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Question 1 of 26
1. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन सा जोड़ा सही नहीं है?
विद्रोह नायक
Correct
व्याख्या–
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
1855-56 छोटानागपुर में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में प्रसिद्ध संथाल विद्रोह हुआ।
1828 से 33 ई0 के बीच असम में गोमधर कुँवर के नेतृत्व में प्रसिद्ध अहोम विद्रोह हुआ था।
1858-59 ई0 में नायकदा विद्रोह रूपसिंह के नेतृत्व में पंच महल (गुजरात) में हुआ ।
Incorrect
व्याख्या–
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
1855-56 छोटानागपुर में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में प्रसिद्ध संथाल विद्रोह हुआ।
1828 से 33 ई0 के बीच असम में गोमधर कुँवर के नेतृत्व में प्रसिद्ध अहोम विद्रोह हुआ था।
1858-59 ई0 में नायकदा विद्रोह रूपसिंह के नेतृत्व में पंच महल (गुजरात) में हुआ ।
Unattempted
व्याख्या–
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
1855-56 छोटानागपुर में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में प्रसिद्ध संथाल विद्रोह हुआ।
1828 से 33 ई0 के बीच असम में गोमधर कुँवर के नेतृत्व में प्रसिद्ध अहोम विद्रोह हुआ था।
1858-59 ई0 में नायकदा विद्रोह रूपसिंह के नेतृत्व में पंच महल (गुजरात) में हुआ ।
Question 2 of 26
2. Question
1 points
सूची । को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए
सूची। सूची ॥
A रामोसी विद्रोह 1. सैय्यद अहमद
B फकीर आन्दोलन 2. मंजूशाह
C पागलपंथी विद्रोह 3. चित्तर सिंह
D वहाबी आन्दोलन 4. करमशाह
Correct
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Incorrect
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Unattempted
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
. वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
Question 3 of 26
3. Question
1 points
सूची 1 को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए:
सची। सूची ।
A फकीर 1. सहजानन्द सरस्वती
B रामोसी 2. करमशाह
C पागलपन्थी 3. मंजुशाह
D बिहार किसान सभा 4. चित्तूर सिंह
Correct
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Incorrect
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Unattempted
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Question 4 of 26
4. Question
1 points
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाला प्रथम जनजाति समूह था
Correct
व्याख्या –
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
Incorrect
व्याख्या –
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
Unattempted
व्याख्या –
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मुंडा विद्रोह(1890- 1900 ई०)
यह विद्रोह छोटानागपुर पठार(झारखंड) क्षेत्र में हुआ था,इसे उलगुलान विद्रोह(महान हलचल) के नाम से भी जाना जाता है।
यह आंदोलन सामाजिक धार्मिक सुधार के रूप में प्रारंभ हुआ था परंतु शीघ्र ही यह अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन का रूप धारण कर देता है।
इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था तथा उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया तथा अनेक ईश्वर को मानने के स्थान पर सिंहबोंगा(एकेश्वरवाद) की आराधना का उपदेश दिया।
इस विद्रोह के प्रमुख कारणों में खुंटीकुटी के अधिकारों का उल्लंघन ,अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियां,साहूकारों -जमींदारों द्वारा वसूली तथा जनजातीय समाज में हस्तक्षेप आदि थे।
मुंडा समुदाय ने अंग्रेजों पर तीव्र हमले के लिए परंतु अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के कारण इस विद्रोह को दबा दिया गया।
नोट:-खुंटीकुटी प्रथा में सामूहिक भू स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था पर बल दिया जाता था परंतु अंग्रेजों इस व्यवस्था को समाप्त कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था लागू की थी।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
Question 5 of 26
5. Question
1 points
सूची । को सूची ।। से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिये गये कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए।
सूची। सूची ॥
A संन्यासी विद्रोह 1. 1855-56
B कोल विद्रोह 2.1760
C संथाल विद्रोह 3.1921
D मोपला विद्रोह 4. 1831-32
Correct
व्याख्या-
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मोपला विद्रोह-
1921 का मोपला विद्रोह 19 वीं और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में मालाबार (उत्तरी केरल) में अंग्रेजों और हिंदू जमींदारों के खिलाफ मोपलाओं (मालाबार के मुसलमानों) द्वारा दंगों की एक श्रृंखला का समापन था।
टीपू सुल्तान के मालाबार पर कब्जे के दौरान अधिकांश मोपलाओं को मुख्य रूप से हिंदुओं द्वारा परिवर्तित किया गया था।
विद्रोह के प्रमुख नेता अली मुसलीयर और वरियानकुन्ननाथ कुन्जामेद हाजी थे।
नवंबर 1921 में, 67 मोपला कैदियों की मौत हो गई थी, जब उन्हें तिरूर से पोदनूर में केंद्रीय कारागार में एक बंद मालगाड़ी में ले जाया जा रहा था। दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इस घटना को वैगन ट्रेजेडी कहा जाता है।
Incorrect
व्याख्या-
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मोपला विद्रोह-
1921 का मोपला विद्रोह 19 वीं और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में मालाबार (उत्तरी केरल) में अंग्रेजों और हिंदू जमींदारों के खिलाफ मोपलाओं (मालाबार के मुसलमानों) द्वारा दंगों की एक श्रृंखला का समापन था।
टीपू सुल्तान के मालाबार पर कब्जे के दौरान अधिकांश मोपलाओं को मुख्य रूप से हिंदुओं द्वारा परिवर्तित किया गया था।
विद्रोह के प्रमुख नेता अली मुसलीयर और वरियानकुन्ननाथ कुन्जामेद हाजी थे।
नवंबर 1921 में, 67 मोपला कैदियों की मौत हो गई थी, जब उन्हें तिरूर से पोदनूर में केंद्रीय कारागार में एक बंद मालगाड़ी में ले जाया जा रहा था। दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इस घटना को वैगन ट्रेजेडी कहा जाता है।
Unattempted
व्याख्या-
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें डाकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
मोपला विद्रोह-
1921 का मोपला विद्रोह 19 वीं और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में मालाबार (उत्तरी केरल) में अंग्रेजों और हिंदू जमींदारों के खिलाफ मोपलाओं (मालाबार के मुसलमानों) द्वारा दंगों की एक श्रृंखला का समापन था।
टीपू सुल्तान के मालाबार पर कब्जे के दौरान अधिकांश मोपलाओं को मुख्य रूप से हिंदुओं द्वारा परिवर्तित किया गया था।
विद्रोह के प्रमुख नेता अली मुसलीयर और वरियानकुन्ननाथ कुन्जामेद हाजी थे।
नवंबर 1921 में, 67 मोपला कैदियों की मौत हो गई थी, जब उन्हें तिरूर से पोदनूर में केंद्रीय कारागार में एक बंद मालगाड़ी में ले जाया जा रहा था। दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इस घटना को वैगन ट्रेजेडी कहा जाता है।
Question 6 of 26
6. Question
1 points
फराजी विद्रोह का नायक कौन था?
