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Question 1 of 36
1. Question
1 points
अन्य ग्रामों से भूमि जोतने हेतु आने वाले कृषक कहलाते
Correct
व्याख्या –
मुगलकालीन कृषक वर्ग तीन वर्गों में विभाजित था
खुदकाश्त,
पाही काश्त
मुजारियान।
खुदकाशत –
खुदकाशत वह किसान थे जो उसी गाँव की भूमि पर खेती करते थे जिसके वे निवासी होते थे। इन्हें अपनी भूमि पर स्थायी एवं वंशानुगत स्वामित्व प्राप्त था।
पाहीकाश्त-
पाहीकाश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँव में अस्थायी रूप से जाकर बँटाईदार के रूप में खेती करते थे।
मुजारियान कृषकों के पास इतनी कम भूमि होती थी कि वे उस भूमि में अपने परिवार के कुल श्रम का उपयोग नहीं कर पाते थे। मुजारियान खुदकाश्त की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलकालीन कृषक वर्ग तीन वर्गों में विभाजित था
खुदकाश्त,
पाही काश्त
मुजारियान।
खुदकाशत –
खुदकाशत वह किसान थे जो उसी गाँव की भूमि पर खेती करते थे जिसके वे निवासी होते थे। इन्हें अपनी भूमि पर स्थायी एवं वंशानुगत स्वामित्व प्राप्त था।
पाहीकाश्त-
पाहीकाश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँव में अस्थायी रूप से जाकर बँटाईदार के रूप में खेती करते थे।
मुजारियान कृषकों के पास इतनी कम भूमि होती थी कि वे उस भूमि में अपने परिवार के कुल श्रम का उपयोग नहीं कर पाते थे। मुजारियान खुदकाश्त की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलकालीन कृषक वर्ग तीन वर्गों में विभाजित था
खुदकाश्त,
पाही काश्त
मुजारियान।
खुदकाशत –
खुदकाशत वह किसान थे जो उसी गाँव की भूमि पर खेती करते थे जिसके वे निवासी होते थे। इन्हें अपनी भूमि पर स्थायी एवं वंशानुगत स्वामित्व प्राप्त था।
पाहीकाश्त-
पाहीकाश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँव में अस्थायी रूप से जाकर बँटाईदार के रूप में खेती करते थे।
मुजारियान कृषकों के पास इतनी कम भूमि होती थी कि वे उस भूमि में अपने परिवार के कुल श्रम का उपयोग नहीं कर पाते थे। मुजारियान खुदकाश्त की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे।
Question 2 of 36
2. Question
1 points
गज़ सिंकंदरी’ तथा गज इलाही में अंतर था
Correct
व्याख्या –
अकबर ने भूमि की पैमाइश के लिए वर्ष (1586-87 ई०) में सिकन्दरी गज (39 अंगुल या 32 इंच) के स्थान पर इलाहीगज (41 अंगुल या 33.1/2 इंच) का प्रयोग शरु किया।
सिकंदरी गज व इलाहीगज में 39:41 का अन्तर था।
इलाहीगज के पूर्व भूमि माप की पैमाइश में सिकन्दरी गज का ही प्रयोग होता था।
सिकन्दरी गज का प्रारम्भ लोदी शासक सिकन्दर लोदी ने प्रारम्भ किया था।
Incorrect
व्याख्या –
अकबर ने भूमि की पैमाइश के लिए वर्ष (1586-87 ई०) में सिकन्दरी गज (39 अंगुल या 32 इंच) के स्थान पर इलाहीगज (41 अंगुल या 33.1/2 इंच) का प्रयोग शरु किया।
सिकंदरी गज व इलाहीगज में 39:41 का अन्तर था।
इलाहीगज के पूर्व भूमि माप की पैमाइश में सिकन्दरी गज का ही प्रयोग होता था।
सिकन्दरी गज का प्रारम्भ लोदी शासक सिकन्दर लोदी ने प्रारम्भ किया था।
Unattempted
व्याख्या –
अकबर ने भूमि की पैमाइश के लिए वर्ष (1586-87 ई०) में सिकन्दरी गज (39 अंगुल या 32 इंच) के स्थान पर इलाहीगज (41 अंगुल या 33.1/2 इंच) का प्रयोग शरु किया।
सिकंदरी गज व इलाहीगज में 39:41 का अन्तर था।
इलाहीगज के पूर्व भूमि माप की पैमाइश में सिकन्दरी गज का ही प्रयोग होता था।
सिकन्दरी गज का प्रारम्भ लोदी शासक सिकन्दर लोदी ने प्रारम्भ किया था।
Question 3 of 36
3. Question
1 points
मुगल कालीन भारत में अधोलिखित वस्तुओं में से किसका निर्यात सर्वाधिक किया जाता था?
Correct
व्याख्या –
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय देशों में सूती और रेशमी वस्त्र की बहुत मांग थी।
भारतीय रेशम का बना हुआ ताफ्ता एवं बूटेदार कपड़े निर्यात किये जाते थे।
सूरत, बनारस, बंगाल एवं अहमदाबाद के उत्पादित रेशमी वस्त्र, वर्मा मलाया एवं यूरोपीय देशो को निर्यात किये जाते थे।
Incorrect
व्याख्या –
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय देशों में सूती और रेशमी वस्त्र की बहुत मांग थी।
भारतीय रेशम का बना हुआ ताफ्ता एवं बूटेदार कपड़े निर्यात किये जाते थे।
सूरत, बनारस, बंगाल एवं अहमदाबाद के उत्पादित रेशमी वस्त्र, वर्मा मलाया एवं यूरोपीय देशो को निर्यात किये जाते थे।
Unattempted
व्याख्या –
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय देशों में सूती और रेशमी वस्त्र की बहुत मांग थी।
भारतीय रेशम का बना हुआ ताफ्ता एवं बूटेदार कपड़े निर्यात किये जाते थे।
सूरत, बनारस, बंगाल एवं अहमदाबाद के उत्पादित रेशमी वस्त्र, वर्मा मलाया एवं यूरोपीय देशो को निर्यात किये जाते थे।
Question 4 of 36
4. Question
1 points
किसके चाँदी के सिक्कों पर राशि चक्र का अंकन है?
Correct
व्याख्या –
जहांगीर के समय में मुगल कालीन सिक्को की सुन्दरता चरम सीमा पर पहुंची थी।
मुगल काल में जहांगीर के सिक्के कला की दृष्टि से सबसे उत्तम माने जाते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर हिन्दू राशि-चक्र के चिन्ह खुदे हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर राशियों को व्यक्त करने वाले चिन्ह शेर, बैल, भेड़, वृश्चिक, तुला और योद्धा के चित्र खुदे हुए हैं।
अजमेर में नए ढंग की मुहर तैयार की गई, जिसमें अग्रभाग की ओर’ अर्द्ध पदमासन और शराब का प्याला हाथ में लिए जहांगीर की आकृति है है।
पृष्ठ भाग के पर सूर्य की आकृति और चारों तरफ लेख खुदे हैं।
जहांगीर के समय में यूरोप से व्यापार बढ़ गया था।
जहांगीर के समय अंग्रेजों को व्यापार केन्द्र खोलने की आज्ञा मिल चुकी थी।
यूरोपियो से भारतीय सामान के बदले चांदी ही मूल्य में ली जाती थी।
सर्वप्रथम जहाँगीर ने ‘सलीमी: सिक्के तैयार कराये।जो चांदी के थे
नूरजहां के सिक्के 220 ग्रेन के बराबर मिलते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर सुन्दरता लिए विन्दुमंडल बनाएं तथा खुदे दिखाई देते हैं।
जहांगीर ने अपने सिक्को पर कलमा और खलीफो का नाम भी अंकित कराया।
Incorrect
व्याख्या –
जहांगीर के समय में मुगल कालीन सिक्को की सुन्दरता चरम सीमा पर पहुंची थी।
मुगल काल में जहांगीर के सिक्के कला की दृष्टि से सबसे उत्तम माने जाते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर हिन्दू राशि-चक्र के चिन्ह खुदे हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर राशियों को व्यक्त करने वाले चिन्ह शेर, बैल, भेड़, वृश्चिक, तुला और योद्धा के चित्र खुदे हुए हैं।
अजमेर में नए ढंग की मुहर तैयार की गई, जिसमें अग्रभाग की ओर’ अर्द्ध पदमासन और शराब का प्याला हाथ में लिए जहांगीर की आकृति है है।
पृष्ठ भाग के पर सूर्य की आकृति और चारों तरफ लेख खुदे हैं।
जहांगीर के समय में यूरोप से व्यापार बढ़ गया था।
जहांगीर के समय अंग्रेजों को व्यापार केन्द्र खोलने की आज्ञा मिल चुकी थी।
यूरोपियो से भारतीय सामान के बदले चांदी ही मूल्य में ली जाती थी।
सर्वप्रथम जहाँगीर ने ‘सलीमी: सिक्के तैयार कराये।जो चांदी के थे
नूरजहां के सिक्के 220 ग्रेन के बराबर मिलते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर सुन्दरता लिए विन्दुमंडल बनाएं तथा खुदे दिखाई देते हैं।
जहांगीर ने अपने सिक्को पर कलमा और खलीफो का नाम भी अंकित कराया।
Unattempted
व्याख्या –
जहांगीर के समय में मुगल कालीन सिक्को की सुन्दरता चरम सीमा पर पहुंची थी।
मुगल काल में जहांगीर के सिक्के कला की दृष्टि से सबसे उत्तम माने जाते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर हिन्दू राशि-चक्र के चिन्ह खुदे हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर राशियों को व्यक्त करने वाले चिन्ह शेर, बैल, भेड़, वृश्चिक, तुला और योद्धा के चित्र खुदे हुए हैं।
अजमेर में नए ढंग की मुहर तैयार की गई, जिसमें अग्रभाग की ओर’ अर्द्ध पदमासन और शराब का प्याला हाथ में लिए जहांगीर की आकृति है है।
पृष्ठ भाग के पर सूर्य की आकृति और चारों तरफ लेख खुदे हैं।
जहांगीर के समय में यूरोप से व्यापार बढ़ गया था।
जहांगीर के समय अंग्रेजों को व्यापार केन्द्र खोलने की आज्ञा मिल चुकी थी।
यूरोपियो से भारतीय सामान के बदले चांदी ही मूल्य में ली जाती थी।
सर्वप्रथम जहाँगीर ने ‘सलीमी: सिक्के तैयार कराये।जो चांदी के थे
नूरजहां के सिक्के 220 ग्रेन के बराबर मिलते हैं।
जहांगीर के सिक्कों पर सुन्दरता लिए विन्दुमंडल बनाएं तथा खुदे दिखाई देते हैं।
जहांगीर ने अपने सिक्को पर कलमा और खलीफो का नाम भी अंकित कराया।
Question 5 of 36
5. Question
1 points
मुगल भू-राजस्व प्रशासन में हमें महसूल नामक एक शब्द मिलता है। इससे आप क्या समझते है?
