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प्रागैतिहासिक राजस्थान
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निम्नांकित में से कौन-सा कथन सही है ?
व्याख्या : .**गणेश्वर (नीम का थाना, सीकर)- गणेश्वर एक उत्खनित स्थल है; जिसका उत्खनन प्रथम बार
1977 में रत्नचंद अग्रवाल ने किया एवं कालांतर में विस्तृत उत्खनन 1978-79 में विजय कुमार द्वारा किया गया।
**बैराठ-बैराठ ग्राम्य संस्कृति का केन्द्र नहीं था। महाजनपद काल में यह मत्स्य जनपद की राजधानी रहा, मौर्यकाल में भी यह एक प्रशासनिक केन्द्र था। यहाँ से अशोक के अभिलेख, बौद्ध स्तूप, मठों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
**कालीबंगा-हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख केन्द्र था, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता एक ताम्र-कांस्य सभ्यता थी, अतः कालीबंगा भी ताम्र-कांस्य सभ्यता के अंतर्गत मानी जाती है। कालीबंगा से लोहे की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।
**आहड़ -आहड़ का दूसरा नाम ‘ताम्रवती’ नगरी भी है। आहड़ से प्राप्त अधिकांश उपकरणों में प्रयुक्त धातु ताँब थी। तांबे की खानों के निकट होने से यहाँ इस धातु के उपकरण लकड़ी काटने छीलने, शिकार आदि के लिए विशेष रूप से काम में लिए जाते थे।
व्याख्या : .**गणेश्वर (नीम का थाना, सीकर)- गणेश्वर एक उत्खनित स्थल है; जिसका उत्खनन प्रथम बार
1977 में रत्नचंद अग्रवाल ने किया एवं कालांतर में विस्तृत उत्खनन 1978-79 में विजय कुमार द्वारा किया गया।
**बैराठ-बैराठ ग्राम्य संस्कृति का केन्द्र नहीं था। महाजनपद काल में यह मत्स्य जनपद की राजधानी रहा, मौर्यकाल में भी यह एक प्रशासनिक केन्द्र था। यहाँ से अशोक के अभिलेख, बौद्ध स्तूप, मठों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
**कालीबंगा-हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख केन्द्र था, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता एक ताम्र-कांस्य सभ्यता थी, अतः कालीबंगा भी ताम्र-कांस्य सभ्यता के अंतर्गत मानी जाती है। कालीबंगा से लोहे की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।
**आहड़ -आहड़ का दूसरा नाम ‘ताम्रवती’ नगरी भी है। आहड़ से प्राप्त अधिकांश उपकरणों में प्रयुक्त धातु ताँब थी। तांबे की खानों के निकट होने से यहाँ इस धातु के उपकरण लकड़ी काटने छीलने, शिकार आदि के लिए विशेष रूप से काम में लिए जाते थे।
व्याख्या : .**गणेश्वर (नीम का थाना, सीकर)- गणेश्वर एक उत्खनित स्थल है; जिसका उत्खनन प्रथम बार
1977 में रत्नचंद अग्रवाल ने किया एवं कालांतर में विस्तृत उत्खनन 1978-79 में विजय कुमार द्वारा किया गया।
**बैराठ-बैराठ ग्राम्य संस्कृति का केन्द्र नहीं था। महाजनपद काल में यह मत्स्य जनपद की राजधानी रहा, मौर्यकाल में भी यह एक प्रशासनिक केन्द्र था। यहाँ से अशोक के अभिलेख, बौद्ध स्तूप, मठों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
**कालीबंगा-हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख केन्द्र था, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता एक ताम्र-कांस्य सभ्यता थी, अतः कालीबंगा भी ताम्र-कांस्य सभ्यता के अंतर्गत मानी जाती है। कालीबंगा से लोहे की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।
**आहड़ -आहड़ का दूसरा नाम ‘ताम्रवती’ नगरी भी है। आहड़ से प्राप्त अधिकांश उपकरणों में प्रयुक्त धातु ताँब थी। तांबे की खानों के निकट होने से यहाँ इस धातु के उपकरण लकड़ी काटने छीलने, शिकार आदि के लिए विशेष रूप से काम में लिए जाते थे।
किस ताम्रपाषाणिक स्थल पर सबसे ज्यादा ताम्र सामग्री प्राप्त हुई है ?
