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Question 1 of 31
1. Question
1 points
निम्नलिखित में से बलवन के काल में विद्रोह करने वाला, बंगाल का गवर्नर कौन था?
Correct
बलबन के शासन काल में बंगाल के सूबेदार तुगरिल खाँ ने 1279 ई० में विद्रोह किया।
तुगरिल खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण की, अपने नाम के सिक्के जारी किये तथा खुतबा पढ़वाया।
बलबन ने ‘दीवान-ए-अर्ज’ (सैन्य विभाग) की स्थापना की
प्रत्येक वर्ष नौरोज का त्योहार मनाना शुरु करवाया
बलबन “जिल्ले ईलाही” की उपाधि धारण की
बलबन ने लौह एवम रक्त नीति का पालन किया
बलबन ने ही तुर्कान ए चिहलगानी (चालीसा दल) को नष्ट किया
बलबन ने अक्तादारी प्रथा में सुधार किया
Incorrect
बलबन के शासन काल में बंगाल के सूबेदार तुगरिल खाँ ने 1279 ई० में विद्रोह किया।
तुगरिल खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण की, अपने नाम के सिक्के जारी किये तथा खुतबा पढ़वाया।
बलबन ने ‘दीवान-ए-अर्ज’ (सैन्य विभाग) की स्थापना की
प्रत्येक वर्ष नौरोज का त्योहार मनाना शुरु करवाया
बलबन “जिल्ले ईलाही” की उपाधि धारण की
बलबन ने लौह एवम रक्त नीति का पालन किया
बलबन ने ही तुर्कान ए चिहलगानी (चालीसा दल) को नष्ट किया
बलबन ने अक्तादारी प्रथा में सुधार किया
Unattempted
बलबन के शासन काल में बंगाल के सूबेदार तुगरिल खाँ ने 1279 ई० में विद्रोह किया।
तुगरिल खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण की, अपने नाम के सिक्के जारी किये तथा खुतबा पढ़वाया।
बलबन ने ‘दीवान-ए-अर्ज’ (सैन्य विभाग) की स्थापना की
प्रत्येक वर्ष नौरोज का त्योहार मनाना शुरु करवाया
बलबन “जिल्ले ईलाही” की उपाधि धारण की
बलबन ने लौह एवम रक्त नीति का पालन किया
बलबन ने ही तुर्कान ए चिहलगानी (चालीसा दल) को नष्ट किया
बलबन ने अक्तादारी प्रथा में सुधार किया
Question 2 of 31
2. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने इरान की राजतंत्रीय . परम्परा को ग्रहण किया तथा उन्हें भारतीय वातावरण के अनुकूल समन्वित किया? –
Correct
इल्तुतमिश ने ईरान की राजतंत्रीय परम्परा को ग्रहण किया तथा उसे भारतीय वातावरण के अनुकूल समन्वित कर एक आकार, पद ‘सोपान का निर्धारण, शासन प्रणाली तथा स्वच्छ शासन देकर वास्तविक स्वरूप प्रदान किया था।
मध्य एशिया की राजनीतिक व्यस्तता के कारण मुइजुद्दीन गोरी को भारत में उचित शासन व्यवस्था संगठित करने का समय नहीं मिला।
इल्तुतमिश ने ‘इक्ता’ प्रणाली प्रारम्भ की इक्ता का अर्थ है – धन के स्थान पर तनख्वाह के रुप में भूमि प्रदान करना
इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था ,जिसने शुध्द अरबी सक्के चलवाये
इल्तुतमिश ने चाँदी के ‘टका’ तथा ताँबे के ‘जीतल’ का प्रचलन किया व दिल्ली टकसाल की स्थापना करायी
भारत में पहला मकबरा इल्तुतमिश ने बनवाया इस ने दिल्ली में स्वयं के मकबरे का भी निर्माण कराया ,जो स्र्किच शैली में बना भारत का पहला मकबरा माना जाता है
कुतुबमीनार को इल्तुतमिश ने पूरा कराया व अजमेर की मस्जिद का निर्माण कराया
इल्तुतमिश को भारत में ‘गुम्बद निर्माण का पिता’ कहा जाता है उसने सुल्तानगढी का निर्माण कराया
इल्तुतमिश ने बदायूं में हौज-ए-खास (शम्सी ईदगाह) का निर्माण कराया
इल्तुतमिश के दरबारी लेखक का नाम मिन्हाज-उस-सिराज थ, जिसने प्रसिध्द ग्रंथ तबकाते-नासिरी की रचना की
Incorrect
इल्तुतमिश ने ईरान की राजतंत्रीय परम्परा को ग्रहण किया तथा उसे भारतीय वातावरण के अनुकूल समन्वित कर एक आकार, पद ‘सोपान का निर्धारण, शासन प्रणाली तथा स्वच्छ शासन देकर वास्तविक स्वरूप प्रदान किया था।
मध्य एशिया की राजनीतिक व्यस्तता के कारण मुइजुद्दीन गोरी को भारत में उचित शासन व्यवस्था संगठित करने का समय नहीं मिला।
इल्तुतमिश ने ‘इक्ता’ प्रणाली प्रारम्भ की इक्ता का अर्थ है – धन के स्थान पर तनख्वाह के रुप में भूमि प्रदान करना
इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था ,जिसने शुध्द अरबी सक्के चलवाये
इल्तुतमिश ने चाँदी के ‘टका’ तथा ताँबे के ‘जीतल’ का प्रचलन किया व दिल्ली टकसाल की स्थापना करायी
भारत में पहला मकबरा इल्तुतमिश ने बनवाया इस ने दिल्ली में स्वयं के मकबरे का भी निर्माण कराया ,जो स्र्किच शैली में बना भारत का पहला मकबरा माना जाता है
कुतुबमीनार को इल्तुतमिश ने पूरा कराया व अजमेर की मस्जिद का निर्माण कराया
इल्तुतमिश को भारत में ‘गुम्बद निर्माण का पिता’ कहा जाता है उसने सुल्तानगढी का निर्माण कराया