Correct
व्याख्या –
मुगल साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूराजस्व था।
सम्पूर्ण साम्राज्य को अनेक समरूप कषि क्षेत्रों या दस्तूरों में विभाजित कर दिया जाता था।
अकबर के प्रशासन ने भू-राजस्व प्रणाली में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर ली थी।
राजस्व के आकलन के लिए जिस मानक पद्धति को अपनाया जाता था, उसे ‘जाब्ती’ कहते थे।
भू-राजस्व प्रत्येक फसल के उत्पादन के आधार पर निर्धारित किया जाता था
राज्य या प्राप्त की सकल राजस्व आय को ‘महसूल’ कहा जाता था।
लगान निर्धारण की जब्ती व्यवस्था में उपज के रूप में निर्धारित लगान या भू-राजस्व को नकदी के रूप में वसूल करने के लिए क्षेत्रीय आधार पर कृषि उत्पाद मूल्य तालिका तैयार की जाती थी।
निर्धारित भू-राजस्व को नकदी में परिवर्तित करने के लिए विभिन्न कृषि उत्पादों की क्षेत्रीय मूल्य सूचियों को ‘दस्तूर-उल-अमल’ कहते थे।
Incorrect
व्याख्या –
मुगल साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूराजस्व था।
सम्पूर्ण साम्राज्य को अनेक समरूप कषि क्षेत्रों या दस्तूरों में विभाजित कर दिया जाता था।
अकबर के प्रशासन ने भू-राजस्व प्रणाली में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर ली थी।
राजस्व के आकलन के लिए जिस मानक पद्धति को अपनाया जाता था, उसे ‘जाब्ती’ कहते थे।
भू-राजस्व प्रत्येक फसल के उत्पादन के आधार पर निर्धारित किया जाता था
राज्य या प्राप्त की सकल राजस्व आय को ‘महसूल’ कहा जाता था।
लगान निर्धारण की जब्ती व्यवस्था में उपज के रूप में निर्धारित लगान या भू-राजस्व को नकदी के रूप में वसूल करने के लिए क्षेत्रीय आधार पर कृषि उत्पाद मूल्य तालिका तैयार की जाती थी।
निर्धारित भू-राजस्व को नकदी में परिवर्तित करने के लिए विभिन्न कृषि उत्पादों की क्षेत्रीय मूल्य सूचियों को ‘दस्तूर-उल-अमल’ कहते थे।
Unattempted
व्याख्या –
मुगल साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूराजस्व था।
सम्पूर्ण साम्राज्य को अनेक समरूप कषि क्षेत्रों या दस्तूरों में विभाजित कर दिया जाता था।
अकबर के प्रशासन ने भू-राजस्व प्रणाली में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर ली थी।
राजस्व के आकलन के लिए जिस मानक पद्धति को अपनाया जाता था, उसे ‘जाब्ती’ कहते थे।
भू-राजस्व प्रत्येक फसल के उत्पादन के आधार पर निर्धारित किया जाता था
राज्य या प्राप्त की सकल राजस्व आय को ‘महसूल’ कहा जाता था।
लगान निर्धारण की जब्ती व्यवस्था में उपज के रूप में निर्धारित लगान या भू-राजस्व को नकदी के रूप में वसूल करने के लिए क्षेत्रीय आधार पर कृषि उत्पाद मूल्य तालिका तैयार की जाती थी।
निर्धारित भू-राजस्व को नकदी में परिवर्तित करने के लिए विभिन्न कृषि उत्पादों की क्षेत्रीय मूल्य सूचियों को ‘दस्तूर-उल-अमल’ कहते थे।
Question 6 of 36
6. Question
1 points
शाहजहाँ के काल में दक्कन की भूमि कर व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार करने वाला अमीर था
Correct
व्याख्या-
शाहजहाँ के शासन काल में औरंगजेब 1641 से 1644 ई. तक व 1652 ई. में वह दक्कन का सूबेदार बना।
औरंगजेब ने अपने दीवान मुर्शीदकुली खाँ की मदद से मालगुजारी का बन्दोबस्त सम्पूर्ण किया।
मुर्शीदकुली खाँ ने टोडरमल के द्वारा प्रचलित मालगुजारी की प्रणाली को अपनाया।
मुर्शीदकुली खाँ एक कुशल शासक एवं अर्थवेत्ता था
मुर्शीदकुली खाँ ने जमीन को नपवाकर उपज के आधार पर भू-राजस्व ‘निर्धारित किया।
मुर्शीदकुली खाँ मालगुजारी की प्रणाली के साथ-साथ उसने ‘जब्ती, “बटाई’ और ‘नस्ख’ प्रणाली को भी जारी रखा ।
Incorrect
व्याख्या-
शाहजहाँ के शासन काल में औरंगजेब 1641 से 1644 ई. तक व 1652 ई. में वह दक्कन का सूबेदार बना।
औरंगजेब ने अपने दीवान मुर्शीदकुली खाँ की मदद से मालगुजारी का बन्दोबस्त सम्पूर्ण किया।
मुर्शीदकुली खाँ ने टोडरमल के द्वारा प्रचलित मालगुजारी की प्रणाली को अपनाया।
मुर्शीदकुली खाँ एक कुशल शासक एवं अर्थवेत्ता था
मुर्शीदकुली खाँ ने जमीन को नपवाकर उपज के आधार पर भू-राजस्व ‘निर्धारित किया।
मुर्शीदकुली खाँ मालगुजारी की प्रणाली के साथ-साथ उसने ‘जब्ती, “बटाई’ और ‘नस्ख’ प्रणाली को भी जारी रखा ।
Unattempted
व्याख्या-
शाहजहाँ के शासन काल में औरंगजेब 1641 से 1644 ई. तक व 1652 ई. में वह दक्कन का सूबेदार बना।
औरंगजेब ने अपने दीवान मुर्शीदकुली खाँ की मदद से मालगुजारी का बन्दोबस्त सम्पूर्ण किया।
मुर्शीदकुली खाँ ने टोडरमल के द्वारा प्रचलित मालगुजारी की प्रणाली को अपनाया।
मुर्शीदकुली खाँ एक कुशल शासक एवं अर्थवेत्ता था
मुर्शीदकुली खाँ ने जमीन को नपवाकर उपज के आधार पर भू-राजस्व ‘निर्धारित किया।
मुर्शीदकुली खाँ मालगुजारी की प्रणाली के साथ-साथ उसने ‘जब्ती, “बटाई’ और ‘नस्ख’ प्रणाली को भी जारी रखा ।
Question 7 of 36
7. Question
1 points
अकबर के शासनकाल में प्रचलित चौकोर चाँदी के सिक्के का क्या नाम था
Correct
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Unattempted
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Question 8 of 36
8. Question
1 points
निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए तथा नीचे दिये गये कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए
कथन (A) : मुगलकालीन भारत के सभी उद्योगों में वस्त्र उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।
कारण (R) :सूती वस्त्र का निर्यात भारत में विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख स्रोत था।
Correct
व्याख्या-
वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Incorrect
व्याख्या-
वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Unattempted
व्याख्या-
वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Question 9 of 36
9. Question
1 points
निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए तथा नीचे दिये गये कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए
कथन (A) : मुगलकाल में त्रिधात्विक मुद्रायें प्रचलन में थी।
कारण (R) : स्वर्ण मुहर, चाँदी के रुपये और ताँबे के दाम का आपसी विनिमय राज्य द्वारा निर्धारित होता था।
Correct
व्याख्या-
भारत में प्रमाणित एवं सर्वमान्य मुद्रा के प्रचलन का श्रेय मुगल शासको को है।
मुग़ल काल में मुद्रा की सुंदरता के साथ उच्च कोटि के धातु का प्रयोग किया गया।
सोने के सिक्के शत-प्रतिशत शुद्ध होते थे जबकि चांदी के सिक्कों में मिलावट 4 प्रतिशत से अधिक नहीं होती थी।
व्यक्ति सोने-चाँदी के इंटे टकसाल में ले जाकर उसे मुद्रा में परिवर्तित करा सकता था।
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
मुग़ल काल में एक धातु का दूसरे के सम्बन्ध में मूल्य का निर्धारण बाजार करता था न कि प्रशासन।
प्रशासनिक एवं व्यापारिक कार्यों के लिए नगद विनिमय की आधारभूत इकाई चाँदी का सिक्का था जिसे रुपया कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्या-
भारत में प्रमाणित एवं सर्वमान्य मुद्रा के प्रचलन का श्रेय मुगल शासको को है।
मुग़ल काल में मुद्रा की सुंदरता के साथ उच्च कोटि के धातु का प्रयोग किया गया।
सोने के सिक्के शत-प्रतिशत शुद्ध होते थे जबकि चांदी के सिक्कों में मिलावट 4 प्रतिशत से अधिक नहीं होती थी।
व्यक्ति सोने-चाँदी के इंटे टकसाल में ले जाकर उसे मुद्रा में परिवर्तित करा सकता था।
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
मुग़ल काल में एक धातु का दूसरे के सम्बन्ध में मूल्य का निर्धारण बाजार करता था न कि प्रशासन।
प्रशासनिक एवं व्यापारिक कार्यों के लिए नगद विनिमय की आधारभूत इकाई चाँदी का सिक्का था जिसे रुपया कहा जाता था।
Unattempted
व्याख्या-
भारत में प्रमाणित एवं सर्वमान्य मुद्रा के प्रचलन का श्रेय मुगल शासको को है।
मुग़ल काल में मुद्रा की सुंदरता के साथ उच्च कोटि के धातु का प्रयोग किया गया।
सोने के सिक्के शत-प्रतिशत शुद्ध होते थे जबकि चांदी के सिक्कों में मिलावट 4 प्रतिशत से अधिक नहीं होती थी।
व्यक्ति सोने-चाँदी के इंटे टकसाल में ले जाकर उसे मुद्रा में परिवर्तित करा सकता था।
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
मुग़ल काल में एक धातु का दूसरे के सम्बन्ध में मूल्य का निर्धारण बाजार करता था न कि प्रशासन।
प्रशासनिक एवं व्यापारिक कार्यों के लिए नगद विनिमय की आधारभूत इकाई चाँदी का सिक्का था जिसे रुपया कहा जाता था।
Question 10 of 36
10. Question
1 points
जागीर के लिए आरक्षित भूमि कहलाती थी.
