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Question 1 of 60
1. Question
1 points
विधवा पुर्नविवाह के प्रति किस सुधारक ने प्रमुख योगदान दिया था?
Correct
व्याख्या-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सारा जीवन विधवाओं के पुर्नविवाह में लगा दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से कैनिंग के समय में 1856 का विधवा पुर्नविधाह अधिनियम पारित हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Incorrect
व्याख्या-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सारा जीवन विधवाओं के पुर्नविवाह में लगा दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से कैनिंग के समय में 1856 का विधवा पुर्नविधाह अधिनियम पारित हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Unattempted
व्याख्या-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सारा जीवन विधवाओं के पुर्नविवाह में लगा दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से कैनिंग के समय में 1856 का विधवा पुर्नविधाह अधिनियम पारित हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Question 2 of 60
2. Question
1 points
निम्नलिखित में से किसके द्वारा ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की गयी थी?
Correct
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Incorrect
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Unattempted
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में निम्न जाति आन्दोलन के प्रणेता थे।
ज्योतिबा फूले ने 1873 में मुम्बई में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की तथा ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तिका लिखी।
‘सत्य शोधक समाज’का उददेश्य- ब्राहमणों के आडम्बर और उनके अवसरवादी धार्मिक ग्रन्थों की की बुराइयों से निम्न जातियों को बचाना था।
Question 3 of 60
3. Question
1 points
ऐनी बेसेंटके सम्बन्ध में निम्न में से कौन सा वक्तव्य सही नहीं है?
Correct
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Incorrect
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Unattempted
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Question 4 of 60
4. Question
1 points
किन्हें भारतीय पुनर्जागरण का जनक कहा गया है :
Correct
व्याख्या-
राजा राम मोहन राय-
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। बनारस में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद पढ़े।
सोलह वर्ष की आयु में अपने गाँव लौटकर उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर एक तर्कसंगत आलोचना लिखी।
वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
अपने संबोधन में ‘टैगोर ने राम मोहन राय को’ भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
समाज सुधार-
राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।
ब्रह्म समाज
राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया।
यह पुरोहिती, अनुष्ठानों और बलि आदि के खिलाफ था।
यह प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था।
यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और प्रबोधन का उदय हुआ जिसने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारतीय ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देबेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
प्रमुख नेता: देवेंद्रनाथ टैगोर, केशव चन्द्र सेन
राजा राम मोहन राय-
ब्रह्म समाज के संस्थापक
भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक
जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता
बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे।
धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है।
‘नवीन भारत के संदेशवाहक तथा ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है
Incorrect
व्याख्या-
राजा राम मोहन राय-
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। बनारस में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद पढ़े।
सोलह वर्ष की आयु में अपने गाँव लौटकर उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर एक तर्कसंगत आलोचना लिखी।
वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
अपने संबोधन में ‘टैगोर ने राम मोहन राय को’ भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
समाज सुधार-
राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।
ब्रह्म समाज
राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया।
यह पुरोहिती, अनुष्ठानों और बलि आदि के खिलाफ था।
यह प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था।
यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और प्रबोधन का उदय हुआ जिसने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारतीय ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देबेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
प्रमुख नेता: देवेंद्रनाथ टैगोर, केशव चन्द्र सेन
राजा राम मोहन राय-
ब्रह्म समाज के संस्थापक
भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक
जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता
बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे।
धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है।
‘नवीन भारत के संदेशवाहक तथा ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है
Unattempted
व्याख्या-
राजा राम मोहन राय-
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। बनारस में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद पढ़े।
सोलह वर्ष की आयु में अपने गाँव लौटकर उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर एक तर्कसंगत आलोचना लिखी।
वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
अपने संबोधन में ‘टैगोर ने राम मोहन राय को’ भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
समाज सुधार-
राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।
ब्रह्म समाज
राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया।
यह पुरोहिती, अनुष्ठानों और बलि आदि के खिलाफ था।
यह प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था।
यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और प्रबोधन का उदय हुआ जिसने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारतीय ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देबेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
प्रमुख नेता: देवेंद्रनाथ टैगोर, केशव चन्द्र सेन
राजा राम मोहन राय-
ब्रह्म समाज के संस्थापक
भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक
जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता
बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे।
धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है।
‘नवीन भारत के संदेशवाहक तथा ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है
Question 5 of 60
5. Question
1 points
1891 के आयु सहमति अधिनियम के प्रति तिलक की क्या प्रतिक्रिया थी?
Correct
व्याख्या-
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
Incorrect
व्याख्या-
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
Unattempted
व्याख्या-
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
Question 6 of 60
6. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन एक सही सुसेलित है ?
Correct
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी–
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
ब्रह्म समाज-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
रामकृष्ण मिशन-
स्वामी विवेकानंद ने 1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य
मानव सवेा और मानव कल्याण की भावना का प्रचार करना तथा व्यक्तियों को प्रेरित करना कि वे मानव सवेा कार्य में नि:स्वार्थ भाव से लगें। सामाजिक कार्य-कर्ताओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना।
Incorrect
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी–
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
ब्रह्म समाज-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
रामकृष्ण मिशन-
स्वामी विवेकानंद ने 1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य
मानव सवेा और मानव कल्याण की भावना का प्रचार करना तथा व्यक्तियों को प्रेरित करना कि वे मानव सवेा कार्य में नि:स्वार्थ भाव से लगें। सामाजिक कार्य-कर्ताओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना।
Unattempted
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी–
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
ब्रह्म समाज-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
रामकृष्ण मिशन-
स्वामी विवेकानंद ने 1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य
मानव सवेा और मानव कल्याण की भावना का प्रचार करना तथा व्यक्तियों को प्रेरित करना कि वे मानव सवेा कार्य में नि:स्वार्थ भाव से लगें। सामाजिक कार्य-कर्ताओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना।
Question 7 of 60
7. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन 1856 के विधवा विवाह अधिनियम को स्वीकृत कराने में मुख्य भूमिका निभायी ?
