आग्रह कर जगमाल की राजतिलक कर दिया, दूसरी तरफ ग्वालियर के शासक रायसिंह व जालौर के अखैराज सोनगरा नाम महाराणा प्रताप को मेवाड का महाराणा घोषित कर दिया, जिससे प्रताप का सौतेला भाई जगमाल रुप होकर अकबर के पास पहँचा. जिसने उसे पहले जहाजपुर और बाद में आधी की जागीर प्रदान की। सिरोही में 1583 ई. में दत्ताणी के युद्ध में उसकी मृत्यु हो गयी ।
सूबा जहां राजा मानसिंह- ने मुगल साम्राज्य के सूबेदार के रूप में काम नहीं किया
व्याख्या : आमेर का शासक मानसिंह (1589-1614) 12 वर्ष की उम्र से ही अकबर की सेवा में था। उसने
मुगलो की ओर से कई अभियानों का नेतृत्व किया, जिसमें 1576 का हल्दीघाटी का युद्ध शामिल है। मुगल साम्राज्य की सेवा करते हुए जयपुर के कच्छवाहा शासक मानसिंह-I को मुग़ल सूबेदार के रूप में काबुल की सूबेदारी (1585-1587 ई.) तक
व्याख्या : आमेर का शासक मानसिंह (1589-1614) 12 वर्ष की उम्र से ही अकबर की सेवा में था। उसने
मुगलो की ओर से कई अभियानों का नेतृत्व किया, जिसमें 1576 का हल्दीघाटी का युद्ध शामिल है। मुगल साम्राज्य की सेवा करते हुए जयपुर के कच्छवाहा शासक मानसिंह-I को मुग़ल सूबेदार के रूप में काबुल की सूबेदारी (1585-1587 ई.) तक
व्याख्या : आमेर का शासक मानसिंह (1589-1614) 12 वर्ष की उम्र से ही अकबर की सेवा में था। उसने
मुगलो की ओर से कई अभियानों का नेतृत्व किया, जिसमें 1576 का हल्दीघाटी का युद्ध शामिल है। मुगल साम्राज्य की सेवा करते हुए जयपुर के कच्छवाहा शासक मानसिंह-I को मुग़ल सूबेदार के रूप में काबुल की सूबेदारी (1585-1587 ई.) तक
आमेर के राजा बिहारीमल की पुत्री का विवाह अकबर के साथ कहाँ हुआ?
व्याख्या : आमेर के कच्छवाहा शासक भारमल (बिहारी मल) की पुत्री हरखाबाई का विवाह सांभर में सन् 1562 ई. में अकबर से हुआ था। जो कालांतर में मरियम उज्मानी के नाम से जानी गई। अकबर 1562 में अजमेर शरीफ की यात्रा पर गया था, लौटते समय यह विवाह संपन्न हुआ।
व्याख्या : आमेर के कच्छवाहा शासक भारमल (बिहारी मल) की पुत्री हरखाबाई का विवाह सांभर में सन् 1562 ई. में अकबर से हुआ था। जो कालांतर में मरियम उज्मानी के नाम से जानी गई। अकबर 1562 में अजमेर शरीफ की यात्रा पर गया था, लौटते समय यह विवाह संपन्न हुआ।
व्याख्या : आमेर के कच्छवाहा शासक भारमल (बिहारी मल) की पुत्री हरखाबाई का विवाह सांभर में सन् 1562 ई. में अकबर से हुआ था। जो कालांतर में मरियम उज्मानी के नाम से जानी गई। अकबर 1562 में अजमेर शरीफ की यात्रा पर गया था, लौटते समय यह विवाह संपन्न हुआ।
“मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे”ये कथन है
व्याख्या : प्रथम बीकानेर तत्पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजवंश ने मुग़ल बादशाहों को निरंतर सैन्य सहयोग दिया था। “मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे” यह कथन राठौट शासकों के मुगल शासकों को दिये गये सैन्य सहयोग के संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड का है।
व्याख्या : प्रथम बीकानेर तत्पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजवंश ने मुग़ल बादशाहों को निरंतर सैन्य सहयोग दिया था। “मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे” यह कथन राठौट शासकों के मुगल शासकों को दिये गये सैन्य सहयोग के संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड का है।
व्याख्या : प्रथम बीकानेर तत्पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजवंश ने मुग़ल बादशाहों को निरंतर सैन्य सहयोग दिया था। “मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे” यह कथन राठौट शासकों के मुगल शासकों को दिये गये सैन्य सहयोग के संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड का है।
निम्न में से कौन से शासक ने अकबर से वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए?
व्याख्या : राव सुरजन/सुर्जन हाडा को गेवार के महाराणा उदयसिंह की ओर से रणथम्भोर दुर्ग मा दुर्गपति (किलना) नियुक्त किया गया था, तथा यह हादी का शाराक सी था।जब अकबर ने रणथम्भोर पर आक्रमण कर दुर्ग को विजित कर लिया, तब राजा भारमल की सहायता से अकबर ने सुरजन हाडा से संधि कर उसे मुग़ल सेवा में ले लिया , परंतु संधि की शतों में उसे वैवाहिक संबंधों के लिए मजबूर नही किया गया।
व्याख्या : राव सुरजन/सुर्जन हाडा को गेवार के महाराणा उदयसिंह की ओर से रणथम्भोर दुर्ग मा दुर्गपति (किलना) नियुक्त किया गया था, तथा यह हादी का शाराक सी था।जब अकबर ने रणथम्भोर पर आक्रमण कर दुर्ग को विजित कर लिया, तब राजा भारमल की सहायता से अकबर ने सुरजन हाडा से संधि कर उसे मुग़ल सेवा में ले लिया , परंतु संधि की शतों में उसे वैवाहिक संबंधों के लिए मजबूर नही किया गया।
व्याख्या : राव सुरजन/सुर्जन हाडा को गेवार के महाराणा उदयसिंह की ओर से रणथम्भोर दुर्ग मा दुर्गपति (किलना) नियुक्त किया गया था, तथा यह हादी का शाराक सी था।जब अकबर ने रणथम्भोर पर आक्रमण कर दुर्ग को विजित कर लिया, तब राजा भारमल की सहायता से अकबर ने सुरजन हाडा से संधि कर उसे मुग़ल सेवा में ले लिया , परंतु संधि की शतों में उसे वैवाहिक संबंधों के लिए मजबूर नही किया गया।
निम्न में से आमेर के किस शासक ने सर्वप्रथम मुगलों के साथ संधि की थी?