व्याख्या : गणेश्वर- – वर्तमान में नीम का थाना (सीकर) में 2800 ई.पू. में पल्लवित ताम्र-पाषाणिक स्थल है, दसका उदगम कांतली नदी के किनारे हुआ था। इस स्थल की खुदाई का कार्य 1977 ई. में रत्नचंद्र अग्रवाल व 1978-79 में विजयकुमार द्वारा करवाया गया। यहाँ की खुदाई में प्राप्त ताँबे के उपकरण जैसे बाणान, मछली पकड़ने के काँटे, चूड़ियाँ, छैनियाँ प्रमुख हैं, जो लगभग एक हजार की संख्या में कैं। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में 99% ताँबा है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण सम्पूर्ण भारत में एक स्थान पर सर्वाधिक ताम्र उपकरणों की प्राप्ति वाला प्रथम स्थल है। गणेश्वर भौगोलिक दृष्टि से भारत के उस क्षेत्र में है जहाँ आज भी ताँबे की सबसे बड़ी खानें है। खेतडी व दरीबा गणेश्वर के निकट ही है। इस सभ्यता के तीन काल निर्धारित किये गये हैं –
व्याख्या : गणेश्वर- – वर्तमान में नीम का थाना (सीकर) में 2800 ई.पू. में पल्लवित ताम्र-पाषाणिक स्थल है, दसका उदगम कांतली नदी के किनारे हुआ था। इस स्थल की खुदाई का कार्य 1977 ई. में रत्नचंद्र अग्रवाल व 1978-79 में विजयकुमार द्वारा करवाया गया। यहाँ की खुदाई में प्राप्त ताँबे के उपकरण जैसे बाणान, मछली पकड़ने के काँटे, चूड़ियाँ, छैनियाँ प्रमुख हैं, जो लगभग एक हजार की संख्या में कैं। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में 99% ताँबा है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण सम्पूर्ण भारत में एक स्थान पर सर्वाधिक ताम्र उपकरणों की प्राप्ति वाला प्रथम स्थल है। गणेश्वर भौगोलिक दृष्टि से भारत के उस क्षेत्र में है जहाँ आज भी ताँबे की सबसे बड़ी खानें है। खेतडी व दरीबा गणेश्वर के निकट ही है। इस सभ्यता के तीन काल निर्धारित किये गये हैं –
व्याख्या : गणेश्वर- – वर्तमान में नीम का थाना (सीकर) में 2800 ई.पू. में पल्लवित ताम्र-पाषाणिक स्थल है, दसका उदगम कांतली नदी के किनारे हुआ था। इस स्थल की खुदाई का कार्य 1977 ई. में रत्नचंद्र अग्रवाल व 1978-79 में विजयकुमार द्वारा करवाया गया। यहाँ की खुदाई में प्राप्त ताँबे के उपकरण जैसे बाणान, मछली पकड़ने के काँटे, चूड़ियाँ, छैनियाँ प्रमुख हैं, जो लगभग एक हजार की संख्या में कैं। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में 99% ताँबा है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण सम्पूर्ण भारत में एक स्थान पर सर्वाधिक ताम्र उपकरणों की प्राप्ति वाला प्रथम स्थल है। गणेश्वर भौगोलिक दृष्टि से भारत के उस क्षेत्र में है जहाँ आज भी ताँबे की सबसे बड़ी खानें है। खेतडी व दरीबा गणेश्वर के निकट ही है। इस सभ्यता के तीन काल निर्धारित किये गये हैं –
आहड़ संस्कृति के अवशेष कहाँ से मिले हैं? ।
व्याख्या : आहड़ उदयपुर नगर के पूर्व में बहने वाली आयड़/बेड़च नदी के तट पर स्थित है।
नाम दिया गया। आहड़ संस्कृति के अन्य केन्द्र चित्तौड़गढ एवं भीलवाड़ा जिले में भी मिले हैं।
व्याख्या : आहड़ उदयपुर नगर के पूर्व में बहने वाली आयड़/बेड़च नदी के तट पर स्थित है।
नाम दिया गया। आहड़ संस्कृति के अन्य केन्द्र चित्तौड़गढ एवं भीलवाड़ा जिले में भी मिले हैं।
व्याख्या : आहड़ उदयपुर नगर के पूर्व में बहने वाली आयड़/बेड़च नदी के तट पर स्थित है।
नाम दिया गया। आहड़ संस्कृति के अन्य केन्द्र चित्तौड़गढ एवं भीलवाड़ा जिले में भी मिले हैं।
आहड़ संस्कृति का नवीनतम उत्खनित स्थल है
व्याख्या : आहड़ संस्कृति का नवीनतम उत्खनित स्थल ओझियाना है, जो भीलवाड़ा जिले में स्थित है। यह स्थल
सन् 2000 में बी.आर. मीणा एवं आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में उत्खनित किया गया।
व्याख्या : आहड़ संस्कृति का नवीनतम उत्खनित स्थल ओझियाना है, जो भीलवाड़ा जिले में स्थित है। यह स्थल
सन् 2000 में बी.आर. मीणा एवं आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में उत्खनित किया गया।
व्याख्या : आहड़ संस्कृति का नवीनतम उत्खनित स्थल ओझियाना है, जो भीलवाड़ा जिले में स्थित है। यह स्थल
सन् 2000 में बी.आर. मीणा एवं आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में उत्खनित किया गया।
कौन सी फसल का उत्पादन आहड़ में नहीं होता था?
