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Question 1 of 30
1. Question
2 points
भारत में पहला रेल मार्ग कहाँ से कहाँ तक चला था?
Correct
व्याख्या-
भारत में प्रथम रेलमार्ग अप्रैल, 1853 ई० को लॉर्ड डलहौजी के समय में बम्बई से थाणे के बीच स्थापित की गयी।
लॉर्ड डलहौजी का काल (1848-56 ई०)
लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल (1899 1905 ई०) में भारत में रेल लाइन का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
भारत में विछायी गयी रेल लाइन को कार्लमार्क्स ने आधुनिक युग का अग्रदूत कहा।
Incorrect
व्याख्या-
भारत में प्रथम रेलमार्ग अप्रैल, 1853 ई० को लॉर्ड डलहौजी के समय में बम्बई से थाणे के बीच स्थापित की गयी।
लॉर्ड डलहौजी का काल (1848-56 ई०)
लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल (1899 1905 ई०) में भारत में रेल लाइन का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
भारत में विछायी गयी रेल लाइन को कार्लमार्क्स ने आधुनिक युग का अग्रदूत कहा।
Unattempted
व्याख्या-
भारत में प्रथम रेलमार्ग अप्रैल, 1853 ई० को लॉर्ड डलहौजी के समय में बम्बई से थाणे के बीच स्थापित की गयी।
लॉर्ड डलहौजी का काल (1848-56 ई०)
लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल (1899 1905 ई०) में भारत में रेल लाइन का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
भारत में विछायी गयी रेल लाइन को कार्लमार्क्स ने आधुनिक युग का अग्रदूत कहा।
Question 2 of 30
2. Question
2 points
किसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया है?
Correct
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Incorrect
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Unattempted
व्याख्या –
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ही धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
दादानाई नौरोजी ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
दादानाई नौरोजी तथा महादेव गोविन्द रानाडे भारत से धन के बर्हिगमन के प्रतिपादक थे।
Question 3 of 30
3. Question
2 points
स्थायी भू बन्दोवस्त में जमींदारों का हिस्सा होता था।
Correct
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Incorrect
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Unattempted
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Question 4 of 30
4. Question
2 points
मद्रास में रैयतवाड़ी भूमि बन्दोबस्त के प्रतिस्थापक थे
Correct
व्याख्या –
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
Incorrect
व्याख्या –
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
Unattempted
व्याख्या –
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
Question 5 of 30
5. Question
2 points
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन किसके बाद आरम्भ हुआ?
Correct
व्याख्या :
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या :
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या :
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 6 of 30
6. Question
2 points
पहली बार भारतवर्ष की औसत प्रति व्यक्ति आय का सांख्यिकीय अनुमान प्रस्तुत करने वाला कौन था?
Correct
व्याख्या
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
–
Incorrect
व्याख्या
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
–
Unattempted
व्याख्या
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
दादा भाई नौरोजी तथा एम. जी. रानाडे जैसे राष्ट्रवादियों ने भारत से धन के बर्हिगमन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
–
Question 7 of 30
7. Question
2 points
सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि-राजस्व वसूल करने का अधिकार देने की व्यवस्था का प्रारम्भ सर्वप्रथम किसने किया?