व्याख्या : आमेर के शासक राजा भारमल ने 20 जनवरी, 1562 ई. को मुगल बादशाह अकबर से सांगानेर में चकताइखाँ की सहायता से भेंट कर मुग़ल अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर इस समय अजमेर शरीफ की तीर्थयात्रा पर जा रहा था।
व्याख्या : आमेर के शासक राजा भारमल ने 20 जनवरी, 1562 ई. को मुगल बादशाह अकबर से सांगानेर में चकताइखाँ की सहायता से भेंट कर मुग़ल अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर इस समय अजमेर शरीफ की तीर्थयात्रा पर जा रहा था।
व्याख्या : आमेर के शासक राजा भारमल ने 20 जनवरी, 1562 ई. को मुगल बादशाह अकबर से सांगानेर में चकताइखाँ की सहायता से भेंट कर मुग़ल अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर इस समय अजमेर शरीफ की तीर्थयात्रा पर जा रहा था।
किस सन् में अकबर ने मानसिंह को 7000 जात व 6000 सवार का मनसब प्रदान किया ?
व्याख्या : • मनसब मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के पदानुक्रम में किसी अमीर की स्थिति को दर्शाता है। मनसब का अर्थ है पद या श्रेणी।
व्याख्या : • मनसब मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के पदानुक्रम में किसी अमीर की स्थिति को दर्शाता है। मनसब का अर्थ है पद या श्रेणी।
व्याख्या : • मनसब मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था के पदानुक्रम में किसी अमीर की स्थिति को दर्शाता है। मनसब का अर्थ है पद या श्रेणी।
बीकानेर के महाराजा रायसिंह गद्दी पर कब बैठे ?
व्याख्या : बीकानेर के रायसिंह को अकबर ने जोधपुर के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए 1572 में जोधपुर में नियुक्ति की। परंतु रायसिंह प्रथम बार बीकानेर शासक के रूप में गद्दी पर 1574 में बैठे व उनक शासनकाल 1574 से 1612 ई. तक रहा।
व्याख्या : बीकानेर के रायसिंह को अकबर ने जोधपुर के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए 1572 में जोधपुर में नियुक्ति की। परंतु रायसिंह प्रथम बार बीकानेर शासक के रूप में गद्दी पर 1574 में बैठे व उनक शासनकाल 1574 से 1612 ई. तक रहा।
व्याख्या : बीकानेर के रायसिंह को अकबर ने जोधपुर के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए 1572 में जोधपुर में नियुक्ति की। परंतु रायसिंह प्रथम बार बीकानेर शासक के रूप में गद्दी पर 1574 में बैठे व उनक शासनकाल 1574 से 1612 ई. तक रहा।
1572-73 ई. में अकबर ने जोधपुर किसको सुपुर्द किया?
व्याख्या : राव चन्द्रसेन के विरुद्ध जोधपुर राज्य पर अधिकार रखने का उत्तरदायित्व बादशाह अकबर द्वारा बीकानेर के शासक रायसिंह को 1572 ई. में दिया गया। इसका उल्लेख फ़ारसी तवारीखों से प्राप्त हो पाप्त होता है।
व्याख्या : राव चन्द्रसेन के विरुद्ध जोधपुर राज्य पर अधिकार रखने का उत्तरदायित्व बादशाह अकबर द्वारा बीकानेर के शासक रायसिंह को 1572 ई. में दिया गया। इसका उल्लेख फ़ारसी तवारीखों से प्राप्त हो पाप्त होता है।
व्याख्या : राव चन्द्रसेन के विरुद्ध जोधपुर राज्य पर अधिकार रखने का उत्तरदायित्व बादशाह अकबर द्वारा बीकानेर के शासक रायसिंह को 1572 ई. में दिया गया। इसका उल्लेख फ़ारसी तवारीखों से प्राप्त हो पाप्त होता है।
कतिपय राजपूत शासकों की सूची नीचे दी जा रही है
A) राणा सांगा
(B) चन्द्रसेन
(C) मानसिंह
(D) रायसिंह
इनमें से किन्हीं दो का चयन करें जिन्होंने मुगलों को सहयोग किया
व्याख्या : मानसिंह कच्छवाहा- बारह वर्ष की आयु से ही मुग़ल सेवा में (1562 ई.) थे और मृत्युपर्यन्त लगा
55 वर्ष (1614 ई.) तक मुगल सेवा में रहे। इस दौरान उन्हें काबुल, बिहार तथा बंगाल की सबेटा सौंपी गई व मनसबदारी में सात हजार का मनसब प्रदान किया गया था।
व्याख्या : मानसिंह कच्छवाहा- बारह वर्ष की आयु से ही मुग़ल सेवा में (1562 ई.) थे और मृत्युपर्यन्त लगा
55 वर्ष (1614 ई.) तक मुगल सेवा में रहे। इस दौरान उन्हें काबुल, बिहार तथा बंगाल की सबेटा सौंपी गई व मनसबदारी में सात हजार का मनसब प्रदान किया गया था।
व्याख्या : मानसिंह कच्छवाहा- बारह वर्ष की आयु से ही मुग़ल सेवा में (1562 ई.) थे और मृत्युपर्यन्त लगा
55 वर्ष (1614 ई.) तक मुगल सेवा में रहे। इस दौरान उन्हें काबुल, बिहार तथा बंगाल की सबेटा सौंपी गई व मनसबदारी में सात हजार का मनसब प्रदान किया गया था।
मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध करने वाला प्रथम राजपूत राजपरिवार कौनसा था?
व्याख्या : 20 जनवरी 1562 ई. को बादशाह अकबर की अजमेर की तीर्थयात्रा के समय ढूँढाड़ मार्ग में सांगानेर में भारमल ने अकबर से मुलाकात कर मुग़ल अधीनता स्वीकार की।
व्याख्या : 20 जनवरी 1562 ई. को बादशाह अकबर की अजमेर की तीर्थयात्रा के समय ढूँढाड़ मार्ग में सांगानेर में भारमल ने अकबर से मुलाकात कर मुग़ल अधीनता स्वीकार की।
व्याख्या : 20 जनवरी 1562 ई. को बादशाह अकबर की अजमेर की तीर्थयात्रा के समय ढूँढाड़ मार्ग में सांगानेर में भारमल ने अकबर से मुलाकात कर मुग़ल अधीनता स्वीकार की।
जयपुर का कौनसा शासक तीन मुगल बादशाह : जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की सेवा में रहा?