Correct
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Incorrect
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Unattempted
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Question 11 of 36
11. Question
1 points
अकबर के शासनकाल में प्रचलित चौकोर चाँदी के सिक्के का क्या नाम था
Correct
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
अकबर के सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
अकबर के सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Unattempted
व्याख्या –
अकबर के सिक्कों में दाम और रुपया मुख्य थे।
दाम से छोटा सिक्का जीतल था जो मूल्य में दाम का पच्चीसवां भाग था।
आइने-अकबरी में अफसरों के वेतन और वस्तुओं के मूल्य दामों के रूप में दिया जाता था ।
अकबर के सोने का सिक्का मोहर कहलाता था।
गोल मोहर को इलाही कहते थे तथा चाँदी के चौकोर सिक्के को जलाली कहा जाता था।
Question 12 of 36
12. Question
1 points
कथन (A) : यूरोपीय व्यापारियों ने भारत में हुण्डी प्रणाली का प्रचलन किया।
कारण (R): हुण्डी मुगल भारत में प्रचलन में थी।
उपर्युक्त दोनों वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन एक सही है :
Correct
व्याख्या-
मुगल काल में हुण्डी विनिमय का प्रमुख साधन थी।
हुण्डी का प्रचलन भारत में मुगल काल से ही प्रचलन में थी न कि यूरोपीय व्यापारियों द्वारा इसका प्रचलन किया गया।
हुण्डी कागज पर लिखा एक वचन पत्र होता था जिसके द्वारा किसी निर्धारित समय और स्थान पर लिखी गयी राशि देने की व्यवस्था की जाती थी।
हुण्डी प्रथा का आरंभ वाणिज्यिक कार्यों के लिए मुद्रा के रूप में अधिक धन को लेकर जाने वाले व्यापारियों के खतरों को ध्यान में रखकर हुआ।
व्यापारी अपनी राशि किसी खास स्थान पर सर्राफ के पास जमा कराकर हुंडी ले लेते थे।
व्यापारी अपने गंतव्य स्थान पर हुण्डी सर्राफ के प्रतिनिधि को देकर अपनी राशि वापस ले सकते थे ।
Incorrect
व्याख्या-
मुगल काल में हुण्डी विनिमय का प्रमुख साधन थी।
हुण्डी का प्रचलन भारत में मुगल काल से ही प्रचलन में थी न कि यूरोपीय व्यापारियों द्वारा इसका प्रचलन किया गया।
हुण्डी कागज पर लिखा एक वचन पत्र होता था जिसके द्वारा किसी निर्धारित समय और स्थान पर लिखी गयी राशि देने की व्यवस्था की जाती थी।
हुण्डी प्रथा का आरंभ वाणिज्यिक कार्यों के लिए मुद्रा के रूप में अधिक धन को लेकर जाने वाले व्यापारियों के खतरों को ध्यान में रखकर हुआ।
व्यापारी अपनी राशि किसी खास स्थान पर सर्राफ के पास जमा कराकर हुंडी ले लेते थे।
व्यापारी अपने गंतव्य स्थान पर हुण्डी सर्राफ के प्रतिनिधि को देकर अपनी राशि वापस ले सकते थे ।
Unattempted
व्याख्या-
मुगल काल में हुण्डी विनिमय का प्रमुख साधन थी।
हुण्डी का प्रचलन भारत में मुगल काल से ही प्रचलन में थी न कि यूरोपीय व्यापारियों द्वारा इसका प्रचलन किया गया।
हुण्डी कागज पर लिखा एक वचन पत्र होता था जिसके द्वारा किसी निर्धारित समय और स्थान पर लिखी गयी राशि देने की व्यवस्था की जाती थी।
हुण्डी प्रथा का आरंभ वाणिज्यिक कार्यों के लिए मुद्रा के रूप में अधिक धन को लेकर जाने वाले व्यापारियों के खतरों को ध्यान में रखकर हुआ।
व्यापारी अपनी राशि किसी खास स्थान पर सर्राफ के पास जमा कराकर हुंडी ले लेते थे।
व्यापारी अपने गंतव्य स्थान पर हुण्डी सर्राफ के प्रतिनिधि को देकर अपनी राशि वापस ले सकते थे ।
Question 13 of 36
13. Question
1 points
निम्नलिखित सुल्तानों में से किसकी मुद्रा अकबर के समय तक विनिमय का माध्यम रही.
Correct
व्याख्या –
दिल्ली के सुल्तानों में बहलोल लोदी द्वारा जारी किया गया सिक्का जिसे ‘बहलोल सिक्का’ कहा जाता है,
‘बहलोल सिक्का अकबर से पहले तक उत्तर भारत में विनिमय का मुख्य साधन बना रहा।
बहलोल सिक्का टंका के 1/6 भाग के बराबर था।
Incorrect
व्याख्या –
दिल्ली के सुल्तानों में बहलोल लोदी द्वारा जारी किया गया सिक्का जिसे ‘बहलोल सिक्का’ कहा जाता है,
‘बहलोल सिक्का अकबर से पहले तक उत्तर भारत में विनिमय का मुख्य साधन बना रहा।
बहलोल सिक्का टंका के 1/6 भाग के बराबर था।
Unattempted
व्याख्या –
दिल्ली के सुल्तानों में बहलोल लोदी द्वारा जारी किया गया सिक्का जिसे ‘बहलोल सिक्का’ कहा जाता है,
‘बहलोल सिक्का अकबर से पहले तक उत्तर भारत में विनिमय का मुख्य साधन बना रहा।
बहलोल सिक्का टंका के 1/6 भाग के बराबर था।
Question 14 of 36
14. Question
1 points
भू-राजस्व आवंटन के लिए जो भूमि आरक्षित रखी जाती थी, उसे कहा जाता था
Correct
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Incorrect
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Unattempted
व्याख्या –
महाल-ए-पैबाकी –
महाले पैबाकी आरक्षित रखी गयी भूमि कही जा सकती है।
मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था में महाले पैबाकी उस जागीर को कहते थे, जो मनसबदार से छीन ली गई हो, किन्तु अभी किसी अन्य को न दी हो|
Question 15 of 36
15. Question
1 points
मुगल बादशाह किससे जागीर प्रदान करते थे.
