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भारतीय कांग्रेस अधिवेशन
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भारतीय गवर्नर जनरल
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भारतीय मुस्लिम लीग
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भारतीय शिक्षा साहित्य समाचार-पत्र
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Question 1 of 10
1. Question
2 points
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार अवध के नवाब ने अंग्रेजी कम्पनी को इलाहाबाद तथा कड़ा सौंप दिया।
बनारस की सन्धि के अनुसार अंग्रेजी कम्पनी ने इलाहाबाद तथा कड़ा को दो करोड़ रूपये में अवध के नवाब को बेच दिया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं
Correct
व्याख्या-
इलाहाबाद की दूसरी सन्धि–
16 अगस्त 1765 को इलाहाबाद की दूसरी सन्धि अवध के नवाब शूजाउद्दौला और क्लाइव के बीच हुआ।
इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार अवध के नवाब ने अंग्रेजी कम्पनी को इलाहाबाद तथा कड़ा सौंप दिया
कम्पनी को पचास लाख रुपये तथा चुनार का दुर्ग अवध से प्राप्त हुआ।
बनारस की सन्धि-
बनारस की सन्धि 1773 में अवध के नवाब शूजाउददीला और वारेन हेस्टिंग्स के बीच हई।
बनारस की सन्धि के अनुसार वारेन हेस्टिंग्स ने इलाहाबाद तथा कडा के जिले नवाब को पचास लाख रुपये में बेच दिये गये।
Incorrect
व्याख्या-
इलाहाबाद की दूसरी सन्धि–
16 अगस्त 1765 को इलाहाबाद की दूसरी सन्धि अवध के नवाब शूजाउद्दौला और क्लाइव के बीच हुआ।
इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार अवध के नवाब ने अंग्रेजी कम्पनी को इलाहाबाद तथा कड़ा सौंप दिया
कम्पनी को पचास लाख रुपये तथा चुनार का दुर्ग अवध से प्राप्त हुआ।
बनारस की सन्धि-
बनारस की सन्धि 1773 में अवध के नवाब शूजाउददीला और वारेन हेस्टिंग्स के बीच हई।
बनारस की सन्धि के अनुसार वारेन हेस्टिंग्स ने इलाहाबाद तथा कडा के जिले नवाब को पचास लाख रुपये में बेच दिये गये।
Unattempted
व्याख्या-
इलाहाबाद की दूसरी सन्धि–
16 अगस्त 1765 को इलाहाबाद की दूसरी सन्धि अवध के नवाब शूजाउद्दौला और क्लाइव के बीच हुआ।
इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार अवध के नवाब ने अंग्रेजी कम्पनी को इलाहाबाद तथा कड़ा सौंप दिया
कम्पनी को पचास लाख रुपये तथा चुनार का दुर्ग अवध से प्राप्त हुआ।
बनारस की सन्धि-
बनारस की सन्धि 1773 में अवध के नवाब शूजाउददीला और वारेन हेस्टिंग्स के बीच हई।
बनारस की सन्धि के अनुसार वारेन हेस्टिंग्स ने इलाहाबाद तथा कडा के जिले नवाब को पचास लाख रुपये में बेच दिये गये।
Question 2 of 10
2. Question
2 points
प्रथम कर्नाटक युद्ध के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
यह 1746 में प्रारम्भ और 1748 में समाप्त हुआ।
कर्नाटक के नवाब अनवर उद्दीन ने इस युद्ध में अंग्रेजों की ओर से दखलंदाजी की।
3.चांदा साहेब को बंदी बनाकर उन्हें फांसी दी गयी।
युद्ध के उपरांत फ्रांसीसियों द्वारा मद्रास अंग्रेजों को वापस कर दिया गया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सही है?
