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Congratulations!!!" मुगलकालीन प्रशासन "
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मुगलकालीन प्रशासन
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Question 1 of 32
1. Question
1 points
मुगल शासन में काजी-उल-कुजात था
Correct
व्याख्या-
मुगल प्रशासन में काजी-उल-कुजात अर्थात मख्य काजी सर्वोच्च न्यायाधीश होता था
वह उचित न्याय और कशल शासन के प्रति उत्तरदायी था।
काजी-उल-कुजात केवल धार्मिक मामलों का न्यायाधीश होता था
काजी-उल-कुजात अपना फैसला इस्लामी कानून के अनुसार करता था।
Incorrect
व्याख्या-
मुगल प्रशासन में काजी-उल-कुजात अर्थात मख्य काजी सर्वोच्च न्यायाधीश होता था
वह उचित न्याय और कशल शासन के प्रति उत्तरदायी था।
काजी-उल-कुजात केवल धार्मिक मामलों का न्यायाधीश होता था
काजी-उल-कुजात अपना फैसला इस्लामी कानून के अनुसार करता था।
Unattempted
व्याख्या-
मुगल प्रशासन में काजी-उल-कुजात अर्थात मख्य काजी सर्वोच्च न्यायाधीश होता था
वह उचित न्याय और कशल शासन के प्रति उत्तरदायी था।
काजी-उल-कुजात केवल धार्मिक मामलों का न्यायाधीश होता था
काजी-उल-कुजात अपना फैसला इस्लामी कानून के अनुसार करता था।
Question 2 of 32
2. Question
1 points
कथन (A): हुमायूं से लेकर जहांगीर तक मुगल बादशाह नूर अथवा प्रकाश से अतिशय प्रभावित थे।
कारण (R); वे राजत्व को ईश्वर से प्रकीर्ण राजा को प्राप्त किरण मानते थे।
उपर्युक्त दोनों वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा एक सही है?
Correct
व्याख्या –
हुमायूं से लेकर जहांगीर तक मुगल बादशाह नूर अथवा प्रकाश से अतिशय प्रभावित थे।
अबुल फजल ने राजत्व को ईश्वर से प्रकीर्ण प्रकाश माना है।
जहांगीर ने तुजुके जहांगीरी में राजत्व को ईश्वर की इच्छा बताया।
शाहजहां और औरंगजेब ने स्वयं को ईश्वर के सामान कहकर संबोधित किया है।
हुमायूं से लेकर जहांगीर ही नहीं अपितु शाहजहाँ और औरंगजेब भी ईश्वर के प्रकाश से प्रभावित था।
Incorrect
व्याख्या –
हुमायूं से लेकर जहांगीर तक मुगल बादशाह नूर अथवा प्रकाश से अतिशय प्रभावित थे।
अबुल फजल ने राजत्व को ईश्वर से प्रकीर्ण प्रकाश माना है।
जहांगीर ने तुजुके जहांगीरी में राजत्व को ईश्वर की इच्छा बताया।
शाहजहां और औरंगजेब ने स्वयं को ईश्वर के सामान कहकर संबोधित किया है।
हुमायूं से लेकर जहांगीर ही नहीं अपितु शाहजहाँ और औरंगजेब भी ईश्वर के प्रकाश से प्रभावित था।
Unattempted
व्याख्या –
हुमायूं से लेकर जहांगीर तक मुगल बादशाह नूर अथवा प्रकाश से अतिशय प्रभावित थे।
अबुल फजल ने राजत्व को ईश्वर से प्रकीर्ण प्रकाश माना है।
जहांगीर ने तुजुके जहांगीरी में राजत्व को ईश्वर की इच्छा बताया।
शाहजहां और औरंगजेब ने स्वयं को ईश्वर के सामान कहकर संबोधित किया है।
हुमायूं से लेकर जहांगीर ही नहीं अपितु शाहजहाँ और औरंगजेब भी ईश्वर के प्रकाश से प्रभावित था।
Question 3 of 32
3. Question
1 points
मुगल साम्राज्य का प्रान्तों में विभाजन किसने प्रथम बार किया था?
Correct
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
Incorrect
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
Unattempted
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
Question 4 of 32
4. Question
1 points
किस मुगल सम्राट ने ‘दीवान-ए-वजीरात-ए-कुल’ नामक नवीन पद का सृजन किया था
Correct
व्याख्या-
अकबर के प्रारम्भिक वर्षों में वकील के रूप में बैरम खाँ संरक्षक के रूप में कार्य करता था।
बैरम खां के पतन के बाद अकबर ने वकील का पद तो समाप्त नहीं किया किन्तु वकील के महत्व को कम करने के लिये ‘दीवान-ए वजीरात-ए-कुल एक नये पद की स्थापना की।
Incorrect
व्याख्या-
अकबर के प्रारम्भिक वर्षों में वकील के रूप में बैरम खाँ संरक्षक के रूप में कार्य करता था।
बैरम खां के पतन के बाद अकबर ने वकील का पद तो समाप्त नहीं किया किन्तु वकील के महत्व को कम करने के लिये ‘दीवान-ए वजीरात-ए-कुल एक नये पद की स्थापना की।
Unattempted
व्याख्या-
अकबर के प्रारम्भिक वर्षों में वकील के रूप में बैरम खाँ संरक्षक के रूप में कार्य करता था।
बैरम खां के पतन के बाद अकबर ने वकील का पद तो समाप्त नहीं किया किन्तु वकील के महत्व को कम करने के लिये ‘दीवान-ए वजीरात-ए-कुल एक नये पद की स्थापना की।
Question 5 of 32
5. Question
1 points
औरंगजेब के शासनकाल में प्रान्तों की संख्या कितनी थी?
Correct
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
Incorrect
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
Unattempted
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
Question 6 of 32
6. Question
1 points
निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए:
कथन (A) : औरंगजेब ने सिक्कों में कलमा लिखना प्रतिबंधित कर दिया।
कारण (R) : बाजार में चाँदी की कमी हो गयी थी
Correct
व्याख्या.
औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था।
औरंगजेब ने अपने सिक्कों पर कलमा लिखवाना प्रतिबंधित कर दिया था।
यद्यपि मुगल काल के उत्तरार्द्ध चाँदी की कमी हो गई थी किन्तु इसे बादशाह द्वारा सिक्कों पर कलमा लिखने को प्रतिबंधित करने के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।
बादशाह ने इस्लाम की शुद्धता को दृष्टिगत करते हुए सिक्कों पर कलमा लिखना प्रतिबंधित कर दिया।।
Incorrect
व्याख्या.
औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था।
औरंगजेब ने अपने सिक्कों पर कलमा लिखवाना प्रतिबंधित कर दिया था।
यद्यपि मुगल काल के उत्तरार्द्ध चाँदी की कमी हो गई थी किन्तु इसे बादशाह द्वारा सिक्कों पर कलमा लिखने को प्रतिबंधित करने के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।
बादशाह ने इस्लाम की शुद्धता को दृष्टिगत करते हुए सिक्कों पर कलमा लिखना प्रतिबंधित कर दिया।।
Unattempted
व्याख्या.
औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था।
औरंगजेब ने अपने सिक्कों पर कलमा लिखवाना प्रतिबंधित कर दिया था।
यद्यपि मुगल काल के उत्तरार्द्ध चाँदी की कमी हो गई थी किन्तु इसे बादशाह द्वारा सिक्कों पर कलमा लिखने को प्रतिबंधित करने के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।
बादशाह ने इस्लाम की शुद्धता को दृष्टिगत करते हुए सिक्कों पर कलमा लिखना प्रतिबंधित कर दिया।।
Question 7 of 32
7. Question
1 points
मुगल काल में मुकद्दम किस स्तर पर अधिकारी था?