इल्तुतमिश ने बदायूं में हौज-ए-खास (शम्सी ईदगाह) का निर्माण कराया
इल्तुतमिश के दरबारी लेखक का नाम मिन्हाज-उस-सिराज थ, जिसने प्रसिध्द ग्रंथ तबकाते-नासिरी की रचना की
Unattempted
इल्तुतमिश ने ईरान की राजतंत्रीय परम्परा को ग्रहण किया तथा उसे भारतीय वातावरण के अनुकूल समन्वित कर एक आकार, पद ‘सोपान का निर्धारण, शासन प्रणाली तथा स्वच्छ शासन देकर वास्तविक स्वरूप प्रदान किया था।
मध्य एशिया की राजनीतिक व्यस्तता के कारण मुइजुद्दीन गोरी को भारत में उचित शासन व्यवस्था संगठित करने का समय नहीं मिला।
इल्तुतमिश ने ‘इक्ता’ प्रणाली प्रारम्भ की इक्ता का अर्थ है – धन के स्थान पर तनख्वाह के रुप में भूमि प्रदान करना
इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था ,जिसने शुध्द अरबी सक्के चलवाये
इल्तुतमिश ने चाँदी के ‘टका’ तथा ताँबे के ‘जीतल’ का प्रचलन किया व दिल्ली टकसाल की स्थापना करायी
भारत में पहला मकबरा इल्तुतमिश ने बनवाया इस ने दिल्ली में स्वयं के मकबरे का भी निर्माण कराया ,जो स्र्किच शैली में बना भारत का पहला मकबरा माना जाता है
कुतुबमीनार को इल्तुतमिश ने पूरा कराया व अजमेर की मस्जिद का निर्माण कराया
इल्तुतमिश को भारत में ‘गुम्बद निर्माण का पिता’ कहा जाता है उसने सुल्तानगढी का निर्माण कराया
इल्तुतमिश ने बदायूं में हौज-ए-खास (शम्सी ईदगाह) का निर्माण कराया
इल्तुतमिश के दरबारी लेखक का नाम मिन्हाज-उस-सिराज थ, जिसने प्रसिध्द ग्रंथ तबकाते-नासिरी की रचना की
Question 3 of 31
3. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा
Correct
.*******
इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था.
लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद गददी पर रुक्नुद्दीन फिरोज बैठा।
रुक्नुद्दीन फिरोज की मॉ शाह तुर्कान कुचक्र रचने में निपुण थी,
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसने अपने दल की सहायता से अपने पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोज का राज्याभिषेक करा लिया।
सिंहासनारोहण के बाद रुक्नुद्दीन आमोद-प्रमोद में व्यस्त हो गया
दिल्ली की जनता के समर्थन से रजिया ने गददी पर अधिकार कर लिया।
Incorrect
.*******
इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था.
लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद गददी पर रुक्नुद्दीन फिरोज बैठा।
रुक्नुद्दीन फिरोज की मॉ शाह तुर्कान कुचक्र रचने में निपुण थी,
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसने अपने दल की सहायता से अपने पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोज का राज्याभिषेक करा लिया।
सिंहासनारोहण के बाद रुक्नुद्दीन आमोद-प्रमोद में व्यस्त हो गया
दिल्ली की जनता के समर्थन से रजिया ने गददी पर अधिकार कर लिया।
Unattempted
.*******
इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था.
लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद गददी पर रुक्नुद्दीन फिरोज बैठा।
रुक्नुद्दीन फिरोज की मॉ शाह तुर्कान कुचक्र रचने में निपुण थी,
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसने अपने दल की सहायता से अपने पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोज का राज्याभिषेक करा लिया।
सिंहासनारोहण के बाद रुक्नुद्दीन आमोद-प्रमोद में व्यस्त हो गया
दिल्ली की जनता के समर्थन से रजिया ने गददी पर अधिकार कर लिया।
Question 4 of 31
4. Question
1 points
किस उद्देश्य से इल्तुतमिश ने खलीफा से अधिकार-पत्र प्राप्त किया-
Correct
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Incorrect
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Unattempted
इल्तुतमिश ने 1210 से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली।
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाया।
फरवरी, 1229 ई. को बगदाद के खलीफा के राजदूत दिल्ली आये
इल्तुतमिशको खलीफा ने दिल्ली सल्तनत की स्वतंत्र स्थिति को मान्यता प्रदान की।
खलीफा वैधानिक स्वीकृति से इल्तुतमिश की प्रतिष्ठा अधिक ऊँची हो गई।
Question 5 of 31
5. Question
1 points
ऐबक था
Correct
.कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Incorrect
.कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Unattempted
.कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Question 6 of 31
6. Question
1 points
बलबन प्रसिद्ध था- .