Correct
व्याख्या-
मनसबदार को वेतन के बदले कुछ राजस्व क्षेत्र दिये जाते थे, जिन्हें ‘जागीर’ कहते थे।
जागीरों से उन्हें लगभग उतनी अनुमानित आय हो जाती थी, जो जागीरदार के रूप में उनके नियत वेतन के बराबर होती थी।
अनुमानित आय को “जमा’ या ‘जमादमी’ कहते थे।
मुगल काल में भूराजस्व प्रशासन की दृष्टि से भूमि-क्षेत्र को दो स्थूल श्रेणियों में विभाजित किया गया-
‘खालसा महाल’
‘जागीर महाल’
जागीरों के रूप में विशेषांकित किन्तु अप्रदत्त क्षेत्रों को महाल-ए-पैबाकी’ कहा जाता था।
‘महाल-ए-पैबाकी से ही नये जागीरदारों को जागीर प्रदान की जाती थी।
जागीरदारी प्रथा की नींव अकबर ने डाली. किन्तु शाहजहाँ ने इस सामान्य संगठन को एक जटिल संस्था के रूप में विकसित किया
प्रारम्भ में जागीरदारी व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य था सरकार पर भू-राजस्व प्रशासन का जो भारी बोझ था, वह हल्का हो जायेगा
17वीं शताब्दी के अंत तक तो जागीरदारी व्यवस्था ने मुगल साम्राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक स्थायित्व पर अधिकार करना शुरू कर दिया।
Incorrect
व्याख्या-
मनसबदार को वेतन के बदले कुछ राजस्व क्षेत्र दिये जाते थे, जिन्हें ‘जागीर’ कहते थे।
जागीरों से उन्हें लगभग उतनी अनुमानित आय हो जाती थी, जो जागीरदार के रूप में उनके नियत वेतन के बराबर होती थी।
अनुमानित आय को “जमा’ या ‘जमादमी’ कहते थे।
मुगल काल में भूराजस्व प्रशासन की दृष्टि से भूमि-क्षेत्र को दो स्थूल श्रेणियों में विभाजित किया गया-
‘खालसा महाल’
‘जागीर महाल’
जागीरों के रूप में विशेषांकित किन्तु अप्रदत्त क्षेत्रों को महाल-ए-पैबाकी’ कहा जाता था।
‘महाल-ए-पैबाकी से ही नये जागीरदारों को जागीर प्रदान की जाती थी।
जागीरदारी प्रथा की नींव अकबर ने डाली. किन्तु शाहजहाँ ने इस सामान्य संगठन को एक जटिल संस्था के रूप में विकसित किया
प्रारम्भ में जागीरदारी व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य था सरकार पर भू-राजस्व प्रशासन का जो भारी बोझ था, वह हल्का हो जायेगा
17वीं शताब्दी के अंत तक तो जागीरदारी व्यवस्था ने मुगल साम्राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक स्थायित्व पर अधिकार करना शुरू कर दिया।
Unattempted
व्याख्या-
मनसबदार को वेतन के बदले कुछ राजस्व क्षेत्र दिये जाते थे, जिन्हें ‘जागीर’ कहते थे।
जागीरों से उन्हें लगभग उतनी अनुमानित आय हो जाती थी, जो जागीरदार के रूप में उनके नियत वेतन के बराबर होती थी।
अनुमानित आय को “जमा’ या ‘जमादमी’ कहते थे।
मुगल काल में भूराजस्व प्रशासन की दृष्टि से भूमि-क्षेत्र को दो स्थूल श्रेणियों में विभाजित किया गया-
‘खालसा महाल’
‘जागीर महाल’
जागीरों के रूप में विशेषांकित किन्तु अप्रदत्त क्षेत्रों को महाल-ए-पैबाकी’ कहा जाता था।
‘महाल-ए-पैबाकी से ही नये जागीरदारों को जागीर प्रदान की जाती थी।
जागीरदारी प्रथा की नींव अकबर ने डाली. किन्तु शाहजहाँ ने इस सामान्य संगठन को एक जटिल संस्था के रूप में विकसित किया
प्रारम्भ में जागीरदारी व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य था सरकार पर भू-राजस्व प्रशासन का जो भारी बोझ था, वह हल्का हो जायेगा
17वीं शताब्दी के अंत तक तो जागीरदारी व्यवस्था ने मुगल साम्राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक स्थायित्व पर अधिकार करना शुरू कर दिया।
Question 16 of 36
16. Question
1 points
सूची 1 को सूची ।। से सुमेलित कीजिए तथा सूची के नीचे दिये गये कूट से सही सुमेलित कीजिए
सूची। सूची ।।
A परती 1. लगभग प्रतिवर्ष कृषि की जाने वाली भूमि
B पोजल 2. भूमि जो दो से तीन वर्ष तक जोती नहीं जाती थी।
C बंजर 3. बंजर भूमि
D चाचर 4. भूमि जो तीन वर्ष तक से अधिक के लिए बंजर रहती
Correct
व्याख्या –
अकबर की भू-राजस्व प्रणाली की प्रमुख विशेषता उसकी जाती या दहसाला पद्धति थी।
भूमि का वर्गीकरण – उपज के आधार पर भूमि को चार भागों में विभाजित किया जाता था
पोलज – जिस भूमि पर प्रतिवर्ष कृषि की जाती थी ।
पड़ती – जिस भूमि पर एक या दो वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
चाचर – जिस भूमि पर 3-4 वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
बंजर – जो भूमि कृषि योग्य नहीं थी ।
भू राजस्व अधिकारी – आमलगुजार,आमिल,मुकद्दम,पाटील,पटवारी,कानूनगो ।
मुगल भू- राजस्व दर – अकबर के समय 1/3 भाग्य भू राजस्व वसूला जाता था । शाहजहाँ के काल में 70% तक भू राजस्व वसूला जाता था । इसके अलावा किसान से जाबिताना (जमीन मापने का व्यय), जरीबाना ( 2.5%) एवं महासिलाना (5%) वसूला जाता था ।
मुगलकालीन राजस्व के अन्य स्रोत –
जजिया – गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर ।
जकात – मुसलमानों से उनकी संपत्ति की राज्य द्वारा सुरक्षा के एवज में संपत्ति का 40
Incorrect
व्याख्या –
अकबर की भू-राजस्व प्रणाली की प्रमुख विशेषता उसकी जाती या दहसाला पद्धति थी।
भूमि का वर्गीकरण – उपज के आधार पर भूमि को चार भागों में विभाजित किया जाता था
पोलज – जिस भूमि पर प्रतिवर्ष कृषि की जाती थी ।
पड़ती – जिस भूमि पर एक या दो वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
चाचर – जिस भूमि पर 3-4 वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
बंजर – जो भूमि कृषि योग्य नहीं थी ।
भू राजस्व अधिकारी – आमलगुजार,आमिल,मुकद्दम,पाटील,पटवारी,कानूनगो ।
मुगल भू- राजस्व दर – अकबर के समय 1/3 भाग्य भू राजस्व वसूला जाता था । शाहजहाँ के काल में 70% तक भू राजस्व वसूला जाता था । इसके अलावा किसान से जाबिताना (जमीन मापने का व्यय), जरीबाना ( 2.5%) एवं महासिलाना (5%) वसूला जाता था ।
मुगलकालीन राजस्व के अन्य स्रोत –
जजिया – गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर ।
जकात – मुसलमानों से उनकी संपत्ति की राज्य द्वारा सुरक्षा के एवज में संपत्ति का 40
Unattempted
व्याख्या –
अकबर की भू-राजस्व प्रणाली की प्रमुख विशेषता उसकी जाती या दहसाला पद्धति थी।
भूमि का वर्गीकरण – उपज के आधार पर भूमि को चार भागों में विभाजित किया जाता था
पोलज – जिस भूमि पर प्रतिवर्ष कृषि की जाती थी ।
पड़ती – जिस भूमि पर एक या दो वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
चाचर – जिस भूमि पर 3-4 वर्ष छोड़कर कृषि की जाती थी ।
बंजर – जो भूमि कृषि योग्य नहीं थी ।
भू राजस्व अधिकारी – आमलगुजार,आमिल,मुकद्दम,पाटील,पटवारी,कानूनगो ।
मुगल भू- राजस्व दर – अकबर के समय 1/3 भाग्य भू राजस्व वसूला जाता था । शाहजहाँ के काल में 70% तक भू राजस्व वसूला जाता था । इसके अलावा किसान से जाबिताना (जमीन मापने का व्यय), जरीबाना ( 2.5%) एवं महासिलाना (5%) वसूला जाता था ।
मुगलकालीन राजस्व के अन्य स्रोत –
जजिया – गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर ।
जकात – मुसलमानों से उनकी संपत्ति की राज्य द्वारा सुरक्षा के एवज में संपत्ति का 40
Question 17 of 36
17. Question
1 points
निम्नलिखित मुगल शासकों में सर्वप्रथम किसने राजा की आकृति से युक्त सिक्के चलाये
Correct
व्याख्या –
सर्वप्रथम जहाँगीर ने राजा की आकृति से युक्त सिक्के चलाये
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर-
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब-
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही-
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया-
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली-
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम-
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल-
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार-
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना-
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Incorrect
व्याख्या –
सर्वप्रथम जहाँगीर ने राजा की आकृति से युक्त सिक्के चलाये
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर-
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब-
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही-
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया-
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली-
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम-
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल-
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार-
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना-
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Unattempted
व्याख्या –
सर्वप्रथम जहाँगीर ने राजा की आकृति से युक्त सिक्के चलाये
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर-
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब-
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही-
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया-
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली-
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम-
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल-
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार-
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना-
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Question 18 of 36
18. Question
1 points
1582 में टोडरमल को निम्नलिखित में से कौन सा पद दिया गया
Correct
व्याख्या –
मुगलकालीन भू- राजस्व व्यवस्था :
शेरशाह द्वारा भू राजस्व हेतु अपनायी जानेवाली पद्धति राई का उपयोग अकबर ने भी किया था ।
अकबर के द्वारा करोड़ी नामक अधिकारी की नियुक्ति 1573 में की गई थी । इसे अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था ।
अकबर ने शेरशाह की भू राजस्व नीति का अनुसरण कर नवीन प्रयोग किए व अंत में टोडरमल के नेतृत्व में 1580 में भू-राजस्व की आइन-ए-दहसाला पद्धति शुरू की जो कि पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड के आकलन पर तैयार की गई थी ।
अकबर ने 1582 में राजा टोडरमल को दीवान-ए-अशरफ अर्थात् वित्तमंत्री बनाया गया।
भूमि की पैमाइश – अकबर ने भू मापन हेतु सर्वप्रथम शेरशाह द्वारा प्रचलित नापने की पटवे की रस्सी को हटाकर सर्वप्रथम ‘जरीब’ का प्रयोग किया ।
अकबर ने सिंकदरी गज ( 39 अंगुल) के स्थान पर इलाही गज( 41 अंगुल 33 ईंच) का प्रयोग किया ।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलकालीन भू- राजस्व व्यवस्था :