Correct
व्याख्या-
फराजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था। शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
Incorrect
व्याख्या-
फराजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था। शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
Unattempted
व्याख्या-
फराजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था। शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
Question 7 of 26
7. Question
1 points
सूची । को सूची ॥ से सुमेलित कर अपना सही उत्तर सूचियों के नीचे दिये कूट से चुनिए- .
सूची। सूची ॥
A भील 1. सहयाद्री
B कोल 2. मेघालय
C.चुआर 3. पश्चिम बंगाल
D.खासी 4. खान देश
Correct
व्याख्या-
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा’ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
चुआर विद्रोह-
चुआर जनजाति तत्कालीन बंगाल प्रांत के मिदनापुर, बाँकुड़ा, मानभूम आदि क्षेत्रों में पायी जाती थी।
अंग्रेजों की लगान व्यवस्था के खिलाफ इन लोगों में भी असंतोष था।
मिदनापुर स्थित करणगढ़ की रानी सिरोमणी के नेतृत्व में चुआरों ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया।
अंग्रेजों के खिलाफ यह विद्रोह एक लम्बे समय तक जारी रहा लेकिन सन् 1798 ई० में यह चरमोत्कर्ष पर था।
सरकार ने 6 अप्रैल 1799 को रानी सिरोमणी को गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल भेज दिया।
आगे चलकर ये भूमिज जाति के लोगों के साथ गंगा नारायण द्वारा किए गए विद्रोह में शामिल हो गए।
Incorrect
व्याख्या-
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा’ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
चुआर विद्रोह-
चुआर जनजाति तत्कालीन बंगाल प्रांत के मिदनापुर, बाँकुड़ा, मानभूम आदि क्षेत्रों में पायी जाती थी।
अंग्रेजों की लगान व्यवस्था के खिलाफ इन लोगों में भी असंतोष था।
मिदनापुर स्थित करणगढ़ की रानी सिरोमणी के नेतृत्व में चुआरों ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया।
अंग्रेजों के खिलाफ यह विद्रोह एक लम्बे समय तक जारी रहा लेकिन सन् 1798 ई० में यह चरमोत्कर्ष पर था।
सरकार ने 6 अप्रैल 1799 को रानी सिरोमणी को गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल भेज दिया।
आगे चलकर ये भूमिज जाति के लोगों के साथ गंगा नारायण द्वारा किए गए विद्रोह में शामिल हो गए।
Unattempted
व्याख्या-
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा’ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
कोल विद्रोह(1829- 39 ई०)
यह विद्रोह झारखंड के रांची ,हजारीबाग,सिंहभूमि, पलामू आदि क्षेत्रों में फैला।
इसका प्रमुख कारण भूमि संबंधी असंतोष था।
1831 ई० में बुद्ध भगत ने इसको नेतृत्व प्रदान किया।
इसके नेता बुद्धो भगत व गंगा नारायण थे।
चुआर विद्रोह-
चुआर जनजाति तत्कालीन बंगाल प्रांत के मिदनापुर, बाँकुड़ा, मानभूम आदि क्षेत्रों में पायी जाती थी।
अंग्रेजों की लगान व्यवस्था के खिलाफ इन लोगों में भी असंतोष था।
मिदनापुर स्थित करणगढ़ की रानी सिरोमणी के नेतृत्व में चुआरों ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया।
अंग्रेजों के खिलाफ यह विद्रोह एक लम्बे समय तक जारी रहा लेकिन सन् 1798 ई० में यह चरमोत्कर्ष पर था।
सरकार ने 6 अप्रैल 1799 को रानी सिरोमणी को गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल भेज दिया।
आगे चलकर ये भूमिज जाति के लोगों के साथ गंगा नारायण द्वारा किए गए विद्रोह में शामिल हो गए।
Question 8 of 26
8. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन सभी जनजातीय विद्रोहों का सामान्य कारक था
Correct
व्याख्या–
जनजातियों ने विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये।
जनजातीय विद्रोहों का मूल कारण औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा जनजातियों की पृथकता को समाप्त करना और उन्हें उपनिवेशवाद की परिधि में लाना था।
आदिवासियों के नेता को भगत कहा जाता था जबकि अंग्रेजों व बाहरी लोगों को ये डाकूकहते थे।
Incorrect
व्याख्या–
जनजातियों ने विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये।
जनजातीय विद्रोहों का मूल कारण औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा जनजातियों की पृथकता को समाप्त करना और उन्हें उपनिवेशवाद की परिधि में लाना था।
आदिवासियों के नेता को भगत कहा जाता था जबकि अंग्रेजों व बाहरी लोगों को ये डाकूकहते थे।
Unattempted
व्याख्या–
जनजातियों ने विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये।
जनजातीय विद्रोहों का मूल कारण औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा जनजातियों की पृथकता को समाप्त करना और उन्हें उपनिवेशवाद की परिधि में लाना था।
आदिवासियों के नेता को भगत कहा जाता था जबकि अंग्रेजों व बाहरी लोगों को ये डाकूकहते थे।
Question 9 of 26
9. Question
1 points
सिद्धू तथा कान्हूँ ने किस आंदोलन का नेतृत्व किया था?
