गुर्जर प्रतिहार वंश/GURJAR-PRATIHAR
गुर्जर प्रतिहार वंश-
- राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेश में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई।
- प्रतिहार अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है।
- लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंश कहलाया।
- गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार कहलाये।
- बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया और भारत के द्वारपाल(प्रतिहार) की भूमिका निभाई।
जालौर, उज्जैन और कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार
नागभट्ट प्रथम(730-760 ई.)
- प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
- नागभट्ट प्रथम ने ने उज्जैन पर अधिकार कर लिया
- उज्जैन नागभट्ट प्रथम की शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया।
- नागभट्ट प्रथम का दरबार ‘नागावलोक का दरबार’ कहलाता था।
- तत्कालीन समय समय के सभी राजपूत वंश(गुहिल, चौहान, परमार, राठौड़, चंदेल, चालुक्य, कलचुरि) उनके दरबारी सामन्त थे।
- नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ और ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
- म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् वहां से भारत के अन्य भागों में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कुक्कुक एवं देवराज थे,
- नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है। इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
- दशावतार गुहा लेख से ज्ञात होता है कि दन्तिदुर्ग ने गुर्जर नरेश के राजमहल को अधिकृत किया था।
- संजन लेख के अनुसार उज्जयिनी में जब दन्तिदुर्ग ने हिरण्यगर्भ यज्ञ सम्पादित किया तो गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहारी (द्वारपाल) का कार्य किया था।
वत्सराज(783-795ई.)
- देवराज की मृत्यु के पश्चता उनके पुत्र वत्सराज अगले प्रतापी शासक बना ।
- देवराज ने भण्डी वंश को व बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।
- वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ। जिन्हें भी नागवलोक कहते हैं।
- देवराज के समय में उदयोतन सूरी ने ‘कुवलयमाला’ और जैन आचार्य जिनसेन ने ‘हरिवंश पुराण’ की रचना की।
- वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना 778 में जालौर में की।
- औसियां के मंदिर महामारू शैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन शैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था। औसिंया (जोधपुर) के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेश्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- वत्सराज के समय त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरूआत वत्सराज ने की थी।
- वत्सराज ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक और ‘रणहस्तिन्’ कहा गया है।
- वत्सराज के समकालीन राष्ट्रकूट राजा ध्रुव बड़ा महत्वकांक्षी था।
नागभट्ट द्वितीय(795-833ई.)
- नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का उत्तराधिकारी थे।
- नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध को पराजित किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया।
- नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया।
- बकुला अभिलेख में इन्हें ‘परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ कहा गया हे।
- चंद्रप्रभा सूरी के ग्रंथ ‘प्रभावक चरित’ के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने 833 ई. में गंगा में डूबकर आत्महत्या कर ली।
- नागभट्ट के बाद उनके पुत्र रामभद्र ने 833 ई. में शासन संभाला परन्तु अल्प शासनकाल(3 वर्ष) में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।
मिहिरभोज प्रथम(836-885 ई.)
- मिहिरभोज वेष्णों धर्म का अनुयायी थे।
- मिहिरभोज का प्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत्(836 ई.) है।
- अरब यात्री ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की
- ‘सुलेमान’ विदेशी यात्री ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया
- ‘सुलेमान’ ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- मिहिरभोज ने अरबों को भारत आने रोका।
- कश्मीरी कवि कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में भी मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की गई है।
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूटों को प्राजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज के समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वितीय का शासन था।
- ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि आदिवराह मिलती है।
- दौलतपुर अभिलेख मिहिरभोज को प्रभास कहा है।
- मिहिरभोज के समय प्रचलित चांदी ओर तांबे के सिक्कों पर ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित था।
- स्कन्धपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेन्द्रपाल को सौंप कर सिंहासन त्याग दिया।
मण्डौर के प्रतिहार-
- गुर्जर-प्रतिहारों की 26 शाखाओं में मण्डौर की शाखा सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण थी।
- जोधपुर और घटियाला शिलालेखों के अनुसार हरिशचन्द्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी।
- एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा।
- क्षत्राणी भद्रा के चार पुत्रों भोगभट्ट, कद्दक, रज्जिल और दह ने मिलकर मण्डौर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- रज्जिल तीसरा पुत्र होने पर भी मण्डौर की वंशावली इससे प्रारम्भ होती है।
शीलुक-
- इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश के शासक भाटी देवराज को हराया।
- शीलुक की भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से बाउक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक-
- बाउक ने 837 ई. की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित कराकर मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था।
कक्कुक
- कक्कुक ने दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है।
- कक्कुक के द्वारा घटियाला और मण्डौर में जयस्तम्भ भी स्थापित किये गये थे।
महेन्द्रपाल प्रथम(885-910 ई.)-
- इनके गुरू व आश्रित कवि राजशेखर थे।
- राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्धसालभंज्जिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास और भुवनकोश की रचना की।
- राजशेखर ने अपने ग्रन्थों में महेन्द्रपाल को रघुकुल चड़ामणि, निर्भय नरेश, निर्भय नरेन्द्र कहा है।
- महेन्द्रपाल प्रथम के दो पुत्र थे भोज द्वितीय और महिपाल प्रथम।
- भोज द्वितीय ने(910-913 ई.) तक शासन किया।
महिपाल प्रथम(914-943 ई.)-
- जब तक महिपाल ने शासन संभाला तब तक राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने प्रतिहारों का हराकर कन्नौज को नष्ट कर दिया।
- राजशेखर महिपाल के दरबार में भी रहे थे।
- राजशेखर ने महिपाल को ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ कहा और ‘रघुकुल मुकुटमणि’ की संज्ञा दी।
- महिपाल को गुर्जर प्रतिहारों को ‘अलगुर्जर’ एवं राजा को ‘बौरा’ कहा था।
- इनके समय में अरब यात्री ‘अलमसूदी’ ने भारत की यात्रा की।
राज्यपाल-
- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
यशपाल-
- 1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था।
- 1039 ई. के आसपास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।