शेरशाह द्वारा भू राजस्व हेतु अपनायी जानेवाली पद्धति राई का उपयोग अकबर ने भी किया था ।
अकबर के द्वारा करोड़ी नामक अधिकारी की नियुक्ति 1573 में की गई थी । इसे अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था ।
अकबर ने शेरशाह की भू राजस्व नीति का अनुसरण कर नवीन प्रयोग किए व अंत में टोडरमल के नेतृत्व में 1580 में भू-राजस्व की आइन-ए-दहसाला पद्धति शुरू की जो कि पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड के आकलन पर तैयार की गई थी ।
अकबर ने 1582 में राजा टोडरमल को दीवान-ए-अशरफ अर्थात् वित्तमंत्री बनाया गया।
भूमि की पैमाइश – अकबर ने भू मापन हेतु सर्वप्रथम शेरशाह द्वारा प्रचलित नापने की पटवे की रस्सी को हटाकर सर्वप्रथम ‘जरीब’ का प्रयोग किया ।
अकबर ने सिंकदरी गज ( 39 अंगुल) के स्थान पर इलाही गज( 41 अंगुल 33 ईंच) का प्रयोग किया ।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलकालीन भू- राजस्व व्यवस्था :
शेरशाह द्वारा भू राजस्व हेतु अपनायी जानेवाली पद्धति राई का उपयोग अकबर ने भी किया था ।
अकबर के द्वारा करोड़ी नामक अधिकारी की नियुक्ति 1573 में की गई थी । इसे अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था ।
अकबर ने शेरशाह की भू राजस्व नीति का अनुसरण कर नवीन प्रयोग किए व अंत में टोडरमल के नेतृत्व में 1580 में भू-राजस्व की आइन-ए-दहसाला पद्धति शुरू की जो कि पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड के आकलन पर तैयार की गई थी ।
अकबर ने 1582 में राजा टोडरमल को दीवान-ए-अशरफ अर्थात् वित्तमंत्री बनाया गया।
भूमि की पैमाइश – अकबर ने भू मापन हेतु सर्वप्रथम शेरशाह द्वारा प्रचलित नापने की पटवे की रस्सी को हटाकर सर्वप्रथम ‘जरीब’ का प्रयोग किया ।
अकबर ने सिंकदरी गज ( 39 अंगुल) के स्थान पर इलाही गज( 41 अंगुल 33 ईंच) का प्रयोग किया ।
Question 19 of 36
19. Question
1 points
मुगल बादशाहों में किसने ईस्ट इंडिया कम्पनी को सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की आज्ञा दी
Correct
व्याख्या –
जहांगीर के शासन काल में पहली बार मुगल दरबार में अंग्रेजी दूत आया था
1608 ई. में अंग्रेजों ने सूरत में कारखाना लगाया
1608 ई. में कैप्टन हॉकिन्स को मुगल दरबार में व्यापारिक रियायते प्राप्त करने के लिए मुगल दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने कैप्टन हॉकिन्स का स्वागत किया तथा उसे 400 जात का मनसब प्रदान किया।
1611 ई. में हालांकि हांकिन्स को सूरत में व्यापार करने की अनुमति मिल गई। किन्तु पुर्तगालियों के प्रभाव के कारण कैप्टन हॉकिन्स आगरा से बाहर निकाल दिया गया।
1615 ई. में टामस रो को जहांगीर के दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने टामस रो को एक फरमान जारी कर अंग्रेजों को मुगल साम्राज्य के सभी भागों में कारखाने खोलने का अधिकार प्राप्त हो गया।
1619 ई. तक अंग्रेजों आगरा, अहमदाबाद और भड़ौच में अपने कारखाने स्थापित कर लिये।
Incorrect
व्याख्या –
जहांगीर के शासन काल में पहली बार मुगल दरबार में अंग्रेजी दूत आया था
1608 ई. में अंग्रेजों ने सूरत में कारखाना लगाया
1608 ई. में कैप्टन हॉकिन्स को मुगल दरबार में व्यापारिक रियायते प्राप्त करने के लिए मुगल दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने कैप्टन हॉकिन्स का स्वागत किया तथा उसे 400 जात का मनसब प्रदान किया।
1611 ई. में हालांकि हांकिन्स को सूरत में व्यापार करने की अनुमति मिल गई। किन्तु पुर्तगालियों के प्रभाव के कारण कैप्टन हॉकिन्स आगरा से बाहर निकाल दिया गया।
1615 ई. में टामस रो को जहांगीर के दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने टामस रो को एक फरमान जारी कर अंग्रेजों को मुगल साम्राज्य के सभी भागों में कारखाने खोलने का अधिकार प्राप्त हो गया।
1619 ई. तक अंग्रेजों आगरा, अहमदाबाद और भड़ौच में अपने कारखाने स्थापित कर लिये।
Unattempted
व्याख्या –
जहांगीर के शासन काल में पहली बार मुगल दरबार में अंग्रेजी दूत आया था
1608 ई. में अंग्रेजों ने सूरत में कारखाना लगाया
1608 ई. में कैप्टन हॉकिन्स को मुगल दरबार में व्यापारिक रियायते प्राप्त करने के लिए मुगल दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने कैप्टन हॉकिन्स का स्वागत किया तथा उसे 400 जात का मनसब प्रदान किया।
1611 ई. में हालांकि हांकिन्स को सूरत में व्यापार करने की अनुमति मिल गई। किन्तु पुर्तगालियों के प्रभाव के कारण कैप्टन हॉकिन्स आगरा से बाहर निकाल दिया गया।
1615 ई. में टामस रो को जहांगीर के दरबार में भेजा गया।
जहाँगीर ने टामस रो को एक फरमान जारी कर अंग्रेजों को मुगल साम्राज्य के सभी भागों में कारखाने खोलने का अधिकार प्राप्त हो गया।
1619 ई. तक अंग्रेजों आगरा, अहमदाबाद और भड़ौच में अपने कारखाने स्थापित कर लिये।
Question 20 of 36
20. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस मुगल शासकों ने अमृतसर स्वर्ण मंदिर निर्माण हेतु भूमि अनुदान में दी
Correct
व्याख्या-
अकबर ने सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास से मिलने के लिए स्वयं गोइन्दवाल की यात्रा की थी।
अकबर ने अमरदास की बेटी ‘बीबी भानी’ के नाम कुछ जमीने भी दी थी।
सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ,अकबर के समकालीन था।
अकबर ने रामदास को 500 बीघे जमीन प्रदान की थी।
रामदास ने अमृतसर नामक शहर बसाया था। और इसका नाम रामदासपुर रखा।
सिक्खों के पाँचवे गुरू अर्जुन ने अमृतसर में अमृतसर एवं संतोषसर नामक तालाब निर्मित करवाया ।
गुरू अर्जुन ने अमृतसर में 1589 ई. में हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण करवाया था।
हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) की आधार शिला कादरी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत मियां मीर द्वारा रखी गयी थी।
Incorrect
व्याख्या-
अकबर ने सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास से मिलने के लिए स्वयं गोइन्दवाल की यात्रा की थी।
अकबर ने अमरदास की बेटी ‘बीबी भानी’ के नाम कुछ जमीने भी दी थी।
सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ,अकबर के समकालीन था।
अकबर ने रामदास को 500 बीघे जमीन प्रदान की थी।
रामदास ने अमृतसर नामक शहर बसाया था। और इसका नाम रामदासपुर रखा।
सिक्खों के पाँचवे गुरू अर्जुन ने अमृतसर में अमृतसर एवं संतोषसर नामक तालाब निर्मित करवाया ।
गुरू अर्जुन ने अमृतसर में 1589 ई. में हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण करवाया था।
हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) की आधार शिला कादरी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत मियां मीर द्वारा रखी गयी थी।
Unattempted
व्याख्या-
अकबर ने सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास से मिलने के लिए स्वयं गोइन्दवाल की यात्रा की थी।
अकबर ने अमरदास की बेटी ‘बीबी भानी’ के नाम कुछ जमीने भी दी थी।
सिक्खों के चौथे गुरू रामदास ,अकबर के समकालीन था।
अकबर ने रामदास को 500 बीघे जमीन प्रदान की थी।
रामदास ने अमृतसर नामक शहर बसाया था। और इसका नाम रामदासपुर रखा।
सिक्खों के पाँचवे गुरू अर्जुन ने अमृतसर में अमृतसर एवं संतोषसर नामक तालाब निर्मित करवाया ।
गुरू अर्जुन ने अमृतसर में 1589 ई. में हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण करवाया था।
हरमिंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) की आधार शिला कादरी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत मियां मीर द्वारा रखी गयी थी।
Question 21 of 36
21. Question
1 points
निम्नलिखित में से किसने राम-सीता की आकृतियों से युक्त सिक्के चलायें
Correct
व्याख्या –
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में ‘रामसिय’ शब्द अंकित है।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर–
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब–
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही–
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया–
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली–
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम–
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल–
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार–
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना–
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Incorrect
व्याख्या –
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में ‘रामसिय’ शब्द अंकित है।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर–
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब–
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही–
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया–
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली–
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम–
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल–
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार–
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना–
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Unattempted
व्याख्या –
मुगल शासकों में सर्वप्रथम अकबर को सिक्के चलाने का श्रेय प्राप्त है
अकबर ने दिल्ली में एक शाही – टकसाल का निर्माण कराया और अब्दुस्समद को उसका प्रधान नियुक्त किया।
अबुल फजल के अनुसार – मुगल काल में सोने के सिक्के बनाने की 4टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए 14 टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
मुगल काल में टकसाल के अधिकारी को दरोगा कहा जाता था।
जहाँगीर के कुछ सिक्कों पर उसे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए दिखाया गया है।
अकबर के सिक्कों पर राम-सीता की आकृति तथा सूर्य चंद्रमा की महिमा में वर्णित कुछ पद्य भी मिलते हैं।
अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में ‘रामसिय’ शब्द अंकित है।
अकबर ने असीरगढ विजय की स्मृति में अपने सिक्कों पर बाज की आकृति अंकित करायी।
औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करा दिया उसके कुछ सिक्कों पर मीर-अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित पद्य अंकित करवाया।
मुहर–
यह एक सोने का सिक्का था जिसे अकबर ने अपने शासन काल के आरंभ में चलाया था।इसका मूल्य 9रु. (आइने-अकबरी के अनुसार) था। मुगल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