Correct
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Incorrect
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Unattempted
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) तक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Question 10 of 26
10. Question
1 points
निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए
कथन (A) : भगत जवाहरमल ने कूका आंदोलन चलाया।
कारण (R): वह खालसा को पुनर्जीवित करना चाहता था।
नीचे दिये गये कूटों का सही उत्तर का चयन कीजिए
Correct
व्याख्या-
भगत जवाहर मल द्वारा कूका आंदोलन 1840 ई. में प्रारम्भ किया गया।
कूका आंदोलन प्रारम्भ में खालसा को पुर्नजीवित करना चाहता था। इसके अन्तर्गत धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों की शुरूआत हुई।
राम सिंह कूका इसमें सम्मिलित हो गये तब इसका एक अन्य उद्देश्य अंग्रेजों को पंजाब से बाहर निकालना हो गया।
Incorrect
व्याख्या-
भगत जवाहर मल द्वारा कूका आंदोलन 1840 ई. में प्रारम्भ किया गया।
कूका आंदोलन प्रारम्भ में खालसा को पुर्नजीवित करना चाहता था। इसके अन्तर्गत धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों की शुरूआत हुई।
राम सिंह कूका इसमें सम्मिलित हो गये तब इसका एक अन्य उद्देश्य अंग्रेजों को पंजाब से बाहर निकालना हो गया।
Unattempted
व्याख्या-
भगत जवाहर मल द्वारा कूका आंदोलन 1840 ई. में प्रारम्भ किया गया।
कूका आंदोलन प्रारम्भ में खालसा को पुर्नजीवित करना चाहता था। इसके अन्तर्गत धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों की शुरूआत हुई।
राम सिंह कूका इसमें सम्मिलित हो गये तब इसका एक अन्य उद्देश्य अंग्रेजों को पंजाब से बाहर निकालना हो गया।
Question 11 of 26
11. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस कृषक आंदोलन ने यह नारा दिया था ‘सब भूमि का मालिक ईश्वर है’–
Correct
व्याख्या-
फरैजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था।
शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
दादू मीर ने नारा दिया कि सब भूमि का मालिक ईश्वर है।
यह आंदोलन 1820 ई.से प्रारम्भ होकर 1853 तक चला। अंत में इसके नेता वहाबी दल में सम्मिलित हो गये।
Incorrect
व्याख्या-
फरैजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था।
शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
दादू मीर ने नारा दिया कि सब भूमि का मालिक ईश्वर है।
यह आंदोलन 1820 ई.से प्रारम्भ होकर 1853 तक चला। अंत में इसके नेता वहाबी दल में सम्मिलित हो गये।
Unattempted
व्याख्या-
फरैजी आंदोलन(1820- 1858 ई०)
इस आंदोलन की शुरुआत हाजी ‘शरीयतुल्लाह’ द्वारा बंगाल में की गई थी इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था।
शरीयतुल्लाह ने मुस्लिमों के शोषण को समाप्त करने एवं किसानों के हित के लिए अनेक प्रयास किए।
आगे चलकर ‘दादू मीर’ के नेतृत्व में इस आंदोलन में उग्र रूप धारण किया तथा अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया गया,साथ ही जमीदारों के खिलाफ भी संघर्ष किए गए।
दादू मीर की गिरफ्तारी एवं बाद में उनकी मृत्यु के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया और इसके समर्थक बहावी आंदोलन से जुड़ गए।
दादू मीर ने नारा दिया कि सब भूमि का मालिक ईश्वर है।
यह आंदोलन 1820 ई.से प्रारम्भ होकर 1853 तक चला। अंत में इसके नेता वहाबी दल में सम्मिलित हो गये।
Question 12 of 26
12. Question
1 points
किसने 1840 के करीब कूका आंदोलन को आरंभ किया
Correct
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का श्रेय सेन साहब अर्थात भगत जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Incorrect
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का श्रेय सेन साहब अर्थात भगत जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Unattempted
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का श्रेय सेन साहब अर्थात भगत जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Question 13 of 26
13. Question
1 points
संथाल चिद्रोह (1853-57 ई0) कहाँ हुआ?