Correct
व्याख्या-
प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746 ई० में प्रारम्भ हुआ
1748 ई० में प्रथम कर्नाटक युद्ध एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि से आस्ट्रिया के युद्ध के समाप्ति के साथ ही समाप्त हुआ।
कर्नाटक युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए थे।
प्रथम कर्नाटक युद्ध को सेन्टटोमे के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन ने महफूज खां के नेतृत्व में दस हजार सिपाहियों की एक सेना को प्रथम कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसिसीयों पर आक्रमण करने के लिए भेजा
पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित ‘किया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के साथ अंग्रेजों तथा फ्रांसिसीयों के मध्य प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को मिल गया
उत्तरी अमेरिका में लुईबर्ग फ्रांसीसियों को मिल गया।
चन्दा साहब फ्रांसीसियों की सहायता से कर्नाटक की गद्दी प्राप्त की।
Incorrect
व्याख्या-
प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746 ई० में प्रारम्भ हुआ
1748 ई० में प्रथम कर्नाटक युद्ध एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि से आस्ट्रिया के युद्ध के समाप्ति के साथ ही समाप्त हुआ।
कर्नाटक युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए थे।
प्रथम कर्नाटक युद्ध को सेन्टटोमे के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन ने महफूज खां के नेतृत्व में दस हजार सिपाहियों की एक सेना को प्रथम कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसिसीयों पर आक्रमण करने के लिए भेजा
पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित ‘किया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के साथ अंग्रेजों तथा फ्रांसिसीयों के मध्य प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को मिल गया
उत्तरी अमेरिका में लुईबर्ग फ्रांसीसियों को मिल गया।
चन्दा साहब फ्रांसीसियों की सहायता से कर्नाटक की गद्दी प्राप्त की।
Unattempted
व्याख्या-
प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746 ई० में प्रारम्भ हुआ
1748 ई० में प्रथम कर्नाटक युद्ध एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि से आस्ट्रिया के युद्ध के समाप्ति के साथ ही समाप्त हुआ।
कर्नाटक युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए थे।
प्रथम कर्नाटक युद्ध को सेन्टटोमे के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन ने महफूज खां के नेतृत्व में दस हजार सिपाहियों की एक सेना को प्रथम कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसिसीयों पर आक्रमण करने के लिए भेजा
पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित ‘किया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के साथ अंग्रेजों तथा फ्रांसिसीयों के मध्य प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया।
एक्स-लॉ-शैपेला की सन्धि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को मिल गया
उत्तरी अमेरिका में लुईबर्ग फ्रांसीसियों को मिल गया।
चन्दा साहब फ्रांसीसियों की सहायता से कर्नाटक की गद्दी प्राप्त की।
Question 3 of 10
3. Question
2 points
सूची । को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए
सूची। सूची ॥
A रामोसी विद्रोह 1. सैय्यद अहमद
B फकीर आन्दोलन 2. मंजूशाह
C पागलपंथी विद्रोह 3. चित्तर सिंह
D वहाबी आन्दोलन 4. करमशाह
Correct
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Incorrect
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Unattempted
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Question 4 of 10
4. Question
2 points
1857 के विद्रोह के उपरान्त इलाहाबाद में एक दरबार में किसने भारत की सरकार को ग्रेट ब्रिटेन की सर्वोच्च सत्ता द्वारा अधिगृहीत किए जाने की घोषणा की
Correct
व्याख्या-
1857 ई. के विद्रोह के समय भारत का वायसराय लार्ड कैनिंग था
1857 ई. का विद्रोह असफल रहा।
1857 ई. के विद्रोह के बाद मुगल साम्राज्य सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया
महारानी विक्टोरियां ने कम्पनी का शासन अपने हाथ में ले लिया।
लार्ड कैनिंग ने 1 नवम्बर, 1858 ई. को इलाहाबाद के मिण्टो-पार्क में अपना दरबार लगाया और महारानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र पढ़ा।
Incorrect
व्याख्या-
1857 ई. के विद्रोह के समय भारत का वायसराय लार्ड कैनिंग था
1857 ई. का विद्रोह असफल रहा।
1857 ई. के विद्रोह के बाद मुगल साम्राज्य सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया
महारानी विक्टोरियां ने कम्पनी का शासन अपने हाथ में ले लिया।
लार्ड कैनिंग ने 1 नवम्बर, 1858 ई. को इलाहाबाद के मिण्टो-पार्क में अपना दरबार लगाया और महारानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र पढ़ा।
Unattempted
व्याख्या-
1857 ई. के विद्रोह के समय भारत का वायसराय लार्ड कैनिंग था
1857 ई. का विद्रोह असफल रहा।
1857 ई. के विद्रोह के बाद मुगल साम्राज्य सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया
महारानी विक्टोरियां ने कम्पनी का शासन अपने हाथ में ले लिया।
लार्ड कैनिंग ने 1 नवम्बर, 1858 ई. को इलाहाबाद के मिण्टो-पार्क में अपना दरबार लगाया और महारानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र पढ़ा।
Question 5 of 10
5. Question
2 points
निम्नलिखित में से किसके द्वारा ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की गयी थी?