Correct
व्याख्या-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Incorrect
व्याख्या-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Unattempted
व्याख्या-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था।
यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को सबसे पहले लॉर्ड कैनिंग ने वैध बनाया था।
Question 8 of 60
8. Question
1 points
आर्य समाज के संस्थापक थे
Correct
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Incorrect
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Unattempted
व्याख्या-
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Question 9 of 60
9. Question
1 points
डॉ0 एनी बेसेन्ट ने किसको नेतृत्व दिया?
Correct
व्याख्या-
**एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
***थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Incorrect
व्याख्या-
**एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
***थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Unattempted
व्याख्या-
**एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
***थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Question 10 of 60
10. Question
1 points
आर्य समाज ने किसे प्रोत्साहन दिया?
Correct
व्याख्या.
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Incorrect
व्याख्या.
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Unattempted
व्याख्या.
आर्य समाज-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा -‘वेदों की ओर लौटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Question 11 of 60
11. Question
1 points
बी0एम0 मालाबारी किससे जुड़े हुए थे?
Correct
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट–
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Incorrect
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट–
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Unattempted
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट–
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Question 12 of 60
12. Question
1 points
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक थे
Correct
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Incorrect
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Unattempted
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Question 13 of 60
13. Question
1 points
भारत से दासों के निर्यात पर कब प्रतिबंध लगाया गया
Correct
व्याख्या-
दास प्रथा-
1789 ई0 की घोषणा द्वारा दासों का बाहर के देशों में निर्यात बन्द कर दिया गया।
1811 ई0 और 1823 ई0 में दासों के सम्बन्ध में कई कानून पास किये गये।
1823 ई0 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में एक जिले से दूसरे जिले में दासों को ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1833 के चार्टर एक्ट के द्वारा भारत सरकार को दासों की अवस्था सुधारने और दासता समाप्त करने अधिनियम बनाया |
1843 का एक्ट के द्वारा भारत में दास प्रथा की वैधानिकता को समाप्त कर दिया गया।
Incorrect
व्याख्या-
दास प्रथा-
1789 ई0 की घोषणा द्वारा दासों का बाहर के देशों में निर्यात बन्द कर दिया गया।
1811 ई0 और 1823 ई0 में दासों के सम्बन्ध में कई कानून पास किये गये।
1823 ई0 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में एक जिले से दूसरे जिले में दासों को ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1833 के चार्टर एक्ट के द्वारा भारत सरकार को दासों की अवस्था सुधारने और दासता समाप्त करने अधिनियम बनाया |
1843 का एक्ट के द्वारा भारत में दास प्रथा की वैधानिकता को समाप्त कर दिया गया।
Unattempted
व्याख्या-
दास प्रथा-
1789 ई0 की घोषणा द्वारा दासों का बाहर के देशों में निर्यात बन्द कर दिया गया।
1811 ई0 और 1823 ई0 में दासों के सम्बन्ध में कई कानून पास किये गये।
1823 ई0 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में एक जिले से दूसरे जिले में दासों को ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1833 के चार्टर एक्ट के द्वारा भारत सरकार को दासों की अवस्था सुधारने और दासता समाप्त करने अधिनियम बनाया |
1843 का एक्ट के द्वारा भारत में दास प्रथा की वैधानिकता को समाप्त कर दिया गया।
Question 14 of 60
14. Question
1 points
विधवा पुनर्विवाह आंदोलन के प्रमुख समर्थक थे
Correct
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य थे
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
Incorrect
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य थे
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
Unattempted
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-
बंगाल में एक संस्कृत स्कूल के प्राचार्य थे
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रख्यात समाज सुधारक विद्वान व लेखक थे।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपना सम्पूर्ण जीवन विधवा पुनर्विवाह तथा बाल विवाह के प्रति समर्पित कर दिया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के फलस्वरूप ही 1856 ई0 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हआ।
Question 15 of 60
15. Question
1 points
महिला उद्धार से संबंधित प्रगतिशील सामाजिक कार्यक्रमों का संचालन सर्वप्रथम किसने किया।
Correct
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Incorrect
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Unattempted
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Question 16 of 60
16. Question
1 points
वेदान्त सोसायटी की स्थापना किसने की
Correct
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद–
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश– “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
Incorrect
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद–
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश– “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
Unattempted
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद–
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश– “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
Question 17 of 60
17. Question
1 points
सत्यशोधक मंडल की स्थापना किसने की
Correct
व्याख्या-
सत्यशोधक समाज-
सत्यशोधक समाज की स्थापना 1873 ई0 में ज्योतिबा फूले ने बम्बई में की।
उद्देश्य– ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
Incorrect
व्याख्या-
सत्यशोधक समाज-
सत्यशोधक समाज की स्थापना 1873 ई0 में ज्योतिबा फूले ने बम्बई में की।
उद्देश्य– ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
Unattempted
व्याख्या-
सत्यशोधक समाज-
सत्यशोधक समाज की स्थापना 1873 ई0 में ज्योतिबा फूले ने बम्बई में की।
उद्देश्य– ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
Question 18 of 60
18. Question
1 points
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी का उद्देश्य था
Correct
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य– अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Incorrect
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य– अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Unattempted