Correct
व्याख्या –
प्रांतीय प्रशासन-
प्रशासन
विभाजन
प्रमुख/सर्वोच्च अधिकारी
सूबे/प्रांत
मुगल साम्राज्य सूबों में बंटा हुआ था।
सिपहसालार या सुबेदार
सरकार/जिले
सूबा जिलों में विभाजित था।
फौजदार
परगना/महाल
सरकार परगनों में विभाजित था
शिकदार
गांव/ग्राम
परगना, गांवों से मिलकर बनता था
मुकद्दम, चौधरी या खुत
1. सूबे/प्रांत का प्रशासन
अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य को 12 सूबों में विभाजित किया था। अंतिम समय में दक्षिण भारत के बरार, खानदेश एवं अहमदनगर को जीत कर सूबों में शामिल कर दिया अतः कुल सूबों की संख्या 15 हो गयी।
शाहजहां ने कश्मीर, थट्टा और ओडीसा को स्वतंत्र सूबा बना दिया अतः शाहजहां के काल में सूबों की संख्या 18 हो गयी।
औरंगजेब के बीजापुर एवं गोलकुण्डा को जीतकर साम्राज्य में मिलाने पर सूबों की संख्या 20 हो गयी थी।
सूबे के अधिकारी-
सिपहसालार/सूबेदार/गवर्नर: यह सूबे का प्रमुख अधिकारी होता था। इसे सूबे के सम्पूर्ण सैनिक एवं असैनिक अधिकार प्राप्त थे। मुगल काल में सुबेदारों को किसी भी राज्य से संधियां तथा सरदारों को मनसब प्रदान करने का अधिकार नहीं था।
अपवाद
गुजरात के सूबेदार टोडरमल को राजपूतों से संधियां एवं मनसब प्रदान करने का अधिकार दिया गया था।
प्रांतीय दीवान: इस पद का सृजन अकबर ने सूबेदारों की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए किया था। यह सूबे का वित्त अधिकारी एवं राजस्व प्रमुख था जबकि सूबेदार कार्यकारिणी प्रमुख था। दीवान का कार्य भू-राजस्व व अन्य करों की वसूली करना, आय-व्यय का हिसाब रखना, सूबे की आर्थिक स्थिति की सूचना केन्द्रीय सरकार को देना था। सूबेदार व दीवान एक दूसरे पर नियंत्रण रखते थे।
बख्शी: बख्शी की नियुक्ति केन्द्रीय मीर बख्शी के अनुरोध पर शाही दरबार द्वारा की जाती थी। बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
मीरबख्शी एवं बख्शी में अंतर – प्रांतीय बख्शी सेना को वेतन वितरण का कार्य भी करता था जबकि मीर बख्शी सेना का वेतनाधिकारी नहीं होता था। केन्द्र में वेतन वितरण का कार्य दीवान-ए-तन करता था।
प्रांतीय सद्र/मीर-ए-अदल: सद्र की दृष्टि से यह प्रजा के नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों के पालन की व्यवस्था करता था। एवं काजी की दृष्टि से न्याय करता था।
कोतवाल: सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरों में कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सरकार (जिले) का प्रशासन-
मुगल काल में सरकार (जिले) में फौजदार, आमिल, कोतवाल एवं काजी इत्यादि महत्वपूर्ण अधिकारी होते थे।
फौजदार: यह जिले का मुख्य प्रशासक होता था। इसका कार्य जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखना तथ चोर-लुटेरों से जनता की रक्षा करना था। शेरशाह के समय यह मुंशिफ-ए-मुंशिफान कहलाता था। कालान्तर में फौजदार को न्यायिक अधिकार भी दिए गए तथा बाद में यह पद वंशानुगत हो गया।
आमिल/अमलगुजार: यह जिले का वित्त अधिकारी होता था इसका कार्य लगान वसूल करना तथा कृषि व किसानों की देखभाल करना था।
वितिक्ची: यह लिपिक (क्लर्क) होता था जो भूमि व राजस्व संबंधी कागज तैयार करता था।
कोतवाल: नगर में शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना। स्वच्छता व सफाई कार्य एवं न्यायिक कार्य भी करता था।
खजानदार: यह जिले का खजांची होता था।
काजी-ए-सरकार: यह न्यायिक कार्य करता था। औरंगजेब काल में जजिया एवं जकात करों की वसूली भी करता था।
परगना एवं ग्राम प्रशासन-
शिकदार: परगने का प्रमुख अधिकारी। मुख्य कार्य परगने में शांति स्थापित करना।
आमिल: परगने का वित्त अधिकारी। कार्य किसानों से लगान वसूल करना।
कानूनगो: परगने के पटवारियों का प्रधान।
ग्राम प्रशासन
मुगल शासक गांव को एक स्वायत्त संस्था मानते थे जिसके प्रशासन का उत्तरदायित्व मुगलों के अधिकारियों को नहीं दिया जाता था। खुद ग्राम पंचायतें ही अपने गांव की सुरक्षा-सफाई एवं शिक्षा की देखभाल करती थी।
मुकद्दम/चौधरी: यह गांव का ग्राम प्रधान होता था।
Incorrect
व्याख्या –
प्रांतीय प्रशासन-
प्रशासन
विभाजन
प्रमुख/सर्वोच्च अधिकारी
सूबे/प्रांत
मुगल साम्राज्य सूबों में बंटा हुआ था।
सिपहसालार या सुबेदार
सरकार/जिले
सूबा जिलों में विभाजित था।
फौजदार
परगना/महाल
सरकार परगनों में विभाजित था
शिकदार
गांव/ग्राम
परगना, गांवों से मिलकर बनता था
मुकद्दम, चौधरी या खुत
1. सूबे/प्रांत का प्रशासन
अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य को 12 सूबों में विभाजित किया था। अंतिम समय में दक्षिण भारत के बरार, खानदेश एवं अहमदनगर को जीत कर सूबों में शामिल कर दिया अतः कुल सूबों की संख्या 15 हो गयी।
शाहजहां ने कश्मीर, थट्टा और ओडीसा को स्वतंत्र सूबा बना दिया अतः शाहजहां के काल में सूबों की संख्या 18 हो गयी।
औरंगजेब के बीजापुर एवं गोलकुण्डा को जीतकर साम्राज्य में मिलाने पर सूबों की संख्या 20 हो गयी थी।
सूबे के अधिकारी-
सिपहसालार/सूबेदार/गवर्नर: यह सूबे का प्रमुख अधिकारी होता था। इसे सूबे के सम्पूर्ण सैनिक एवं असैनिक अधिकार प्राप्त थे। मुगल काल में सुबेदारों को किसी भी राज्य से संधियां तथा सरदारों को मनसब प्रदान करने का अधिकार नहीं था।
अपवाद
गुजरात के सूबेदार टोडरमल को राजपूतों से संधियां एवं मनसब प्रदान करने का अधिकार दिया गया था।
प्रांतीय दीवान: इस पद का सृजन अकबर ने सूबेदारों की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए किया था। यह सूबे का वित्त अधिकारी एवं राजस्व प्रमुख था जबकि सूबेदार कार्यकारिणी प्रमुख था। दीवान का कार्य भू-राजस्व व अन्य करों की वसूली करना, आय-व्यय का हिसाब रखना, सूबे की आर्थिक स्थिति की सूचना केन्द्रीय सरकार को देना था। सूबेदार व दीवान एक दूसरे पर नियंत्रण रखते थे।
बख्शी: बख्शी की नियुक्ति केन्द्रीय मीर बख्शी के अनुरोध पर शाही दरबार द्वारा की जाती थी। बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
मीरबख्शी एवं बख्शी में अंतर – प्रांतीय बख्शी सेना को वेतन वितरण का कार्य भी करता था जबकि मीर बख्शी सेना का वेतनाधिकारी नहीं होता था। केन्द्र में वेतन वितरण का कार्य दीवान-ए-तन करता था।
प्रांतीय सद्र/मीर-ए-अदल: सद्र की दृष्टि से यह प्रजा के नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों के पालन की व्यवस्था करता था। एवं काजी की दृष्टि से न्याय करता था।
कोतवाल: सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरों में कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सरकार (जिले) का प्रशासन-
मुगल काल में सरकार (जिले) में फौजदार, आमिल, कोतवाल एवं काजी इत्यादि महत्वपूर्ण अधिकारी होते थे।
फौजदार: यह जिले का मुख्य प्रशासक होता था। इसका कार्य जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखना तथ चोर-लुटेरों से जनता की रक्षा करना था। शेरशाह के समय यह मुंशिफ-ए-मुंशिफान कहलाता था। कालान्तर में फौजदार को न्यायिक अधिकार भी दिए गए तथा बाद में यह पद वंशानुगत हो गया।
आमिल/अमलगुजार: यह जिले का वित्त अधिकारी होता था इसका कार्य लगान वसूल करना तथा कृषि व किसानों की देखभाल करना था।
वितिक्ची: यह लिपिक (क्लर्क) होता था जो भूमि व राजस्व संबंधी कागज तैयार करता था।
कोतवाल: नगर में शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना। स्वच्छता व सफाई कार्य एवं न्यायिक कार्य भी करता था।
खजानदार: यह जिले का खजांची होता था।
काजी-ए-सरकार: यह न्यायिक कार्य करता था। औरंगजेब काल में जजिया एवं जकात करों की वसूली भी करता था।
परगना एवं ग्राम प्रशासन-
शिकदार: परगने का प्रमुख अधिकारी। मुख्य कार्य परगने में शांति स्थापित करना।
आमिल: परगने का वित्त अधिकारी। कार्य किसानों से लगान वसूल करना।
कानूनगो: परगने के पटवारियों का प्रधान।
ग्राम प्रशासन
मुगल शासक गांव को एक स्वायत्त संस्था मानते थे जिसके प्रशासन का उत्तरदायित्व मुगलों के अधिकारियों को नहीं दिया जाता था। खुद ग्राम पंचायतें ही अपने गांव की सुरक्षा-सफाई एवं शिक्षा की देखभाल करती थी।
मुकद्दम/चौधरी: यह गांव का ग्राम प्रधान होता था।
Unattempted
व्याख्या –
प्रांतीय प्रशासन-
प्रशासन
विभाजन
प्रमुख/सर्वोच्च अधिकारी
सूबे/प्रांत
मुगल साम्राज्य सूबों में बंटा हुआ था।
सिपहसालार या सुबेदार
सरकार/जिले
सूबा जिलों में विभाजित था।
फौजदार
परगना/महाल
सरकार परगनों में विभाजित था
शिकदार
गांव/ग्राम
परगना, गांवों से मिलकर बनता था
मुकद्दम, चौधरी या खुत
1. सूबे/प्रांत का प्रशासन
अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य को 12 सूबों में विभाजित किया था। अंतिम समय में दक्षिण भारत के बरार, खानदेश एवं अहमदनगर को जीत कर सूबों में शामिल कर दिया अतः कुल सूबों की संख्या 15 हो गयी।