Correct
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Incorrect
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Unattempted
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Question 6 of 10
6. Question
2 points
असहयोग आन्दोलन के प्रभाव से कौन सी घटना घटित नहीं हुई थी?
Correct
व्याख्या-
असहयोग आन्दोलन के प्रभाव –
गाँधी जी द्वारा जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में अगस्त 1920 में असहयोग आन्दोलन की शुरूआत हुई।
अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को वापस करना।
सिविल सर्विस, सेना, पुलिस, कोर्ट, लेजिस्लेटिव काउंसिल और स्कूलों का बहिष्कार।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
भारतीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना
स्वदेशी को प्रोत्साहन
ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार
यदि सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज न आये, तो संपूर्ण अवज्ञा आंदोलन शुरु करना।
चौरी-चौरा की घटना-
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा बिट्रिश शासन की नीतियों के विरूद्व अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलाया जा रहा था
4 फरवरी 1922 को उत्तर-प्रदेश के निकट गोरखपुर में आन्दोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया
चौरी-चौरा की घटना में 22 पुलिसकर्मी जिन्दा जलकर मर गये थे जिस कारण गाँधी जी ने आन्दोलन में हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया ।
*******महिलाओं को सीमित मताधिकार 1919 ई० में अधिनियम में ही मिल गया था।
Incorrect
व्याख्या-
असहयोग आन्दोलन के प्रभाव –
गाँधी जी द्वारा जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में अगस्त 1920 में असहयोग आन्दोलन की शुरूआत हुई।
अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को वापस करना।
सिविल सर्विस, सेना, पुलिस, कोर्ट, लेजिस्लेटिव काउंसिल और स्कूलों का बहिष्कार।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
भारतीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना
स्वदेशी को प्रोत्साहन
ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार
यदि सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज न आये, तो संपूर्ण अवज्ञा आंदोलन शुरु करना।
चौरी-चौरा की घटना-
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा बिट्रिश शासन की नीतियों के विरूद्व अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलाया जा रहा था
4 फरवरी 1922 को उत्तर-प्रदेश के निकट गोरखपुर में आन्दोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया
चौरी-चौरा की घटना में 22 पुलिसकर्मी जिन्दा जलकर मर गये थे जिस कारण गाँधी जी ने आन्दोलन में हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया ।
*******महिलाओं को सीमित मताधिकार 1919 ई० में अधिनियम में ही मिल गया था।
Unattempted
व्याख्या-
असहयोग आन्दोलन के प्रभाव –
गाँधी जी द्वारा जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में अगस्त 1920 में असहयोग आन्दोलन की शुरूआत हुई।
अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को वापस करना।
सिविल सर्विस, सेना, पुलिस, कोर्ट, लेजिस्लेटिव काउंसिल और स्कूलों का बहिष्कार।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
भारतीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना
स्वदेशी को प्रोत्साहन
ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार
यदि सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज न आये, तो संपूर्ण अवज्ञा आंदोलन शुरु करना।
चौरी-चौरा की घटना-
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा बिट्रिश शासन की नीतियों के विरूद्व अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलाया जा रहा था
4 फरवरी 1922 को उत्तर-प्रदेश के निकट गोरखपुर में आन्दोलनकारियों ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया
चौरी-चौरा की घटना में 22 पुलिसकर्मी जिन्दा जलकर मर गये थे जिस कारण गाँधी जी ने आन्दोलन में हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया ।
*******महिलाओं को सीमित मताधिकार 1919 ई० में अधिनियम में ही मिल गया था।
Question 7 of 10
7. Question
2 points
1833 के चार्टर एक्ट के कुछ प्रावधान थे
(i) इसने कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया।