Correct
बलबन
1265 ई0 में बलबन सुल्तान ग्यासुद्दीन के नाम से गद्दी पर बैठा
बलबन का शासन काल 1265 से 1287 तक रहा
बलबन ने गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम सुल्तान के पद की गरिमा कायम की और दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के प्रबंध किया
जो इल्तुतमिश ने चालीसा दल बनाया था उसे बलबन ने नष्ट कर दिया
बलबन दिल्ली सल्तनत का एक पहला ऐसा व्यक्ति था ,जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का प्रयोग करता था और यह पहला शासक था जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रुप से विचार प्रस्तुत किये
वह कुरान के नियमों को शासन व्यवथा का आधार मानता था उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि होता है,
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए “रक्त और लौह नीति” अपनाई
बलबन ने कहा कि सुल्तान का पद ईश्वर के समान होता है तथा सुल्तान का निरंकुश होना जरुरी है उसके अनुसार राजा को शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है इसलिए उसके कार्यो की सार्वजनिक जाँच नही की जा सकती
बलबन ने अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के बाद ‘जिल्ले इलाही’(ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की
बलबन अपनी ‘लौह एवं रक्त की नीति के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है।
Incorrect
बलबन
1265 ई0 में बलबन सुल्तान ग्यासुद्दीन के नाम से गद्दी पर बैठा
बलबन का शासन काल 1265 से 1287 तक रहा
बलबन ने गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम सुल्तान के पद की गरिमा कायम की और दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के प्रबंध किया
जो इल्तुतमिश ने चालीसा दल बनाया था उसे बलबन ने नष्ट कर दिया
बलबन दिल्ली सल्तनत का एक पहला ऐसा व्यक्ति था ,जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का प्रयोग करता था और यह पहला शासक था जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रुप से विचार प्रस्तुत किये
वह कुरान के नियमों को शासन व्यवथा का आधार मानता था उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि होता है,
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए “रक्त और लौह नीति” अपनाई
बलबन ने कहा कि सुल्तान का पद ईश्वर के समान होता है तथा सुल्तान का निरंकुश होना जरुरी है उसके अनुसार राजा को शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है इसलिए उसके कार्यो की सार्वजनिक जाँच नही की जा सकती
बलबन ने अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के बाद ‘जिल्ले इलाही’(ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की
बलबन अपनी ‘लौह एवं रक्त की नीति के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है।
Unattempted
बलबन
1265 ई0 में बलबन सुल्तान ग्यासुद्दीन के नाम से गद्दी पर बैठा
बलबन का शासन काल 1265 से 1287 तक रहा
बलबन ने गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम सुल्तान के पद की गरिमा कायम की और दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के प्रबंध किया
जो इल्तुतमिश ने चालीसा दल बनाया था उसे बलबन ने नष्ट कर दिया
बलबन दिल्ली सल्तनत का एक पहला ऐसा व्यक्ति था ,जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का प्रयोग करता था और यह पहला शासक था जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रुप से विचार प्रस्तुत किये
वह कुरान के नियमों को शासन व्यवथा का आधार मानता था उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि होता है,
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए “रक्त और लौह नीति” अपनाई
बलबन ने कहा कि सुल्तान का पद ईश्वर के समान होता है तथा सुल्तान का निरंकुश होना जरुरी है उसके अनुसार राजा को शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है इसलिए उसके कार्यो की सार्वजनिक जाँच नही की जा सकती
बलबन ने अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के बाद ‘जिल्ले इलाही’(ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की
बलबन अपनी ‘लौह एवं रक्त की नीति के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है।
Question 7 of 31
7. Question
1 points
किनके लिए मंगोल समस्या बने?
Correct
बलबन और अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मंगोल आक्रमण का गंभीर समस्या थी।
मंगोल आक्रमण सर्वप्रथम इल्तुतमिश के शासन काल में हआ था।
मंगोल आक्रमण का भय सबसे पहले इल्तुतमिश के समय उत्पन्न हुआ जब ईरान का युवराज मंगबर्नी का पीछा करता हुआ स्वयं चंगेज खां सिंधु नदी के तट पर पहुंचा था।
इल्तुतमिश ने जलालुददीन मंगबर्नी द्वारा भेजे गये दुत का वध करा दिया तथा मांगवर्नी को सहायता एवं शरण देने से इंकार कर दिया।
चंगेज खां सिंधु नदी पार करके दिल्ली सल्तनत की सीमाओं में प्रवेश करने का विचार ही नहीं किया तथा वापस चला गया।
मंगोलों का सबसे अधिक एवं भयंकर आक्रमण अलाउददीन के शासन काल में हुआ था
Incorrect
बलबन और अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मंगोल आक्रमण का गंभीर समस्या थी।
मंगोल आक्रमण सर्वप्रथम इल्तुतमिश के शासन काल में हआ था।
मंगोल आक्रमण का भय सबसे पहले इल्तुतमिश के समय उत्पन्न हुआ जब ईरान का युवराज मंगबर्नी का पीछा करता हुआ स्वयं चंगेज खां सिंधु नदी के तट पर पहुंचा था।
इल्तुतमिश ने जलालुददीन मंगबर्नी द्वारा भेजे गये दुत का वध करा दिया तथा मांगवर्नी को सहायता एवं शरण देने से इंकार कर दिया।
चंगेज खां सिंधु नदी पार करके दिल्ली सल्तनत की सीमाओं में प्रवेश करने का विचार ही नहीं किया तथा वापस चला गया।
मंगोलों का सबसे अधिक एवं भयंकर आक्रमण अलाउददीन के शासन काल में हुआ था
Unattempted
बलबन और अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मंगोल आक्रमण का गंभीर समस्या थी।
मंगोल आक्रमण सर्वप्रथम इल्तुतमिश के शासन काल में हआ था।
मंगोल आक्रमण का भय सबसे पहले इल्तुतमिश के समय उत्पन्न हुआ जब ईरान का युवराज मंगबर्नी का पीछा करता हुआ स्वयं चंगेज खां सिंधु नदी के तट पर पहुंचा था।
इल्तुतमिश ने जलालुददीन मंगबर्नी द्वारा भेजे गये दुत का वध करा दिया तथा मांगवर्नी को सहायता एवं शरण देने से इंकार कर दिया।
चंगेज खां सिंधु नदी पार करके दिल्ली सल्तनत की सीमाओं में प्रवेश करने का विचार ही नहीं किया तथा वापस चला गया।
मंगोलों का सबसे अधिक एवं भयंकर आक्रमण अलाउददीन के शासन काल में हुआ था
Question 8 of 31
8. Question
1 points
दिल्ली सल्तनत के किस सुल्तान को “लाख बख्श’ की उपाधि दी गयी?
Correct
कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Incorrect
कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Unattempted
कुतुबुद्दीन ऐबक
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Question 9 of 31
9. Question
1 points
दिल्ली सल्तनत के शासकों में किसका राजत्व का सिद्धान्त प्रतिष्ठा, शक्ति और न्याय पर आधारित था?