शाहजहां ने कश्मीर, थट्टा और ओडीसा को स्वतंत्र सूबा बना दिया अतः शाहजहां के काल में सूबों की संख्या 18 हो गयी।
औरंगजेब के बीजापुर एवं गोलकुण्डा को जीतकर साम्राज्य में मिलाने पर सूबों की संख्या 20 हो गयी थी।
सूबे के अधिकारी-
सिपहसालार/सूबेदार/गवर्नर: यह सूबे का प्रमुख अधिकारी होता था। इसे सूबे के सम्पूर्ण सैनिक एवं असैनिक अधिकार प्राप्त थे। मुगल काल में सुबेदारों को किसी भी राज्य से संधियां तथा सरदारों को मनसब प्रदान करने का अधिकार नहीं था।
अपवाद
गुजरात के सूबेदार टोडरमल को राजपूतों से संधियां एवं मनसब प्रदान करने का अधिकार दिया गया था।
प्रांतीय दीवान: इस पद का सृजन अकबर ने सूबेदारों की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए किया था। यह सूबे का वित्त अधिकारी एवं राजस्व प्रमुख था जबकि सूबेदार कार्यकारिणी प्रमुख था। दीवान का कार्य भू-राजस्व व अन्य करों की वसूली करना, आय-व्यय का हिसाब रखना, सूबे की आर्थिक स्थिति की सूचना केन्द्रीय सरकार को देना था। सूबेदार व दीवान एक दूसरे पर नियंत्रण रखते थे।
बख्शी: बख्शी की नियुक्ति केन्द्रीय मीर बख्शी के अनुरोध पर शाही दरबार द्वारा की जाती थी। बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
मीरबख्शी एवं बख्शी में अंतर – प्रांतीय बख्शी सेना को वेतन वितरण का कार्य भी करता था जबकि मीर बख्शी सेना का वेतनाधिकारी नहीं होता था। केन्द्र में वेतन वितरण का कार्य दीवान-ए-तन करता था।
प्रांतीय सद्र/मीर-ए-अदल: सद्र की दृष्टि से यह प्रजा के नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों के पालन की व्यवस्था करता था। एवं काजी की दृष्टि से न्याय करता था।
कोतवाल: सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरों में कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सरकार (जिले) का प्रशासन-
मुगल काल में सरकार (जिले) में फौजदार, आमिल, कोतवाल एवं काजी इत्यादि महत्वपूर्ण अधिकारी होते थे।
फौजदार: यह जिले का मुख्य प्रशासक होता था। इसका कार्य जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखना तथ चोर-लुटेरों से जनता की रक्षा करना था। शेरशाह के समय यह मुंशिफ-ए-मुंशिफान कहलाता था। कालान्तर में फौजदार को न्यायिक अधिकार भी दिए गए तथा बाद में यह पद वंशानुगत हो गया।
आमिल/अमलगुजार: यह जिले का वित्त अधिकारी होता था इसका कार्य लगान वसूल करना तथा कृषि व किसानों की देखभाल करना था।
वितिक्ची: यह लिपिक (क्लर्क) होता था जो भूमि व राजस्व संबंधी कागज तैयार करता था।
कोतवाल: नगर में शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना। स्वच्छता व सफाई कार्य एवं न्यायिक कार्य भी करता था।
खजानदार: यह जिले का खजांची होता था।
काजी-ए-सरकार: यह न्यायिक कार्य करता था। औरंगजेब काल में जजिया एवं जकात करों की वसूली भी करता था।
परगना एवं ग्राम प्रशासन-
शिकदार: परगने का प्रमुख अधिकारी। मुख्य कार्य परगने में शांति स्थापित करना।
आमिल: परगने का वित्त अधिकारी। कार्य किसानों से लगान वसूल करना।
कानूनगो: परगने के पटवारियों का प्रधान।
ग्राम प्रशासन
मुगल शासक गांव को एक स्वायत्त संस्था मानते थे जिसके प्रशासन का उत्तरदायित्व मुगलों के अधिकारियों को नहीं दिया जाता था। खुद ग्राम पंचायतें ही अपने गांव की सुरक्षा-सफाई एवं शिक्षा की देखभाल करती थी।
मुकद्दम/चौधरी: यह गांव का ग्राम प्रधान होता था।
Question 8 of 32
8. Question
1 points
निम्नलिखित मुगल अधिकारियों में से कौन बन्दरगाह का अधीक्षक था
Correct
व्याख्या –
बन्दरगाह का अधीक्षक मुत्सददी कहलाता था।
मुगल काल में व्यापार के प्रमुख केन्द्र बन्दरगाह थे।
Incorrect
व्याख्या –
बन्दरगाह का अधीक्षक मुत्सददी कहलाता था।
मुगल काल में व्यापार के प्रमुख केन्द्र बन्दरगाह थे।
Unattempted
व्याख्या –
बन्दरगाह का अधीक्षक मुत्सददी कहलाता था।
मुगल काल में व्यापार के प्रमुख केन्द्र बन्दरगाह थे।
Question 9 of 32
9. Question
1 points
मनसबदारी में ‘जात’ से किसकी संख्या का अभिप्राय होता था?
Correct
व्याख्या-
अकबर ने मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित ‘मनसबदारी व्यवस्था की शुरूआत की
मनसब का शाब्दिक अर्थ है -पद। इसके दो भाग थे- जात एवं सवार।
जात से तात्पर्य व्यक्तिगत पद से था
सवार से तात्पर्य घुड़सवारों की संख्या से है।
Incorrect
व्याख्या-
अकबर ने मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित ‘मनसबदारी व्यवस्था की शुरूआत की
मनसब का शाब्दिक अर्थ है -पद। इसके दो भाग थे- जात एवं सवार।
जात से तात्पर्य व्यक्तिगत पद से था
सवार से तात्पर्य घुड़सवारों की संख्या से है।
Unattempted
व्याख्या-
अकबर ने मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित ‘मनसबदारी व्यवस्था की शुरूआत की
मनसब का शाब्दिक अर्थ है -पद। इसके दो भाग थे- जात एवं सवार।
जात से तात्पर्य व्यक्तिगत पद से था
सवार से तात्पर्य घुड़सवारों की संख्या से है।
Question 10 of 32
10. Question
1 points
मुगलों की सैन्य शक्ति के मुख्य स्तम्भ थे
Correct
व्याख्या-
मुगल सेना का गठन कबीलाई आधार पर किया गया था।
मुगल सेना के प्रमुख अंग – अश्वरोही, पैदल, हाथी, तोपखाना, नौसेना और दुर्ग।
घुड़सवार सेना मुगल सेना का सबसे प्रमुख अंग थी।
मुगल घुड़सवार सेना तीन वर्गों में विभाजित थी।
(1) मनसबदारों द्वारा प्रदत्त घुड़सवार सेना
(2) अहदी
(3) दाखिली।
अहदी वे सैनिक होते थे जिनकी नियुक्ति सीधे साम्राट द्वारा होती थी।
अहदी को केन्द्रीय सेवा में रखा जाता था
दाखिली सैनिक अर्द्ध अश्वारोही और अर्द्ध पैदल की श्रेणी के होते थे।
दाखिली सैनिकों की भर्ती भी सीधे केन्द्र द्वारा होती थी और वेतन शाही खजाने से दिया जाता था
दाखिली सैनिकों को मनसबदारों के अधीन कर दिया जाता था।
मान्सरेट का अकबर की सेना के विषय मेंकथन –
“अश्वारोही सेना को हर तरह से सेना की जान समझा जाता था। इसलिए साम्राज्य की रक्षा के लिए एक स्थायी सक्षम और जहाँ तक सम्भव हो पूर्ण रूप से सुसज्जित अश्वारोही सेना रखने के लिए सम्राट कोई कोर-कसर नहीं करता था।”
Incorrect
व्याख्या-
मुगल सेना का गठन कबीलाई आधार पर किया गया था।
मुगल सेना के प्रमुख अंग – अश्वरोही, पैदल, हाथी, तोपखाना, नौसेना और दुर्ग।
घुड़सवार सेना मुगल सेना का सबसे प्रमुख अंग थी।
मुगल घुड़सवार सेना तीन वर्गों में विभाजित थी।
(1) मनसबदारों द्वारा प्रदत्त घुड़सवार सेना
(2) अहदी
(3) दाखिली।
अहदी वे सैनिक होते थे जिनकी नियुक्ति सीधे साम्राट द्वारा होती थी।
अहदी को केन्द्रीय सेवा में रखा जाता था
दाखिली सैनिक अर्द्ध अश्वारोही और अर्द्ध पैदल की श्रेणी के होते थे।
दाखिली सैनिकों की भर्ती भी सीधे केन्द्र द्वारा होती थी और वेतन शाही खजाने से दिया जाता था
दाखिली सैनिकों को मनसबदारों के अधीन कर दिया जाता था।
मान्सरेट का अकबर की सेना के विषय मेंकथन –
“अश्वारोही सेना को हर तरह से सेना की जान समझा जाता था। इसलिए साम्राज्य की रक्षा के लिए एक स्थायी सक्षम और जहाँ तक सम्भव हो पूर्ण रूप से सुसज्जित अश्वारोही सेना रखने के लिए सम्राट कोई कोर-कसर नहीं करता था।”
Unattempted
व्याख्या-
मुगल सेना का गठन कबीलाई आधार पर किया गया था।
मुगल सेना के प्रमुख अंग – अश्वरोही, पैदल, हाथी, तोपखाना, नौसेना और दुर्ग।
घुड़सवार सेना मुगल सेना का सबसे प्रमुख अंग थी।
मुगल घुड़सवार सेना तीन वर्गों में विभाजित थी।
(1) मनसबदारों द्वारा प्रदत्त घुड़सवार सेना
(2) अहदी
(3) दाखिली।
अहदी वे सैनिक होते थे जिनकी नियुक्ति सीधे साम्राट द्वारा होती थी।
अहदी को केन्द्रीय सेवा में रखा जाता था
दाखिली सैनिक अर्द्ध अश्वारोही और अर्द्ध पैदल की श्रेणी के होते थे।
दाखिली सैनिकों की भर्ती भी सीधे केन्द्र द्वारा होती थी और वेतन शाही खजाने से दिया जाता था
दाखिली सैनिकों को मनसबदारों के अधीन कर दिया जाता था।
मान्सरेट का अकबर की सेना के विषय मेंकथन –
“अश्वारोही सेना को हर तरह से सेना की जान समझा जाता था। इसलिए साम्राज्य की रक्षा के लिए एक स्थायी सक्षम और जहाँ तक सम्भव हो पूर्ण रूप से सुसज्जित अश्वारोही सेना रखने के लिए सम्राट कोई कोर-कसर नहीं करता था।”
Question 11 of 32
11. Question
1 points
अकबर के शासन काल की समाप्ति तक साम्राज्य में कितने सूबे थे
Correct
व्याख्या.-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Incorrect
व्याख्या.-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Unattempted
व्याख्या.-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Question 12 of 32
12. Question
1 points
मनसबदारी प्रणाली को सुदृढ़ किया
Correct
व्याख्या –
मनसब शब्द का अर्थ
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया.