व्याख्या : मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.) तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब का
सेवा में रहा। जहाँगीर ने जयसिंह-I (मिर्जा राजा जयसिंह) को दक्षिण में अहमदनगर पर नियंत्रण के लिए नियुक्त किया। शाहजहाँ ने उसे दक्षिण में शाहजी (शिवाजी के पिता) के विरुद्ध तथा बाद में कंधार (अफगानिस्तान) के विद्रोह के दमन हेतु कंधार में नियुक्त किया। उत्तराधिकार युद्ध में भी शाहजहाँ की शाही सेना का नेतृत्व करते हुए जयसिंह-I ने शुजा को परास्त किया। बाद में जयसिंह-I औरंगजेब के समर्थन में आ गया तथा देवराय के युद्ध (मार्च 1659) में दारा के विरुद्ध औरंगजेब की सेना में अग्रगामी भूमिका निभाई। औरंगजेब के शासनकाल में जयसिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि थी पुरदर की संधि (1665)। इस संधि के माध्यम से जयसिंह-I ने शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होने के लिए तैयार किया। हालांकि औरंगजेब इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाया और जयसिंह का यह प्रयत्न निष्फल गया। जयसिंह विद्यानुरागी भी था। हिंदी के विख्यात रीतिकालीन कवि बिहारी उसके आश्रित थे।
व्याख्या : मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.) तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब का
सेवा में रहा। जहाँगीर ने जयसिंह-I (मिर्जा राजा जयसिंह) को दक्षिण में अहमदनगर पर नियंत्रण के लिए नियुक्त किया। शाहजहाँ ने उसे दक्षिण में शाहजी (शिवाजी के पिता) के विरुद्ध तथा बाद में कंधार (अफगानिस्तान) के विद्रोह के दमन हेतु कंधार में नियुक्त किया। उत्तराधिकार युद्ध में भी शाहजहाँ की शाही सेना का नेतृत्व करते हुए जयसिंह-I ने शुजा को परास्त किया। बाद में जयसिंह-I औरंगजेब के समर्थन में आ गया तथा देवराय के युद्ध (मार्च 1659) में दारा के विरुद्ध औरंगजेब की सेना में अग्रगामी भूमिका निभाई। औरंगजेब के शासनकाल में जयसिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि थी पुरदर की संधि (1665)। इस संधि के माध्यम से जयसिंह-I ने शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होने के लिए तैयार किया। हालांकि औरंगजेब इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाया और जयसिंह का यह प्रयत्न निष्फल गया। जयसिंह विद्यानुरागी भी था। हिंदी के विख्यात रीतिकालीन कवि बिहारी उसके आश्रित थे।
व्याख्या : मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.) तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब का
सेवा में रहा। जहाँगीर ने जयसिंह-I (मिर्जा राजा जयसिंह) को दक्षिण में अहमदनगर पर नियंत्रण के लिए नियुक्त किया। शाहजहाँ ने उसे दक्षिण में शाहजी (शिवाजी के पिता) के विरुद्ध तथा बाद में कंधार (अफगानिस्तान) के विद्रोह के दमन हेतु कंधार में नियुक्त किया। उत्तराधिकार युद्ध में भी शाहजहाँ की शाही सेना का नेतृत्व करते हुए जयसिंह-I ने शुजा को परास्त किया। बाद में जयसिंह-I औरंगजेब के समर्थन में आ गया तथा देवराय के युद्ध (मार्च 1659) में दारा के विरुद्ध औरंगजेब की सेना में अग्रगामी भूमिका निभाई। औरंगजेब के शासनकाल में जयसिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि थी पुरदर की संधि (1665)। इस संधि के माध्यम से जयसिंह-I ने शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होने के लिए तैयार किया। हालांकि औरंगजेब इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाया और जयसिंह का यह प्रयत्न निष्फल गया। जयसिंह विद्यानुरागी भी था। हिंदी के विख्यात रीतिकालीन कवि बिहारी उसके आश्रित थे।
कोटा राज्य का संस्थापक शासक कौन था?
व्याख्या : मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के समय 1631 ई. में बूंदी नरेश राव रत्नसिंह के पुत्र माधोसिंह को कोटा का पृथक राज्य देकर उसे बूंदी से स्वतंत्र कर दिया गया। तभी से कोटा एक स्वतंत्र राज्य बन गया।
व्याख्या : मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के समय 1631 ई. में बूंदी नरेश राव रत्नसिंह के पुत्र माधोसिंह को कोटा का पृथक राज्य देकर उसे बूंदी से स्वतंत्र कर दिया गया। तभी से कोटा एक स्वतंत्र राज्य बन गया।
व्याख्या : मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के समय 1631 ई. में बूंदी नरेश राव रत्नसिंह के पुत्र माधोसिंह को कोटा का पृथक राज्य देकर उसे बूंदी से स्वतंत्र कर दिया गया। तभी से कोटा एक स्वतंत्र राज्य बन गया।
राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर का राज्य पुनः दिलाने में किसका योगदान सर्वाधिक रहा है?
व्याख्या : राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी। तदुपरान्त औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ। दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया। इस प्रकार वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ किंतु कुछ समय बाद महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया। वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
व्याख्या : राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी। तदुपरान्त औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ। दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया। इस प्रकार वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ किंतु कुछ समय बाद महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया। वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
व्याख्या : राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी। तदुपरान्त औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ। दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया। इस प्रकार वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ किंतु कुछ समय बाद महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया। वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
राणा साँगा और बाबर के बीच ऐतिहासिक युद्ध कहाँ लड़ा गया? .
व्याख्या : खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
व्याख्या : खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
व्याख्या : खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
निम्नांकित में से कौन सा राज्य था जिसने कभी भी मगलों के विरुद्ध मेवाड़ के महाराणा प्रताप से संधि की?