शंसब–
अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का जो 101 तोले का होता था।जो बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
इलाही–
अकबर द्वारा चलाया गया सोने का गोलाकार सिक्का था। इसका मूल्य 10 रु. के बराबर था।
रुपया–
शुद्ध चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का इसे (शेरशाहद्वारा प्रवर्तित) इसका वजन 175ग्रेन होता था।
जलाली–
चाँदी का वर्गाकार या चौकोर सिक्का। इसे अकबर ने चलाया।
दाम–
अकबर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के 40वें भाग के बराबर होता था।
जीतल–
ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। यह दाम के 25वें भाग के बराबर होता था।इसे फुलूस या पैसा कहा जाता था।
निसार–
जहाँगीर द्वारा चलाया गया ताँबे का सिक्का जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
आना–
दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
Question 22 of 36
22. Question
1 points
पैबाकी से क्या तात्पर्य है
Correct
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर– यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
***पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
मुगलकालीन कृषक वर्ग – मुगलकालीन कृषकों को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
खुदकाश्त – वे किसान जो स्वयं की भूमि पर स्थायी व वंशानुगत कृषि करते थे ।
पाहीकाश्त – वे किसान जो दूसरे गांव में जाकर अस्थायी रूप से बँटाईदार के रूप में कार्य करते थे ।
मुजारियान – वे किसान जो खुदकाश्त किसान की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे ।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर– यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
***पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
मुगलकालीन कृषक वर्ग – मुगलकालीन कृषकों को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
खुदकाश्त – वे किसान जो स्वयं की भूमि पर स्थायी व वंशानुगत कृषि करते थे ।
पाहीकाश्त – वे किसान जो दूसरे गांव में जाकर अस्थायी रूप से बँटाईदार के रूप में कार्य करते थे ।
मुजारियान – वे किसान जो खुदकाश्त किसान की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे ।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर– यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
***पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
मुगलकालीन कृषक वर्ग – मुगलकालीन कृषकों को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
खुदकाश्त – वे किसान जो स्वयं की भूमि पर स्थायी व वंशानुगत कृषि करते थे ।
पाहीकाश्त – वे किसान जो दूसरे गांव में जाकर अस्थायी रूप से बँटाईदार के रूप में कार्य करते थे ।
मुजारियान – वे किसान जो खुदकाश्त किसान की जमीन को किराये पर लेकर उस पर खेती करते थे ।
Question 23 of 36
23. Question
1 points
मासिक अनुपात के आधार पर वेतन की प्रथा किस मुगल सम्राट ने आरम्भ की
Correct
व्याख्या-
शाहजहाँ ने जागीरों की वास्तविक वसूली के आधार पर महीना (Month Scale) जागीरों (शिशमाहा, सीमाहा आदि) की व्यवस्था शुरू की।
मनसबदारी व्यवस्था में अकबर के उत्तराधिकारियों द्वारा कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये।
जहाँगीर के समय में सवार पद में संशोधन हुआ तथा दु-अस्पा, सिह अस्पा की व्यवस्था की गयी।
Incorrect
व्याख्या-
शाहजहाँ ने जागीरों की वास्तविक वसूली के आधार पर महीना (Month Scale) जागीरों (शिशमाहा, सीमाहा आदि) की व्यवस्था शुरू की।
मनसबदारी व्यवस्था में अकबर के उत्तराधिकारियों द्वारा कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये।
जहाँगीर के समय में सवार पद में संशोधन हुआ तथा दु-अस्पा, सिह अस्पा की व्यवस्था की गयी।
Unattempted
व्याख्या-
शाहजहाँ ने जागीरों की वास्तविक वसूली के आधार पर महीना (Month Scale) जागीरों (शिशमाहा, सीमाहा आदि) की व्यवस्था शुरू की।
मनसबदारी व्यवस्था में अकबर के उत्तराधिकारियों द्वारा कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये।
जहाँगीर के समय में सवार पद में संशोधन हुआ तथा दु-अस्पा, सिह अस्पा की व्यवस्था की गयी।
Question 24 of 36
24. Question
1 points
किस शासक के प्रशासन तंत्र में “करोड़ी’ शब्द का प्रयोग भू-राजस्व विभाग के एक अधिकारी के लिये किया जाता है
Correct
व्याख्या-
अकबर ने 1573 में बंगाल, बिहार और गुजरात को छोड़कर समस्त उत्तरभारत में ‘करोड़ी’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की थी।
करोड़ी का मुख्य कार्य एक करोड़ दाम अर्थात् ढाई लाख रुपये भू-राजस्व के रूप में एकत्र करना था।
Incorrect
व्याख्या-
अकबर ने 1573 में बंगाल, बिहार और गुजरात को छोड़कर समस्त उत्तरभारत में ‘करोड़ी’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की थी।
करोड़ी का मुख्य कार्य एक करोड़ दाम अर्थात् ढाई लाख रुपये भू-राजस्व के रूप में एकत्र करना था।
Unattempted
व्याख्या-
अकबर ने 1573 में बंगाल, बिहार और गुजरात को छोड़कर समस्त उत्तरभारत में ‘करोड़ी’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की थी।
करोड़ी का मुख्य कार्य एक करोड़ दाम अर्थात् ढाई लाख रुपये भू-राजस्व के रूप में एकत्र करना था।
Question 25 of 36
25. Question
1 points
शेरशाह के शासनकाल में चाँदी के रुपये एवं ताँबे के दाम में क्या सम्बन्ध था
Correct
व्याख्या –
शेरशाह ने मुद्रा व्यवस्था में कई सुधार किये।
शेरशाह ने सोने, चाँदी एवं ताँबे के सिक्के जारी किये।
चाँदी के रुपये एवं ताँबे के दाम में विनिमय अनुपात 1 : 64 था।
शेरशाह के सिक्कों पर अरबी लेखों के साथ देवनागरी लिपि में सुल्तान का नाम लिखा रहता था।
शेरशाह के सोने के सिक्के अशरफ, चाँदी का सिक्का रुपया एवं ताँबे का सिक्का ‘दाम’ कहलाया |
Incorrect
व्याख्या –
शेरशाह ने मुद्रा व्यवस्था में कई सुधार किये।
शेरशाह ने सोने, चाँदी एवं ताँबे के सिक्के जारी किये।
चाँदी के रुपये एवं ताँबे के दाम में विनिमय अनुपात 1 : 64 था।
शेरशाह के सिक्कों पर अरबी लेखों के साथ देवनागरी लिपि में सुल्तान का नाम लिखा रहता था।
शेरशाह के सोने के सिक्के अशरफ, चाँदी का सिक्का रुपया एवं ताँबे का सिक्का ‘दाम’ कहलाया |
Unattempted
व्याख्या –
शेरशाह ने मुद्रा व्यवस्था में कई सुधार किये।
शेरशाह ने सोने, चाँदी एवं ताँबे के सिक्के जारी किये।
चाँदी के रुपये एवं ताँबे के दाम में विनिमय अनुपात 1 : 64 था।
शेरशाह के सिक्कों पर अरबी लेखों के साथ देवनागरी लिपि में सुल्तान का नाम लिखा रहता था।
शेरशाह के सोने के सिक्के अशरफ, चाँदी का सिक्का रुपया एवं ताँबे का सिक्का ‘दाम’ कहलाया |
Question 26 of 36
26. Question
1 points
मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था
Correct
व्याख्या –
बयाना -मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र था
जहाँगीर के काल में भारत आये डच यात्री पेल्सार्ट ने नील उत्पादन का वर्णन किया है।
पेल्सार्ट ने विशेषकर बयाना में नील के उत्पादन के बारे में लिखा है।
मुगलकाल में बयाना (आगरा) के अतिरिक्त सरखेज (गुजरात) भी नील उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
Incorrect
व्याख्या –
बयाना -मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र था
जहाँगीर के काल में भारत आये डच यात्री पेल्सार्ट ने नील उत्पादन का वर्णन किया है।
पेल्सार्ट ने विशेषकर बयाना में नील के उत्पादन के बारे में लिखा है।
मुगलकाल में बयाना (आगरा) के अतिरिक्त सरखेज (गुजरात) भी नील उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
Unattempted
व्याख्या –
बयाना -मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र था
जहाँगीर के काल में भारत आये डच यात्री पेल्सार्ट ने नील उत्पादन का वर्णन किया है।
पेल्सार्ट ने विशेषकर बयाना में नील के उत्पादन के बारे में लिखा है।
मुगलकाल में बयाना (आगरा) के अतिरिक्त सरखेज (गुजरात) भी नील उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
Question 27 of 36
27. Question
1 points
किसके शासनकाल में भारत में तम्बाकू की खेती प्रारम्भ
Correct
व्याख्या –
भारत में तम्बाकू लाने का श्रेय पुर्तगालियों को है।
अकबर और उसके अभिजातों ने पहली बार 1604 में तंबाकू देखा।
भारत में तंबाकू की खेती पुर्तगालियों द्वारा 1605 में शुरू की गई थी।
भारत में तम्बाकू की खेती जहाँगीर के काल में अर्थात् 1605-06 में प्रारम्भ हुयी।
जहाँगीर ने ही सर्वप्रथम तम्बाकू पर प्रतिबंध भी लगाया।
प्रारंभ में तंबाकू गुजरात के कैरा और मेहसाणा जिलों में उगाया जाता था और बाद में यह देश के अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
1787 में हावड़ा में कलकत्ता बॉटनिकल गार्डन की स्थापना के साथ भारतीय तंबाकू को बेहतर बनाने का प्रयास शुरू हो गया है।
Incorrect
व्याख्या –
भारत में तम्बाकू लाने का श्रेय पुर्तगालियों को है।
अकबर और उसके अभिजातों ने पहली बार 1604 में तंबाकू देखा।
भारत में तंबाकू की खेती पुर्तगालियों द्वारा 1605 में शुरू की गई थी।
भारत में तम्बाकू की खेती जहाँगीर के काल में अर्थात् 1605-06 में प्रारम्भ हुयी।
जहाँगीर ने ही सर्वप्रथम तम्बाकू पर प्रतिबंध भी लगाया।
प्रारंभ में तंबाकू गुजरात के कैरा और मेहसाणा जिलों में उगाया जाता था और बाद में यह देश के अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
1787 में हावड़ा में कलकत्ता बॉटनिकल गार्डन की स्थापना के साथ भारतीय तंबाकू को बेहतर बनाने का प्रयास शुरू हो गया है।
Unattempted
व्याख्या –
भारत में तम्बाकू लाने का श्रेय पुर्तगालियों को है।
अकबर और उसके अभिजातों ने पहली बार 1604 में तंबाकू देखा।
भारत में तंबाकू की खेती पुर्तगालियों द्वारा 1605 में शुरू की गई थी।
भारत में तम्बाकू की खेती जहाँगीर के काल में अर्थात् 1605-06 में प्रारम्भ हुयी।
जहाँगीर ने ही सर्वप्रथम तम्बाकू पर प्रतिबंध भी लगाया।
प्रारंभ में तंबाकू गुजरात के कैरा और मेहसाणा जिलों में उगाया जाता था और बाद में यह देश के अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
1787 में हावड़ा में कलकत्ता बॉटनिकल गार्डन की स्थापना के साथ भारतीय तंबाकू को बेहतर बनाने का प्रयास शुरू हो गया है।
Question 28 of 36
28. Question
1 points
मुगल भारत में अंग्रेजी व्यापार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु क्या थी?