Correct
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Incorrect
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Unattempted
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू, कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
Question 14 of 26
14. Question
1 points
1806 में वेल्लोर में सैन्यद्रोह हुआ। इसके लिए निम्नलिखित कारकों पर विचार कीजिए
सिपाहियों को अपने जातिगत चिन्हों के व्यवहार की मनाही हो गई।
सिपाहियों को नई पगडी पहनने के लिए बाध्य किया जाता था।
सिपाहियों को अपने धर्म के रूप में ईसाई धर्म के अंगीकार करने के लिए बाध्य किया जाता था।
टीपू के परिवार के सदस्य सिपाहियों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काते थे।
Correct
व्याख्या-
वेल्लोर का सिपाही विद्रोह
**वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (मैसूर) : वेल्लोर का सिपाही विद्रोह, वेल्लोर विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। वेल्लोर विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीय सैनिकों द्वारा किया गया पहला हिंसक विद्रोह था।
वेल्लोर विद्रोह 1806 ई० में हुआ था।
ईस्ट इण्डिया कंपनी के भारतीय सिपाहियों ने वेल्लोर में विद्रोह कर दिया। जिसमें अंग्रेज अधिकारी, भारतीय सिपाहियों की हिंसा का शिकार हुए।
इस विद्रोह में टीपू सुलतान के वंशजों ने सिपाहियों का साथ दिया था, जोकि उस समय वेल्लोर के किले में कंपनी द्वारा नजरबन्द थे।
विद्रोहियों ने दुर्ग पर मैसूर राज्य के राजचिन्ह युक्त झण्डे को भी फहराया था।
वेल्लोर विद्रोह का मुख्य कारण भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहात करना था।
अंग्रेज सरकार द्वारा नवंबर 1805 में पेश किए गए सिपाही ड्रेस कोड में बदलाव किया गया था जिसके तहत हिन्दू सिपाहियों को तिलक न लगाने और धार्मिक वस्त्र न पहनने और मुस्लिम सिपाहियों को अपनी दाढ़ी-मूंछ को ट्रिम करने को अनिवार्य नियम बना दिया गया था।
अंग्रेज सरकार ने 1806 के अंत तक इस विद्रोह का पूरी तरह दमन कर दिया था।
Incorrect
व्याख्या-
वेल्लोर का सिपाही विद्रोह
**वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (मैसूर) : वेल्लोर का सिपाही विद्रोह, वेल्लोर विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। वेल्लोर विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीय सैनिकों द्वारा किया गया पहला हिंसक विद्रोह था।
वेल्लोर विद्रोह 1806 ई० में हुआ था।
ईस्ट इण्डिया कंपनी के भारतीय सिपाहियों ने वेल्लोर में विद्रोह कर दिया। जिसमें अंग्रेज अधिकारी, भारतीय सिपाहियों की हिंसा का शिकार हुए।
इस विद्रोह में टीपू सुलतान के वंशजों ने सिपाहियों का साथ दिया था, जोकि उस समय वेल्लोर के किले में कंपनी द्वारा नजरबन्द थे।
विद्रोहियों ने दुर्ग पर मैसूर राज्य के राजचिन्ह युक्त झण्डे को भी फहराया था।
वेल्लोर विद्रोह का मुख्य कारण भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहात करना था।
अंग्रेज सरकार द्वारा नवंबर 1805 में पेश किए गए सिपाही ड्रेस कोड में बदलाव किया गया था जिसके तहत हिन्दू सिपाहियों को तिलक न लगाने और धार्मिक वस्त्र न पहनने और मुस्लिम सिपाहियों को अपनी दाढ़ी-मूंछ को ट्रिम करने को अनिवार्य नियम बना दिया गया था।
अंग्रेज सरकार ने 1806 के अंत तक इस विद्रोह का पूरी तरह दमन कर दिया था।
Unattempted
व्याख्या-
वेल्लोर का सिपाही विद्रोह
**वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (मैसूर) : वेल्लोर का सिपाही विद्रोह, वेल्लोर विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। वेल्लोर विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीय सैनिकों द्वारा किया गया पहला हिंसक विद्रोह था।
वेल्लोर विद्रोह 1806 ई० में हुआ था।
ईस्ट इण्डिया कंपनी के भारतीय सिपाहियों ने वेल्लोर में विद्रोह कर दिया। जिसमें अंग्रेज अधिकारी, भारतीय सिपाहियों की हिंसा का शिकार हुए।
इस विद्रोह में टीपू सुलतान के वंशजों ने सिपाहियों का साथ दिया था, जोकि उस समय वेल्लोर के किले में कंपनी द्वारा नजरबन्द थे।
विद्रोहियों ने दुर्ग पर मैसूर राज्य के राजचिन्ह युक्त झण्डे को भी फहराया था।
वेल्लोर विद्रोह का मुख्य कारण भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहात करना था।
अंग्रेज सरकार द्वारा नवंबर 1805 में पेश किए गए सिपाही ड्रेस कोड में बदलाव किया गया था जिसके तहत हिन्दू सिपाहियों को तिलक न लगाने और धार्मिक वस्त्र न पहनने और मुस्लिम सिपाहियों को अपनी दाढ़ी-मूंछ को ट्रिम करने को अनिवार्य नियम बना दिया गया था।
अंग्रेज सरकार ने 1806 के अंत तक इस विद्रोह का पूरी तरह दमन कर दिया था।
Question 15 of 26
15. Question
1 points
निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए
कथन (A) : रामसिंह कूका ने पंजाब में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
कारण (R) : उनका उद्देश्य सिख धर्म में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना था।
Correct
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Incorrect
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Unattempted