व्याख्या : आहड़ स्थल (उदयपुर) से गेहूँ के प्रमाण प्राप्त
नहीं हुए हैं। (उत्खनन रिपोर्ट – वी.एन. मिश्र)
आहड़ से संबंधित अन्य तथ्य अधोलिखित हैं
व्याख्या : आहड़ स्थल (उदयपुर) से गेहूँ के प्रमाण प्राप्त
नहीं हुए हैं। (उत्खनन रिपोर्ट – वी.एन. मिश्र)
आहड़ से संबंधित अन्य तथ्य अधोलिखित हैं
व्याख्या : आहड़ स्थल (उदयपुर) से गेहूँ के प्रमाण प्राप्त
नहीं हुए हैं। (उत्खनन रिपोर्ट – वी.एन. मिश्र)
आहड़ से संबंधित अन्य तथ्य अधोलिखित हैं
राजस्थान के किस प्राचीन क्षेत्र से शैल चित्रकला के प्रमाण मिले हैं ?
व्याख्या : उपर्युक्त में से बैराठ की भीमजी की डूंगरी से पुरातात्त्विक डॉ. मुरारीलाल शर्मा ने 70 के लगभग शैल
चित्रकला युक्त शैलाश्रय खोजे हैं। राजस्थान में सर्वाधिक शैल चित्र कोटा क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।
व्याख्या : उपर्युक्त में से बैराठ की भीमजी की डूंगरी से पुरातात्त्विक डॉ. मुरारीलाल शर्मा ने 70 के लगभग शैल
चित्रकला युक्त शैलाश्रय खोजे हैं। राजस्थान में सर्वाधिक शैल चित्र कोटा क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।
व्याख्या : उपर्युक्त में से बैराठ की भीमजी की डूंगरी से पुरातात्त्विक डॉ. मुरारीलाल शर्मा ने 70 के लगभग शैल
चित्रकला युक्त शैलाश्रय खोजे हैं। राजस्थान में सर्वाधिक शैल चित्र कोटा क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।
निम्नलिखित में से किस सैन्धव स्थल से जुते हुए खेत का प्रमाण मिला है ?
व्याख्या : कालीबंगा से पूर्व हड़प्पा काल में खेती की उन्नत तकनीक के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से उत्खनन में
प्राप्त खेत में आड़ी तिरछी जुताई की गई है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहाँ के लोग एक ही खेत में एक साथ दो फसलें उगाना जानते थे।
व्याख्या : कालीबंगा से पूर्व हड़प्पा काल में खेती की उन्नत तकनीक के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से उत्खनन में
प्राप्त खेत में आड़ी तिरछी जुताई की गई है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहाँ के लोग एक ही खेत में एक साथ दो फसलें उगाना जानते थे।
व्याख्या : कालीबंगा से पूर्व हड़प्पा काल में खेती की उन्नत तकनीक के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से उत्खनन में
प्राप्त खेत में आड़ी तिरछी जुताई की गई है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहाँ के लोग एक ही खेत में एक साथ दो फसलें उगाना जानते थे।
दोहरी रक्षा-प्राचीर के साक्ष्य राजस्थान की किस सभ्यता से प्राप्त हुए हैं ?