व्याख्या : 1576 ई. में राणा प्रताप ने मग़लों के विरुद्ध एक ढीला सा गठजोड़ बनाने का प्रयास किया था। इडर के नारायण दास को विद्रोह करने के लिए उकसाया। प्रताप ने सिरोही के राव सुरतान एंव जालौर के ताज खान को भी विद्रोह के लिए तैयार किया। डूंगरपुर के आसकरण ने भी कई बार प्रताप दिया।
व्याख्या : 1576 ई. में राणा प्रताप ने मग़लों के विरुद्ध एक ढीला सा गठजोड़ बनाने का प्रयास किया था। इडर के नारायण दास को विद्रोह करने के लिए उकसाया। प्रताप ने सिरोही के राव सुरतान एंव जालौर के ताज खान को भी विद्रोह के लिए तैयार किया। डूंगरपुर के आसकरण ने भी कई बार प्रताप दिया।
व्याख्या : 1576 ई. में राणा प्रताप ने मग़लों के विरुद्ध एक ढीला सा गठजोड़ बनाने का प्रयास किया था। इडर के नारायण दास को विद्रोह करने के लिए उकसाया। प्रताप ने सिरोही के राव सुरतान एंव जालौर के ताज खान को भी विद्रोह के लिए तैयार किया। डूंगरपुर के आसकरण ने भी कई बार प्रताप दिया।
अक्टूबर, 1567 में अकबर द्वारा चित्तौड़ दुर्ग के घेराव के समय मेवाड़ का राणा था
व्याख्या : अक्टूबर 1567 ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ दुर्ग के घेराव के समय मेवाड़ का राणा उदयसिंह वह अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ का घेरा डालने से पूर्व ही अपने मंत्रियों की सलाह पर चित्तौडगढ कर किले की रक्षा का भार जयमल मेड़तिया व फत्ता सिसोदिया को सौंप स्वयं ने नवस्थापित कर उदयपुर व गिरवा के आसपास की बस्तियों की रक्षा की जिम्मेदारी ली। अकबर ने 23 अक्रन को चित्तौड़ पहुँचकर दुर्ग पर घेरा डाल दिया व अंत में 25 फरवरी 1568 को अकबर का चिनी किले पर अधिकार हो गया और इससे पूर्व चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तृतीय शाका/साका’ संपन्न हो
व्याख्या : अक्टूबर 1567 ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ दुर्ग के घेराव के समय मेवाड़ का राणा उदयसिंह वह अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ का घेरा डालने से पूर्व ही अपने मंत्रियों की सलाह पर चित्तौडगढ कर किले की रक्षा का भार जयमल मेड़तिया व फत्ता सिसोदिया को सौंप स्वयं ने नवस्थापित कर उदयपुर व गिरवा के आसपास की बस्तियों की रक्षा की जिम्मेदारी ली। अकबर ने 23 अक्रन को चित्तौड़ पहुँचकर दुर्ग पर घेरा डाल दिया व अंत में 25 फरवरी 1568 को अकबर का चिनी किले पर अधिकार हो गया और इससे पूर्व चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तृतीय शाका/साका’ संपन्न हो
व्याख्या : अक्टूबर 1567 ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ दुर्ग के घेराव के समय मेवाड़ का राणा उदयसिंह वह अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ का घेरा डालने से पूर्व ही अपने मंत्रियों की सलाह पर चित्तौडगढ कर किले की रक्षा का भार जयमल मेड़तिया व फत्ता सिसोदिया को सौंप स्वयं ने नवस्थापित कर उदयपुर व गिरवा के आसपास की बस्तियों की रक्षा की जिम्मेदारी ली। अकबर ने 23 अक्रन को चित्तौड़ पहुँचकर दुर्ग पर घेरा डाल दिया व अंत में 25 फरवरी 1568 को अकबर का चिनी किले पर अधिकार हो गया और इससे पूर्व चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तृतीय शाका/साका’ संपन्न हो
दुर्गादास राठौड़ ने अपने जीवन के अंतिम दिन कहाँ गुजारे थे?
व्याख्या : जोधपुर नरेश अजीतसिंह से मतभेद होने पर दुर्गादास मारवाड़ छोड़कर उदयपुर महाराणा अमरसिंह-गा की सेवा में चले गये। महाराणा ने उन्हें विजयपुर की जागीर देकर अपने पास रख लिया। इसके पश्चात उसने दुर्गादास को रामपुरा का हाकिम नियुक्त किया। जहाँ रहते हुए 22 नवम्बर 1718 में उज्जैन में दुर्गादास की मृत्यु हो गई व उसका अंतिम संस्कार क्षिप्रा नदी के तट पर किया गया।
व्याख्या : जोधपुर नरेश अजीतसिंह से मतभेद होने पर दुर्गादास मारवाड़ छोड़कर उदयपुर महाराणा अमरसिंह-गा की सेवा में चले गये। महाराणा ने उन्हें विजयपुर की जागीर देकर अपने पास रख लिया। इसके पश्चात उसने दुर्गादास को रामपुरा का हाकिम नियुक्त किया। जहाँ रहते हुए 22 नवम्बर 1718 में उज्जैन में दुर्गादास की मृत्यु हो गई व उसका अंतिम संस्कार क्षिप्रा नदी के तट पर किया गया।
व्याख्या : जोधपुर नरेश अजीतसिंह से मतभेद होने पर दुर्गादास मारवाड़ छोड़कर उदयपुर महाराणा अमरसिंह-गा की सेवा में चले गये। महाराणा ने उन्हें विजयपुर की जागीर देकर अपने पास रख लिया। इसके पश्चात उसने दुर्गादास को रामपुरा का हाकिम नियुक्त किया। जहाँ रहते हुए 22 नवम्बर 1718 में उज्जैन में दुर्गादास की मृत्यु हो गई व उसका अंतिम संस्कार क्षिप्रा नदी के तट पर किया गया।
मेवाड़ एवं मारवाड़ की संयुक्त सेनाएँ मुग़लों के द्वारा कहाँ पराजित की गई थी?
व्याख्या : मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की चेतावनी के बावजूद मारवाड़ के भावी शासक तथा जसवंसिंह के नवजात पुत्र अजीत सिंह को मेवाड़ क्षेत्र में संरक्षण दिया। अजीत सिंह को दुर्गादास के नेतृत्व में (जुलाई 1579 में) मुगल कैद से निकालकर लाया गया था। इससे क्रुद्ध औरंगजेब ने मेवाड़प आक्रमण किया एवं देबारी में मेवाड़-मारवाड़ की सेनाएं पराजित हुई।
व्याख्या : मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की चेतावनी के बावजूद मारवाड़ के भावी शासक तथा जसवंसिंह के नवजात पुत्र अजीत सिंह को मेवाड़ क्षेत्र में संरक्षण दिया। अजीत सिंह को दुर्गादास के नेतृत्व में (जुलाई 1579 में) मुगल कैद से निकालकर लाया गया था। इससे क्रुद्ध औरंगजेब ने मेवाड़प आक्रमण किया एवं देबारी में मेवाड़-मारवाड़ की सेनाएं पराजित हुई।
व्याख्या : मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की चेतावनी के बावजूद मारवाड़ के भावी शासक तथा जसवंसिंह के नवजात पुत्र अजीत सिंह को मेवाड़ क्षेत्र में संरक्षण दिया। अजीत सिंह को दुर्गादास के नेतृत्व में (जुलाई 1579 में) मुगल कैद से निकालकर लाया गया था। इससे क्रुद्ध औरंगजेब ने मेवाड़प आक्रमण किया एवं देबारी में मेवाड़-मारवाड़ की सेनाएं पराजित हुई।
, निम्न में से किसने अपने आप को हिन्दुस्तान का बादशाह’ नाडोल में जनवरी, 1681 ई. में घोषित किया था ?