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
मनसबदारों का श्रेणियों में विभाजन
अकबर ने जात और सवार मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था –
जिस व्यक्ति को जितना अधिक ऊँचा जात (व्यक्तिगत) मनसब दिया जाता था, वह उतने ही अधिक घुड़सवार रखने का अधिकारी भी होता था और उसे प्रथम श्रेणी का मनसब कहा जाता था. अकबर के काल में सबसे छोटा या निम्न मनसब (पद) दस सिपाहियों के ऊपर अधिकार रखने का था और उच्चतम दस हजार घुड़सवारों पर अधिकार रखने का था. बाद में अकबर ने उच्चतम मनसब की सीमा बढ़ाकर 12 हजार कर दी थी.
जो मनसबदार अपने जात (व्यक्तिगत) से आधी संख्या या आधे से अधिक घुड़सवार रख सकता था, वह दूसरी श्रेणी का मनसबदार होता था.
जिस मनसबदार को अपने जात (व्यक्तिगत पद) से आधे से कम घुड़सवार रखने का अधिकार था, उसे तीसरी श्रेणी का मनसबदार कहा जाता था.
सभी मनसबदारों को एक घुड़सवार के लिए दो घोड़े रखने अनिवार्य होते थे. किसी भी मनसबदार को जात पद के अनुसार ही सवार रखने की अनुमति थी |
Incorrect
व्याख्या –
मनसब शब्द का अर्थ
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया.
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
मनसबदारों का श्रेणियों में विभाजन
अकबर ने जात और सवार मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था –
जिस व्यक्ति को जितना अधिक ऊँचा जात (व्यक्तिगत) मनसब दिया जाता था, वह उतने ही अधिक घुड़सवार रखने का अधिकारी भी होता था और उसे प्रथम श्रेणी का मनसब कहा जाता था. अकबर के काल में सबसे छोटा या निम्न मनसब (पद) दस सिपाहियों के ऊपर अधिकार रखने का था और उच्चतम दस हजार घुड़सवारों पर अधिकार रखने का था. बाद में अकबर ने उच्चतम मनसब की सीमा बढ़ाकर 12 हजार कर दी थी.
जो मनसबदार अपने जात (व्यक्तिगत) से आधी संख्या या आधे से अधिक घुड़सवार रख सकता था, वह दूसरी श्रेणी का मनसबदार होता था.
जिस मनसबदार को अपने जात (व्यक्तिगत पद) से आधे से कम घुड़सवार रखने का अधिकार था, उसे तीसरी श्रेणी का मनसबदार कहा जाता था.
सभी मनसबदारों को एक घुड़सवार के लिए दो घोड़े रखने अनिवार्य होते थे. किसी भी मनसबदार को जात पद के अनुसार ही सवार रखने की अनुमति थी |
Unattempted
व्याख्या –
मनसब शब्द का अर्थ
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया.
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
मनसबदारों का श्रेणियों में विभाजन
अकबर ने जात और सवार मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था –
जिस व्यक्ति को जितना अधिक ऊँचा जात (व्यक्तिगत) मनसब दिया जाता था, वह उतने ही अधिक घुड़सवार रखने का अधिकारी भी होता था और उसे प्रथम श्रेणी का मनसब कहा जाता था. अकबर के काल में सबसे छोटा या निम्न मनसब (पद) दस सिपाहियों के ऊपर अधिकार रखने का था और उच्चतम दस हजार घुड़सवारों पर अधिकार रखने का था. बाद में अकबर ने उच्चतम मनसब की सीमा बढ़ाकर 12 हजार कर दी थी.
जो मनसबदार अपने जात (व्यक्तिगत) से आधी संख्या या आधे से अधिक घुड़सवार रख सकता था, वह दूसरी श्रेणी का मनसबदार होता था.
जिस मनसबदार को अपने जात (व्यक्तिगत पद) से आधे से कम घुड़सवार रखने का अधिकार था, उसे तीसरी श्रेणी का मनसबदार कहा जाता था.
सभी मनसबदारों को एक घुड़सवार के लिए दो घोड़े रखने अनिवार्य होते थे. किसी भी मनसबदार को जात पद के अनुसार ही सवार रखने की अनुमति थी |
Question 13 of 32
13. Question
1 points
मलिक अंबर कहाँ का मंत्री था
Correct
व्याख्या.
मलिक अम्बर मूलतः एक अबीसीनियाई का दास था
मलिक अम्बर अहमदनगर में नृप निर्माता एवं वजीर की भूमिका के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
मलिक अम्बर ने मुर्तजा द्वितीय को अहमदनगर का सुल्तान घोषित कर स्वयं अहमदनगर की कमान संभाली। मलिक अम्बर ने अहमदनगर को केन्द्र बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा मुगल प्रदेशों पर बार-बार आक्रमण किया।
1617 ई. तथा 1621 ई. में वह खुर्रम (शाहजहाँ) ने पराजित किया
मलिक अम्बर ने दक्षिण में टोडरमल दहशाला पद्धति के आधार पर रैयतवाडी ( प्रणाली) लागू की
1633 अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया
Incorrect
व्याख्या.
मलिक अम्बर मूलतः एक अबीसीनियाई का दास था
मलिक अम्बर अहमदनगर में नृप निर्माता एवं वजीर की भूमिका के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
मलिक अम्बर ने मुर्तजा द्वितीय को अहमदनगर का सुल्तान घोषित कर स्वयं अहमदनगर की कमान संभाली। मलिक अम्बर ने अहमदनगर को केन्द्र बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा मुगल प्रदेशों पर बार-बार आक्रमण किया।
1617 ई. तथा 1621 ई. में वह खुर्रम (शाहजहाँ) ने पराजित किया
मलिक अम्बर ने दक्षिण में टोडरमल दहशाला पद्धति के आधार पर रैयतवाडी ( प्रणाली) लागू की
1633 अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया
Unattempted
व्याख्या.
मलिक अम्बर मूलतः एक अबीसीनियाई का दास था
मलिक अम्बर अहमदनगर में नृप निर्माता एवं वजीर की भूमिका के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
मलिक अम्बर ने मुर्तजा द्वितीय को अहमदनगर का सुल्तान घोषित कर स्वयं अहमदनगर की कमान संभाली। मलिक अम्बर ने अहमदनगर को केन्द्र बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा मुगल प्रदेशों पर बार-बार आक्रमण किया।
1617 ई. तथा 1621 ई. में वह खुर्रम (शाहजहाँ) ने पराजित किया
मलिक अम्बर ने दक्षिण में टोडरमल दहशाला पद्धति के आधार पर रैयतवाडी ( प्रणाली) लागू की
1633 अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया
Question 14 of 32
14. Question
1 points
‘मुग़ल मनसबदारो को –
Correct
व्याख्या. –
मनसबदारों का वेतन-
मुग़ल मनसबदारों को बहुत अच्छा वेतन मिलता था
मनसबदारों प्रायः नकद में वेतन दिया जाता था, परन्तु कभी-कभी वेतन के स्थान पर जागीर प्रदान की जाती थी-
मनसबदारों अपने वेतन से ही अपने स्वयं के अधीन घुड़सवारों और घोड़ों का खर्च चलाना होता था
प्रथम श्रेणी के मनसबदारों को 30,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था
द्वितीय श्रेणी के मनसबदारों को 29,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
तृतीय श्रेणी के मनसबदारों को 28,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
मनसबदार को प्रत्येक सवार के लिए दो रुपये प्रति मास के हिसाब से अतिरिक्त वेतन भी मिलता था
मनसबदारों के कार्य-
मनसबदार सैनिक-अभियानों में भेजे जा सकते थे. उन्हें विद्रोह रोकने, नए प्रदेश जीतने आदि के साथ-साथ अपने पद से सम्बन्धी और समय-समय पर सौंपे गए गैर-सैनिक और प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते थे.
Incorrect
व्याख्या. –
मनसबदारों का वेतन-
मुग़ल मनसबदारों को बहुत अच्छा वेतन मिलता था
मनसबदारों प्रायः नकद में वेतन दिया जाता था, परन्तु कभी-कभी वेतन के स्थान पर जागीर प्रदान की जाती थी-
मनसबदारों अपने वेतन से ही अपने स्वयं के अधीन घुड़सवारों और घोड़ों का खर्च चलाना होता था
प्रथम श्रेणी के मनसबदारों को 30,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था
द्वितीय श्रेणी के मनसबदारों को 29,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
तृतीय श्रेणी के मनसबदारों को 28,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
मनसबदार को प्रत्येक सवार के लिए दो रुपये प्रति मास के हिसाब से अतिरिक्त वेतन भी मिलता था
मनसबदारों के कार्य-
मनसबदार सैनिक-अभियानों में भेजे जा सकते थे. उन्हें विद्रोह रोकने, नए प्रदेश जीतने आदि के साथ-साथ अपने पद से सम्बन्धी और समय-समय पर सौंपे गए गैर-सैनिक और प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते थे.