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Question 16 of 26
16. Question
1 points
सुमेलित कीजिए:
A गडकारी विद्रोह 1. जवाहर सिंह व मधुकर शाह
B बुन्देली विद्रोह 2. बाबाजी अहीरकर
C पागलपंथी विद्रोह 3. टीपू एवं पायर
D खासी विद्रोह 4. तीरथ सिंह और बार मानिक
Correct
व्याख्या-
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह’ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू’ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
**गडकारी विद्रोह-
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
**बुन्देला विद्रोह-
बुन्देला विद्रोह 1846-47 में जवाहर सिंह एवं मधुकर शाह के नेतृत्व में हुआ था।
Incorrect
व्याख्या-
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह’ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू’ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
**गडकारी विद्रोह-
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
**बुन्देला विद्रोह-
बुन्देला विद्रोह 1846-47 में जवाहर सिंह एवं मधुकर शाह के नेतृत्व में हुआ था।
Unattempted
व्याख्या-
खासी विद्रोह(1828- 33 ई०)
यह विद्रोह मेघालय में खासी जनजाति के द्वारा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा साम्राज्य विस्तार एवं सड़क निर्माण के विरोध में किया गया।
खासी लोग बंगाल के पूरब में जयान्तियां और गारो पहाडियों के बीच निवास करते थे।
इस विद्रोह के नेता तीरथ सिंह थे।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह’ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू’ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
**गडकारी विद्रोह-
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
**बुन्देला विद्रोह-
बुन्देला विद्रोह 1846-47 में जवाहर सिंह एवं मधुकर शाह के नेतृत्व में हुआ था।
Question 17 of 26
17. Question
1 points
1840 ई0 में हुए कूका आंदोलन का नेता कौन था?
Correct
व्याख्या-
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Incorrect
व्याख्या-
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Unattempted
व्याख्या-
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी।
अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नार्थबुक था।
सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का अर्थात जवाहर मल को जाता है।
कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।
Question 18 of 26
18. Question
1 points
सूची । को सूची । से सुमेलित कीजिये
सूची। सूची।l
A भील विद्रोह 1. सिद्ध एवं कान्हू
B वारीसाल किसान विद्रोह 2. गोमधार कुँवर
C संथाल विद्रोह 3. सेवरम
D अहोम विद्रोह 4. टीदूमीर
Correct
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा‘ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
अहोम विद्रोह (1828-33 ई.)
नेतृत्व – ‘गोमधर कुंअर’
कारण – असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वायदे से मुकरने का आरोप लगाया
अहोम विद्रोह असम में हुआ था । इसका नेतृत्व गोमधर कुंवर एवं रूप चन्द्र कोनार ने किया। अहोम विद्रोह का कारण अहोम प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में शामिल करना था। कंपनी ने शांतिपूर्ण नीति अपनायी एवं 1833 ई. में उत्तरी असम महाराज पुरन्दर सिंह को दे दिया।
अंग्रेज़ों के विरुद्ध अहोम विद्रोह 1828 ई. में किया गया था। असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वादे से मुकरने का आरोप लगाया।
अंग्रेज़ों ने अहोम प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। अहोमों ने अंग्रेज़ों के इस प्रयास को विफल करने के लिये 1828 ई. में ‘गोमधर कुंअर‘ के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा रंगपुर पर चढ़ाई की योजना बनाई।
अंग्रेज़ी सेना इस विद्रोह पर नियंत्रण पाने में असफल रही। 1830 ई. में अहोमों द्वारा दूसरे विद्रोह की योजना बनाई गयी।
इससे पहले की विद्रोह होता, कम्पनी ने शान्ति की नीति अपनाते हुए उत्तरी असम के प्रदेश महाराज ‘पुरन्दर सिंह’ को दे दिये और विद्रोह शांत हो गया।
वारीसाल किसान विद्रोह/पागल पंथी विद्रोह (1813-31 ई.)
समय – 1813
संस्थापक – टीपू मीर
उद्देश्य – ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह
यह विद्रोह बंगाल में हुआ। पागलपंथ एक अर्द्धधार्मिक सम्प्रदाय था जिसे करमशाह ने चलाया था।टीपू मीर , करमशाह का पुत्र था।
टीपू ने जमींदारों के मुजारों के विरूद्ध यह आन्दोलन शुरू किया था।
पागलपंथी विद्रोह की शुरुआत ‘टीपू’ ने की थी।
पागलपंथी एक प्रकार का अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था।
यह सम्प्रदाय उत्तरी बंगाल में ‘करमशाह’ द्वारा चलाया गया था।
1825 ई. मे करमशाह के उत्तराधिकारी पुत्र ‘टीपू’ ने ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया।
यह विद्रोह इस क्षेत्र में 1840 ई. से 1850 ई. तक जारी रहा।
Incorrect
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा‘ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
अहोम विद्रोह (1828-33 ई.)