Correct
व्याख्या –
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी,
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
कंपनी ने दीवानी कार्य के लिए दो उपदीवान- बंगाल के लिए मुहम्मद रजा को तथा बिहार के लिए राजा शिताब राय को नियुक्त किया।
वारेन हेटिंग्स का मानता था कि समस्त भूमि सम्राट की है।
वारेन हेटिंग्स ने भू-राजस्व व्यवस्था का आरम्भ भूमि की नीलामी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को देकर की।
सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि-राजस्व वसूल करने का अधिकार देने की व्यवस्था का प्रारम्भ सर्वप्रथम वारेन हेटिंग्स ने किया
Incorrect
व्याख्या –
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी,
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
कंपनी ने दीवानी कार्य के लिए दो उपदीवान- बंगाल के लिए मुहम्मद रजा को तथा बिहार के लिए राजा शिताब राय को नियुक्त किया।
वारेन हेटिंग्स का मानता था कि समस्त भूमि सम्राट की है।
वारेन हेटिंग्स ने भू-राजस्व व्यवस्था का आरम्भ भूमि की नीलामी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को देकर की।
सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि-राजस्व वसूल करने का अधिकार देने की व्यवस्था का प्रारम्भ सर्वप्रथम वारेन हेटिंग्स ने किया
Unattempted
व्याख्या –
प्लासी के युद्ध तक यूरोपीय व्यापारी सूती और रेशमी वस्त्रों, जिनकी पश्चिमी देशों में अधिक मांग थी,
ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात के बदले भारत में सोने-चाँदी का आयात करते थे
बक्सर की विजय के बाद अंग्रेजों ने दीवानी अधिकार प्राप्त कर लीए
भारत से इंग्लैण्ड के लिए धन का निष्कासन 1765 में दीवानी प्रदान करने के बाद के बाद आरम्भ हुआ
कंपनी ने दीवानी कार्य के लिए दो उपदीवान- बंगाल के लिए मुहम्मद रजा को तथा बिहार के लिए राजा शिताब राय को नियुक्त किया।
वारेन हेटिंग्स का मानता था कि समस्त भूमि सम्राट की है।
वारेन हेटिंग्स ने भू-राजस्व व्यवस्था का आरम्भ भूमि की नीलामी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को देकर की।
सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि-राजस्व वसूल करने का अधिकार देने की व्यवस्था का प्रारम्भ सर्वप्रथम वारेन हेटिंग्स ने किया
Question 8 of 30
8. Question
2 points
लार्ड कार्नवालिस के निम्नलिखित सलाहकारों में से किसने स्थायी बन्दोबस्त की प्रस्तावना का विरोध किया था?
Correct
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
लार्ड कार्नवालिस ने भू-राजस्व की स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था प्रारम्भ करने के पहले राजस्व बोर्ड के प्रमुख जॉन शोर से सलाह ली थी।
जॉन शोर ने उसे जमींदारों के साथ भू-राजस्व बन्दोबस्त करने पर जोर दिया
जॉन शोर बन्दोबस्त स्थायी करने के विरूद्ध था
जॉन शोर मानना था कि भू सम्पत्तियों का सर्वेक्षण तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है।
जॉन शोर के अनुसार बन्दोबस्त केवल दस वर्ष के लिए होना चाहिए।
कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Incorrect
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
लार्ड कार्नवालिस ने भू-राजस्व की स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था प्रारम्भ करने के पहले राजस्व बोर्ड के प्रमुख जॉन शोर से सलाह ली थी।
जॉन शोर ने उसे जमींदारों के साथ भू-राजस्व बन्दोबस्त करने पर जोर दिया
जॉन शोर बन्दोबस्त स्थायी करने के विरूद्ध था
जॉन शोर मानना था कि भू सम्पत्तियों का सर्वेक्षण तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है।
जॉन शोर के अनुसार बन्दोबस्त केवल दस वर्ष के लिए होना चाहिए।
कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Unattempted
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
लार्ड कार्नवालिस ने भू-राजस्व की स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था प्रारम्भ करने के पहले राजस्व बोर्ड के प्रमुख जॉन शोर से सलाह ली थी।
जॉन शोर ने उसे जमींदारों के साथ भू-राजस्व बन्दोबस्त करने पर जोर दिया
जॉन शोर बन्दोबस्त स्थायी करने के विरूद्ध था
जॉन शोर मानना था कि भू सम्पत्तियों का सर्वेक्षण तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है।
जॉन शोर के अनुसार बन्दोबस्त केवल दस वर्ष के लिए होना चाहिए।
कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Question 9 of 30
9. Question
2 points
निम्नलिखित बन्दोबस्तों में से किसमें जमींदार भू-राजस्व संग्रह कराने में मध्यस्थ व्यक्ति के रूप में था?