व्याख्या : महाराणा राजासह व दुर्गादास राठौड़ द्वारा शहजादा अकबर-II को सम्राट बनाये जाने के आश्वासन पर मुगल शहजादे अकबर-II ने 1 जनवरी, 1681 को नाडोल में स्वयं को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया।
व्याख्या : महाराणा राजासह व दुर्गादास राठौड़ द्वारा शहजादा अकबर-II को सम्राट बनाये जाने के आश्वासन पर मुगल शहजादे अकबर-II ने 1 जनवरी, 1681 को नाडोल में स्वयं को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया।
व्याख्या : महाराणा राजासह व दुर्गादास राठौड़ द्वारा शहजादा अकबर-II को सम्राट बनाये जाने के आश्वासन पर मुगल शहजादे अकबर-II ने 1 जनवरी, 1681 को नाडोल में स्वयं को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया।
कर्नल जेम्स टॉड ने निम्न में से किस युद्ध को मेवाड़ के इतिहास का मेराथॉन’ कहा है ?
व्याख्या : दिवेर का युद्ध महाराणा प्रताप व मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ के मध्य 1582 ई. में दिवेर (कुभलगढ़) नामक
स्थान पर हुआ, इस युद्ध में कुँवर अमरसिंह के हाथों मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ मारा गया, जिससे भयभात हा शेष मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। इस युद्ध ने महाराणा प्रताप की ख्याति को बढ़ाया। इस युद्ध के पश्चात् प्रताप ने मुग़ल सेना से मेवाड़ को मुग़लों से अधिकांशतः मुक्त करा लिया। मेराथॉन का युद्ध-फ़ारस व एथेंस की सेना के मध्य हआ था जिसमें एथेंस की कमज़ोर सेना ने फ़ारस की मजबूत सेना को मेराथॉन के युद्ध में पराजित किया था। इस युद्ध का एथेंस के लिए विशेष महत्व था, क्योंकि यहीं से एथेंस के एक साम्राज्य के रूप में उदित होने का श्रीगणेश हुआ था। इसी प्रकार दिवर के युद्ध ने महाराणा प्रताप की प्रतिष्ठा में वृद्धि की साथ ही मेवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाने व अपन वैभव को पुनः प्राप्त करने में वही योगदान रहा जो एथेंस के लिए मेराथॉन के युद्ध का था; इसीलिए इस युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड द्वारा मेवाड़ का मेराथॉन की संज्ञा दी है।
व्याख्या : दिवेर का युद्ध महाराणा प्रताप व मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ के मध्य 1582 ई. में दिवेर (कुभलगढ़) नामक
स्थान पर हुआ, इस युद्ध में कुँवर अमरसिंह के हाथों मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ मारा गया, जिससे भयभात हा शेष मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। इस युद्ध ने महाराणा प्रताप की ख्याति को बढ़ाया। इस युद्ध के पश्चात् प्रताप ने मुग़ल सेना से मेवाड़ को मुग़लों से अधिकांशतः मुक्त करा लिया। मेराथॉन का युद्ध-फ़ारस व एथेंस की सेना के मध्य हआ था जिसमें एथेंस की कमज़ोर सेना ने फ़ारस की मजबूत सेना को मेराथॉन के युद्ध में पराजित किया था। इस युद्ध का एथेंस के लिए विशेष महत्व था, क्योंकि यहीं से एथेंस के एक साम्राज्य के रूप में उदित होने का श्रीगणेश हुआ था। इसी प्रकार दिवर के युद्ध ने महाराणा प्रताप की प्रतिष्ठा में वृद्धि की साथ ही मेवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाने व अपन वैभव को पुनः प्राप्त करने में वही योगदान रहा जो एथेंस के लिए मेराथॉन के युद्ध का था; इसीलिए इस युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड द्वारा मेवाड़ का मेराथॉन की संज्ञा दी है।
व्याख्या : दिवेर का युद्ध महाराणा प्रताप व मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ के मध्य 1582 ई. में दिवेर (कुभलगढ़) नामक
स्थान पर हुआ, इस युद्ध में कुँवर अमरसिंह के हाथों मुग़ल सेनापति सुल्तान खाँ मारा गया, जिससे भयभात हा शेष मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। इस युद्ध ने महाराणा प्रताप की ख्याति को बढ़ाया। इस युद्ध के पश्चात् प्रताप ने मुग़ल सेना से मेवाड़ को मुग़लों से अधिकांशतः मुक्त करा लिया। मेराथॉन का युद्ध-फ़ारस व एथेंस की सेना के मध्य हआ था जिसमें एथेंस की कमज़ोर सेना ने फ़ारस की मजबूत सेना को मेराथॉन के युद्ध में पराजित किया था। इस युद्ध का एथेंस के लिए विशेष महत्व था, क्योंकि यहीं से एथेंस के एक साम्राज्य के रूप में उदित होने का श्रीगणेश हुआ था। इसी प्रकार दिवर के युद्ध ने महाराणा प्रताप की प्रतिष्ठा में वृद्धि की साथ ही मेवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाने व अपन वैभव को पुनः प्राप्त करने में वही योगदान रहा जो एथेंस के लिए मेराथॉन के युद्ध का था; इसीलिए इस युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड द्वारा मेवाड़ का मेराथॉन की संज्ञा दी है।
महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को कौन से युद्ध में पराजित किया?
व्याख्या : महाराणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत की निर्बलता देखते हुए उसके अधीनस्थ एवं मेवाड़ के निकटवर्ती
भागों को अपने राज्य में मिलना प्रारंभ कर दिया, इस पर दिल्ली सुल्तान इब्राहीम लोदी ने 1517 ई. में एक बड़ी सेना के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी, परंतु खातोली (पीपल्दा तहसील, कोटा) के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को पराजित कर दिया।
व्याख्या : महाराणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत की निर्बलता देखते हुए उसके अधीनस्थ एवं मेवाड़ के निकटवर्ती
भागों को अपने राज्य में मिलना प्रारंभ कर दिया, इस पर दिल्ली सुल्तान इब्राहीम लोदी ने 1517 ई. में एक बड़ी सेना के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी, परंतु खातोली (पीपल्दा तहसील, कोटा) के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को पराजित कर दिया।
व्याख्या : महाराणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत की निर्बलता देखते हुए उसके अधीनस्थ एवं मेवाड़ के निकटवर्ती
भागों को अपने राज्य में मिलना प्रारंभ कर दिया, इस पर दिल्ली सुल्तान इब्राहीम लोदी ने 1517 ई. में एक बड़ी सेना के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी, परंतु खातोली (पीपल्दा तहसील, कोटा) के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को पराजित कर दिया।
प्रताप ने 1585 में अपनी नई राजधानी कहाँ स्थापित की?