नेतृत्व – ‘गोमधर कुंअर’
कारण – असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वायदे से मुकरने का आरोप लगाया
अहोम विद्रोह असम में हुआ था । इसका नेतृत्व गोमधर कुंवर एवं रूप चन्द्र कोनार ने किया। अहोम विद्रोह का कारण अहोम प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में शामिल करना था। कंपनी ने शांतिपूर्ण नीति अपनायी एवं 1833 ई. में उत्तरी असम महाराज पुरन्दर सिंह को दे दिया।
अंग्रेज़ों के विरुद्ध अहोम विद्रोह 1828 ई. में किया गया था। असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वादे से मुकरने का आरोप लगाया।
अंग्रेज़ों ने अहोम प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। अहोमों ने अंग्रेज़ों के इस प्रयास को विफल करने के लिये 1828 ई. में ‘गोमधर कुंअर‘ के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा रंगपुर पर चढ़ाई की योजना बनाई।
अंग्रेज़ी सेना इस विद्रोह पर नियंत्रण पाने में असफल रही। 1830 ई. में अहोमों द्वारा दूसरे विद्रोह की योजना बनाई गयी।
इससे पहले की विद्रोह होता, कम्पनी ने शान्ति की नीति अपनाते हुए उत्तरी असम के प्रदेश महाराज ‘पुरन्दर सिंह’ को दे दिये और विद्रोह शांत हो गया।
वारीसाल किसान विद्रोह/पागल पंथी विद्रोह (1813-31 ई.)
समय – 1813
संस्थापक – टीपू मीर
उद्देश्य – ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह
यह विद्रोह बंगाल में हुआ। पागलपंथ एक अर्द्धधार्मिक सम्प्रदाय था जिसे करमशाह ने चलाया था।टीपू मीर , करमशाह का पुत्र था।
टीपू ने जमींदारों के मुजारों के विरूद्ध यह आन्दोलन शुरू किया था।
पागलपंथी विद्रोह की शुरुआत ‘टीपू’ ने की थी।
पागलपंथी एक प्रकार का अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था।
यह सम्प्रदाय उत्तरी बंगाल में ‘करमशाह’ द्वारा चलाया गया था।
1825 ई. मे करमशाह के उत्तराधिकारी पुत्र ‘टीपू’ ने ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया।
यह विद्रोह इस क्षेत्र में 1840 ई. से 1850 ई. तक जारी रहा।
Unattempted
व्याख्या-
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
भील विद्रोह-
राजस्थान की भील जनजाति में ‘डाकन प्रथा‘ प्रचलित थी जिसमें महिलाओं को डायन बताकर उन पर अत्याचार किया जाता था इस प्रथा को जब अंग्रेजों ने समाप्त किया तो भील समुदाय के लोगों ने अंग्रेजों विरुद्ध आंदोलन की घोषणा कर दी।
इसके साथ में अंग्रेज द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ भी भील समुदाय एकजुट हो गया।
इसके नेतृत्वकर्त्ता दौलत सिंह थे।
अहोम विद्रोह (1828-33 ई.)
नेतृत्व – ‘गोमधर कुंअर’
कारण – असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वायदे से मुकरने का आरोप लगाया
अहोम विद्रोह असम में हुआ था । इसका नेतृत्व गोमधर कुंवर एवं रूप चन्द्र कोनार ने किया। अहोम विद्रोह का कारण अहोम प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में शामिल करना था। कंपनी ने शांतिपूर्ण नीति अपनायी एवं 1833 ई. में उत्तरी असम महाराज पुरन्दर सिंह को दे दिया।
अंग्रेज़ों के विरुद्ध अहोम विद्रोह 1828 ई. में किया गया था। असम के ‘कुली’ वर्ग के व्यक्तियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर बर्मा युद्ध के समय किये गये वादे से मुकरने का आरोप लगाया।
अंग्रेज़ों ने अहोम प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। अहोमों ने अंग्रेज़ों के इस प्रयास को विफल करने के लिये 1828 ई. में ‘गोमधर कुंअर‘ के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा रंगपुर पर चढ़ाई की योजना बनाई।
अंग्रेज़ी सेना इस विद्रोह पर नियंत्रण पाने में असफल रही। 1830 ई. में अहोमों द्वारा दूसरे विद्रोह की योजना बनाई गयी।
इससे पहले की विद्रोह होता, कम्पनी ने शान्ति की नीति अपनाते हुए उत्तरी असम के प्रदेश महाराज ‘पुरन्दर सिंह’ को दे दिये और विद्रोह शांत हो गया।
वारीसाल किसान विद्रोह/पागल पंथी विद्रोह (1813-31 ई.)