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य– अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Question 19 of 60
19. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस सामाजिक सुधार में सैयद अहमद खॉ की सर्वाधिक दिलचस्पी थी
Correct
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Incorrect
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Unattempted
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Question 20 of 60
20. Question
1 points
उन्नीसवीं शताब्दी के महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली जाति प्रथा तथा ब्राह्मण विरोधी अभियान चलाने वाले कौन थे
Correct
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
जिसका उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Incorrect
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
जिसका उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Unattempted
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
जिसका उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Question 21 of 60
21. Question
1 points
स्वामी दयानंद ने किसका विरोध किया
Correct
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती–
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Incorrect
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती–
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Unattempted
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती–
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Question 22 of 60
22. Question
1 points
अलीगढ़ आंदोलन द्वारा क्या हुआ
Correct
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Incorrect
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Unattempted
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Question 23 of 60
23. Question
1 points
बेहरामजी मालाबारी कौन थे
Correct
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Incorrect
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Unattempted
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Question 24 of 60
24. Question
1 points
गोपालकृष्ण गोखले ने किसकी स्थापना की
Correct
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य- अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Incorrect
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य- अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Unattempted
व्याख्या-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी-
सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना 1905 में बम्बई में गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
उद्देश्य- अपनी मातृभूमि की किसी न किसी रूप में सेवा के लिए समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना ।
Question 25 of 60
25. Question
1 points
हिन्दू धर्म को नवीन, आधुनिक और सरल बनाने का श्रेय किसको है
Correct
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य –हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Incorrect
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य –हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Unattempted
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य –हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Question 26 of 60
26. Question
1 points
स्वामी विवेकानंद ने सर्व-धर्म सम्मेलन में किस वर्ष में भाग लिया।
Correct
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Incorrect
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Unattempted
व्याख्या-
वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Question 27 of 60
27. Question
1 points
1891 के एज ऑफ कन्सेंट ऐक्ट ने
Correct
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Incorrect
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Unattempted
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Question 28 of 60
28. Question
1 points
राममोहन राय कौन थे
Correct
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Incorrect
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Unattempted
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Question 29 of 60
29. Question
1 points
सैय्यद अहमद खान क्या चाहते थे
Correct
व्याख्या.
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Incorrect
व्याख्या.
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Unattempted
व्याख्या.
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
Question 30 of 60
30. Question
1 points
‘शारदा अधिनियम’ किससे संबंधित था-
Correct
व्याख्या-
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Incorrect
व्याख्या-
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Unattempted
व्याख्या-
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Question 31 of 60
31. Question
1 points
कर्नल स्लीमैन ने
Correct
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Incorrect
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Unattempted
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Question 32 of 60
32. Question
1 points
19वीं शताब्दी के सभी भारतीय सामाजिक सुधारकों ने-
Correct
व्याख्या-
19वीं सदी के सभी समाज सुधारकों ने सामाजिक अत्याचार की निन्दा की।
उन्नीसवीं सदी को भारतीय सुधार आन्दोलन का काल कहा जाता है।
भारत में उन्नीसवीं सदी में सामाजिक सुधारों की बाढ़ सी लग गई थी।
हिन्दू धर्म में सुधार के लिए राजा राममोहन राय ने 1828 ई0 में ब्रह्म समाज की नींव डाली।
1867 ई0 में केशवचन्द्र की प्रेरणा से बम्बई में एक प्रार्थना समाज स्थापित किया।
1875 ई0 में दयानन्द सरस्वती ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की।
Incorrect
व्याख्या-
19वीं सदी के सभी समाज सुधारकों ने सामाजिक अत्याचार की निन्दा की।
उन्नीसवीं सदी को भारतीय सुधार आन्दोलन का काल कहा जाता है।
भारत में उन्नीसवीं सदी में सामाजिक सुधारों की बाढ़ सी लग गई थी।
हिन्दू धर्म में सुधार के लिए राजा राममोहन राय ने 1828 ई0 में ब्रह्म समाज की नींव डाली।
1867 ई0 में केशवचन्द्र की प्रेरणा से बम्बई में एक प्रार्थना समाज स्थापित किया।
1875 ई0 में दयानन्द सरस्वती ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की।
Unattempted
व्याख्या-
19वीं सदी के सभी समाज सुधारकों ने सामाजिक अत्याचार की निन्दा की।
उन्नीसवीं सदी को भारतीय सुधार आन्दोलन का काल कहा जाता है।
भारत में उन्नीसवीं सदी में सामाजिक सुधारों की बाढ़ सी लग गई थी।
हिन्दू धर्म में सुधार के लिए राजा राममोहन राय ने 1828 ई0 में ब्रह्म समाज की नींव डाली।
1867 ई0 में केशवचन्द्र की प्रेरणा से बम्बई में एक प्रार्थना समाज स्थापित किया।
1875 ई0 में दयानन्द सरस्वती ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की।
Question 33 of 60
33. Question
1 points
सर सैयद अहमद खान ने –
Correct
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
सर सैय्यद अहमद खाँ ने कांग्रेस की स्थापना तीव्र विरोध किया।