Correct
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
Incorrect
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
Unattempted
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
Question 10 of 30
10. Question
2 points
दादाभाई नौरोजी ने किस लेख के माध्यम से लोगों का ध्यान ‘धन निष्कासन’ (Draln of Welth) सिद्धांत की ओर खींचा?
Correct
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 11 of 30
11. Question
2 points
व्यापारियों द्वारा दस्तकारों को वांछित माल की प्राप्ति हेतु दी गई अग्रिम धनराशि के लिए किस शब्दावली का इस्तेमाल होता था?
Correct
व्याख्या-
ददनी प्रथा-
इस प्रथा के अंतर्गत अग्रिम करारनामा जो बाजार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था, कर लिया जाता था ।
इस प्रथा के अन्तर्गत ब्रिटिश व्यापारी भारतीय उत्पादकों, कारीगरों एवं शिल्पियों को ‘अग्रिम संविदा’ (पेशगी) के रूप में दे देते थे।
व्यापारियों द्वारा दस्तकारों को वांछित माल की प्राप्ति हेतु दी गई अग्रिम धनराशि ददनी प्रथा कहा गया
Incorrect
व्याख्या-
ददनी प्रथा-
इस प्रथा के अंतर्गत अग्रिम करारनामा जो बाजार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था, कर लिया जाता था ।
इस प्रथा के अन्तर्गत ब्रिटिश व्यापारी भारतीय उत्पादकों, कारीगरों एवं शिल्पियों को ‘अग्रिम संविदा’ (पेशगी) के रूप में दे देते थे।
व्यापारियों द्वारा दस्तकारों को वांछित माल की प्राप्ति हेतु दी गई अग्रिम धनराशि ददनी प्रथा कहा गया
Unattempted
व्याख्या-
ददनी प्रथा-
इस प्रथा के अंतर्गत अग्रिम करारनामा जो बाजार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था, कर लिया जाता था ।
इस प्रथा के अन्तर्गत ब्रिटिश व्यापारी भारतीय उत्पादकों, कारीगरों एवं शिल्पियों को ‘अग्रिम संविदा’ (पेशगी) के रूप में दे देते थे।
व्यापारियों द्वारा दस्तकारों को वांछित माल की प्राप्ति हेतु दी गई अग्रिम धनराशि ददनी प्रथा कहा गया
Question 12 of 30
12. Question
2 points
सूची। को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए और निम्नलिखित कूट से सही उत्तर चुनिए
सूची। सूची ॥
A जोनाथन डंकन 1. महलवाड़ी
B टॉमस मनरो – 2: बंगाल का स्थायी बंदोबस्त
C कानविलास 3. रैय्यतवाड़ी बंदोबस्त
D हाल्ट मेकेंजी 4. बनारस का स्थायी बंदोबस्त
Correct
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
****** बनारस का स्थायी बंदोबस्त जोनाथन डंकन ने लागू किया
Incorrect
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
****** बनारस का स्थायी बंदोबस्त जोनाथन डंकन ने लागू किया
Unattempted
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
****** बनारस का स्थायी बंदोबस्त जोनाथन डंकन ने लागू किया
Question 13 of 30
13. Question
2 points
दादाभाई नौरोजी ने अपने किस लेख में ‘धन के बहिर्ममन का सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया था?
Correct
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 14 of 30
14. Question
2 points
निम्नलिखित राष्ट्रवादियों में से जो योजनात्मक आर्थिक विकास के आधार पर राष्ट्रनिर्माण के पक्षधर थे, में से – कौन अभियन्ता भी था?