व्याख्या : हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की भाँति कालीबंगा में दुर्ग रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। साथ ही यहाँ का
निचला नगर भी रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। इस प्रकार की दोहरी रक्षा प्राचीर का उदाहरण किसी भी हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त नहीं होता है।
व्याख्या : हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की भाँति कालीबंगा में दुर्ग रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। साथ ही यहाँ का
निचला नगर भी रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। इस प्रकार की दोहरी रक्षा प्राचीर का उदाहरण किसी भी हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त नहीं होता है।
व्याख्या : हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की भाँति कालीबंगा में दुर्ग रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। साथ ही यहाँ का
निचला नगर भी रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था। इस प्रकार की दोहरी रक्षा प्राचीर का उदाहरण किसी भी हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त नहीं होता है।
. सात अग्नि वेदिकाओं की पंक्ति प्राप्त हुई है
व्याख्या : कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अवस्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक स्थल है।
कालीबंगा शब्द का अर्थ है काले रंग की चूड़ियाँ (काली+बंगा/बंगड़ (चूड़ियाँ) । यहाँ बड़ी मात्रा में मृण चूड़ियाँ (टेराकोटा चूड़ियाँ) प्राप्त हुई थी। यह एक प्राक् एवं विकसित हड़प्पा स्थल है अर्थात् हड़प्पा सभ्यता (2350 ई.पू.- 1750 ई.पू.) से पूर्व भी यहाँ बस्तियाँ थी।
1952 ई. में आजादी के पश्चात् प्रथम बार भारत के इस उत्खनित स्थल का उत्खनन ‘अमलानंद घोष’ के निर्देशन में हुआ।
व्याख्या : कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अवस्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक स्थल है।
कालीबंगा शब्द का अर्थ है काले रंग की चूड़ियाँ (काली+बंगा/बंगड़ (चूड़ियाँ) । यहाँ बड़ी मात्रा में मृण चूड़ियाँ (टेराकोटा चूड़ियाँ) प्राप्त हुई थी। यह एक प्राक् एवं विकसित हड़प्पा स्थल है अर्थात् हड़प्पा सभ्यता (2350 ई.पू.- 1750 ई.पू.) से पूर्व भी यहाँ बस्तियाँ थी।
1952 ई. में आजादी के पश्चात् प्रथम बार भारत के इस उत्खनित स्थल का उत्खनन ‘अमलानंद घोष’ के निर्देशन में हुआ।
व्याख्या : कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अवस्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक स्थल है।
कालीबंगा शब्द का अर्थ है काले रंग की चूड़ियाँ (काली+बंगा/बंगड़ (चूड़ियाँ) । यहाँ बड़ी मात्रा में मृण चूड़ियाँ (टेराकोटा चूड़ियाँ) प्राप्त हुई थी। यह एक प्राक् एवं विकसित हड़प्पा स्थल है अर्थात् हड़प्पा सभ्यता (2350 ई.पू.- 1750 ई.पू.) से पूर्व भी यहाँ बस्तियाँ थी।
1952 ई. में आजादी के पश्चात् प्रथम बार भारत के इस उत्खनित स्थल का उत्खनन ‘अमलानंद घोष’ के निर्देशन में हुआ।
राजस्थान में आलनियाँ के प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज किसने की?
व्याख्या : कोटा में आलनियाँ नदी के किनारे प्राप्त प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज डॉ. जगतनारायण श्रीवास्तव दा
की गई।
व्याख्या : कोटा में आलनियाँ नदी के किनारे प्राप्त प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज डॉ. जगतनारायण श्रीवास्तव दा
की गई।
व्याख्या : कोटा में आलनियाँ नदी के किनारे प्राप्त प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज डॉ. जगतनारायण श्रीवास्तव दा
की गई।
दो मुंहका चूल्हा व बहुत प्रकार के बर्तनों के साथ सिलबट्टा व पैन निम्नलिखित में से किस स्थान से खुदाई में मिले थे।
व्याख्या : दो मुँह का चूल्हा व बहुत प्रकार के बर्तन के साथ-साथ सिलबट्टा व पैन आहड़ सभ्यता से प्राप्त हुए है।
व्याख्या : दो मुँह का चूल्हा व बहुत प्रकार के बर्तन के साथ-साथ सिलबट्टा व पैन आहड़ सभ्यता से प्राप्त हुए है।
व्याख्या : दो मुँह का चूल्हा व बहुत प्रकार के बर्तन के साथ-साथ सिलबट्टा व पैन आहड़ सभ्यता से प्राप्त हुए है।
किस पुरा-स्थल पर चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं ?
व्याख्या : सन् 1990 में बैराठ की गणेश, बीजक व भीम डूंगरी से प्राचीन शैल चित्रों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
इसीलिए बैराठ को ‘प्राचीन युग की चित्रशाला’ भी कहा गया है।
व्याख्या : सन् 1990 में बैराठ की गणेश, बीजक व भीम डूंगरी से प्राचीन शैल चित्रों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
इसीलिए बैराठ को ‘प्राचीन युग की चित्रशाला’ भी कहा गया है।
व्याख्या : सन् 1990 में बैराठ की गणेश, बीजक व भीम डूंगरी से प्राचीन शैल चित्रों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
इसीलिए बैराठ को ‘प्राचीन युग की चित्रशाला’ भी कहा गया है।
कालीबंगा का प्रथम उत्खननकर्ता कौन था?