इसे “हिन्दुओं की संस्था’ कहकर मुसलमानों को इससे अलग रहने की सलाह दी।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
1886 ईस्वी में इन्होंने कांग्रेस के प्रतिद्धन्दी संगठन के रूप में एडुकेशनल कांग्रेस (शैक्षिक व्यवस्था) की स्थापना की।
1888 ईस्वी में यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिशएन की स्थापना की।
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
इन्होंने इल्बर्ट बिल का समर्थन किया
Incorrect
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
सर सैय्यद अहमद खाँ ने कांग्रेस की स्थापना तीव्र विरोध किया।
इसे “हिन्दुओं की संस्था’ कहकर मुसलमानों को इससे अलग रहने की सलाह दी।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
1886 ईस्वी में इन्होंने कांग्रेस के प्रतिद्धन्दी संगठन के रूप में एडुकेशनल कांग्रेस (शैक्षिक व्यवस्था) की स्थापना की।
1888 ईस्वी में यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिशएन की स्थापना की।
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
इन्होंने इल्बर्ट बिल का समर्थन किया
Unattempted
व्याख्या-
सर सैय्यद अहमद खाँ/अलीगढ़ आंदोलन-
अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत सर सैय्यद अहमद खाँ ने की।
सर सैय्यद अहमद खाँ ने कांग्रेस की स्थापना तीव्र विरोध किया।
इसे “हिन्दुओं की संस्था’ कहकर मुसलमानों को इससे अलग रहने की सलाह दी।
इसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज्य का भक्त बनाना
मुसलमानों को अंग्रेजी/पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में मोहम्मडन ऐग्लों ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की
1886 ईस्वी में इन्होंने कांग्रेस के प्रतिद्धन्दी संगठन के रूप में एडुकेशनल कांग्रेस (शैक्षिक व्यवस्था) की स्थापना की।
1888 ईस्वी में यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिशएन की स्थापना की।
मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहन करना
इन्होंने इल्बर्ट बिल का समर्थन किया
Question 34 of 60
34. Question
1 points
शारदा अधिनियम ने क्या किया
Correct
व्याख्या.
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Incorrect
व्याख्या.
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Unattempted
व्याख्या.
शारदा एक्ट-
1929 ई0 के शारदा एक्ट द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों के विवाह की आयु सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गयी।
Question 35 of 60
35. Question
1 points
प्रार्थना समाज की स्थापना किसने की –
Correct
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
Incorrect
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
Unattempted
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
Question 36 of 60
36. Question
1 points
स्वामी विवेकानंद ने किस वर्ष शिकागों में धर्म संसद में अपना भाषण दिया
Correct
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Incorrect
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Unattempted
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Question 37 of 60
37. Question
1 points
सामाजिक सुधार से संबंधित बैटिंक का प्रमुख कार्य था
Correct
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Incorrect
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Unattempted
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Question 38 of 60
38. Question
1 points
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की –
Correct
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना कलकत्ता में की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
Incorrect
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना कलकत्ता में की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
Unattempted
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना कलकत्ता में की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य- मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
Question 39 of 60
39. Question
1 points
1916 की अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना किसने की
Correct
व्याख्या-
होमरूल लीग-
भारत में होमरूल आंदोलन को शुरू करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है।
बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई0 में पूना में होमरूल लीग की स्थापना की।
अखिल भारतीय होमरूल लीग का गठन सितम्बर, 1916 में मद्रास में ऐनी बेसेन्ट ने किया।
बेसेन्ट ने अपने दैनिक पत्र ‘न्यू इंडिया’ तथा साप्ताहिक पत्र ‘कामनबील’ की मदद से इसका प्रचार किया।
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
Incorrect
व्याख्या-
होमरूल लीग-
भारत में होमरूल आंदोलन को शुरू करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है।
बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई0 में पूना में होमरूल लीग की स्थापना की।
अखिल भारतीय होमरूल लीग का गठन सितम्बर, 1916 में मद्रास में ऐनी बेसेन्ट ने किया।
बेसेन्ट ने अपने दैनिक पत्र ‘न्यू इंडिया’ तथा साप्ताहिक पत्र ‘कामनबील’ की मदद से इसका प्रचार किया।
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
Unattempted
व्याख्या-
होमरूल लीग-
भारत में होमरूल आंदोलन को शुरू करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है।
बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई0 में पूना में होमरूल लीग की स्थापना की।
अखिल भारतीय होमरूल लीग का गठन सितम्बर, 1916 में मद्रास में ऐनी बेसेन्ट ने किया।
बेसेन्ट ने अपने दैनिक पत्र ‘न्यू इंडिया’ तथा साप्ताहिक पत्र ‘कामनबील’ की मदद से इसका प्रचार किया।
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
1907 को थियोसॉफिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं।
Question 40 of 60
40. Question
1 points
नवीन हिन्दूवाद के प्रणेता थे
Correct
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Incorrect
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Unattempted
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन -“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Question 41 of 60
41. Question
1 points
1889 में अहमदिया आंदोलन को प्रारम्भ किया
Correct
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Incorrect
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Unattempted
व्याख्या-
अहमदिया आंदोलन-
अहमदिया आंदोलन का प्रारम्भ 1889 ईस्वी में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कादियानी नामक स्थान से शुरू हुआ |
पंजाब में अहमदिया आंदोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे
इसे कादियानी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार करना था।
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ में इस आंदोलन के सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
मिर्जा अहमद ने 1891 ईस्वी में स्वयं को मसीहे दाउद (होने वाला मसीहा) घोषित किया
मिर्जा अहमद ने 1904 में स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार घोषित किया।
Question 42 of 60
42. Question
1 points
मुसलमानों में पश्चिमी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये किसने 1863 में ‘मुहम्मड़न लिटरेरी सोसायटी’ की स्थापना की थी?