Unattempted
व्याख्या. –
मनसबदारों का वेतन-
मुग़ल मनसबदारों को बहुत अच्छा वेतन मिलता था
मनसबदारों प्रायः नकद में वेतन दिया जाता था, परन्तु कभी-कभी वेतन के स्थान पर जागीर प्रदान की जाती थी-
मनसबदारों अपने वेतन से ही अपने स्वयं के अधीन घुड़सवारों और घोड़ों का खर्च चलाना होता था
प्रथम श्रेणी के मनसबदारों को 30,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था
द्वितीय श्रेणी के मनसबदारों को 29,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
तृतीय श्रेणी के मनसबदारों को 28,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता था
मनसबदार को प्रत्येक सवार के लिए दो रुपये प्रति मास के हिसाब से अतिरिक्त वेतन भी मिलता था
मनसबदारों के कार्य-
मनसबदार सैनिक-अभियानों में भेजे जा सकते थे. उन्हें विद्रोह रोकने, नए प्रदेश जीतने आदि के साथ-साथ अपने पद से सम्बन्धी और समय-समय पर सौंपे गए गैर-सैनिक और प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते थे.
Question 15 of 32
15. Question
1 points
कौन एक कानून अधिकारी था
Correct
व्याख्या. –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Incorrect
व्याख्या. –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Unattempted
व्याख्या. –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Question 16 of 32
16. Question
1 points
मुगल शासकों में सबसे पहले साम्राज्य को प्रांतों में किसने बांटा
Correct
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Incorrect
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Unattempted
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Question 17 of 32
17. Question
1 points
अकबर के सेना की मनसबदारी प्रथा का सर्वप्रथम प्रयोग किसकी सेना में था
Correct
व्याख्या. –
मनसब शब्द का अर्थ-
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
अकबर के काल में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा मनसब 10,000 का होता था जो कालान्तर में 12000 हो गया था।
मनसबदारी प्रथा का मूल चंगेज खाँ की व्यवस्था में देखा जा सकता है
Incorrect
व्याख्या. –
मनसब शब्द का अर्थ-
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
अकबर के काल में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा मनसब 10,000 का होता था जो कालान्तर में 12000 हो गया था।
मनसबदारी प्रथा का मूल चंगेज खाँ की व्यवस्था में देखा जा सकता है
Unattempted
व्याख्या. –
मनसब शब्द का अर्थ-
“मनसब” फारसी भाषा का शब्द है. इस शब्द का अर्थ है पद, दर्जा या ओहदा. जिस व्यक्ति को सम्राट् मनसब देता था, उस व्यक्ति को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था.
अकबर ने अपने प्रत्येक सैनिक और असैनिक अधिकारी को कोई-न-कोई मनसब (पद) दिया
अकबर ने पदों को जात या सवार नामक दो भागों में विभाजित किया
जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद या ओहदा
सवार का अर्थ घुड़सवारों की उस निश्चित संख्या से है
अकबर के काल में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा मनसब 10,000 का होता था जो कालान्तर में 12000 हो गया था।
मनसबदारी प्रथा का मूल चंगेज खाँ की व्यवस्था में देखा जा सकता है
Question 18 of 32
18. Question
1 points
मुगल मनसबदारी व्यवस्था के बारे में एक सही कथन पहचानिए-
Correct
व्याख्या –
मुगल काल में सर्वप्रथम अकबर ने मनसबदारी प्रथा को प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन मनसबदारी प्रणाली सैनिक, असैनिक, हिन्दू, मुस्लिम सभी को प्रदान किया जाता था।
मनसबदार सामरिक व असामरिक दोनों कार्य करते थे
राजा ने स्वयं मनसबदारों को नियुक्त किया। वह मनसब को बढ़ा सकता था, उसे कम कर सकता था या हटा सकता था।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति का शासन में उसके पद का बोध होता था।
साम्राज्य की सफलता अथवा असफलता मुगल काल में मनसबदार की दक्षता और क्षमता पर ही निर्भर करती थी। मनसबदारों को ‘नगद व जागीर के रूप में वेतन मिलता था
मनसबदारों की मृत्यु अथवा पदच्युति के बाद मनसब स्वतः ही समाप्त हो जाता था।
प्रारंभ मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत नहीं थी।किन्तु ओरंगजेब के समय मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत हो गयी |
Incorrect
व्याख्या –
मुगल काल में सर्वप्रथम अकबर ने मनसबदारी प्रथा को प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन मनसबदारी प्रणाली सैनिक, असैनिक, हिन्दू, मुस्लिम सभी को प्रदान किया जाता था।
मनसबदार सामरिक व असामरिक दोनों कार्य करते थे
राजा ने स्वयं मनसबदारों को नियुक्त किया। वह मनसब को बढ़ा सकता था, उसे कम कर सकता था या हटा सकता था।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति का शासन में उसके पद का बोध होता था।
साम्राज्य की सफलता अथवा असफलता मुगल काल में मनसबदार की दक्षता और क्षमता पर ही निर्भर करती थी। मनसबदारों को ‘नगद व जागीर के रूप में वेतन मिलता था
मनसबदारों की मृत्यु अथवा पदच्युति के बाद मनसब स्वतः ही समाप्त हो जाता था।
प्रारंभ मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत नहीं थी।किन्तु ओरंगजेब के समय मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत हो गयी |
Unattempted
व्याख्या –
मुगल काल में सर्वप्रथम अकबर ने मनसबदारी प्रथा को प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन मनसबदारी प्रणाली सैनिक, असैनिक, हिन्दू, मुस्लिम सभी को प्रदान किया जाता था।
मनसबदार सामरिक व असामरिक दोनों कार्य करते थे
राजा ने स्वयं मनसबदारों को नियुक्त किया। वह मनसब को बढ़ा सकता था, उसे कम कर सकता था या हटा सकता था।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति का शासन में उसके पद का बोध होता था।
साम्राज्य की सफलता अथवा असफलता मुगल काल में मनसबदार की दक्षता और क्षमता पर ही निर्भर करती थी। मनसबदारों को ‘नगद व जागीर के रूप में वेतन मिलता था
मनसबदारों की मृत्यु अथवा पदच्युति के बाद मनसब स्वतः ही समाप्त हो जाता था।
प्रारंभ मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत नहीं थी।किन्तु ओरंगजेब के समय मनसबदारी प्रणाली वंशानुगत हो गयी |
Question 19 of 32
19. Question
1 points
मुफ्ती कौन थे
Correct
व्याख्या –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Incorrect
व्याख्या –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Unattempted
व्याख्या –
मुगलों की न्याय व्यवस्था-
साम्राज्य में न्याय का प्रमुख अधिकारी प्रधान काजी (काजी-उल-कजात) होता था।
काजी की सहायता के लिए अदालत में अन्य काजी,
दरोगा-ए-अदालत
मुफ्ती
मुहतसिब
मीर-अदल
मुगल बादशाह स्वयं राज्य का सबसे न्यायाधीश होता था। वह प्रत्येक ‘बुधवार’ को अदालत में बैठकर निर्णय देता था।
बादशाह के बाद ‘काजी’ मुख्य न्यायाधीश होता था। उसकी सहायता के लिए ‘मुफ्ती’ नियुक्त होते थे, जो कुरान के कानून की व्याख्या करते थे।
काजियों की अदालत में अधिकांशतया ‘धर्म-संबंधी’ या ‘सम्पत्ति संबंधी’ मुकदमें आया करते थे।
अकबर ने अपने शासनकाल में हिन्दू पंडितों को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए नियुक्त किया था।
जहांगीर ने ‘श्रीकांत’ नामक एक हिन्दू को हिन्दुओं के मुकदमों का निर्णय करने के लिए ‘जज’ नियुक्त किया था।
अकबर को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने इस्लामी कानून व्यवस्था को ही न्याय का आधार माना था।
न्याय के क्षेत्र में सबसे अधिक सराहनीय कार्य औरंगजेब ने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का संकलन कराकर किया।
औरंगजेब राजकीय धर्म निरपेक्ष कानून (जबावित) जारी कराने से नहीं हिचकिचाया। उसके आदेशों को ‘जबावित-ए-आलमगीरी’ में संग्रहीत किया गया।
Question 20 of 32
20. Question
1 points
मनसबदारों की ‘जात’ और ‘सवार’ के आधार पर कितनी श्रेणियां थी.
Correct
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथमश्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीयश्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Incorrect
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथमश्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीयश्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Unattempted
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथमश्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीयश्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Question 21 of 32
21. Question
1 points
औरंगजेब की उत्तर-पश्चिमी सीमान्त नीति का मुगलों पर क्या प्रभाव पड़ा-
Correct
व्याख्या-
औरंगजेब की उत्तरी-पश्चिमी सीमा नीति के कारण दक्षिण में मराठों को मजबूत होने का अवसर मिल गया।
उत्तर-पश्चिम में मुगल सेना का अधिकांश भाग युद्धरत था जिस कारण मराठों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो गया।
Incorrect
व्याख्या-
औरंगजेब की उत्तरी-पश्चिमी सीमा नीति के कारण दक्षिण में मराठों को मजबूत होने का अवसर मिल गया।
उत्तर-पश्चिम में मुगल सेना का अधिकांश भाग युद्धरत था जिस कारण मराठों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो गया।
Unattempted
व्याख्या-
औरंगजेब की उत्तरी-पश्चिमी सीमा नीति के कारण दक्षिण में मराठों को मजबूत होने का अवसर मिल गया।
उत्तर-पश्चिम में मुगल सेना का अधिकांश भाग युद्धरत था जिस कारण मराठों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो गया।
Question 22 of 32
22. Question
1 points
मीर बक्शी किस विभाग की देखभाल करता था
Correct
व्याख्या.