Correct
व्याख्या-
कराची अधिवेशन 1931 ई० में कांग्रेस के एक प्रस्ताव में कहा गया कि राज्य प्रमुख उद्योगों, सेवाओं, खनिज स्रोतों आदि पर नियंत्रण रखेगा।
1934 ई0 में सर एम0 विश्वेसरैया (जो कि एक अभियंता भी थे) ने अपनी पुस्तक ‘द प्लांड इकॉनामी फार इंडिया’ में राष्ट्रीय आय को 10 वर्षों में दो गुना करने का लक्ष्य रखा।
सर एम0 विश्वेसरैया को ‘भारतीय योजना का जनक’ कहा जाता है।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही रानाडे एवं दादाभाई नौरोजी जैसे प्रारंम्भिक राष्ट्रवादियों के आर्थिक चिन्तन ने आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की थी।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
Incorrect
व्याख्या-
कराची अधिवेशन 1931 ई० में कांग्रेस के एक प्रस्ताव में कहा गया कि राज्य प्रमुख उद्योगों, सेवाओं, खनिज स्रोतों आदि पर नियंत्रण रखेगा।
1934 ई0 में सर एम0 विश्वेसरैया (जो कि एक अभियंता भी थे) ने अपनी पुस्तक ‘द प्लांड इकॉनामी फार इंडिया’ में राष्ट्रीय आय को 10 वर्षों में दो गुना करने का लक्ष्य रखा।
सर एम0 विश्वेसरैया को ‘भारतीय योजना का जनक’ कहा जाता है।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही रानाडे एवं दादाभाई नौरोजी जैसे प्रारंम्भिक राष्ट्रवादियों के आर्थिक चिन्तन ने आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की थी।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
Unattempted
व्याख्या-
कराची अधिवेशन 1931 ई० में कांग्रेस के एक प्रस्ताव में कहा गया कि राज्य प्रमुख उद्योगों, सेवाओं, खनिज स्रोतों आदि पर नियंत्रण रखेगा।
1934 ई0 में सर एम0 विश्वेसरैया (जो कि एक अभियंता भी थे) ने अपनी पुस्तक ‘द प्लांड इकॉनामी फार इंडिया’ में राष्ट्रीय आय को 10 वर्षों में दो गुना करने का लक्ष्य रखा।
सर एम0 विश्वेसरैया को ‘भारतीय योजना का जनक’ कहा जाता है।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही रानाडे एवं दादाभाई नौरोजी जैसे प्रारंम्भिक राष्ट्रवादियों के आर्थिक चिन्तन ने आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की थी।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
Question 15 of 30
15. Question
2 points
औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहास को किसने निम्न चार चरणों में विभाजित किया
व्यापारिक पूंजीवाद
मुक्त व्यापार पूंजीवाद
औद्योगिक पूंजीवाद
वित्तीय पूंजीवाद
Correct
व्याख्या-
जर्मनी के कार्ल मार्क्स ने सर्वप्रथम भारत पर ब्रिटिश आर्थिक नीति का विवेचन किया।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या-
जर्मनी के कार्ल मार्क्स ने सर्वप्रथम भारत पर ब्रिटिश आर्थिक नीति का विवेचन किया।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या-
जर्मनी के कार्ल मार्क्स ने सर्वप्रथम भारत पर ब्रिटिश आर्थिक नीति का विवेचन किया।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 16 of 30
16. Question
2 points
निम्नलिखित में से किस समाचार पत्र ने कहा था कि “भारत में रेल का विकास एक हथकड़ी है.
Correct
व्याख्या-
सहचर नामक समाचार पत्रने प्रकाशित किया था कि भारत में रेल का विकास एक हथकड़ी है।
1844 ई0 में सहचर ने लिखा था कि ‘लौह पथों के विस्तार का अर्थ लौह बन्धन है।’
Incorrect
व्याख्या-
सहचर नामक समाचार पत्रने प्रकाशित किया था कि भारत में रेल का विकास एक हथकड़ी है।
1844 ई0 में सहचर ने लिखा था कि ‘लौह पथों के विस्तार का अर्थ लौह बन्धन है।’
Unattempted
व्याख्या-
सहचर नामक समाचार पत्रने प्रकाशित किया था कि भारत में रेल का विकास एक हथकड़ी है।
1844 ई0 में सहचर ने लिखा था कि ‘लौह पथों के विस्तार का अर्थ लौह बन्धन है।’
Question 17 of 30
17. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन स्थायी बंदोबस्त के गुणों में नहीं था
Correct
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Incorrect
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Unattempted
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Question 18 of 30
18. Question
2 points
“ब्रिटिश भारत में रेलवे की कोई उपयोगिता नहीं है, यह दूसरे की पत्नी को अलंकृत करने जैसा है”.