Correct
व्याख्या-
अब्दुल लतीफ-
मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में 1863 में अब्दुल लतीफ ने मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी की स्थापना की।
इन्हें बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है।
अब्दुल लतीफ के प्रयत्नों से ही मदरसों में अंग्रेजी का अध्ययन भी शुरु हो गया था।
Incorrect
व्याख्या-
अब्दुल लतीफ-
मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में 1863 में अब्दुल लतीफ ने मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी की स्थापना की।
इन्हें बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है।
अब्दुल लतीफ के प्रयत्नों से ही मदरसों में अंग्रेजी का अध्ययन भी शुरु हो गया था।
Unattempted
व्याख्या-
अब्दुल लतीफ-
मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में 1863 में अब्दुल लतीफ ने मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी की स्थापना की।
इन्हें बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है।
अब्दुल लतीफ के प्रयत्नों से ही मदरसों में अंग्रेजी का अध्ययन भी शुरु हो गया था।
Question 43 of 60
43. Question
1 points
थियोसोफिस्ट किसके सुदृढ़ीकरण तथा पुनर्जागरण की वकालत करते थे?
Correct
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य -हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिस्ट हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण की वकालत करते थे।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Incorrect
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य -हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिस्ट हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण की वकालत करते थे।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Unattempted
व्याख्या-
थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी-
1875 ई. में रूसी महिला मैडम एचपी0 ब्लाक्टस्की तथा अमेरिकी हेनरी ऑलकाँट ने मिलकर न्यूयार्क (अमेरिका) में थियोसोफिकल (ब्रह्मविद्या) सोसाइटी की स्थापना की।
उदेश्य -हिंदु धर्म में नवीन आधुनिक और सरल बनाना थियोसोफिकल आंदोलन की सबसे प्रमुख उपलब्धि थी।
थियोसोफिस्ट हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण की वकालत करते थे।
थियोसोफिकल सोसाइटी 1879 ईस्वी में भारत आयी
1882 ई0 में भारत में मद्रास के समीप अडयार में सोसाइटी के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की।
ऐनी बेसेन्ट ने. 1889 ईस्वी में लंदन में थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की
ऐनी बेसेन्ट 1893 ईस्वी में भारत आयी
इस को भारत में ऐनी बेसेन्ट ने इसे लोकप्रिय बनाया।
एनी बेसेन्ट का सबसे प्रमुख योगदान हिंदू धर्म में लोगों के विश्वास को बढ़ाना था।
1907 में ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।
Question 44 of 60
44. Question
1 points
1891 में बाल विवाह को निरूद्ध करने वाला अधिनियम किसके प्रयासों से पारित हुआ था?
Correct
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Incorrect
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Unattempted
व्याख्या-
बहराम जी मालाबारी –
बहराम जी मालाबारी एक पारसी समाज सुधारक थे।
इन्होंने जाति प्रथा तथा बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया।
इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही 1891 ईस्वी में एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पास हुआ जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट-
1891 में बी0एम0 मालाबारी के प्रयत्नों के फलस्वरूप एज ऑफ कन्सेन्ट ऐक्ट पारित किया गया।
इस अधिनियम द्वारा बालिकाओं के विवाह की सीमा 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगालधर तिलक ने इसका विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामजिक एवं धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं
Question 45 of 60
45. Question
1 points
‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना किसने की थी?
Correct
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Incorrect
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Unattempted
व्याख्या-
ज्योतिबा फूले/सत्यशोधक समाज-
महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को प्रारम्भ करने का श्रेय ‘ज्योतिबा फूले’ को दिया जाता है।
इन्होंने 1873 ईस्वी में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की
उद्देश्य -वंचक ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी शास्त्रों से निम्न जातियों की रक्षा करना तथा समाज में पिछड़े उपेक्षित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था।
इन्होंने 1872 ईस्वी में गुलामगीरी नामक एक पुस्तक भी लिखी।
गुलामगीरी ग्रन्थ द्वारा इन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
Question 46 of 60
46. Question
1 points
विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने के लिये 1871 में राजमुन्द्री सोशल रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना किसने की थी?
Correct
व्याख्या-
वीरेशलिंगम ने विधवा पुर्नविवाह को प्रोत्साहित करने के लिए 1871 में राजमुन्द्री सोशल रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना की ।
दक्षिण में प्रार्थना समाज के प्रसार का सबसे बड़ा श्रेय वीरेसलिंगम पुंतलू को है।
वीरेसलिंगम तेलगू के सबसे बड़े विद्वान थे,
भारत के परम्परावादी विश्वासों पर अंग्रेजी संपर्क के प्रभाव से लेकर जातिप्रथा एवं मूर्तिपूजा के दोष आदि चिंतन के विषय थे।
Incorrect
व्याख्या-
वीरेशलिंगम ने विधवा पुर्नविवाह को प्रोत्साहित करने के लिए 1871 में राजमुन्द्री सोशल रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना की ।
दक्षिण में प्रार्थना समाज के प्रसार का सबसे बड़ा श्रेय वीरेसलिंगम पुंतलू को है।
वीरेसलिंगम तेलगू के सबसे बड़े विद्वान थे,
भारत के परम्परावादी विश्वासों पर अंग्रेजी संपर्क के प्रभाव से लेकर जातिप्रथा एवं मूर्तिपूजा के दोष आदि चिंतन के विषय थे।
Unattempted
व्याख्या-
वीरेशलिंगम ने विधवा पुर्नविवाह को प्रोत्साहित करने के लिए 1871 में राजमुन्द्री सोशल रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना की ।
दक्षिण में प्रार्थना समाज के प्रसार का सबसे बड़ा श्रेय वीरेसलिंगम पुंतलू को है।
वीरेसलिंगम तेलगू के सबसे बड़े विद्वान थे,
भारत के परम्परावादी विश्वासों पर अंग्रेजी संपर्क के प्रभाव से लेकर जातिप्रथा एवं मूर्तिपूजा के दोष आदि चिंतन के विषय थे।
Question 47 of 60
47. Question
1 points
‘भारत भारतीयों के लिये नारा दिया था
Correct
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Incorrect
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Unattempted
व्याख्या-
आर्य समाज/स्वामी दयानंद सरस्वती-
‘आर्य समाज’ की स्थापना 1875 ई. में बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की
स्वामी दयानंद सरस्वती का नारा –
‘वेदों की ओर लौटो
भारत भारतीयों के लिए है’
स्वामी दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा बहुदेववाद और मूर्तिपूजा की निन्दा करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातीय प्रतिबंधों, बाल विवाह और समुद्री यात्रा निषेध के विरूद्ध भी अपनी आवाज उठाई तथा स्त्री-शिक्षा एवं विधवा-पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन भी चलाया।
पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया।
स्वामी दयांनद की मृत्यु के बाद इसी पाश्चात्य शिक्षा के प्रश्न पर ही आर्य समाज का विभाजन हो गया। .