( व्याख्या : कालीबंगा- सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल है। यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है।
1951 में पुरातत्त्वविद् श्री अमलानंद घोष ने इस स्थल की खोज की थी। कार्बन C-14 के आधार पर कालीबंगा की समयावधि 2350 BC से 1750 BC पूर्व मानी जाती है।
( व्याख्या : कालीबंगा- सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल है। यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है।
1951 में पुरातत्त्वविद् श्री अमलानंद घोष ने इस स्थल की खोज की थी। कार्बन C-14 के आधार पर कालीबंगा की समयावधि 2350 BC से 1750 BC पूर्व मानी जाती है।
( व्याख्या : कालीबंगा- सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल है। यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है।
1951 में पुरातत्त्वविद् श्री अमलानंद घोष ने इस स्थल की खोज की थी। कार्बन C-14 के आधार पर कालीबंगा की समयावधि 2350 BC से 1750 BC पूर्व मानी जाती है।
निम्न में से किस स्थल को ताम्रवती नगरी के नाम से भी जाना जाता था?
व्याख्या : आहड़ बहुसांस्कृतिक स्थल है, अर्थात् आहड़ से जनजीवन का प्रमाण ताम्र पापाणिक युग से लेकर प्रारंभिक
मध्यकाल तक मिला है। यहाँ ताँबे के औजार बनाने के केन्द्र के कारण इसे ‘ताम्रवती’ कहा जाता है।
व्याख्या : आहड़ बहुसांस्कृतिक स्थल है, अर्थात् आहड़ से जनजीवन का प्रमाण ताम्र पापाणिक युग से लेकर प्रारंभिक
मध्यकाल तक मिला है। यहाँ ताँबे के औजार बनाने के केन्द्र के कारण इसे ‘ताम्रवती’ कहा जाता है।
व्याख्या : आहड़ बहुसांस्कृतिक स्थल है, अर्थात् आहड़ से जनजीवन का प्रमाण ताम्र पापाणिक युग से लेकर प्रारंभिक
मध्यकाल तक मिला है। यहाँ ताँबे के औजार बनाने के केन्द्र के कारण इसे ‘ताम्रवती’ कहा जाता है।
राजस्थान के किस जिले में गणेश्वर स्थल स्थित है
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता राजस्थान के सीकर जिले में नीम का थाना से 10 किमी. दूर स्थित है। गणेश्वर सभ्यता
को ‘ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी’ भी कहा जाता है।
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता राजस्थान के सीकर जिले में नीम का थाना से 10 किमी. दूर स्थित है। गणेश्वर सभ्यता
को ‘ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी’ भी कहा जाता है।
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता राजस्थान के सीकर जिले में नीम का थाना से 10 किमी. दूर स्थित है। गणेश्वर सभ्यता
को ‘ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी’ भी कहा जाता है।
निम्नलिखित में से कौनसा एक युग्म सही सुमेलित नहीं है ?
प्राचीन स्थल उत्खननकर्ता
व्याख्या :
प्राचीन स्थल उत्खननकर्ता वर्ष
कालीबंगा (हनुमानगढ़) अमलानंद घोष 1952
वी.वी. लाल, बी.के. थापर 1960-69 ए
म.डी खरे, के.एम. श्रीवास्तव
एस.पी. जैन ।
रत्नचन्द्र अग्रवाल 1956
डॉ. एच.डी. साँकलिया 1961-62
कैलाश दीक्षित व 1962 ई.
नीलरतन बनर्जी
व्याख्या :
प्राचीन स्थल उत्खननकर्ता वर्ष
कालीबंगा (हनुमानगढ़) अमलानंद घोष 1952
वी.वी. लाल, बी.के. थापर 1960-69 ए
म.डी खरे, के.एम. श्रीवास्तव
एस.पी. जैन ।
रत्नचन्द्र अग्रवाल 1956
डॉ. एच.डी. साँकलिया 1961-62
कैलाश दीक्षित व 1962 ई.
नीलरतन बनर्जी
व्याख्या :
प्राचीन स्थल उत्खननकर्ता वर्ष
कालीबंगा (हनुमानगढ़) अमलानंद घोष 1952
वी.वी. लाल, बी.के. थापर 1960-69 ए
म.डी खरे, के.एम. श्रीवास्तव
एस.पी. जैन ।
रत्नचन्द्र अग्रवाल 1956
डॉ. एच.डी. साँकलिया 1961-62
कैलाश दीक्षित व 1962 ई.
नीलरतन बनर्जी
निम्नलिखित में से राजस्थान का कौन-सा सैन्धव स्थल घग्घर नदी के किनारे स्थित है ?