Correct
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Incorrect
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Unattempted
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Question 10 of 31
10. Question
1 points
सुल्तान जो अपने को ‘नायब-ए-खुदाई’ (ईश्वर की प्रतिनिधि) कहता था, कौन था
Correct
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Incorrect
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Unattempted
बलबन के राजत्व सिद्धान्त का स्वरूप एवं सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
बलबन सुल्तान को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबते खुदाई) मानता था।
बलबन के अनुसार सुल्तान ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले अल्लाह) तथा उसका हृदय दैवी प्रेरणा व कांति का भंडार है।
बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था।
बलबन ने शासक को निरकुंश और दैवी प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करके सुल्तान पद की शक्ति एवं गौरव की पुर्नस्थापना में सफलता प्राप्त की।
Question 11 of 31
11. Question
1 points
13वीं शदी के शासक किस वंश के थे.
Correct
13वीं शदी में तुर्क वंश के शासकों ने दिल्ली पर शासन किया।
गुलाम वंश की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में डाली
गुलाम वंश के शासकों ने1296 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
अफगान वंश की नींव बहलोल लोदी ने 1451 ई. में डाली
अफगान वंश के शासकों ने 1526 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
1526 ई में बाबर ने मुगल वंश की नीव डाली।
Incorrect
13वीं शदी में तुर्क वंश के शासकों ने दिल्ली पर शासन किया।
गुलाम वंश की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में डाली
गुलाम वंश के शासकों ने1296 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
अफगान वंश की नींव बहलोल लोदी ने 1451 ई. में डाली
अफगान वंश के शासकों ने 1526 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
1526 ई में बाबर ने मुगल वंश की नीव डाली।
Unattempted
13वीं शदी में तुर्क वंश के शासकों ने दिल्ली पर शासन किया।
गुलाम वंश की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में डाली
गुलाम वंश के शासकों ने1296 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
अफगान वंश की नींव बहलोल लोदी ने 1451 ई. में डाली
अफगान वंश के शासकों ने 1526 ई. तक दिल्ली पर शासन किया।
1526 ई में बाबर ने मुगल वंश की नीव डाली।
Question 12 of 31
12. Question
1 points
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सम्प्रभुत्व सम्पन्न शासक कौन था?
Correct
इल्तुतमिश एक साहसी सैनिक और योग्य सेनापति था साथ ही दुरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश मध्य कालीन भारत का एक श्रेष्ठ शासक माना जाता है।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसकों 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई
R.P. Tripathi कहते हैं ” भारतवर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
ए0 के0 निजामी के अनुसार, “ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की .रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था,
” इल्तुतमिश ने एक पद, एक प्रेरणाशक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया।
Incorrect
इल्तुतमिश एक साहसी सैनिक और योग्य सेनापति था साथ ही दुरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश मध्य कालीन भारत का एक श्रेष्ठ शासक माना जाता है।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसकों 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई
R.P. Tripathi कहते हैं ” भारतवर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
ए0 के0 निजामी के अनुसार, “ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की .रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था,
” इल्तुतमिश ने एक पद, एक प्रेरणाशक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया।
Unattempted
इल्तुतमिश एक साहसी सैनिक और योग्य सेनापति था साथ ही दुरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश मध्य कालीन भारत का एक श्रेष्ठ शासक माना जाता है।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसकों 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई
R.P. Tripathi कहते हैं ” भारतवर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
ए0 के0 निजामी के अनुसार, “ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की .रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था,
” इल्तुतमिश ने एक पद, एक प्रेरणाशक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया।
Question 13 of 31
13. Question
1 points
‘एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुल्तान बन गया, वह कौन था?
Correct
सुल्तान बलबन “एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुल्तान बन गया।
बलबन ने लगभग 40 वर्ष तक शासन किया था।
20 वर्ष तक एक बजीर की हैसियत से तथा बीस वर्ष एक सुल्तान के रूप में।
बलबन के राजनैतिक जीवन का प्रारम्भ 1232 ई. में इल्तुतमिश के दास के रूप में हुआ।
बलबन इल्तुतमिश के विश्वसनीय ‘चालीस दासों’ के दल में शामिल था
बलबन नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में 1246 ई. में वजीर नियुक्त हुआ।
बलबन 20 वर्ष बाद 1265 ई. में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद दिल्ली का सुल्तान बना
नासिरूद्दीन ने बलबन को 1249 में ‘उलूग खां’ की उपाधि देते हुए सेना पर पूर्ण नियंत्रण के साथ ‘नायबे मुमलकात’ का पद दिया था।
Incorrect
सुल्तान बलबन “एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुल्तान बन गया।
बलबन ने लगभग 40 वर्ष तक शासन किया था।
20 वर्ष तक एक बजीर की हैसियत से तथा बीस वर्ष एक सुल्तान के रूप में।
बलबन के राजनैतिक जीवन का प्रारम्भ 1232 ई. में इल्तुतमिश के दास के रूप में हुआ।
बलबन इल्तुतमिश के विश्वसनीय ‘चालीस दासों’ के दल में शामिल था
बलबन नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में 1246 ई. में वजीर नियुक्त हुआ।
बलबन 20 वर्ष बाद 1265 ई. में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद दिल्ली का सुल्तान बना
नासिरूद्दीन ने बलबन को 1249 में ‘उलूग खां’ की उपाधि देते हुए सेना पर पूर्ण नियंत्रण के साथ ‘नायबे मुमलकात’ का पद दिया था।
Unattempted
सुल्तान बलबन “एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुल्तान बन गया।
बलबन ने लगभग 40 वर्ष तक शासन किया था।
20 वर्ष तक एक बजीर की हैसियत से तथा बीस वर्ष एक सुल्तान के रूप में।
बलबन के राजनैतिक जीवन का प्रारम्भ 1232 ई. में इल्तुतमिश के दास के रूप में हुआ।