व्याख्या : सन् 1585 के बाद अकबर ने मेवाड़ पर कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान महाराणा ने चावण्ड को अपनी नवीन राजधानी के रुप में स्थापित कर लिया। यहाँ उसने अनेक महल एवं चामुण्डा मंदिर का निर्माण करवाया।
व्याख्या : सन् 1585 के बाद अकबर ने मेवाड़ पर कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान महाराणा ने चावण्ड को अपनी नवीन राजधानी के रुप में स्थापित कर लिया। यहाँ उसने अनेक महल एवं चामुण्डा मंदिर का निर्माण करवाया।
व्याख्या : सन् 1585 के बाद अकबर ने मेवाड़ पर कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान महाराणा ने चावण्ड को अपनी नवीन राजधानी के रुप में स्थापित कर लिया। यहाँ उसने अनेक महल एवं चामुण्डा मंदिर का निर्माण करवाया।
खानवा के युद्ध में किन निम्नलिखित राजपूत/मुस्लिम योद्धाओं ने बाबर के विरुद्ध महाराणा सांगा के पार
भाग लिया था? …
(i) महमूद लोदी
(ii) रावल उदय सिंह
(iii) हसन खां मेवाती
(iv) गोकुलदास परमार
व्याख्या : खानवा का युद्ध राणा सांगा एवं मुग़ल सम्राट बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 ई. को बयाना (वर्तमान रुपवास) में हुआ था, जिसमें महाराणा सांगा की पराजय हुई। इस युद्ध में सांगा की ओर से अफ़गान सुल्तान महमूद लोदी, मेव शासक हसन खाँ मेवाती, बिजौलिया के गोकुलदास परमार, मारवाड़ से राव गांगा का पुत्र मालदेव, बीकानेर से राव जैतसी का पुत्र कुं. कल्याणमल, आंबेर का शासक पृथ्वीराज, ईडर का भारमल, मेड़ता का रायमल राठौड़, रायसीन का सलहदी तंवर, बागड़ का उदयसिंह का खान-जादा, सिरोही का अखैराज, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, चंदेरी का मेदनीराय, वीरसिंह देव, सलूम्बर का राव रत्नसिंह, वीरमदेव मेड़तिया, बूंदी से नरबद हाड़ा, बड़ी सादड़ी के झाला अज्जा आदि ने भाग लिया।
व्याख्या : खानवा का युद्ध राणा सांगा एवं मुग़ल सम्राट बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 ई. को बयाना (वर्तमान रुपवास) में हुआ था, जिसमें महाराणा सांगा की पराजय हुई। इस युद्ध में सांगा की ओर से अफ़गान सुल्तान महमूद लोदी, मेव शासक हसन खाँ मेवाती, बिजौलिया के गोकुलदास परमार, मारवाड़ से राव गांगा का पुत्र मालदेव, बीकानेर से राव जैतसी का पुत्र कुं. कल्याणमल, आंबेर का शासक पृथ्वीराज, ईडर का भारमल, मेड़ता का रायमल राठौड़, रायसीन का सलहदी तंवर, बागड़ का उदयसिंह का खान-जादा, सिरोही का अखैराज, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, चंदेरी का मेदनीराय, वीरसिंह देव, सलूम्बर का राव रत्नसिंह, वीरमदेव मेड़तिया, बूंदी से नरबद हाड़ा, बड़ी सादड़ी के झाला अज्जा आदि ने भाग लिया।
व्याख्या : खानवा का युद्ध राणा सांगा एवं मुग़ल सम्राट बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 ई. को बयाना (वर्तमान रुपवास) में हुआ था, जिसमें महाराणा सांगा की पराजय हुई। इस युद्ध में सांगा की ओर से अफ़गान सुल्तान महमूद लोदी, मेव शासक हसन खाँ मेवाती, बिजौलिया के गोकुलदास परमार, मारवाड़ से राव गांगा का पुत्र मालदेव, बीकानेर से राव जैतसी का पुत्र कुं. कल्याणमल, आंबेर का शासक पृथ्वीराज, ईडर का भारमल, मेड़ता का रायमल राठौड़, रायसीन का सलहदी तंवर, बागड़ का उदयसिंह का खान-जादा, सिरोही का अखैराज, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, चंदेरी का मेदनीराय, वीरसिंह देव, सलूम्बर का राव रत्नसिंह, वीरमदेव मेड़तिया, बूंदी से नरबद हाड़ा, बड़ी सादड़ी के झाला अज्जा आदि ने भाग लिया।
निम्नलिखित किस राजपूत शासक द्वारा औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया गया था?
व्याख्या : 1679 में जाजिया कर लगाने के कारण औरंगजेब-राजसिंह संबंध खराब हुए। तत्पश्चात् जब राजसिंह ने मारवाड़ के नवजात शासक अजीतसिंह को संरक्षण दिया तो औरंगजेब ने इसे विद्रोह के रूप में लिया।
व्याख्या : 1679 में जाजिया कर लगाने के कारण औरंगजेब-राजसिंह संबंध खराब हुए। तत्पश्चात् जब राजसिंह ने मारवाड़ के नवजात शासक अजीतसिंह को संरक्षण दिया तो औरंगजेब ने इसे विद्रोह के रूप में लिया।
व्याख्या : 1679 में जाजिया कर लगाने के कारण औरंगजेब-राजसिंह संबंध खराब हुए। तत्पश्चात् जब राजसिंह ने मारवाड़ के नवजात शासक अजीतसिंह को संरक्षण दिया तो औरंगजेब ने इसे विद्रोह के रूप में लिया।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की भील सेना का कमाण्डर था
व्याख्या : राणा पूँजा, अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे। 1576 ई. में मेवाड़ पर मुग़लों के संकट के समय उन्होंने महाराणा प्रताप को सैन्य सहायता प्रदान की। हल्दीघाटी के युद्ध (18 जून 1576 इ. में राणा पूंजा ने महाराणा प्रताप के सैन्य दल के हरावल (अग्रिम पंक्ति) में मोर्चा संभाला। हल्दा युद्ध के पश्चात् भी कई वर्षों तक मुग़लों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का योगदा अविस्मरणीय रहा। भीलों के मेवाड़ राज्य के प्रति अविस्मरणीय योगदान के फलस्वरूप मेवाड़ राज राजचिन्ह में एक ओर राजपत तथा दसरी ओर भील की आकृति को प्रतीक के रूप में अपनाया साथ ही सूक्ति – “जो दृढ़ राखै धर्म, तिहि राखै करतार” अंकित है।
व्याख्या : राणा पूँजा, अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे। 1576 ई. में मेवाड़ पर मुग़लों के संकट के समय उन्होंने महाराणा प्रताप को सैन्य सहायता प्रदान की। हल्दीघाटी के युद्ध (18 जून 1576 इ. में राणा पूंजा ने महाराणा प्रताप के सैन्य दल के हरावल (अग्रिम पंक्ति) में मोर्चा संभाला। हल्दा युद्ध के पश्चात् भी कई वर्षों तक मुग़लों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का योगदा अविस्मरणीय रहा। भीलों के मेवाड़ राज्य के प्रति अविस्मरणीय योगदान के फलस्वरूप मेवाड़ राज राजचिन्ह में एक ओर राजपत तथा दसरी ओर भील की आकृति को प्रतीक के रूप में अपनाया साथ ही सूक्ति – “जो दृढ़ राखै धर्म, तिहि राखै करतार” अंकित है।
व्याख्या : राणा पूँजा, अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे। 1576 ई. में मेवाड़ पर मुग़लों के संकट के समय उन्होंने महाराणा प्रताप को सैन्य सहायता प्रदान की। हल्दीघाटी के युद्ध (18 जून 1576 इ. में राणा पूंजा ने महाराणा प्रताप के सैन्य दल के हरावल (अग्रिम पंक्ति) में मोर्चा संभाला। हल्दा युद्ध के पश्चात् भी कई वर्षों तक मुग़लों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का योगदा अविस्मरणीय रहा। भीलों के मेवाड़ राज्य के प्रति अविस्मरणीय योगदान के फलस्वरूप मेवाड़ राज राजचिन्ह में एक ओर राजपत तथा दसरी ओर भील की आकृति को प्रतीक के रूप में अपनाया साथ ही सूक्ति – “जो दृढ़ राखै धर्म, तिहि राखै करतार” अंकित है।
किसे महाराणा प्रताप का पथ-प्रदर्शक कहा जाता है?