मीर-बख्शी-
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
Incorrect
व्याख्या.
मीर-बख्शी-
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
Unattempted
व्याख्या.
मीर-बख्शी-
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
Question 23 of 32
23. Question
1 points
मुगलकालीन सरकारी कुलीन वर्ग को क्या कहा जाता था
Correct
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
Incorrect
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
Unattempted
व्याख्या-
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
Question 24 of 32
24. Question
1 points
अकबर के दक्षिण के सूबे कौन-कौन थे
Correct
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
खानदेश मुगल सीमा में दक्षिण का प्रवेश द्वार था अकबर ने सर्वप्रथम खानदेश को विजित किया
अकबर ने 1600 ई. में अहमदनगर पर अधिकार किया।
1601 ई. में अकबर ने असीरगढ़ के किले को जीता था।
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Incorrect
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
खानदेश मुगल सीमा में दक्षिण का प्रवेश द्वार था अकबर ने सर्वप्रथम खानदेश को विजित किया
अकबर ने 1600 ई. में अहमदनगर पर अधिकार किया।
1601 ई. में अकबर ने असीरगढ़ के किले को जीता था।
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Unattempted
व्याख्या-
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
खानदेश मुगल सीमा में दक्षिण का प्रवेश द्वार था अकबर ने सर्वप्रथम खानदेश को विजित किया
अकबर ने 1600 ई. में अहमदनगर पर अधिकार किया।
1601 ई. में अकबर ने असीरगढ़ के किले को जीता था।
काश्मीर और कन्धार, काबुल प्रांत के अन्तर्गत जिले थे।
उड़ीसा बंगाल का एक भाग था।
शाहजहाँ के समय प्रांतों की संख्या 18 हो गयी थी।
औरंगजेब के समय प्रांतों की संख्या 20/21 हो गयी थी।
1. इलाहाबाद, 2. आगरा
3. अवध, 4. अजमेर
5. बंगाल, 6. बिहार
7. अहमदाबाद, 8. दिल्ली
9. मुल्तान, 10. लाहौर
11. काबुल. 12. मालवा
13. खानदेश, 14. बरार
15. अहमदनगर, 16. कश्मीर
17. सिंध/थट्टा, 18. उड़ीसा
19. गोलकुण्डा, 20. बीजापुर
**** औरंगजेब ने 1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
Question 25 of 32
25. Question
1 points
निम्नलिखित में से मुगल सेना का नेतृत्व करते थे
Correct
व्याख्या-
मीर-बख्शी–
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
सद्र–उस–सुदूर-
सद्र–उस–सुदूर सल्तनत काल में धर्म एवं दान विभाग का प्रमुख था।
सद्र–उस–सुदूर धार्मिक मामलों पर यह सुल्तान का प्रमुख सलाहकार भी होता था।
काजी-ए-मुमालिक एवं सद्र–उस–सुदूर का पद एक ही व्यक्ति को दिया जाता था।
सद्र–उस–सुदूर का कार्य इस्लामी नियमों तथा उपनियमों को लागू करना होता था।
दीवान-
दीवान मुग़लकालीन शासन व्यवस्था में सबसे बड़ा अधिकारी होता था।
दीवान राजस्व एवं वित्त का एकमात्र प्रभारी होता था।
दीवान की नियुक्ति न केवल केन्द्रीय सरकार में वरन् प्रान्तीय सरकारों में भी होती थी।
Incorrect
व्याख्या-
मीर-बख्शी–
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
सद्र–उस–सुदूर-
सद्र–उस–सुदूर सल्तनत काल में धर्म एवं दान विभाग का प्रमुख था।
सद्र–उस–सुदूर धार्मिक मामलों पर यह सुल्तान का प्रमुख सलाहकार भी होता था।
काजी-ए-मुमालिक एवं सद्र–उस–सुदूर का पद एक ही व्यक्ति को दिया जाता था।
सद्र–उस–सुदूर का कार्य इस्लामी नियमों तथा उपनियमों को लागू करना होता था।
दीवान-
दीवान मुग़लकालीन शासन व्यवस्था में सबसे बड़ा अधिकारी होता था।
दीवान राजस्व एवं वित्त का एकमात्र प्रभारी होता था।
दीवान की नियुक्ति न केवल केन्द्रीय सरकार में वरन् प्रान्तीय सरकारों में भी होती थी।
Unattempted
व्याख्या-
मीर-बख्शी–
केन्द्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण विभाग सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी मीर-बक्शी कहलाता था।
मीर-बख्शी प्रधान सेनापति नहीं होता था।
मीर बख्शी को सम्राट के साथ- रहना पड़ता था
मीर बख्शी मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण पद था।
मीर-बक्शी का कार्य सैनिकों के वेतन तथा सैनिक संगठन से था।
मुगल शासन में सद्र के अतिरिक्त सभी प्रमुख कर्मचारी सेना से सम्बन्धित होते थे।
मीर बख्शी को सैन्य कार्यों के अतिरिक्त दरबार सम्बन्धी कार्य भी करने होते थे।
मीर बख्शी मनसबदारों की सूची रखता था जिसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत करता था।
मीर बख्शी का कार्य सैनिकों की भर्ती, उनके शस्त्रों की व्यवस्था तथा सैनिकों का निरीक्षण भी था।
सद्र–उस–सुदूर-
सद्र–उस–सुदूर सल्तनत काल में धर्म एवं दान विभाग का प्रमुख था।
सद्र–उस–सुदूर धार्मिक मामलों पर यह सुल्तान का प्रमुख सलाहकार भी होता था।
काजी-ए-मुमालिक एवं सद्र–उस–सुदूर का पद एक ही व्यक्ति को दिया जाता था।
सद्र–उस–सुदूर का कार्य इस्लामी नियमों तथा उपनियमों को लागू करना होता था।
दीवान-
दीवान मुग़लकालीन शासन व्यवस्था में सबसे बड़ा अधिकारी होता था।
दीवान राजस्व एवं वित्त का एकमात्र प्रभारी होता था।
दीवान की नियुक्ति न केवल केन्द्रीय सरकार में वरन् प्रान्तीय सरकारों में भी होती थी।
Question 26 of 32
26. Question
1 points
वाकिया-ए-नवीस क्या करता था
Correct
व्याख्या-
वाकिया-ए-नवीस-
प्रान्तीय गुप्तचर विभाग का प्रमुख वाकियानवीस होता था।
वाकिया-ए-नवीस का दायित्व अपने गुप्तचरों के माध्यम से प्रान्त की प्रमुख गतिविधियों की खबर केन्द्र तक पहुंचाना था।
वाकिया-ए-नवीस अपने दायित्व निर्वाहन में वह सूबेदार तथा दीवान के आधीन न होकर स्वतन्त्र रूप से कार्य करता था।
Incorrect
व्याख्या-
वाकिया-ए-नवीस-
प्रान्तीय गुप्तचर विभाग का प्रमुख वाकियानवीस होता था।
वाकिया-ए-नवीस का दायित्व अपने गुप्तचरों के माध्यम से प्रान्त की प्रमुख गतिविधियों की खबर केन्द्र तक पहुंचाना था।
वाकिया-ए-नवीस अपने दायित्व निर्वाहन में वह सूबेदार तथा दीवान के आधीन न होकर स्वतन्त्र रूप से कार्य करता था।
Unattempted
व्याख्या-
वाकिया-ए-नवीस-
प्रान्तीय गुप्तचर विभाग का प्रमुख वाकियानवीस होता था।
वाकिया-ए-नवीस का दायित्व अपने गुप्तचरों के माध्यम से प्रान्त की प्रमुख गतिविधियों की खबर केन्द्र तक पहुंचाना था।
वाकिया-ए-नवीस अपने दायित्व निर्वाहन में वह सूबेदार तथा दीवान के आधीन न होकर स्वतन्त्र रूप से कार्य करता था।
Question 27 of 32
27. Question
1 points
मुगल सैन्य व्यवस्था आधारित थी
Correct
व्याख्या-
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Incorrect
व्याख्या-
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Unattempted
व्याख्या-
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Question 28 of 32
28. Question
1 points
मुगल प्रांतीय प्रशासन की विशेषता थी
Correct
व्याख्या-
केंद्रीय प्रशासन के अन्य अधिकारी-
काजी-उल-कुजात – न्यायिक मामलोँ का अधिकारी था।
मीर आतिश – यह शाही तोपखाने का प्रधान था।
मुहतसिब – प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करने के लिए नियुक्त अधिकारी।
दरोगा-ए डाक चौकी – राजकीय डाक तथा गुप्तचर विभाग का प्रधान था।
मीर-बहर – नौसेना का प्रधान था।
मीर अदल – यह न्याय विभाग का महत्वपूर्ण अधिकारी था।
प्रांतीय प्रशासन-
मुगल प्रांतीय प्रशासन की दोहरा नियंत्रण वाली थी
मुग़ल साम्राज्य को सूबों (प्रान्तों) मेँ सूबों को सरकारो (जिलो) मेँ, सरकारो को परगनो (महलो) मेँ तथा परगनोँ को गावों मेँ बाटा गया था।
अकबर के समय सूबेदार होता था, जिसे सिपहसालार या नाजिम भी का कहा जाता था।
दीवान सूबे प्रधान वित्त एवं राजस्व अधिकारी होता था।
बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
प्रांतीय रुद्र न्याय के साथ-साथ प्रजा की नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों की पालन की व्यवस्था करता था।
कोतवाल सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरो मेँ कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध ,अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