(ii) इसने गवर्नर जनरल की परिषद् में एक विधि सदस्य सम्मिलित किया।
(iii) इसने प्रेसीडेन्सियों के कानून बनाने के अधिकार को वापस ले लिया।
(iv) इसने फोर्ट विलियम के गवर्नर जनरल का नाम बदलकर भारत का गवर्नर जनरल कर दिया।
Correct
व्याख्या –
1833 के चार्टर एक्ट के महत्वपूर्ण बिंदु –
इस एक्ट से कंपनी के चीन से चाय के व्यापार पर एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कंपनी के अधिकारों को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया। किंतु यह निश्चित किया गया कि भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जायेगा, तथा भारत अब ब्रिटिश उपनिवेश बन गया।
भारतीय प्रदेशों में शासन करने के लिए सभी सैन्य, न्यायिक और नागरिक शक्तियां इसमें निहित थी।
इस एक्ट के बाद से बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।
ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर इसका पूर्ण नियंत्रण था।
लार्ड विलियम बैंटिक भारत का पहला गवर्नर जनरल बना।
इस एक्ट के अनुसार मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी के गवर्नरों की विधायी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया।
इस एक्ट से पूर्व बने क़ानूनों को नियामक कानून और बाद में बने क़ानूनों को अधिनियम या एक्ट कहा गया।
चार्टर एक्ट 1833 के अनुसार भारत में ब्रिटिश सरकार का वित्तीय, विधायी तथा प्रशासनिक रूप से केन्द्रीकरण करने का प्रयास किया गया। इस एक्ट के पारित होने के बाद कंपनी को प्रशासनिक निकाय बना दिया गया। इससे पूर्व कंपनी एक व्यापारिक निकाय के रूप में कार्य कर रही थी।
अब अंग्रेजों को बिना अनुमति पत्र के ही भारत आने, रहने तथा भूमि खरीदने की व्यवस्था कर दी गयी।
बंगाल के साथ मद्रास, बम्बई तथा अन्य अधिकृत प्रदेशों को भी भारत के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में कर दिया गया।
इस एक्ट के बाद से सभी कर गवर्नर जनरल की आज्ञा से लगाये जायेंगे तथा उनका व्यय भी उसी की मर्जी से होगा।
इस एक्ट के अनुसार गवर्नर जनरल की परिषद ही भारत में कानून बना पायेगी तथा मद्रास व बम्बई की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गयी।
गवर्नर जनरल की परिषद की संख्या जो पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा चार से घटाकर तीन कर दी गई थी उसे पुनः चार कर दिया गया। चौथे सदस्य को कानून विशेषज्ञ के रूप में बढ़ाया गया।
पहला कानून विशेषज्ञ लार्ड मैकाले था।
भारतीय कानून को संचालित, संहिताबद्ध तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गयी।
इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार सिविल सेवा की चयन प्रक्रिया को खुली प्रतियोगिता से करने का प्रावधान था।
धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी भारतीय को कंपनी के किसी पद से जिसके वो योग्य है वंचित नहीं रखा जायेगा।
बाद में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के विरोध से इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
1843 में दास में प्रथा लार्ड एलनबरो के समय में “दास प्रथा उन्मूलन” एक्ट लाया गया था।
Incorrect
व्याख्या –
1833 के चार्टर एक्ट के महत्वपूर्ण बिंदु –
इस एक्ट से कंपनी के चीन से चाय के व्यापार पर एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कंपनी के अधिकारों को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया। किंतु यह निश्चित किया गया कि भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जायेगा, तथा भारत अब ब्रिटिश उपनिवेश बन गया।
भारतीय प्रदेशों में शासन करने के लिए सभी सैन्य, न्यायिक और नागरिक शक्तियां इसमें निहित थी।
इस एक्ट के बाद से बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।
ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर इसका पूर्ण नियंत्रण था।
लार्ड विलियम बैंटिक भारत का पहला गवर्नर जनरल बना।
इस एक्ट के अनुसार मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी के गवर्नरों की विधायी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया।
इस एक्ट से पूर्व बने क़ानूनों को नियामक कानून और बाद में बने क़ानूनों को अधिनियम या एक्ट कहा गया।
चार्टर एक्ट 1833 के अनुसार भारत में ब्रिटिश सरकार का वित्तीय, विधायी तथा प्रशासनिक रूप से केन्द्रीकरण करने का प्रयास किया गया। इस एक्ट के पारित होने के बाद कंपनी को प्रशासनिक निकाय बना दिया गया। इससे पूर्व कंपनी एक व्यापारिक निकाय के रूप में कार्य कर रही थी।