व्याख्या : मारवाड़ (जोधपुर) के राव चन्द्रसेन ने अपनी रणनीति में दर्ग के स्थान पर जंगल व पहाड़ों के मध्य यद्धों व छापामार युद्ध प्रणाली को महत्व दिया। इस प्रणाली का कालांतर में अनुसरण महाराणा “. द्वारा भी किया गया। इसीलिए राव चन्द्रसेन को महाराणा प्रताप का पथप्रदर्शक कहा जाता है, साथ राव चन्द्रसेन को मारवाड़ का प्रताप’ या ‘प्रताप का अग्रगामी’ ‘मारवाड़ का भूला बिसरा नायक भी कहा जाता है।
व्याख्या : मारवाड़ (जोधपुर) के राव चन्द्रसेन ने अपनी रणनीति में दर्ग के स्थान पर जंगल व पहाड़ों के मध्य यद्धों व छापामार युद्ध प्रणाली को महत्व दिया। इस प्रणाली का कालांतर में अनुसरण महाराणा “. द्वारा भी किया गया। इसीलिए राव चन्द्रसेन को महाराणा प्रताप का पथप्रदर्शक कहा जाता है, साथ राव चन्द्रसेन को मारवाड़ का प्रताप’ या ‘प्रताप का अग्रगामी’ ‘मारवाड़ का भूला बिसरा नायक भी कहा जाता है।
व्याख्या : मारवाड़ (जोधपुर) के राव चन्द्रसेन ने अपनी रणनीति में दर्ग के स्थान पर जंगल व पहाड़ों के मध्य यद्धों व छापामार युद्ध प्रणाली को महत्व दिया। इस प्रणाली का कालांतर में अनुसरण महाराणा “. द्वारा भी किया गया। इसीलिए राव चन्द्रसेन को महाराणा प्रताप का पथप्रदर्शक कहा जाता है, साथ राव चन्द्रसेन को मारवाड़ का प्रताप’ या ‘प्रताप का अग्रगामी’ ‘मारवाड़ का भूला बिसरा नायक भी कहा जाता है।
महाराणा प्रताप के समय अकबर ने शाहबाज खाँ को कितनी बार मेवाड़ पर आक्रमण के लिए भजा।
व्याख्या : हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् अकबर द्वारा मुग़ल किलों की प्रताप के आक्रमणों से सुरक्षा हेतु शाहबाज खाँ के नेतृत्व में एक सेना 1577 ई. में भेजी गई, जिसने 1578 में कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया वलय संघर्ष के बाद कुम्भलगढ़ दुर्ग पर कब्जा कर लिया। .
व्याख्या : हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् अकबर द्वारा मुग़ल किलों की प्रताप के आक्रमणों से सुरक्षा हेतु शाहबाज खाँ के नेतृत्व में एक सेना 1577 ई. में भेजी गई, जिसने 1578 में कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया वलय संघर्ष के बाद कुम्भलगढ़ दुर्ग पर कब्जा कर लिया। .
व्याख्या : हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् अकबर द्वारा मुग़ल किलों की प्रताप के आक्रमणों से सुरक्षा हेतु शाहबाज खाँ के नेतृत्व में एक सेना 1577 ई. में भेजी गई, जिसने 1578 में कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया वलय संघर्ष के बाद कुम्भलगढ़ दुर्ग पर कब्जा कर लिया। .
निम्नलिखित में से किस स्थान पर महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था?
व्याख्या : 28 फरवरी 1572 ई. को 32 वर्ष की आयु में गोगुन्दा (महादेव बावड़ी) में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया गया था।
व्याख्या : 28 फरवरी 1572 ई. को 32 वर्ष की आयु में गोगुन्दा (महादेव बावड़ी) में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया गया था।
व्याख्या : 28 फरवरी 1572 ई. को 32 वर्ष की आयु में गोगुन्दा (महादेव बावड़ी) में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया गया था।
मारवाड़ के किस राजा ने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की?