सरकार या जिले का प्रशासन-
मुग़ल साम्राज्य मेँ अथवा जिलों मेँ फौजदार, कोतवाल, आमिल, और काजी प्रमुख अधिकारी थे।
मुगल काल मेँ सरकार या जिले का प्रधान फौजदार था। इसका मुख्य कार्य जिले मेँ कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा प्रजा को सुरक्षा प्रदान करना था।
खजानदार जिले का मुख्य खजांची होता था। इसका मुख्य कार्य राजकीय खजाने को सुरक्षा प्रदान करना था।
आमलगुजार या आमिल जिले का वित्त एवं राजस्व का प्रधान अधिकारी था। काजी-ए-सरकार न्याय से संबंधित कार्य देखता था।
परगने का प्रशासन-
सरकार परगनों में बंटी होती थी। परगने के प्रमुख अधिकारियोँ मेँ शिकदार, आमिल, फोतदार, कानूनगो और कारकून शामिल थे।
शिकदार परगने का प्रधान अधिकारी था। परगने की शांति व्यवस्था और राजस्व वसूलना इसके प्रमुख कार्यों मेँ शामिल था।
आमिल परगने का प्रधान अधिकारी था। किसानो से लगान वसूलना इसका प्रमुख कार्य था।
फोतदार परगने का खंजाची था।
कानूनगो परगने के पटवारियोँ का प्रधान था। यह लगान, भूमि और कृषि से संबंधित कागजातों को संभालता था।
कारकून लिपिक का कार्य देखता था।
ग्राम प्रशासन-
मुगल काल मेँ ग्राम प्रशासन एक स्वायत्त संस्था से संचालित होता था। प्रशासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः मुगल अधिकारियोँ के अधीन नहीँ था।
ग्राम प्रधान गांव का प्रमुख अधिकारी था, जिसे ‘खुत’ और ‘मुकद्दमा चौधरी’ कहा जाता था।
गांव में वित्त राजस्व और लगान से संबंधित अधिकारियों को पटवारी कहा जाता था। इन्हें राजस्व का एक प्रतिशत दस्तूरी के रुप मेँ दिया जाता था।
Incorrect
व्याख्या-
केंद्रीय प्रशासन के अन्य अधिकारी-
काजी-उल-कुजात – न्यायिक मामलोँ का अधिकारी था।
मीर आतिश – यह शाही तोपखाने का प्रधान था।
मुहतसिब – प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करने के लिए नियुक्त अधिकारी।
दरोगा-ए डाक चौकी – राजकीय डाक तथा गुप्तचर विभाग का प्रधान था।
मीर-बहर – नौसेना का प्रधान था।
मीर अदल – यह न्याय विभाग का महत्वपूर्ण अधिकारी था।
प्रांतीय प्रशासन-
मुगल प्रांतीय प्रशासन की दोहरा नियंत्रण वाली थी
मुग़ल साम्राज्य को सूबों (प्रान्तों) मेँ सूबों को सरकारो (जिलो) मेँ, सरकारो को परगनो (महलो) मेँ तथा परगनोँ को गावों मेँ बाटा गया था।
अकबर के समय सूबेदार होता था, जिसे सिपहसालार या नाजिम भी का कहा जाता था।
दीवान सूबे प्रधान वित्त एवं राजस्व अधिकारी होता था।
बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
प्रांतीय रुद्र न्याय के साथ-साथ प्रजा की नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों की पालन की व्यवस्था करता था।
कोतवाल सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरो मेँ कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध ,अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
सरकार या जिले का प्रशासन-
मुग़ल साम्राज्य मेँ अथवा जिलों मेँ फौजदार, कोतवाल, आमिल, और काजी प्रमुख अधिकारी थे।
मुगल काल मेँ सरकार या जिले का प्रधान फौजदार था। इसका मुख्य कार्य जिले मेँ कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा प्रजा को सुरक्षा प्रदान करना था।
खजानदार जिले का मुख्य खजांची होता था। इसका मुख्य कार्य राजकीय खजाने को सुरक्षा प्रदान करना था।
आमलगुजार या आमिल जिले का वित्त एवं राजस्व का प्रधान अधिकारी था। काजी-ए-सरकार न्याय से संबंधित कार्य देखता था।
परगने का प्रशासन-
सरकार परगनों में बंटी होती थी। परगने के प्रमुख अधिकारियोँ मेँ शिकदार, आमिल, फोतदार, कानूनगो और कारकून शामिल थे।
शिकदार परगने का प्रधान अधिकारी था। परगने की शांति व्यवस्था और राजस्व वसूलना इसके प्रमुख कार्यों मेँ शामिल था।
आमिल परगने का प्रधान अधिकारी था। किसानो से लगान वसूलना इसका प्रमुख कार्य था।
फोतदार परगने का खंजाची था।
कानूनगो परगने के पटवारियोँ का प्रधान था। यह लगान, भूमि और कृषि से संबंधित कागजातों को संभालता था।
कारकून लिपिक का कार्य देखता था।
ग्राम प्रशासन-
मुगल काल मेँ ग्राम प्रशासन एक स्वायत्त संस्था से संचालित होता था। प्रशासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः मुगल अधिकारियोँ के अधीन नहीँ था।
ग्राम प्रधान गांव का प्रमुख अधिकारी था, जिसे ‘खुत’ और ‘मुकद्दमा चौधरी’ कहा जाता था।
गांव में वित्त राजस्व और लगान से संबंधित अधिकारियों को पटवारी कहा जाता था। इन्हें राजस्व का एक प्रतिशत दस्तूरी के रुप मेँ दिया जाता था।
Unattempted
व्याख्या-
केंद्रीय प्रशासन के अन्य अधिकारी-
काजी-उल-कुजात – न्यायिक मामलोँ का अधिकारी था।
मीर आतिश – यह शाही तोपखाने का प्रधान था।
मुहतसिब – प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करने के लिए नियुक्त अधिकारी।
दरोगा-ए डाक चौकी – राजकीय डाक तथा गुप्तचर विभाग का प्रधान था।
मीर-बहर – नौसेना का प्रधान था।
मीर अदल – यह न्याय विभाग का महत्वपूर्ण अधिकारी था।
प्रांतीय प्रशासन-
मुगल प्रांतीय प्रशासन की दोहरा नियंत्रण वाली थी
मुग़ल साम्राज्य को सूबों (प्रान्तों) मेँ सूबों को सरकारो (जिलो) मेँ, सरकारो को परगनो (महलो) मेँ तथा परगनोँ को गावों मेँ बाटा गया था।
अकबर के समय सूबेदार होता था, जिसे सिपहसालार या नाजिम भी का कहा जाता था।
दीवान सूबे प्रधान वित्त एवं राजस्व अधिकारी होता था।
बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
प्रांतीय रुद्र न्याय के साथ-साथ प्रजा की नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों की पालन की व्यवस्था करता था।
कोतवाल सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरो मेँ कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सर्वप्रथम मुगल शासकों में अकबर ने अपने सामाज्य को प्रांतों (सूबा) में विभाजित किया था।
अकबर ने 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में विभाजित किया था।
अकबर ने अपने शासन के अंतिम समय में खानदेश, बरार और अहमद नगर के राज्यों को विजित कर बाद प्रांतों की संख्या 15 हो गई।
अकबर के समय निम्न प्रांत थे-आगरा, इलाहाबाद, अवध ,अजमेर, अहमदाबाद, बिहार, बंगाल, दिल्ली. काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा. बरार, खानदेश, और अहमद नगर आदि
अकबर ने दक्षिण पर आक्रमण करके खानदेश, अहमदनगर और बरार को जीता था।
सरकार या जिले का प्रशासन-
मुग़ल साम्राज्य मेँ अथवा जिलों मेँ फौजदार, कोतवाल, आमिल, और काजी प्रमुख अधिकारी थे।
मुगल काल मेँ सरकार या जिले का प्रधान फौजदार था। इसका मुख्य कार्य जिले मेँ कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा प्रजा को सुरक्षा प्रदान करना था।
खजानदार जिले का मुख्य खजांची होता था। इसका मुख्य कार्य राजकीय खजाने को सुरक्षा प्रदान करना था।
आमलगुजार या आमिल जिले का वित्त एवं राजस्व का प्रधान अधिकारी था। काजी-ए-सरकार न्याय से संबंधित कार्य देखता था।
परगने का प्रशासन-
सरकार परगनों में बंटी होती थी। परगने के प्रमुख अधिकारियोँ मेँ शिकदार, आमिल, फोतदार, कानूनगो और कारकून शामिल थे।
शिकदार परगने का प्रधान अधिकारी था। परगने की शांति व्यवस्था और राजस्व वसूलना इसके प्रमुख कार्यों मेँ शामिल था।
आमिल परगने का प्रधान अधिकारी था। किसानो से लगान वसूलना इसका प्रमुख कार्य था।
फोतदार परगने का खंजाची था।
कानूनगो परगने के पटवारियोँ का प्रधान था। यह लगान, भूमि और कृषि से संबंधित कागजातों को संभालता था।
कारकून लिपिक का कार्य देखता था।
ग्राम प्रशासन-
मुगल काल मेँ ग्राम प्रशासन एक स्वायत्त संस्था से संचालित होता था। प्रशासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः मुगल अधिकारियोँ के अधीन नहीँ था।
ग्राम प्रधान गांव का प्रमुख अधिकारी था, जिसे ‘खुत’ और ‘मुकद्दमा चौधरी’ कहा जाता था।
गांव में वित्त राजस्व और लगान से संबंधित अधिकारियों को पटवारी कहा जाता था। इन्हें राजस्व का एक प्रतिशत दस्तूरी के रुप मेँ दिया जाता था।
Question 29 of 32
29. Question
1 points
शेरशाह को ‘अकबर का पूर्वगामी’ क्यों कहा जाता है.