Correct
व्याख्या-
*****बालगंगाधर तिलक ने ब्रिटिश में रेलवे की उपयोगिता पर टिप्पणी करते हुए कहा -कि ब्रिटिश भारत में रेलवे की कोई उपयोगिता नहीं है यह दूसरे की पत्नी को अलंकृत करने जैसा है।”
Incorrect
व्याख्या-
*****बालगंगाधर तिलक ने ब्रिटिश में रेलवे की उपयोगिता पर टिप्पणी करते हुए कहा -कि ब्रिटिश भारत में रेलवे की कोई उपयोगिता नहीं है यह दूसरे की पत्नी को अलंकृत करने जैसा है।”
Unattempted
व्याख्या-
*****बालगंगाधर तिलक ने ब्रिटिश में रेलवे की उपयोगिता पर टिप्पणी करते हुए कहा -कि ब्रिटिश भारत में रेलवे की कोई उपयोगिता नहीं है यह दूसरे की पत्नी को अलंकृत करने जैसा है।”
Question 19 of 30
19. Question
2 points
रैय्यतवाड़ी बंदोबस्त सर्वप्रथम कहाँ क्रियान्वित हुआ
Correct
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की।
यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Incorrect
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की।
यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Unattempted
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की।
यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Question 20 of 30
20. Question
2 points
आर्थिक बहाव के सिद्धान्त’ की बात किसने की थी.
Correct
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 21 of 30
21. Question
2 points
निम्नलिखित देशों में किसने भारतीय कपड़ों के आयात (Import of Indian cloth) पर रोक नहीं लगाई अथवा भारी चुंगी लगाई
Correct
व्याख्या-
यूरोपीय कंपनियों में हालैण्ड को छोड़कर सभी ने भारतीय कपड़ों के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया था।
Incorrect
व्याख्या-
यूरोपीय कंपनियों में हालैण्ड को छोड़कर सभी ने भारतीय कपड़ों के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया था।
Unattempted
व्याख्या-
यूरोपीय कंपनियों में हालैण्ड को छोड़कर सभी ने भारतीय कपड़ों के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया था।
Question 22 of 30
22. Question
2 points
सूती कपड़ों के उत्पादन पर से आयात कर घटाने के लिए लार्ड लिटन (Lord Lytton) के निर्णय से किसे लाभ मिला-
Correct
व्याख्या-
सूती कपड़ों के उत्पादन पर से लार्ड लिटन द्वारा आयात कर घटाने से ब्रिटिश उद्योग को लाभ मिला।
Incorrect
व्याख्या-
सूती कपड़ों के उत्पादन पर से लार्ड लिटन द्वारा आयात कर घटाने से ब्रिटिश उद्योग को लाभ मिला।
Unattempted
व्याख्या-
सूती कपड़ों के उत्पादन पर से लार्ड लिटन द्वारा आयात कर घटाने से ब्रिटिश उद्योग को लाभ मिला।
Question 23 of 30
23. Question
2 points
1793 की स्थायी भूमि व्यवस्था (Permanent Settle ment) के द्वारा भूस्वामित्व किसको मिला
Correct
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Incorrect
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Unattempted
व्याख्या-
स्थायी बंदोबस्त-
1786 में लार्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बना
स्थायी बंदोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया।
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 19% क्षेत्र शामिल था।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में लगान का 10/11 भाग सरकार का तथा 1/11 भाग जमींदारों का निश्चित किया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1790 में 10 वर्षीय और फिर 1793 में इसे स्थायी कर दिया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था में जमींदारों की भूमिका को लेकर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार एक-दूसरे के विरोधी थे।
जॉन शोर जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार करता था और वे ही लगान देने के वास्तविक अधिकारी थे
जेम्स ग्रांट के अनुसार समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार इसके कर संग्रहकर्ता से अधिक नहीं है।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण-
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
इसने सरकार के लिए वार्षिक नियमित भू-राजस्व सुनिश्चित किया।
सरकार स्थायी बंदोबस्त को प्रवर्तित कर समय-समय पर होने वाले बंदोबस्तों से मुक्त हो गई।
इसने कम्पनी के लिए एक निष्ठावान जमींदार वर्ग का निर्माण किया।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष-
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Question 24 of 30
24. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन से स्थान पर ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं थे.