Correct
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Incorrect
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Unattempted
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती और रेशमी वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Question 29 of 36
29. Question
1 points
मुगल साम्राज्य में कारखानों के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :
वे उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
वे विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
वे कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
वे सामान्य जन की आवश्यकताओं की आपूर्ति करते थे।
वे बिना किसी राजकीय सहायता के संचालित होते थे।
निम्नांकित उत्तर संकेत की सहायता से सही कथनों को इंगित कीजिये :
Correct
व्याख्या-
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता–
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
Incorrect
व्याख्या-
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता–
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
Unattempted
व्याख्या-
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता–
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
Question 30 of 36
30. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन सी जागीर स्थानांतरित नहीं की जा सकती थी
Correct
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :-
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Question 31 of 36
31. Question
1 points
मुगल कारखाने में क्या असत्य है
Correct
व्याख्या –
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता-
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
इन्हें शासकों का संरक्षण प्राप्त था
यहाँ सस्ते दर पर वस्तुओं का निर्माण होता था
मुत्सर्फि नामक सरकारी अधिकारी कारखाने की देखभाल करता था .
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
सल्तनत काल में भी कारखाने थे जिनके उच्च श्रेणी के ‘मलिक के अधीन रखा जाता था जिन्हें मुत्सर्फि’ कहा जाता था।
मुग़ल काल में कारखानों के अधिकारी को ‘मीर-ए-सामान’ कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्या –
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता-
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
इन्हें शासकों का संरक्षण प्राप्त था
यहाँ सस्ते दर पर वस्तुओं का निर्माण होता था
मुत्सर्फि नामक सरकारी अधिकारी कारखाने की देखभाल करता था .
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
सल्तनत काल में भी कारखाने थे जिनके उच्च श्रेणी के ‘मलिक के अधीन रखा जाता था जिन्हें मुत्सर्फि’ कहा जाता था।
मुग़ल काल में कारखानों के अधिकारी को ‘मीर-ए-सामान’ कहा जाता था।
Unattempted
व्याख्या –
मुगल काल में शाही कारखानो की प्रमुख विशेषता-
कारखाने उचित मूल्य पर राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
कारखाने विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन देते थे।
कारखाने राजकीय सहायता से संचालित किये जाते थे
कारखाने राजकीय जरूरतों के अनुसार वस्तुओं का निर्माण कर सके।
कारखाने कारीगरों को बेहतर नमूने प्रदान करते थे।
इन्हें शासकों का संरक्षण प्राप्त था
यहाँ सस्ते दर पर वस्तुओं का निर्माण होता था
मुत्सर्फि नामक सरकारी अधिकारी कारखाने की देखभाल करता था .
कारखाने में बनी चीजों का इस्तेमाल राजकीय घरेलू आवश्यकताओं एवं दरबार में होता था।
सल्तनत काल में भी कारखाने थे जिनके उच्च श्रेणी के ‘मलिक के अधीन रखा जाता था जिन्हें मुत्सर्फि’ कहा जाता था।
मुग़ल काल में कारखानों के अधिकारी को ‘मीर-ए-सामान’ कहा जाता था।
Question 32 of 36
32. Question
1 points
मुगलकाल में राजस्व प्रशासन से सम्बद्ध एक पदाधिकारी होता था ‘मुस्वजिर’. इसका प्रमुख दायित्व था
Correct
व्याख्या-
‘मुस्वजिर का कार्य – मुगल काल में राजस्व प्रशासन से सम्बद्ध में लगान वसूली कार्य कारना
Incorrect
व्याख्या-
‘मुस्वजिर का कार्य – मुगल काल में राजस्व प्रशासन से सम्बद्ध में लगान वसूली कार्य कारना
Unattempted
व्याख्या-
‘मुस्वजिर का कार्य – मुगल काल में राजस्व प्रशासन से सम्बद्ध में लगान वसूली कार्य कारना
Question 33 of 36
33. Question
1 points
मुगलकाल में कौन सा अधिकारी सीधे कृषकों से सम्बन्ध रख भू-राजस्व संग्रह करता था
Correct
व्याख्या –
मुगलकालीन महत्त्वपूर्ण उच्चाधिकारी निम्नलिखित थे-
मीर आतिश– यह शाही तोपखाने का प्रधान था यह मंत्रिपद नहीं होता था।इसकी सिफारिश पर महत्त्वपूर्ण नगरों में केन्द्र द्वारा कोतवाल की नियुक्ति होती थी।
साहिब-तौजीह– यह सैनिक लेखाधिकारी होता था।
दीवान-ए-तन – यह वेतन और जागीरों से संबंधित अधिकारी होता था।
दरोगा-ए-डाक चौकी – गुप्तचर विभाग होता था।
मीर-ए-अर्ज– यह बादशाह के पास भेजे जाने वाले आवेदन पत्रों का प्रभारी होता था।
मीर-ए-बहर – यह जल – सेना का प्रधान होता था। इसका प्रमुख कार्य शाही नौकाओं की देखभाल करना था।
मीर-ए-तोजक(मीर-ए-तुजुक) – यह धर्मानुष्ठान का अधिकारी होता था। इसका कार्य धार्मिक उत्सवों आदि का प्रबंध करना होता था।
मीर-ए-बर्र– यह वन-विभाग का अधीक्षक था।
नाजिर-ए-बयूतात – यह शाही कारखानों का अधीक्षक होता था।
वाकिया-नवीस – यह समाचार लेखक होता था। जो राज्य के सारे समाचारों से केन्द्र को अवगत कराता था।
खुफिया-नवीस – यह गुप्त पत्र-लेखक होते थे। जो गुप्त रूप से केन्द्र को महत्त्वपूर्ण खबरें उपलब्ध कराते थे।
परवानची – ऐसी आज्ञाओं को लिखने वाला, जिस पर सम्राट के मुहर की आवश्यकता नहीं पङती थी।
हरकारा – ये जासूस और संदेशवाहक दोनों होते थे।
स्वानिध-निगार – ये समाचार लेखक होते थे।
वितिक्ची – अकबर ने अपने शासन काल के 19वें वर्ष दरबार की सभी घटनाओं एवं खबरों को लिखने के लिए इनकी नियुक्ति की। इसके अतिरिक्त यह प्रांतों की भूमि एवं लगान संबंधी कागजात तैयार करता था। यह अमलगुजार के अधीन कार्य करता था।
मुशरिफ- यह राज्य द्वारा तैयार आय- व्यय के लेखा-जोखा की जांच करता था।
मुस्तौफी( लेखा परीक्षक) – यह मुशरिफ द्वारा तैयार आय-व्यय के लेखा- जोखा की जांच करता था।
अमिल/अमलगुजार –
अकबर ने अपने शासन के 18वें वर्ष गुजरात,बिहार एवं बंगाल को छोङकर संपूर्ण उत्तर भारत में एक करोङ दाम आय वाले परगनों की मालगुजारी वसूलने के लिए नियुक्त किया, जिसे जनसाधारण में करोङी कहा जाता था।
मुगल प्रशासन में आमिल या अमलगुजार परगने का वित्त अधिकारी होता था। किसानों से लगान वसूल करना उसका मुख्य कर्तव्य था
मुसद्दी-यह बंदरगाहों के प्रशासन की देखभाल करता था।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलकालीन महत्त्वपूर्ण उच्चाधिकारी निम्नलिखित थे-
मीर आतिश– यह शाही तोपखाने का प्रधान था यह मंत्रिपद नहीं होता था।इसकी सिफारिश पर महत्त्वपूर्ण नगरों में केन्द्र द्वारा कोतवाल की नियुक्ति होती थी।
साहिब-तौजीह– यह सैनिक लेखाधिकारी होता था।
दीवान-ए-तन – यह वेतन और जागीरों से संबंधित अधिकारी होता था।
दरोगा-ए-डाक चौकी – गुप्तचर विभाग होता था।
मीर-ए-अर्ज– यह बादशाह के पास भेजे जाने वाले आवेदन पत्रों का प्रभारी होता था।
मीर-ए-बहर – यह जल – सेना का प्रधान होता था। इसका प्रमुख कार्य शाही नौकाओं की देखभाल करना था।
मीर-ए-तोजक(मीर-ए-तुजुक) – यह धर्मानुष्ठान का अधिकारी होता था। इसका कार्य धार्मिक उत्सवों आदि का प्रबंध करना होता था।
मीर-ए-बर्र– यह वन-विभाग का अधीक्षक था।
नाजिर-ए-बयूतात – यह शाही कारखानों का अधीक्षक होता था।
वाकिया-नवीस – यह समाचार लेखक होता था। जो राज्य के सारे समाचारों से केन्द्र को अवगत कराता था।
खुफिया-नवीस – यह गुप्त पत्र-लेखक होते थे। जो गुप्त रूप से केन्द्र को महत्त्वपूर्ण खबरें उपलब्ध कराते थे।
परवानची – ऐसी आज्ञाओं को लिखने वाला, जिस पर सम्राट के मुहर की आवश्यकता नहीं पङती थी।
हरकारा – ये जासूस और संदेशवाहक दोनों होते थे।
स्वानिध-निगार – ये समाचार लेखक होते थे।
वितिक्ची – अकबर ने अपने शासन काल के 19वें वर्ष दरबार की सभी घटनाओं एवं खबरों को लिखने के लिए इनकी नियुक्ति की। इसके अतिरिक्त यह प्रांतों की भूमि एवं लगान संबंधी कागजात तैयार करता था। यह अमलगुजार के अधीन कार्य करता था।