लाला लाजपत राय एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया तथा अंग्रेजी भाषा में ‘हिस्ट्री ऑफ आर्य समाज ‘नामक पुस्तक की रचना की।
Question 48 of 60
48. Question
1 points
“पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक” कहा जाता है
Correct
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Incorrect
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Unattempted
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Question 49 of 60
49. Question
1 points
उन्नीसवीं सदी के यंग-बंगाल आन्दोलन के प्रवर्तक थे
Correct
व्याख्या-
यंग-बंगाल आन्दोलन /हेनरी विवियन डेरीजियो –
फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित डेरोजियों ने बंगाल में यंग-बंगाल आंदोलन को 1826 ई. में प्रारम्भ किया।
इन्होंने अपने दैनिक पत्र ‘ईस्ट इंडिया के माध्यम से स्वतंत्रता व बौद्धिकता के समान चितंन करने तथा अंधविश्वास युक्त रीति रिवाजों एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने का आहवान किया।
डेरोजियो ने बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त युवकों की प्रथम पीढ़ी को सुकरात के समान अत्यंत गहराई के प्रभावित कर उनकी सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति का प्रयास किया।
Incorrect
व्याख्या-
यंग-बंगाल आन्दोलन /हेनरी विवियन डेरीजियो –
फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित डेरोजियों ने बंगाल में यंग-बंगाल आंदोलन को 1826 ई. में प्रारम्भ किया।
इन्होंने अपने दैनिक पत्र ‘ईस्ट इंडिया के माध्यम से स्वतंत्रता व बौद्धिकता के समान चितंन करने तथा अंधविश्वास युक्त रीति रिवाजों एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने का आहवान किया।
डेरोजियो ने बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त युवकों की प्रथम पीढ़ी को सुकरात के समान अत्यंत गहराई के प्रभावित कर उनकी सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति का प्रयास किया।
Unattempted
व्याख्या-
यंग-बंगाल आन्दोलन /हेनरी विवियन डेरीजियो –
फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित डेरोजियों ने बंगाल में यंग-बंगाल आंदोलन को 1826 ई. में प्रारम्भ किया।
इन्होंने अपने दैनिक पत्र ‘ईस्ट इंडिया के माध्यम से स्वतंत्रता व बौद्धिकता के समान चितंन करने तथा अंधविश्वास युक्त रीति रिवाजों एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने का आहवान किया।
डेरोजियो ने बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त युवकों की प्रथम पीढ़ी को सुकरात के समान अत्यंत गहराई के प्रभावित कर उनकी सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति का प्रयास किया।
Question 50 of 60
50. Question
1 points
वहाबी आन्दोलन’ किसने चलाया था?