बलबन इल्तुतमिश के विश्वसनीय ‘चालीस दासों’ के दल में शामिल था
बलबन नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में 1246 ई. में वजीर नियुक्त हुआ।
बलबन 20 वर्ष बाद 1265 ई. में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद दिल्ली का सुल्तान बना
नासिरूद्दीन ने बलबन को 1249 में ‘उलूग खां’ की उपाधि देते हुए सेना पर पूर्ण नियंत्रण के साथ ‘नायबे मुमलकात’ का पद दिया था।
Question 14 of 31
14. Question
1 points
बलवन के बारे में एक गलत कथन यताएं
Correct
बलबन एक निरंकुश शासक था।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश द्वारा गठित चालीस तुकी अमीरों के दल का दमन किया।
बलबन ने सफलतापूर्वक अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से बचाया
बलबन ने 1280-87 ई. में तुगरिल खाँ के नेतृत्व में हुए. बंगाल के विद्रोह को दबाया।
बलबन ने खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान की,
बलबन ने खलीफा से अपने पद की स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश नहीं की। थी।
Incorrect
बलबन एक निरंकुश शासक था।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश द्वारा गठित चालीस तुकी अमीरों के दल का दमन किया।
बलबन ने सफलतापूर्वक अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से बचाया
बलबन ने 1280-87 ई. में तुगरिल खाँ के नेतृत्व में हुए. बंगाल के विद्रोह को दबाया।
बलबन ने खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान की,
बलबन ने खलीफा से अपने पद की स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश नहीं की। थी।
Unattempted
बलबन एक निरंकुश शासक था।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश द्वारा गठित चालीस तुकी अमीरों के दल का दमन किया।
बलबन ने सफलतापूर्वक अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से बचाया
बलबन ने 1280-87 ई. में तुगरिल खाँ के नेतृत्व में हुए. बंगाल के विद्रोह को दबाया।
बलबन ने खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान की,
बलबन ने खलीफा से अपने पद की स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश नहीं की। थी।
Question 15 of 31
15. Question
1 points
इल्तुतमिश, बलवन और अलाउद्दीन खिलजी ने
Correct
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण-
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Incorrect
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण-
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Unattempted
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण-
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Question 16 of 31
16. Question
1 points
मंगोल आक्रमण सर्वप्रथम किसके समय हुए.
Correct
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण–
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Incorrect
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण–
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Unattempted
इल्तुतमिश के समय सर्वप्रथम 1221 ई. में चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया।
यह मंगोलों द्वारा भारत पर किया गया पहला आक्रमण था।
बलबन के समय 1285 ई. में तिमूर खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया,
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के समय में ही हुए।
मंगोल आक्रमणों का सामना करता हुआ अलाउद्दीन का सेनापति जफर खाँ मारा गया था।
अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोल आक्रमण–
1296 ई. में कादिर खाँ
1298 ई. मे सलदी.
1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा
1303 ई. में, तार्गीबेग
1304 ई. में, अलीबेग ,ख्वाजा ताश
1306 ई. में कुबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए।
Question 17 of 31
17. Question
1 points
चंगेज खाँ कौन था..
Correct
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Incorrect
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Unattempted
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Question 18 of 31
18. Question
1 points
बलबन ने अपने आपको किस वंश का घोषित किया था?
Correct
बलबन ने अपने को फिरदौसी के ‘शाहनामा’ में वर्णित पौराणिक तुर्की वीर इरान के ‘अफरासियाब’ का वंशज बताया और एक विशेष प्रकार की गम्भीरता उसने धारण कर ली।
Incorrect
बलबन ने अपने को फिरदौसी के ‘शाहनामा’ में वर्णित पौराणिक तुर्की वीर इरान के ‘अफरासियाब’ का वंशज बताया और एक विशेष प्रकार की गम्भीरता उसने धारण कर ली।
Unattempted
बलबन ने अपने को फिरदौसी के ‘शाहनामा’ में वर्णित पौराणिक तुर्की वीर इरान के ‘अफरासियाब’ का वंशज बताया और एक विशेष प्रकार की गम्भीरता उसने धारण कर ली।
Question 19 of 31
19. Question
1 points
गद्दी पर बैठने से पूर्व ‘इल्तुतमिश’ कहाँ का ‘इक्तादार’ था?
Correct
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
‘रैवर्टी के अनुसार बदायूँ की इक्ता सल्तनत की ऊँची इक्ताओं में से एक थी। ऐबक ने इसको दासत्व से मुक्ति पहले ही दे दी थी।
Incorrect
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
‘रैवर्टी के अनुसार बदायूँ की इक्ता सल्तनत की ऊँची इक्ताओं में से एक थी। ऐबक ने इसको दासत्व से मुक्ति पहले ही दे दी थी।
Unattempted
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
‘रैवर्टी के अनुसार बदायूँ की इक्ता सल्तनत की ऊँची इक्ताओं में से एक थी। ऐबक ने इसको दासत्व से मुक्ति पहले ही दे दी थी।
Question 20 of 31
20. Question
1 points
कुतुबुद्दीन का शासन काल था
Correct
कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का प्रथम तुर्क शासक था।
1192 ई. में तराईन के द्वितीय युद्ध में विजय के बाद मुहम्मद गोरी ने ऐबक को भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
ऐबक ने जून, 1206 ई. में शासक के रूप में लाहौर में अपना राज्याभिषेक करवाया।
1210 ई. में चौगान खेलते हए घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
ऐबक ने 1206 ई. से लेकर 1210 ई. तक शासन किया।
Incorrect
कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का प्रथम तुर्क शासक था।
1192 ई. में तराईन के द्वितीय युद्ध में विजय के बाद मुहम्मद गोरी ने ऐबक को भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
ऐबक ने जून, 1206 ई. में शासक के रूप में लाहौर में अपना राज्याभिषेक करवाया।
1210 ई. में चौगान खेलते हए घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
ऐबक ने 1206 ई. से लेकर 1210 ई. तक शासन किया।
Unattempted
कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का प्रथम तुर्क शासक था।
1192 ई. में तराईन के द्वितीय युद्ध में विजय के बाद मुहम्मद गोरी ने ऐबक को भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