व्याख्या : राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी की शुष्क हो चुकी प्रवाहिका के किनारे कालीबंगा नामक
हड़प्पा कालीन पुरास्थल विद्यमान है। इस स्थल से पूर्व, परिपक्व, व उत्तर हड़प्पा कालीन सभ्यता के प्रमाण प्राप्त होते हैं। कालीबंगा से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य :
व्याख्या : राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी की शुष्क हो चुकी प्रवाहिका के किनारे कालीबंगा नामक
हड़प्पा कालीन पुरास्थल विद्यमान है। इस स्थल से पूर्व, परिपक्व, व उत्तर हड़प्पा कालीन सभ्यता के प्रमाण प्राप्त होते हैं। कालीबंगा से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य :
व्याख्या : राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी की शुष्क हो चुकी प्रवाहिका के किनारे कालीबंगा नामक
हड़प्पा कालीन पुरास्थल विद्यमान है। इस स्थल से पूर्व, परिपक्व, व उत्तर हड़प्पा कालीन सभ्यता के प्रमाण प्राप्त होते हैं। कालीबंगा से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य :
आहड़ के उत्खनन से प्राप्त कौन सी सामग्री बाह्य सम्पर्कों का संकेत देती है ?
व्याख्या : आहड़ से प्राप्त वस्तुओं में क्वार्ट्ज के ब्लेड, अगेट, काल्साइट, कार्नेलियन, फायन्स जैस्पर, सिस्ट
इत्यादि के मनके, स्टेटाइट और टेराकोटा की वस्तुएँ प्रमुखता से पाई गई है। इसके अतिरिक्त सक्षम पाषाण की विदारणी व वेधक, कार्नेलियन, क्रिस्टल, जैस्पर, लाजवर्द, सिस्ट, शंख व टेराकोटा के मनके भी पाए गए हैं। इनमें “लेपिस लाजुली” (लाजवर्द) बहुमूल्य पत्थर है, जो मूलतः अफगानिस्तान में पाया जाता है, जिसका आहड़ (राजस्थान) में मिलना इस सभ्यता के बाह्य सम्पर्क को सिद्ध करता है।
व्याख्या : आहड़ से प्राप्त वस्तुओं में क्वार्ट्ज के ब्लेड, अगेट, काल्साइट, कार्नेलियन, फायन्स जैस्पर, सिस्ट
इत्यादि के मनके, स्टेटाइट और टेराकोटा की वस्तुएँ प्रमुखता से पाई गई है। इसके अतिरिक्त सक्षम पाषाण की विदारणी व वेधक, कार्नेलियन, क्रिस्टल, जैस्पर, लाजवर्द, सिस्ट, शंख व टेराकोटा के मनके भी पाए गए हैं। इनमें “लेपिस लाजुली” (लाजवर्द) बहुमूल्य पत्थर है, जो मूलतः अफगानिस्तान में पाया जाता है, जिसका आहड़ (राजस्थान) में मिलना इस सभ्यता के बाह्य सम्पर्क को सिद्ध करता है।
व्याख्या : आहड़ से प्राप्त वस्तुओं में क्वार्ट्ज के ब्लेड, अगेट, काल्साइट, कार्नेलियन, फायन्स जैस्पर, सिस्ट
इत्यादि के मनके, स्टेटाइट और टेराकोटा की वस्तुएँ प्रमुखता से पाई गई है। इसके अतिरिक्त सक्षम पाषाण की विदारणी व वेधक, कार्नेलियन, क्रिस्टल, जैस्पर, लाजवर्द, सिस्ट, शंख व टेराकोटा के मनके भी पाए गए हैं। इनमें “लेपिस लाजुली” (लाजवर्द) बहुमूल्य पत्थर है, जो मूलतः अफगानिस्तान में पाया जाता है, जिसका आहड़ (राजस्थान) में मिलना इस सभ्यता के बाह्य सम्पर्क को सिद्ध करता है।
निम्नांकित में किस इतिहासवेत्ता ने कालीबंगा को सिन्धु घाटी साम्राज्य की तृतीय राजधानी कहा है
व्याख्या : प्रसिद्ध इतिहासकार दशरथ शर्मा ने कालीबंगा स्थल को सिंधु (हड़प्पा) सभ्यता की तृतीय राजधानी
कहा है। इससे पूर्व स्टुअर्ट पिग्गट ने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता की जुड़वाँ राजधानी बताया।
व्याख्या : प्रसिद्ध इतिहासकार दशरथ शर्मा ने कालीबंगा स्थल को सिंधु (हड़प्पा) सभ्यता की तृतीय राजधानी
कहा है। इससे पूर्व स्टुअर्ट पिग्गट ने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता की जुड़वाँ राजधानी बताया।
व्याख्या : प्रसिद्ध इतिहासकार दशरथ शर्मा ने कालीबंगा स्थल को सिंधु (हड़प्पा) सभ्यता की तृतीय राजधानी
कहा है। इससे पूर्व स्टुअर्ट पिग्गट ने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता की जुड़वाँ राजधानी बताया।
अनाज रखने वाले मृद्भाण्ड जिन्हें “गोरे बंकोठ” कहा जाता था, किस प्राचीन सभ्यता से प्राप्त हुए?