Correct
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Incorrect
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Unattempted
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Question 51 of 60
51. Question
1 points
“रहनुमा-ए-मजदयासन सभा के सदस्य नहीं थे
Correct
व्याख्या-
“रहनुमा-ए-मजदयासन सभा-
1851 ई0 में दादा भाई नौरोजी, नौरोजी फरदोन जी, एस. एस. बंगाली, आरा के. कामा आदि नेताओं ने बम्बई में रहनुमाई मजदयासन सभा का गठन किया।
उद्देश्य -पारसियों की सामाजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना और पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त करना
इस सभा द्वारा स्त्रियों की दशा में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयु बढ़ाने पर बल दिया गया।
इस सभा के सन्देशवाहन हेतु दादामाई नौरोजी ने रास्त गोफ्तार (सत्यवादी) गुजराती भाषा में पत्रिका निकाली।
******बाल गंगाधर तिलक “रहनुमा-ए-मजदयासन सभा के सदस्य नहीं थे
Incorrect
व्याख्या-
“रहनुमा-ए-मजदयासन सभा-
1851 ई0 में दादा भाई नौरोजी, नौरोजी फरदोन जी, एस. एस. बंगाली, आरा के. कामा आदि नेताओं ने बम्बई में रहनुमाई मजदयासन सभा का गठन किया।
उद्देश्य -पारसियों की सामाजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना और पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त करना
इस सभा द्वारा स्त्रियों की दशा में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयु बढ़ाने पर बल दिया गया।
इस सभा के सन्देशवाहन हेतु दादामाई नौरोजी ने रास्त गोफ्तार (सत्यवादी) गुजराती भाषा में पत्रिका निकाली।
******बाल गंगाधर तिलक “रहनुमा-ए-मजदयासन सभा के सदस्य नहीं थे
Unattempted
व्याख्या-
“रहनुमा-ए-मजदयासन सभा-
1851 ई0 में दादा भाई नौरोजी, नौरोजी फरदोन जी, एस. एस. बंगाली, आरा के. कामा आदि नेताओं ने बम्बई में रहनुमाई मजदयासन सभा का गठन किया।
उद्देश्य -पारसियों की सामाजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना और पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त करना
इस सभा द्वारा स्त्रियों की दशा में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयु बढ़ाने पर बल दिया गया।
इस सभा के सन्देशवाहन हेतु दादामाई नौरोजी ने रास्त गोफ्तार (सत्यवादी) गुजराती भाषा में पत्रिका निकाली।
******बाल गंगाधर तिलक “रहनुमा-ए-मजदयासन सभा के सदस्य नहीं थे
Question 52 of 60
52. Question
1 points
सती प्रथा को कानून बनाकर किसने बन्द किया –
Correct
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Incorrect
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Unattempted
व्याख्या-
सामाजिक सुधार से सम्बन्धित गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक (1828-36) का प्रमुख कार्य सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना था।
बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को पारित अधिनियम के सत्रहवें (XVII) नियम द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। बैंटिक का सबसे प्रमुख शैक्षणिक सुधार फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
Question 53 of 60
53. Question
1 points
महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना किसने की थी
Correct
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
1869 ई0 में महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज की सदस्य बने।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Incorrect
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
1869 ई0 में महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज की सदस्य बने।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Unattempted
व्याख्या-
प्रार्थना समाज-
स्थापना 1867 ई डॉ आत्मा राम पाण्डुरंग ने बम्बई में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से की।
इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ महादेव गोविन्द रानाडे को है।
1869 ई0 में महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज की सदस्य बने।
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत के पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।
रानाडे ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया।
रानाडे के द्वारा इन्होंने स्त्री व पुरुष के समान अधिकार, शिक्षा के प्रसार, बच्चों व विधवाओं के प्रति सामाजिक अन्याय से सुरक्षा दिलाना जैसे कार्य किए।
Question 54 of 60
54. Question
1 points
कर्नल स्लीमैन ने किस प्रथा का उन्मूलन किया
Correct
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Incorrect
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Unattempted
व्याख्या-
गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग (1828 -36ई) ने ठगी प्रथा का दमन करने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया
1833 ई. में ठगी प्रथा को लगभग समाप्त कर दिया। |
Question 55 of 60
55. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन वहाबी आन्दोलन का नेता था?
Correct
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Incorrect
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Unattempted
व्याख्या-
वहाबी आन्दोलन-
भारत में वहाबी आंदोलन की शुरूआत रायबरेली के सैयद अहमद ने की।
भारत में इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
पटना में अब्दुल वहाब ने इसका नेतृत्व किया।
यह आंदोलन धार्मिक उद्देश्यों को लेकर शुरू किया गया.
भारत में इस आंदोलन का उददेश्य इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के साथ इस्लामिक राज्य की स्थापना था।
पूर्वी भारत में इसके नेता शेख करामत अली और हाजी शरीयत उल्ला थे।
Question 56 of 60
56. Question
1 points
भारतीय की शेष दुनिया से अछूते रहने की आलोचना किसने की थी?
Correct
व्याख्या –
राजाराम मोहनराय ने के अनुसार तत्कालीन भारतीय समाज को केवल पश्चिमी संस्कृति ही पुनर्जीवित ही कर सकती थी।
राजाराम मोहनराय ने पुनरूद्वार के लिए उनके देशवासी पश्चिम के युक्तिसंगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव गरिमा तथा सामाजिक एकता के सिद्धान्त को स्वीकार कर न कि शेष दुनिया से अलग रहें।
Incorrect
व्याख्या –
राजाराम मोहनराय ने के अनुसार तत्कालीन भारतीय समाज को केवल पश्चिमी संस्कृति ही पुनर्जीवित ही कर सकती थी।
राजाराम मोहनराय ने पुनरूद्वार के लिए उनके देशवासी पश्चिम के युक्तिसंगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव गरिमा तथा सामाजिक एकता के सिद्धान्त को स्वीकार कर न कि शेष दुनिया से अलग रहें।
Unattempted
व्याख्या –
राजाराम मोहनराय ने के अनुसार तत्कालीन भारतीय समाज को केवल पश्चिमी संस्कृति ही पुनर्जीवित ही कर सकती थी।
राजाराम मोहनराय ने पुनरूद्वार के लिए उनके देशवासी पश्चिम के युक्तिसंगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव गरिमा तथा सामाजिक एकता के सिद्धान्त को स्वीकार कर न कि शेष दुनिया से अलग रहें।
Question 57 of 60
57. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौनसी महिला समाज सुधारक थी जो पण्डिता कहलाती थी?