अब अंग्रेजों को बिना अनुमति पत्र के ही भारत आने, रहने तथा भूमि खरीदने की व्यवस्था कर दी गयी।
बंगाल के साथ मद्रास, बम्बई तथा अन्य अधिकृत प्रदेशों को भी भारत के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में कर दिया गया।
इस एक्ट के बाद से सभी कर गवर्नर जनरल की आज्ञा से लगाये जायेंगे तथा उनका व्यय भी उसी की मर्जी से होगा।
इस एक्ट के अनुसार गवर्नर जनरल की परिषद ही भारत में कानून बना पायेगी तथा मद्रास व बम्बई की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गयी।
गवर्नर जनरल की परिषद की संख्या जो पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा चार से घटाकर तीन कर दी गई थी उसे पुनः चार कर दिया गया। चौथे सदस्य को कानून विशेषज्ञ के रूप में बढ़ाया गया।
पहला कानून विशेषज्ञ लार्ड मैकाले था।
भारतीय कानून को संचालित, संहिताबद्ध तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गयी।
इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार सिविल सेवा की चयन प्रक्रिया को खुली प्रतियोगिता से करने का प्रावधान था।
धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी भारतीय को कंपनी के किसी पद से जिसके वो योग्य है वंचित नहीं रखा जायेगा।
बाद में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के विरोध से इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
1843 में दास में प्रथा लार्ड एलनबरो के समय में “दास प्रथा उन्मूलन” एक्ट लाया गया था।
Unattempted
व्याख्या –
1833 के चार्टर एक्ट के महत्वपूर्ण बिंदु –
इस एक्ट से कंपनी के चीन से चाय के व्यापार पर एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कंपनी के अधिकारों को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया। किंतु यह निश्चित किया गया कि भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जायेगा, तथा भारत अब ब्रिटिश उपनिवेश बन गया।
भारतीय प्रदेशों में शासन करने के लिए सभी सैन्य, न्यायिक और नागरिक शक्तियां इसमें निहित थी।
इस एक्ट के बाद से बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।
ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर इसका पूर्ण नियंत्रण था।
लार्ड विलियम बैंटिक भारत का पहला गवर्नर जनरल बना।
इस एक्ट के अनुसार मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी के गवर्नरों की विधायी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया।
इस एक्ट से पूर्व बने क़ानूनों को नियामक कानून और बाद में बने क़ानूनों को अधिनियम या एक्ट कहा गया।
चार्टर एक्ट 1833 के अनुसार भारत में ब्रिटिश सरकार का वित्तीय, विधायी तथा प्रशासनिक रूप से केन्द्रीकरण करने का प्रयास किया गया। इस एक्ट के पारित होने के बाद कंपनी को प्रशासनिक निकाय बना दिया गया। इससे पूर्व कंपनी एक व्यापारिक निकाय के रूप में कार्य कर रही थी।
अब अंग्रेजों को बिना अनुमति पत्र के ही भारत आने, रहने तथा भूमि खरीदने की व्यवस्था कर दी गयी।
बंगाल के साथ मद्रास, बम्बई तथा अन्य अधिकृत प्रदेशों को भी भारत के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में कर दिया गया।
इस एक्ट के बाद से सभी कर गवर्नर जनरल की आज्ञा से लगाये जायेंगे तथा उनका व्यय भी उसी की मर्जी से होगा।
इस एक्ट के अनुसार गवर्नर जनरल की परिषद ही भारत में कानून बना पायेगी तथा मद्रास व बम्बई की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गयी।
गवर्नर जनरल की परिषद की संख्या जो पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा चार से घटाकर तीन कर दी गई थी उसे पुनः चार कर दिया गया। चौथे सदस्य को कानून विशेषज्ञ के रूप में बढ़ाया गया।
पहला कानून विशेषज्ञ लार्ड मैकाले था।
भारतीय कानून को संचालित, संहिताबद्ध तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गयी।
इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार सिविल सेवा की चयन प्रक्रिया को खुली प्रतियोगिता से करने का प्रावधान था।
धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी भारतीय को कंपनी के किसी पद से जिसके वो योग्य है वंचित नहीं रखा जायेगा।
बाद में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के विरोध से इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
1843 में दास में प्रथा लार्ड एलनबरो के समय में “दास प्रथा उन्मूलन” एक्ट लाया गया था।
Question 8 of 10
8. Question
2 points
किसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया है?