व्याख्या : आहड़ के लोग कृषि से परिचित थे; क्योंकि यहाँ अनाज रखने के बडे-बडे मदभाण्ड प्राप्त हुए हैं।
जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘गोरे व कोठ’ कहा जाता है।
व्याख्या : आहड़ के लोग कृषि से परिचित थे; क्योंकि यहाँ अनाज रखने के बडे-बडे मदभाण्ड प्राप्त हुए हैं।
जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘गोरे व कोठ’ कहा जाता है।
व्याख्या : आहड़ के लोग कृषि से परिचित थे; क्योंकि यहाँ अनाज रखने के बडे-बडे मदभाण्ड प्राप्त हुए हैं।
जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘गोरे व कोठ’ कहा जाता है।
गणेश्वर सभ्यता का विकास किस नदी के किनारे हुआ?
व्याख्या : गणेश्वर – जोधपुरा संस्कृति, राजस्थान के उत्तर पूर्व भाग में स्थित ताम्र-पाषाणिक संस्कति है। इस
संस्कृति के सर्वाधिक स्थल सीकर जिले में स्थित हैं; लेकिन जयपुर व झुन्झुनु जिलों में भी इस संस्कृति का विस्तार पाया गया है।
व्याख्या : गणेश्वर – जोधपुरा संस्कृति, राजस्थान के उत्तर पूर्व भाग में स्थित ताम्र-पाषाणिक संस्कति है। इस
संस्कृति के सर्वाधिक स्थल सीकर जिले में स्थित हैं; लेकिन जयपुर व झुन्झुनु जिलों में भी इस संस्कृति का विस्तार पाया गया है।
व्याख्या : गणेश्वर – जोधपुरा संस्कृति, राजस्थान के उत्तर पूर्व भाग में स्थित ताम्र-पाषाणिक संस्कति है। इस
संस्कृति के सर्वाधिक स्थल सीकर जिले में स्थित हैं; लेकिन जयपुर व झुन्झुनु जिलों में भी इस संस्कृति का विस्तार पाया गया है।
किस संस्कृति से जुड़े स्थल प्रमुख रूप से बनास तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में प्राप्त हुए हैं ?
व्याख्या : आहड़ संस्कृति से जुड़े स्थल प्रमुख रुप से बनास तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों से प्राप्त हुए
हैं। उदाहरणतः इस संस्कृति के प्रमुख स्थलों में बालाथल-बेड़च नदी, गिलूण्ड-बनास नदी के किनारे अवस्थित है। ओझियाणा – खारी नदी जो बनास की सहायक नदी है के किनारे स्थित है, इससे यह प्रतीत होता है कि यह सभ्यता बनास एवं इसकी सहायक नदियों के आसपास ही विकसित हुई।
व्याख्या : आहड़ संस्कृति से जुड़े स्थल प्रमुख रुप से बनास तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों से प्राप्त हुए
हैं। उदाहरणतः इस संस्कृति के प्रमुख स्थलों में बालाथल-बेड़च नदी, गिलूण्ड-बनास नदी के किनारे अवस्थित है। ओझियाणा – खारी नदी जो बनास की सहायक नदी है के किनारे स्थित है, इससे यह प्रतीत होता है कि यह सभ्यता बनास एवं इसकी सहायक नदियों के आसपास ही विकसित हुई।
व्याख्या : आहड़ संस्कृति से जुड़े स्थल प्रमुख रुप से बनास तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों से प्राप्त हुए
हैं। उदाहरणतः इस संस्कृति के प्रमुख स्थलों में बालाथल-बेड़च नदी, गिलूण्ड-बनास नदी के किनारे अवस्थित है। ओझियाणा – खारी नदी जो बनास की सहायक नदी है के किनारे स्थित है, इससे यह प्रतीत होता है कि यह सभ्यता बनास एवं इसकी सहायक नदियों के आसपास ही विकसित हुई।
बागोर भीलवाड़ा जिले की …….. नदी के कांठे पर स्थित है
व्याख्या : बागोर-राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की माण्डलगढ़ तहसील में कोठारी नदी के किनारे स्थित
मध्यपाषाण कालीन स्थल है।
व्याख्या : बागोर-राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की माण्डलगढ़ तहसील में कोठारी नदी के किनारे स्थित
मध्यपाषाण कालीन स्थल है।
व्याख्या : बागोर-राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की माण्डलगढ़ तहसील में कोठारी नदी के किनारे स्थित
मध्यपाषाण कालीन स्थल है।
बागोर एवं तिलवाड़ा नामक स्थान मुख्यतया निम्न काल से संबंधित थे
व्याख्या : बागोर एवं तिलवाड़ा नामक स्थान मध्य पाषाण काल (10,000 से 4000 हजार वर्ष पूर्व) से संबंधित
है। इसमें बागोर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी व तिलवाड़ा, बाड़मेर जिले में लूनी नदी के किनारे स्थित है।
व्याख्या : बागोर एवं तिलवाड़ा नामक स्थान मध्य पाषाण काल (10,000 से 4000 हजार वर्ष पूर्व) से संबंधित
है। इसमें बागोर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी व तिलवाड़ा, बाड़मेर जिले में लूनी नदी के किनारे स्थित है।
व्याख्या : बागोर एवं तिलवाड़ा नामक स्थान मध्य पाषाण काल (10,000 से 4000 हजार वर्ष पूर्व) से संबंधित
है। इसमें बागोर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी व तिलवाड़ा, बाड़मेर जिले में लूनी नदी के किनारे स्थित है।
निम्न में से राजस्थान की ताम्र-युगीन सभ्यता में सबसे प्रमुख सभ्यता कौनसी है ?