Correct
व्याख्या-
शेरशाह अकबर के अग्रगामी के रूप में–
अकबर को उनके कुशल प्रशासन, उदार धार्मिक नीति और राजनीतिक अंतर्दृष्टि के कारण “महान” कहा गया है।
अकबर ने शेर शाह की कई नीतियों का पालन किया था। बेशक, उन्होंने नए संदर्भ में उन पर सुधार किया।
अकबर ने शेरशाह की भूमि नीति का अनुसरण किया।
शेरशाह को अकबर का पूर्वगामी कहा जाता है,
अकबर ने शेरशाह के कई नीतियों को अपने शासन व्यवस्था में सम्मिलित किया था।
अकबर भू-राजस्व व्यवस्था को सुव्यस्थित आधार प्रदान करने में शेरशाह का ऋणी है।
Incorrect
व्याख्या-
शेरशाह अकबर के अग्रगामी के रूप में–
अकबर को उनके कुशल प्रशासन, उदार धार्मिक नीति और राजनीतिक अंतर्दृष्टि के कारण “महान” कहा गया है।
अकबर ने शेर शाह की कई नीतियों का पालन किया था। बेशक, उन्होंने नए संदर्भ में उन पर सुधार किया।
अकबर ने शेरशाह की भूमि नीति का अनुसरण किया।
शेरशाह को अकबर का पूर्वगामी कहा जाता है,
अकबर ने शेरशाह के कई नीतियों को अपने शासन व्यवस्था में सम्मिलित किया था।
अकबर भू-राजस्व व्यवस्था को सुव्यस्थित आधार प्रदान करने में शेरशाह का ऋणी है।
Unattempted
व्याख्या-
शेरशाह अकबर के अग्रगामी के रूप में–
अकबर को उनके कुशल प्रशासन, उदार धार्मिक नीति और राजनीतिक अंतर्दृष्टि के कारण “महान” कहा गया है।
अकबर ने शेर शाह की कई नीतियों का पालन किया था। बेशक, उन्होंने नए संदर्भ में उन पर सुधार किया।
अकबर ने शेरशाह की भूमि नीति का अनुसरण किया।
शेरशाह को अकबर का पूर्वगामी कहा जाता है,
अकबर ने शेरशाह के कई नीतियों को अपने शासन व्यवस्था में सम्मिलित किया था।
अकबर भू-राजस्व व्यवस्था को सुव्यस्थित आधार प्रदान करने में शेरशाह का ऋणी है।
Question 30 of 32
30. Question
1 points
मदद-ए-माश अनुदानों को किसने पूर्ण तथा वंशानुगत (Ilcreditary) बना दिया ?
Correct
व्याख्या –
मदद-ए-माश अनुदान को बहादुरशाह ने वंशानुगत (Hireditary) बना दिया था।
मदद-ए-माश विद्वान अथवा धार्मिक व्यक्तियों की सहायता हेतु दी जाने वाली भूमि थी
Incorrect
व्याख्या –
मदद-ए-माश अनुदान को बहादुरशाह ने वंशानुगत (Hireditary) बना दिया था।
मदद-ए-माश विद्वान अथवा धार्मिक व्यक्तियों की सहायता हेतु दी जाने वाली भूमि थी
Unattempted
व्याख्या –
मदद-ए-माश अनुदान को बहादुरशाह ने वंशानुगत (Hireditary) बना दिया था।
मदद-ए-माश विद्वान अथवा धार्मिक व्यक्तियों की सहायता हेतु दी जाने वाली भूमि थी
Question 31 of 32
31. Question
1 points
राजा टोडरमल किस विभाग के प्रमुख थे
Correct
व्याख्या-
राजा टोडरमल का सम्बन्ध लगान सम्बन्धी कार्यों से था।
टोडरमल अकबर के काल के प्रमुख अर्थशास्त्री थे।
टोडरमल आइने-दहशाला प्रणाली के वास्तविक प्रणेता थे।
अकबर के काल में 1580 ई. में ‘आइने-दहशाला’ पद्धति को लागू किया गया।
आइने-दहशाला प्रणाली के लिए राजा टोडरमल और ख्वाजा शाह मंसूर उत्तरदायी थे।
Incorrect
व्याख्या-
राजा टोडरमल का सम्बन्ध लगान सम्बन्धी कार्यों से था।
टोडरमल अकबर के काल के प्रमुख अर्थशास्त्री थे।
टोडरमल आइने-दहशाला प्रणाली के वास्तविक प्रणेता थे।
अकबर के काल में 1580 ई. में ‘आइने-दहशाला’ पद्धति को लागू किया गया।
आइने-दहशाला प्रणाली के लिए राजा टोडरमल और ख्वाजा शाह मंसूर उत्तरदायी थे।
Unattempted
व्याख्या-
राजा टोडरमल का सम्बन्ध लगान सम्बन्धी कार्यों से था।
टोडरमल अकबर के काल के प्रमुख अर्थशास्त्री थे।
टोडरमल आइने-दहशाला प्रणाली के वास्तविक प्रणेता थे।
अकबर के काल में 1580 ई. में ‘आइने-दहशाला’ पद्धति को लागू किया गया।
आइने-दहशाला प्रणाली के लिए राजा टोडरमल और ख्वाजा शाह मंसूर उत्तरदायी थे।
Question 32 of 32
32. Question
1 points
‘दो अस्पा’ व ‘सिह अस्पा’ पद सर्वप्रथम किस शासन काल में लागू किये गये
Correct
व्याख्या.
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
जहांगीर के काल में ‘दो अस्पा और सिंह अस्पा’ पदों को मनसबों के साथ जोडा जाने लगा।
दो अस्पा और सिंह अस्पा का शाब्दिक अर्थ था
मनसबदारी सैनिक के ऊपर दो या दो से अधिक घोड़े रखना।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Incorrect
व्याख्या.
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
जहांगीर के काल में ‘दो अस्पा और सिंह अस्पा’ पदों को मनसबों के साथ जोडा जाने लगा।
दो अस्पा और सिंह अस्पा का शाब्दिक अर्थ था
मनसबदारी सैनिक के ऊपर दो या दो से अधिक घोड़े रखना।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।
Unattempted
व्याख्या.
मनसबदारी प्रथा का जन्म घुड़सवार सैनिकों के सुधार की समस्या से प्रारम्भ हुआ था।
मुगल शासक अकबर ने 1575 ई. में अपने साम्राज्य में मनसबदारी प्रथा का प्रारम्भ किया था।
मुगल कालीन सिविल तथा सैनिक प्रशासन का मूल आधार मनसबदारी प्रथा थी।
मनसब की संख्या से उस व्यक्ति के शासन में स्थान का बोध होता था।
यही मुगल अभिजात वर्ग अथवा कुलीन वर्ग भी था।
मनसबदारी प्रथा मुगल शासन में लोक सेवा, कुलीन वर्ग तथा सैनिक वर्ग का सम्मिलत नाम था।
मुगल साम्राज्य की दक्षता, सफलता तथा असफलता मनसबदारों की कार्यक्षमता पर निर्भर करती थी।
1594 ई. में अकबर ने मनसबदारी प्रथा में ‘जात’ पद के साथ ‘सवार’ पद को भी जोड़ दिया था।
मनसबदारी प्रथा का संगठन दशमलव प्रणाली के आधार पर घुड़सवार सेना का विभाजन था।
सम्राट किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित संख्या का (10, 20 100, 500 1000, 10,000) मनसबदार नियुक्त कर सकता था।
जहांगीर के काल में ‘दो अस्पा और सिंह अस्पा’ पदों को मनसबों के साथ जोडा जाने लगा।
दो अस्पा और सिंह अस्पा का शाब्दिक अर्थ था
मनसबदारी सैनिक के ऊपर दो या दो से अधिक घोड़े रखना।
मनसबदारों की श्रेणियाँ |Catagories of Mansabdars
मनसबदारों का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है
1-
संख्या के आधार पर सबसे छोटा मनसबदार 10 मनसब का होता था।
सबसे बड़ा मनसबदार अकबर के काल में 12000 का और शाहजहाँ के समय 60,000 का था।
अबुल फजल के अनुसार मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थीं।
अकबर के शासन काल में 7,000 का मनसब अमीरों और उसके ऊपर राजकुमारों को दिये जाते थे।
II.
जात और सवार के आधार पर इस आधार पर मनसबदारों मनसबदारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था
प्रथम श्रेणी (First Grade) : इस श्रेणी के मनसबदार का जात और सवार बराबर होता था।
द्वितीय श्रेणी (Second Grade): इसमें मनसब सवार, जात के मनसब से आधे से अधिक होता था।
तृतीय श्रेणी (Third Grade): इस श्रेणी में मनसबदारों का सवार जात के आधे से कम होता था।