समय – 1813
संस्थापक – टीपू मीर
उद्देश्य – ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह
यह विद्रोह बंगाल में हुआ। पागलपंथ एक अर्द्धधार्मिक सम्प्रदाय था जिसे करमशाह ने चलाया था।टीपू मीर , करमशाह का पुत्र था।
टीपू ने जमींदारों के मुजारों के विरूद्ध यह आन्दोलन शुरू किया था।
पागलपंथी विद्रोह की शुरुआत ‘टीपू’ ने की थी।
पागलपंथी एक प्रकार का अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था।
यह सम्प्रदाय उत्तरी बंगाल में ‘करमशाह’ द्वारा चलाया गया था।
1825 ई. मे करमशाह के उत्तराधिकारी पुत्र ‘टीपू’ ने ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया।
यह विद्रोह इस क्षेत्र में 1840 ई. से 1850 ई. तक जारी रहा।
Question 19 of 26
19. Question
1 points
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था-
Correct
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
Incorrect
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
Unattempted
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
Question 20 of 26
20. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन गड़करी विद्रोह का केन्द्र था
Correct
गडकारी विद्रोह-
गड़करी लोग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मराठा किलों में कार्य करने वाले आनुवांशिक सैनिक थे।
इस विद्रोह के प्रमुख नेता कृष्ण दाजी पंडित थे।
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
Incorrect
गडकारी विद्रोह-
गड़करी लोग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मराठा किलों में कार्य करने वाले आनुवांशिक सैनिक थे।
इस विद्रोह के प्रमुख नेता कृष्ण दाजी पंडित थे।
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
Unattempted
गडकारी विद्रोह-
गड़करी लोग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मराठा किलों में कार्य करने वाले आनुवांशिक सैनिक थे।
इस विद्रोह के प्रमुख नेता कृष्ण दाजी पंडित थे।
गडकारी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके अनुवांशिक कर्मचारी थे।
गडकारी लोगों ने 1844 ई0 में कोल्हापुर में बाबाजी अहीरकर के नेतृत्व में विद्रोह किया था।
Question 21 of 26
21. Question
1 points
वहाबी आंदोलन का मुख्य लक्ष्य क्या था?
Correct
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
इस्लाम का शुद्धीकरण
Incorrect
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
इस्लाम का शुद्धीकरण
Unattempted
व्याख्या-
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
इस्लाम का शुद्धीकरण
Question 22 of 26
22. Question
1 points
निम्नलिखित घटनाओं को सही क्रम में लिखिए
खासी विद्रोह
रामोसी विद्रोह
अहोम विद्रोह
संथाल विद्रोह
Correct
व्याख्या-
रामोसी विद्रोह
1822 ई0 के लगभग महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में रहने वाली एक आदि जाति द्वारा अंग्रेजी शासन पद्धति से नाराजगी के कारण किया गया।
इसके नेता चितर सिंह एवं नरसिंह दत्ता त्रिपदेकर थे।
अहोम विद्रोह
असम में 1828 ई० में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
वर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने असम के अहोम को अपने अधीन लाने का प्रयत्न किया तब यह विद्रोह फूट पड़ा।
खासी विद्रोह
मेघालय में 1828-33 ई० के बीच तीरत सिंह के नेतृत्व में किया गया।
संथाल विद्रोह
1855-56 ई० में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में छोटा नागपुर में यह विद्रोह हुआ था।
Incorrect
व्याख्या-
रामोसी विद्रोह
1822 ई0 के लगभग महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में रहने वाली एक आदि जाति द्वारा अंग्रेजी शासन पद्धति से नाराजगी के कारण किया गया।
इसके नेता चितर सिंह एवं नरसिंह दत्ता त्रिपदेकर थे।
अहोम विद्रोह
असम में 1828 ई० में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
वर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने असम के अहोम को अपने अधीन लाने का प्रयत्न किया तब यह विद्रोह फूट पड़ा।
खासी विद्रोह
मेघालय में 1828-33 ई० के बीच तीरत सिंह के नेतृत्व में किया गया।
संथाल विद्रोह
1855-56 ई० में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में छोटा नागपुर में यह विद्रोह हुआ था।
Unattempted
व्याख्या-
रामोसी विद्रोह
1822 ई0 के लगभग महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में रहने वाली एक आदि जाति द्वारा अंग्रेजी शासन पद्धति से नाराजगी के कारण किया गया।
इसके नेता चितर सिंह एवं नरसिंह दत्ता त्रिपदेकर थे।
अहोम विद्रोह
असम में 1828 ई० में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
वर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने असम के अहोम को अपने अधीन लाने का प्रयत्न किया तब यह विद्रोह फूट पड़ा।
खासी विद्रोह
मेघालय में 1828-33 ई० के बीच तीरत सिंह के नेतृत्व में किया गया।
संथाल विद्रोह
1855-56 ई० में सिद्धू और कान्हूँ के नेतृत्व में छोटा नागपुर में यह विद्रोह हुआ था।
Question 23 of 26
23. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन सी एक पुस्तक संन्यासी विद्रोह का आदर्श थी?
Correct
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
Incorrect
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
Unattempted
सन्यासी विद्रोह(1760- 1800 ई०)
यह विद्रोह बंगाल में सन्यासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया था जिसका प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध एवं तीर्थ कर लगाना था।
इसके साथ 1770 ई०के बंगाल के भीषण अकाल ने किसानों, गरीबों की स्थिति अत्यंत खराब कर दी थी जोकि आंदोलन का प्रमुख कारण बना।
सन्यासियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे जो हिंदू नागा और गिरी सशस्त्र सन्यासी थे।इन्होंने किसानों एवं जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों की कोठियों पर आक्रमण कर दिया।
वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ‘ में सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया है।
Question 24 of 26
24. Question
1 points
. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए और नीचे दिये गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए:
वैलोर म्यूटिनी a. 1806
असम का खासी विद्रोह b.1836
गुजरात का नायक विद्रोह c 1829
संथाल विद्रोह d 1855-57
Correct
व्याख्या-
विद्रोह
नेता
वर्ष
वैल्लोर म्यूटिनी
सर रोलो गिलेस्पी
1806
असम का खासी विद्रोह
तीरत सिंह
1828-33/1829
गुजरात का नायक विद्रोह
–
1836
संथाल विद्रोह
सिद्धू और कान्हूँ
1855-57
Incorrect
व्याख्या-
विद्रोह
नेता
वर्ष
वैल्लोर म्यूटिनी
सर रोलो गिलेस्पी
1806
असम का खासी विद्रोह
तीरत सिंह
1828-33/1829
गुजरात का नायक विद्रोह
–
1836
संथाल विद्रोह
सिद्धू और कान्हूँ
1855-57
Unattempted
व्याख्या-
विद्रोह
नेता
वर्ष
वैल्लोर म्यूटिनी
सर रोलो गिलेस्पी
1806
असम का खासी विद्रोह
तीरत सिंह
1828-33/1829
गुजरात का नायक विद्रोह
–
1836
संथाल विद्रोह
सिद्धू और कान्हूँ
1855-57
Question 25 of 26
25. Question
1 points
अंग्रेजों के विरुद्ध हुए निम्नलिखित जन आंदोलनों में पहला कौन था? ‘
Correct
व्याख्या-
नील आन्दोलन (1859-60 ई.)