Correct
व्याख्या-
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र-
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Incorrect
व्याख्या-
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र-
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Unattempted
व्याख्या-
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र-
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Question 25 of 30
25. Question
2 points
वह प्रथम भारतीय कौन था जिसने ‘आर्थिक निकासी के सिद्धान्त की ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कामन्स में भर्त्सना की थी
Correct
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Incorrect
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Unattempted
व्याख्या-
दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया में धन के बर्हिगमन का सिद्धांत सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी ने 1867 ई0 को लंदन में हुयी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में लेख इंग्लैण्ड डेब्ट टू इंडिया’ में धन निकासी के सिद्धान्त को पहली बार प्रस्तुत किया
दादाभाई नौरोजी ने 1901 ई0 में लिखित अपनी पुस्तक ‘The Poverty and un British rule in India’ में भी धन निकासी का व्यापक वर्णन किया है।
दादा भाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया।
दादाभाई नौरोजी ने भारत से हो रही धन निकासी की प्रक्रिया का विरोध किया।
दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 की प्रति व्यक्ति आय का अनुमान मोटे तौर पर 20 रु० प्रतिवर्ष लगाया था।
आर.सी. दत्ता ने अपनी कृति इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में ब्रिटिश उपनिवेशवाद को तीन क्रमिक चरणों यथा मुक्त व्यापार, वाणिज्यक, पूंजीवाद एवं वित्तीय साम्राज्यवाद के रूप में वर्गीकृत किया
वाणिज्यिक नीति (1757-1813)
औद्योगिक मुक्त व्यापार नीति (1813-1858)
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद)
Question 26 of 30
26. Question
2 points
निम्नलिखित में से ब्रिटिश सरकार की नीतियों के फलस्वरूप भारतीय कृषक वर्ग की निर्धनता का कौन सा प्रमुख कारण था
Correct
व्याख्या-
ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भू-राजस्व की विभिन्न व्यवस्थाओं जैसे स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त या महालवाड़ी बंदोबस्त के अंतर्गत किसानों से अधिकाधिक भू-राजस्व वसूला जाता था ।
ब्रिटिश शासन के अधिकतम काल में कृषक वर्ग पर अधिक भूमिकर लगाना
Incorrect
व्याख्या-
ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भू-राजस्व की विभिन्न व्यवस्थाओं जैसे स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त या महालवाड़ी बंदोबस्त के अंतर्गत किसानों से अधिकाधिक भू-राजस्व वसूला जाता था ।
ब्रिटिश शासन के अधिकतम काल में कृषक वर्ग पर अधिक भूमिकर लगाना
Unattempted
व्याख्या-
ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भू-राजस्व की विभिन्न व्यवस्थाओं जैसे स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त या महालवाड़ी बंदोबस्त के अंतर्गत किसानों से अधिकाधिक भू-राजस्व वसूला जाता था ।
ब्रिटिश शासन के अधिकतम काल में कृषक वर्ग पर अधिक भूमिकर लगाना
Question 27 of 30
27. Question
2 points