मुशरिफ- यह राज्य द्वारा तैयार आय- व्यय के लेखा-जोखा की जांच करता था।
मुस्तौफी( लेखा परीक्षक) – यह मुशरिफ द्वारा तैयार आय-व्यय के लेखा- जोखा की जांच करता था।
अमिल/अमलगुजार –
अकबर ने अपने शासन के 18वें वर्ष गुजरात,बिहार एवं बंगाल को छोङकर संपूर्ण उत्तर भारत में एक करोङ दाम आय वाले परगनों की मालगुजारी वसूलने के लिए नियुक्त किया, जिसे जनसाधारण में करोङी कहा जाता था।
मुगल प्रशासन में आमिल या अमलगुजार परगने का वित्त अधिकारी होता था। किसानों से लगान वसूल करना उसका मुख्य कर्तव्य था
मुसद्दी-यह बंदरगाहों के प्रशासन की देखभाल करता था।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलकालीन महत्त्वपूर्ण उच्चाधिकारी निम्नलिखित थे-
मीर आतिश– यह शाही तोपखाने का प्रधान था यह मंत्रिपद नहीं होता था।इसकी सिफारिश पर महत्त्वपूर्ण नगरों में केन्द्र द्वारा कोतवाल की नियुक्ति होती थी।
साहिब-तौजीह– यह सैनिक लेखाधिकारी होता था।
दीवान-ए-तन – यह वेतन और जागीरों से संबंधित अधिकारी होता था।
दरोगा-ए-डाक चौकी – गुप्तचर विभाग होता था।
मीर-ए-अर्ज– यह बादशाह के पास भेजे जाने वाले आवेदन पत्रों का प्रभारी होता था।
मीर-ए-बहर – यह जल – सेना का प्रधान होता था। इसका प्रमुख कार्य शाही नौकाओं की देखभाल करना था।
मीर-ए-तोजक(मीर-ए-तुजुक) – यह धर्मानुष्ठान का अधिकारी होता था। इसका कार्य धार्मिक उत्सवों आदि का प्रबंध करना होता था।
मीर-ए-बर्र– यह वन-विभाग का अधीक्षक था।
नाजिर-ए-बयूतात – यह शाही कारखानों का अधीक्षक होता था।
वाकिया-नवीस – यह समाचार लेखक होता था। जो राज्य के सारे समाचारों से केन्द्र को अवगत कराता था।
खुफिया-नवीस – यह गुप्त पत्र-लेखक होते थे। जो गुप्त रूप से केन्द्र को महत्त्वपूर्ण खबरें उपलब्ध कराते थे।
परवानची – ऐसी आज्ञाओं को लिखने वाला, जिस पर सम्राट के मुहर की आवश्यकता नहीं पङती थी।
हरकारा – ये जासूस और संदेशवाहक दोनों होते थे।
स्वानिध-निगार – ये समाचार लेखक होते थे।
वितिक्ची – अकबर ने अपने शासन काल के 19वें वर्ष दरबार की सभी घटनाओं एवं खबरों को लिखने के लिए इनकी नियुक्ति की। इसके अतिरिक्त यह प्रांतों की भूमि एवं लगान संबंधी कागजात तैयार करता था। यह अमलगुजार के अधीन कार्य करता था।
मुशरिफ- यह राज्य द्वारा तैयार आय- व्यय के लेखा-जोखा की जांच करता था।
मुस्तौफी( लेखा परीक्षक) – यह मुशरिफ द्वारा तैयार आय-व्यय के लेखा- जोखा की जांच करता था।
अमिल/अमलगुजार –
अकबर ने अपने शासन के 18वें वर्ष गुजरात,बिहार एवं बंगाल को छोङकर संपूर्ण उत्तर भारत में एक करोङ दाम आय वाले परगनों की मालगुजारी वसूलने के लिए नियुक्त किया, जिसे जनसाधारण में करोङी कहा जाता था।
मुगल प्रशासन में आमिल या अमलगुजार परगने का वित्त अधिकारी होता था। किसानों से लगान वसूल करना उसका मुख्य कर्तव्य था
मुसद्दी-यह बंदरगाहों के प्रशासन की देखभाल करता था।
Question 34 of 36
34. Question
1 points
सूची । को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए
सूची। सूची ॥
A जिहत 1. किसी क्षेत्र अथवा राजस्व का कुल राजस्व
B दस्तूर 2. किसान से किया गया कर का दावा
C.जमा 3. भूमि के रूप में दिया जाने वाला अनुदान
D मदद-ए-माश 4. सामूहिक रूप से ग्रामीण कर
Correct
व्याख्या-
‘मदद-ए-माश’-
‘मदद-ए-माश’ भूमि को ‘सयूरगल’ और ‘मिल्क’ भूमि के रूप में जाना जाता था।
यह भूमिदान स्थायी एवं वंशानुगत होता था।
यह भूमिदान सद्र-उस सुदूर द्वारा धार्मिक व्यक्तियों, विद्वानों, गरीबों एवं विधवाओं को जीविकोपार्जन हेतु दिया जाता था।
यह भूमि स्थानांतरित नहीं होती थी।
‘जमा–
‘जमा’ किसी क्षेत्र का कुल राजस्व होता था।
‘हल-ए-हासिल-
वास्तविक रूप से प्राप्त होने वाली आय को कहा जाता था।
दस्तूरी-
दस्तूरी सामूहिक रूप से ग्रामीण कर था जो मुकद्दम को दिया था।
मालगुजारी का 2.5 प्रतिश ‘दस्तूरी’ मिलती थी। ‘
‘जिहत‘-
किसानों से किया गया कर का दावा
*****मुकददम ही गाँव का प्रमुख होता था। किसानों से लगान वसूल करता था।
Incorrect
व्याख्या-
‘मदद-ए-माश’-
‘मदद-ए-माश’ भूमि को ‘सयूरगल’ और ‘मिल्क’ भूमि के रूप में जाना जाता था।
यह भूमिदान स्थायी एवं वंशानुगत होता था।
यह भूमिदान सद्र-उस सुदूर द्वारा धार्मिक व्यक्तियों, विद्वानों, गरीबों एवं विधवाओं को जीविकोपार्जन हेतु दिया जाता था।
यह भूमि स्थानांतरित नहीं होती थी।
‘जमा–
‘जमा’ किसी क्षेत्र का कुल राजस्व होता था।
‘हल-ए-हासिल-
वास्तविक रूप से प्राप्त होने वाली आय को कहा जाता था।
दस्तूरी-
दस्तूरी सामूहिक रूप से ग्रामीण कर था जो मुकद्दम को दिया था।
मालगुजारी का 2.5 प्रतिश ‘दस्तूरी’ मिलती थी। ‘
‘जिहत‘-
किसानों से किया गया कर का दावा
*****मुकददम ही गाँव का प्रमुख होता था। किसानों से लगान वसूल करता था।
Unattempted
व्याख्या-
‘मदद-ए-माश’-
‘मदद-ए-माश’ भूमि को ‘सयूरगल’ और ‘मिल्क’ भूमि के रूप में जाना जाता था।
यह भूमिदान स्थायी एवं वंशानुगत होता था।
यह भूमिदान सद्र-उस सुदूर द्वारा धार्मिक व्यक्तियों, विद्वानों, गरीबों एवं विधवाओं को जीविकोपार्जन हेतु दिया जाता था।
यह भूमि स्थानांतरित नहीं होती थी।
‘जमा–
‘जमा’ किसी क्षेत्र का कुल राजस्व होता था।
‘हल-ए-हासिल-
वास्तविक रूप से प्राप्त होने वाली आय को कहा जाता था।
दस्तूरी-
दस्तूरी सामूहिक रूप से ग्रामीण कर था जो मुकद्दम को दिया था।
मालगुजारी का 2.5 प्रतिश ‘दस्तूरी’ मिलती थी। ‘
‘जिहत‘-
किसानों से किया गया कर का दावा
*****मुकददम ही गाँव का प्रमुख होता था। किसानों से लगान वसूल करता था।
Question 35 of 36
35. Question
1 points
पैबाकी क्या थी
Correct
व्याख्या .
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :–
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Incorrect
व्याख्या .
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :–
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Unattempted
व्याख्या .
मुगलकालीन जागीरो के प्रकार :–
वतनजागीर – यह मनसबदारों या अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गई जागीर होती थी जो अहस्तान्तरित होती थी ।
अलमतगा जागीर – विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से की जाती थी । इसे जहांगीर द्वारा प्रारंभ किया गया था ।
खालसा – केंद्रीय सरकार के अधीन भूमि जिसका प्रबंध व आय केंद्र सरकार करती थी
पैबाकी (पायबाकी) उस जागीर वाली भूमि को कहा जाता था, जिसे पुराने जागीरदार से दंड स्वरूप छीनकर नये मनसबदार को आवंटित करने के लिए सुरक्षित रख ली जाती थी और तब इसकी व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती थी और आय शाही कोष में जमा की जाती थी।
Question 36 of 36
36. Question
1 points
मुगलकाल में अंग्रेज व्यापारी निम्न में से किस वस्तु का भारत में आयात करते थे?
Correct
व्याख्या –
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
मुगलकाल में अंग्रेज व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्र का भारत में आयात करते थे
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Incorrect
व्याख्या –
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
मुगलकाल में अंग्रेज व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्र का भारत में आयात करते थे
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।
Unattempted
व्याख्या –
भारत के समस्त उद्योगों में पहला स्थान सूती वस्त्र का था वस्त्र उद्योग प्रारम्भ से ही भारत का प्रमुख उद्योग रहा है।
मध्यकालीन भारत में सर्वप्रमुख कपड़ा उद्योग था।
मध्यकालीन समय कपड़ा का सबसे बड़ा उद्योग था
मुगल काल में सूती वस्त्र का निर्यात सर्वाधिक किया जाता था।
मुगलकाल में अंग्रेज व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्र का भारत में आयात करते थे
यूरोपीय सभी प्रकार के सूती वस्त्रों के लिए ‘कैलिको’ शब्द का प्रयोग करते थे।
निर्यात में सूती वस्त्र का महत्वपूर्ण स्थान था जो विदेशी मुद्रा प्राप्ति का प्रमुख साधन था।
अबुल फजल बताता है कि काश्मीर में बड़ी मात्रा में रेशम के कपड़े बनाये जाते थे।
पटना और अहमदाबाद भी रेशम वस्त्र के लिए जाने जाते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में बंगाल में रेशम का सबसे अधिक उत्पादन हुआ जिसे विदेश और भारत के अन्य हिस्सों में निर्यात किया गया।
सूती वस्त्र के मुख्य केन्द्र बंगाल, गुजरात, बनारस, उड़ीसा और मालवा में थे।