यह आन्दोलन बंगाल में हुआ।
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
नैकदा विद्रोह-
नैकदा विद्रोह 1858 ई.में रूप सिंह के नेतृत्व में गुजरात के पंचमहल में प्रारम्भ किया गया।
नैकदा आदिवासियों ने अंग्रेज अधिकारियों और सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध दैवीय शक्तियों से युक्त अपने नेताओं रूप सिंह एवं जोरिया भगत के नेतृत्व में धर्म राज स्थापित करने की दिशा में प्रयास किया।
Incorrect
व्याख्या-
नील आन्दोलन (1859-60 ई.)
यह आन्दोलन बंगाल में हुआ।
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
नैकदा विद्रोह-
नैकदा विद्रोह 1858 ई.में रूप सिंह के नेतृत्व में गुजरात के पंचमहल में प्रारम्भ किया गया।
नैकदा आदिवासियों ने अंग्रेज अधिकारियों और सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध दैवीय शक्तियों से युक्त अपने नेताओं रूप सिंह एवं जोरिया भगत के नेतृत्व में धर्म राज स्थापित करने की दिशा में प्रयास किया।
Unattempted
व्याख्या-
नील आन्दोलन (1859-60 ई.)
यह आन्दोलन बंगाल में हुआ।
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
संथाल विद्रोह(1855- 56 ई०)
यह विद्रोह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल(दामन ए कोह) (छोटानागपुर क्षेत्र )मेंतक फैला हुआ था।
इस विद्रोह को सिद्धू,कान्हू नामक दो भाइयों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया था तथा स्वयं को ठाकुर जी(भगवान) का अवतार घोषित किया।
इस विद्रोह के मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणपरक आर्थिक नीतियां, पुलिस का दमन ,जमीदारों साहूकारों द्वारा वसूली तथा बाहरी लोगों का जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश(जिन्हें दिकू कहा जाता था) आदि थे।
सिद्धू ,कान्हू को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया तथा विद्रोह को कुचल दिया गया।
यह विद्रोह 1857 की क्रांति से मात्र एक वर्ष पूर्व ही हुआ था।
कूका आन्दोलन (1840-72 ई.)
कूका आंदोलन 1840 ई0 में पंजाब में श्रेय सेन साहब व भगत जवाहर मल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
समय – सन 1871-72
विद्रोहकारी – पंजाब के कूका लोग (नामधारी सिख)
1872 ई० में रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया,
आरम्भ में इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म का सुधार करना था
उद्देश्य – अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने का विरोध करना/ब्रिटिश शासन को समाप्त करना ।
नेतृत्व – बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी द्वारा।
परिणाम – तैयारी के आभाव में इसे दबा दिया गया।
नैकदा विद्रोह-
नैकदा विद्रोह 1858 ई.में रूप सिंह के नेतृत्व में गुजरात के पंचमहल में प्रारम्भ किया गया।
नैकदा आदिवासियों ने अंग्रेज अधिकारियों और सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध दैवीय शक्तियों से युक्त अपने नेताओं रूप सिंह एवं जोरिया भगत के नेतृत्व में धर्म राज स्थापित करने की दिशा में प्रयास किया।
Question 26 of 26
26. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन वहाबी आन्दोलन का नेता था?
Correct
व्याख्या –
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
Incorrect
व्याख्या –
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।
Unattempted
व्याख्या –
वहाबी आंदोलन(1820 – 1870 ई०)
यह आंदोलन मुस्लिम समाज में सुधार प्रारंभ किया गया था।इसके संस्थापक अब्दुल वहाब थे, भारत में इस आंदोलन को सैयद अहमद रायबरेलवी ने लोकप्रिय बनाया।
वहाबी आंदोलन को वलीउल्लाह आंदोलन कहा गया।
यह पूर्वी तथा मध्य भारत एवं उत्तर पश्चिम भारत में सक्रिय था।
भारत में इसका केन्द्र पटना था।
उन्होंने पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की
इस आंदोलन का चरित्र सांप्रदायिक था परंतु इसमें हिंदुओं का विरोध नहीं किया गया था बल्कि वहाबी अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़कर मुस्लिम सत्ता की स्थापना करना चाहते थे।
वहाबी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य-
इसका प्रारंभ धार्मिक आंदोलन के रूप में हुआ।
इस्लाम में हुए परिवर्तनों तथा सुधारों के विरूद्ध थे तथा मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते थे।
यह आंदोलन मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा एवं मुसलमानों के लिए था।