व्याख्या : आहड ताम्र युगीन संस्कृति का प्रतिनिधि है, जो उदयपुर में आहड़ नदी के किनारे स्थित है । इस सभ्यता का काल लगभग 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. है। आहड़ संस्कृति में कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड का प्रयोग होता था। इस संस्कृति के अन्य स्थल बनास व उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं।
व्याख्या : आहड ताम्र युगीन संस्कृति का प्रतिनिधि है, जो उदयपुर में आहड़ नदी के किनारे स्थित है । इस सभ्यता का काल लगभग 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. है। आहड़ संस्कृति में कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड का प्रयोग होता था। इस संस्कृति के अन्य स्थल बनास व उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं।
व्याख्या : आहड ताम्र युगीन संस्कृति का प्रतिनिधि है, जो उदयपुर में आहड़ नदी के किनारे स्थित है । इस सभ्यता का काल लगभग 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. है। आहड़ संस्कृति में कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड का प्रयोग होता था। इस संस्कृति के अन्य स्थल बनास व उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं।
गणेश्वर सभ्यता किस काल से सम्बन्धित है ?
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता एक ताम्रयुगीन सभ्यता है। रेडियो कार्बन विधि के अनुसार गणेश्वर संस्कृति का
कालक्रम 2800 ई.पू. से 2006 ई.पू. के मध्य का माना जाता है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में सर्वाधिक प्रयुक्त धातु ताँबा थी। प्राप्त ताम्र उपकरणों में बाणाग्र, छल्ले, चूड़ियाँ, वेधनी आदि है। ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण इसे ताम्र पाषाणिक संस्कृति माना जाता है । यहाँ निर्मित ताम्र उपकरण कालीबंगा व अन्य हड़प्पा स्थलों को निर्यात किये जाते थे।
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता एक ताम्रयुगीन सभ्यता है। रेडियो कार्बन विधि के अनुसार गणेश्वर संस्कृति का
कालक्रम 2800 ई.पू. से 2006 ई.पू. के मध्य का माना जाता है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में सर्वाधिक प्रयुक्त धातु ताँबा थी। प्राप्त ताम्र उपकरणों में बाणाग्र, छल्ले, चूड़ियाँ, वेधनी आदि है। ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण इसे ताम्र पाषाणिक संस्कृति माना जाता है । यहाँ निर्मित ताम्र उपकरण कालीबंगा व अन्य हड़प्पा स्थलों को निर्यात किये जाते थे।
व्याख्या : गणेश्वर सभ्यता एक ताम्रयुगीन सभ्यता है। रेडियो कार्बन विधि के अनुसार गणेश्वर संस्कृति का
कालक्रम 2800 ई.पू. से 2006 ई.पू. के मध्य का माना जाता है। यहाँ से प्राप्त उपकरणों में सर्वाधिक प्रयुक्त धातु ताँबा थी। प्राप्त ताम्र उपकरणों में बाणाग्र, छल्ले, चूड़ियाँ, वेधनी आदि है। ताम्र उपकरणों की अधिकता के कारण इसे ताम्र पाषाणिक संस्कृति माना जाता है । यहाँ निर्मित ताम्र उपकरण कालीबंगा व अन्य हड़प्पा स्थलों को निर्यात किये जाते थे।