ऐबक ने जून, 1206 ई. में शासक के रूप में लाहौर में अपना राज्याभिषेक करवाया।
1210 ई. में चौगान खेलते हए घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
ऐबक ने 1206 ई. से लेकर 1210 ई. तक शासन किया।
Question 21 of 31
21. Question
1 points
1221 ई. में किस मंगोल ने भारत पर आक्रमण किया
Correct
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Incorrect
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Unattempted
चंगेज खां एक मंगोल सरदार था। जिसका मूल नाम नामूचिन था।
चंगेज खां का जन्म 1162 ई. में हुआ था।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर चंगेज खां (मातृकुल से) का वंशज था।
चंगेज खां ने बल्ख, बुखारा, समरकंद तथा हेरात आदि राज्यों पर विजय प्राप्त कर लगभग सम्पूर्ण मध्यएशिया की विजय की थी।
ख्वारिज्म का सुल्तान जलालुद्दीन मांगबर्नी 1221 में मंगोलों के भय से भारत भाग आया था।
मांगबर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी, किन्तु इल्तुतमिश चंगेज खां कि शक्ति को देखते हुए उसने मांगबर्नी को शरण देने से इंकार कर दिया।
इल्तुतमिश के इस कृत्य से चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे से ही दक्षिणी-पूर्वी यूरोप की तरफ मुड़ गया और नीपर नदी तक विजय प्राप्त की।
1227 ई. में चंगेज खां की मृत्यु हो गई।
Question 22 of 31
22. Question
1 points
रजिया के पतन का क्या कारण था
Correct
रजिया के पतन का सबसे प्रमुख कारण तुर्की सरदारों का विद्रोह
इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज और एलफिंस्टन ने रजिया की दुर्बलता या असफलता का प्रमुख कारण उसका स्त्री होना बताया है।
Incorrect
रजिया के पतन का सबसे प्रमुख कारण तुर्की सरदारों का विद्रोह
इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज और एलफिंस्टन ने रजिया की दुर्बलता या असफलता का प्रमुख कारण उसका स्त्री होना बताया है।
Unattempted
रजिया के पतन का सबसे प्रमुख कारण तुर्की सरदारों का विद्रोह
इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज और एलफिंस्टन ने रजिया की दुर्बलता या असफलता का प्रमुख कारण उसका स्त्री होना बताया है।
Question 23 of 31
23. Question
1 points
गुलाम वंश के किस शासक को ‘लाख बख्श’ की उपाधि दी गयी
Correct
व्याख्या-
कुतुबुद्दीन ऐबक-
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Incorrect
व्याख्या-
कुतुबुद्दीन ऐबक-
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Unattempted
व्याख्या-
कुतुबुद्दीन ऐबक-
दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी
1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा गुलामवंश की स्थापना हुई
कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल सिर्फ चार वर्ष तक चला
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का गुलाम था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक घोषित किया तथा उसने अपनी राजधानी “लाहौर” में बनायी
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक 24 जून 1206 ई0 में लाहौर में हुआ
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासनारुढ होते समय ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की उपाधियाँ धारण की
कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खाँ कहा जाता था क्योंकि वह कुरान का सुरीला पाठ करता था
ऐबक को अपनी उदारता व दानी प्रवृत्ति के कारण ‘लाखबख्श’ (लाखों का दानी) कहा गया
फरिश्ता के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक के समय किसी भी दानशील व्यक्ति को ऐबक की उपाधि दी जाती थी
दिल्ली में कुब्वत-उल-इस्लाम मस्जिद,का निर्माण आरम्भ करवाया था, जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया।
कुब्वत-उल-इस्लाम का नाम कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर कुतुबमीनार रखा गया।
Question 24 of 31
24. Question
1 points
“तुर्कान-ए-चहालगानी” की स्थापना किसने की थी?
Correct
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Incorrect
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Unattempted
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Question 25 of 31
25. Question
1 points
सर्वप्रथम किस सुल्तान ने खलीफा से खिलअत प्राप्त की थी?
Correct
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) एक साहसी सैनिक, योग्य सेनापति तथा दूरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसको 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई थी।
खलीफा ने इल्तुतमिश को उन सारे क्षेत्रों के शासक के रूप में मान्यता दे दी थी जिन्हें उसने जीता था,
इल्तुतमिश ने खलीफा का प्रभुत्व स्वीकार नहीं किया।
इसका प्रमाण यह है कि बंगाल के शासक गयासुद्दीन (जिसको खलीफा ने इल्तुतमिश की तरह ही मान्यता प्रदान की थी) के ऊपर आक्रमण करने में हिचकिचाहट नहीं की और बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था।
R.P. Tripathi के अनुसार “भारत वर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
Incorrect
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) एक साहसी सैनिक, योग्य सेनापति तथा दूरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसको 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई थी।
खलीफा ने इल्तुतमिश को उन सारे क्षेत्रों के शासक के रूप में मान्यता दे दी थी जिन्हें उसने जीता था,
इल्तुतमिश ने खलीफा का प्रभुत्व स्वीकार नहीं किया।
इसका प्रमाण यह है कि बंगाल के शासक गयासुद्दीन (जिसको खलीफा ने इल्तुतमिश की तरह ही मान्यता प्रदान की थी) के ऊपर आक्रमण करने में हिचकिचाहट नहीं की और बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था।
R.P. Tripathi के अनुसार “भारत वर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
Unattempted
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) एक साहसी सैनिक, योग्य सेनापति तथा दूरदर्शी शासक था।
इल्तुतमिश ने भारत में नव-निर्मित तुर्की राज्य को शक्तिशाली एवं संगठित किया
इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसको 1229 ई. में बगदाद के खलीफा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई थी।
खलीफा ने इल्तुतमिश को उन सारे क्षेत्रों के शासक के रूप में मान्यता दे दी थी जिन्हें उसने जीता था,
इल्तुतमिश ने खलीफा का प्रभुत्व स्वीकार नहीं किया।
इसका प्रमाण यह है कि बंगाल के शासक गयासुद्दीन (जिसको खलीफा ने इल्तुतमिश की तरह ही मान्यता प्रदान की थी) के ऊपर आक्रमण करने में हिचकिचाहट नहीं की और बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था।
R.P. Tripathi के अनुसार “भारत वर्ष में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से होता है।”
Question 26 of 31
26. Question
1 points
किसने चहलगानी प्रथा प्रारम्भ की.