Correct
व्याख्या –
1889 में बम्बई में पंडिता रमाबाई ने एक विधवा आश्रम की स्थापना की|
1890 में विधवा आश्रम को पूना में स्थानांतरित किया गया।
रमाबाई समाज सुधार आंदोलन से सम्बद्ध स्त्रियों में ये अग्रणी थीं।
Incorrect
व्याख्या –
1889 में बम्बई में पंडिता रमाबाई ने एक विधवा आश्रम की स्थापना की|
1890 में विधवा आश्रम को पूना में स्थानांतरित किया गया।
रमाबाई समाज सुधार आंदोलन से सम्बद्ध स्त्रियों में ये अग्रणी थीं।
Unattempted
व्याख्या –
1889 में बम्बई में पंडिता रमाबाई ने एक विधवा आश्रम की स्थापना की|
1890 में विधवा आश्रम को पूना में स्थानांतरित किया गया।
रमाबाई समाज सुधार आंदोलन से सम्बद्ध स्त्रियों में ये अग्रणी थीं।
Question 58 of 60
58. Question
1 points
स्वामी विवेकानंद किसके अनुयायी थे
Correct
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन –“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Incorrect
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन –“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Unattempted
व्याख्या-
रामकृष्ण मिशन’/वेदान्त सोसाइटी/स्वामी विवेकानंद –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
इसे 19वीं शताब्दी के “नव हिन्दू जागरण”/नवीन हिन्दूवाद” का संस्थापक कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद का कथन –“जिस एक मात्र ईश्वर पर मैं विश्वास करता हैं, जो सर्वलोकात्मा और सर्वोपरि है, वह मेरा ईश्वर सब देशों का दुखी, पीड़ित और दरिद्र जन है।”
विवेकानंद मानवतावादी विचारक थे।
इन्होंने 1893 ई0 में अमरीका के शिकागों में आयोजित प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लिया।
1896 ई0 में भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रचार हेतु न्यूयार्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
1897 ई0 में ‘रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद का संदेश – “जब तक कि करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता के गोते खा रहे है, तब तक में हर आदमी को मैं एक विश्वास घातक मानता हूँ, जिसने उनकी गाढ़ी कमाई से शिक्षा पायी है और अब ‘ उन्हीं पर कोई ध्यान नहीं देता है।”
इनके प्रभावशाली भाषणों से प्रभावित होकर न्यूयार्क हेराल्ड ने इनके सम्बन्ध में लिखा कि, ‘शिकागो के धर्ममहासभा में विवेकानंद सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है
Question 59 of 60
59. Question
1 points
उन्नीसवीं शताब्दी में सामाजिक और धार्मिक सुधारों को महत्वपूर्ण कारण था
Correct
व्याख्या-
पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण करने वाले कुछ बुद्धिजीवी भारतीयों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति में विद्यमान बुराईयों एवं अन्धविश्वासों के प्रति घृणा का प्रदर्शन किया
पाश्चात्य शिक्षा से भारतीय समाज को पर्याप्त सीमा तक एक आधुनिक राष्ट्र बनाने का प्रयास किया।
Incorrect
व्याख्या-
पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण करने वाले कुछ बुद्धिजीवी भारतीयों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति में विद्यमान बुराईयों एवं अन्धविश्वासों के प्रति घृणा का प्रदर्शन किया
पाश्चात्य शिक्षा से भारतीय समाज को पर्याप्त सीमा तक एक आधुनिक राष्ट्र बनाने का प्रयास किया।
Unattempted
व्याख्या-
पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण करने वाले कुछ बुद्धिजीवी भारतीयों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति में विद्यमान बुराईयों एवं अन्धविश्वासों के प्रति घृणा का प्रदर्शन किया
पाश्चात्य शिक्षा से भारतीय समाज को पर्याप्त सीमा तक एक आधुनिक राष्ट्र बनाने का प्रयास किया।
Question 60 of 60
60. Question
1 points
. ‘आधुनिक भारत का पिता’ (Father of Modern India) उपाधि प्रयोग की जाती हैं
Correct
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
राजा राममोहन राय को ‘नवीन भारत के संदेशवाहकः तथा . ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है।
राजा राममोहन राय प्रजातंत्रवादी और मानवतावादी थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर(आदि ब्रह्म समाज-1866 ) का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन (भारतीय ब्रह्म समाज -1866)का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
Incorrect
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
राजा राममोहन राय को ‘नवीन भारत के संदेशवाहकः तथा . ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है।
राजा राममोहन राय प्रजातंत्रवादी और मानवतावादी थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर(आदि ब्रह्म समाज-1866 ) का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन (भारतीय ब्रह्म समाज -1866)का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
Unattempted
व्याख्या-
ब्रह्म समाज/ राजा राममोहन राय-
19 शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए।
राजा राममोहन राय भारतीय राष्ट्रीयता के पैगम्बर नवीन भारत के संदेशवाहक व सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक थे।
राजा राममोहन राय को ‘नवीन भारत के संदेशवाहकः तथा . ‘आधुनिक भारत का पिता’ कहा जाता है।
राजा राममोहन राय प्रजातंत्रवादी और मानवतावादी थे।
हिंदू धर्म में पहला सुधार आंदोलन राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में 1828 में ब्रम्ह समाज की स्थापना की
ब्रह्म समाज का उद्देश्य– मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना तथा एकेश्वरवाद का समर्थन करना था।
राम मोहन राय ने स्त्रियों की अपमानजनक स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयत्न किये।
राम मोहन राय ने बाल विवाह तथा विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया।
राम मोहन राय के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंग ने 1829 ईस्वी में सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया।
1843 ईस्वी में ब्रह्म समाज में देवेन्द्र नाथ टैगोर(आदि ब्रह्म समाज-1866 ) का प्रवेश हुआ।
1857 ई0 में केशवचन्द्र सेन (भारतीय ब्रह्म समाज -1866)का प्रवेश हुआ।
ब्रह्मसमाज आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय केशवचन्द्र सेन को ही दिया जाता है।
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