अंग्रेजों द्वारा महालवाड़ी बंदोबस्त किरा क्षेत्र में लागू किया गया।
Correct
व्याख्या-
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
Incorrect
व्याख्या-
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
Unattempted
व्याख्या-
महालवाड़ी व्यवस्था-
महालवाड़ी व्यवस्था में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महाल के साथ स्थापित हुई।
‘महाल’ से तात्पर्य है जागीर अथवा गाँव इस पद्धति के जन्मदाता हाल्ट मैकेन्जी थे।
1833 ई० में मार्टिन बर्ड तथा टामसन के बंदोबस्त में यह अपने सबसे अच्छे रूप में सामने आयी।
इसी व्यवस्था में पहली बार मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत तथा पंजाब प्रांत आते थे
महालवाड़ी व्यवस्था में ब्रिटिश भारत का 30% क्षेत्र था।
Question 28 of 30
28. Question
2 points
‘रैयतवाड़ी बंदोबस्त’ का संबंध किससे है
Correct
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर थामस /टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Incorrect
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर थामस /टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Unattempted
व्याख्या-
रैयतवाड़ी व्यवस्था-
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर थामस /टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में किसानों को उपज का 1/2 भाग राजस्व के रूप में देना था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
1792 ई0 में रैयतवाड़ी व्यवस्था बारामहल जिले में पहली बार कर्नल रीड द्वारा लागू की गई।
टॉमस मुनरो इसका कट्टर समर्थक था।
Question 29 of 30
29. Question
2 points
अठारहवीं शताब्दी में निम्नलिखित में से कौन ताँबे और पीतल उद्योग के लिए प्रसिद्ध थे
Correct
व्याख्या-
18वीं शताब्दी में ताँबे और पीतल के उद्योग के लिये प्रसिद्ध केन्द्र बनारस, तंजौर, पूना, नासिक और अहमदाबाद थे।
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Incorrect
व्याख्या-
18वीं शताब्दी में ताँबे और पीतल के उद्योग के लिये प्रसिद्ध केन्द्र बनारस, तंजौर, पूना, नासिक और अहमदाबाद थे।
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Unattempted
व्याख्या-
18वीं शताब्दी में ताँबे और पीतल के उद्योग के लिये प्रसिद्ध केन्द्र बनारस, तंजौर, पूना, नासिक और अहमदाबाद थे।
इलाहाबाद और ग्वालियर कभी भी प्रमुख औद्योगिक केन्द्र नहीं रहे।
इलाहाबाद और ग्वालियर हमेशा राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बने रहे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में प्रमुख औद्योगिक केन्द्र
नागपुर
नासिक
बनारस
अहमदाबाद
लखनऊ
पूना
Question 30 of 30
30. Question
2 points
उन्नीसवीं शताब्दी में भारत सरकार की आय का सबसे प्रमुख साधन क्या था
Correct
व्याख्या-
ब्रिटिश भारत में भारत सरकार की आय का सबसे प्रमुख स्रोत भू-राजस्व था।
ब्रिटिश भारत में भूराजस्व को तीन पद्धतियाँ प्रचलित थी-
(i) स्थायी बंदोबस्त
(i) रैय्यतवाड़ी
(ii) महालवाड़ी
Incorrect
व्याख्या-
ब्रिटिश भारत में भारत सरकार की आय का सबसे प्रमुख स्रोत भू-राजस्व था।
ब्रिटिश भारत में भूराजस्व को तीन पद्धतियाँ प्रचलित थी-
(i) स्थायी बंदोबस्त
(i) रैय्यतवाड़ी
(ii) महालवाड़ी
Unattempted
व्याख्या-
ब्रिटिश भारत में भारत सरकार की आय का सबसे प्रमुख स्रोत भू-राजस्व था।
ब्रिटिश भारत में भूराजस्व को तीन पद्धतियाँ प्रचलित थी-