Correct
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Incorrect
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Unattempted
इल्तुतमिश (1210-1236,ई.) इल्बारी तुर्क था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसको गुलाम के रूप में 1 लाख जीतल में खरीदा था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर की विजय की श्री जिसके एवज में उसे सर्वप्रथम ‘ग्वालियर’ की इक्ता प्रदान की गयी।
इल्तुतमिश बनने से पूर्व वह ‘बदायूँ’ का इक्तादार था।
ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने आरामशाह’ को सुल्तान घोषित कर दिया था,
दिल्ली के अमीरों एवं सरदारों के निमंत्रण पर एल्तुतमिश दिल्ली पहुंचा और 1211 ई. में जूद के मैदान में आरामशाह को हरा कर मार डाला और दिल्ली को सुल्तान बन बैठा।
इल्तुतमिश ने अपने विश्वास पात्र ‘चालीस गुलामों के एक दल’ (तुर्कान-ए चहालगानी) नामक एक गुट की स्थापना की थी।
तुर्कान-ए चहालगानी गुट के सारे सदस्य सुल्तान के विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त थे।
पुराने कुतुबी एवं मुइज्जी अमीर इल्तुतमिश के प्रति स्वामिभक्त नहीं थे उन विरोधी अमीरों और सरदारों को पदच्युत कर दिया गया।
तुर्कान-ए चहालगानी दल को समाप्त करने का श्रेय बलबन को प्राप्त है।
Question 27 of 31
27. Question
1 points
बलवन को किसका श्रेय नहीं दिया जाता-
Correct
बलबन को दक्षिण भारत की विजय का श्रेय नहीं प्राप्त है।
दिल्ली सल्तनत में पहली बार दक्षिण विजय का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी को दिया जाता है।
अमीर खुसरो की पुस्तक ‘तारीख-ए-अलाई’ में अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का उल्लेख हुआ है।
Incorrect
बलबन को दक्षिण भारत की विजय का श्रेय नहीं प्राप्त है।
दिल्ली सल्तनत में पहली बार दक्षिण विजय का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी को दिया जाता है।
अमीर खुसरो की पुस्तक ‘तारीख-ए-अलाई’ में अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का उल्लेख हुआ है।
Unattempted
बलबन को दक्षिण भारत की विजय का श्रेय नहीं प्राप्त है।
दिल्ली सल्तनत में पहली बार दक्षिण विजय का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी को दिया जाता है।
अमीर खुसरो की पुस्तक ‘तारीख-ए-अलाई’ में अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का उल्लेख हुआ है।
Question 28 of 31
28. Question
1 points
दिल्ली का प्रथम सुल्तान कौन था जिसने दरवार में गैर इस्लामी प्रथाओं का प्रचलन प्रारम्भ किया?
Correct
– बलबन ने ताज की प्रतिष्ठा, अपने गौरव और मर्यादा में वृद्धि लाने के उददेश्य से अपने राजदरवार का संगठन विशेष ढंग से किया।
बलबन ने इस्लामी प्रथाओं को त्यागकर गैर इस्लामी (ईरानी) ढंग और आदर्शों को अपनाया।
बलबन ने दरबार में अभिवादन के लिए ‘सिजद्रा और पायबोस’ की प्रथा चलाई।
बलबन दरबार में न तो स्वयं हंसता था और न ही किसी को इसकी अनुमति थी। इस प्रकार उसने सर्वप्रथम गैर इस्लामी प्रथाओं द्वारा ताज की प्रतिष्ठा को स्थापित किया।
Incorrect
– बलबन ने ताज की प्रतिष्ठा, अपने गौरव और मर्यादा में वृद्धि लाने के उददेश्य से अपने राजदरवार का संगठन विशेष ढंग से किया।
बलबन ने इस्लामी प्रथाओं को त्यागकर गैर इस्लामी (ईरानी) ढंग और आदर्शों को अपनाया।
बलबन ने दरबार में अभिवादन के लिए ‘सिजद्रा और पायबोस’ की प्रथा चलाई।
बलबन दरबार में न तो स्वयं हंसता था और न ही किसी को इसकी अनुमति थी। इस प्रकार उसने सर्वप्रथम गैर इस्लामी प्रथाओं द्वारा ताज की प्रतिष्ठा को स्थापित किया।
Unattempted
– बलबन ने ताज की प्रतिष्ठा, अपने गौरव और मर्यादा में वृद्धि लाने के उददेश्य से अपने राजदरवार का संगठन विशेष ढंग से किया।
बलबन ने इस्लामी प्रथाओं को त्यागकर गैर इस्लामी (ईरानी) ढंग और आदर्शों को अपनाया।
बलबन ने दरबार में अभिवादन के लिए ‘सिजद्रा और पायबोस’ की प्रथा चलाई।
बलबन दरबार में न तो स्वयं हंसता था और न ही किसी को इसकी अनुमति थी। इस प्रकार उसने सर्वप्रथम गैर इस्लामी प्रथाओं द्वारा ताज की प्रतिष्ठा को स्थापित किया।
Question 29 of 31
29. Question
1 points
दिल्ली के किस सुल्तान को उसकी उदारता के कारण ‘लाखबक्श’ पुकारा जाता था? .