व्याख्या : राव चंद्रसेन जोधपुर के राव मालदेव (1531-62) के पुत्र थे। इन्हें मारवाड का भला बिसरा नायक कहा जाता है । छापामार युद्ध के कारण राव चद्रसेन को महाराणा प्रताप का पथ पटक
भी माना जाता है।
व्याख्या : राव चंद्रसेन जोधपुर के राव मालदेव (1531-62) के पुत्र थे। इन्हें मारवाड का भला बिसरा नायक कहा जाता है । छापामार युद्ध के कारण राव चद्रसेन को महाराणा प्रताप का पथ पटक
भी माना जाता है।
व्याख्या : राव चंद्रसेन जोधपुर के राव मालदेव (1531-62) के पुत्र थे। इन्हें मारवाड का भला बिसरा नायक कहा जाता है । छापामार युद्ध के कारण राव चद्रसेन को महाराणा प्रताप का पथ पटक
भी माना जाता है।
वीर दुर्गादास राठौड के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
व्याख्या : 1678 ई. में मारवाड़ के शासक व अजीतसिंह के पिता जसी जोधपर राज्य को खालसा घोषित कर दिया। अजीतसिंह के पैदा होने के बाद उसे उत्तराधिकारी बनाने में दिल्ली ले आया। औरंगजेब के चंगुल से वीर दुर्गादास ने चतुराई से अजीतसिंह को मुक्त करवाया तथा 1707 तक जोधपुर की गद्दी पर बैठने तक अपने संरक्षण में रखा। राजसिंह से मित्रता स्थापित कर सिसोदिया (राजसिंह) – राठौड़ (अजीतसिंह) संघ में योगदान दिया।
व्याख्या : 1678 ई. में मारवाड़ के शासक व अजीतसिंह के पिता जसी जोधपर राज्य को खालसा घोषित कर दिया। अजीतसिंह के पैदा होने के बाद उसे उत्तराधिकारी बनाने में दिल्ली ले आया। औरंगजेब के चंगुल से वीर दुर्गादास ने चतुराई से अजीतसिंह को मुक्त करवाया तथा 1707 तक जोधपुर की गद्दी पर बैठने तक अपने संरक्षण में रखा। राजसिंह से मित्रता स्थापित कर सिसोदिया (राजसिंह) – राठौड़ (अजीतसिंह) संघ में योगदान दिया।
व्याख्या : 1678 ई. में मारवाड़ के शासक व अजीतसिंह के पिता जसी जोधपर राज्य को खालसा घोषित कर दिया। अजीतसिंह के पैदा होने के बाद उसे उत्तराधिकारी बनाने में दिल्ली ले आया। औरंगजेब के चंगुल से वीर दुर्गादास ने चतुराई से अजीतसिंह को मुक्त करवाया तथा 1707 तक जोधपुर की गद्दी पर बैठने तक अपने संरक्षण में रखा। राजसिंह से मित्रता स्थापित कर सिसोदिया (राजसिंह) – राठौड़ (अजीतसिंह) संघ में योगदान दिया।
बादशाह ने मेवाड के राणा को आपस के समझौते से अधीन किया था, न कि बल से।”ये कथन कहा है
व्याख्या : “बादशाह ने मेवाड़ के राणा को आपस के समझौते से अधीन किया था, न कि बल से।” ये कथन सर टॉमस रो का था जो स्वयं मुगल-मेवाड़ संधि (1615) के समय अजमेर में मौजूद था। इस संधि वार्ता के लिए मुगलों की ओर से शीराजी व सुंदरदास व महाराणा अमरसिंह-I की ओर से हरिदास झाला व शुभकर्ण सम्मिलित हुए थे।
व्याख्या : “बादशाह ने मेवाड़ के राणा को आपस के समझौते से अधीन किया था, न कि बल से।” ये कथन सर टॉमस रो का था जो स्वयं मुगल-मेवाड़ संधि (1615) के समय अजमेर में मौजूद था। इस संधि वार्ता के लिए मुगलों की ओर से शीराजी व सुंदरदास व महाराणा अमरसिंह-I की ओर से हरिदास झाला व शुभकर्ण सम्मिलित हुए थे।
व्याख्या : “बादशाह ने मेवाड़ के राणा को आपस के समझौते से अधीन किया था, न कि बल से।” ये कथन सर टॉमस रो का था जो स्वयं मुगल-मेवाड़ संधि (1615) के समय अजमेर में मौजूद था। इस संधि वार्ता के लिए मुगलों की ओर से शीराजी व सुंदरदास व महाराणा अमरसिंह-I की ओर से हरिदास झाला व शुभकर्ण सम्मिलित हुए थे।
निम्नलिखित में से कौन मराठा आक्रमण के विरुद्ध हुए हुरड़ा सम्मेलन में सम्मिलित थे?
(A) महाराणा जगत सिंह II
(B) सवाई जयसिंह
(C) महाराणा जसवंत सिंह II
(D) महाराजा अभय सिंह
व्याख्या : 17 जुलाई 1734 ई. को जयपुर के शासक सवाई जयसिंह-।। के द्वारा मराठों के राजस्थान में बढ़त
हस्तक्षेप व उनके भावी आक्रमणों का प्रतिकार करने हेतु हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूताना के शासका का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें बीकानेर के जोरावरसिंह, मेवाड़ के जगत सिंह, जयपुर के सवाई जयसिंह-II, कोटा के दुर्जनशाल, बूंदी के दलेलसिंह, किशनगढ़ के राजसिंह, करौला के गोपालसिंह, जोधपुर के अभयसिंह, नागौर के बख्तसिंह आदि शासक उपस्थित थे।
यह सम्मेलन राजपूत शासकों के आपसी तालमेल के अभाव व अविश्वास के कारण असफल हो गया।
.जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह-II का शासन काल 1873-1895 ई. का है, जो इस सम्मेलन के समय
नहीं थे।
व्याख्या : 17 जुलाई 1734 ई. को जयपुर के शासक सवाई जयसिंह-।। के द्वारा मराठों के राजस्थान में बढ़त
हस्तक्षेप व उनके भावी आक्रमणों का प्रतिकार करने हेतु हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूताना के शासका का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें बीकानेर के जोरावरसिंह, मेवाड़ के जगत सिंह, जयपुर के सवाई जयसिंह-II, कोटा के दुर्जनशाल, बूंदी के दलेलसिंह, किशनगढ़ के राजसिंह, करौला के गोपालसिंह, जोधपुर के अभयसिंह, नागौर के बख्तसिंह आदि शासक उपस्थित थे।
यह सम्मेलन राजपूत शासकों के आपसी तालमेल के अभाव व अविश्वास के कारण असफल हो गया।
.जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह-II का शासन काल 1873-1895 ई. का है, जो इस सम्मेलन के समय
नहीं थे।
व्याख्या : 17 जुलाई 1734 ई. को जयपुर के शासक सवाई जयसिंह-।। के द्वारा मराठों के राजस्थान में बढ़त
हस्तक्षेप व उनके भावी आक्रमणों का प्रतिकार करने हेतु हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूताना के शासका का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें बीकानेर के जोरावरसिंह, मेवाड़ के जगत सिंह, जयपुर के सवाई जयसिंह-II, कोटा के दुर्जनशाल, बूंदी के दलेलसिंह, किशनगढ़ के राजसिंह, करौला के गोपालसिंह, जोधपुर के अभयसिंह, नागौर के बख्तसिंह आदि शासक उपस्थित थे।
यह सम्मेलन राजपूत शासकों के आपसी तालमेल के अभाव व अविश्वास के कारण असफल हो गया।
.जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह-II का शासन काल 1873-1895 ई. का है, जो इस सम्मेलन के समय
नहीं थे।