Correct
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Incorrect
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Unattempted
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Question 9 of 10
9. Question
2 points
सरदार वल्लभ भाई पटेल को किस आन्दोलन ने गाँधी जी के अनुयायी बनने की प्रेरणा दी?
Correct
व्याख्या-
खेड़ा किसान आन्दोलन –
1918 में गांधी जी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की फसल नष्ट हो जाने के बावजूद सरकार द्वारा लगान में छूट न दिये जाने के कारण किसानों का “साथ दिया।
गांधी जी सर्वेन्ट ऑफ ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य विट्ठलभाई पटेल के साथ खेड़ा पहुंचे।
खेड़ा जिले के युवा वकील वल्लभ भाई पटेल, इन्दुलाल याज्ञिक तथा अन्य युवाओं ने गांधी के साथ गांवों का दौरा किया।
खेड़ा किसान आन्दोलन के समय से वल्लभ भाई पटेल गांधी जी के अनुयायी बने।
Incorrect
व्याख्या-
खेड़ा किसान आन्दोलन –
1918 में गांधी जी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की फसल नष्ट हो जाने के बावजूद सरकार द्वारा लगान में छूट न दिये जाने के कारण किसानों का “साथ दिया।
गांधी जी सर्वेन्ट ऑफ ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य विट्ठलभाई पटेल के साथ खेड़ा पहुंचे।
खेड़ा जिले के युवा वकील वल्लभ भाई पटेल, इन्दुलाल याज्ञिक तथा अन्य युवाओं ने गांधी के साथ गांवों का दौरा किया।
खेड़ा किसान आन्दोलन के समय से वल्लभ भाई पटेल गांधी जी के अनुयायी बने।
Unattempted
व्याख्या-
खेड़ा किसान आन्दोलन –
1918 में गांधी जी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की फसल नष्ट हो जाने के बावजूद सरकार द्वारा लगान में छूट न दिये जाने के कारण किसानों का “साथ दिया।
गांधी जी सर्वेन्ट ऑफ ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य विट्ठलभाई पटेल के साथ खेड़ा पहुंचे।
खेड़ा जिले के युवा वकील वल्लभ भाई पटेल, इन्दुलाल याज्ञिक तथा अन्य युवाओं ने गांधी के साथ गांवों का दौरा किया।
खेड़ा किसान आन्दोलन के समय से वल्लभ भाई पटेल गांधी जी के अनुयायी बने।
Question 10 of 10
10. Question
2 points
अखिल भारतीय मजदूर संघ कांग्रेस (ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस) के बम्बई के प्रथम अधिवेशन में अध्यक्ष थे
Correct
व्याख्या
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन–
स्थापना 1920 ई में बम्बई में एन0एम0 जोशी ने की।
इसके पहले अध्यक्ष लाला लाजपत राय और दीवान चमन लाल महामंत्री थे।
एटक (AITUC) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ही एक विंग के रुप में उभरी।
प्रथम अधिवेशन में सी0एफ0 एंडूज, सी0आर0 दास, जे0एम0 सेन गुप्त, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू आदि नेता इसमें शामिल थे।
Incorrect
व्याख्या
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन–
स्थापना 1920 ई में बम्बई में एन0एम0 जोशी ने की।
इसके पहले अध्यक्ष लाला लाजपत राय और दीवान चमन लाल महामंत्री थे।
एटक (AITUC) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ही एक विंग के रुप में उभरी।
प्रथम अधिवेशन में सी0एफ0 एंडूज, सी0आर0 दास, जे0एम0 सेन गुप्त, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू आदि नेता इसमें शामिल थे।
Unattempted
व्याख्या
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन–
स्थापना 1920 ई में बम्बई में एन0एम0 जोशी ने की।
इसके पहले अध्यक्ष लाला लाजपत राय और दीवान चमन लाल महामंत्री थे।
एटक (AITUC) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ही एक विंग के रुप में उभरी।
प्रथम अधिवेशन में सी0एफ0 एंडूज, सी0आर0 दास, जे0एम0 सेन गुप्त, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू आदि नेता इसमें शामिल थे।