Correct
कुतुबुद्दीन ऐबक अत्यन्त उदार एवं दानशील प्रवृत्ति का शासक था, जिसके कारण उसे ‘लाखबक्श‘ (लाखों का दान देने वाला) की उपाधि दी गई थी।
‘मिनहाज-उद-दिन-सिराज’ ने अपने ग्रंथ तयकात-ए-नासिरी में ऐबक कीप्रशंसा करते हुए लिखा है कि- ‘सुल्तान कुतुबुद्दीन अपने समय का हातिम. कहलाता था।
ऐबक को ‘कुरान ख्वां’ भी कहा जाता था, क्योंकि कुरान उसे कंठस्थ थी और वह नियमित कुरान का पाठ करता था।
Incorrect
कुतुबुद्दीन ऐबक अत्यन्त उदार एवं दानशील प्रवृत्ति का शासक था, जिसके कारण उसे ‘लाखबक्श‘ (लाखों का दान देने वाला) की उपाधि दी गई थी।
‘मिनहाज-उद-दिन-सिराज’ ने अपने ग्रंथ तयकात-ए-नासिरी में ऐबक कीप्रशंसा करते हुए लिखा है कि- ‘सुल्तान कुतुबुद्दीन अपने समय का हातिम. कहलाता था।
ऐबक को ‘कुरान ख्वां’ भी कहा जाता था, क्योंकि कुरान उसे कंठस्थ थी और वह नियमित कुरान का पाठ करता था।
Unattempted
कुतुबुद्दीन ऐबक अत्यन्त उदार एवं दानशील प्रवृत्ति का शासक था, जिसके कारण उसे ‘लाखबक्श‘ (लाखों का दान देने वाला) की उपाधि दी गई थी।
‘मिनहाज-उद-दिन-सिराज’ ने अपने ग्रंथ तयकात-ए-नासिरी में ऐबक कीप्रशंसा करते हुए लिखा है कि- ‘सुल्तान कुतुबुद्दीन अपने समय का हातिम. कहलाता था।
ऐबक को ‘कुरान ख्वां’ भी कहा जाता था, क्योंकि कुरान उसे कंठस्थ थी और वह नियमित कुरान का पाठ करता था।
Question 30 of 31
30. Question
1 points
दिल्ली सल्तनत की स्थापना की पारम्परिक तिथि निम्नलिखित तिथियों में से कौन थी
Correct
*****- दिल्ली सल्तनत की स्थापना की पारम्परिक तिथि 1206 ई. को माना जाता है।1206 ई. में ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने शासक के रूप में अपना राज्याभिषेक करवाया था।
Incorrect
*****- दिल्ली सल्तनत की स्थापना की पारम्परिक तिथि 1206 ई. को माना जाता है।1206 ई. में ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने शासक के रूप में अपना राज्याभिषेक करवाया था।
Unattempted
*****- दिल्ली सल्तनत की स्थापना की पारम्परिक तिथि 1206 ई. को माना जाता है।1206 ई. में ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने शासक के रूप में अपना राज्याभिषेक करवाया था।
Question 31 of 31
31. Question
1 points
किसने ‘तुर्कान-ए-चहालगानी’ को भंग कर दिया था?
Correct
‘तुर्कान-ए-चहालगानी’ का गठन अपने विरोधी अमीरों एवं सरदारों के शक्ति को नष्ट करने के लिए एल्तुतमिश ने किया था।
‘चालगानी’ चालीस गुलामों का एक दल था जो प्रत्येक कार्य में सुल्तान के सहायक होते थे।
इल्तुतमिश ने इन्हें प्रशिक्षित कर ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त किया था।
बलबन ने अपनी समस्याओं के निराकरण में रक्त एवं लौह’ की नीति का पालन किया।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश के परिवार के सभी सदस्यों को मौत के घाट उतरवा दिया।
बलबन ने सल्तनत के वफादार ‘चालीस तुर्कों के दल’ (तुर्कान-ए-चिहालगानी) का निर्दयतापूर्वक दमन कर दिया।
लेनपूल के शब्दों में – “बलबन विरोधियों पर बांज के समान टूट पड़ा उसने बड़ी कठोरता के साथ विद्रोहियों के स्थान फूंक डाले तथा उनका वध करके खून की नदियां बहा दी। निरंकुश शासन की दृढ़ता के अभिवृद्धि के लिए यह आवश्यक था।”
Incorrect
‘तुर्कान-ए-चहालगानी’ का गठन अपने विरोधी अमीरों एवं सरदारों के शक्ति को नष्ट करने के लिए एल्तुतमिश ने किया था।
‘चालगानी’ चालीस गुलामों का एक दल था जो प्रत्येक कार्य में सुल्तान के सहायक होते थे।
इल्तुतमिश ने इन्हें प्रशिक्षित कर ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त किया था।
बलबन ने अपनी समस्याओं के निराकरण में रक्त एवं लौह’ की नीति का पालन किया।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश के परिवार के सभी सदस्यों को मौत के घाट उतरवा दिया।
बलबन ने सल्तनत के वफादार ‘चालीस तुर्कों के दल’ (तुर्कान-ए-चिहालगानी) का निर्दयतापूर्वक दमन कर दिया।
लेनपूल के शब्दों में – “बलबन विरोधियों पर बांज के समान टूट पड़ा उसने बड़ी कठोरता के साथ विद्रोहियों के स्थान फूंक डाले तथा उनका वध करके खून की नदियां बहा दी। निरंकुश शासन की दृढ़ता के अभिवृद्धि के लिए यह आवश्यक था।”
Unattempted
‘तुर्कान-ए-चहालगानी’ का गठन अपने विरोधी अमीरों एवं सरदारों के शक्ति को नष्ट करने के लिए एल्तुतमिश ने किया था।
‘चालगानी’ चालीस गुलामों का एक दल था जो प्रत्येक कार्य में सुल्तान के सहायक होते थे।
इल्तुतमिश ने इन्हें प्रशिक्षित कर ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त किया था।
बलबन ने अपनी समस्याओं के निराकरण में रक्त एवं लौह’ की नीति का पालन किया।
बलबन ने सर्वप्रथम इल्तुतमिश के परिवार के सभी सदस्यों को मौत के घाट उतरवा दिया।
बलबन ने सल्तनत के वफादार ‘चालीस तुर्कों के दल’ (तुर्कान-ए-चिहालगानी) का निर्दयतापूर्वक दमन कर दिया।
लेनपूल के शब्दों में – “बलबन विरोधियों पर बांज के समान टूट पड़ा उसने बड़ी कठोरता के साथ विद्रोहियों के स्थान फूंक डाले तथा उनका वध करके खून की नदियां बहा दी। निरंकुश शासन की दृढ़ता के अभिवृद्धि के लिए यह आवश्यक था।”